गुरुवार, 12 मई 2016

ऐसे तो पांच दशकों में भी साफ नहीं होगी गंगा!

नमामि गंगे मिशन संसदीय समिति ने उठाए सवाल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के नमामि गंगे मिशन पर जिस तरह से काम चल रहा है उससे तो आने वाले पचास साल में भी गंगा की सफाई और सकी निर्मल धारा को अविरल करना मात्र परिकल्पना ही रह जाएगी। संसद की प्राक्कलन समिति ने नमामि गंगे मिशन पर पिछले दो साल से चल ही कागजी कार्यवाही पर सवालिया टिप्पणी के साथ इस मिशन को पूरा करने के लिए केंद्र सरकार से कई महत्वपूर्ण सिफारिशे भी की हैं।
दरअसल बुधवार को संसद ने भाजपा सांसद डॉ. मुरली मनोहर जोशी की अध्यक्ष में गठित 30 संसद सदस्यीय प्राक्कलन समिति ने गंगा जीर्णोद्धार पर अपनी 397 पृष्ठीय रिपोर्ट पेश की है। समिति ने जिस प्रकार तीन महीने पहले प्रधानमंत्री के ड्रीम प्रोजेक्ट ‘नमामि गंगे’ पर जारी काम पर सवाल उठाते हुए टिप्पणी की थी कि कागजों पर इस परियोजना का काम ऐसे ही चलता रहा तो गंगा को आने वाले पचास साल में भी साफ नहीं किया जा सकेगा और गंगा की निर्मल धारा को ढ़ाई हजार किमी लंबी नदी के अंतिम छोर तक ले जाने की परिकल्पना मात्र रह जाएगी। ऐसे ही संकेत देते हुए समिति ने बुधवार को पेश की गई रिपोर्ट में की गई टिप्पणी में किये हैं। डा. मुरली मनोहर जोशी ने सरकार से की गई सिफारिशों के बारे में बताया कि गंगा लाखों लोगों की धार्मिक आस्थाओं से भी जुड़ी है और केंद्र सरकार पहले ही 20 हजार करोड़ का बजट नमामि गंगे मिशन को अगले पांच साल में पूरा करने के लिए आबंटित कर चुकी है, जो पिछले तीन दशकों में खर्च हुए चार हजार करोड़ से पांच गुणा है। समिति ने टिप्पणी की है कि नमामि गंगे मिशन को पूरा करने के तौरतरीके न बदले तो पहले तीन दशकों के दौरान गंगा सफाई के नाम पर फेल हो चुकी गंगा सफाई परियोजनाओं की तरह यह कार्यक्रम भी धन की बर्बादी का कारण बन सकता है। समिति ने जल संसाधन मंत्रालय की ताजा वार्षिक रिपोर्ट, गंगा मिशन पर हुए काम और किये गये खर्च के साथ प्रगति रिपोर्ट पेश करने को भी कहा है।
सौ साल पहले समझौते पर गौर करे सरकार
डा. जोशी के नेतृत्व वाली प्राक्कलन समिति ने टिप्पणियों के साथ सरकार से इस बात पर जोर दिया है कि नमामि गंगे को तय लक्ष्य में पूरा करने के लिए 1916 में अंग्रेजो और पंडित मदन मोहन मालवीय के बीच हुए समझौते पर गौर करके उसके अनुसार गंगा की अविरलता बनाने के काम करे। सरकार से यह भी सिफारिश की गई है। गंदे नाले में तब्दील होती जा रही गंगा को बचाने के लिए प्रभावी पर्यावरीण प्रवाह बनाए रखने के लिए खासकर औद्योगिक ईकाई के जहरीले पानी, शहरी, ग्रामीण और कस्बों से निकल रहे नालों के गंदे पानी को गंगा में गिरने से पहले शोधन करने पर गंभीरता से सख्ती बरते। इसके लिए मलजल शोधन संयंत्रों को चालू करने, मौजूदा संयंत्रों की क्षमता बढ़ाने के साथ शोधित अपशिष्ट जल का परीक्षण करने की जरूरत है। वहीं समिति ने नई प्रौद्योगिकियों के तहत ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों के लिए जल की उपलब्धता के अंतर को पाटने, कम जल की जरूरत वाली फसलों को प्रोत्साहित करने, बांध बनाये जाने से जल की गुणवत्ता संबन्धी अध्ययन कराने के अलावा जल विद्युत परियोजनाओं के निर्माण नीति पर पुनर्विचार करने की भी सिफारिश की है।
प्राधिकरणों में समन्वय की कमी
समिति ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि गंगा नदी की निर्मलता और अविरलता बनाये रखने के लिए संबन्धित प्राधिकरणों के बीच तालमेल की कमी को दूर करने के लिए अविलंब एक प्रभावशाली और अधिकार प्राप्त प्राधिकरण की स्थापना की जाए। समिति ने इस मिशन में केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड और राज्य प्रदूषण नियंत्रण बोर्डो में पर्याप्त तकनीकी तथा वैज्ञानिक जनशक्ति की कमी पर भी गंभीर चिंता जाहिर करते हुए अध्ययन करके कमियों को दूर करने की सिफारिश की है।
12May-2016



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