बुधवार, 20 मई 2015

नए पैमाने पर बढ़ सकती है गरीबों की तादाद!


-गरीबी की समस्या से निपटने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार पर अमीर हितैषी होने के आरोप से घिरी सरकार गरीबी की समस्या से निपटने के लिए गरीबों के पैमाने में बदलाव करने में जुटी है। हालांकि सरकार गरीबी के जिस पैमाने पर काम कर रही है उसमें देश में गरीबी का आंकड़ा बढ़ने के कयास लगाए जा रहे हैं।
सूत्रों के अनुसार मोदी सरकार ने हर पांच साल में सामाजिक आंकड़े पेश करने वाले राष्‍ट्रीय नमूना सर्वेक्षण संगठन यानि के 2011 के आंकड़ों को आधार बनाकर गरीबी के पैमाना तय करने पर पिछले कई माह से काम शुरू कर दिया था। गरीबी की नई परिभाषा के लिए सरकार ने एक रोडमैप तैयार करते हुए नीति आयोग के उपाध्यक्ष अरविंद पनगढ़िया की अध्यक्षता में एक 14 सदस्यीय कार्यबल का गठन किया था, जिसका नई परिभाषा के लिए कार्य जारी है। विश्लेषकों के अनुसार अमीरों के हितैषी के आरोपों को झुठलाने के लिए मोदी सरकार गरीबी समर्थक छवि पैदा करने के लिए गरीबी की नई परिभाषा में गरीबों की संख्या बढ़ाने के फार्मूले पर काम कर रही है। सूत्रों के अनुसार सरकार यूपीए सरकार के प्रति व्यक्ति खर्च के पैमाने को घटा सकती है, जिससे गरीबों की संख्या बढ़ना तय है। एक अनुमान के अनुसार देश में सवा सौ करोड़ की आबादी में मोदी सरकार के प्रस्तावित पैमाने से गरीबों की संख्या 40 प्रतिशत तक पहुंच सकती है। जबकि यूपीए शासन काल में अंतरिम रूप से जारी किये गये आंकड़ों में गरीबों की संख्या 30 प्रतिशत थी। विश्लेषकों के मुताबिक गरीबी की संख्या बढ़ने का सरकार की गरीबी की समस्या से निपटने के लिए अपनाई जा रही रणनीति से राजनीतिक तौर से फायदा हो सकता है। ऐसा करने से विपक्षी दलों से अमीर हितैषी होने के आरोप को भी सरकार आराम से झुठला सकती है।
मजाक नहीं उड़ने देगी सरकार
दरअसल मोदी सरकार गरीबों को लेकर उस रणनीति का हिस्सा नहीं बनना चाहती, जिसमें सितंबर 2011 में तत्कालीन यूपीए सरकार को सुप्रीम कोर्ट में एक ऐसा शपथ पत्र देकर गरीबी का मजाक उड़ाने पर फजीहत का सामना करना पड़ा था। मसलन यूपीए सरकार ने वर्ष 2010-11 में मुद्रास्फीति को आधार वर्ष मानते हुए सुप्रीम कोर्ट में दिये एक शपथ पत्र में गरीबी रेखा के जिस पैमाने को शहरी व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 32 रुपये और गांव में प्रतिदिन 26 रुपये से ज्यादा कमाने वालों को गरीब ही नहीं माना। इस पैमाने पर फजीहत होने के बाद सरकार की गठित सुरेश तेंदुलकर कमेटी ने वर्ष 2011-12 की रिपोर्ट में ग्रामीण इलाकों में 27 रुपये और शहरी क्षेत्रों में 33 रुपये प्रति व्यक्ति दैनिक खर्च के पैमाने से नीचे गुजर-बसर करने वालों को गरीब माना था, जो देश में 22 प्रतिशत गरीबी का आंकड़ा बताता नजर आया। इस पर भी बवाल हुआ। आखिर यूपीए सरकार को तेंदुलकर रिपोर्ट की समीक्षा के लिए सी. रंगराजन कमेटी बनानी पड़ी, जिसने ग्रामीण इलाकों के लिए इस पैमाने को क्रमश: बढ़ाकर 32 रुपये और शहरी क्षेत्रों के लिए 47 रुपये तक सीमित किया। इस आधार पर देश में गरीबों की तादाद 30 प्रतिशत तक पहुंची। जबकि मोदी सरकार ने रंगराजन समिति की समीक्षा रिपोर्ट को स्वीकार करने के बजाए अलग से अपने फार्मूले पर गरीबी का पैमाना तैयार करके गरीबी से लड़ने का संकल्प लिया।
फार्मूले पर जारी मंथन
मोदी सरकार के फार्मूले पर कार्य कर रहे कार्यबल ने अभी सरकार को अपनी रिपोर्ट नहीं सौंपी है जिसका मंथन जारी है। सूत्रों के अनुसार पिछले दिनों हुई बैठक में जिन कदमों पर विचार किया गया है उसमें एनएसएसओ के आंकड़े के आधार पर उस फार्मूले पर लगभग आम सहमति बन गई है जिससे देश की आबादी में गरीबों की संख्या आंकड़ों में पहले से कहीं ज्यादा नजर आएगी। कार्यबल को सरकार ने यह पता लगाने का काम भी सौंपा है कि सामाजिक क्षेत्र की योजनाओं का फायदा गरीबों को मिल पा रहा है या नहीं और कैसे मिल सकता है। इस फार्मूले से सरकार उस विवाद से भी बच जाएगी जिसमें दैनिक प्रति व्यक्ति खर्च के आधार पर गरीबी की रेखा तय करने से पहले पैदा हो चुका है। सूत्रों के अनुसार माना जा रहा है कि गरीबी का पैमाना तय करने के लिए अपनाए जा रहे फार्मूले से देश में सवा सौ करोड़ की आबादी में गरीबों की संख्या 40 प्रतिशत या उससे भी अधिक तक पहुंच सकती है।
20May-2015

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