शनिवार, 14 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर भी चलेगा रणनीतिक फार्मूला!

अध्यादेशों पर आधा रास्ता तय
सरकार को मंजिल पाने का भरोसा
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार संसद के बजट सत्र में विपक्ष की लामबंदी के चलते जिन छह अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने की खासकर उच्च सदन में चुनौती मानती आ रही थी, उसमें अभी तक सरकार ने राज्यसभा में नागरिकता(संशोधन) और मोटरयान के साथ बीमा विधि(संशोधन) विधेयकों को पारित कराकर आधा रास्ता तय कर चुकी है। उसी रणनीतिक फार्मूले पर सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को भी संसद की मंजूरी लेने का ताना-बाना बुन रही है।
सरकार के सामने इन सभी छह अध्यादेशों में से विपक्षी दलों की लामबंदी भूमि अधिग्रहण विधेयक और बीमा विधेयक के खिलाफ सरकार को घेरने के लिए की जा रही थी। राज्यसभा में बीमा विधेयक को मंजूरी के लिए जिस प्रकार से सरकार ने कांग्रेस को मनाने के साथ अन्य दलों के अप्रत्यक्ष समर्थन हासिल किया है। उसी रणनीतिक फार्मूले पर सरकार अब अगले सप्ताह भूमि अर्जन, पुनर्वासन और पुनर्व्यवस्थापन में उचित प्रतिकार और पारदर्शिता अधिकार (संशोधन) विधेयक 2015 पर भी उच्च सदन की मंजूरी लेने की जीतोड़ कोशिश कर रही है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को जिस प्रकार से तृणमूल कांग्रेस और अन्नाद्रमुक का जरूरत न होने के बावजूद समर्थन मिला है उसी प्रकार सरकार को उच्च सदन में प्रत्यक्ष और अप्रत्यक्ष रूप से भूमि अधिग्रहण को भी समर्थन मिलने के आसार बनते नजर आ रहे हैं। सूत्रों के अनुसार भूमि अधिग्रहण विधेयक पर सबसे ज्यादा कांग्रेस अपनी साख को कायम रखने के लिए विरोध में सबसे आगे रही है। केंद्र सरकार ने इसी विरोध को ध्वस्त करने के लिए शायद कांग्रेस की उच्च सदन में खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक तथा कोयला खान (विशेष उपबंध) विधेयक को उच्च सदन की प्रवर समिति को समयबद्धता की शर्त पर सौंपा है। कांग्रेस की इस मांग को पूरी करके सरकार ने बीमा विधेयक को पारित कराने में कांग्रेस का प्रत्यक्ष रूप से सदन में समर्थन हासिल कर लिया। माना जा रहा है कि अगले सप्ताह जब राज्यसभा में सरकार लोकसभा से पारित हो चुके भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए पेश करेगी तो बीमा विधेयक की तर्ज पर वह इसी रणनीतिक फार्मूले पर सदन में आएगी। मसलन कुछ दल सदन से वाक आउट करेंगे तो कुछ सदन में रहकर विधेयक का समर्थन करेंगे?
ऐसे टूटा तिलस्म
सूत्रों के अनुसार भूमि अधिग्रहण विधेयक पर केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों के नेताओं के अलावा किसान संगठनों से भी सुझाव हासिल करके लोकसभा में नौ संशोधन पेश करके इसे पारित कराया, जिसमें टीएमसी और एडीएमके के दो अनुच्छेदों को भी मंजूरी दिलाई। उच्च सदन में सरकार ने कांग्रेस के विरोध को शांत करने के लिए उसके द्वारा आने वाले संशोधनों को विधेयक में शामिल करने का भरोसा देकर कांग्रेस के तेवरों को कमजोर कर लिया है। जबकि पीएम नरेन्द्र मोदी से टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी की मुलाकात और अन्नाद्रमुक के नेताओं के साथ बातचीत के अलावा सपा, बसपा और वामदलों के नेताओं से भी सरकार की भूमि अधिग्रहण विधेयक को लेकर गंभीर चर्चाएं हो चुकी है और माना जा रहा है कि सरकार अपने रणनीतिक फार्मूले के सहारे उच्च सदन में अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने की मंजिल को पूरा कर लेगी।
संयुक्त सत्र की संभावनाएं कम
सरकार के इन छह अध्यादेशों को यदि बजट सत्र के पहले चरण में विधेयकों के रूप में पारित न कराया गया तो पांच अप्रैल को इनका अस्तित्व खत्म हो जाएगा। सरकार की विपक्ष की लामबंदी को तोड़ने के लिए सरकार के नरम रूख में जिन दो विधेयकों को प्रवर समिति को सौंपा गया है तो उसमें 18 मार्च तक समिति को अपनी रिपोर्ट देने को कहा गया है। संसद के बजट सत्र का पहला चरण बीस मार्च को समाप्त हो जाएगा, इसलिए सरकार को उम्मीद है कि 19 और 20 मार्च को प्रवर समिति से होकर आने वाले इन दोनों विधेयकों को भी पारित करा लिया जाएगा। जाहिर सी बात है कि विपक्ष इन विधेयकों का विरोध नहीं करेगा और न ही सरकार को संयुक्त सत्र बुलाने की नौबत आएगी।
14Mar-2015

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