शुक्रवार, 22 मई 2015

पानी पर एमपी व यूपी में बढ़ी तकरार!

-मध्य प्रदेश के अडिग फैसले पर बेबस रही उमा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मध्य प्रदेश सरकार अपने इस फैसले पर अड़िग है कि जब तक यूपी सरकार बाण सागर बांध के रख रखाव की लागत में हिस्सेदारी नहीं देगी, उसके लिए बांध से पानी छोड़ने का कोई सवाल ही पैदा नहीं होता। पानी की जंग को खत्म करने के लिए दोनों राज्यों के बीच हुई बैठक की अध्यक्षता कर रही केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती भी मध्य प्रदेश के फैसले के सामने बेबस नजर आई। बेनतीजा खत्म हुई इस बैठक के बाद अब पानी के बंटवारे को लेकर दोनों राज्यों के बीच तकरार और भी बढ़ गई है।यहां नई दिल्ली में केंद्रीय जल बोर्ड और बाणसागर बांध बोर्ड की सर्वोच्च होने के नाते केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती की अध्यक्षता में गुरुवार को दोनों राज्यों के प्रतिनिधियों की बैठक में दोनों राज्यों ने अपने-अपने तर्क रखे। मध्यप्रदेश सरकार की तरफ से प्रमुख सचिव जल संसाधन राधेश्याम जुलानिया ने मत दिया कि इस मुद्दे पर मई 2013 की बैठक में मध्यप्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार सरकार के अधिकारियों ने आम सहमति से तय किया था कि बांध के संचालन और रखरखाव की लगात के खर्चे को तीनों राज्य मिलकर वहन करेंगे। इस करार के तहत बिहार सरकार तो बांध के संचालन और रखरखाव का खर्चा लगातार उठा रहा है, तो बिहार को उसी अनुपात में पानी संग्रहित करके दिया जा रहा है। इसके विपरीत इस समझौते पर उत्तर प्रदेश सरकार ने कोई अमल करने का प्रयास नहीं किया, जिसके कारण मध्य प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश के हिस्से के पानी को पिछले एक साल से बाणसागर बांध में संग्रहित नहीं किया जा रहा है। इसलिए उत्तर प्रदेश को पानी देने का सवाल ही नहीं पैदा होता है। इसके बावजूद छह माह पहले भी मध्य प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश को अपने हिस्से का पैसा देने को कहा, लेकिन कोई दिलचस्पी नहीं ली गई। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार की ओर से प्रदेश के सिंचाई और जल संसाधन मंत्री शिवपाल यादव ने मध्य प्रदेश के इस दावे को गलत बताते हुए पानी न छोड़ने पर मध्य प्रदेश सरकार पर बाणसागर समझौता -1973 के समझौते का उल्लंघन करने का आरोप लगाया। ऐसे में बिना खर्च दिये यूपी को पानी न देने वाले मध्य प्रदेश के अडिग फैसले के सामने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती भी किसी ठोस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी, लेकिन इस मामले को गंभीरता से लेते हुए जल्द ही निर्णय लेने का आश्वासन दिया।
 ऐसे उजागर हुआ विवाद
दरअसल मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश के बीच पानी के बंटवारे को लेकर विवाद उस समय उजागर हुआ, जबकि उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अधीन केंद्रीय जल आयोग के अध्यक्ष से आग्रह किया था कि मध्य प्रदेश सरकार को दो महीने के लिए बाणसागर बांध से सोन नदी में 2000 क्यूसिक पानी छोड़ने का निर्देश जारी किया जाए। इसके लिए यूपी सरकार ने बाणसागर समझौता-1973 का तर्क दिया, जिसके तहत बाणसागर बांध से 10 लाख एकड़ फीट पानी पर उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी बनती है। वहीं उत्तर प्रदेश सरकार ने बढ़ती गर्मी व बारिश की कमी कि वजह से सोनभद्र व मिजार्पुर जिले में पीने व सिंचाई के लिए पानी का संकट बढ़ने की भी दुहाई दी। आयोग के निर्देश के बावजूद मध्य प्रदेश सरकार ने भी इस समझौते का तर्क देते हुए यूपी के लिए इसलिए पानी छोड़ने से इंकार कर दिया है कि उत्तर प्रदेश सरकार समझौते के मुताबिक बाणसागर बांध के रखरखाव पर आने वाले खर्चे को साझा करने को राजी नहीं है, इसलिए मध्य प्रदेश सरकार ने बाणसागर बांध में उत्तर प्रदेश के हिस्से का पानी जमा ही नहीं किया। जबकि उत्तर प्रदेश सरकार ने मध्य प्रदेश के इस दावे को गलत करार दिया। इसी विवाद को सुलझाने के लिए यूपी के आग्रह पर केंद्र सरकार ने हस्तक्षेप करते हुए दोनों राज्यों के बीच पानी की इस जंग को समाप्त करने के लिए गुरुवार को बैठक बुलाई, जो बेनतीजा साबित हुई।
 क्या बाण सागर समझौता
मध्य प्रदेश में स्थापित बाण सागर बांध में संग्रहित सोन नदी के संग्रहित होने वाले पानी के मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश और बिहार के बीच बंटवारे को लेकर 16 सितंबर 1973 को एक बाणसागर समझौता हुआ था। इस बांध का जिम्मा बाण सागर नियंत्रण बोर्ड के पास है जो केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास व गंगा संरक्षण मंत्रालय के अंतर्गत काम करता है। इस समझौते के मुताबिक बाणसागर बांध से 10 लाख एकड़ फीट पानी पर उत्तर प्रदेश की हिस्सेदारी बनती है।
 फ्री में पानी लेने पर अड़ा यूपी
मप्र के जल संसाधन विभाग के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया ने बैठक के बाद हरिभूमि को बताया कि उप्र न केवल लागत में अपने हिस्से के 75 करोड़ रुपए देने को राजी है बल्कि वह अपने हिस्से में नहरों का मेंटनेंस भी नहीं कर रहा है। इसके बावजूद वह सिंचाई के लिए पानी की मांग कर रहा है। पिछले साल तीन चार दिन सिंचाई के लिए पानी दिया गया था, लेकिन उप्र का नहर सिस्टम बेहद बदहाल है, ऐसे में पानी की बर्बादी के लिए वह भी बिना पैसा लिए कैसे पानी दिया जा सकता है। करीब दो लाख आबादी और इतने ही जानवरों के लिए बाणसागर बांध से मुफ्त पानी ले रहा उत्तरप्रदेश सिंचाई के लिए भी इस बांध से मुफ्त पानी लेने पर अड़ा है।
दिल्ली में मप्र और उप्र के प्रमुख सचिवों में तीखी बहस
मध्यप्रदेश सरकार ने भी दो टूक कह दिया है कि जब तक बांध की लागत के 75 करोड़ और मेंटेनेंस तथा मैनेजमेंट की लागत में अपना हिस्सा नहीं देगा, उप्र को सिंचाई के लिए पानी नहीं दिया जाएगा। गुरुवार को नई दिल्ली में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती की मौजूदगी में हुई बैठक में उप्र के प्रमुख सचिव दीपक सिंघल और मप्र के प्रमुख सचिव राधेश्याम जुलानिया के बीच तीखी बहस भी हुई। बाणसागर बांध से पेयजल और सिंचाई जल की सुविधा मप्र, उप्र और बिहार के बीच समझौता हुआ था। बिहार और मप्र तो समझौते का पालन कर रहे हैं लेकिन उप्र लगातार इसका उल्लंघन कर रहा है। करीब छह महीने पहले नवंबर 2014 में हुई बैठक में भी उप्र ने अपने हिस्से के 75 करोड़ रुपए देने से साफ इंकार कर दिया था। इसके बावजूद मप्र ने मानवीय आधार पर करीब दो लाख आबादी और जानवरों को पीने के लिए पानी देना बंद नहीं किया था। सिंचाई के लिए पानी देने से न केवल इंकार कर दिया था, बल्कि उप्र के हिस्से के पानी का बांध में भंडारण भी नहीं किया गया। पेयजल के लिए प्रतिदिन 200 से 250 क्यूसेक पानी उप्र को देना जारी रखा गया है।
बाणसागर बांध पर त्रिपक्षीय बैठक में नहीं हो सकी कोई प्रगति
नई दिल्ली। बाणसागर बांध से पानी छोडेÞ जाने को लेकर मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश सरकार के बीच जारी विवाद को हल करने के लिए केंद्र द्वारा गुरुवार को बुलाई गई त्रिपक्षीय बैठक में कोई प्रगति नहीं हुयी क्योंकि कई लंबित मुद्दों का समाधान नहीं निकल सका।  दोनों राज्यों के मुख्यमंत्री बैठक में शामिल नहीं हुए और उत्तर प्रदेश के सिंचाई मंत्री शिवपाल सिंह यादव ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्री उमा भारती से यहां मुलाकात की और बांध से तुरंत पानी छोड़े जाने के लिए मध्य प्रदेश को निर्देश दिए जाने की मांग की।सूत्रों ने बताया कि दोनों प्रदेशों के जल संसाधन विभागों के अधिकारियों ने केंद्रीय जल संसाधन सचिव के साथ यहां बैठक की। एक अधिकारी ने बताया कि दोनों राज्यों के बीच अंतर - मंत्रालयी बैठक नहीं हो सकी क्योंकि कई लंबित मुद्दों को पहले हल किए जाने की जरूरत है। इसलिए अधिकारी स्तर पर ऐसे मुद्दों के हल होने के बाद मंत्रियों की बातचीत हो सकती है।
22May-2015

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