शुक्रवार, 6 मई 2016

अब कचरे व गंदे पानी से तैयार होगा वाहन र्इंधन!

प्रदूषण की चुनौती से निपटने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़कों के बुनियादी ढांचों को सुरक्षित करने के साथ प्रदूषण की चुनौती से निपटने के लिए जहां केंद्र सरकार ने एथेनॉल, बायो सीएनजी, बायो डीजल और इलेक्ट्रिॉनिक वाहनों को प्रोत्साहन देना शुरू किया है, वहीं विदेशी तकनीक के आधार पर सरकार देश में कचरे और गंदे पानी से वाहनों के र्इंधन तैयार करने की कवायद में भी जुट गई है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के दावे के अनुसार सरकार देश में सुरक्षित सड़कों के निर्माण के डिजाइनों को प्राथमिकता दे रही है। देश में सड़को पर दौड़ते वाहनों के कारण बढ़ते प्रदूषण की चुनौती से निपटने की भी तेजी से कवायद शुरू कर दी है, जिसके लिए सरकार को लगातार सुप्रीम कोर्ट और एनजीटी की नसीहतों को झेलना पड़ रहा है। सुप्रीम कोर्ट के निर्देशों के मद्देनजर केंद्रीय मंत्री नीतिन गड़करी ने देश में पेट्रोल और डीजल की गाड़ियों को वैकल्पिक र्इंधन के रूप में ऐसी योजना को सिरे चढ़ाने का दावा किया है कि भविष्य में देश में एथेनॉल, बायो सीएनजी, बायो डीजल और इलेक्ट्रिॉनिक वाहन सड़को पर दौड़ते नजर आएंगे। दरअसल हाल ही में यहां एक स्मार्ट ट्रांसपोर्टेशन इन्फ्रा समिट व एक्सपो के दौरान केन्द्रीय परिवहन मंत्री नितिन गडकरी ने देश में पेट्रोल और डीजल से तेजी के साथ बढ़ते प्रदूषण पर शिकंजा कसने के लिए जो कदम उठाने की योजना का जिक्र किया है उसमें उन्होंने कहा कि विदेशों में जिस प्रकार प्रदूषण को करने के उपाये अपनाए जा रहे हैं उसी तर्ज पर उनका मंत्रालय काम कर रहा है, जिसमें कचरे और गंदे पानी जैसे अपशिष्ठ से वाहनों के र्इंधन तैयार करने की योजना का अध्ययन कर रहा है। हालांकि सरकार पहले से ही पर्यावरण संरक्षण की दिशा में एथेनॉल, बायोडीजल, इलेक्ट्रिक वाहनों को विकसित करने पर फोकस कर रही है।
दीर्घकालीन योजना पर फोकस
मंत्रालय के अनुसार सड़क सुरक्षा, निर्माण गुणवत्ता, डिजाइन और प्रदूषण पर अंकुश लगाने जैसी पहल करके देश के परिवहन क्षेत्र में बदलाव करने के लिए दीर्घकालीन यानि कम से कम 25 सालों के लिए योजना बनाने की जरूरत है। जहां तक प्रदूषण को कम करने का सवाल है उसके लिए सरकार दावा कर रही है कि अभी तक देश 8 लाख करोड़ रुपए का क्रूड आॅयल आयात करता था। तेल के दाम गिरने से अब पांच लाख करोड़ रुपए का क्रूड आयात तक लाया जा चुका है। मसलन इस तेल से हमारे देश की हवा और पानी दोनों दूषित हो रहे हंै। इसलिए अब सरकार पर्यावरण संरक्षण की दिशा में ठोस कदम उठा रही है, जिसमें नए प्रयोग करने से ही ऐसी चुनौतियों का मुकाबला किया जा सकता है। मंत्रालय का यह भी दावा है कि भारत में लॉजिस्टिक कॉस्ट करीब 18 प्रतिशत है। चीन में ये कॉस्ट 8 प्रतिशत और यूरोपियन देशों में 12 फीसदी है। यदि भारत में लॉजिस्टिक कॉस्ट 10 फीसदी तक आ जाए, तो उत्पादन डेढ़ गुणा तक बढ़ सकता है।
कचरे की कीमत समझना जरूरी
केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्रालय मानता है कि यदि दिल्ली प्रदूषण को कम करने में अहम भूमिका निभा सकती है। मसलन दिल्ली की आजादपुर मंडी से रोजाना लाखों टन कचरा निकलता है और इससे इतने बड़े पैमाने पर बायो सीएनजी बनाई जा सकती है, जिससे दिल्ली की करीब 250 बसें चलाई जा सकती हैं। यही नहीं यमुना में जो गंदा पानी गिराया जाता है उससे भी बायो सीएनजी बनाना असान है। ऐसा प्रयोग करने से जब हम कचरे में वेल्यू क्रिएट करेंगे तभी उसकी असली कीमत समझी जा सकती है। मंत्रालय के अनुसार महाराष्टÑ के नागपुर में गंदे पानी से बायो सीएनजी बनाने का काम चल रहा है। यही नहीं वहां एथेनॉल से बस भी चला रहे हैं जो प्रदूषण रहित और कम कीमत में बन जाती है।
इन राज्यों को एक्सप्रेस-वे जोड़ेगी सरकार
यातायात कॉरिडोर पर खर्च होंगे 16,680 करोड़ रुपये
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना के तहत 16,680 करोड़ रुपये के निवेश से समग्र सड़क निर्माण की परियोजना को मंजूरी दी है, जिसमें दिल्ली-यूपी, दिल्ली-राजस्थान, दिल्ली-चंडीगढ़, कर्नाटक-तमिलनाडु आदि राज्यों के अलग-अलग राष्टÑीय राजमार्गो के तहत एक हजार किमी लंबे एक्सप्रेस-वे का निर्माण किया जाएगा।
यह जानकारी गुरुवार का केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग राज्यमंत्री पोन राधाकृष्णन ने बताया कि इस परियोजना में वड़ोदरा-मुंबई, दिल्ली-मेरठ की सड़क परियोजनाएं भी शामिल है। उन्होंने कहा कि केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्ग विकास परियोजना यानि एनएचडीपी के छठे चरण के तहत 16,680 करोड़ रुपये की लागत से डिजाइन, निर्माण, वित्त, परिचालन और हस्तांतरण यानि डीबीएफओटी आधार पर एक हजार किलोमीटर एक्सप्रेसवे के निर्माण की योजना को मंजूरी दी है। उन्होंने कहा कि एक्सप्रेसवे कॉरिडोर के चयन का मुख्य मानदंड यातायात है और सरकार वड़ोदरा-मुंबई तक 400 किलोमीटर जैसे घने यातायात वाले कॉरिडोर को व्यावहारिकता अध्ययन के लिए मंजूर कर रही है। उन्होंने कहा कि परियोजना के इस चरण के तहत स्वीकृत व्यस्त यातायात वाले कॉरिडोरों में दिल्ली-उत्तर प्रदेश में राष्ट्रीय राजमार्ग 58 पर दिल्ली-मेरठ तक 66 किमी और कर्नाटक-तमिलनाडु में एनएच-4 पर बेंगलूरू-चेन्नई तक 334 किमी लंबा कॉरिडोर का निर्माण होगा। इसके अलावा दिल्ली-राजस्थान में एनएच-8 पर दिल्ली-जयपुर तक 261 किमी, दिल्ली-पंजाब-जम्मू कश्मीर में एनएच- और एनएच-22 पर दिल्ली-चंडीगढ़ तक 249 किमी, दिल्ली-उत्तर प्रदेश में एनएच-2 पर दिल्ली-आगरा तक 200 किमी निर्माण भी हैं। उन्होंने बताया कि दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेसवे की 66 किलोमीटर की दूरी में से 30.63 किलोमीटर की दूरी के काम को पहले ही दो पैकेज में दिया जा चुका है और करार चार मार्च 2016 को लागू किया गया।
06May-2016


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