नामांकन प्रक्रिया जारी, 11 जून को होगा चुनाव
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा
के लिए 16 राज्यों की रिक्त होने वाली 58 सीटों के लिए आगामी 11 जून को
होने वाले द्विवार्षिक चुनाव में अपने-अपने प्रत्याशियों को निर्वाचित
कराने के लिए राजनीतिक दलों में जोड़तोड़ की राजनीतिक सरगर्मियां तेज हो गई
है, जिसमें उच्च सदन में सत्ताधारी भाजपा तथा प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस
में अपनी सीटों को बढ़ाने की कवायद में जुटे हैं। ऐसे में राज्यों की
विधानसभाओं में छोटे दलों के विधायकों की नब्ज भी टटोली जा रही है।
राज्यसभा
की इन 58 सीटों के लिए होने वाले द्विवार्षिक चुनाव में सबसे ज्यादा 11
सीटें उत्तर प्रदेश की है। जबकि तमिलनाडु और महाराष्टÑ में छह-छह, बिहार
में पांच, आंध्र प्रदेश, कर्नाटक और राजस्थान में चार-चार, मध्य प्रदेश और
ओडिशा में तीन-तीन, तेलंगाना, छत्तीसगढ़, हरियाणा, पंजाब और झारखंड में
दो-दो तथा उत्तराखंड व गुजरात की एक-एक सीट शामिल है। इसमें इसी माह गुजरात
के कांग्रेस सदस्य के निधन के बाद खाली हुई सीट के अलावा राजस्थान से आनंद
शर्मा (कांग्रेस) और कर्नाटक से विजय माल्या (निर्दलीय) द्वारा खाली की गई
सीट भी शामिल है। यानि राज्यसभा की कुछ केंद्रीय मंत्रियों समेत भाजपा की
14 और कांग्रेस की 15 सीटें खाली है। इन चुनावों में खासकर भाजपा और
कांग्रेस के बीच सदन में अपनी-अपनी सीटों को बढ़ाने की होड़ में प्रतिष्ठा
दांव पर है। हालांकि कुछ राज्यों में तय माना जा रहा है कि कांग्रेस की
सीटे कम होने के साथ भाजपा प्रमुख विपक्षी दल की संख्या के अंतर को पाटकर
आधा या उससे ज्यादा कर सकती है। उच्च सदन में अपनी-अपनी प्रतिष्ठा को बचाने
के लिए इन राज्यों में सभी राजनीतिक दल जोड़तोड़ की राजनीति में विधानसभाओं
में छोटे-छोटे दलों से बातचीत करके मान-मनौवल में जुटे हैं। इन चुनावों को
लेकर कांग्रेस सबसे ज्यादा हलकान है जो अपने प्रत्याशियों का ऐलान करने में
फूंक-फूंककर कदम रखना चाहती है।
दांव पर लगी इन दलों की प्रतिष्ठा
राज्यसभा
में भाजपा व कांग्रेस के अलावा बसपा छह, जदयू की पांच, सपा, बीजद व
अन्नाद्रमुक की तीन-तीन, द्रमुक, राकांपा व तेदेपा की दो-दो और शिवसेना का
एक सदस्य सेवानिवृत्त होगा, जबकि एक सीट निर्दलीय विजय माल्या की उनके
इस्तीफे के कारण खाली हो चुकी है। इनमें मोदी सरकार के मंत्रिमंडल में
शामिल केंद्रीय मंत्री एम. वेंकैया नायडू, बिरेन्दर सिंह, सुरेश प्रभु,
निर्मला सीतारमण, पीयूष गोयल और मुख्तार अब्बास नकवी के लिए भी ये चुनाव
प्रतिष्ठा से कम नहीं है।
राज्यसभा
की सबसे ज्यादा 11 सीटें उत्तर प्रदेश की है, जिनमें सबसे ज्यादा बसपा की
छह सीटे खाली होनी है, जबकि सपा की तीन तथा एक-एक भाजपा व कांग्रेस की सीट
खाली हो रही है। इसके बावजूद बसपा को चार सीटों का नुकसान होगा जिसका फायदा
सपा को मिलना तय है। बाकी दो सीटों में एक-एक भाजपा व कांग्रेस के हिस्से
में आना तय है। यूपी में चूंकि दस जून को 13 विधानसभा सीटों के लिए भी
चुनाव होने हैं तो जाहिर सी बात है कि यहां सत्ताधरी सपा के अलावा बसपा और
भाजपा भी जोड़तोड़ की राजनीति में जुटी है। राज्यसभा चुनाव के लिए इन 11
सीटों के लिए यूपी विधानसभा के कुल सदस्यों 404 में से एक मनोनीत को छोड़कर
403 विधायक मतदान करेंगे। अन्य राज्यों में भी सभी राजनीतिक दल राज्यसभा की
सीटों के लिए जोड़तोड़ की राजनीति के सहारे उच्च सदन में अपनी प्रतिष्ठा
बचाने में लगे हुए हैं। उत्तर प्रदेश विधानसभा में विभिन्न दलों की स्थिति
पर नजर डाले तो समाजवादी पार्टी 229 विधायकों के साथ सबसे बड़ा दल है, इसके
बाद बहुजन समाज पार्टी के 80, भारतीय जनता पार्टी के 41, कांग्रेस के 29,
राष्ट्रीय लोकदल के 8, पीस पार्टी 04, कौमी एकता दल 02, नेशनलिस्ट कांग्रेस
पार्टी 01, अपना दल 01, इत्तेहादे मिल्लत कौंसिल 01, तृणमूल कांग्रेस 01
और 06 निर्दलीय सदस्य हैं।
26May-2016
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