शनिवार, 7 मार्च 2015

भूमि अधिग्रहण बिल पर मुश्किल में मोदी सरकार!

भूमि अधिग्रहण विधेयक सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा
नई दिल्ली

भूमि अधिग्रहण विधेयक पर विपक्ष के साथ ही भाजपा के सहयोगी दलों का आंखें तरेरना केंद्र में सरकार की अगुवाई कर रही भाजपा को चैकन्ना कर गया है। लोकसभा चुनावों में अपने बलबूते बहुमत हासिल करने के बाद भाजपा ने सहयोगी दलों को सरकार में शामिल तो किया लेकिन महत्वपूर्ण फैसले लेते समय उनकी कथित अनदेखी की गयी।
लोकसभा चुनावों के बाद महाराष्ट्र, हरियाणा, झारखंड और जम्मू-कश्मीर में भी भाजपा के चमत्कारिक प्रदर्शन को देखते हुए सहयोगी दल अपनी पीड़ा अपने तक ही रखे रहे लेकिन जब दिल्ली विधानसभा चुनावों में भाजपा का एक तरह से सफाया हो गया तो राजग में शामिल उन सभी दलों का हौसला बढ़ गया जोकि अब तक चुपचाप सब कुछ देखते सुनते आ रहे थे। भाजपा के सहयोगी दलों को अपने तेवर दिखाने का मौका तब मिला जब संसद के बजट सत्र के दौरान नरेंद्र मोदी सरकार के लिए भूमि अधिग्रहण बिल अब तक की सबसे बड़ी चुनौती बनकर उभरा। इस पर जहां विपक्ष आग बबूला है वहीं सामाजिक और किसान संगठन भी धरना प्रदर्शन कर रहे हैं। सामाजिक कार्यकर्ता अन्ना हजारे ने तो इस मुद्दे पर दिल्ली के जंतर मंतर पर दो दिन तक धरना भी दिया। ऐसे में भाजपा को घिरा पाकर भाजपा के सहयोगी दलों ने भी मौका न गंवाते हुए इस विधेयक का विरोध कर डाला। शिवसेना ने तो इस मुद्दे पर किसानों के बीच जागरूकता कार्यक्रम चलाने का ऐलान करते हुए कहा कि वह किसी भी कीमत पर इस विधेयक का विरोध करेगी। लोक जनशक्ति पार्टी ने भी विधेयक के कुछ प्रावधानों पर आपत्ति जताई। बिहार से केंद्र में राज्यमंत्री उपेन्द्र कुशवाहा ने भी इस विधेयक का विरोध किया है। अकाली दल ने भी विधेयक पर आपत्ति जताते हुए कुछ मुद्दों पर स्पष्टीकरण की मांग की है। महाराष्ट्र के शेतकारी कामगार पक्ष ने भी विरोध दर्ज कराया है। एमडीएमके नेता वाइको तो इस मुद्दे पर हजारे के साथ धरने पर भी मौजूद रहे। अब भाजपा के समक्ष मुश्किल यह है कि वह पहले इस विधेयक पर राजग के भीतर आम सहमति बनाये या फिर सर्वदलीय बैठक कर आम सहमति बनाने का प्रयास करे। दरअसल भाजपा के पास राज्यसभा में बहुमत नहीं है और मुश्किल यह है कि किसी भी विधेयक का संसद के दोनों सदनों में पारित होना आवश्यक है। कहा जा रहा है कि संसद के उच्च सदन में अपने अल्पमत में होने की स्थिति को देखते हुए सरकार संसद के संयुक्त सत्र को बुलाकर इस विधेयक को पास करवा सकती है। लेकिन खबर है कि इसको लेकर भी राजग के घटक दलों में एकराय नहीं है। इसीलिए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जिन्होंने भाजपा संसदीय दल की बैठक में पहले तो इस विधेयक पर टस से मस न होने की बात कही थी, राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर अपने बयान में उन्होंने लचीला रुख अपनाते हुए ऐलान किया है कि यदि सकारात्मक सुझाव हों तो सरकार उन पर विचार करने को तैयार है। राजग के घटक दलों ने जो रुख अपनाया है उसके पीछे उनके अपने अपने राजनीतिक स्वार्थ भी हैं। महाराष्ट्र विधानसभा चुनावों के समय भाजपा ने जिस तरह शिवसेना के साथ गठबंधन तोड़कर चुनाव लड़ा और मुख्यमंत्री पद हासिल किया, उसे शिवसेना अब तक पचा नहीं पाई है। ऊपर से भाजपा को राकांपा से समर्थन और भाजपा नेताओं का राकांपा नेताओं के साथ नजदीकियां दिखाना भी शिवसेना को नहीं भाता है। शिवसेना अपने मुखपत्र में भाजपा की आलोचना लगातार जारी रखे हुए है जबकि वह केंद्र और राज्य, दोनों ही जगह भाजपा के नेतृत्व वाली सरकार में शामिल है। शिवसेना ने तो रेल बजट और आम बजट की भी आलोचना कर डाली। लोक जनशक्ति पार्टी के विरोध के स्वर ज्यादा तेज नहीं थे लेकिन फिर भी उसने जो कहा उससे प्रतीत होता है कि पार्टी आगामी बिहार विधानसभा चुनावों के दौरान सीट बंटवारे को लेकर काफी मोलभाव के मूड़ में है। यही स्थिति कमोबेश अकाली दल की है। कहने को तो यह पार्टी भाजपा की सबसे पुरानी सहयोगी है लेकिन पंजाब में दोनों पार्टियों के नेता एक दूसरे को नीचा दिखाने का कोई मौका नहीं छोड़ते। लोकसभा चुनावों में अमृतसर से अरुण जेटली के चुनाव हारने के बाद से केंद्रीय स्तर पर भी दोनों दलों के रिश्तों में पुरानी गर्मजोशी नहीं रह गयी है। 2017 के विधानसभा चुनावों से पहले दोनों दलों की राहें जुदा हो जाएं तो कोई आश्चर्य की बात नहीं होगी।
बहरहाल, भाजपा के लिए यह चेतने का समय है क्योंकि सहयोगी दलों के तेवरों से साफ है कि जब तक भाजपा विजयी होती रहेगी, तब तक ही सहयोगी उसका गुणगान करते रहेंगे लेकिन एक भी पराजय भारी पड़ेगी। साथ ही भाजपा के ऐसे सहयोगी जोकि ठीक चुनावों के समय उसके साथ आए हैं, वह राजनीतिक माहौल बदलने पर कभी भी पाला बदल सकते हैं। तब भले भाजपा यह कहे कि लोकसभा में उसके पास अपने बलबूते बहुमत है लेकिन साथी दलों के साथ छोड़ने से जो माहौल बनता है वह नेतृत्व कर रहे दल का नुकसान भी करता है।
विधेयकों को पारित कराने में सहयोग की दरकार
राज्यसभा में महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराने के लिए संख्या बल के अभाव के बीच सरकार ने विपक्ष से सहयोग देने की अपील करते हुए कहा है कि कांग्रेस और मित्रों को विकास एवं लोगों को वृहद कल्याण को ध्यान में रखते हुए इनका समर्थन करना चाहिए। संसदीय कार्य मंत्री एम वेंकैया नायडू ने कहा कि यह प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की विकास की पहल को आगे बढ़ाने के सरकार के प्रयासों का हिस्सा है। उन्होंने कि कांग्रेस और मित्रों को देश के व्यापक हित में राज्यसभा में इन विधेयकों को पारित कराने में मदद करनी चाहिए। कोयला एवं बीमा विधेयक लोकसभा में पारित हो गया है, सरकार के लिए ऊपरी सदन में संख्या बल की कमी के कारण इन्हें पारित कराना कठिन कार्य है। नायडू ने कहा कि भूमि अधिग्रहण विधेयक किसान समर्थक है और सिंचाई योजना, बांधों के निर्माण समेत विभिन्न कार्यो के लिए इनकी जरूरत होती है। जमीन का अधिग्रहण किये बिना कैसे बांध, हवाई अड्डों, नयी रेल लाइनों आदि का निर्माण किया जा सकता है? इसमें किसान विरोधी बात क्या है? उन्होंने कहा कि प्रधानमंत्री कह चुके हैं कि अगर आपके पास कोई सार्थक सुझाव हो तो पेश करें, सरकार इन्हें शामिल करेगी।
07Mar-2015

कोई टिप्पणी नहीं:

एक टिप्पणी भेजें