चाय का बागान भी भाजपा ने छीना
कहते
हैं कि जब सितारे गर्दिश में हीें तो राह खुद पर खुद शहर की तरफ मुड जाती
है] ऐसी कहावत देश के पांच राज्यों में विधानसभा चुनाव के नीतजो के कारण
कांग्रेस पार्टी पर सटीक होती दिखने लगी है। सियासत की वो भाषा साफ नजर आने
लगी, जिसमें ब्भाजपा की भारत को कांग्रेस मुक्त बनाने का नारा साकार होता
नजर आने लगा। मसलन इन राज्यो के चुनावी नतीजों ने भाजपा की झोली में असम
जैसे राज्य की सत्ता डाल दी, तो कांग्रेस को असम व केरल की सत्ता से बेदखल
कर दिया, बल्कि चाय का बागान भी भाजपा ने छीन लिया, वहीं चार राज्यों में
कांग्रेस का पत्ता कट गया। इन चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस को धरातल पर
लाकर ऐसे खड़ा किया कि जहां देशभर में भाजपा शासित राज्यों की संख्या बढ़ने
लगी, वहीं कांग्रेस के शासन को मैदानी इलाके से साफ कर दिया और केवल पहाड़ों
में सिमट कर रह गई। अगर आंकड़ों पर नजर डाली जाए तो देश की 43 प्रतिशत
आबादी पर भाजपा की सरकार है, वहीं दूसरे नंबर पर अन्य दल आते हैं जो 41
प्रतिशत जनता पर शासन करने वालों की सूची में अब कांग्रेस सबसे नीचे है।
राजनीतिक गलियारों में चर्चा होना स्वाभाविक है, वहीं देश में करवट बदलती
राजनीति पर जैसे-जैसे चुनावी नतीजों की तस्वीर साफ होती जा रही थी वैसे ही
सोशल मीडिया पर टिप्पणियां कांग्रेस की फजीहत का सबब बनती देखी जा रही थी।
यानि ट्विटर और फेसबुक पर यूजर्स द्वारा कांग्रेस और राहुल गांधी पर जमकर
निशाना बनाया गया। किसी ने लिखकर टिप्पणी कर डाली कि 'कांग्रेस मुक्त भारत'
एक कदम स्वच्छता की ओर.. और ये सपना बिना राहुल बाबा के संभव नहीं था। यही
नही एक टिप्पणी में तो यहां तक लिख गया कि पूरे देश में अब कांग्रेस के
पास उतनी जमीन नहीं बची, जितनी अकेले वाड्रा के पास है....? लड्डू के
भईया-लुप्त होती प्रजातियाँ-डायनासोर, बाघ...और कांग्रेस...!
पांच
राज्यों के हालिया चुनाव में कांग्रेस की दुर्गति से एक गैर राजनैतिक शख्स
सबसे ज्यादा चिंतित है। जी हां, प्रशांत किशोर। चुनाव प्रबंधन में अपनी
छाप छोड़ चुके किशोर आजकल यूपी और पंजाब चुनाव में कांग्रेस की नैया पार
लगाने के लिए माथापच्ची में जुटे हैं। इन दोनों राज्यों में अगले साल
विधानसभा चुनाव है। पहले लोकसभा चुनाव में टीम मोदी का हिस्सा रहे प्रशांत
किशोर बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश-लालू के साथ थे। बिहार में भाजपा की
करारी हार के बाद कांग्रेस को लगा कि जीत हासिल करनी है तो इस युवा प्रबंधन
गुरू से हाथ मिलाना पड़ेगा। पार्टी में पुराने नेताओं के भारी विरोध के बाद
आखिरकार राहुल गांधी ने जब किशोर को यूपी और पंजाब में चुनाव प्रबंधन की
जिम्मेदारी सौंपी तो कांग्रेस के भीतर से ही कहा जाने लगा कि जब पार्टी के
नेता ही कुछ नहीं कर पा रहे हैं तो ये जनाब क्या कर लेंगे। इन सब
टीका-टिप्पणियों के बीच प्रशांत किशोर अपने काम में जुटे थे। उनका उत्साह
भी देखते ही बनता था लेकिन अब उनका मिजाज दुरस्त नहीं है। असम ओर केरल में
सत्ता गंवाने और अन्य राज्यों में कांग्रेस के बुरे हाल के बाद उनको लग रहा
है कि अगले साल होने वाले यूपी और पंजाब के चुनाव में जीत तो दूर ढंग से
मुकाबला करना भी खासा मुश्किल रहने वाला है।
कुछ यूं गुल हुई बिजली मंत्रालय की बत्ती
जब
देश के हर घर को रोशन करने की महत्वपूर्ण जिम्मेदारी संभालने वाले बिजली
मंत्रालय की खुद बत्ती चली जाती है तो चर्चा तो होती ही है। क्योंकि यह
केंद्र सरकार का एक ऐसा इकलौता विभाग है, जिसके पास बिजली वितरण करने की
जिम्मेदारी है। यहां बात बिजली मंत्रालय के पीआईबी में हुए एक कार्यक्रम की
हो रही है जब उनके कार्यक्रम में विभाग के मंत्री मंत्रालय की उपलब्धियों
के बारे में जानकारी दे रहे थे। तभी उनके वकतव्य के दौरान ही करीब तीन बार
बिजली आती-जाती रही। गर्मी के महीनों के दौरान राजधानी से लेकर देश के लगभग
हर हिस्से में पावर कट होना तो एक आम बात है। लेकिन जब मामला बिजली मंत्रालय की बत्ती गुल होने का हो तो चर्चा होना लाजमी है।
-ओ.पी. पाल, आनंद राणा व कविता जोशी
22May-2016
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