रविवार, 3 मई 2015

मात्र दो सांसदों में दिखी हिंदी सीखने की ललक!


गैर हिंदी भाषी राज्यों के ज्यादातर माननीय गैर हाजिर रहे

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार के हिंदी भाषा पर अधिक बल दिये जाने से गैर हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों में भी हिंदी को समझने की उत्सुकता बढ़ी। सरकार और संसद की पहल पर ऐसे सांसदों को हिंदी सिखाने के लिए चार दिवसीय हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम भी हुआ, लेकिन उसमें केवल दो ही सांसदों में हिंदी सिखने की ललक नजर आई और ज्यादातर गैर हिंदी राज्यों के सांसद हिंदी की क्लास से गैर हाजिर रहे।
लोकसभा सचिवालय के अधीन संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो द्वारा आयोजित ‘गैर हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों की हिंदी कक्षा’ नामक एक चार दिवसीय हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम किया। ब्यूरो के एक अधिकारी ने बताया कि उनकी ओर से पूर्वोत्तर और दक्षिण भारत के 15 गैर हिंदी भाषी राज्यों के करीब 150 लोकसभा सांसदों को हिंदी सीखने के लिए ईमेल व दूरभाष के जरिए आमंत्रित किया और करीब तीन दर्जन सांसदों ने इस कार्यक्रम में आने की सहमति भी जताई, लेकिन चार दिन तक चले इस हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम में ज्यादातर गैर हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों ने कोई दिलचस्पी नहीं दिखाई। ब्यूरो के अनुसार केवल दो ही सांसदों ने चारों दिन हिंदी के अक्षर ज्ञान को समझने में अपनी गहन रूचि दिखाई।
एक सांसद पर एक प्रशिक्षक
संसद भवन के संसदीय ज्ञान पीठ में आयोजित हिंदी प्रशिक्षण में त्रिपुरा पश्चिम के सीपीआई-एम के सांसद शंकर प्रसाद दत्ता तथा तमिनाडु में कालाकुरीची से अन्नाद्रमुक सांसद डा. के. कामराज ने हिंदी को सीखने के लिए गहनता से हिंदी अक्षरों का ज्ञान लिया। इस हिंदी ज्ञान को देने के लिए गृहमंत्रालय में राजभाषा विभाग और केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के उप निदेशक भूपेन्द्र सिंह तथा गृहमंत्रालय में राजभाषा के सहायक निदेशक डा. बीएन झा ने पसीना बाहया। संसदीय अध्ययन एवं प्रशिक्षण ब्यूरो के अनुसार इन दोनों सांसदों ने हिंदी को गहराई से समझने का प्रयास किया और इसके लिए निरंतर प्रयास करने की बात कही। ब्यूरो हिंदी सिखाने के लिए गैर हिंदी भाषी राज्यों के सांसदों को इसी प्रकार का जल्द ही कार्यक्रम आयोजित करेगा।
मोदी सरकार के हिंदी प्रेम का असर
दरअसल केंद्र में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार में ज्यादातर सरकारी कामकाज में हिंदी भाषाा का प्राथमिकता दी जा रही है। यहां तक संसद में भी केंद्रीय मंत्री हिंदी भाषा में ही बोलते नजर आते हैं। संसद में खासकर गैर हिंदी राज्यों के सांसदों की हिंदी भाषा को न समझने की टीस उस समय उजागर हुई जब गृहमंत्री राजनाथ सिंह के हिंदी में बोलने पर ऐसे करीब 30 सांसदों ने समझने की असमर्थता प्रकट की थी। हालांकि संसद के दोनों सदनों में सदस्यों की सीट पर लगे हेडफोन में नौ भाषाओं में अनुवाद सुविधा उपलब्ध है। सांसदों के हिंदी भाषा को न समझने पर सरकार और लोकसभा अध्यक्ष ने गैर हिंदी भाषी सांसदों की उत्सुकता को देखते हुए उन्हें हिंदी सिखाने की योजना को अंजाम दिया। इसका जिम्मा गृहमंत्रालय को दिया जिसने लोकसभा सचिवालय के साथ मिलकर मौजूदा सत्र में ही चार दिवसीय हिंदी प्रशिक्षण कार्यक्रम के तहत सांसदों को हिंदी सिखाने का अभियान शुरू करने का निर्णय लिया। गृहमंत्रालय ने इसके लिए केंद्रीय हिंदी प्रशिक्षण संस्थान के हिंदी विशेषज्ञों को भी नियुक्त कर दिया है।
03May-2015


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