मंगलवार, 31 मई 2016

राज्यसभा चुनाव: फिर टूटे चौधरी अजित सिंह का मंसूबे!

यूपी विधानसभा चुनाव में गठबंधन की संभावनाएं बरकरार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तर प्रदेश के अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के लिए जारी सियासी दलों की रणनीतियों के बीच समाजवादी पार्टी की रालोद से गठबंधन की संभावनाएं अभी नफे-नुकसान के आकलन के साथ बरकरार हैं, लेकिन इस गठबंधन में सपा के सहारे राज्यसभा में जाने पर संशय के बादल छा गये है, जिससे अजित सिंह के राज्यसभा पहुंचने के मंसूबों पर पानी फिरता नजर आ रहा है।
राज्यसभा की 58 सीटो के लिए 11 जून को होने वाले द्विवर्षीय चुनाव के लिए पिछले दो दिन से यूपी की राजनीति में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी ने यूपी में विधानसभा चुनाव की रणनीति साधते हुए राष्ट्रीय लोकदल से नजदीकियां बढ़ाई। सूत्रों के अनसुार सपा-रालोद गठबंधन को लेकर एक दिन पहले सपा नेता शिवपाल यादव व रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के बीच लंबी चर्चा हुई,जिसमें रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह को राज्यसभा तक पहुंचने की राह लगभग तय कर चुकी थी, जिसके नामांकन दाखिल कर चुके सपा के सातों प्रत्याशियों में से बिशंबर निषाद का टिकट वापस करने तक भी मामला पहुंचा। सूत्रों के अनुसार इस सियासी खबर से सपा में असंतुष्ट की लहर दौड़ने स सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने राज्यसभा के नामांकन दाखिल कर चुके किसी भी प्रत्याशी का टिकट वापस न करने का फैसला सुनाया और रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह के मंसूबे पानी में बह गये। हालांकि सपा और रोलोद की दोस्ती में गठबंधन की संभावनाओं को अगले साल यूपी विधानसभा चुनाव बरकरार रखा गया है। सपा के रणनीतिकार भी मान रहे हैं कि रालोद सहित कई दूसरी छोटी पार्टियों के साथ गठबंधन कर अगले साल विधानसभा चुनाव में सरकार विरोधी माहौल से होने वाले नुकसान की भरपाई की जा सकती है।
यूपी मिशन: गठबंधन के होंगे ये फायदे
उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी पश्चिमी यूपी में वर्चस्व ररखने वाले राष्ट्रीय लोकदल से गठबंधन कर सकती है। अगर सपा का मुस्लिम और रालोद के जाट वोटरों का गठजोड़ बनता है, तो पश्चिम उत्तर प्रदेश की 145 विधानसभा सीटों पर सपा-रालोद गठबंधन भाजपा और बसपा के लिए तगड़ी चुनौती बन सकता है। मसलन यदि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सपा को रालोद का साथ मिलता है तो वह इस क्षेत्र में एक मजबूत ताकत बन सकती है। हालांकि इससे पहले रालोद की जदयू के साथ विलय और भाजपा तथा कांग्रेस के साथ भी गठबंधन पर बातचीत हुई थी, लेकिन वहां उनकी दाल नहीं गल पायी। लिहाजा ऐसे में रालोद बहुत फूंक-फूंक कर आगे बढ़ रहा है।

सड़क व रेल क्षेत्र के बुनियादी ढांचे से संतुष्ट मोदी

प्रधानमंत्री ने की बुनियादी ढांचा प्रगति की समीक्षा
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने देश में विकास के एजेंडे को पूरा करने के लिए बुनियादी ढांचों को मजबूत करने के लिए ताबड़तोड़ चलाई जा रही सड़क और रेल परियोजनाओं की प्रगति की समीक्षा की। इन दोनों क्षेत्रों की प्रगति पर संतोष व्यक्त करते हुए मोदी ने इसकी रफ़्तार को तेज करने पर बल दिया।
सूत्रों के अनुसार देश में सड़कों के निर्माण की परियोजनाओं की समीक्षा करते हुए प्रधानमंत्री ने सड़क क्षेत्र की प्रगति में पाया कि 2015-16 के दौरान 6000 किलोमीटर से भी अधिक राजमार्गों के कार्य को पूरा किया गया और इसी अवधि के दौरान 10,098 किलोमीटर के निर्माण के लिए ठेके दिए गए। प्रधानमंत्री ने पूरे देश में सड़क विकास के विभिन्न मॉडलों का अध्ययन करने और सर्वोत्तम प्रक्रियाओं को अपनाने की जरूरत पर जोर दिया, ताकि राजमार्ग निर्माण क्षेत्र में अधिक से अधिक निवेश लाया जा सके। उन्होंने महत्वपूर्ण हिस्सों में भीड़ कम करने और टोल वसूली के लिए नवीनतम प्रौद्योगिकियों को अपनाने की जरूरत पर भी बल दिया। खासकर सड़क दुर्घटनाओं में कमी लाने के लिए सरकार की सुरक्षा प्राथमिकता के आधार पर तकनीक का प्रयोग करने पर भी बल दिया।

सोमवार, 30 मई 2016

सपा के सहारे राज्यसभा आएंगे चौधरी अजित सिंह?

भाजपा-कांग्रेस ने दुत्कारा, तो सपा ने दिया सहारा
रालोद से गठजोड़ में सपा ने बिशम्बर निषाद की ली बलि
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में रालोद के कदम रखने के लिए चौधरी अजित सिंह को अंतिम चरणों में समाजवादी पार्टी ने गठजोड़ की राजनीति के तहत राज्यसभा भेजने का फैसला ले ही लिया, जिसके लिए सपा को राज्यसभा चुनाव के लिए नामांकन दाखिल कर चुके बिशम्बर निषाद का टिकट काटकर बलि देनी पड़ी।
सूत्रों के अनुसार राष्ट्रीय लोक दल के अध्यक्ष चौधरी अजित सिंह ने आखिर मुलायम सिंह यादव की सपा से हाथ मिलाकर राज्यसभा जाने का प्लेटफॉर्म तैयार कर ही लिया। राज्यसभा में 16 राज्यों की रिक्त होने वाली 58 सीटों के लिए आगामी 11 जून को होने वाले द्विवार्षिक चुनाव के लिए जारी नामांकन प्रक्रिया में उत्तर प्रदेश की 11 में से सात सीटों के लिए सपा के सभी सातों घोषित उम्मीदवारों ने नामांकन भी दाखिल कर दिये हैं, लेकिन सपा ने चौधरी अजित सिंह के लिए नामांकन दाखिल कर चुके बिशम्बर निषाद को फिर से राज्यसभा जाने से रोक दिया है यानि उसका टिकट काट दिया है। दरअसल रविवार को यूपी में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव के मद्देनजर चौधरी अजित सिंह के दिल्ली में बसंतकुंज स्थित आवास पर यूपी में केबिनेट मंत्री शिवपाल सिंह यादव के साथ हुई बैठक में सपा-रालोद के गठबंधन का फैसले को अंजाम दिया गया। इससे पहले अजित सिंह ने कल शनिवार को मुलायम सिंह यादव के साथ भी बैठक की थी। इस गठबंधन का सहारा लेकर सपा ने चौधरी अजित सिंह को राज्यसभा में दाखिल करने का भी फैसला किया। गौरतलब है कि इससे पहले भाजपा ने अजित सिंह को विलय करने की शर्त पर अपने साथ मिलाने का फरमान सुना दिया था और उसके बाद कांग्रेस की प्रमुख सोनिया गांधी ने भी रालोद प्रमुख को खाली हाथ वापस कर दिया था। ऐसे में राज्यसभा जाने की जुगत में लगे चौधरी अजित सिंह ने एक बार फिर समाजवादी पार्टी की साइकिल पर अपने नल की सवारी करने की मुहिम शुरू की, जो पटरी पर आ गई और उनके राज्यसभा जाने की मुराद भी मुलायम सिंह ने पूरी कर दी। हालांकि सपा की इस रणनीति पर सवाल भी उठने लगे हैं कि आखिर अजीत सिंह को राज्यसभा के लिए समर्थन देने के पीछे सपा की कौन सी रणनीति है? इसके दूरगामी परिणाम क्या रहेंगे, ये भविष्य के गर्भ में हैं। गौरतलब है कि इससे पहले सपा भी रालोद का विलय करने की शर्त पर अजित सिंह को अपने साथ लाने की बात कह चुकी थी।
सपा व रालोद की मजबूरियां
उत्तर प्रदेश विधानसभा में सत्ताधारी समाजवादी पार्टी 229 विधायकों के साथ सबसे बड़े संख्याबल के रूप में मजबूत स्थिति में है। इसी मजबूत संख्याबल के सहारे यूपी से 11 राज्यसभा सीटों में से सपा अपने सात प्रत्याशियों का नामंकन भी दाखिल करा चुकी है। नामांकन दाखिल करने की अंतिम तिथि 31 मई मंगलवार है। रालोद प्रमुख अजित सिंह के लिए सपा को एक प्रत्याशी का टिकट वापस कर रालोद प्रमुख अजित सिंह को समर्थन देकर राज्यसभा पहुंचाएगी। इस रणनीति के पीछे सपा और रालोद दोनों की ही अगले साल विधानसभा चुनाव की मजबूरी साफतौर से नजर आ रही है। सपा को पश्चिम उत्तर प्रदेश की जाट बैल्ट में रालोद का सहारा मिल सकता है तो सपा के सहारे उत्तर प्रदेश विधानसभा में रालोद भी अपने विधायकों की संख्या में इजाफा कर सकता है। फिलहाल विधानसभा में रालोद के आठ और 10 निर्दलीय विधायकों के बलबूते भी अजित सिंह राज्यसभा नहीं पहुंच सकते थे, जिसके लिए भाजपा और कांग्रेस से दुत्कारे जाने पर सपा के समर्थन से उन्हें राज्यसभा पहुंचने का रास्ता आसानी से मिल जाएगा।
30May-2016

रविवार, 29 मई 2016

संसद:दो साल में पास हुए ज्यादा विधेयक

संसद के काम में भी मोदी सरकार के  बेमिसाल दो साल 
एक दशक की तुलना में पास हुए ज्यादा विधेयक
सरकार को जीएसटी विधेयक पास होने की उम्मीद
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र की मोदी सरकार अपने दो साल की उपलब्धियों का बखान करने का जश्न मना रही है। सरकार की असल परीक्षा तो विधायी और सरकारी कामकाज के रुप में संसद में भी दांव पर लगी रही, जहां लगातार विपक्षी दलों से घिरे होने के बावजूद मोदी सरकार कामकाज करने में कसौटी पर खरी उतरती नजर आयी। मसलन इन दो साल के दौरान संसद पिछले दस साल के मुकाबले ज्यादा विधेयक पारित किये गये।
केंद्र की मोदी सरकार अपने दो साल के कार्यकाल के दौरान संसद सत्रों में शुरुआत से ही विपक्षी दलों खासकर कांग्रेस के निशाने पर रही, जिसने सरकार के काम में रोड़ा अटकाने की रणनीति अब तक नहीं छोड़ी। इसके बावजूद राजग सरकार के संसद के काम को लेकर आंकडेÞ सामने आये, मोदी सरकार अपने मंत्रालयों की उपलब्धियों के साथ संसद में भी बेमिसाल साबित हुई। संसद में जीएसटी, भूमि अधिग्रहण, लोकपाल जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयकों को विपक्ष के साथ बने रहे तकरार कं कारण अंजाम तक ना पहुंचा पायी हो, लेकिन देश दिशा और दशा बदलने वाले कानूनों और विकास की राह आसान करके जनहितों की रक्षा में बुनियादी ढांचे को दुरस्त करने और आर्थिक सुधार को आगे बढ़ाने संबन्धी विधेयकों पर संसद की मुहर लगवाकर विपक्ष को बौना साबित कर दिया। मसलन जितने विधेयक इन दो सालों में संसद में पास कराये गये हैं, उतने पिछले एक दशक के इतिहास में पूर्ववर्ती सरकार नहीं करा सकी थी। ऐसे में मोदी सरकार का दो साल की उपलब्धियों का जश्न मनाना लाजिमी है, जिसकी परंपरा भी कांग्रेस की यूपीए सरकार ने ही शुरू की थी, उसी परंपरा को आगे बढ़ाते हुए केंद्र सरकार विभिन्न मंत्रालयों को कामकाज के हिसाब से खुद प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी अपने मंत्रियों को अंक देकर उनके कद तय कर रहे हैं।

राग दरबार: मोदी के फोबिया में फंसी कांग्रेस...

कांग्रेस को अपनी जमीन खिसकने का डर
दे श में कहावत है कि लोग अपने दुख से दुखी नहीं, बल्कि दूसरों के सुख से दुखी ज्यादा होते हैं! यह कहावत मोदी सरकार के दो साल की उपब्धियों को लेकर कांग्रेस की चल रही टिप्पणियों पर सटीक बैठती नजर आ रही है। मसलन मोदी सरकार की दो साल उपलब्धियों के दावों को खोखला साबित करने के प्रयास में कांग्रेस यह भूल गई कि उसके नेतृत्व वाली पूर्ववर्ती सरकार में भ्रष्टाचार किस कदर सिर चढ़कर बोल रहा था और देश के विकास और बुनियादी मुद्दे हाशिए पर ही रहे हैं, लेकिन मोदी सरकार के दो साल पूरी तरह भ्रष्टाचार मुक्त शासन का संदेश देकर जनता के बुनियादी मुद्दों को छूते नजर आ रहे हैं। दरअसल मोदी का पीएम बनना कांग्रेस को शुरूआत से ही रास नहीं आया यानी मोदी फोबिया ने कांग्रेस को ऐसा हलकान किया हुआ है कि हाल ही में पांच राज्यों में हुए चुनाव के नतीजों को लेकर खुद कांग्रेस प्रमुख भी असंतुष्ट नजर आ रही हैं। इन चुनावों ने तो वरिष्ठ नेताओं के बोल बदलकर पार्टी नेतृत्व परिवर्तन तक के लिए अपनी जुबान खोलना शुरू कर दिया है। राजनीतिक गलियारों में कांग्रेस को लेकर चर्चा है कि देश में मोदी सरकार के काम तो बोल रहे हैं और जनता भी मोदी की मुरीद नजर आ रही है, ऐसे में कांग्रेस को अपनी जमीन खिसकने का डर सता रहा है, जिसके कारण कांग्रेस पूरी तरह से सकारात्मक फैसले लेने की स्थिति में नजर नहीं आती। राजनीतिकार तो यह भी मानते हैं कि मोदी सरकार के दो साल के शासन में एक भी भ्रष्टाचार का मामला सामने नहीं आया और पूर्ववर्ती सरकार के दौरान घोटालों का पर्दा हटने के सिलसिले में कांग्रेस के दिग्गज कठघरे में हैं तो कांग्रेस को मौजूदा सरकार के काम कैसे दिख सकते हैं और खासकर मोदी के नाम का फोबिया कांग्रेस की मुश्किल बन रहा है। यह भी कहा जा रहा है कि कांग्रेस की विरोधी टिप्पणियां ही मोदी की लोकप्रियता की बुलंदियों का कारण बनी हुई है।
राजग का बढ़ेगा कुनबा
संसद के ऊपरी सदन राज्यसभा में उत्साहित विपक्ष के तिलिस्म को अगले महीने 58 सीटों पर होने वाले द्विवार्षिक चुनाव तोड़ने जा रहे हैं, ऐसी संभावना से इनकार नहीं किया जा सका। मोदी सरकार के दो साल के कार्यकाल में संसद में जीएसटी और भूमि अधिग्रहण जैसे अनेक महत्वपूर्ण विधेयकों का रोड़ा बने विपक्ष के लिए इन सीटों के चुनाव खासकर कांग्रेस के अति उत्साह को कमजोर करने का सबब बनेंगे। हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने भी खासकर असम में कांग्रेस और पश्चिम बंगाल में वामदलों को सबक लेने वाला साबित कर दिया है, तो वहीं राज्यसभा में राजग के संख्याबल में बढ़ोत्तरी और दूसरी ओर पश्चिम बंगाल में फिर से सत्ता में लौटी तृणमूल कांग्रेस की प्रमुख ममता बनर्जी ने जीएसटी जैसे विधेयक का सर्मथन करने का ऐलान करके कांग्रेस-वामदल के उत्साह की कमर तोड़ दी है। मसलन राज्यसभा में ममता के मोदी सरकार के प्रति तेवरों में नरमी के संकेत का लाभ अटके कामकाज को आगे बढ़ाने की राह तय करेंगे। राजनीति के गलियारे में तो यह भी चर्चा है कि कांग्रेस और भाजपा के संख्याबल में आधे से ज्यादा अंतर कम होने से सदन में अन्य दलों को भी प्रभावित करेगा और आने वाले संसद सत्रों में इस सदन में भी विपक्ष पर सरकार भारी पड़ती नजर आएगी।

शनिवार, 28 मई 2016

एक दशक में सबसे नीचे गिरा जल स्तर!

सूखने के कगार पर पहुंचे देश के जलाशय 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सूखे और जल संकट से जूझ रहे आधे भारत में जल भंडारण के लिए केंद्रीय जल आयोग की निगरानी में देश के 91 प्रमुख जलाशयों का जल स्तर गिरकर 26.816 अरब घर मीटर यानि बीसीएम आंका गया है, जो पिछले एक दशक में सबसे निचले स्तर पर आ चुका है। मसलन एक माह में ही इन जलाशयों का भंडारण स्तर 7.266 अरब घन मीटर गिर चुका है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय की ताजा रिपोर्ट में देश के प्रमुख 91 जलाशयों में 26.816 अरब घन मीटर यानि बीसीएम जल का संग्रहण आंका गया। जो इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता का मात्र 17 प्रतिशत है। बताया गया है कि जलाशयों का यह जल स्तर पिछले दस वर्ष में सबसे न्यूनतम दर्ज किया गया है। भले ही देश में जल संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार विभिन्न राज्यों में कुएं और तालाब खोदने, भूजल स्तर को सुधारने जैसी परियोजनाओं को पटरी पर उतारने का दावा कर रही हो, लेकिन मराठवाड़ा और बुंदेलखंड जैसे कई इलाकों समेत देश के कम से कम 18 राज्यों में पीने तक के पानी की कमी से दो-चार होना पड़ रहा है। हालांकि केंद्र सरकार ने जल संकट से निपटने के लिए जल प्रबंधन हेतु 168 प्रतिशत की वृद्धि करके 12,517 करोड़ रुपये का प्रावधान किया है। इसके अलावा देश में गिरते भूजल के स्तर को सुधारने के लिए छह हजार करोड़ रुपये अलग से आवंटित किये हैं, जिसमें कुएं और तालाब खोदने की योजना का खाका तैयार किया गया है। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री भारती ने खुद स्वीकार कर चुकी है कि इस जल संकट का कारण भूमि जल संसाधनों के अतिदोहन, अस्थायी सिंचाई और जल गुणवत्ता गिरने से भूजल आपूर्ति है। यह भी गौरतलब है कि इन जलाशयों की कुल संग्रहण क्षमता 157.799 बीसीएम है, जो देश की अनुमानित जल संग्रहण क्षमता 253.388 बीसीएम का लगभग 62 प्रतिशत है। इनमें 37 जलाशय ऐसे हैं जो 60 मेगावाट से अधिक की स्थापित क्षमता के साथ पनबिजली का उत्पादन करते हैं।

जल्द आयेगा ‘विकलांग अधिकार विधेयक’

मंत्रालय ने पीएमओ भेजा विधेयक का मसौदा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में दिव्यांग और विकलांगता की श्रेणियों का विस्तार करने के लिए केंद्र सरकार ने नया कानून लाने के लिए विकलांगता व्यक्ति अधिकार विधेयक को मसौदा तैयार किया है, जिसे हरी झंडी के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय भेजा गया है। यदि पीएमओ ने इसे मंजूरी दे दी तो इसें केंद्रीय कैबिनेट और संसद के अगले सत्र में पारित कराने का प्रयास होगा।
केन्द्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री थांवर चंद गहलोत ने विकलांगता की श्रेणियों की मौजूदा संख्या सात से बढ़ाकर 19 करने का लक्ष्य तय किया है, जिसके लिए मंत्रालय ने एक विधेयक का मसौदा तैयार किया है। मंत्रालय ने ‘विकलांगता व्यक्ति अधिकार विधेयक’ के इस मसौदे को विचार के लिए प्रधानमंत्री कार्यालय भेज दिया है। यदि आवश्यकता पड़ी तो इसके प्रावधानों में कानून मंत्रालय की भी राय ली जायेगी। मंत्रालय के अनुसार इस विधेयक का लक्ष्य ज्यादा से ज्यादा विकलांगों को विभिन्न योजनाओं के तहत मिलने वाली सुविधाओं का लाभ पहुंचाना है। मंत्रालय के एक अधिकारी का कहना है कि देश में सम्मानित जीवन व्यतीत करना प्रत्येक व्यक्ति का अधिकार है, जिसके लिए मोदी सरकार पिछले दो सालों से विकलांग व्यक्तियों के हितों में इस प्रयास को आगे बढ़ाने का प्रयास कर रही है। केंद्रीय सामाजिक न्याय और अधिकारिता मंत्री गहलौत का कहना है कि विकलांग व्यक्ति अधिकार विधेयक के प्रावधानों के तहत विकलांगता की श्रेणियों को सात से बढ़ाकर 19 कर दिया जाएगा, ताकि विभिन्न योजनाओं के तहत ज्यादा लोगों को लाभान्वित किया जा सके।

शुक्रवार, 27 मई 2016

तेजी से बढ़ रही है नेशनल हाइवे की लंबाई!

मोदी सरकार के दो साल:
अगले सालों में दो लाख किमी तक विस्तार करने का लक्ष्य
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में सड़कों का निर्माण जितनी तेजी से हो रहा है शायद आजाद भारत में इससे पहले कभी नहीं हुआ होगा। मोदी सरकार के दो साल के आंकड़े कुछ ऐसा ही दावा कर रहे है, जिसमें राष्ट्रीय राजमार्ग ही नहीं, बल्कि राज्य के राजमार्ग और अन्य सड़को की लंबाई भी तेजी से बढ़ी है। यही कारण है कि सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई का अगले साल तक दो लाख किमी तक विस्तार करने का नया लक्ष्य तय किया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी कई मौको पर कह चुके हैं कि देश के विकास एजेंडे को सड़कों के निर्माण जैसे बुनियादी ढांचे को दुरुस्त करने से ही साकार किया जा सकता है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की दो साल की जारी उपलब्धियों पर नजर डाली जाये तो जब मोदी सरकार ने देश की सत्ता संभाली थी तो देश में 52 लाख किलोमीटर के सड़क नेटवर्क में राष्ट्रीय राजमार्गो और एक्सप्रेस-वे की लंबाई 92851 किमी थी, जिसमें इन दो सालों में कराये गये 7624 किमी निर्माण के बाद यह लंबाई एक लाख 475 किमी पहुंच गई है। वहीं दो साल पहले देश में प्रतिदिन दो किमी सड़क निर्माण हो रहा था, जो अब करीब 25 किमी प्रतिदिन तक पहुंच गया है। सड़क निर्माण में आ रही बाधाओं को दूर करते हुए मोदी सरकार ने अब देश के राष्ट्रीय राजमार्ग का विस्तार करते हुए दो लाख किमी करने का लक्ष्य निर्धारित किया है और प्रतिदिन 41 किमी सड़क का निर्माण करने का संकल्प लिया है। इसके लिए सरकार ने देश में 25 लाख करोड़ के बुनियादी ढांचे को खड़ा करने का रोडमैप तैयार किया है। इसी प्रकार इन दो सालों में सड़क निर्माण परियोजनाओं के जरिए राज्य राजमार्गो लंबाई 1.48 लाख 256 किमी तथा अन्य सड़कों की लंबाई 49.83 लाख 579 किमी तक कर दी गई है। खुद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दावा किया कि सड़क क्षेत्र में तीन लाख करोड़ रुपये निवेश किया जा चुका है और अगले साल पांच लाख करोड़ रुपये का लक्ष्य रखा गया है। मसलन जब राजग ने सत्ता संभाली तो देश के 52 लाख किलोमीटर सड़क नेटवर्क में राष्ट्रीय राजमार्ग सिर्फ 96 हजार किलोमीटर था।

गुरुवार, 26 मई 2016

राज्यसभा चुनाव: शुरु हुई जोड़तोड़ की राजनीति?

नामांकन प्रक्रिया जारी, 11 जून को होगा चुनाव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा के लिए 16 राज्यों की रिक्त होने वाली 58 सीटों के लिए आगामी 11 जून को होने वाले द्विवार्षिक चुनाव में अपने-अपने प्रत्याशियों को निर्वाचित कराने के लिए राजनीतिक दलों में जोड़तोड़ की राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई है, जिसमें उच्च सदन में सत्ताधारी भाजपा तथा प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस में अपनी सीटों को बढ़ाने की कवायद में जुटे हैं। ऐसे में राज्यों की विधानसभाओं में छोटे दलों के विधायकों की नब्ज भी टटोली जा रही है।
राज्यसभा की इन 58 सीटों के लिए होने वाले द्विवार्षिक चुनाव में सबसे ज्यादा 11 सीटें उत्तर प्रदेश की है। जबकि तमिलनाडु और महाराष्टÑ में छह-छह, बिहार में पांच, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में चार-चार, मध्य प्रदेश और ओडिशा में तीन-तीन, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब और झारखंड में दो-दो तथा उत्तराखंड व गुजरात की एक-एक सीट शामिल है। इसमें इसी माह गुजरात के कांग्रेस सदस्य के निधन के बाद खाली हुई सीट के अलावा राजस्थान से आनंद शर्मा (कांग्रेस) और कर्नाटक से विजय माल्या (निर्दलीय) द्वारा खाली की गई सीट भी शामिल है। यानि राज्यसभा की कुछ केंद्रीय मंत्रियों समेत भाजपा की 14 और कांग्रेस की 15 सीटें खाली है। इन चुनावों में खासकर भाजपा और कांग्रेस के बीच सदन में अपनी-अपनी सीटों को बढ़ाने की होड़ में प्रतिष्ठा दांव पर है। हालांकि कुछ राज्यों में तय माना जा रहा है कि कांग्रेस की सीटे कम होने के साथ भाजपा प्रमुख विपक्षी दल की संख्या के अंतर को पाटकर आधा या उससे ज्यादा कर सकती है। उच्च सदन में अपनी-अपनी प्रतिष्ठा को बचाने के लिए इन राज्यों में सभी राजनीतिक दल जोड़तोड़ की राजनीति में विधानसभाओं में छोटे-छोटे दलों से बातचीत करके मान-मनौवल में जुटे हैं। इन चुनावों को लेकर कांग्रेस सबसे ज्यादा हलकान है जो अपने प्रत्याशियों का ऐलान करने में फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती है।
दांव पर लगी इन दलों की प्रतिष्ठा 
राज्यसभा में भाजपा व कांग्रेस के अलावा बसपा छह, जदयू की पांच, सपा, बीजद व अन्नाद्रमुक की तीन-तीन, द्रमुक, राकांपा व तेदेपा की दो-दो और शिवसेना का एक सदस्य सेवानिवृत्त होगा, जबकि एक सीट निर्दलीय विजय माल्या की उनके इस्तीफे के कारण खाली हो चुकी है। इनमें मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में शामिल केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू, बिरेन्दर सिंह, सुरेश प्रभु, निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल और मुख्तार अब्बास नकवी के लिए भी ये चुनाव प्रतिष्ठा से कम नहीं है।

अब बसों में महिला को मिलेगी सुरक्षा!

केंद्र सरकार की पायलट परियोजना शुरू
अलर्ट बटन, जीपीएस व कैमरे के बिना नहीं चलेंगी बसें
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
आखिर केंद्र सरकार ने महिलाओं की सुरक्षा पर आगे बढ़ते हुए यात्री बसों में आपातकालीन पैनिक बटन, जीपीएस और सीसीटीवी कैमरा अनिवार्य कर दिया है, जिसके लिए केंद्र सरकार ने एक पायलट परियोजना शुरू करते हुए इन सुरक्षित इंतजामों को सबसे पहले राजस्थान परिवहन निगम और लग्जरी बसों में शुरू किया है।
इस परियोजना की शुरूआत करते हुए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरने ने कहा कि इस परियोजना से महिला यात्रियों की सुरक्षा और सुविधा के लिए बस में पैनिक बटन, जीपीएस और सीसीटीवी कैमरा अनिवार्य करने से उनका सफर आसान, सुरक्षित और सम्मानजनक होगा। उन्होंने कहा कि निर्भया कोष का इस्तेमाल करते हुए दिल्ली से राजस्थान के शहरों के बीच चलने वाली बसों की सूरत बदलने की इस शुरूआत को पूरे देश में विस्तारित किया जाएगा। इस मौके पर राजस्थान के परिवहन मंत्री युनूस खान भी मौजूद थे जिनकी सरकार ने इस सुरक्षित सुविधाओं की पहल करते हुए ऐसी तकनीकी सुविधाओं से लैस एसी और नॉन एसी बसों का बेड़ा सड़कों पर उतारा है। राजस्थान के परिवहन मंत्री युनुस खान ने कहा कि जल्दी ही सारी बसों में इस सुविधा को अंजाम देकर बसों में अलर्ट बटन, जीपीएस और कैमरे अनिवार्य करने की योजना है। इसमें आने वाले खर्च में से उन्होंने केंद्र से देने का भी अनुरोध किया है।
गडकरी ने दी हिदायत
केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय मंत्रालय के अनुसार जारी किये गये अधिसूचना मसौदा जारी करने का मकसद बसों में यात्रियों की सुविधाएं बढ़ना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। केंद्र सरकार की सुरक्षा की दृष्टि से तैयार की गई योजना के अनुसार 23 सीटर और उससे ज्यादा सवारियों की क्षमता वाली बसों में अब जीपीएस, अलर्ट बटन और सीसीटीवी कैमरा जरूरी होगा, जबकि 23 से कम सवारियों की क्षमता वाली गाड़ियों में व्हीकल ट्रेकिंग सिस्टम और इमरजेंसी बटन जरूरी होगा। अधिसूचित मसौदे में निर्देश दिये गये हैं कि यह तीनों उपकरण वाहन निमार्ता, डीलर या फिर गाड़ी के मालिक द्वारा लगवाया जाना जरूरी होगा। केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस परियोजना का शुभारंभ कई उम्मीदों और हिदायतों के साथ किया। गडकरी ने हिदायत दी है कि भविष्य में इन उपकरणों के फिटनेस की जांच रोजमर्रा के रखरखाव में शामिल होगी। उन्होंने स्पष्ट कहा कि बस बनाने वाली कंपनियां निर्माण के वक्त ही ये सुविधाए फिट करने पर ध्यान दें तो खर्च भी कम आएगा। इस मौके पर महिला और बाल कल्याण मंत्री मेनका गांधी ने कहा कि ऐसी ही सुविधा देश की हर बस में मुहैया कराने की मुहिम शुरू होगी, जो सुरक्षा का माहौल पैदा करेगा।

बुधवार, 25 मई 2016

अल्पसंख्यक योजनाओं पर मंत्रियों में रार?


नजमा व नकवी ने किया उपलब्धियों का अलग-अलग बखान
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र की मोदी सरकार ने अपने दो साल का कार्यकाल पूरा कर लिया है और सभी मंत्रालय इस दौरान की उपलब्धियों का बखान कर रहे हैं, लेकिन शायद अल्पसंख्यकों के मामले में केंद्रीय और राज्य मंत्रियों के बीच कुछ ठीक नहीं है, ऐसा खुलासा दो साल की उपलब्धियों पर श्रेय लेने की होड़ के रूप में उजागर होता साफतौर से नजर आया।
राजग सरकार के दो साल की उपलब्धियों का जश्न जोरदार ढंग से मनाने की तैयारी चल रही है तो वहीं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के निर्देश पर उनके मंत्री अपने अपने मंत्रालय की दो साल के कार्यकाल की उपलब्धियों का बखान भी कर रहे हैं। मंगलवार को आयोजित अल्पसंख्यक मामलों की कैबिनेट मंत्री डा. नजमा हेपतुल्ला ने संवाददाता सम्मेलन बुलाकर मंत्रालय की उपलब्धियां गिनाई, जिसमें अल्पसंख्य मामलों के राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी नदारद थे। अल्पसंख्यकों के कल्याण और विकास की योजनाओं को लेकर मंत्रालय में केंद्रीय और राज्यमंत्री के बीच टकराव चल रहा है उसका खुलासा कुछ देर बाद उस समय हो गया, जब मीडिया को मंत्रालय की उपलब्धियों का ब्यौरा राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी के बयान से जारी हो गया, जिसमें नकवी ने भी अलग से एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर अपने मंत्रालय की उपलब्धियां गिनाई। सबसे दिलचस्प बात यह है कि मंत्रालय की केंद्रीय मंत्री नजमा और राज्यमंत्री नकवी ने एक-दूसरे के संवाददाता सम्मेलन बुलाने की जानकारी से इंकार कर दिया। इससे जाहिर हे कि अल्पसंख्यक मंत्रालय में केंद्रीय और राज्यमंत्री के बीच कुछ भी ठीकठाक नहीं चल रहा है और पिछले दिनों राज्यसभा में दोनों के बीच हुए टकराव की पुष्टि भी होती नजर आई। केंद्रीय मंत्री नजमा हेपतुल्ला ने पीआईबी शास्त्री भवन तो राज्यमंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने भाजपा मुख्यालय में संवाददाता सम्मेलन बुलाकर अपने मंत्रालय की दो साल की उपलब्धियां गिनाई और अल्पसंख्यकों के विकास और उनके लिए योजनाओं को लागू कराने का श्रेय लेने का प्रयास किया।

मंगलवार, 24 मई 2016

अखिलेश ने फूंका मिशन-2017 का बिगुल

मेडिकल कालेज के बाद अब पैरा मेडिकल
ओ.पी. पाल. बदायूं।
उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 2017 के विधानसभा चुनावों के लिए बिगुल फूंकते हुए अपने चार साल की उपलब्धियों का बखान किया और कहा कि वादे पूरे किये अब नये इरादे हैं। उन्होंने कहा कि यदि उन्हें दोबरा मौका मिला तो वे यूपी की तस्वीर बदल देंगे।
सोमवार को यहां विकास रैली को संबोधित करने से पहले अखिलश यादव ने 244.346 करोड़ लागत से तैयार बदायूं-बरेली फोरलेन मार्ग के साथ 450.174 करोड़ की लागत से तैयार विभिन्न विभागों की 71 परियोजनाओं का लोकार्पण किया। वहीं उन्होंने 130.789 करोड़ की लागत से बनाने वाली चार परियोजनाओं का शिलान्यास करके विकास के मुद्दे को प्राथमिकता बताया। जनसभा में बोलते हुए मुख्यमंत्री ने कहा कि प्रदेश में जिला मुख्यालयों की दूरी करने के लिए सुरक्षित और मानकता वाली चौड़ी सड़कों की योजनाओं को आगे बढ़ाया जाएगा। वहीं उन्होंने गरीबों को इलाज की बेहतर सुविधा देने के लिए बनाए जा रहे मेडिकल कालेजों के अलावा पैरा मैडिकल कालेजों की स्थापना करने की भी योजना शुरू करने का ऐलान किया। अपने चार साल के कार्यकाल की उपलब्धियां गिनाते हुए अखिलेश यादव ने कहा कि शिक्षा, रोजगार, पुलिस की भर्तियों को आसान बनाने और प्रदेश के गरीबों, किसानो, बेरोजगारों के हितों में जिस तरह की योजनाएं चलाई गई है, ऐसे आजादी के बाद से इतने कम समय में किसी अन्य सरकार ने भी नहीं की। उन्होंने केंद्र सरकार पर राज्य को सहयोग न करने का आरोप लगाते हुए कहा कि अपने सीमित साधनों से योजनाओं को आगे बढ़ाया जा रहा है। उन्होंने कहा कि प्रदेश में अब ऐसी कोई भी गरीब महिला नहीं बचेगी जिसे समाजवादी पेंशन योजना का लाभ न मिले। मुख्यमंत्री ने जनपद में बदायूं में राजकीय मेडीकल कालेज के बाद अब पैरामेडीकल कालेज बनाए जाने का भी ऐलान किया। वहीं बदायूं से गुन्नौर जाने वाले मार्ग को भी फोरलेन कराने तथा जनपद में दो नए विद्युत उपकेन्द्रों की स्थापना कराए जाने की घोषणा की। उन्होंने कहा कि जब प्रत्येक दिशा में विकास कार्य कराए जा रहें हैं तो खेल के मैदानों को कैसे नजर अंदाज किया जा सकता है, इनके सुदृढ़ीकरण एवं विस्तारीकरण कार्य योजना तैयार कराई जाएगी। शिक्षा के क्षेत्र में और उन्नति हेतु जनपद में सम्राट अशोक बुद्ध पर्यटन
स्थल बनाए जाने का कार्य कराया जा रहा है।
चुनौतियों से निपटने का प्रयास
उन्होंने कहा कि उत्तर प्रदेश को आगे बढ़ाने हेतु चुनौतियां तो बहुत है, उनके खिलाफ विरोधी दलों की साजिश चल रही है और अगले चुनाव के दौरान किसी भी तरह की साजिश हो सकती है, जिससे सावधान रहने की जरूरत है, लेकिन उनका निरन्तर प्रयास है कि सभी किसानों को बीज, खाद्य तथा अन्य सुविधाएं समय से उपलब्ध हों। बेरोजगारों को रोजगार मिले। इस क्षेत्र के विकास कार्यों के प्रति बदायूं के सांसद धर्मेन्द्र यादव की लगन को मद्देनजर रखते हुए मुख्यमंत्री ने सराहना की। उन्होंने कहा कि विरोधी दल उनकी सरकार और पार्टी के खिलाफ साजिश करती रही है और चुनाव के दौरान ऐसी ही साजिश से निपटने की जरूरत है।
मेधावी छात्राओं को लेपटॉप की सौगात
मुख्यमंत्री ने 310 मेधावी छात्र छात्राओं को लैपटॉप, श्रम विभाग के 500 पंजीकृत श्रमिकों को साइिकलें तथा 500 नए लाभार्थियों को समाजवादी पेंशन, कौशल विकास मिशन अर्न्तगत प्रशिक्षण प्राप्त करने वाले युवक, युवतियों को प्रमाण पत्र वितरित किए गए। जिसमें कई लाभार्थियों को मुख्यमंत्री ने स्वयं अपने करकमलों द्वारा वितरण किया। आजीविका मिशन अर्न्तगत गठित विभिन्न ब्लाकों के 105 समूहों को 15 लाख 75 हजार तथा 11 ग्राम संगठनों के 50 समूहों को सीआईएफ के रूप में 55 लाख कुल 70 लाख 75 हजार रूपए के चैक भी मुख्यमंत्री द्वारा वितरित किए गए।
24May-2016

सोमवार, 23 मई 2016

इसलिए जरूरी है ईरान से चाबहार पोर्ट का समझौता

पीएम मोदी सफल हुए तो पाक और चीन को मिलेगा झटका
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी रविवार दोपहर ईरान की दो दिन की यात्रा पर रवाना हो गये है, जिसमें भारत और ईरान के बीच कई अहम समझौते होने हैं, लेकिन भारत की प्राथमिकता चाबहार पोर्ट पर होने वाले समझौते की है, जिसकी डील का भरोसा भी है। चाबहार समझौता होने सबसे तगड़ा झटका पाकिस्तान और चीन को लगना तय है।
दरअसल चाबहार पोर्ट समझौता इसलिए जरूरी है कि पाकिस्तान ने आज तक भारत के प्रोडक्ट्स को सीधे अफगानिस्तान और उससे आगे जाने की इजाजत नहीं दी है। इतना ही नहीं यह पाकिस्तान के ग्वादर पोर्ट पर तो एक तरह से चीन ने कब्जा है। ग्वादर बंदरगाह के जरिए चीन ने अपनी सामरिक पकड़ भारतीय समंदर तक बना रखी हैै। ऐसे में ईरान के साथ होने वाला चाबहार पोर्ट समझौता पाकिस्तान और चीन को भारत का करारा जवाब होगा। वैसे तो यह सौदा वर्ष 2015 में ही अंतिम मुकाम पर पहुंच गया था, लेकिन बाद में कुछ दिक्कतें आने से अभी अधर में लटका हुआ है, वो भी पाक और चीन की नीतियों के कारण। चाबहार समझौते को अंजाम मिलने के बाद भारत और ईरान के बीच कारोबार करना आसान हो जाएगा। ईरान भी चाबहार पोर्ट को विकसित करना चाहता है और भारत इसमें हद से आगे जाकर मदद करने को पहले से ही तैयार बैठा है। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नीतिन गडकरी कई बार कह चुके हैं कि इस पोर्ट के पहले चरण में विकास के दोनों देशों समझौता करने को तैयार हो चुके हैं, ताकि ईरान को तेल क्षेत्र में भारत की ओर से सहयोग मिलता रहे। इस समझौते के तहत चाबहार पोर्ट के तैयार हो जाने के बाद भारत और ईरान सीधे व्यापार कर सकेंगे। यानि भारतीय या ईरानी जहाजों को पाकिस्तान के समुद्री मार्ग से नहीं गुजरना पड़ेगा। जहाजरानी मंत्रालय के अनुयार इस समझौते में अफगानिस्तान का भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है।

रविवार, 22 मई 2016

यूपी में ‘सत्ता' की खातिर ताकत झोंकने को तैयार संघ!

असम में भाजपा की जीत में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
असम में सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा की नजरे अब अगले साल होने वाले उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव की रणनीति पर टिक गई है, जहां सत्ता हासिल करने के लिए भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उसी तरह की रणनीति को अंजाम देने की रणनीति बनाना शुरू कर दिया है, जिस रणनीति के तहत असम में भाजपा को सत्ता दिलाने के लिए आरएसएस ने अपनी भूमिका निभाई।
उत्तर प्रदेश में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण हैं, जिसके लिए पार्टी ने यूपी की राजनीतिक फोकस करके प्रदेश संगठन की बागडौर मौर्य को सौंप दी है और सत्ता तक पहुंचने की रणनीति के तहत संगठन और बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने की मुहिम चला रखी है। इसके लिए भाजपा को आरएसएस का सहारा लेना लाजिमी है, जिसके सहारे भाजपा ने असम की सत्ता पर काबिज होकर इतिहास रचा है। दरअसल असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का 15 साल पुराना कांग्रेस का सियासी किला ढाहना अकेले भाजपा के बलबूते की बात नहीं है, उसमें भाजपा की ही रणनीति के साथ आरएसएस ने एक ठोस रणनीति के साथ अपनी पूरी ताकत झोंककर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असम में भाजपा-आरएसएस की इस सियासी रणनीति का सकारात्मक नतीजा मिलने के बाद अब भाजपा की नजरे सीधे अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गई है। इसके लिए जहां एक ठोस रणनीति बनाने के लिए केंद्र सरकार और भाजपा दोनों में यूपी चुनाव की दृष्टि से फेरबदल करने के लिए मंथन तक करना शुरू कर दिया। वहीं आरएसएस भी भाजपा के लिए असम की तर्ज पर अलग से रणनीति बनाने में जुट गया है। यानि भाजपा के लिए संघ उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन को तैयार करने के लिए अपना जाल फैलाकर हर हालत में यूपी फतह कराना चाहता है। सूत्रों के अनुसार आरएसएस यूपी में एक लाख से भी ज्यादा स्वयंसेवकों की फौज उतारने की तैयारी में है। हालांकि यूपी मिशन पर राज्य की सपा और बसपा के साथ कांग्रेस की रणनीतियां भी सियासी पटरी पर दौड़ने लगी हैं। कांग्रेस ने तो बिहार में नीतीश कुमार को सत्ता तक पहुंचाने वाले उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर के सहारे अपनी डूबती नैया को यूपी मिशन फतह करने की सियासत को अंजाम दिया है।

राग दरबार वाड्रा की जमीन कांग्रेस से ज्यादा...

चाय का बागान भी भाजपा ने छीना
कहते हैं कि जब सितारे गर्दिश में हीें तो राह खुद पर खुद शहर की तरफ मुड जाती है] ऐसी कहावत देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नीतजो के कारण कांग्रेस पार्टी पर सटीक होती दिखने लगी है। सियासत की वो भाषा साफ नजर आने लगी, जिसमें ब्भाजपा की भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने का नारा साकार होता नजर आने लगा। मसलन इन राज्यो के चुनावी नतीजों ने भाजपा की झोली में असम जैसे राज्य की सत्ता डाल दी, तो कांग्रेस को असम व केरल की सत्ता से बेदखल कर दिया, बल्कि चाय का बागान भी भाजपा ने छीन लिया, वहीं चार राज्यों में कांग्रेस का पत्ता कट गया। इन चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस को धरातल पर लाकर ऐसे खड़ा किया कि जहां देशभर में भाजपा शासित राज्यों की संख्या बढ़ने लगी, वहीं कांग्रेस के शासन को मैदानी इलाके से साफ कर दिया और केवल पहाड़ों में सिमट कर रह गई। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश की 43 प्रतिशत आबादी पर भाजपा की सरकार है, वहीं दूसरे नंबर पर अन्य दल आते हैं जो 41 प्रतिशत जनता पर शासन करने वालों की सूची में अब कांग्रेस सबसे नीचे है। राजनीतिक गलियारों में चर्चा होना स्वाभाविक है, वहीं देश में करवट बदलती राजनीति पर जैसे-जैसे चुनावी नतीजों की तस्वीर साफ होती जा रही थी वैसे ही सोशल मीडिया पर टिप्पणियां कांग्रेस की फजीहत का सबब बनती देखी जा रही थी। यानि ट्विटर और फेसबुक पर यूजर्स द्वारा कांग्रेस और राहुल गांधी पर जमकर निशाना बनाया गया। किसी ने लिखकर टिप्पणी कर डाली कि 'कांग्रेस मुक्त भारत' एक कदम स्वच्छता की ओर.. और ये सपना बिना राहुल बाबा के संभव नहीं था। यही नही एक टिप्पणी में तो यहां तक लिख गया कि पूरे देश में अब कांग्रेस के पास उतनी जमीन नहीं बची, जितनी अकेले वाड्रा के पास है....? लड्डू के भईया-लुप्त होती प्रजातियाँ-डायनासोर, बाघ...और कांग्रेस...!

शनिवार, 21 मई 2016

देश में हर दिन बनेगी 41 किमी सड़क!

सरकार ने बढ़ाया सड़क परियोजनाओं का दायरा
दो गुना से ज्यादा होगी नेशनल हाइवे की लंबाई
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बुनियादी ढांचे के विकास को गति देने के उद्देश्य से केंद्र सरकार अब प्रतिदिन 41 किलोमीटर सड़क का निर्माण करने की योजना तैयार कर रही है। वहीं देश में सड़क परियोजना के दायरे को बढ़ाते हुए मौजूदा 96 किमी लंबे राष्ट्रीय मार्ग को दो लाख किमी बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार संसद में नया सड़क सुरक्षा और परिवहन विधेयक लंबित रहते हुए भी सरकार बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लक्ष्य की ओर तेजी के साथ बढ़ रही है। दो साल पहले जब मोदी सरकार केंद्र की सत्ता में आई थी तो देश में प्रतिदिन दो किमी सड़क का निर्माण हो रहा था। मोदी सरकार ने दो साल में देश में इस लक्ष्य को 30 किमी सड़क बनाने का तय किया और फिलहाल सरकार करीब 25 किमी सड़क के निर्माण तक पहुंच चुकी है। उस दौरान सरकार ने देश के राष्ट्रीय राजमार्ग को 96 हजार किमी से बढ़ाकर 1.50 लाख किमी का लक्ष्य तय किया था। अब सरकार ने बुनियादी ढांचे की बढ़ती रμतार को देखते हुए जहां प्रतिदिन 41 किमी सड़क का निर्माण करने की योजना बनाई है, वहीं राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई को भी दो लाख किमी तक का नया लक्ष्य तय करके परियोजनाओं के दायरे में बढ़ोतरी की है। इस संबन्ध में केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी का कहना है कि अधर लटके नये मोटर वाहन काननू के बावजूद उन्होंने सड़क परियोजनाओं में आ रही बाधाओं को दूर करने मेें भी कामयाबी हासिल की है और देश में सड़क परिवहन और राजमार्ग के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव आया है।
सिग्नल फ्री होंगे हाइवे
सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गो को सिग्नल फ्री बनाने की दिशा में पिछले दो सालों से लंबित 350 रेल ओवर ब्रिज या अंडरपास बनाने की परियोजनाओं को भी मंजूरी दी है। इस क्रांतिकारी बदलाव को देखते हुए अब देश में यातायात व्यवस्था को बेहतर बनाने के लिए सरकार ने देश में 25 लाख करोड़ के बुनियादी ढांचे को खड़ा करने के लिए नये लक्ष्य में रोडमैप तैयार कर लिया है। राष्ट्रीय राजमार्गो के अलावा देश में राज्य राजमार्गो समेत मौजूदा 52 लाख सड़कों को सुरक्षा के लिहाज से भी नई तकनीकियों को इस्तेमाल करने का फैसला किया गया है। सरकार ने देश में 25 लाख करोड़ के बुनियादी ढांचे को खड़ा करने हेतु रोडमैप तैयार कर लिया है।
सड़क हादसो को रोकना प्राथमिकता
केंद्रीय मंत्री गडकरी ने कहा कि देश में 52 लाख सड़कों पर 40 प्रतिशत यातायात का दो प्रतिशत राष्ट्रीय राजमार्ग से होकर गुजरता है, जहां हर साल पांच लाख सड़क दुर्घटनाएं होती हैं, जिनमें डेढ़ लाख लोग मौत के शिकार और तीन लाख घायल हो जाते हैं। सड़को पर सफर के दौरान लोगों की जान बचाने और यातायात सुगम बनाने के लिए केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों की लंबाई दो लाख किलोमीटर करने का फैसला किया है। देश का करीब 70 से 80 फीसद यातायात इन्हीं राजमार्गों से गुजरता है, जिन्हें सुरक्षा के लिहाज से तकनीकी फामूर्ले पर चार लेन, छह लेन और एक्सप्रेसवे बनाने की परियोजनाएं शुरू की गई हैं।

शुक्रवार, 20 मई 2016

असम में होंगी सोनोवाल के सामने बड़ी चुनौतियां!

बांग्लादेशियों के मुद्दे ने बदली राज्य में राजनीतिक फिजां
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की राजनीति के इतिहास में पूर्वात्तर के असम राज्य में पहली बार सरकार बनाने जा रही भाजपा के मुख्यमंत्री सर्बानंद सोनोवाल के सामने चुनौतियों का भी मकड़जाल होगा। राजनीतिकारों की माने तो राज्य में बांग्लादेशियों की अवैध घुसपैठ को लेकर वे हमेशा सख्त रहे है और शायद इसी के मुद्दे ने उनके नेतृत्व में लड़े गये विधानसभा चुनावों ने कामयाबी की पटकथा लिखी है।
असम में भाजपा की सर्बानंद सोनोवाल को मुख्यमंत्री का उम्मीदवार बनाकर जिस रणनीति से इन चुनावों में दस्तक दी, उसी का नतीजा माना जा रहा है कि भाजपा को अप्रत्याशित जीत हासिल हुई और उसे सोनोवाल के नेतृत्व में सरकार बनाने का मौका मिला। राज्य में सोनोवाल के सामने मुख्यमंत्री के रूप में जहां तक चुनौतियों का सवाल है, उनसे पार पाने की क्षमता भी असम के इस नेता में है, जो अपने सियासी सफर में निर्विवाद नेता रहे हैं, चाहे वह असमगण परिषद में रहे हो या अब भाजपा में। उनके छात्र नेता के रूप में भी बेदाग छवि रही है, जिसका सकारात्मक नतीजा उन्हें इस मुकाम तक ले गया है। राजनीतिकारों का कहना है कि सोनोवाल का भाजपा के अन्य नेताओं की तरह अवैध बांग्लादेशी अप्रवासियों को लेकर जो सख्त रुख रहा है उन्होंने इस मुद्दे को सुप्रीम कोर्ट तक भी उठाया है। माना जा रहा है कि इसी कारण उनके नेतृत्व में भाजपा ने असम में एक नये सियासी सफर की पटकथा लिखी है। इसके बावजूद मुख्यमंत्री के रूप में उन्हें हर तरफ चुनौतियों का सामना करना पड़ेगा। राजनीतिकारों की माने तो असम में माजुली एक लोकप्रिय पर्यटक स्थल है, लेकिन यहां बुनियादी सुविधाओं के लिए हर रोज जूझना पड़ता है। मसलन ब्रह्मपुत्र नदी में बार-बार आने वाली बाढ़ के कारण कई बार यह क्षेत्र देश के बाकी हिस्सों से अलग-थलग हो जाना सबसे बड़ी चुनौती होगा।
घुसपैठ के डर का सबब
राजनीतिकारों की माने तो असम विधानसभा चुनाव के नतीजे जहां जनता के बदलाव का जनादेश माना जा रहा है, लेकिन यह भी हकीकत से दूर नहीं है कि पिछले डेढ़ दशक से कांग्रेसी राज में असम के लोगों की राज्य में अवैध घुसपैठ के कारण बांग्लादेशियों की बढ़ती संख्या एक बड़ी चिंता का सबब थी। चूंकि इस मुद्दे पर सोनोवाल हमेशा सक्रिय होकर जनता के साथ रहे तो चुनाव में यह मुद्दो भाजपा के लिए सकारात्मक परिणाम का कारण बना। इस सियासी बदलाव को बांग्लादेशियों का डर भी कहा जा सकता है। हालांकि पूर्वोत्तर राज्यों में तेजी के साथ शुरू की गर्इी विकास की योजनाएं भी भाजपा को सत्ता तक ले जाना माना जा रहा है।

दिल्ली में ऐसे लगेगा सड़क हादसों पर अंकुश



केंद्र व दिल्ली सरकार बनाए संयुक्त सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली की सड़को पर होने वाले हादसों पर लगाम लगाना तभी संभव है, जब केंद्र सरकार और दिल्ली सरकार संयुक्त रूप से प्रयास करके एक समर्पित सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ का गठन करे, जिसका काम केवल दिल्ली में चिन्हित ब्लैक स्पॉट्स को सुरक्षा के लिहाज से दुरस्त करने का हो।
यह बात गुरुवार को केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने राष्ट्रीय राजधानी में सड़क दुर्घटनाओं वाले ‘ब्लैक स्पॉट्स’ को दुरुस्त करने के बारे में कही है। दरअसल ऐसे प्रकोष्ठ करने का प्रस्ताव अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ के भारतीय अध्याय द्वारा तैयार की गई एक रिपोर्ट में सामने आया है। अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ (आईआरएफ) ने अपनी रिपोर्ट में इन ब्लैक स्पॉट्स को यातायात के लिहाज से और ज्यादा सुरक्षित बनाने के लिए यातायात एवं सड़कों पर संकेतकों की सुचारू व्यवस्था करने, फुटपाथ पर निशान लगाने इत्यादि का सुझाव दिया है। रिपोर्ट के आधार पर गडकरी ने कहा कि इसके लिए जरूरी है कि केन्द्र एवं दिल्ली सरकार मिलकर संयुक्त प्रयास करे। इसके लिए गडकरी ने दिल्ली के लोक निर्माण विभाग में एक समर्पित सड़क सुरक्षा प्रकोष्ठ बनाने की जरूरत पर बल दिया। उन्होंने कहा कि यह प्रकोष्ठ सड़कों पर मुख्यत: चिन्हित ब्लैक स्पॉट्स को सुरक्षा के लिहाज से दुरुस्त करने हेतु इसमें आवश्यक इंजीनियरिंग खासियतों को समाहित करने पर अपना ध्यान केन्द्रित करेगा। अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ के भारतीय अध्याय की रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि दिल्ली में चिन्हित किये गये 10 प्रमुख ब्लैक स्पॉट्स पर बेहद आसानी और मामूली निवेश से कुछ विशेष इंजीनियरिंग एवं यातायात प्रबंधन सुधार किया जा सकता है।
केजरीवाल को लिखा पत्र
अंतर्राष्ट्रीय सड़क संघ की रिपोर्ट के बाद केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल को लिखे पत्र में आईआरएफ की रिपोर्ट पर गौर करने और वित्त पोषण के लिए सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय को प्रासंगिक प्रस्ताव भेजने का आग्रह किया है। उन्होंने इस बात का भी उल्लेख किया है कि मंत्रालय ब्लैक स्पॉट्स को हटाने के लिए शीघ्र ही राष्ट्रीय स्तर पर पहल करेगा, जिसमें दिल्ली सरकार के प्रस्तावों को समायोजित किया जा सकता है।

बुधवार, 18 मई 2016

ठेका कर्मचारियों को भी सुरक्षा देगा ईपीएफओ!

सरकार की विकसित प्रणाली से होगी निगरानी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने सरकारी, संगठित और असंगठित क्षेत्रों के कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा तय करने के लिए जिन नीतियों को लागू किया है उनमें अब ठेके पर खासकर नगरपालिकाओं में ऐसे कर्मचारियों के नामांकन पर निगरानी रखने के लिए ईपीएफओ ने एक प्रणाली विकसित की है। इस प्रणाली के जरिए अब ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों की भविष्य निधि की राशि में गड़बड़झाला होने का सच सामने आ सकेगा।
केंद्र सरकार द्वारा श्रम कानूनों में संशोधन करने की कवायद में हरेक क्षेत्र में कार्य करने वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा के दायरे में लाने का प्रमुख मकसद रहा है, लेकिन पीएफ अंशधारकों के लिए ईपीएफओ के जरिए किये गये नियम बदलाव को विरोध के कारण वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ा है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इसके बावजूद सरकार कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए कई महत्वपूर्ण योजनाओं को लागू कर रही है। ऐसी ही योजना के तहत देशभर में खासकर नगर पालिकाओं जैसे स्थानीय निकायों में ठेके पर काम करने वाले कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा प्रदान करने के लिए कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानि ईपीएफओ ने एक ऐसी प्रणाली विकसित की है, जिसके तहत कर्मचारियों को सीधे या ठेकेदारों की मदद से शामिल कराने वाले सरकारी निकायों सहित मूल रोजगार दाता भविष्य निधि में प्रदान किए गए राशि का वास्तविक आधार तय हो सकेगा। मसलन अब कर्मचारी भविष्य निधि संगठन ठेकेदारों को वितरित किए गए भविष्य निधि की राशि और ठेकेदारों द्वारा वितरित किए गए भविष्य निधि की तुलना की जा सकेगी और यदि इस राशि में अंतर या कोई गड़बड़ी की गई तो वह सार्वजनिक हो जाएगा और संबन्धित नियोक्ताओं के खिलाफ प्रावधान के तहत सख्त कानूनी कार्रवाई की जाएगी।
क्या है नई प्रणाली
मंत्रालय के अनुसार ईपीएफओ द्वारा बनाई गई इस प्रणाली के तहत ठेकेदारों द्वारा जमा की गई राशि को सभी मूल कर्मचारियों को देखने की सुविधा उपलब्ध कराई गई है। कोई भी व्यक्ति इस रिपोर्ट के द्वारा मासिक आधार पर कर्मचारियों की सूची में अपना नाम सम्मिलित होने या न होने की जांच भी कर सकता है। कर्मचारी भविष्य निधि संगठन कार्यवाही रिपोर्ट प्रणाली को डिजिटल करने की प्रक्रिया में कार्यरत है। उम्मीद है कि इस वित्तीय वर्ष की दूसरी तिमाही तक कार्रवाही की जानकारी आॅनलाइन और वास्तविक आधार में प्राप्त की जा सकेगी। इस योजना से ईपीएफ अंशधारकों को जीवनपर्यंत एक ईपीएफ खाते और कई सुविधाओं का लाभ देने का प्रयास किया जा रहा है।

मंगलवार, 17 मई 2016

पीएमओ तक पहुंची सड़क हादसों की आहट!


विभिन्न दलों ने पत्र लिखकर की कड़े कानून की मांग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में विकास के एजेंडे में बुनियादी ढांचे को मजबूत करने के लिए मोदी सरकार की सड़कों के जाल बिछाने की जारी योजनाओं में हालांकि सड़क सुरक्षा के मानक प्राथमिकता में हैं, लेकिन दुनिया में सबसे ज्यादा सड़क हादसों से चिंतित सरकार नए सड़क सुरक्षा और परिवहन विधेयक पर संसद की मंजूरी हासिल नहीं कर पााई है, जिस पर चिंता जाहिर करते हुए विभिन्न दलों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर सड़को पर हो रही मौतों पर अंकुश लगाने के लिए कड़े कानून बनाने की मांग की है।
दरअसल केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने सड़क हादसों को रोकने के लिए जिस तरह रोडमैप तैयार किया है उसके प्रावधानों को नए सड़क सुरक्षा एवं परिवहन विधेयक में भी शामिल किया है। इस विधेयक को लोकसभा अपनी मंजूरी दे चुकी है, लेकिन राज्यसभा में यह विपक्षी दलों की अड़ंगेबाजी के कारण अटका हुआ है। इसके बावजूद केंद्र सरकार निरंतर सड़क हादसों को आने वाले दो सालों में 50 प्रतिशत कम करने का लक्ष्य लेकर विभिन्न योजनाओं के जरिए कदम उठा रही है। सड़क हादसों में कमी लाने के लिए सुप्रीम कोर्ट के पिछले दिनों आये निर्देश के लिए भी सड़क मंत्रालय अधिसूचना जारी कर चुका है। सरकार को अब केवल संसद में नए सड़क सुरक्षा एवं परिवहन विधेयक को मंजूरी मिलने की दरकार है, जिसकी उम्मीद 20 फीसदी सांसदों ने प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखकर बढ़ा दी है।
उपभोक्ता सुरक्षा समूह की याचिका
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को लिखे अपने पत्र में विभिन्न दलों के करीब 58 सांसदों ने सड़क सुरक्षा और परिवहन विधेयक में कड़े कानूनों का प्रावधान करने की मांग करते हुए अपील की है, कि इस दिशा में जल्द से जल्द सख्त कदम उठाये जायें। इस पत्र में उपभोक्ता संस्था की मांग का हवाला दिया गया है, जिसने दलगत राजनीति से ऊपर उठकर देश के सभी नागरिकों की मांग पर एक मजबूत और प्रभावशाली कानून बनाने की गुहार लगाई गई है। सूत्रों के मुताबिक कुछ दिन पहले भी देश के विभिन्न दलों के चार-पांच दर्जन सांसदों ने दलगत राजनीति से ऊपर उठते हुए कंज्यूमर प्रोटेक्शन ग्रुप यानि उपभोक्ता सुरक्षा समूह द्वारा मिली एक हस्ताक्षरयुक्त याचिका प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को सौंपी थी, जिसमें सांसदों ने अपने पत्र में यह भी मांग की है कि सरकार सड़क सुरक्षा को ध्यान में रखते हुए एक मजबूत और प्रभावशाली सड़क सुरक्षा कानून को जल्द से जल्द प्रभावी बनाने की पहल करें।
राज्यों से समन्वय की पहल
सूत्रों के अनुसार केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय ने संसदीय पैनल को अवगत कराया है कि सड़क हादसों को लेकर मंत्रालय गंभीर है और सभी राज्य सरकारों से नए विधेयक पर समन्वय बनाने के लिए विचार-विमर्श जारी है, ताकि राज्य सरकारें सड़क हादसों की दिशा में शराब पीकर गाड़ी चलाने और नाबालिग के ड्राइविंग जैसे विवादित मामलों में जुर्माना आदि पर सख्ती बनाकर सड़क सुरक्षा के मुद्दे पर निर्णायक भूमिका निभा सकें। वहीं सरकार को उम्मीद है कि नए विधेयक को अगले संसद सत्र में पारित करा लिया जाएगा।

बेरोजगारों को भी बीमा देगा ईपीएफओ!

 कर्मचारी जमा सम्बद्ध योजना पर जल्द आएगी अधिसूचना
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।देश में कर्मचारियों को सामाजिक सुरक्षा देने की दिशा में शुरू की गई योजनाओं के तहत उन कर्मचारियों के लिए भी अच्छी खबर है जो नौकरी छूटने पर बेरोजगार हो जाएंगे, यानि ऐसे पीएफ अंशधारक कर्मचारियों को ईपीएफओ तीन साल का जीवन बीमा उपलब्ध कराएगा और इसके लिए जल्द ही अधिसूचना जारी होने की संभावना है।
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार द्वारा ईपीएफ पर लागू नये नियमों को विरोध के कारण भले ही वापस ले किये गये हों, लेकिन सरकार सरकारी या असंगठित कर्मचारियों की सामाजिक सुरक्षा के दायरे को कायम रखने के लिए कुछ ऐसी योजनाएं बना रही है, जिसमें उनके बेरोजगार होने पर भी उन्हें लाभ मिल सके। ऐसी ही कर्मचारी जमा सम्बद्ध योजना यानि ईडीएलआई के तहत कर्मचारी भविष्य निधि संगठन यानि ईपीएफओ का अपने शेयरधारकों को नौकरी छूटने की स्थिति में तीन साल का जीवन बीमा कवर उपलब्ध कराने का प्रस्ताव है, जिसकी ईपीएफ अगले महीने मंजूरी दे सकता है और अधिसूचना जारी होते ही यह योजना को लागू हो जाएगी। सूत्रों के अनुसार ईपीएफओ के न्यासियों की बैठक अगले महीने होना प्रस्तावित है, जिसमें वह अपने अंशधारकों को नौकरी छूटने के बाद तीन साल तक बीमा कवर उपलब्ध कराने वाले प्रस्ताव को अंतिम रूप दे सकता है। यदि इसे मंजूरी मिल गई तो सरकार की ईडीएलआई योजना के तहत यह बीमा कवर उपलब्ध कराया जायेगा।

रविवार, 15 मई 2016

उत्तराखंड में बांधों पर केंद्रीय मंत्रियों का टकराव!

अब पीएमओ के रूख पर टिकी हैं नजरें  
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र की मोदी सरकार के दो साल पूरे होने जा रहे हैं और नमामि गंगे के ड्रीम प्रोजेक्ट की रμतार बढ़ने का नाम नहीं ले रही, बल्कि सुप्रीम कोर्ट कें केदारनाथ आपदा के बाद उत्तराखंड के बांधों को लेकर चल रही बहस में मोदी सरकार के मंत्रियों के बीच टकराव उजागर होना शुरू हो गया है। इस मामले में पीएमओ का रूख क्या आएगा उसी पर नजरे टिकी हुई हैं।
सूत्रों के अनुसार सुप्रीम कोर्ट में केदारनाथ आपदा के मामले पर पर्यावरण मंत्रालय द्वारा दिये गये शपथ पत्र को लेकर केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती नाराज हैं। बताया जा रहा है कि इस मामले में विद्युत मंत्रालय भी पर्यावारण मंत्रालय के रूख का समर्थन करते हुए साथ दे रहा है। मसलन आपदा का कारण बने बांधों पर सुप्रीम कोर्ट सख्त है और इस कारण नमामि गंगे मिशन भी उत्तराखंड में आगे नहीं बढ़ पा रहा है, बल्कि दूसरी ओर इस मामले पर केंद्र सरकार के मंत्रियों के बीच घमासान के हालात उजागर होते नजर आने लगे हैं। मसलन पर्यावरण मंत्री और विद्युत मंत्री पीयूष गोयल की एकजुटता के सामने जल संसाधन और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती सामने आकर नाराजगी प्रकट कर रही है। सूत्रों के अनुसार नतीजन जल संसाधन मंत्री उमा भारती ने अलग से सुप्रीम कोर्ट में दाखिल करने के लिए एक शपथपत्र तैयार कराया है, जिसमें नदियों पर बेतरतीब बांधों को हरी झंडी न देने की बात कहते हुए इसके लिए बनाई गई विशेषज्ञों की समिति की रिपोर्ट का भी हवाला दिया है। बताया जा रहा है कि मंत्रालयों के बीच यह टकराव पीएमओ तक दस्तक दे चुका है, जिसमें अब देखना है कि प्रधानमंत्री कार्यालय इस मामले में क्या रुख अपनाता है।

दो साल में खत्म हुए 1175 पुराने कानून!


बजट सत्र में निपटाए गये बहुत काम
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार अपने पिछले दो साल के कार्यकाल में संसद में ज्यादा काम निपटाने से उत्साहित है। इस दौरान हाल ही में संपन्न हुए बजट सत्र में ज्यादा विधेयक पारित किये गये, जिनमें शामिल कुछ विधेयकों के जरिए सरकार ने दो साल में 1175 पुराने कानूनों को भी खत्म किया है।
संसदीय कार्य मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार के दो साल के कार्यकाल में संसद सत्र के दौरान लोकसभा में 96 विधेयक और राज्यसभा ने 83 विधेयकों को पारित किये गये हैं। इन पारित हुए महत्वपूर्ण विधेयकों में भ्रम की स्थिति उत्पन्न करने वाले अप्रासंगिक हो चुके पुराने कानून हटाने वाले विधेयक भी शामिल रहे, जिनके जरिए दो सालों में 1175 पुराने और अप्रासंगिक अधिनियमों को रद्द किया गया। हाल ही में संपन्न हुए बजट सत्र और राज्यसभा के 239वें सत्र के दौरान कुछ विपरीत राजनीतिक परिस्थितियों के बावजूद कुछ मुद्दों पर गर्म बहस भी हुई। संसद में विवादित मुद्दों को उठाए जाने के बावजूद विधायी कार्य होता रहा। बेशक इस संबंध में और सुधार की आवश्यकता है। उन्होंने कहा कि इस सत्र के दौरान व्यवधान के कारण लोकसभा में जानबूझकर काम रोकने की एक भी घटना नहीं हुई और राज्यसभा में भी पिछले दो सत्रों के दौरान व्यवधान नहीं हुआ। उन्होंने कहा कि लोकसभा में निर्धारित अवधि से अधिक 14 घंटे 32 मिनट काम हुआ। 16वीं लोकसभा में अब तक हुए आठ सत्रों के दौरान सदन की कार्य अवधि के संबंध में छह सत्रों के संबंध में शतप्रतिशत रही। राज्यसभा की लाभकारिता दो सत्रों के संबंध में 100 प्रतिशत से अधिक रही और पिछले दो वर्षों के दौरान अन्य तीन सत्रों के संबंध में यह 80 प्रतिशत से अधिक रही।
राज्यसभा में ज्यादा बिल पास
हाल ही में संपन्न हुए संसद सत्र के दौरान लोकसभा की उत्पादकता 117.58 प्रतिशत और राज्यसभा की उत्पादकता 86.68 प्रतिशत रही। लोकसभा में 10 विधेयक और राज्यसभा में 12 विधेयक पारित हुए। इस सत्र के दौरान संसद ने वित्त विधेयक और रेलवे विनियोग विधेयक, दिवाला और दिवालियापन संहिता, खान और खनिज (विकास और विनियमन) विधेयक, उद्योग (विकास और विनियमन) विधेयक और विमान अपहरण निरोधी विधेयकों पर दोनों सदनोें ने अपनी मुहर लगाई। इसके अलावा प्रतिपूरक वनीकरण विधेयक को लोकसभा ने पारित किया, जबकि राज्यसभा में विचार और पारित करने के लिए 44 विधेयक और लोकसभा में 11 विधेयक लंबित हैं। सरकार ने उम्मीद जाहिर की है कि जीएसटी विधेयक को राजनीतिक विचार-विमर्श के तहत अधिक समय तक लंबित नहीं रहना पड़ेगा और उसे जल्द पारित कर दिया जाएगा। मसलन पिछले दो वर्षों के दौरान संसद ने एक दर्जन से अधिक सुधार संबंधी विधेयक पारित किए हैं।
15May-2016

राग दरबार: सियासी तीरो का तरकश...


नितीश के निशाने पर मोदी 
देश की राजनीति शायद एक सरकस की तरह ही है, जिसमें कलाकार, तिगड़मगाज, जोकर जैसे पात्र दिखने लगे हैं। खसकर नरेन्द्र मोदी का पीएम बन जाना एसे स्यापो को बर्दाश्त नहीं? तभी तो अपने राज्य को संभाल नही पा रहे और सुशासन बाबू कहलाना पसंद करने वाले बिहार के सीएम नितीश कुमार भी दिल्ली के सीएम केजरीवाल की चाल पर हैं, ज्जिनके निशाने पर सिर्फ पीएम मोदी हैं? यूपी मिशन-2017 के महज एक बहाने से शायद नीतीश की नजर मिशन-2019 पर है। तभी तो बनारस में उन्होंने बतौर बानगी अपने तरकश के दो तीर दिखाए। पहला संघ मुक्त भारत और दूसरा शराब मुक्त भारत’ आरएसएस मुक्त भारत का उनका नारा 2019 के लिए सोची-समझी रणनीति के तहत गढ़ा गया ही प्रतीत होता है यानि यह नारा देकर नितीश देश के दूसरेभाजपा विरोधी सेक्यूलर सूरमाओं को बौना बनाने की जुगत में हैं। हिंदी पट्टी में ज्यादातर राज्यों में भाजपा सरकारें हैं, जिनके लिए बिहार की तरह शराब बंदी लागू करना एक मुश्किल फैसला होगा। इसका सियासी कारण साफ है यदि भाजपा शासित राज्यों में शराब बंदी लागू करे, तो नितीश प्रेरक माने जाएंगे और यदि नही लागू करती तो नितीश नैतिक बढ़त और मध्यवर्ग व मजदूरपेशा परिवारों की महिलाओं का समर्थन हासिल करेंगे। नीतीश की इस सियासत को लेकर राजनीति गलियारों में चर्चा है कि ना शराब और ना संघ, नितीश के निशाने पर तो केवल प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ही हैं। तभी तो उन्होंने ठीक उसी तरह बनारस चुना, जिस प्रकार लोकसभा चुनाव में केजरीवाल वहां मुंह की खाकर वापस लैटे थे। नीतीश-केजरीवाल की जुगलबंदी उसी कहावत की तर्ज नजर आती है कि जो अपने दुख से नहीं, बल्कि दूसरों के सुख से ज्यादा दुखी हैं और हसीन सपने देखना उनकी आदत में शुमार है, भले ही उनके तरकश में सियासी युद्ध लायक तीर ना हो। यही तो है जनता को भ्रर्मित करने की सियासत...।
बेनी-आजम की जोड़ी
बेनी प्रसाद वर्मा कांग्रेस छोड़कर सपा में शामिल हुए तो आजम खान ने राहत की सांस ली। बेनी बाबू के पार्टी में लौटने की घोषणा जब मुलायम सिंह यादव मंच से कर रहे थे तो आजम खान भी साथ बैठे हुए थे। दरअसल दुश्मन का दुश्मन दोस्त होता है वाला मामला है। इस पूरी कहानी में एक कड़ी ठाकुर अमर सिंह भी हैं। कभी ठाकुर साहब की सपा में तूती बोलती थी। हुआ ये कि 2007 के यूपी विधानसभा चुनाव में अमर सिंह ने बेनी बाबू के बेटे राकेश वर्मा की टिकट कटवा दी थी। इससे नाराज होकर कुर्मी नेता बेनी प्रसाद मुलायम का साथ छोड़ गये थे। उन्होंने कांग्रेस में शामिल होने के बाद मुलायम को खरी खोटी सुनाने का कोई मौका कभी नहीं छोड़ा। इस सारी अदावत के पीछे अमर सिंह थे। समय बीता और एक दिन अमर सिंह को भी सपा से दूर होना पड़ा। अब बेनी को भी कांग्रेस में कोई फायदा नहीं दिख रहा था और मुलायम को भी अगले साल होने वाले यूपी चुनाव को जीतने की गर्ज है लिहाजा दोनों ने एक-दूसरे के साथ खड़े होने का मन बना लिया। बताया जा रहा है कि दोनों को मिलाने और गिले-शिकवे मिटाने में आजम खान ने बड़ी भूमिका निभायी। दरअसल आजम भी अमर सिंह से हद दर्जे की राजनैतिक दुश्मनी रखते हैं। अब बेनी बाबू भी अमर के खिलाफ आजम का साथ निभायेंगे। कहा जा रहा है कि नये समीकरणों के बीच अमर सिंह के वापस सपा में लौटने की कोशिशों को झटका लग सकता है।
कुछ यूं लगी पर्रिकर सर की आईआईटी क्लास
आईआईटी दिल्ली के छात्रों और फैकेल्टी के सदस्यों के लिए 11 मई (राष्ट्रीय तकनीक दिवस)का दिन बाकी दिनों से कुछ अलग नजर आया। क्योंकि  उनके बीच से ही आगे बढ़कर निकला एक छात्र आज लंबे अर्से के बाद उनके बीच अपने अनुभवों को साझा करने और उनके विचारों को सुनने के लिए मुख्य अतिथि के रूप में आने वाला था। यह छात्र और कोई नहीं बल्कि देश के रक्षा मंत्री मनोहर पर्रिकर थे। उनके आगमन को लेकर आईआईटी दिल्ली के छात्र और फैकेल्टी सभी बेहद उत्साहित थे। पर्रिकर खुद भी भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान (आईआईटी) बॉम्बे के छात्र रह चुके हैं। कार्यक्रम में वो रक्षा मंत्री कम और एक आईआईटी के पूर्व छात्र की भूमिका में ज्यादा नजर आ रहे थे। इसका नजारा उन्होंने अपने आईआईटी बॉम्बे के अनुभव और वहां के तब के वातावरण का विस्तृत वर्णन  छात्रों के समक्ष पेश करके भी किया। इस देखकर ऐसा लग रहा था कि यह रक्षा मंत्री की आईआईटी छात्रों के साथ एक अनोखी  क्लास हो रही है ना कि उनका भाषण।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
15May-2016

आठवें अजूबे से कम नहीं रामोजी फिल्म सिटी

पर्यटन और आध्यात्मिक दर्शन का विकेन्द्रीकरण
दुनिया का सबसे बड़ा फिल्म निर्माण केंद्र बन चुके रामोजी फिल्म सिटी गिनिज बुक आॅफ वर्ल्ड रिकॉर्डस में दर्ज है, जो मानव-निर्मित आश्चर्य की श्रेणी में शामिल होने की राह पर है। मसलन देश-विदेश के सैलानियों के लिए बहुआयामी पर्यटन स्थल के साथ अब यह जगह आध्यात्मिक दर्शन के मुकाम की ओर बढ़ रहा है, जहां समूची दुनिया सिमटी नजर आने से यह फिल्म सिटी किसी आठवें अजूबे से कम नहीं है। कारण है कि देश-विदेश के पर्यटकों को यहां बॉलीवुड और हॉलीवुड के फिल्मी दृश्यों के साथ नियमित जॉय राइड, फन इवेंट, म्यूजिक आधारित प्रोग्राम, गेम शो और डांस जैसे मनोरंजनों के साधनों की ओर आकर्षित करने लगा है। मसलन यहां एक साथ 15 से 25 फिल्मों की शूटिंग हो सकती है। यानि फिल्म की प्री-प्रोडक्शन से पोस्ट प्रोडक्शन तक की फिल्म निर्माण की तमाम नवीनतम तकनीकों और उपकरणों और किसी भी तरह के दृश्य, दिशा और दशा की विकसित ऐसी व्यवस्था के कारण फिल्म निर्माता फिल्म का आइडिया यानि केवल स्क्रीप्ट लेकर आते और तैयार फिल्म लेकर वापस जाते हैंं। रामोजी फिल्म सिटी के नजरिये पर हैदराबाद से लौटकर विशेष रिपोर्ट प्रस्तुत कर रहें हैं हरिभूमि के वरिष्ठ संवाददाता ओ.पी. पाल 
फिल्मों की पटकथा पर बदलता है सबकुछ दक्षिण भारत के मशहूर फिल्म निर्माता और पद्मविभूषित रामोजी राव द्वारा वर्ष 1996 में दो हजार एकड़ से ज्यादा जगह में स्थापित किये गये रामोजी फिल्म सिटी में पर्यटक को फिल्मों के जो सेट देखने को मिलते हैं, उनमें जहां कुछ स्थायी तौर पर हैं तो कहीं नई फिल्मों के आधार पर बदलाव करके पर्यटकों के लिए कौतूहल का कारण बन रहे हैं। यहीं नहीं फिल्मों में हरेक दृश्य को यहां दिशा और दशा देने की तकनीकों को विकसित किया गया है, चाहे रेलवे स्टेशन, एयरपोर्ट, मंदिर, महल, पोश कालोनी, शहर, गांव, वन, समुद्र, नदियां, बाजार, पशु-पक्षी, अस्पताल, कोर्ट, चर्च, गुरुद्वारा, मस्जिद, सेंट्रल जेल, हर तरह के वाहन, बिल्डिंग, पुस्तकालय, कालेज, खेल के मैदान, टैÑकिंग की व्यवस्था यानि फिल्म की पटकथा के आधार पर सबकुछ इनमें बदलाव होता रहता है। मसलन रामोजी फिल्मसिटी का रेलवे स्टेशन भी अनूठा है, जिसका नाम जरूरत के आधार पर बदलता रहता है और प्लेटफार्म व रेल इंजन भी। यहां बने ग्रामीण परिवेश, व्यस्त बाजार, हाइवे के ढाबे, सेंट्रल जेल आदि के सेट भी अत्यंत स्वाभाविक से दिखते हैं। सब कुछ बनावटी होते हुए भी यह सब पर्यटकों को इतना भाता है। ऐसे ही मंदिर में भगवान भी बदलते हैं, जिसका माहौल दोतरफा है। एक तरफ से यह शहर की भव्य सड़क पर स्थित नजर आता है तो दूसरी ओर किसी वीरान जगह का मंदिर लगता है। ऐसे ही खूबसूरत आधुनिक विला और बंगलों के बीच पहुंचकर किसी पश्चिमी देश के नगर में खड़े होने का भ्रम होता है। रामोजी फिल्मसिटी ने बॉलीवुड के साथ हॉलीवुड के कई निमार्ताओं को भी प्रभावित किया। इसमें 500 से ज्यादा सेट लोकेशन हैं। सैंकड़ों उद्यान, पचास के करीब स्टूडियो μलोर, अधिकृत सेट्स, डिजिटल फिल्म निर्माण की सुविधाएं, आउटडोर लोकेशन, उच्च-तकनीक के लैस प्रयोगशालाएं, तकनीकी सहायता सभी मौजूद है। फिल्म की आधारभूत संरचना में कॉस्ट्यूम, लोकेशन, मैकअप, सेट-निर्माण, कैमरा, उपकरण, आॅडियो प्रोडक्शन, डिजीटल पोस्ट प्रोडक्शन और फिल्म प्रोसेसिंग की व्यवस्था के बीच यहां एक साथ बीस विदेशी फिल्म और चालीस देशी फिल्में बनाई जा सकती हैं। यहां न सिर्फ देशी, बल्कि अमेरिका, जापान, चीन सहित अन्य देशों से फिल्म निमार्ता भी आते हैं। फिल्मों के रुपहले संसार के प्रति आम आदमी का आकर्षण देखते हुए जब इसे एक दर्शनीय पर्यटन स्थल के रूप में खोला गया तो यहां सैलानियों का तांता ही लग गया। रामोजी फिल्मसिटी की बढ़ती प्रसिद्धि के कारण ही बाद में इसे एक हॉलिडे डेस्टीनेशन का रूप दे दिया गया। जहां हर दिन खास डांस-मस्ती, मूवी मैजिक, रियल स्टंट शो और कई प्रकार की मनोरंजक गतिविधियां होती हैं। फिल्म सिटी में पर्यटक स्वयं महसूस कर सकता है कि फिल्मी दुनिया कैसी होती है? फिल्म निर्माण और उससे जुड़े तमाम पहलुओं को बारीकियों के साथ जानने का मौका मिलता है। रील के संसार के जगमग सितारों के साथ पर्यटक मूवी मैजिक में भागीदार हो जाना भी एक खास आकर्षण हैं।
बहुआयामी पर्यटन स्थल
हैदराबाद के निकट दो हजार एकड़ से ज्यादा जगह में स्थापित रामोजी फिल्म सिटी सपनों की पूरी दुनिया समाकर एक ऐसा स्वप्नलोक का अहसास कराता है, जहां कहने को तो यह फिल्मों की शूटिंग का एक केंद्र है, लेकिन यह एक ऐसी जगह भी है जो अपने अंदर पर्यटन के कई आयाम समेटे हुए है। यहां कुदरत के नजारे भी हैं और ऐतिहासिक स्थल भी। अपनी खूबसूरती और सुविधाओं के कारण दुनिया का सबसे आकर्षक पर्यटन स्थल के रूप में यह जगह देशी-विदेशी जगहों पर घूमने का ऐसा अहसास और रोमांच का ऐसा अनुभव कराती है, जैसे किसी परिलोक की यात्रा पर हों यानि पूरी दुनिया यहीं सिमट गई हो। खजुराहो की तर्ज पर बनी नारी सौंदर्य की तमाम अनुकृतियों, जापान के किसी उद्यान की खूबसूरती के साथ पर्यटन के इतने सारे आयामों का अहसास होता है कि जैसे सपनों की पूरी दुनिया सामने खड़ी हो। हो भी क्यों न? आखिर पर्यटकों को लुभाने के लिए यहां दो-चार नहीं, बल्कि पचास से अधिक छोटे बड़े मनमोहक उद्यान हैं। इनमें हर रंग के फूलों की अभूतपूर्व छटा बिखरी हुई है। ड्रीम वैली पार्क में फव्वारों के इर्द-गिर्द टहलते युगल कुछ ऐसा ही महसूस कराते हैं। एनीमल गार्डन में बहुत से वन्य प्राणियों की हरी-भरी आकृतियां देख तो ऐसा लगता है जैसे किसी अभ्यारण्य में आ गये हैं। इसी तरह डेजर्ट गार्डन और कोम्बो गार्डन की जीवंत दृश्यावली भी नवविवाहित युगलों का मन मोह लेती है। पार्को के आसपास ऊंची-नीची सुंदर सड़कों पर ऐसे घूमा जाता है जैसे किसी पर्वतीय स्थल शिमला का मॉल रोड हो। इन्हीं सड़कों के बीच स्थित एंजेल्स फाउन्टेन भी बेहद आकर्षक है। रोमन कला के इस सुंदर नमूने को देख से एक अनोखा स्पंदन होता है। वहीं अलग-अलग मुद्राओं में सौंदर्य का रूप पांच नारियों की जीवंतता विशाल मूर्तियों में खजुराहो की याद दिलाती है। वैसे तो इतिहास में कुछ पीछे जाएं तो मौर्यकाल की याद दिलाने वाला यूरेका का विशाल और भव्य द्वार किसी मौर्य सम्राट के किले के से कम नहीं है, जहां एक मार्ग पर अरब की संस्कृति, तो दूसरे मार्ग पर अमेरिका संस्कृति वहां के प्राचीन काउ ब्वाय विलेज का सा नजारा है। यहां तीन और पांच सितारा होटलों के साथ अत्याधुनिक होटल और रेंस्तरा की सुविधाओं के साथ पर्यटकों को फिल्म सिटी की सैर कराने के लिए आकर्षक बसों एवं अन्य वाहन भी हैं।
दादा जिन का फंडुस्तान
सैलानियों के लिए यहां एक अद्भुत और अजब-गजब संसार की रचना की गई है। एक ऐसा संसार है दादा जिन का फंडुस्तान। दुनिया भर के बच्चों के मित्र दादा जिन ने बचपन के रंगों से फंडुस्तान नामक एक नई दुनिया यहां सजायी है। दरअसल इस विशालतम फन पार्क के अंदर जाने के लिए पहले दादा जिन के मुंह में प्रवेश करना पड़ता है। यहां बने टिम्बर लैंड में बच्चे लकड़ी से बने भूलभुलैया में भटकने का आनंद लेते हैं। फंडुस्तान में एक बड़ा सा पानी का जहाज भी आकर्षण का केंद्र बना हुआ है। यहां बोरासोरा नामक एक थ्रिलर पार्क भी किसी रहस्य और रोमांच की एक हैरतअंगेज दुनिया के दर्शन कराता हैै। इसमें कहीं आग तो कहीं भयानक सुरंग नजर आती है तो कभी डरावने दृश्य भी दिल दहला देते हैं और इस दुनिया से बाहर निकल कर सैलानी चैन की सांस लेते हैं। बोरासुरा को एशिया में पहली बार रामोजी फिल्म सिटी में ही महसूस किया जा सकता है। हवा महल और डरावनी-भूतहा गुफाओं में डर के साथ ही मस्ती का अजब-गजब संगम है।
खतरों की हकीकत
फिल्म सिटी में पर्यटकों के मनोरंजन के लिए रियल स्टंट का भी इंतजाम है। स्पेशल थिएटर में प्रशिक्षित स्टंट आर्टिस्ट द्वारा बहुत ही रोमांचक कार्यक्रम हर दिन प्रस्तुत करते हैं। स्टंट आर्टिस्ट की रियल किक, फाइट, पंच और उंचाई से कूद-फांद दर्शकों आश्चर्य में डाल देते हैं। इसमें बम के धमाके और गोलियों की आवाज के बीच ऐसा माहौल बनाया जाता है कि दर्शकों के दिल की धडकनें बढ़ जाती हैं। यह शो दर्शकों को गुदगुदाता भी है। इसमें एक कलाकार जोकर का पार्ट निभाता है और उसकी हरकतें लोगों को लोटपोट कर देती हैं। दरअसल देश भर से आए करीब 750 कलाकार किसी न किसी रूप में कई खतरनाक स्टंट दृश्यों को दर्शकों के सामने साकार करते रहते हैं। नकली फाइटिंग, नकली फायरिंग, दीवार का गिरना, छत से कूदना जैसे कई फिल्मी स्टंट यहां वास्तविक रूप में दिखा दिए जाते है, जो फिल्मी पर्दे पर सच लगते हैं।
दुनियाभर के पक्षियों का बर्ड पार्क
फिल्म सिटी का एक आकर्षण बर्ड पार्क भी है, जहां दुनिया भर से लाए गए विभिन्न प्रकार के पक्षियों का घरौंदा बना हुआ है। ऐसे पक्षियों मे राजहंस से लेकर विभिन्न देशों से लाए गए पक्षी शामिल हैं। यहां आॅस्ट्रिच भी है और इन सभी पक्षियों की देखभाल करने के लिए डॉक्टर और उनकी टीमे।
बटरफ्लाई पार्क
वंडरलैंड रामोजी फिल्म सिटी में विभिन्न प्रजातियों की तितलियों को समर्पित एक पार्क बनाया गया है। यह 72 हजार स्क्वेयर फीट में फैला हुआ है। इसमें हजारों प्रकार की तितलियां संग्रहित हैं। यह एक प्रयोगशाला की तरह है जहां विभिन्न प्रजाति की कई रंगों, आकार-प्रकार की तितलियां देखी जा सकती हैं। यहां आने वालों को तितलियों के संरक्षण और उनकी उपयोगिता के बारे में महत्वपूर्ण जानकारी दी जाती है।
वामन: द बोनसाई बोनानजा
जैसा कि नाम है वामन यानी बौना, यह एक आनंदभरा बोनसाई संस्कृति वाला पार्क है। यहां 150 से अधिक प्लांट्स हैं जिन्हें देखना अपने आप में अलग अनुभव है। जो बोनसाई कला के प्रशंसक हैं, उनके लिए यह पार्क खासतौर पर दर्शनीय है। इसमें 86 जेनेरा और 132 स्पीसीज और प्लांट किंगडम के कई पौधों को शामिल किया गया है। इस पूरे पार्क को हरे भरे लॉन, खूबसूरत पाथवे, फाउंटेन और खुशबूदार फ ूलों के कुछ पौधों से सजाया गया है।

शनिवार, 14 मई 2016

राज्यसभा में बढ़ेगी मोदी सरकार की ताकत!

57 सीटो पर शुरू हुआ जोड़-घटा का सियासी गणित
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उच्च सदन में अगले महीने 15 राज्यों की रिक्त होने वाली 57 सीटों के लिए होने वाले चुनाव में सत्तारूढ़ भाजपा और उसके सहयोगी दलों में इजाफा तय माना जा रहा है, जिसमें विपक्षी दलों की ताकत कम होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। मसलन इन चुनावो के नतीजों से 245 सदस्यीय उच्च सदन में सियासी समीकरण बदले नजर आएंगे।
चुनाव आयोग द्वारा राज्यसभा की जून से अगस्त के बीच खाली होने हो रही 57 सीटों पर अगले महीने 11 जून को चुनाव कराने की घोषणा कर दी है और इनमें से राज्यसभा ने 53 सदस्यों को विदाई भी दे दी। राज्यों में दलगत आंकड़ो को देखते हुए इन सीटों के खाली होने से चुनाव के बाद राज्यसभा में जहां भाजपा सदस्यों की संख्या बढ़ना तय है, वहीं सदन में फिलहाल 65 सीटों के साथ सबसे बड़ी पार्टी कांग्रेस की संख्या घटने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। राजनीतिकारों के अनुसार 57 में से 17 सीटे भाजपा के खाते में आने की संभावना है। इसका लाभ मोदी सरकार को मानसून सत्र में मिलना शुरू हो जाएगा।
किया है सियासी गणित
राज्यसभा की 57 सीटों के लिए होने वाले द्विवार्षिक चुनावों में सत्तारूढ़ भाजपा को तीन सीटों का लाभ होने और विपक्षी कांग्रेस को छह सीटों का नुकसान होने की संभावना जताई जा रही है। हालांकि इस बदले समीकरण के बाद भी उच्च सदन में कांग्रेस सबसे बड़े दल के रूप में कायम रहेगी, लेकिन इस समीकरण के आधार पर भाजपा और कांग्रेस के बीच मौजूदा 15 सीटों का अंतर मात्र छह सीटों तक आ जाएगा। राजनीतिकारों के अनुसार इस चुनाव से उच्च सदन में सबसे ज्यादा लाभ होगा तो वह है समाजवादी पार्टी, जो उत्तर प्रदेश में चार सीटे और झटकने के बाद बसपा को तीन सीटों का नुकसान करेगी। पहले ही सपा 15 सीटो के साथ सदन में तीसरे पायदान पर है। राज्यसभा में 12 सीटो वाली अन्नाद्रमुक और चार सीटो के साथ द्रमुक की तस्वीर 19 मई को आने वाले तमिलनाडु विधानसभा चुनाव के नतीजे साफ करेंगे।
इन राज्यों में भाजपा को लाभ
शरद यादव समेत जदयू के पांच सदस्य सेवानिवृत्त हो रहे हैं, जिसमें इन चुनाव में बिहार की दलीय स्थिति के अनुसार दो सीटों पर राजद और एक सीट पर भाजपा को मिलने की संभावना है, जिससे जदयू को तीन सीटो का नुकसान होना तय माना जा रहा है। भाजपा को राजस्थान में आनंद शर्मा की सीट समेते चारों सीटे मिलने की संभावना है। जबकि महाराष्ट्र में तीन सीटे भी भाजपा की झोली में होगी। इसके अलावा भाजपा को उत्तर प्रदेश, झारखंड में एक-एक, हरियाणा में दो, आंध्र प्रदेश व कर्नाटक में एक-एक, छत्तीसगढ़ में एक तथा मध्य प्रदेश में दो सीटें मिलने की संभावना है। इसके अलावा गुजरात में कांग्रेस के राज्यसभा सदस्य प्रवीण राष्ट्रपाल के निधन से सीट खाली हुई सीट भी भाजपा के खाते में जा सकती है। हालांकि भाजपा को कर्नाटक व उत्तराखंड में भाजपा को एक-एक सीट का नुकसान उठाना पड़ सकता है।

पीएम मोदी में छलका जीएसटी पारित न होने का दर्द

राज्यसभा 53 सांसदों की विदाई के साथ अनिश्चितकालीन स्थगित
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
संसद के मौजूदा सत्र में लोकसभा के स्थगन के बाद शुक्रवार को राज्यसभा की बैठक भी अनिश्चित काल के लिए स्थगित कर दी गई। इससे पहले जून से अगस्त के बीच अपना कार्यकाल पूरा करने वाले 57 में से 53 सदस्यों को विदाई दी गई, जिसमें प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपने अपने वक्तव्य में कहा कि संसद के मौजूदा सत्र में यदि जीएसटी जैसा महत्वपूर्ण बिल पास हो जाता तो ज्यादा बेहतर होता।
उच्च सदन में सेवानिवृत्त सदस्यों को दिये गये विदाई भाषण में प्रधानमंत्री ने जीएसटी और राष्ट्रीय मुआवजा वनीकरण कोष संबंधित विधेयकों के पारित नहीं होने पर चिंता जताते हुए कहा कि ये दो ऐसे महत्वपूर्ण विधेयक पारित कराने में यदि विदा ले रहे सदस्यों का योगदान रहता तो बहुत ही अच्छा रहता। उन्होंने कहा कि जीएसटी पारित होने से उत्तर प्रदेश एवं बिहार जैसे राज्यों को भरपूर फायदा मिलता। यह दुखद ही रहा कि सेवानिवृत्त हो रहे सदस्य इस महत्वपूर्ण बिल को पारित होने के साक्षी नहीं बन सके, लेकिन जो फिर से निर्वाचित होकर सदन में आएंगे उन्हें यह मौका जरूर मिलेगा। वहीं मोदी ने सेवानिवृत्त होने जा रहे सदस्यों को शुभकामनाएं देते हुए कहा कि सदन में कई ऐसे महत्वपूर्ण विधेयकों के पारित होने में उनका योगदान राष्ट्र के लिए काफी महत्वपूर्ण साबित होगा। इस मौके पर विदाई लेने वाले सदस्यों ने भी अपने अनुभवों को सदन के साथ साझा किया और इस दौरान सदस्यों में भावुकता नजर आई।
दो सरकारों के साथ किया काम
प्रधानमंत्री ने कहा कि जो सदस्य सेवानिवृत्त होने जा रहे हैं उन्हें दो सरकारों के साथ काम करने का मौका मिला। पिछली सरकार के साथ ज्यादा और इस सरकार के साथ कम। किन्तु इन सदस्यों ने देश के कल्याण में काफी महत्वपूर्ण योगदान दिया है। उन्होंने कहा कि निवृत्त होने जा रहे सदस्यों को इस सदन में मिले अनुभव समाज के विकास के लिए काम करने को प्रवृत्त करेंगे।
कार्यकाल पूरा करने वाले प्रमुख सांसद
राज्यसभा के 53 सदस्य जुलाई में अगले सत्र से पहले रिटायर हो रहे हैं, उनमें पांच केंद्रीय मंत्री वेंकैया नायडू, पीयूष गोयल, निर्मला सीतारमण, वाईएस चैधरी और मुख्तार अब्बास नकवी भी शामिल है, जबकि पूर्व मंत्री जयराम रमेश और हनुमंत राव समेत कांग्रेस के कुल 16 सांसद भी सेवानिवृत्ति के दायर में शामिल हैं।

शुक्रवार, 13 मई 2016

अब ऐसे होगी बसों में सवारियों की सुरक्षा

अनिवार्य हो गया बसों में अलर्ट बटन, जीपीएस व सीसीटीवी कैमरा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों के अलावा बसों में यात्रियों को सहूलियते देने और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए केंद्र सरकार ने बसों आपरेटरो पर शिकंजा कसने का फरमान जारी कर दिया है। सरकार ने एक अधिसूचना जारी करके 23 सीटर और उससे ज्यादा सवारियों की क्षमता वाली बसों में अलर्ट बटन, जीपीएस और सीसीटीवी कैमरे लगाना जरूरी कर दिया है।
केंद्रीय सड़क, परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय मंत्रालय के अनुसार अधिसूचना मसौदा जारी करने का मकसद बसों में यात्रियों खासकर महिलाओं को सुविधाएं देना और उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना है। केंद्र सरकार की सुरक्षा की दृष्टि से तैयार की गई योजना के अनुसार 23 सीटर और उससे ज्यादा सवारियों की क्षमता वाली बसों में अब जीपीएस, अलर्ट बटन और सीसीटीवी कैमरा जरूरी होगा, जबकि 23 से कम सवारियों की क्षमता वाली गाड़ियों में व्हीकल ट्रेकिंग सिस्टम और इमरजेंसी बटन जरूरी होगा। अधिसूचित मसौदे में निर्देश दिये गये हैं कि यह तीनों उपकरण वाहन निमार्ता, डीलर या फिर गाड़ी के मालिक द्वारा लगवाया जाना जरूरी होगा।
सिरे नहीं चढ़ी यूपीए की योजना
सूत्रों के अनुसार नई दिल्ली में चलती बस में निर्भया कांड के बाद यूपीए सरकार ने भी निर्भया फंड की स्थापना करके ऐसी ही एक योजना को हरी झंडी देते हुए 32 शहरों में खासकर महिलाओं की सुरक्षा की दृष्टि से आदेश जारी किये थे कि सार्वजनिक परिवहन वहानों में अलर्ट बटन, सीसीटीवी कैमरा और जीपीएस डिवाइस लगाया जाए। इस आदेश के बावजूद यूपीए सरकार की यह योजना अभी तक भी सिरे नहीं चढ़ पायी। इस योजना की समीक्षा के बाद केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गड़करी ने इस योजना को सख्ती के साथ लागू करने का मसौदा तैयार कराया और उसकी अधिसूचना जारी कर दी। गौरतलब है कि दिल्ली में 2012 दिसंबर में चलती बस में 23 वर्षीय युवती के साथ गैंगरेप की घटना दुनिया में सुर्खियां बनी तो तत्कालीन यूपीए सरकार ने निर्भय फंड बनाकर महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट व्हीकल्स में कई कदम उठाने के तहत इस योजना को तैयार किया था।
निर्देशों के उल्लंघन पर खैर नहीं
मंत्रालय के अनुसार इस योजना के अधिसूचित नियमों को उल्लंघन करने वाले बस आपरेटरों या मालिकों के खिलाफ सख्त कार्रवाही अमल में लाई जाएगी। इस योजना के जरिए सरकार का मकसद पब्लिक व्हीकल्स के रूट्स को ट्रैक करना, नियमों की अनदेखी पर उनको अलर्ट करना और इमरजेंसी के लिए पैनिक बटन द्वारा पुलिस को अलर्ट करना है, ताकि जरूरत के वक्त मदद उपलब्ध करवाई जा सके। नोटिफिकेशन के अनुसार टू व्हीलर्स, गुड्Þस कैरियर व अन्य ट्रांसपोर्ट व्हीकल्स जिन्हें मोटर व्हीकल कानून के तहत परमिट लेने की जरूरत नहीं है, उन्हें इस निर्देश से बाहर रखा गया है।