पानी के साथ अन्न का भी पड़ सकता है टोटा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में जिस प्रकार से भू-जल का स्तर निरंतर गिरता जा रहा है उससे
पर्यावरणविदों और जल क्षेत्र में काम करने वालों के लिए किसी चिंता से कम
नहीं है। भारत में जल को लेकर आ रही वैश्विक रिपोर्टों पर यकीन करें तो आने
वाले कुछ सालों में हम पानी की बूंद-बूंद से तरस जाएंगे, जिसके कारण फसल
उत्पादन में अन्न का भी टोटा होने से इंकार नहीं किया जा सकता।
भारत दुनिया की सतह क्षेत्र के 2.4 फीसदी भाग पर है, पर इसकी आबादी दुनिया की
तकरीबन 17 फीसदी है। हालांकि हमारे देश में दुनिया के जल संसाधन का 4 फीसदी
हिस्सा मौजूद है। देश के अलग-अलग जलवायु होने के कारण स्थान के अनुरूप
पानी की सुलभता नहीं है। ऐसे में कई हिस्सों में पेयजल तक की कमी है।
सिंचाई के लिए वैज्ञानिक और संसाधनों वाले युग में भी ऊपर की ओर देखना पड़ता
है। पेश है देश की भूजल की स्थितियों और संभावनाओं पर आने वाली अध्ययन
रिपोर्ट पानी की चिंता बढ़ा रही है। इसका कारण साफ है कि पानी के बगैर जीवन
की कल्पना ही नहीं की जा सकती है, पर इसका सबसे बड़ा स्रोत भूजल है और उसमें
ही निरंतर गिरावट देखने को मिल रही है। विशेषज्ञ तो कहते हैं कि यदि इस
समस्या को न सुलझाया गया तो भविष्य के लिए पानी ही सबसे बड़े खतरे की घंटी
है, क्योंकि पृथ्वी पर जीवों के जीवन का बड़ा आधार पानी ही है। देश में कई
क्षेत्रों में तो लोग दूषित व जहरीला पानी पीने को मजबूर हैं।
क्या कहती है अध्ययन रिपोर्ट
भारत
जैसे देश के कुछ हिस्सों में लगातार गिरते भूजल स्तर को लेकर जल क्षेत्र
की एक प्रमुख परामर्शदाता कंपनी ईए वाटर की अध्ययन रिपोर्ट पर यकीन करें तो
आने वाले दिनों में भारत में पानी की मांग आपूर्ति के अभी तमाम मौजूदा
स्रोतों से बढ़ जाएगी और अगले एक दशक तक भारत दुनिया में पानी की कमी वाला
पहला देश बन जाएगा। मसलन आने वाले दस सालों में भारत के बड़े हिस्से में
पानी का घोर अकाल होगा और लोग पानी की बूंद-बूंद के लिए तरस सकते हैं।
अध्ययन के अनुसार भारत में सभी स्रोतों के माध्यम से पानी की खपत लगातार बढ़
रही है, जिसके कारण एक दशक बाद तमाम इलाके पानी के गंभीर संकट से
गुजरेंगे।
आय के साथ बढ़ी पानी की खपत
अध्ययन रिपोर्ट के
अनुसार प्रत्येक परिवार की बढ़ती आय और उद्योग एवं सर्विस सेक्टर के बढ़ते
योगदान की वजह से औद्योगिक और घरेलू सेक्टर में पानी की खपत तेजी से बढ़ रही
है। देश में सिंचाई के लिए इस्तेमाल होने वाला 70 फीसदी और घरेलू इस्तेमाल
में लाए जाने वाला 80 फीसदी पानी भूजल से मिलता है, जिसका स्तर लगातार
गिरता जा रहा है। ऐसे में फसल उत्पादन पर भी गहरा असर होगा। वहीं वैश्विक
शोधकतार्ओं की रिपोर्ट कहती है कि ग्लोबल वार्मिग के कारण सदी के अंत तक
सूखे की मौजूदा स्थिति और भयावह हो सकती है। भविष्य में वर्षा की दरों में
आए बदलाव और उच्च वाष्पीकरण दर को देखते हुए यह चिंता खतरे की घंटी
में बदल सकती है।
जल पर कानून की जरूरत
पर्यावरण संरक्षण के लिए काम कर रहे वीपी सिंह बघेल का कहना है कि देश की सरकार
हालांकि जल क्षेत्र में जल प्रबंधन को लेकर चिंतित है और योजनाएं भी बना
नही हैं। सरकार को चाहिए कि वह जमीन से पानी निकालने के लिए सख्त कानून
बनाने की पहल करते हुए जमीन से पानी निकालने पर टैक्स लगाने का प्रावधान
करें। इस कानून में बिजली से चलने वाले पानी के संयंत्रों पर रोक लगाने
जैसे भी प्रावधान होने चाहिए। उनका यह भी मत है कि ज्यादा से ज्यादा पानी
डिस्चार्ज किया जाए, जिसके लिए वाटर हार्वेस्टिंग सिस्टम ज्यादा बेहतर है।
वर्ष 1978 से पहले जल आयोग नहीं था। उस समय एक व्यक्ति 50 लीटर पानी खर्च
करता था। उस समय आबादी 81 करोड़ थी। अब आबादी 130 करोड़ हो गई है और प्रति
व्यक्ति पानी का खर्चा 350 लीटर प्रतिदिन हो गया है। जो पहले से सात गुना
अधिक है। वर्ष 1978 में दिल्ली के नजदीक गौतमबुद्ध नगर जैसे जिले में 10
फिट पर पानी मिल जाता था, जहां आज 173 फिट पर भी मुश्किल से पानी मिल पा
रहा है।
25May-2015
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