शनिवार, 30 मई 2015

अगले तीन सालों में एलईडी से रोशन होगा हरेक घर

सरकार का स्मार्ट मीटर लगाने की योजना
एक साल में बिजली व कोयला उत्पादन वृद्धि के बने नए रिकार्ड
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार देश में बिजली संकट से निपटने के लिए बिजली उत्पादन बढ़ाने के साथ ही हर घर को रोशन करने के लक्ष्य को हासिल करना चाहती है। एक साल के कार्यकाल में सरकार ने बिजली की कमी को भारत के इतिहास में सबसे कम स्तर पर लाने का दावा किया है। वहीं सरकार ने अगले तीन सालों में ऊर्जा बचत की दृष्टि हर घर में एलईडी बल्ब लगाने का लक्ष्य तय किया है।
मोदी सरकार के कार्यकाल का एक साल पूरा होने पर बुधवार को केंद्रीय विद्युत, कोयला तथा नवीन एवं नवीकरणीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने अपने मंत्रालय की एक वर्ष की उपलब्धियों का बखान किया। उन्होंने दावा किया है कि मोदी सरकार के सभी को हर दिन 24 घंटे बिजल उपलब्ध कराने के विजान पर अनेक कदम उठाए गये हैं। उन्होंने कहा कि भारत के इतिहास में एक साल में केंद्र सरकार ने पहली बार बिजली के घाटे को न्यूनतम 3.6 प्रतिशत तक लाने में सफलता हासिल की है। उन्होंने कहा कि परंपरागत बल्बों की जगह एलईडी बल्ब के इस्तेमाल से ऊर्जा बचत हो रही है और सरकार का लक्ष्य है कि अगले तीन साल में देशभर के हर घर में एलईडी बल्ब लगने के लक्ष्य हो हासिल कर लिया जाएगा और देश में बिजली का संकट नहीं रहेगा। पीयूष गोयल ने कहा कि एक साल में बिजली उत्पादन क्षमता में 22,566 मेगावाट यानि 8.4 की बढ़ोतरी ने पिछले दो दशक का रिकार्ड ध्वस्त किया है। इसके अलावा ट्रांसमिशन लाइन क्षमता में 22,100 सर्किट कि.मी. और सब स्टेशन क्षमता में 65,544 मेगावाट क्षमता को बढ़ाने का काम देश के इतिहास में सर्वाधिक बढ़ोतरी का सबब बना है। केंद्र सरकार के एक साल में पहली बार सौर, पवन, छोटी पनबिजली आदि योजनाओं में अक्षय ऊर्जा में भी अतिरिक्त क्षमता में 42 प्रतिशत का सृजन करके लक्ष्य को पार किया गया है। गोयल ने कोयला उत्पादन की वृद्धि में भी एक साल में रिकार्ड उपलब्धि हासिल करने का दावा किया है। उन्होंने कहा कि एक साल पहले देश में विद्युत वितरण कंपनियां 2.50 लाख करोड़ रुपये के घाटे में थी, जिनका सरकार की निवेश की नई योजनाओं के लागू होने से यह घाटा कम होकर 1.09 लाख करोड़ के स्तर पर आया है। उन्होंने कहा कि एक साल में 8.3 प्रतिशत की कोयला उत्पादन में हुई वृद्धि पिछले 23 सालों में सर्वाधिक रिकार्ड पर है। गोयल के अनुसार 66,554 एमवीए तथा कोल इंडिया द्वारा अब तक का सबसे अधिक कोयला उत्पादन 32 मिलियन टन रहा है। जबकि कोयले के भंडार वाले राज्यों को एक साल के भीतर 3.35 लाख करोड़ रुपये का संभावित राजस्व ई-निलामी और आवंटन की पारदर्शी प्रक्रिया के तहत मिलेंगे। 66,554 एमवीए तथा कोल इंडिया द्वारा अब तक का सबसे अधिक कोयला उत्पादन 32 मिलियन टन रहा।
ऊर्जा व कोयला वृद्धि का लक्ष्य
ऊर्जा मंत्री ने कहा कि वर्ष 2020 तक सरकार बिजली उत्पादन को 50 प्रतिशत बढ़ाने का लक्ष्य तय करके चल रही है। ऊर्जा बचत को मौजूदा खपत के दस प्रतिशत तक बढ़ाने का भी प्रयास किया जा रहा है। इसी प्रकार वर्ष 2022 तक अक्षय ऊर्जा क्षमता में पांच गुना से ज्यादा वृद्धि करके इसे 1.75 लाख मेगावाट तक लाने का लक्ष्य है। सरकार की करीब 100 मेगावाट के 25 सोलर पार्क बनाने की योजना है। इसके लिए नवीनीकरणीय ऊर्जा के संप्रेषण हेतु 38 हजार करोड़ रुपये की लागत पर हरित ऊर्जा गलियारा स्थापित किया जा रहा है। सरकार कोयला उत्पादन को बढ़ाने की योजना पर भी काम कर रही है और वर्ष 2020 तक कोल इंडिया के उत्पादन को दोगुना करके 100 करोड़ टन प्रतिवर्ष तक लाने का लक्ष्य तय किया गया है।
एलईडी के बाद स्मार्ट मीटर
केंद्रीय ऊर्जा मंत्री पीयूष गोयल ने कहा कि सरकार ने देश को बिजली संकट से मुक्त करने की दिशा में ईएलडी बल्ब के बाद हर घर में स्मार्ट मीटर लगाने की योजना बनाई है। इसके लिए रोडमैप तैयार किया जा रहा है। उन्होंने कहा कि सरकार की ऊर्जा क्षेत्र की नीति में देश को बिजली की कटौती से मुक्त करने का लक्ष्य है। उन्होंने बताया कि पिछली सरकार से उन्हें बिजली क्षेत्र में 28 करोड ऐसे लोग विरासत में मिले, जिन तक बिजली की पहुंच नहीं थी। सरकार ने एक साल में 1500 गांव में दीन दयाल उपाध्याय ग्राम ज्योति योजना के तहत विद्युतीकरण किया है।
28May-2015

बुधवार, 27 मई 2015

नदियों में अगले साल उतरेंगी रिवर बसें!

सरकार ने तैयार किया 101 नदियों को जलमार्ग में बदलने खाका  
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की की अर्थव्यवस्था मजबूत करने के लिए विकास के एजेंडे पर केंद्र सरकार ने नदियों को जलमार्ग में बदलने के लिए देश की 101 नदियों को चिन्हित कर पूरा खाका तैयार कर लिया है, जिसके लिए सरकार जल्द ही अधिसूचना जारी करने की तैयारी में जुटी हुई है। सड़क यातायात को जल में उतारने के लिए सरकार ने सात राज्यों रिवर बसें चलाने की योजना को अंतिम रूप देकर काम शुरू करने का दावा किया है।
केंद्रीय शिपिंग एवं सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार देश के सात राज्यों के नदियों, झीलों और नहरों वाले शहरों में जलमार्ग यातायात शुरू करने की योजना पर काम शुरू कर दिया गया है और अगले साल जलमार्ग पर रिवर बसें चलाना शुरू करने की उम्मीद है। मसलन पहले चरण में सात राज्यों में 4200 करोड़ रुपये की जलमार्ग विकसित करने की योजना पर काम कर रही इनलैंड वाटरवेज अथॉरिटी आॅफ इंडिया ने सबसे पहले यमुना नदी में दिल्ली से आगरा के बीच रिवर बस चलने की योजना बनाई है। इसके लिए इंग्लैंड की एक कंपनी से 70 होवर क्राμट खरीदने की प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। वहीं नदियों, झीलों, समुद्र, नहरों पर बैराज और वाटर टर्मिनल बनाने के लिए नीदरलैंड सरकार तकनीकी सहयोग लेना शुरू कर दिया गया है। इस योजना के तैयार हुए खाके को देखते हुए 101 नदियों, नहरों, झीलों और बैकवाटर को यातायात के रूप में बदलने हेतु अगले तीन महीने में सरकार अधिसूचना जारी करने पर विचार कर रही है। इस योजना के लिए केंद्र सरकार पहले यूपी, पश्चिम बंगाल, बिहार, असम, महाराष्ट्र, केरल व तमिलनाडु में जलमार्ग के यातायात को शुरू करके रिवर बसे चलाएगी। गडकरी का मानना है कि जलमार्ग का यायातात सड़क और रेल परिवहन के मुकाबले सस्ता होगा और दूरस्थ इलाकों को आवागमन का साधन मिल सकेगा। इस महत्वाकांक्षी योजना में नदियों वाले शहरों की सड़कें नदियों तक संपर्क में होंगी। जहां तक नदियों की सफाई और पानी के प्रवाह का सवाल है उसके लिए केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय नमामि गंगे मिशन के लिए पहले ही कार्य करने में जुटा है।
सस्ता सफर व रोजगार का साधन
केंद्रीय शिपिंग एवं सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार सरकार ने सड़क और रेल मार्ग के बोझ को कम करने के लिए देश की नदियों, नहरों और झीलों को जलमार्ग बनाने की वृहद योजना तैयार की है। वहीं नदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना से देश के विकास और अर्थव्यवस्था में सुधार के साथ लोगों को रोजगार भी मिलेगा। सरकार की देश में छोटे और देश के भीतरी हिस्सों में बंदरगाह बनाने की भी योजना भी है। केंद्रीय जहाजरानी मंत्री नितिन गडकरी ने देश की नदियों को जलमार्ग में बदलने के लिए राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक भी लोकसभा में पेश किया है, लेकिन वह अभी सदन में लंबित है। इस विधेयक के मानसून सत्र में पारित होने की उम्मीद है। जलमार्ग को विकसित करने का मकसद रोज रोज के सड़कों पर यातायात बढ़ने और यातायात जाम जैसी समस्याओं से निजात दिलाने के साथ लोगों को सड़क और रेल यातायात से सस्ता और सुलभ सफर की सुविधा देना है। केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने देश में अभी तक पांच जलमार्ग घोषित किये हैं, जिनका 14500 किमी तक विस्तार करने की परियोजना सरकार के पास तैयार है। नदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना को सामाजिक व आर्थिक दृष्टि से भी सरकार महत्वाकांक्षी कदम मान रही है। इस योजना के तहत नदी, झील, नहर, छोटी नदी, बैकवाटर आदि को जलमार्ग में बदलने की बड़ी योजना का खाका सरकार तैयार कर चुकी है। 
27May-2015

मंगलवार, 26 मई 2015

सड़कों के जाल बिछाने को एक्शन में सरकार !

देश की तस्वीर बदलने को अब आएगी मेगा सड़क योजना
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
महाराष्ट्र में मंत्री रहतेफ्लाई ओवर सड़को का जाल बिछाने के लिए जाने जाते रहे केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी अब पूरे देश में सड़कों का जाल बिछाने का मास्टर प्लान तैयार कर चुके हैं। मोदी सरकार के पहली वर्षगांठ के बाद अब इस एक्शन प्लान पर जमीन पर उतारने का काम जल्द शुरू करने की तैयारी हो रही है।
मोदी सरकार ने एक साल पहले देश की सूरत बदलने के लिए विकास के एजेंडे पर काम करके देश की सूरत बदलने की रणनीति की घोषणा की गई थी, जिसमें सड़कों का तेजी से निर्माण सरकार की प्राथमिकता रही है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार एक साल के भीतर देश में सड़क निर्माण में तेजी आई है और एक साल में पांच हजार किमी लंबी सड़कों का निर्माण किया जा चुका है। सरकार का मकसद देशभर को सड़कों के नेटवर्क से जोड़ना है, जिसके लिए सड़क क्षेत्र के आधारभूत ढांचे को और मजबूत बनाने के लिए मंत्रालय में सेतु भारतम, राष्ट्रीय राजमार्ग जिला संयुक्त परियोजना और बैकवार्ड एरिया हाईवेज जैसी कई बड़ी योजनाओं का कैबिनेट नोट का खाका तैयार है, जिसे अगामी केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में विचार और मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जाएगा। सड़कों के आधारभूत ढांचे को और अधिक बेहतर बनाने की दिशा में मंत्रालय की मेगा योजनाओं में सड़क यायातात को बेहतर बनाने की दिशा में सड़क निर्माण के साथ ही रेलवे ब्रिज और लेवल क्रॉसिंग बनाने का प्रस्ताव भी शामिल है। सूत्रों के अनुसार इन सभी परियोजनाओं की डीपीआर का काम भी पूरा कर लिया गया है।
परियोजनाओं में नहीं आएगी बाधा
मंत्रालय के अनुसार सरकार सड़क निर्माण में आने वाली बाधाओं को दूर करने में सफल रही है, जिनके कारण लक्ष्य हासिल करना मुश्किल था। नई परियोजनाओं के दिशा निर्देशों में सड़क निर्माण की परियोजनाओं की उच्च गुणवत्ता को अनिवार्य किया गया है। सरकार इसी मकसद से राष्ट्रीय राजमार्ग के नेटवर्क को मजबूत करने की मुहिम पर है, ताकि देश में एक कोने से दूसरे कोने तक सड़क मार्ग से सफर को आसान बनाने के साथ मालवाहक वाहनों की आवाजाही को भी अधिक सुगम बनाया जा सके। राष्ट्रीय राजमार्ग के अलावा देशभर में सड़क नेटवर्क को बेहतर बनाने के लिए ही सेतु भारतम परियोजना तैयार की है। मंत्रालय के अनुसार सरकार की इस महत्वाकांक्षी मेगा योजना में सड़क परियोजनों के अटकने का कारण बने 150 रेलवे ओवर ब्रिज और 204 लेवल क्रॉसिंग्स बनाने का का भी एक साल के भीतर करने का लक्ष्य है। मंत्रालय ने सड़क परियोजनाओं के तहत दूर दराज इलाकों के ऐसे 123 जिला मुख्यालयों की पहचान की है जिनकी सड़कों को भी राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ा जाएगा। इस योजना में सरकार उत्तर प्रदेश, मध्य प्रदेश, गुजरात और राजस्थान की सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क से जोड़ने के लिए दो हजार किलोमीटर सड़क का निर्माण कराएगी।
आबाद होंगे सीमावर्ती इलाके
सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार अटल बिहारी वाजपेयी की स्वर्णिम चतुर्भुज योजना की तर्ज पर मोदी सरकार की महत्वाकांक्षी ‘भारतमाला’ योजना के जरिए देश के पूरब से पश्चिम तक के सीमावर्ती इलाकों में 14 हजार करोड़ रुपये की योजना को अंतिम रूप दिया गया है। इस योजना में बनाई जाने वाली सड़कों को महाराष्ट्र से पश्चिम बंगाल तक तटीय राज्यों को जोड़कर एक विशाल सड़क नेटवर्क तैयार किया जाएगा। वहीं देश में पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए भी एक पृथक रिलीजियस सर्किट भी बनाने की योजना पर काम हो रहा है। ताकि धार्मिक व पर्यटन स्थलों को भी राष्ट्रीय राजमार्ग नेटवर्क से जोड़ा जा सके।
26May-2015


सोमवार, 25 मई 2015

ऐसे तो बूंद-बूंद पानी से तरस जाएंगे हम!

पानी के साथ अन्न का भी पड़ सकता है टोटा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में जिस प्रकार से भू-जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है उससे पर्यावरणविदों और जल क्षेत्र में काम करने वालों के लिए किसी चिंता से कम नहीं है। भारत में जल को लेकर आ रही वैश्विक रिपोर्टों पर यकीन करें तो आने वाले कुछ सालों में हम पानी की बूंद-बूंद से तरस जाएंगे, जिसके कारण फसल उत्पादन में अन्न का भी टोटा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
भारत दुनिया की सतह क्षेत्र के 2.4 फीसदी भाग पर है, पर इसकी आबादी दुनिया की तकरीबन 17 फीसदी है। हालांकि हमारे देश में दुनिया के जल संसाधन का 4 फीसदी हिस्सा मौजूद है। देश के अलग-अलग जलवायु होने के कारण स्थान के अनुरूप पानी की सुलभता नहीं है। ऐसे में कई हिस्सों में पेयजल तक की कमी है। सिंचाई के लिए वैज्ञानिक और संसाधनों वाले युग में भी ऊपर की ओर देखना पड़ता है। पेश है देश की भूजल की स्थितियों और संभावनाओं पर आने वाली अध्ययन रिपोर्ट पानी की चिंता बढ़ा रही है। इसका कारण साफ है कि पानी के बगैर जीवन की कल्पना ही नहीं की जा सकती है, पर इसका सबसे बड़ा स्रोत भूजल है और उसमें ही निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। विशेषज्ञ तो कहते हैं कि यदि इस समस्या को न सुलझाया गया तो भविष्य के लिए पानी ही सबसे बड़े खतरे की घंटी है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवों के जीवन का बड़ा आधार पानी ही है। देश में कई क्षेत्रों में तो लोग दूषित व जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।
क्या कहती है अध्ययन रिपोर्ट
भारत जैसे देश के कुछ हिस्सों में लगातार गिरते भूजल स्तर को लेकर जल क्षेत्र की एक प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए वाटर की अध्ययन रिपोर्ट पर यकीन करें तो आने वाले दिनों में भारत में पानी की मांग आपूर्ति के अभी तमाम मौजूदा स्रोतों से बढ़ जाएगी और अगले एक दशक तक भारत दुनिया में पानी की कमी वाला पहला देश बन जाएगा। मसलन आने वाले दस सालों में भारत के बड़े हिस्से में पानी का घोर अकाल होगा और लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस सकते हैं। अध्ययन के अनुसार भारत में सभी स्रोतों के माध्यम से पानी की खपत लगातार बढ़ रही है, जिसके कारण एक दशक बाद तमाम इलाके पानी के गंभीर संकट से गुजरेंगे।
आय के साथ बढ़ी पानी की खपत
अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार प्रत्येक परिवार की बढ़ती आय और उद्योग एवं सर्विस सेक्टर के बढ़ते योगदान की वजह से औद्योगिक और घरेलू सेक्टर में पानी की खपत तेजी से बढ़ रही है। देश में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाला 70 फीसदी और घरेलू इस्तेमाल में लाए जाने वाला 80 फीसदी पानी भूजल से मिलता है, जिसका स्तर लगातार गिरता जा रहा है। ऐसे में फसल उत्पादन पर भी गहरा असर होगा। वहीं वैश्विक शोधकतार्ओं की रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल वार्मिग के कारण सदी के अंत तक सूखे की मौजूदा स्थिति और भयावह हो सकती है। भविष्य में वर्षा की दरों में आए बदलाव और उच्च वाष्पीकरण दर को देखते हुए यह चिंता खतरे की घंटी
में बदल सकती है।
जल पर कानून की जरूरत
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे वीपी सिंह बघेल का कहना है कि देश की सरकार हालांकि जल क्षेत्र में जल प्रबंधन को लेकर चिंतित है और योजनाएं भी बना नही हैं। सरकार को चाहिए कि वह जमीन से पानी निकालने के लिए सख्त कानून बनाने की पहल करते हुए जमीन से पानी निकालने पर टैक्स लगाने का प्रावधान करें। इस कानून में बिजली से चलने वाले पानी के संयंत्रों पर रोक लगाने जैसे भी प्रावधान होने चाहिए। उनका यह भी मत है कि ज्यादा से ज्यादा पानी डिस्चार्ज किया जाए, जिसके लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ज्यादा बेहतर है। वर्ष 1978 से पहले जल आयोग नहीं था। उस समय एक व्यक्ति 50 लीटर पानी खर्च करता था। उस समय आबादी 81 करोड़ थी। अब आबादी 130 करोड़ हो गई है और प्रति व्यक्ति पानी का खर्चा 350 लीटर प्रतिदिन हो गया है। जो पहले से सात गुना अधिक है। वर्ष 1978 में दिल्ली के नजदीक गौतमबुद्ध नगर जैसे जिले में 10 फिट पर पानी मिल जाता था, जहां आज 173 फिट पर भी मुश्किल से पानी मिल पा रहा है।
25May-2015


शनिवार, 23 मई 2015

कानूनों में संशोधन से हो सकेगा बच्चों का सरंक्षण !

विधि आयोग ने सरकार को सौंपी संरक्षण कानून संबन्धी रिपोर्ट
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश में अभिभावकत्व और संरक्षण कानूनों में सुधार के मुद्दे पर विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट केंद्र सरकार को सौंप दी है। आयोग ने इस रिपोर्ट को संरक्षण के मामलों में बच्चों के कल्याण पर फोकस किया है, जिसमें कानूनों में बदलाव करके सुधारात्मक कदम उठाने की सिफारिश की गई है।
विधि मंत्रालय के अनुसार शुक्रवार को भारत के विधि आयोग ने ‘भारत में अभिभावकत्व और संरक्षण कानूनों में सुधार’ के संबन्ध में केंद्रीय विधि एवं न्याय मंत्री डीवी सदानंद गौडा को सौंपी अपनी रिपोर्ट में संरक्षण और अभिभावकत्व के मामले में बच्चों के कल्याण से जुड़े मौजूदा कानूनों में संशोधन करने की सिफारिश की है। वहीं कुछ मामलों में संयुक्त संरक्षण की अवधारणा को विकल्प के तौर पर अपनाने का प्रस्ताव दिया है। रिपोर्ट में तर्क दिया गया है कि तलाक की कार्यवाही और परिवार टूटने की प्रक्रिया में सबसे ज्यादा असर बच्चों पर ही पड़ता है। अधिकांश माता-पिता तलाक के दौरान सौदेबाजी में बच्चों को मोहरे की तरह इस्तेमाल करते हैं। इसलिए बच्चों को महसूस होने वाली भावनाओं और सामाजिक, मानसिक,उतार-चढ़ाव की स्थिति पैदा होती है। आयोग का मानना है कि कानून में कुछ परिवर्तनों के द्वारा असंतुलन की स्थिति को कुछ हद तक सुधारा जा सकता है। कानून के जरिये न्यायालयों को ऐसी पहल करने का काम सौंपा जाना जरूरी है जिससे हर मामले में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित हो सके। अभी तक भारत में अदालतों ने कल्याण के सिद्दांत को मान्यता दी है, लेकिन कानून के कई पहलू और कानूनी ढांचे में इसके मुताबिक बदलाव नहीं हो सके। इसके कारण तलाक और परिवार टूटने के मामलों मे अदालत बच्चों का संरक्षण या पिता के हाथ सौंप देती है। लेकिन बच्चों के कल्याण के लिए संयुक्त संरक्षण पर विचार नहीं किया जाता है। कानून मे असमानता की वजह से ही इस संबंध में होने वाले अदालती फैसलों की समस्याएं बढ़ जाती हैं।
लचीले कानून से बढ़ी समस्या
दरअसल सरकार ने विधि आयोग को संरक्षण अभिभावकत्व से जुड़े कानूनों की समीक्षा करके रिपोर्ट सौंपने का काम सौंपा था। आयोग के अनुसार हिंदू नाबालिग और अभिभावक कानून 1956 में बच्चों के कल्याण को सर्वोपरि माना गया है। लेकिन अभिभावक और उनके बच्चों से जुड़े कानून, 1890 (गार्जियन एंड वार्ड्स,एक्ट 1890) में ऐसा कोई प्रावधान नहीं है। इसी तरह 1956 के कानून में माता को पिता के समान अभिभावक नहीं माना गया है। इसके अलावा संरक्षण की लड़ाइयां सबसे ज्यादा अदालतों लड़ी जाती हैं क्योंकि इस बात पर सहमति या समझ नहीं बन पाती कि आखिर बच्चों का कल्याण है क्या। ऐसे में बच्चों का कल्याण सुनिश्चित करना असंभव हो जाता है। कानूनी ढांचे के तहत भी प्रक्रिया और तरीकों से संबंधित ऐसा कोई निर्देश नहीं है, जिनसे संरक्षण के मामलों को सुलझाया जा सके।
क्या हैं विधि आयोग की सिफारिश
केंद्र सरकार को सौंपी रिपोर्ट में विधि आयोग ने संरक्षण अभिभावकत्व से जुड़े कानूनों गार्जियन एंड वार्ड्स,एक्ट 1890 और हिंदू नाबालिग और अभिभावकत्व कानून 1956 कई संशोधन सुझाएं हैं। ज्यादातर संशोधन गार्जियन एंड वार्ड्स,एक्ट 1890 में सुझाएं गये हैं। इसमें संरक्षण देखभाल से संबंधित समझौतों से जुड़ा एक नया अध्याय प्रस्तावित किया गया है। एक धर्मनिरपेक्ष कानून होने की वजह से पर्सनल लॉ समेत सभी तरह के संरक्षण की सभी कानूनी प्रक्रियाओं में लागू होगा। रिपोर्ट सभी मामलों में बच्चों के कल्याण के उद्देश्य को निर्देशक तत्व के आधार पर है और इसमें पहली बार भारत में संयुक्त संरक्षण और बाल कल्याण के विभिन्न मामलों खासकर बच्चों को मदद, मध्यस्थता प्रक्रिया, लालन पालन से जुड़ी योजना और नाना-नानी या दादा-दादी के पास बच्चों के रहने से जुड़े मामलों जैसी अवधारणाएँ शामिल की गई हैं। बच्चे के 18 साल की उम्र तक उसके पालन पोषण के लिए वित्तीय मदद तय करने का अधिकार अदालत को देने का सुझाव भी दिया गया है। हालांकि मानसिक और शारीरिक निशक्तता के मामले में उम्र सीमा 25 साल तक या इससे ज्यादा तक भी की जा सकती है।
23May-2015

शुक्रवार, 22 मई 2015

पानी पर एमपी व यूपी में बढ़ी तकरार!

-मध्य प्रदेश के अडिग फैसले पर बेबस रही उमा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मध्य प्रदेश सरकार अपने इस फैसले पर अड़िग है कि जब तक यूपी सरकार बाण सागर बांध के रख रखाव की लागत में हिस्सेदारी नहीं देगी, उसके लिए बांध से पानी छोड़ने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। पानी की जंग को खत्म करने के लिए दोनों राज्यों के बीच हुई बैठक की अध्यक्षता कर रही केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी मध्य प्रदेश के फैसले के सामने बेबस नजर आई। बेनतीजा खत्म हुई इस बैठक के बाद अब पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच तकरार और भी बढ़ गई है।यहां नई दिल्ली में केंद्रीय जल बोर्ड और बाणसागर बांध बोर्ड की सर्वोच्च होने के नाते केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती की अध्यक्षता में गुरुवार को दोनों राज्यों के प्रतिनिधियों की बैठक में दोनों राज्यों ने अपने-अपने तर्क रखे। मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से प्रमुख सचिव जल संसाधन राधेश्याम जुलानिया ने मत दिया कि इस मुद्दे पर मई 2013 की बैठक में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार के अधिकारियों ने आम सहमति से तय किया था कि बांध के संचालन और रखरखाव की लगात के खर्चे को तीनों राज्य मिलकर वहन करेंगे। इस करार के तहत बिहार सरकार तो बांध के संचालन और रखरखाव का खर्चा लगातार उठा रहा है, तो बिहार को उसी अनुपात में पानी संग्रहित करके दिया जा रहा है। इसके विपरीत इस समझौते पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई अमल करने का प्रयास नहीं किया, जिसके कारण मध्य प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश के हिस्से के पानी को पिछले एक साल से बाणसागर बांध में संग्रहित नहीं किया जा रहा है। इसलिए उत्तर प्रदेश को पानी देने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। इसके बावजूद छह माह पहले भी मध्य प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश को अपने हिस्से का पैसा देने को कहा, लेकिन कोई दिलचस्पी नहीं ली गई। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रदेश के सिंचाई और जल संसाधन मंत्री शिवपाल यादव ने मध्य प्रदेश के इस दावे को गलत बताते हुए पानी न छोड़ने पर मध्य प्रदेश सरकार पर बाणसागर समझौता -1973 के समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। ऐसे में बिना खर्च दिये यूपी को पानी न देने वाले मध्य प्रदेश के अडिग फैसले के सामने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी, लेकिन इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जल्द ही निर्णय लेने का आश्वासन दिया।
 ऐसे उजागर हुआ विवाद
दरअसल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद उस समय उजागर हुआ, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अधीन केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष से आग्रह किया था कि मध्य प्रदेश सरकार को दो महीने के लिए बाणसागर बांध से सोन नदी में 2000 क्यूसिक पानी छोड़ने का निर्देश जारी किया जाए। इसके लिए यूपी सरकार ने बाणसागर समझौता-1973 का तर्क दिया, जिसके तहत बाणसागर बांध से 10 लाख एकड़ फीट पानी पर उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी बनती है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने बढ़ती गर्मी व बारिश की कमी कि वजह से सोनभद्र व मिजार्पुर जिले में पीने व सिंचाई के लिए पानी का संकट बढ़ने की भी दुहाई दी। आयोग के निर्देश के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस समझौते का तर्क देते हुए यूपी के लिए इसलिए पानी छोड़ने से इंकार कर दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार समझौते के मुताबिक बाणसागर बांध के रखरखाव पर आने वाले खर्चे को साझा करने को राजी नहीं है, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार ने बाणसागर बांध में उत्तर प्रदेश के हिस्से का पानी जमा ही नहीं किया। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश के इस दावे को गलत करार दिया। इसी विवाद को सुलझाने के लिए यूपी के आग्रह पर केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों राज्यों के बीच पानी की इस जंग को समाप्त करने के लिए गुरुवार को बैठक बुलाई, जो बेनतीजा साबित हुई।
 क्या बाण सागर समझौता
मध्य प्रदेश में स्थापित बाण सागर बांध में संग्रहित सोन नदी के संग्रहित होने वाले पानी के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच बंटवारे को लेकर 16 सितंबर 1973 को एक बाणसागर समझौता हुआ था। इस बांध का जिम्मा बाण सागर नियंत्रण बोर्ड के पास है जो केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। इस समझौते के मुताबिक बाणसागर बांध से 10 लाख एकड़ फीट पानी पर उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी बनती है।
 फ्री में पानी लेने पर अड़ा यूपी
मप्र के जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया ने बैठक के बाद हरिभूमि को बताया कि उप्र न केवल लागत में अपने हिस्से के 75 करोड़ रुपए देने को राजी है बल्कि वह अपने हिस्से में नहरों का मेंटनेंस भी नहीं कर रहा है। इसके बावजूद वह सिंचाई के लिए पानी की मांग कर रहा है। पिछले साल तीन चार दिन सिंचाई के लिए पानी दिया गया था, लेकिन उप्र का नहर सिस्टम बेहद बदहाल है, ऐसे में पानी की बर्बादी के लिए वह भी बिना पैसा लिए कैसे पानी दिया जा सकता है। करीब दो लाख आबादी और इतने ही जानवरों के लिए बाणसागर बांध से मुफ्त पानी ले रहा उत्तरप्रदेश सिंचाई के लिए भी इस बांध से मुफ्त पानी लेने पर अड़ा है।
दिल्ली में मप्र और उप्र के प्रमुख सचिवों में तीखी बहस
मध्यप्रदेश सरकार ने भी दो टूक कह दिया है कि जब तक बांध की लागत के 75 करोड़ और मेंटेनेंस तथा मैनेजमेंट की लागत में अपना हिस्सा नहीं देगा, उप्र को सिंचाई के लिए पानी नहीं दिया जाएगा। गुरुवार को नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की मौजूदगी में हुई बैठक में उप्र के प्रमुख सचिव दीपक सिंघल और मप्र के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया के बीच तीखी बहस भी हुई। बाणसागर बांध से पेयजल और सिंचाई जल की सुविधा मप्र, उप्र और बिहार के बीच समझौता हुआ था। बिहार और मप्र तो समझौते का पालन कर रहे हैं लेकिन उप्र लगातार इसका उल्लंघन कर रहा है। करीब छह महीने पहले नवंबर 2014 में हुई बैठक में भी उप्र ने अपने हिस्से के 75 करोड़ रुपए देने से साफ इंकार कर दिया था। इसके बावजूद मप्र ने मानवीय आधार पर करीब दो लाख आबादी और जानवरों को पीने के लिए पानी देना बंद नहीं किया था। सिंचाई के लिए पानी देने से न केवल इंकार कर दिया था, बल्कि उप्र के हिस्से के पानी का बांध में भंडारण भी नहीं किया गया। पेयजल के लिए प्रतिदिन 200 से 250 क्यूसेक पानी उप्र को देना जारी रखा गया है।
बाणसागर बांध पर त्रिपक्षीय बैठक में नहीं हो सकी कोई प्रगति
नई दिल्ली। बाणसागर बांध से पानी छोडेÞ जाने को लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच जारी विवाद को हल करने के लिए केंद्र द्वारा गुरुवार को बुलाई गई त्रिपक्षीय बैठक में कोई प्रगति नहीं हुयी क्योंकि कई लंबित मुद्दों का समाधान नहीं निकल सका।  दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं हुए और उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से यहां मुलाकात की और बांध से तुरंत पानी छोड़े जाने के लिए मध्य प्रदेश को निर्देश दिए जाने की मांग की।सूत्रों ने बताया कि दोनों प्रदेशों के जल संसाधन विभागों के अधिकारियों ने केंद्रीय जल संसाधन सचिव के साथ यहां बैठक की। एक अधिकारी ने बताया कि दोनों राज्यों के बीच अंतर - मंत्रालयी बैठक नहीं हो सकी क्योंकि कई लंबित मुद्दों को पहले हल किए जाने की जरूरत है। इसलिए अधिकारी स्तर पर ऐसे मुद्दों के हल होने के बाद मंत्रियों की बातचीत हो सकती है।
22May-2015

गुरुवार, 21 मई 2015

सालभर की रिपोर्ट में भारी पड़ सकते हैं गडकरी !

रोजाना तीस किमी सड़क बनाने के लक्ष्य पर बढ़े कदम
-तीन लाख करोड़ की परियोजनाओं का ठेका देगी सरकार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में देश में सड़कों का जाल बिछाने की परियोजनाओं में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय की वार्षिक रिपोर्ट अन्य मंत्रालयों पर भारी पड़ सकती है, जिसमें मंत्रालय ने सड़क निर्माण में तेजी लाने का दावा किया है।
सरकार ने प्रतिदिन 30 किमी सड़क बनाने के लक्ष्य को हासिल करने के लिए राजमार्ग निर्माण की गति बढ़ाने पर आगे बढ़ी है। इसके लिए सरकार ने इस साल के भीतर तीस लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं के लिए ठेका देने की योजना बनाई है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार सरकार देश में ढांचागत विकास को गति देने के इरादे और सत्ता संभालते ही देश में प्रतिदिन 30 किमी सड़क निर्माण करने के लक्ष्य को हासिल करने के प्रसास तेज कर दिये हैं। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने सड़क परियोजनाओं के लक्ष्य को पूरा करने के लिए दो साल के भीतर तीस किमी सड़क निर्माण का लक्ष्य हासिल करने का दावा किया था। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने एक साल में ईपीसी माडल के तहत 5 हजार किलोमीटर सड़कों का निर्माण पूरा किया है। सड़क क्षेत्र में मंजूर 100 प्रतिशत एफडीआई के बावजूद हालांकि फिलहाल निवेश अपेक्षा के विपरीत है, लेकिन सरकार ने इस पांच हजार किलोमीटर के लक्ष्य को करीब एक लाख करोड़ की लागत पर हासिल किया है। जहां तक 30 किमी रोजना सड़क बनाने का सवाल है उसी लक्ष्य को हासिल करने के लिए सरकार ने इस साल तीन लाख करोड़ रुपये की सड़क परियोजनाओं को पूरा कराने के लिए ठेका देने की योजना बनाई है। मंत्रालय के अनुसार देश में पिछले तीन साल में मंजूर हुई 1427 सड़क परियोजनाओं की समीक्षा करने के बाद 57 परियोजनाओं को निरस्त किया गया और 101 विवादों में उलझी हुई हैं। बाकी 1269 सड़क परियोजनाओं में से पूर्ववर्ती सरकार की अटकी सौ से ज्यादा परियोजनाओं को भी इस साल गति दी गई है। जब मोदी सरकार ने वर्ष 2014-15 में देश में 6300 किमी सड़कों के निर्माण का लक्ष्य तय किया था, जिसमें 12 किमी प्रतिदिन के हिसाब से पांच हजार किमी सड़क निमार्ण का कार्य पूरा किया जा चुका है। मंत्रालय का दावा है कि मई के अंत तक यह लक्ष्य 14 किमी निर्माण प्रतिदिन तक हो जाएगा। जबकि मोदी सरकार के सत्ता संभालने के समय प्रतिदिन दो किमी सड़क का ही निर्माण किया जा रहा था। माना जा रहा है मोदी सरकार के एक साल की उपलब्धियों में गडकरी के मंत्रालय की रिपोर्ट अन्य मंत्रालयों पर भारी पड़ने वाली है।
चार धाम की परियोजना तैयार
मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार ने यमुनोत्री, गंगोत्री, केदारनाथ और बद्रीनाथ को जोड़ने के लिए एक हजार किलोमीटर की चार धाम यात्रा परियोजना शुरू करने की योजना तैयार की है जिस पर 11 हजार करोड़ रुपये की धनराशि खर्च होने का अनुमान है। इस योजना का शुभारंभ दशहरा के दौरान प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी करेंगे। यह परियोजना सरकार की राष्ट्रीय राजमार्गों के उन्नयन व विस्तार की योजनाओं के अलावा शुरू होगी। इसके अलावा सड़क मंत्रालय ने ‘भारत माला’ नामक सरकार की नयी योजना पर 50 हजार करोड़ की लागत आएगी, जिसमें सरकार देश के सीमावर्ती व तटीय क्षेत्रों को पांच हजार किलोमीटर की सड़क से जोड़ने की योजना तैयार हो चुकी है।
राजधानी में भी दिखेगी धमक
मंत्रालय के अनुसर राष्टÑीय राजधानी दिल्ली में भीड़भाड़ कम करने के लिए जल्द ही छह हजार करोड़ रुपये की पूर्वी बाइपास परियोजना पर काम भी जल्द शुरू किया जाएगा। जबकि दिल्ली मध्य में आईटीओ से उत्तर प्रदेश में डासना तक 16 लेन के राजमार्ग  पर तीन महीने में काम शुरू करने की योजना तैयार है। इस परियोयजना से राष्ट्रीय राजमार्ग-24 पर यातायात जाम दूर करने में मदद मिलेगी। इस परियोजना पर करीब चार से पांच हजार करोड़़ रुपये की लागत आने की उम्मीद है।
21May-2016

बुधवार, 20 मई 2015

नए पैमाने पर बढ़ सकती है गरीबों की तादाद!


-गरीबी की समस्या से निपटने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार पर अमीर हितैषी होने के आरोप से घिरी सरकार गरीबी की समस्या से निपटने के लिए गरीबों के पैमाने में बदलाव करने में जुटी है। हालांकि सरकार गरीबी के जिस पैमाने पर काम कर रही है उसमें देश में गरीबी का आंकड़ा बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने हर पांच साल में सामाजिक आंकड़े पेश करने वाले राष्‍ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन यानि के 2011 के आंकड़ों को आधार बनाकर गरीबी के पैमाना तय करने पर पिछले कई माह से काम शुरू कर दिया था। गरीबी की नई परिभाषा के लिए सरकार ने एक रोडमैप तैयार करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय कार्यबल का गठन किया था, जिसका नई परिभाषा के लिए कार्य जारी है। विश्लेषकों के अनुसार अमीरों के हितैषी के आरोपों को झुठलाने के लिए मोदी सरकार गरीबी समर्थक छवि पैदा करने के लिए गरीबी की नई परिभाषा में गरीबों की संख्या बढ़ाने के फार्मूले पर काम कर रही है। सूत्रों के अनुसार सरकार यूपीए सरकार के प्रति व्यक्ति खर्च के पैमाने को घटा सकती है, जिससे गरीबों की संख्या बढ़ना तय है। एक अनुमान के अनुसार देश में सवा सौ करोड़ की आबादी में मोदी सरकार के प्रस्तावित पैमाने से गरीबों की संख्या 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। जबकि यूपीए शासन काल में अंतरिम रूप से जारी किये गये आंकड़ों में गरीबों की संख्या 30 प्रतिशत थी। विश्लेषकों के मुताबिक गरीबी की संख्या बढ़ने का सरकार की गरीबी की समस्या से निपटने के लिए अपनाई जा रही रणनीति से राजनीतिक तौर से फायदा हो सकता है। ऐसा करने से विपक्षी दलों से अमीर हितैषी होने के आरोप को भी सरकार आराम से झुठला सकती है।
मजाक नहीं उड़ने देगी सरकार
दरअसल मोदी सरकार गरीबों को लेकर उस रणनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जिसमें सितंबर 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा शपथ पत्र देकर गरीबी का मजाक उड़ाने पर फजीहत का सामना करना पड़ा था। मसलन यूपीए सरकार ने वर्ष 2010-11 में मुद्रास्फीति को आधार वर्ष मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये एक शपथ पत्र में गरीबी रेखा के जिस पैमाने को शहरी व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 32 रुपये और गांव में प्रतिदिन 26 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीब ही नहीं माना। इस पैमाने पर फजीहत होने के बाद सरकार की गठित सुरेश तेंदुलकर कमेटी ने वर्ष 2011-12 की रिपोर्ट में ग्रामीण इलाकों में 27 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 33 रुपये प्रति व्यक्ति दैनिक खर्च के पैमाने से नीचे गुजर-बसर करने वालों को गरीब माना था, जो देश में 22 प्रतिशत गरीबी का आंकड़ा बताता नजर आया। इस पर भी बवाल हुआ। आखिर यूपीए सरकार को तेंदुलकर रिपोर्ट की समीक्षा के लिए सी. रंगराजन कमेटी बनानी पड़ी, जिसने ग्रामीण इलाकों के लिए इस पैमाने को क्रमश: बढ़ाकर 32 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 47 रुपये तक सीमित किया। इस आधार पर देश में गरीबों की तादाद 30 प्रतिशत तक पहुंची। जबकि मोदी सरकार ने रंगराजन समिति की समीक्षा रिपोर्ट को स्वीकार करने के बजाए अलग से अपने फार्मूले पर गरीबी का पैमाना तैयार करके गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया।
फार्मूले पर जारी मंथन
मोदी सरकार के फार्मूले पर कार्य कर रहे कार्यबल ने अभी सरकार को अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है जिसका मंथन जारी है। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों हुई बैठक में जिन कदमों पर विचार किया गया है उसमें एनएसएसओ के आंकड़े के आधार पर उस फार्मूले पर लगभग आम सहमति बन गई है जिससे देश की आबादी में गरीबों की संख्या आंकड़ों में पहले से कहीं ज्यादा नजर आएगी। कार्यबल को सरकार ने यह पता लगाने का काम भी सौंपा है कि सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का फायदा गरीबों को मिल पा रहा है या नहीं और कैसे मिल सकता है। इस फार्मूले से सरकार उस विवाद से भी बच जाएगी जिसमें दैनिक प्रति व्यक्ति खर्च के आधार पर गरीबी की रेखा तय करने से पहले पैदा हो चुका है। सूत्रों के अनुसार माना जा रहा है कि गरीबी का पैमाना तय करने के लिए अपनाए जा रहे फार्मूले से देश में सवा सौ करोड़ की आबादी में गरीबों की संख्या 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक तक पहुंच सकती है।
20May-2015

मंगलवार, 19 मई 2015

विमानन क्षेत्र में बेदम मोदी सरकार का एक साल!

नई नीति समेत कई योजनाओं पर नहीं हो सका निर्णय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की राजग सरकार एक साल की उपलब्धियों का रिपोर्ट कार्ड पेश करने वाली है। मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल में उपलब्धियों के नाम पर विमानन क्षेत्र के पास खुशी मनाने के लिए कुछ खास नहीं हैं। मसलन दावों के बावजूद नागर विमानन मंत्रालय की नई विमानन नीति समेत ज्यादातर योजनाएं अभी तक अटकी हुई हैं।
मोदी सरकार के एक साल पूरा होने पर वैसे तो रिपोर्ट कार्ड पीएमओ भेजने के फरमान को लेकर कई विभागों के मंत्रियों के हाथ- पांव फूले हुए हैं। इनमें विमानन मंत्रालय के पास उपलब्धियों के नाम पर फिलहाल कुछ पेश करने के लिए खास नहीं है। इसलिए अन्य मंत्रालयों से कहीं ज्यादा विमानन मंत्रालय के अधिकारी तनाव में हैं। केंद्रीय नागर विमानन मंत्री ने गत दस नवंबर 14 को क्षेत्रीय हवाई संपर्क बढ़ाने के लिए छोटी एयरलाइनों को बढ़ावा देने और नई एयरलाइनों के अंतरराष्ट्रीय उड़ानें शुरू करने के लिए 5/20 नियम को खत्म करने जैसे प्रस्ताव को लेकर एक नई विमानन नीति का मसौदा जारी किया था, लेकिन भी तक इस पर भी सरकार अंतिम निर्णय नहीं कर सकी। जबकि नागर विमानन राज्य मंत्री डा. महेश शर्मा ने पिछले दिनों ही कहा था कि 15 मई तक नई नागर विमानन नीति को जारी कर दिया जाएगा। सबसे बड़ी दिलचस्प बात है कि पिछली संप्रग सरकार ने भी नई विमानन नीति में इस नियम को समाप्त करने के संकेत दिए थे। हालांकि नई नीति लाने से पहले संप्रग सरकार को सत्ता से हाथ धोना पड़ा। अब नई सरकार इस नियम को समाप्त करने को कृतसंकल्प है। इस नई नीति में ही विमानन क्षेत्र की कई परियोजनाएं शामिल है, जिसके कारण सभी लटकी हुई हैं।
नई नीति में अटकी परियोजनाएं
राष्ट्रीय विमानन नीति के जिस मसौदे को मंत्रालय छह माह बाद भी अंतिम रूप नहीं दे सका है उसमें मंत्रालय को अभी तक 5/20 रूल को खत्म करने में अब तक कामयाबी नहीं मिली है। वहीं ब्यूरो आॅफ सिविल एविएशन सिक्यूरिटी (बीसीएएस) में तीन साल से लंबित मुख्यिा समेत अन्य स्टाफ की कमी भी ज्यों की त्यों बरकरार है। इसी प्रकार सरकार के दावों के बावजूद एयर इंडिया की आर्थिक सहेत का इलाज भी लाइलाज की तरफ बढ़ता दिख रहा है। एयर इंडिया के पायलटों व क्रू सदस्यों के व्यवहार को लेकर बढ़ती शिकायतें भी मुश्किलें पैदा कर रही हैं। यहां तक कि सरकार द्वारा पुनरुद्धार के लिए जारी पैकेज को भी एयर इंडिया कार्ययोजना का रूप नहीं दे पाई है। सरकार के ठोस उपाय करने की घोषणाओं में नई विमानन नीति, भरतीय विमानन कंपनियों के विदेशी परिचालन पर रोक हटाने, सार्वजनिक क्षेत्र की एएआई व पवन हंस को कंपनी बनाने, वायु नौवहन सेवाओं का सृजन करने और हवाई अड्डों का निजीकरण के अलावा एयर इंडिया की हालत को सुधार करने जैसी घोषणाएं की थी। जिनमें से सरकार किसी को अंतिम रूप नहीं दे पायी है। यही नहीं मंत्रालय की देश में छोटे शहरों में एयर पोर्ट और नॉन मैट्रो की योजना पर भी एयरपोर्ट अथोरिटी अटकी हुई है।
नई विमानन नीति के खास प्रावधान
मोदी सरकार ने नई विमानन नीति में प्रोत्साहनकारी उपाय करने का दावा किया है, जिसके तहत नए हवाई अड्डों की स्थापना में करों से छूट देने के साथ ही छोटे शहरों के लिए उड़ाने भरने वाली एयरलाइनों को एयरपोर्ट शुल्क, पार्किंग शुल्क आदि में राहत देने के प्रावधान भी शामिल है। सरकारी नियंत्रण वाली एयर इंडिया की उड़ानों को घाटे से मुक्त करने और अन्य सुधारात्मक उपाय भी इस नई नीति में शामिल होने का दावा सरकार करती आ रही है। वहीं नई नीति में हेलीकाप्टर व सीप्लेन जैसी पर्यटन को बढ़ावा देने वाली सेवाओं को प्रोत्साहन देने के भी प्रावधान हैं। सरकार ने संप्रग सरकार के छह हवाई अड्डों के निजीकरण के प्रस्ताव मेंं प्रक्रिया को आसान बनाने की स्पष्टता को गति देने जैसे प्रावधानों को इस नीति में शामिल किया है। वहीं विमानों की उड़ान सुरक्षा को लेकर भी कठोर कदम बढ़ाने का प्रयास किया जाना है।
क्या कहते हैं विशेषज्ञ
भारत में एरोस्पेस व रक्षा के भागीदार व प्रमुख अंबर दूबे की माने तो भारती विमानन उद्यो को मोदी सरकार से काफी उम्मीदें थी। लेकिन एक साल बाद भी कुछ खास नहीं हुआ। हालांकि सरकार की मंशा बेहतर करने की है। नागर विमानन मंत्री अशोक गजपति राजू ने पिछले साल 29 मई को पदभार संभालते ही कहा था कि हम खिलाड़ियों को समान अवसर उपलब्ध कराएंगे और विमानन क्षेत्रों को लोगों के अधिकअनुकूल बनाएंगे। सिडनी के विमानन क्षेत्र के शोध संस्थान सेंटर फर एशिया पैसिफिक एविएशन में इंडिया प्रमुख कपिल कौल का कहना है कि विमानन उद्योग नए बदलाव वाली नीति व स्पष्ट रणनीतिक रूपरेखा का इंतजार कर रहा है, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई सकारात्मक नतीजा पेश नहीं किया गया।
19May-2015

सोमवार, 18 मई 2015

नई व्यवस्था के तहत होंगे बिहार के चुनाव!

-चुनाव सुधार की ओर बढ़ा चुनाव आयोग
-आयोग ने सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराने के दिये संकेत
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
बिहार में इस साल होने वाले विधानसभा चुनाव की तैयारियों में हालांकि सभी राजनीतिक दलों ने अपनी बिसात बिछाना शुरू कर दिया है। सितंबर-अक्टूबर में चुनाव कराने के केंद्रीय निर्वाचन आयोग के संकेत हैं, जिसमें आयोग राज्य के पुरानी सियासी इतिहास के मद्देनजर नई व्यवस्था को लागू करके निष्पक्ष चुनाव कराने की तैयारी में है।
बिहार में मौजूदा विधानसभा का कार्यकाल 23 नवंबर को खत्म हो रहा है। आयोग इससे पहले नई सरकार का गठन कराने के लिए नए विधानसभा चुनाव कराने की प्रक्रिया को पूरा कराना चाहता है। बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर हालांकि सभी राजनीतिक दलों ने कमर सकते हुए अपनी तैयारियों को पहले से अंजाम देते हुए रणनीतियों का तानाबाना बुनना शुरू कर दिया है। वहीं रविवार को मुख्य चुनाव आयुक्त डा. नसीम जैदी ने इस साल सितंबर-अक्टूबर में बिहार के चुनाव कराने के संकेत देकर सूबे के सियासी पारे को बढ़ा दिया है। चुनाव आयोग के अनुसार बिहार में इस साल प्रस्तावित विधानसभा चुनाव सितंबर-अक्टूबर में कराने पर विचार किया जा रहा है। इसके लिए पहले मौसम की स्थिति, त्यौहारों, परीक्षाओं, छुट्टियों, भारी मानसून, भारी बारिश, बाढ़ को ध्यान में रखना भी जरूरी है। उसी आधार पर चुनाव के चरणों को भी अंतिम रूप दिया जाएगा। जैदी ने यह बताने से इनकार कर दिया कि चुनाव कितने चरण में कराए जाएंगे। सूत्रों के अनुसार चुनाव आयोग बिहार में सियासत की पुराने इतिहास को भी खंगाल रहा है, जिसके कारण आयोग चुनाव आयोग द्वारा चुनाव सुधार की दिशा में तैयार की गई नई व्यवस्था को लागू करने का भी फैसला किया है। मसलन आयोग चुनावी खर्च पर शिकंजा कसते हुए राज्य में निष्पक्ष चुनाव कराने के इरादे से अपनी तैयारी को अंजाम देगा। सूत्रों के अनुसार आयोग बिहार में बाहुबल और धनबल की परंपरा को ध्वस्त करने के लिए इस बार चुनाव में ज्यादा से ज्यादा केंद्रीय सुरक्षा बलों की फौज उतारने पर विचार कर रहा है। हालांकि कुछ कानूनी संशोधन कानून मंत्रालय से अभी आने बाकी हैं। लेकिन आयोग ने अपनी शक्तियों के अंतर्गत व्यय निगरानी प्रणाली शुरू कर दी है।
इस बार दिलचस्प होंगे चुनाव?
बिहार विधानसभा के इस साल होने वाले चुनाव पिछले चुनावों से कहीं अलग ही नजर आएंगे। दरअसल नीतीश की पार्टी जदयू और भाजपा की राहें 17 साल बाद अलग हो जाने के बाद ये पहला विधानसभा चुनाव है। जब जदयू और भाजपा का गठंबधन टूटा तो धुरविरोधी लालू-नीतीश के इतने करीब आ गए और दोनों के बीच सैद्धांतिक रुप से पार्टी के विलय होने पर करार हो चुका है। यानी इस साल चुनाव में जदूयू-राजद के सामने भाजपा होगी। वहीं भाजपा के रथ रोकने के इरादे से दिलचस्प बात यह है कि सत्ताधारी दल जद-यू और राजद जिन्हें एक दूसरे का धुर प्रतिद्वंद्वी माना जाता रहा है, वे गठबंधन के साथ चुनाव मैदान में उतरने की तैयारी कर चुके है। पिछले छह साल से जनता परिवार को एकजुट करने के नाम पर एक संयुक्त राजनीतिक दल की राह अभी बाकी है, लेकिन इन दोनों दलों में चुनावी गठजोड़ लगभग पूरा हो चुका है।
क्या है विधानसभा में दलीय स्थिति?
बिहार विधानसभा की 243 सदस्यों में से अभी 11 सीट अभी खाली हैं। सदन में भाजपा के 86 विधायक हैं। जबकि जदयू के 110, राजद के 24, कांग्रेस के 5, लोजपा के तीन, सीपीआई का एक और 6 निर्दलीय विधायक हैं।
18May-2015

रविवार, 17 मई 2015

संसद में नौ साल से मौन हैं ये माननीय!

जनता की अपेक्षाओं से कोसो दूर सांसद
ओ.पी. पाल,
नई दिल्ली।
भारतीय राजनीति में अपने सांसदों या विधायकों से जनता को क्षेत्र व जनहित के मुद्दे उठाने की अपेक्षाएं रहती हैं, लेकिन उच्च सदन में एक ऐसे सांसद भी हैं जिन्होंने पार्टी मुख्यिा से नजदीकियों की वजह से राज्यसभा में दूसरा कार्यकाल भी हासिल कर लिया, लेकिन उच्च सदन में लगातार नौ साल से उत्तर प्रदेश की जनता का प्रतिनिधित्व करते आ रहे ये माननीय पूरी तरह से मौन हैं। मसलन इन्होंने सदन में न तो कोई सवाल ही किये और न ही किसी चर्चा में हिस्सा लिया।
देश की सर्वोच्च पंचायत कही जाने वाली संसद और वह भी उच्च सदन में बसपा प्रमुख मायावती की मेहरबानी से उत्तर प्रदेश से राज्यसभा में अपने दूसरे कार्यकाल में राज्य का प्रतिनिधित्व कर रहे बसपा सांसद मुनकाद अली को मौनी बाबा की संज्ञा दी जाए तो कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी। मसलन अपने पहले छह साल और दूसरे कार्यकाल में तीन वर्ष के नजदीक पहुंचे बसपा सांसद मुनकाद अली उच्च सदन में पूरी तरह से मौन है। उच्च सदन में ये ऐसे अकेले माननीय हैं जिन्होंने अपने नौ साल के कार्यकाल में न तो कभी सदन में किसी लोकमहत्व या अन्य किसी मुद्दे पर जनता की आवाज को बुलंद करने का प्रयास किया और न ही कोई सवाल
उठाया। यह भी दिलचस्प बात है कि दूसरे कार्यकाल में उच्च सदन में उपस्थिति के लिहाज से इस माननीय की हाजिरी अपनी नेता मायावती के बराबर ही है। शायद यह इसलिए कि वह सदन में उसी दिन प्रवेश करते हैं जिस दिन बसपा प्रमुख मायावती भी संसद आती हैं। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के मेरठ के नजदीक कस्बा किठौर निवासी मुनकाद अली बसपा के ऐसे भाग्यशाली नेता हैं जिन पर उत्तर प्रदेश मे राजनीति की प्रमुख धुरी माने जानी वाली बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती अगर किसी पर ज्यादा विश्वास करती हैं। तभी तो अपै्रल 2006 में मायावती ने इन माननीय को राज्य की राजनीत से उठाकर केंद्रीय राजनीति में लाकर राज्यसभा भेज दिया था। मायावती के इस फैसले से पार्टी के अन्य नेताओं को भी हैरानी हुई थी। यही नहीं उन्हें दूसरा कार्यकाल भी दे दिया गया। संसद के उच्च सदन कहे जाने वाली राज्यसभा देशभर के 245 सदस्य हैं, जिसमें बसपा के मायावती समेत बसपा के 10 सदस्य हैं। बसपा सदस्यों में मुनकाद का दूसरा कार्यकाल अप्रैल 2018 तक है। संसद के गलियारे में कुछ नेता तो इन माननीय को मौनी बाबा सांसद की संज्ञा देते सुने गये हैं। सूत्रों के अनुसार संसद की जिन समितियों के मुनकाद अली सदस्य रहे हैं उनकी बैठकों में भी वे कुछ बोलने का प्रयास नहीं करते।
यहां भी पदासीन  हैं माननीय
जब अप्रैल 2006 में पहली बार मुनकाद अली राज्य सभा के लिए निर्वाचित हुए तो उन्हें संसदीय परंपरा के तहत अप्रैल 2006-मई 2007 तक कृषि और ग्रामीण उद्योग मंत्रालय तथा लघु उद्योग मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति का सदस्य बनाया गया। इसके बाद मई 2007-मई 2009 तक वे सुक्ष्म, लघु और मध्यम उद्यम मंत्रालय की परामर्शदात्री समिति के सदस्य रहे। जनवरी 2009-मई 2009 और अगस्त 2009 और फिर अगस्त 2011 में रक्षा संबंधी समिति के सदस्य बने। अगस्त 2010-दिसंबर 2011 के बीच वे वक्फ (संशोधन) विधेयक-2010 संबंधी प्रवर समिति के सदस्य तथा अगस्त 2010 से फिर कृषि मंत्रालय हेतु परामर्शदात्री समिति के सदस्य बने। अप्रैल 2012 में फिर से राज्य सभा के लिए निर्वाचित होकर आए तो उन्हें मई 2012 से ग्रामीण विकास संबंधी समिति का सदस्य बनाया गया। हाल ही में संपन्न हुए सत्र में जीएसटी विधेयक पर बनी प्रवर समिति में भी मुनकाद अली को सदस्य के तौर पर शामिल किया गया है।
17May-2015


शनिवार, 16 मई 2015

इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली से जुड़ेंगे देशभर के टोल प्लाजा !

-जल्द ही आधुनिक प्रणाली से युक्त होंगे नेशनल हाइवे
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
मोदी सरकार के विकास के एजेंडे में सड़कों के निर्माण के साथ टोल प्लाजा के कारण वहानों की आवाजाही में होने वाली समस्याआ का समाधान भी शामिल है। केंद्र सरकार की टोल प्लाजा पर संग्रह की प्रणाली को इलेक्ट्रॉनिक करने की कवायद को आगे बढ़ाते हुए सरकार ने दावा किया है कि इसी साल के भीतर 300 टोल प्लाजा पर इलेक्ट्रानिक टोल संग्रह प्रणाली लागू कर दी जाएगी।
केन्द्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने राष्‍ट्रीय राजमार्गो और अन्य प्रमुख मार्गो पर आमजन की आवाजाही को सरल और सुलभ बनाने के लिए कई महत्वपूर्ण कदम उठाये हैं। टोल प्लाजा पर टोल संग्रह के कारण लगने वाले वाहनों के जाम की समस्या को खत्म करने के लिए सरकार ने देशभर के टोल प्लाजा को इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली से जोड़ने की योजना को कार्यान्वित किया है। मंत्रालय के अनुसार दिल्ली-मंबई मार्ग पर पहले से ही इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली लागू हो चुकी है और इसी साल के भीतर देश के सभी 300 टोल प्लाजा पर इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली लागू हो जाएगी। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने सड़कों का उपयोग करने वाले आमजनों के सफर को सुलभ और आरामदेह बनाने की दिशा में कई आधुनिक योजनाओं को भी शुरू किया है। अन्य योजनाओं में खासकर राष्‍ट्रीय राजमार्गो पर बने टोल प्लाजा को सीसीटीवी निगरानी प्रणाली,स्वचालित यातायात काउंटर एवं वर्गीकारक (एटीसीसी) प्रणालियां और ई-टेंडरिंग जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस किया जा रहा है। इसके अलावा वे-इन मोशन ब्रिज (डब्ल्यूआईएम), स्वचालित वाहन काउंटर एवं वगीर्कारक (एवीसीसी) प्रणाली भी लागू करने योजनाओं पर काम चल रहा है।  
वेब पोर्टल से मिलेगी जानकारी
मंत्रालय के अनुसार देशभर में आम सड़क उपयोगकतार्ओं के हित में सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय द्वारा उठाए जा रहे कदमों में केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने पिछले दिनों एक वेब पोर्टल  http://www.nhtis.org शुरू किया था। इसका मकसद राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थापित टोल प्लाजा के बारे में आने जाने वाले वाहन चालकों को टोल संग्रह और अन्य जानकारी हासिल कराना है। इसके जरिए वाहन चालकों को वसूले जाने वाले टोल शुल्क की दरों की सूचनाएं भी मिल सकेगी, जिसे कोई भी आमजन इस वेब पोर्टल का उपयोग कर मोबाइल फोन और एसएमएस के जरिए सूचनाएं हासिल कर सकता है।  
ड्राइविंग परीक्षण प्रणाली  
मंत्रालय के अनुसार टोल को इलेक्ट्रॉनिक प्रणाली लागू होने से टोल प्लाजा पर मानवीय दखलंदाजी कम करने और ड्राइवरों के परीक्षण की प्रणाली को कठोर एवं पारदर्शी बनाने के लिए पुणे स्थित सीआईआरटी ने कैमरा आधारित स्वचालित ड्राइविंग परीक्ष प्रणाली, जिसे अनोखी ड्राइविंग परीक्षण प्रणाली (आईडीटीएस) के रूप में भी जाना जाता है को विकसित किया है। इस प्रणाली में ड्राइविंग के परीक्षण की निष्पक्ष एवं पारदर्शी व्यवस्था है। इस प्रणाली के तहत महाराष्ट्र सरकार के मोटर वाहन विभाग ने ड्राइविंग लाइसेंस पाने के इच्छुक लोगों को लाइसेंस देना शुरू कर दिया है। इस प्रणाली के कारगर साबित होने से अब चंडीगढ़ प्रशासन की मांग पर पुणे की एक ईकाई चंडीगढ़ में भी स्थापित की जा रही है। अन्य राज्यों में भी इसका विस्तार किया जाएगा। यह प्रणाली गड़बड़ियां रोकने और लाइसेंस पाने की इच्छा रखने वालों को कारगर एवं पारदर्शी सेवाएं मुहैया कराने में उपयोगी साबित होगी।  
16May-2015



शुक्रवार, 15 मई 2015

सरकार व विपक्ष की तल्खी का सबब बना बजट सत्र !

-विपक्ष की एकजुटता से कई महत्वपूर्ण काम लटके
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद का बजट सत्र के दौरान सरकार और एकजुट विपक्ष की तल्खी का ही नतीजा रहा है कि मोदी सरकार भूमि अधिग्रहण विधेयक को दो प्रयासों के बावजूद संसद में पारित नहीं करा सकी। वहीं सरकार के महत्वाकांक्षी वाले जीएसटी विधेयक जैसे केई महत्वपूर्ण विधेयक लटक गये हैं। बावजूद इसके सरकार इस मौजूदा सत्र मेंं हुए कामकाज को पिछले कुछ सालों से बेहतर मान रही है।
लोकसभा में बजट सत्र और राज्यसभा के 235वें सत्र के अनिश्चितकाल के लिए स्थगित होने से पहले तक कांग्रेस की अगुवाई में विपक्ष की एकजुटता के सामने सरकार विवादित भूमि अधिग्रहण विधेयक और जीएसटी को प्रयासों के बावजूद संसद की स्वीकृति हासिल नहीं कर सकी। इन दोनों बिलों पर सरकार को विपक्ष की एकजुटता के सामने झुकना पड़ा। नतीजन भूमि अधिग्रहण विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति और लोकसभा में पारित कराने के बाद वस्तु एवं सेवा कर में संविधान संशोधन के प्रावधान वाला जीएसटी विधेयक राज्यसभा में प्रवर समिति के हवाले करना पड़ा। सरकार विपक्ष की एकजुटता के कारण सत्ता और विपक्ष के बीच बजट सत्र के दौरान बनी रही तल्खी से पार नहीं पा सकी। सरकार और विपक्ष की तल्खी का सबब साबित हुए बजट सत्र के दौरान लोकसभा में सरकार ने 25 विधेयक पेश किये, इसमें बजट सत्र के पहले चरण में विरोध के बावजूद नौ संशोधनों के सथ भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित हो गया था, लेकिन दूसरे चरण में सरकार को यूटर्न लेते हुए इसे जेपीसी को भेजने के लिए मजबूर होना पड़ा। उधर राज्यसभा के 235वें सत्र में 12 विधेयक पारित हुए, जिनमें एक निजी विधेयक भी शामिल रहा। बजट सत्र के पहले चरण के दौरान राज्यसभा के 234वें सत्र में भी 12 विधेयक पारित किये गये थे। चूंकि बजट सत्र के दौरान राज्यसभा के इस सत्र का सत्रावसान हो गया था, इसलिए लोकसभा के बजट सत्र की अपेक्षा राज्यसभा के दो सत्र माने जाएंगे। यदि संसद के बजट सत्र के दौरान राज्यसभा के दोनों सत्रों को मिलाकर देखा जाए तो उच्च सदन में भी 24 विधेयक पारित किये गये हैं। इस तरह से संसद में बजट सत्र के दौरान दोनों सदनों में 24 विधेयक पारित हुए हैं। इसके अलावा इस दौरान दोनों सदनों ने आम बजट व रेल बजट और विभिन्न मंत्रालयों की लेखानुदानों की मांगों को मंजूरी देने के साथ 2015-16 के आम बजट को पारित किया।
सरकार ने ठोकी पीठ
संसद के मौजूदा सत्र में विपक्ष के साथ तनातनी के बावजूद विधायी कार्यो को निपटाने के माममले में सरकार ने अपनी पीठ ठोकी है। संसदीय कार्यमंत्री एम. वेंकैया नायडू ने मौजूदा लोकसभा और राज्यसभा के 235वें सत्र के बेमियादी स्थगन के बाद दावा किया है कि संसद का यह सत्र पिछले कुछ सालों के दौरान सबसे अधिक कामकाज वाला सत्र रहा है, जिसमें लोकसभा ने कामकाज के निर्धारित समय की तुलना में 117 प्रतिशत अधिक और राज्य सभा में 101 प्रतिशत अधिक कामकाज हुआ। जहां तक दोनों सदनों में 24-24 विधेयकों को मिली मंजूरी का सवाल है, उसके बारे में वेंकैया नायडू का कहना है कि भले ही भूमि अधिग्रहण व जीएसटी बिल पारित न हो पाए हों, लेकिन बजट सत्र के दौरान पारित किये गये 24 विधेयकों की तुलना पिछले पांच साल के बजट सत्रों से की जाए तो मौजूदा सत्र में विधायी कार्य का निपटान बेहतर तरीके से हुआ है।
सहमति से पारित हुए विधेयक
इस सत्र के दौरान संसद के दोनों सदनों में तल्खी के बावजूद कुछ महत्वपूर्ण बिलों पर विपक्ष ने सरकार का साथ दिया है। एसे विधेयकों में नागरिकता संशोधन विधेयक, खान और खनिज (विकास और विनियमन) संशोधन विधेयक, मोटरयान संशोधन विधेयक, कोयला खनन (विशेष उपबंध) विधेयक, बीमा विधि (संशोधन विधेयक),किशोर न्याय (बालकों की संरक्षण और देखरेख) विधेयक, भारत और बांग्लादेश के बीच कतिपय राज्य क्षेत्रों के अर्जन और अंतरण को प्रभावी करने के लिए संविधान संशोधन विधेयक तथा काला धन (अप्रकटित विदेशी आय और आस्ति) कर अधिरोपण विधेयक तथा व्हिस्ल ब्लोअर विधेयक प्रमुख रहे। राज्यसभा में सत्र के दौरान 36 साल के अंतराल के बाद कोई निजी विधेयक के रूप में ‘विपरीत लिंगी (ट्रांसजेंडर) व्यक्तियों के अधिकारों से संबंधित विधेयक’ भी पारित किया गया, जिसे द्रमुक के तिरूचि शिवा ने पेश किया था।
हंगामे से समय की बर्बादी
लोकसभा में बजट सत्र के दौरान विभिन्न मुद्दों पर हंगामे के कारण 35 बैठकों में 242.54 घंटे समय बर्बादी की भेंट चढ़ा। वहीं 7.04 घंटे का समय की कार्यवाही बाधित रही। जबकि राज्यसभा में इस दौरान हुए दो सत्रों की 33 बैठकों में 37 घंटे से ज्यादा समय की बर्बादी हुई। जबकि वहीं 24 घंटे की बैठक अतिरिक्त चलाई गई और उच्च सदन की कार्यवाही इस दौरान 181 घंटे तक हुई।
15May-2015

गुरुवार, 14 मई 2015

भूमि विधेयक पर बनी संयुक्त समिति को मंजूरी!

समिति में जगह न मिलने पर बिफरा वामदल
भोजनावकाश के समय पर भ्रम में रहे माननीय
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक को जिस संयुक्त संसदीय समिति के हवाले किया गया है। इस समिति में राज्यसभा से वामदलों को प्रतिनिधित्व न दिये जाने पर आपत्ति उठने के कारण सदन में गहमा-गहमी रही। वहीं समिति में उच्च सदन के सदस्यों के प्रस्ताव को एक विधेयक पर चर्चा के बीच मंजूरी देने पर बिफरे वामदलों ने आसन पर भी सवाल खड़े किये तो सरकार के साथ ही पीठासीन अधिकारी को भी सदन में व्यवस्था पर सफाई देनी पड़ी।
केंद्र सरकार ने लोकसभा में मंगलवार को भूमि अधिग्रहण विधेयक को संयुक्त संसदीय समिति के हवाले किया है। इसके लिए गठित की गई संयुक्त समिति में प्रतिनिधित्व को लेकर भेदभाव का आरोप लगाते हुए व्यवस्था पर सवाल खड़े किये। उच्च सदन में बुधवार को भोजनावकाश के बाद माकपा के सीताराम येचुरी एवं केएन बालगोपाल ने सवाल उठाने के साथ इस बात पर आपत्ति जताई कि दोनों सदनों की गठित इस संयुक्त समिति में राज्यसभा से वामदल के किसी भी सदस्य को शामिल नहीं किया गया है। येचुरी ने व्यवस्था के प्रश्न पर कहा कि जब वामदलों के किसी सदस्य को समिति में शामिल नहीं करना था, तो पार्टी से प्रस्तावित नाम क्यों लिये गये? समिति में वामदलों का उच्च सदन से कोई प्रतिनिधित्व न होने पर बिफरे वामदल के इन सदस्यों ने दूसरा ऐतराज पीठ पर सवाल उठाते हुए जताया। वामदलों के इन दोनों सदस्यों ने इस बात पर भी एतराज जताया कि संयुक्त समिति के सदस्यों के नामों का प्रस्ताव सरकार ने सदन में जारी कंपनी विधेयक पर चर्चा को बीच में रोककर किया और पीठ ने अनुमति किस नियम के तहत दी। नियमों का हवाला देते हुए माकपा नेताओं का कहना था कि आमतौर पर सदन में जब किसी विधेयक या मुद्दे पर चर्चा हो रही होती है तो उसे बीच में ही रोककर इस तरह के प्रस्ताव नहीं रखे जाते। इस बात को लेकर सदन में गहमा गहमी बढ़तो तो सरकार को ही नहीं, बल्कि पीठ पर आसीन उप सभापति प्रो. पीजे कुरियन को भी स्थिति स्पष्ट करनी पड़ी।
सरकार ने दिया तर्क
वामदलों के सवालों पर सरकार की ओर से तर्क देते हुए संसदीय कार्य राज्य मंत्री मुख्तार अब्बास नकवी ने कहा कि संयुक्त समिति में सदस्यों को राजनीतिक दलों की सदस्य संख्या के आधार पर रखने का प्रावधान है और इस मामले में कोई भेदभाव नहीं किया गया। नकवी ने कहा कि इस समिति में माकपा के लोकसभा सदस्य मोहम्मद सलीम एवं अन्नाद्रमुक के एक लोकसभा सदस्य को शामिल किया गया है। इसलिए राज्यसभा से इन दोनों ही दलों के कोई सदस्य नहीं हैं।
पीठ की व्यवस्था
उच्च सदन में कंपनी विधेयक की चर्चा के बीच में संयुक्त समिति के सदस्यों के प्रस्ताव पर वामदलों की आपत्ति वाले मुद्दे पर अपनी व्यवस्था देते हुए कहा कि यह हमेशा बेहतर होता है कि इस तरह के प्रस्तावों को किसी चर्चा को बीच में रोक कर पेश न किया जाये। लेकिन मौजूदा मामले में ऐसा इसलिए किया गया, क्योंकि ग्रामीण विकास मंत्री बीरेन्द्र सिंह ने इस प्रस्ताव के लिए आसन को यह सूचित किया, कि उनकी कुछ अन्य व्यस्तताएं हैं। इसलिए उन्हें सदन में यह प्रस्ताव पहले रखने की अनुमति दी जाये। समिति में राज्यसभा के किसी वाम सदस्य को नहीं रखे जाने पर कुरियन ने कहा कि वह सरकार एवं अन्य दलों की राजनीतिक मजबूरी को समझ सकते हैं, लेकिन किसी ने विरोध भी नहीं किया। यदि किसी समिति में अन्य सदन के उसी दल का सदस्य मौजूद है, इस आधार पर इस सदन के सदस्य को उस समिति में रहने से वंचित नहीं किया जा सकता।
क्या था मामला
दरअसल राज्यसभा में इस सत्र की अंतिम दिन बुधवार को कार्यवाही शुरू होने पर सभापति मो. हामिद अंसारी ने व्यवस्था दी थी कि आज भोजनावकाश नहीं होगा और सदस्य एक बजे से डेढ़ बजे तक कार्यवाही के बीच में ही भोजन के लिए जा सकते हैं। इसके बावजूद उपसभापति पीजे कुरियन ने चर्चा के दौरान कंपनी बिल को डेढ़ बजे तक पारित कराने की बात कहते हुए व्यवस्था दी कि उसके बाद आधे घंटे का भोजनावकाश होगा। जबकि वामदल व अन्य कुछ दलों के सदस्य सभापति की व्यवस्था के तहत एक बजे से डेढ़ बजे के बीच सदन से भोजन के लिए चले गये, जिसके कारण वामदलों का इस दौरान एक भी सदस्य सदन में मौजूद नहीं था और सदन में समिति के सदस्यों के नामों का प्रस्ताव पारित हो गया। इसलिए भी वामदलों के साथ सपा के सदस्यों ने भी पीठ पर सवाल गये किये।
ये है संयुक्त संसदीय समिति
विवादास्पद भूमि अधिग्रहण विधेयक पर गौर करने के लिए लोकसभा में भाजपा के सदस्य एसएस अहलूवालिया की अध्यक्षता में गठित दोनों सदनों की 30 सदस्य संयुक्त समिति में लोकसभा से 20 और राज्यसभा से 10 सदस्य शामिल किये गये हैं। राज्यसभा से कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह, जयराम रमेश व पीएल पुनिया, जदयू प्रमुख शरद यादव और तृणमूल के डेरेक ओ ब्रायन, भाजपा के राम नारायण डूडी व प्रभात झा, सपा के राम गोपाल यादव, राकांपा के शरद पवार तथा बसपा के राजपाल सिंह सैनी शामिल हैं। जबकि लोकसभा से 20 सदस्यों में कांग्रेस के केवी थॉमस व राजीव साटव, शिवसेना के आनंद राव अडसुल, तृणमूल कांग्रेस के कल्याण बनर्जी, बीजद के बी महताब, माकपा के मोहम्मद सलीम, लोजपा के चिराग पासवान के अलावा सत्तापक्ष भाजपा के एसएस अहलूवालिया, उदित राज, अनुराग ठाकुर और गणेश सिंह शामिल हैं।
14May-2015

बुधवार, 13 मई 2015

गडकरी के नाम पर उच्च सदन की कार्यवाही स्वाहा



राज्यसभा का दृश्य:
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
बजट सत्र के अंतिम दिनों में राज्यसभा का दृश्य ऐसा बना हुआ है, जैसे विपक्ष ने कसम खा ली हो कि सरकार के किसी काम को आगे नहीं बढ़ने देना है। मसलन पिछले दो दिन से उच्च सदन में विपक्ष खासकर कांग्रेस पूर्ति मामले पर कैग की रिपोर्ट को मुद्दा बनाकर केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी को घेरे हुए है। गडकरी की दोनों दिन सफाई के बावजूद कांग्रेस इस इरादे को लेकर व्यस्त नजर आई कि इस मामले में किसी तरह उन्हें भ्रष्टाचारी साबित कर दिया जाए। जबकि गडकरी ने विपक्ष पर राजनीति करने का आरोप लगाते हुए चुनौती दी है कि यदि उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के मामले साबित हुए तो मंत्री पद से क्या वे सांसद का पद भी छोड़ने को तैयार हैं।
बजट सत्र के अंतिम तीन दिनों में जब सरकार ज्यादा से ज्यादा काम निपटाने का इरादा लेकर सोमवार को संसद में आई थी, तो शायद कांग्रेस भी सरकार को किसी न किसी मुद्दे पर घेरने की रणनीति से संसद में दिखाई दी। खासकर उच्च सदन में कांग्रेस ने सोमवार को कार्यवाही शुरू होते ही पूर्ति नामक एक कंपनी पर पिछले सप्ताह पेश की गई कैग रिपोर्ट को मुद्दा बनाया। इस कंपनी से जुडेÞ रहे केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी के इस्तीफे और कैग रिपोर्ट पर चर्चा कराने की मांग को लेकर मंगलवार को भी कांग्रेस उसी रणनीति पर सदन में पहुंची। मसलन सोमवार की तरह मंगलवार को भी गडकरी के नाम पर उच्च सदन की कार्यवाही बार-बार के स्थगन के कारण स्वाहा हो गई। खास बात है कि कांग्रेस के आरोपों पर सफाई देते हुए सोमवार की तरह विपक्ष की मांग पर मंगलवार को भी केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी को सफाई देनी पड़ी। गडकरी के बयान के बाद सदन में विभिन्न दलों के सदस्यों ने स्पष्टीकरण भी मांगे। सदन में जहां विपक्ष गडकरी के नाम पर सरकार को घेरने की कोशिश में था, वहीं सत्ता पक्ष की ओर से कैग की रिपोर्ट पर कांग्रेस पर राजनीति करने और सदन में कामकाज को बाधित करने का आरोप लगाए गये।
पूरी तैयारी में दिखे गडकरी
गडकरी ने अपने बयान में विपक्ष को यहां तक चुनौती दी कि कैग रिपोर्ट में उनके खिलाफ न तो भ्रष्टाचार के आरोप है और न ही कैग ने उनके खिलाफ अपनी रिपोर्ट में कोई टिप्पणी की है। उन्होंने विपक्ष पर पलटवार करते हुए कहा कि कैग रिपोर्ट में लगे आरोप उनके या उनकी कंपनी के खिलाफ नहीं, बल्कि तत्कालीन यूपीए सरकार और उनके विभाग इरेडा के खिलाफ हैं। इसके बावजूद यदि पीएसी की जांच और कोई भी सदस्य उनके खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोप सिद्ध करे तो वह मंत्री पद से ही नहीं सांसद के पद को भी त्यागने को तैयार है। उच्च सदन के परिदृश्य को देखा जाए तो कांग्रेस की अगुवाई में कुछ अन्य विपक्षी दल के इरादे साफ हैं कि किसी तरह इन अंतिम दिनों में सदन की कार्यवाही को बाधित रखा जाए और कैग की रिपोर्ट पर गडकरी के खिलाफ भ्रष्टाचार के आरोपों को साबित किया जाए। इसी पटकथा में इन दोनों दिनों की कार्यवाही के दौरान सदन में कांग्रेस ज्यादा व्यस्त नजर आई।
असमंजस में दिखी पीठ
उच्च सदन में कई बार के स्थगन के बाद दो बजे की कार्यवाही शुरू हुई तो कांग्रेस और प्रतिपक्ष नेता गुलाम नबी आजाद ने सदन में मौजूद गडकरी से स्पष्टीकरण देने की मांग की तो उप सभापति प्रो.पीजे कुरियन इसलिए असमंजस में नजर आए कि सोमवार को गडकरी अपना स्पष्टीकरण दे चुके हैं तो पीठ से दोबारा स्पष्टीकरण की अनुमति कैसे दी जा सकती है। विपक्ष ने कहा कि जब कल के स्पष्टीकरण को सुना ही न गया हो तो सदन फिर से सुनना चाहता है, लेकिन गडकरी अपनी पूरी तैयारी के साथ दस्तावेज लेकर सदन में आए। सदन में चूंकि कांग्रेस के प्रमोदी तिवारी ने स्पष्टीकरण के लिए नियम 267 के तहत नोटिस दिया था और इस पर सरकार भी तैयार थी। सदन में पूरे सदन की सहमति के बाद पीठ को फिर से गडकरी को स्पष्टीकरण देने की अनुमति दी गई।
सीमा लांघ गये तिवारी
गडकरी के बयान के बाद स्पष्टीकरण मांगते हुए कांग्रेस के प्रमोदी तिवारी कैग रिपोर्ट से अलग पूर्ति मामले पर सवाल उठाने लगे तो पीठासीन अधिकारी ने उन्हें नियमों की याद दिलाई और कहा कि सदन में वे कैग रिपोर्ट से अलग मामले का जिक्र नहीं कर सकते और उपसभापति ने तिवारी के इससे अलग किसी भी शब्द को कार्यवाही में शामिल न करने के निर्देश भी दिये। सदन के इस माहौल में सत्ता और विपक्ष के बीच जमकर नारेबाजी और हंगामा भी हुआ।
लोकसभा तक पहुंची आंच
मंगलवार को गडकरी के खिलाफ कांग्रेस ने लोकसभा में भी सरकार को घेरने का प्रयास किया। कांग्रेस के दीपेन्द्र हुड्डा ने यह मामला शून्यकाल में उठाया। राज्यसभा की तरह ही पूर्ति के मामले में कैग रिपोर्ट को लेकर लोकसभा में भी कार्यस्थगन का नोटिस दिया, जिसे लोकसभा स्पीकर ने खारिज कर दिया। इस निर्णय से भड़के विपक्ष के नेता मल्लिकार्जुन खड़गे ने तो लोकसभा अध्यक्ष पर सत्ता का दुरुपयोग करने जैसा आरोप भी मंढ दिया। इस मुद्दे पर कांग्रेस तथा वाम दलों के सदस्यों ने सदन से वाकआउट किया। लोकसभा में कांग्रेसी सदस्यों ने कैग रिपोर्ट में नितिन गडकरी के परिवार से जुड़ी कंपनी को दिए गए ऋण में कथित अनियमितताओं का आरोप लगाते हुए केंद्रीय मंत्री के इस्तीफे की मांग की।
13May-2015


सोमवार, 11 मई 2015

कानून बनने के इंतजार में राज्यों के 44 विधेयक!

छत्तीसगढ़ के पांच महत्वपूर्ण बिल भी लटके
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
संसद में जहां अभी सैकड़ो विधेयक कानून बनने का इंतजार कर रहे हैं, वहीं केंद्र सरकार के पास राज्यों की सरकार से पारित होकर आने वाले करीब चार दर्जन विधेयक मंजूरी का इंतजार कर रहे हैं। संसद में राज्यों के इन विधेयकों की मंजूरी न मिलने के कारण राज्यों में बहुत से कानूनों को लागू नहीं किया जा सका है। मसलन राज्यों की विधानसभाओं से पारित होकर आने वाले ऐसे विधेयक केंद्र के विभिन्न मंत्रालयों और विभागों की खाक छानने को मजबूर हैं।
देश के विभिन्न राज्यों सरकार द्वारा विधानसभाओं में पारित ऐसे विधेयकों की संख्या भी केंद्र सरकार के पास लगातार बढ़ती जा रही है, जिन्हें राज्य में कानून का दर्जा देने के लिए केंद्र सरकार और और फिर राष्ट्रपति की मंजूरी का बेसब्री से इंतजार है। राज्य सरकारों से केंद्र की जांच पड़ताल और राष्ट्रपति के अनुमोदन के लिए पिछले चार साल में अलग अलग राज्यों से केंद्र को करीब 119 विधेयक मिले थे, जिन्हें विधानसभाओं या राज्य मंत्रिमंडल की मंजूरी के बाद केंद्र सरकार को भेजा जाता है और केंद्र सरकार संबन्धित मंत्रालयों और विभागों से इनकी जांच-पड़ताल कराकर अंतिम रूप देती है। इसके बाद इन्हें राष्ट्रपति की मंजूरी के लिए भेजा जाता है। खास बात यह है कि लंबित इन विधेयकों में कई इतने महत्वपूर्ण हैं, जिनके केंद्र सरकार के पास लंबित होने के कारण राज्यों को कभी-कभी नाजुक स्थिति के दौर से गुजरने के लिए मजबूर रहना पड़ता है। हालांकि इस दौरान केंद्र सरकार ने पिछले चार साल में आए इन विधेयकों में से 75 विधेयकों को अंतिम रूप दिया है। हालांकि मौजूदा साल में केंद्र को मिले सभी 14 बिलों पर काई कार्रवाही आगे नहीं बढ़ सकी है। हालांकि इससे पहले केंद्र ने राज्यों से वर्ष 2014 में मिले 29 बिलों में से 19, वर्ष 2013 में 31 में से 20, वर्ष 2012 के 45 में से 36 बिलों को अंतिम रूप दिया है। गृह मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि फिलहाल केंद्र सरकार के पास राज्यों के 44 ऐसे विधेयक है जिन्हें अंतिम रूप दिया जाना है। इनमें छत्तीसगढ़ राज्य सरकार द्वारा पारित छत्तीसगढ़ धर्म  स्वातंत्रय (संशोधन) विधेयक-2006 तथा जमाकतार्ओं का हित संरक्षण विधेयक-2005 अभी तक अटका हुआ है।
छत्तीसगढ़: पांच विधेयकों की मंजूरी का इंतजार
छत्तीसगढ़ राज्य सरकार की ओर से केंद्र को पिछले चार साल में सात विधेयक भेजे गये, लेकिन इस दौरान केंद्र ने केवल छत्तीसगढ़ उच्च न्यायालय (डिवीजन बैंच को अपील संशोधन) विधेयक-2013 और छत्तीसगढ़ सहकारी समिति (संशोधन) विधेयक-2013 को ही अंतिम रूप दिया है। जबकि इनसे पहले लंबित छत्तीसगढ़ धर्म स्वातंत्रय (संशोधन) विधेयक-2006 तथा जमाककतार्ओं का हित संरक्षण विधेयक-2005 हर साल अटकते आ रहे हैं। इन बिलों के अलावा छत्तीसगढ़ शैक्षिक संस्थान(प्रबंधन)विधेयक-2013, दंड विधि (छत्तीसगढ़ संशोधन) विधेयक-2013 तथा भारतीय वन (छत्तीसगढ़ संशोधन) विधेयक-2014 भी केंद्र सरकार के समक्ष राष्टÑपति की मंजूरी के का बेसब्री से इंतजार कर रहे हैं।
मध्य प्रदेश के दो बिल अटके
केंद्र सरकार के समक्ष जांच पड़ताल और राष्ट्रपति  की मंजूरी के लिए मध्य प्रदेश सरकार ने भी इन चार सालों में तीन विधेयक भेजे हैं,जिनमें दंड विधि (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2014 और पंजीकरण (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2014 पर राष्टÑपति की मंजूरी के इंतजार में केंद्र सरकार में जांच पड़ताल के लिए खाक छान रहे हैं। जबकि राज्य के दंड प्रक्रिया संहिता (मध्यप्रदेश संशोधन) विधेयक-2013 को केंद्र सरकार अंतिम रूप दे चुकी है। इससे पहले भी केंद्र सरकार मध्य प्रदेश के मध्य प्रदेश स्टाम्प विधेयक-2009, मध्य प्रदेश आतंकवादी एवं उच्छेदक गतिविधियों तथा संगठित अपराध निवारण विधेयक-2010 तथा मध्य प्रदेश विधेयक कपास बीज, विक्रय का विनियमन तथा विक्रय मूल्य निर्धारण विधेयक को भी प्राथमिकता के साथ अंतिम रूप दे चुकी है।
हरियाणा को विश्वविद्यालय की दरकार
हरियाणा सरकार के केंद्र सरकार के समक्ष आए तीन विधेयकों में राज्य को अभी मीरपुर में इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय हेतु इंदिरा गांधी विश्वविद्यालय, मीरपुर (संशोधन) विधेयक -2014 के अंतिम रूप मिलने का इंतजार है। जबकि केंद्र सरकार राज्य के दो पुराने विधेयकों दि हरियाणा श्रीदुर्गा माता श्राइन विधेयक-2012 तथा हरियाणा वित्तीय प्रतिष्ठानों में जमाकर्ताओं के हितों का संरक्षण विधेयक-2013 का निपटान कर चुकी है।
11May-2015

रविवार, 10 मई 2015

आखिर भूमि विवाद की दशकों बाद खुलेगी गांठ

भारत-बांग्लादेश के भूमि सीमांकन पर ऐतिहासिक राह
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा संबन्धी विधेयक पर संसद की मुहर लगवाकर एक ऐसे एतिहासिक कूटनीति को परवान चढ़ाया है, जिसमें दक्षिण एशिया के दो पडोसी देशों के बीच सीमा विवाद की 41 साल पुरानी गांठ खुलने जा रही है। सरकार के इस कदम ने दोनों देशों के उन हजारों लोगों को पहचान मिलेगी, जो गुमनामी के माहौल में अपना जीवन जीते आ रहे थे।
भारतीय राजनीति में ऐसे मौके बहुत ही कम आते हैं जब मौजूदा केंद्र सरकार अपने काम का श्रेय पिछली सरकार को देती हो। लेकिन पिछले साल केंद्र की सत्ता संभालने के बाद राजग की मोदी सरकार ने ऐसा ऐतिहासिक क्षण सामने लाकर निरंतर आलोचना करते आ रहे विपक्षी दलों को अपनी कूटनीतिक रणनीति के जरिए धरातल पर लाकर खड़ा कर दिया। मसलन संसद के दोनों सदनों में भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा संबन्धी विवाद को सुलझाने वाले संविधान संशोधन विधेयक को पूर्ववर्ती सरकार के जस के तस मसौदे के रूप में ही पारित कराकर विपक्षी दलों की तल्खी का मिठास में बदला। वहीं दक्षिण एशिया में दो पडोसी देशों के रिश्तों को मजबूत करने की ऐसी नीवं भी रख दी, जो पिछले 41 साल से विवादों में उलझी हुई थी। मसलन इस संशोधन विधेयक के जरिए वर्ष 1974 में तत्कालीन भारतीय प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी और बांग्लादेश के तत्कालीन प्रधानमंत्री शेख मुजीबुर्रहमान के बीच दोनों देशों के बीच सीमा विवाद को खत्म करने के लिए हुए समझौते और वर्ष 2011 में इस संबन्ध में पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और बांग्लादेश की पीएम शेख हसीना के बीच प्रोटोकॉल पर अमल हो सकेगा। सरकार की इस पहल से भूमि सीमा विवाद के सुलझने से ऐसे करीब 51 हजार लोगों को भी अपने-अपने देश की नागरिकता के रूप में पहचान मिलेगी, जो चार दशकों से गुमनामी का जीवन जी रहे थे।
भारत के लिए बांग्लादेश जरूरी
विदेश मामलों के विशेषज्ञ अफसर करीम ने केंद्र सरकार के इस कदम को ऐतिहासिक बताते हुए कहा कि पडोसी देश बांग्लादेश से भारत के हालांकि अच्छे रिश्ते रहे हैं। फिर भी अब सीमा विवाद की तल्खी के मिठास में बदलने से उन सभी जरूरतों को दोनों देश एक दूसरे के बेहतर रिश्तों से पूरी कर सकेेंगे, जिनकी पडोस में चीन व पाक की बढ़ती दोस्ती के चलते दोनों देशों के लिए जरूरी भी हो गया था। भारत के लिए बांग्लादेश से बेहतर रिश्तों की समय की मांग बताते हुए करीम का मानना है कि इस कदम से दोनों देशों की सीमाओं के पुनर्निर्धारित होने से अवैध आप्रवासियों की समस्या पर बेहतर नियंत्रण हो सकेगा और अन्य आपराधिक गतिविधियों पर भी लगाम कसी जा सकेगी। दोनों पडोसी देशों के बीच भूमि विवाद के कारण ही भारत का सबसे महत्वपूर्ण अनसुलझा तीस्ता जैसी नदियों के पानी के बंटवारे का मसला भी हल हो जाएगा। वहीं दोनों देशों के बीच आर्थिक और सामाजिक तौर से भी सहयोग बढ़ना तय है। गौरतलब है कि दोनों देशों के बीच समुद्री सीमा का विवाद भी अंतरर्राष्ट्रीय ट्राइब्यूनल के फैसले से बीते साल ही सुलझा लिया गया।
भारत के विभाजन में उलझी गुत्थी
विदेश मंत्रालय के अनुसार दोनों देशों के बीच विवादित भूखंडों के रूप में बांग्लादेश में भारत के 111 और भारत में बांग्लादेश के ऐसे 51 इन्क्लेव हैं यानि 162 भूखंडों में करीब 51 हजार लोगों की जिंदगी पटरी पर आने वाली है। ये इन्क्लेव 1947 में भारत के हुए विभाजन का नतीजा था। इन इन्क्लेवों में रहने वाले लोगों को फिलहाल किसी भी देश के नागरिक होने का अधिकार हासिल नहीं है। सदियों पहले राजाओं के जमाने में भी हुए जमीन के बंटवारे के कारण ऐसी स्थिति बनी थी। इस विवाद के सुलझने से भूमि के आदान-प्रदान में भारत को 2,777.038 एकड़ और बांग्लादेश को 2,267.682 एकड़ भूमि मिल सकेगी।
10May-2015

जजों के नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली ही बेहतर

-न्याय में विलंब के लिए सरकारें दोषी
बढ़ाएं अदालतें व न्यायाधीश
-एनजेएसी से जजों की नियुक्ति को राजनीति में लपेटने की कोशिश
-नयी प्रणाली लागू होने से बढ़ेगा भ्रष्टाचार, तथ्यपरक सुधार जरूरी
हरिभूमि ब्यूरो
, नई दिल्ली
उम्र की इस दहलीज पर ज्यादातर लोग कामकाज से रिटायर हो जाते हैं। आध्यात्म की ओर झुकाव हो जाता है। मगर, प्रख्यात कानूनविद और पूर्व कानून मंत्री रामजेठमलानी न तो टायर हुए हैं और न ही वे रिटायर होने जैसा दिखते हैं। नब्बे से ज्यादा बसंत देख चुके जेठमलानी अभी बेहद ऊर्जावान और न्यायायिक कामकाज के प्रति उतने ही ईमानदार। खरी-खरी बात रखने और साफ बोलने की वजह से इन्हें खासकर राजनीति में भारी नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा से निष्कासित किए गए। लेकिन नरेंद्र मोदी को पार्टी के अंदर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने की सबसे पहले वकालत करने वाले जेठमलानी ही थे। अब वे फिर से मुखर हैं। नेशनल जूडिशियल एप्वाइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) के मार्फत जजों की बहाली के संसद के फैसले के खिलाफ खंभ ठोंक कर खड़े हैं। उनका स्पष्ट मानना है कि कॉलेजियम सिस्टम ही बेहतर प्रणाली है जिसमें कानून विशेषज्ञ मिलकर ही जजों की नियुक्ति करते हैं। ऐसी ही कुछ ज्वलंत मुद्दों पर उन्होंने ‘हरिभूमि के शिशिर सोनी के कुछ प्रश्नों का बेबाकी से जवाब दिए, पेश है उसके मुख्य अंश-
• आपने एनजीएसी के खिलाफ मुहिम क्यों छेड़ी हुई है ?
क्यों कि मैं चाहता हूं कि देश की न्यायायिक व्यवस्था में कम से कम किसी राजनेता या अन्य का दखल न हो। न्याय और कानून से जुड़े विशेषज्ञ जजों की नियुक्ति करें। कॉलेजियम सिस्टम से यही होता आया है। एनजीएसी में कानून मंत्री और दो समाज के नामचीन हस्तियों वाली समिति जजों के साथ बैठकर नए जजों की नियुक्ति करे यह ठीक नहीं।
• मगर, एनजेएसी पर संसद की मुहर लगी है..
जजों की नियुक्ति को केंद्र की राजग सरकार ने राजनीति की चासनी लपेटने की कोशिश की है। यूपीए सरकार ने इस संबंध में संविधान संशोधन पेश किया था। एनजेएसी के बारे में केवल एक लाइन का जिक्र था। मगर अब देखने में आ रहा है कि इस मसले पर भाजपा-कांग्रेस दोनों के सुर एक हैं। व्यवस्थित और मर्यादित जजों की निुयक्ति संबंधित कॉलेजियम सिस्टम को बदलकर नया सिस्टम लागू करने से भ्रष्टाचार बढ़ेगा। भ्रष्टाचारी सरकारें न्यायायिक व्यवस्था को भी भ्रष्टाचारी बनाने पर तुली हैं। जिसका जोरदार विरोध हो रहा है।
• आरोप तो यह भी हैं कि कुछ जजों ने अपने संबंधियों को बिना योग्यता के जज की नियुक्ति कराने में सफलता पाई। उसी कॉलेजियम सिस्टम से जिसकी आप पैरवी कर रहे हैं?
देखिए एक-दो ऐसे केस अगर हुए हैं तो उसकी पड़ताल होनी चाहिए। मगर, केवल इसका उदाहरण देकर समूचा सिस्टम बदलना और उसमें कानून की एबीसीडी नहीं जानने वालों का दखल होना कतई उचित नहीं। ये ठीक वैसे ही है जैसे किसी सरकार के एक मंत्री ने भ्रष्टाचार किया तो उस भ्रष्टाचारी मंत्री को बदलना चाहिए। उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए न कि समूची सरकार ही हटा देनी चाहिए!
• आप मानते हैं कि न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ा है?
नहीं मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता। मैं इससे सहमत नहीं। इसे बड़े कैनवस के रूप में देखने की जरूरत है। कुछ मामले अगर सामने आए हैं उसमें जरूर तथ्यपरक सुधार किया जाना चाहिए।
• विदेशी कानूनी फर्म को अगर देश में प्रैक्टिस की इजाजत मिलती है तो इससे हमारे वकीलों के हित पर आघात नहीं होगा?
ऐसा नहीं है। विदेशी कानूनी फर्म आएं। देश मे प्रैक्टिस करें। लेकिन ऐसा प्रबंध वैसे ही देश के साथ होना चाहिए जिन देशों में हमारे देश के वकील भी जाकर प्रैक्टिस कर सकें। यानि दूसरे देश के वकील यहां आएं तो हमें भी उनके देश में काम करने की छूट मिलनी चाहिए। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि विदेशी वकील अदालत में वकालत नहीं कर सकते। लेकिन ड्राμिटंग, ट्रांजेक्शनल डीलिंग्स सहित अन्य डॉक्यूमेंटेशन के लिए वे हमारे देश में लॉ-फर्म खोल सकते हैं। इसमें जाहिर तौर पर देश के वकीलों को ही काम मिलेगा। जिससे वे इस फील्ड के गूढ़ विषयों के संबंध में और समझ विकसित कर सकेंगे।
देश के विभिन्न कोर्ट में केस का अंबार लगने का जिम्मेदार आप किस ठहराते हैं?
सभी लोग इस मामले में एक स्वर में देश की न्यायिक प्रणाली को ही दोषी मानते हैं, मगर हमारा मानना है कि सरकारें दोषी हैं। कानून आयोग ने मौजूदा कोर्ट की संख्या से पांच गुना ज्यादा कोर्ट की स्थापना की अनुशंसा की हुई है। लेकिन सरकारें आती हैं, जाती हैं। इस मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती हैं। क्यों नहीं वे जजों की संख्या बढ़ाते? क्यों नहीं कोर्ट स्टाफ की गिनती में इजाफा किया जाता है। एक जज पांच जजों के बराबर काम नहीं कर सकता। हमारे यहां कहावत है- न्याय मिलने में देरी हुई तो इसका मतलब है वादी को न्याय मिला ही नहीं। और न्याय का फैसला अगर जल्दबाजी में सुना दिया जाए तो बहुत कुछ गड़बड़ी का अंदेशा बना रहता है। इसीलिए मौजूदा व्यवस्था में देर तो हो रही है मगर न्याय लोगों को दुरुस्त मिल रहा है।
10May-2015