शनिवार, 9 मई 2015

ट्रिब्यूनल के सहारे कम होगा अदालतों का बोझ!

-अदालती चक्कर से पहले 70 फीसदी मामले सुलझाने का लक्ष्य
-मोदी सरकार ट्रिब्यूनल कोर्ट की संख्या बढ़ाने पर दे रही है जोर
ओ.पी. पाल,
नई दिल्ली
देश भर की अदालतों में लंबित करोड़ों मुकदमों का बोझ कम करने के लिए केंद्र सरकार ट्रिब्यूनल प्रणाली को मजबूत करने पर जोर दे रही है। लक्ष्य है कि मौजूदा पारंपरिक अदालतों तक मुकदमा पहुंचने से पहले 70 फीसदी मामलों का निस्तारण हो जाए। इससे अदालतों पर बोझ भी घटेगा और त्वरित न्याय की अवधारणा बलवती होगी।
देश में सर्वोच्च न्यायालय से लेकर निचली अदालतों तक जजों की कमी से जूझती न्याय व्यवस्था का दुष्परिणाम वादकारियों की परेशानी के रूप में सामने आता है। ऐसे में अब केंद्र सरकार ने पारंपरिक अदालतों तक जाने से पहले ही मामलों का निस्तारण विभिन्न स्तरों पर करने की रणनीति बनाई है। इसके लिए ट्रिब्यूनल अधिनियम के अंतर्गत अलग-अलग विषयों पर अदालतें गठित किये जाने का प्रस्ताव है। अभी तक सरकारी कर्मचारियों के मामलों की सुनवाई और उन्हें न्याय दिलाने के लिए तीस साल से देश में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल कोर्ट कार्य कर रही हैं। दरअसल पीड़ित कर्मचारियों को न्याय दिलाने की दिशा में वर्ष 1985 में एक नया अध्याय उस समय जुड गया था, जबकि तत्कालीन केंद्र सरकार ने प्रशासनिक ट्रिब्यूनल अधिनियम 1985 को पारित कराकर लागू किया था। इस अधिनियम के तहत पहला केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल एक नवंबर 1985 से काम करने लगा। प्रशासनिक ट्रिब्यूनल केवल अपने अधिकार-क्षेत्र और कार्य विधि में आने वाले कर्मचारियों के सेवा संबंधी मामलों तक सीमित होता है। इसकी कार्यविधि कितनी सरल है, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि पीड़ित व्यक्ति इसके सामने स्वयं उपस्थित होकर अपने मामले की पैरवी कर सकता है। सरकार अपना पक्ष अपने विभागीय अधिकारियों या वकीलों के जरिए रख सकती है। ट्रिब्यूनल का उद्देश्य वादी को सस्ता और जल्दी न्याय दिलाना है। अधिनियम में केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल यानि सीएटी और राज्य प्रशासनिक ट्रिब्यूनल स्थापित करने की व्यवस्था है। पिछले तीस साल में देश में 19 ट्रिब्यूनल अधिसूचित हैं। इन 19 विभागों के कर्मचारियों को न्याय दिलाने के लिए हरेक ट्रिब्यूनल को देश में सुविधानुसार संबंधित अदालतें गठित करने का अधिकार दिया गया है। इन ट्रिब्यूनल कोर्ट के जरिए केंद्र सरकार और राज्यों के कामकाज को चलाने के लिए सार्वजनिक पदों और सेवाओं में नियुक्त व्यक्तियों की भर्ती और सेवा-शर्तों आदि से संबंधित शिकायतों और विवादों पर निर्णय देने का अधिकार है। उच्चतम न्यायालय के गत 18 मार्च 1997 को जारी एक फैसले के अनुसार प्रशासनिक ट्रिब्यूनल के फैसले के खिलाफ संबंधित उच्च न्यायालय की खंडपीठ में अपील की जा सकती है।
बीसवीं ट्रिब्यूनल होगी वाणिज्य अदालतें
केंद्र की मोदी सरकार ने विधि आयोग की सिफारिश पर बजट सत्र के दौरान ही अलग से वाणिज्य अदालतों और अपीलेट ट्रिब्यूनल की स्थापना करने का निर्णय लिया है। इसके लिए केंद्रीय कैबिनेट ने संसद में कॉमर्शियल डिवीजन एंड कॉमर्शियल अपीलेट डिवीजन आॅफ हाई कोर्ट्स एंड कॉमर्शियल बिल-2015 को मंजूरी भी दी है। इस विधेयक का मकसद कारोबार से जुड़े विवादों व मामलों को जल्द से जल्द सुलझाना है। इस विधेयक के प्रावधान में मर्चेंट, बैंकर्स, फाइनेंसर्स और ट्रेडर्स के बीच कारोबारी विवादों को कॉमर्शियल कोर्ट में निपटाया जाएगा। यहां मर्केंटाइल डॉक्यूमेंट्स, ज्वाइंट वेंचर और पार्टनरशिप एग्रीमेंट, इंटेलेक्चुअल प्रॉपर्टी राइट्स, इंश्योरेंस और अन्य मामलों की सुनवाई की जाएगी। यहां न्यूनतम एक करोड़ रुपए वाले विवादों को ही सुना जाएगा। सुनवाई खत्म होने के 90 दिनों की भीतर कॉमर्शियल कोर्ट अपना फैसला सुनाएगी। हाल ही में केंद्रीय शहरी विकास मंत्री वेंकैया नायडू ने राज्यसभा में प्रवर समिति को भेजे गये रियल एस्टेट संबन्धी विधेयक को पेश करते समय प्रोपर्टी से जुड़े मामलों के निपटान के लिए अलग से ट्रिब्यूनल बनाने की बात कही है।
क्या है ट्रिब्यूनल
सामान्य तौर पर ट्रिब्यूनल एक व्यक्ति या संस्था को कहा जाता है, जिसके पास न्यायिक काम करने का अधिकार हो चाहे फिर उसे शीर्षक में ट्रिब्यूनल ना भी कहा जाए। मसलन एक न्यायाधीश वाली अदालत में भी हाजिर होने पर वकील उस जज को ट्रिब्यूनल ही कहेगा। जबकि देश में सरकारी विभागों के गठित ट्रिब्यूनल में एक अध्यक्ष, एक उपाध्यक्ष और सदस्य होते हैं। ट्रिब्यूनल के सदस्य न्यायिक और प्रशासनिक-दोनों क्षेत्रों से शामिल किये जाते हैं, ताकि ट्रिब्यूनल को कानूनी और प्रशासनिक-दोनों वर्गों की विशेषज्ञ जानकारी का लाभ मिल सके।
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(इनसेट-कोट)
‘‘केंद्र सरकार के आर्थिक सुधार के एजेंडे में व्यापार और वाणिज्य को एक लक्षित विकल्प के रूप में मान्यता देने के लिए प्रभावकारी न्यायिक प्रणाली तैयार की जा रही है। इसी के तहत कारोबारी क्षेत्र में अलग से ट्रिब्यूनल के लिए विधेयक जल्द पेश किया जाएगा। सरकार प्रणालीबद्ध बदलाव के जरिए न्यायसंगत उत्पादकता में सुधार लाने पर जोर दे रही है। जिस प्रकार से आॅस्ट्रेलिया, अमेरिका और कनाडा जैसे देशों की अदालतों में मुकदमा शुरू होने से पहले ही 70 प्रतिशत दीवानी मामले सुलझा लिये जाते हैं। भारत में भी इसी तर्ज पर न्यायिक सुधार के प्रयास किये जा रहे हैं।’’ -डीवी सदानंद गौडा, केंद्रीय कानून मंत्री
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कार्य कर रहे 19 ट्रिब्यूनल
1.केंद्रीय प्रशासनिक ट्रिब्यूनल
2.बिजली के लिए अपीलीय ट्रिब्यूनल
3.सशस्त्र सेना ट्रिब्यूनल
4.केंद्रीय विद्युत नियामक आयोग
5.केंद्रीय प्रशासनिक आयोग
6.कंपनी लॉ बोर्ड
7.भारत का प्रतिस्पर्धा आयोग
8.प्रतियोगिता अपीलीय ट्रिब्यूनल
9.कॉपीराइट बोर्ड
10.सीमा शुल्क, उत्पाद शुल्क और सेवा अपीलीय ट्रिब्यूनल
11.साइबर अपीलीय ट्रिब्यूनल
12.कर्मचारी भविष्य निधि अपीलीय ट्रिब्यूनल
13.आयकर अपीलीय ट्रिब्यूनल
14.बीमा नियामक एवं विकास प्राधिकरण
15.बौद्धिक संपदा अपीलीय बोर्ड
16.नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल
17.भारत का प्रतिभूति एवं विनिमय बोर्ड
18.टेलीकॉम निपटान और अपीलीय ट्रिब्यूनल
19.दूरसंचार नियामक प्राधिकरण
09May-2015

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