असम में भाजपा की जीत में निभाई महत्वपूर्ण भूमिका
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
असम
में सत्ता हासिल करने के बाद भाजपा की नजरे अब अगले साल होने वाले उत्तर
प्रदेश विधानसभा चुनाव की रणनीति पर टिक गई है, जहां सत्ता हासिल करने के
लिए भाजपा के लिए राष्ट्रीय स्वयं सेवक संघ ने उसी तरह की रणनीति को अंजाम
देने की रणनीति बनाना शुरू कर दिया है, जिस रणनीति के तहत असम में भाजपा को
सत्ता दिलाने के लिए आरएसएस ने अपनी भूमिका निभाई।
उत्तर प्रदेश
में अगले साल होने वाले विधानसभा चुनाव भाजपा के लिए अत्यंत महत्वपूर्ण
हैं, जिसके लिए पार्टी ने यूपी की राजनीतिक फोकस करके प्रदेश संगठन की
बागडौर मौर्य को सौंप दी है और सत्ता तक पहुंचने की रणनीति के तहत संगठन और
बूथ स्तर तक संगठन को मजबूत करने की मुहिम चला रखी है। इसके लिए भाजपा को
आरएसएस का सहारा लेना लाजिमी है, जिसके सहारे भाजपा ने असम की सत्ता पर
काबिज होकर इतिहास रचा है। दरअसल असम विधानसभा चुनाव में कांग्रेस का 15
साल पुराना कांग्रेस का सियासी किला ढाहना अकेले भाजपा के बलबूते की बात
नहीं है, उसमें भाजपा की ही रणनीति के साथ आरएसएस ने एक ठोस रणनीति के साथ
अपनी पूरी ताकत झोंककर महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। असम में भाजपा-आरएसएस
की इस सियासी रणनीति का सकारात्मक नतीजा मिलने के बाद अब भाजपा की नजरे
सीधे अगले साल उत्तर प्रदेश में होने वाले विधानसभा चुनाव पर टिक गई है।
इसके लिए जहां एक ठोस रणनीति बनाने के लिए केंद्र सरकार और भाजपा दोनों में
यूपी चुनाव की दृष्टि से फेरबदल करने के लिए मंथन तक करना शुरू कर दिया।
वहीं आरएसएस भी भाजपा के लिए असम की तर्ज पर अलग से रणनीति बनाने में जुट
गया है। यानि भाजपा के लिए संघ उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन को तैयार करने
के लिए अपना जाल फैलाकर हर हालत में यूपी फतह कराना चाहता है। सूत्रों के
अनुसार आरएसएस यूपी में एक लाख से भी ज्यादा स्वयंसेवकों की फौज उतारने की
तैयारी में है। हालांकि यूपी मिशन पर राज्य की सपा और बसपा के साथ कांग्रेस
की रणनीतियां भी सियासी पटरी पर दौड़ने लगी हैं। कांग्रेस ने तो बिहार में
नीतीश कुमार को सत्ता तक पहुंचाने वाले उनके रणनीतिकार प्रशांत किशोर के
सहारे अपनी डूबती नैया को यूपी मिशन फतह करने की सियासत को अंजाम दिया है।
महागठबंधन की सुगबुगाहट
उत्तर
प्रदेश विधानसभा के 2017 के चुनावों में भाजपा को सत्ता से दूर रखने की
दिशा में बिहार की तर्ज पर बिहार के सत्तारुढ जद-यू,रालोद, और झारखंड विकास
मोर्चा के साथ अन्य छोटे दलों को जोड़कर महागठबंधन की सुगबुगाहट ही नहीं,
बल्कि इसकी संभावना को हकीकत में बदलने की तैयारियां भी जारी हैं। सूत्रों
के अनुसार यूपी चुनाव के लिए ऐसे महागठबंधन को ‘जन विकास पार्टी’ के रूप
में चुनावी मैदान में उतारने पर भी मंथन हो रहा है, हालांकि अभी तक किसी भी
दल ने इस महागठबंधन में विलय करने की मंजूरी नही दी है। महागठबंधन को
अंजाम देने में अगुवाई कर रहे जदयू प्रमुख एवं बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश
कुमार ने तो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के संसदीय क्षेत्र वाराणसी में एक
रैली करके चुनावी शंखनाद भी कर दिया है। सूत्रों की माने तो बिहार चुनाव के
दौरान जिस तरह से गैर-भाजपा और गैर कांग्रेसी महागठबंधन की अगुवाई करने
वाले सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने एनमौके पर अलग होकर अपने बूते पर
चुनाव में आने का ऐलान कर दिया था। उसे देखते हुए यूपी के महागठबंधन में
सपा को इस संभावित महागठबंधन का हिस्सा बनाने की संभावनाएं इसलिए भी नहीं
हैं, क्योंकि यूपी में समाजवादी पार्टी सत्ता में है और जाहिर सी बात है कि
वह अपने बलबूते पर ही मिशन-2017 में उतरेगी। सूत्रों के अनुसार प्रस्तावित
जन विकास पार्टी की बागडौर बिहार के मुख्यमत्री नीतीश कुमार के हाथों में
होगी, जबकि रालोद के पूर्व सांसद जयंत चौधरी को महासचिव बनाने का प्रस्ताव
है।22May-2016

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