बुधवार, 25 मार्च 2015

गरीबों का मजाक नहीं होने देगी सरकार!

गरीबी की परिभाषा बदलने को बनेगा रोडमैप
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में करीब चार साल पहले एक समिति की रिपोर्ट के आंकड़ों के आधार पर जिस तरह से यूपीए सरकार गरीबों का मजाक उड़ाती नजर आई थी, उससे चिंतित मोदी सरकार ने गरीबी की समस्या से निपटने की कवायद शुरू कर दी हैं जिसके लिए सरकार ने गरीबी की परिभाषा तय करने के लिए एक रोडमैप तैयार करेगी।
मोदी सरकार ने देश के गरीबों के लिए योजनाएं लागू करने के साथ उनकी गरीबी को दूर करने वाली समस्याओं से निपटने का संकल्प लिया है। सूत्रों के अनुसार योजना आयोग का नाम बदलकर नीति आयोग का गठन करने के बाद सरकार ने इस दिशा में एक व्यापक योजना पेश करने का फैसला किया है, लेकिन इससे पहले सरकार गरीबी के पैमाने की समीक्षा करेगी। मौजूदा सरकार ने गरीबी को लेकर सी रंगराजन समिति की सिफारिशों से जुड़ी सीमा को अभी आधिकारिक रूप से स्वीकार नहीं किया है, जिसके कारण संभावना व्यक्त की जा रही है कि मोदी सरकार गरीबी रेखा से नीचे और उससे ऊपर के लोगों का वर्गीकरण करने के लिये खर्चों के स्तर में बढ़ोतरी को बढ़ा सकती है। मोदी सरकार गरीबों को लेकर उस रणनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जिस प्रकार सितंबर 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा शपथ पत्र देकर गरीबी को मजाकिया के हाशिए पर खड़ा करने फजीहत का सामना करना पड़ा था। यूपीए सरकार ने वर्ष 2010-2011 को मुद्रास्फीति को आधार वर्ष मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये इस शपथ पत्र में गरीबी रेखा के जिस पैमाने को माना था उसमें शहरी व्यक्ति प्रतिदिन 32 रुपये और गांव के व्यक्ति को प्रतिदिन 26 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीबी की सीमा से ही अलग कर दिया गया था। मसलन यूपीए सरकार ने गरीब के लिए जो नई परिभाषा गढ़ी थी उसे मोदी सरकार गरीबों के सम्मान में नई परिभाषा के रूप में सामने लाने की पूरी तैयारी कर चुकी है।
गठित हुई टास्क फोर्स
सूत्रों के मुताबिक इसके लिए सरकार ने नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय टास्क फोर्स का गठन किया है। टास्क फोर्स के सदस्यों में मुख्य रूप से से नीति आयोग के सदस्य विवेक देबरॉय, सामाजिक विशेषज्ञ रतिन रॉय और सुरजीत भल्ला और मुख्य रणनीतिकार टीसीए अनंत के अलावा पांच केंद्रीय मंत्रालयों के सचिव, यूनीक आइडेंटिफिकेशन अथॉरिटी आॅफ इंडिया के डायरेक्टर जनरल और आयोग से दो सलाहकार भी इस टास्क फोर्स का हिस्सा हैं। इसके अतिरिक्त टास्क फोर्स में कुछ विशेष आमंत्रित सदस्य भी शामिल किया जा सकता है। इस टास्क फोर्स को गरीबी की व्यवहारिक परिभाषा तय कर इसे खत्म करने के लिए रोडमैप तैयार करने की जिम्मेदारी दी गई है। टास्क फोर्स के बाकी कामों में गरीबी से लड़ने के लिए कार्यक्रम और रणनीति बनाने का फार्मूला भी सुझाना शामिल होगा। सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार का यह नया टास्कफोर्स जून के अंत तक अपनी रिपोर्ट सौंप देगा।
योजना आयोग पर उठे थे सवाल
दरअसल तत्कालीन यूपीए शासन काल में योजना आयोग के उपाध्यक्ष मोंटेक सिंह अहलुवालिया की अगुवाई में योजना आयोग ने जब गरीबों को लेकर शहरी क्षेत्रों के लिए 20 रुपए और ग्रामीण क्षेत्रों के लिए 15 रुपए निर्धारित का किया था, तो मई 2011 में सुप्रीम कोर्ट ने योजना आयोग की गरीबी रेखा की परिभाषा पर सवालिया निशान लगाते हुए मई 2011 के मूल्य सूचकांक के आधार पर गरीबी रेखा निर्धारित करते हुए सरकार से जवाब मांगा था। योजना आयोग ने तेंदुलकर समिति की रिपोर्ट पर आधारित संशोधित सीमा तैयार करके गरीबी की परिभाषा गढ़ी थी। इस परिभाषा पर मनमोहन सरकार की चौतरफा आलोचना हुई थी। हालांकि मनमोहन सरकार ने सी. रंगराजन समिति भी गठित की थी, जिसने उस समय गरीबी रेखा के लिए गांवों में 32 रुपये प्रति व्यक्ति और शहरों में 47 रुपये प्रति व्यक्ति की सीमा तय की थी यानि इतने पैसे में गरीब अपना गुजर-बसर कर सकता है।
25Mar-2015

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