शनिवार, 21 मार्च 2015

छह माह तक ठंडे बस्ते में गया भूमि बिल!

इस विधेयक पर नहीं टूट सका गतिरोध
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार अपने छह अध्यादेशों में सबसे महत्वपूर्ण भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विपक्षी लामबंदी के चलते संसद के बजट सत्र में अंजाम तक नहीं पहुंचा सकी। इस मुद्दे पर विपक्षी एकता ने सरकार के सभी विकल्पों में ऐसा रोड़ा डाला कि अब भूमि अधिग्रहण विधेयक पर वह दूसरा अध्यादेश भी नहीं ला सकती। मसलन अब कम से कम छह माह के लिए भूमि अधिग्रहण ठंडे बस्ते में ही चला गया है।
संसद के बजट सत्र में मोदी सरकार के लिए छह अध्यादेशों को विधेयकों के रूप में पारित कराने की चुनौती थी और अध्यादेश लाने के फैसले से पूरी तरह लामबंद विपक्ष ने सरकार की इस राह में निरंतर बाधा डालने का काम किया। सरकार के विकास के एजेंडे को दिशा देने के लिए उसके सामने भूमि अधिग्रहण अध्यादेश को विधेयक के रूप में बदलने की सबसे बड़ी चुनौती थी, जिस पर सरकार के विपक्षी लामबंदी तोड़ने के सभी वे रणनीतिम फार्मूले किसी काम नहीं है, जिनके जरिए सरकार उच्च सदन में पांच अध्यादेशों को विधेयक के रूप में पारित कराने में आगे बढ़ गई है। जबकि लोकसभा में विपक्ष को नरम करने की दिशा में सोशल इंफ्रास्ट्रकचर को मंजूरी न लेने वाले सेक्टर से बाहर करने, सिर्फ सरकारी संस्थाओं, निगमों के लिए ही जमीन लेने, राष्ट्रीय राजमार्ग, रेललाइन के दोनों तरफ एक-एक किलोमीटर जमीन का ही अधिग्रहण करने, किसानों को जिले में अपील करने और विस्थापित किसान परिवारों में से एक को नौकरी देने के साथ बंजर भूमि को पहले अधिग्रहण करने जैसे नौ संशोधनों के साथ पारित कराया, लेकिन इन्हें उच्च सदन में समूचे विपक्ष ही नहीं, बल्कि सरक ार के कुछ सहयोगी दल भी स्वीकार करने को तैयार नजर नहीं आए। विपक्षी एकजुटता के सामने हालांकि सरकार इस विधेयक को प्रवर समिति को भेजने का भी मन बना चुकी थी, जिसकी कांग्रेस के नेतृत्व में विपक्ष की मांग भी सामने आई। इसके बावजूद सरकार इस विपक्षी एकता को पार नहीं पा सकी और भूमि अध्यादेश अधर में लटका रह गया।
धरे रहे सभी विकल्प
उच्च सदन में दरअसल सरकार के सामने ज्यादा मुश्किलें थी, जिसमें उच्च सदन में पहले से मौजूद एक भूमि अध्यादेश को वापस लेने के बाद ही लोकसभा में पारित कराया गया नया विधेयक पेश किया जा सकता था। उच्च सदन में पुराने बिल को वापस लेने से सरकार मत विभाजन की नौबत के कारण आगे नहीं बढ़ सकी। ऐसे में सरकार के सामने संयुक्त सत्र बुलाने का रास्ता भी मिलने वाला नहीं था, जिसके लिए नियमानुसार यह जरूरी था कि राज्यसभा में यह विधेयक पास न हो, लेकिन इस विधेयक को पेश करने से पहले से ही मौजूद भूमि अधिग्रहण विधेयक को वापस लेने की बाधा बनी रही। चूंकि अध्यादेश पांच अप्रैल को स्वत: ही खत्म हो जाएगा और बजट सत्र का सत्रावसान सात मई को होगा, तो संसद सत्र की अवधि के दौरान सरकार नया बिल तैयार करके अध्यादेश भी नहीं ला सकती। इसलिए राज्यसभा में लंबित विधेयक छह माह बाद स्वत: ही निष् िक्रय हो जाएगा। मसलन सरकार छह माह बाद ही संयुक्त सत्र बुलाकर भूमि अधिग्रहण विधेयक पर आगे बढ़ सकेगी।
झुकने को तैयार नहीं हुई सरकार
सरकार चाहती तो विपक्ष की भूमि अधिग्रहण विधेयक को प्रवर समिति को सौंपे जाने की मांग का पानी दे सकती थी यानि राज्यसभा में लंबित विधेयक को वापस लेने के बजाए उसी बिल को प्रवर समिति को सुपुर्द करने का प्रस्ताव कर सकती थी, जिसकी वित्त म् अरुण जेटली की ओर से संकेत तो ऐसे मिले थे, लेकि न सरकार ने विपक्ष के सामने झुकना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं किया। यदि सरकार ऐसा करती तो छह माह में निष्क्रिय होने वाले इस बिल के तहत सरकार आगे बढ़ सकती थी। 


21Mar-2015

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