रविवार, 10 मई 2015

जजों के नियुक्ति की कॉलेजियम प्रणाली ही बेहतर

-न्याय में विलंब के लिए सरकारें दोषी
बढ़ाएं अदालतें व न्यायाधीश
-एनजेएसी से जजों की नियुक्ति को राजनीति में लपेटने की कोशिश
-नयी प्रणाली लागू होने से बढ़ेगा भ्रष्टाचार, तथ्यपरक सुधार जरूरी
हरिभूमि ब्यूरो
, नई दिल्ली
उम्र की इस दहलीज पर ज्यादातर लोग कामकाज से रिटायर हो जाते हैं। आध्यात्म की ओर झुकाव हो जाता है। मगर, प्रख्यात कानूनविद और पूर्व कानून मंत्री रामजेठमलानी न तो टायर हुए हैं और न ही वे रिटायर होने जैसा दिखते हैं। नब्बे से ज्यादा बसंत देख चुके जेठमलानी अभी बेहद ऊर्जावान और न्यायायिक कामकाज के प्रति उतने ही ईमानदार। खरी-खरी बात रखने और साफ बोलने की वजह से इन्हें खासकर राजनीति में भारी नुकसान उठाना पड़ा। भाजपा से निष्कासित किए गए। लेकिन नरेंद्र मोदी को पार्टी के अंदर से प्रधानमंत्री पद का दावेदार बनाने की सबसे पहले वकालत करने वाले जेठमलानी ही थे। अब वे फिर से मुखर हैं। नेशनल जूडिशियल एप्वाइंटमेंट कमीशन (एनजेएसी) के मार्फत जजों की बहाली के संसद के फैसले के खिलाफ खंभ ठोंक कर खड़े हैं। उनका स्पष्ट मानना है कि कॉलेजियम सिस्टम ही बेहतर प्रणाली है जिसमें कानून विशेषज्ञ मिलकर ही जजों की नियुक्ति करते हैं। ऐसी ही कुछ ज्वलंत मुद्दों पर उन्होंने ‘हरिभूमि के शिशिर सोनी के कुछ प्रश्नों का बेबाकी से जवाब दिए, पेश है उसके मुख्य अंश-
• आपने एनजीएसी के खिलाफ मुहिम क्यों छेड़ी हुई है ?
क्यों कि मैं चाहता हूं कि देश की न्यायायिक व्यवस्था में कम से कम किसी राजनेता या अन्य का दखल न हो। न्याय और कानून से जुड़े विशेषज्ञ जजों की नियुक्ति करें। कॉलेजियम सिस्टम से यही होता आया है। एनजीएसी में कानून मंत्री और दो समाज के नामचीन हस्तियों वाली समिति जजों के साथ बैठकर नए जजों की नियुक्ति करे यह ठीक नहीं।
• मगर, एनजेएसी पर संसद की मुहर लगी है..
जजों की नियुक्ति को केंद्र की राजग सरकार ने राजनीति की चासनी लपेटने की कोशिश की है। यूपीए सरकार ने इस संबंध में संविधान संशोधन पेश किया था। एनजेएसी के बारे में केवल एक लाइन का जिक्र था। मगर अब देखने में आ रहा है कि इस मसले पर भाजपा-कांग्रेस दोनों के सुर एक हैं। व्यवस्थित और मर्यादित जजों की निुयक्ति संबंधित कॉलेजियम सिस्टम को बदलकर नया सिस्टम लागू करने से भ्रष्टाचार बढ़ेगा। भ्रष्टाचारी सरकारें न्यायायिक व्यवस्था को भी भ्रष्टाचारी बनाने पर तुली हैं। जिसका जोरदार विरोध हो रहा है।
• आरोप तो यह भी हैं कि कुछ जजों ने अपने संबंधियों को बिना योग्यता के जज की नियुक्ति कराने में सफलता पाई। उसी कॉलेजियम सिस्टम से जिसकी आप पैरवी कर रहे हैं?
देखिए एक-दो ऐसे केस अगर हुए हैं तो उसकी पड़ताल होनी चाहिए। मगर, केवल इसका उदाहरण देकर समूचा सिस्टम बदलना और उसमें कानून की एबीसीडी नहीं जानने वालों का दखल होना कतई उचित नहीं। ये ठीक वैसे ही है जैसे किसी सरकार के एक मंत्री ने भ्रष्टाचार किया तो उस भ्रष्टाचारी मंत्री को बदलना चाहिए। उस पर कानूनी कार्रवाई होनी चाहिए न कि समूची सरकार ही हटा देनी चाहिए!
• आप मानते हैं कि न्यायिक व्यवस्था में भ्रष्टाचार बढ़ा है?
नहीं मैं ऐसा बिल्कुल नहीं मानता। मैं इससे सहमत नहीं। इसे बड़े कैनवस के रूप में देखने की जरूरत है। कुछ मामले अगर सामने आए हैं उसमें जरूर तथ्यपरक सुधार किया जाना चाहिए।
• विदेशी कानूनी फर्म को अगर देश में प्रैक्टिस की इजाजत मिलती है तो इससे हमारे वकीलों के हित पर आघात नहीं होगा?
ऐसा नहीं है। विदेशी कानूनी फर्म आएं। देश मे प्रैक्टिस करें। लेकिन ऐसा प्रबंध वैसे ही देश के साथ होना चाहिए जिन देशों में हमारे देश के वकील भी जाकर प्रैक्टिस कर सकें। यानि दूसरे देश के वकील यहां आएं तो हमें भी उनके देश में काम करने की छूट मिलनी चाहिए। जो लोग इसका विरोध कर रहे हैं उन्हें पता होना चाहिए कि विदेशी वकील अदालत में वकालत नहीं कर सकते। लेकिन ड्राμिटंग, ट्रांजेक्शनल डीलिंग्स सहित अन्य डॉक्यूमेंटेशन के लिए वे हमारे देश में लॉ-फर्म खोल सकते हैं। इसमें जाहिर तौर पर देश के वकीलों को ही काम मिलेगा। जिससे वे इस फील्ड के गूढ़ विषयों के संबंध में और समझ विकसित कर सकेंगे।
देश के विभिन्न कोर्ट में केस का अंबार लगने का जिम्मेदार आप किस ठहराते हैं?
सभी लोग इस मामले में एक स्वर में देश की न्यायिक प्रणाली को ही दोषी मानते हैं, मगर हमारा मानना है कि सरकारें दोषी हैं। कानून आयोग ने मौजूदा कोर्ट की संख्या से पांच गुना ज्यादा कोर्ट की स्थापना की अनुशंसा की हुई है। लेकिन सरकारें आती हैं, जाती हैं। इस मामले में हाथ पर हाथ धरे बैठे रहती हैं। क्यों नहीं वे जजों की संख्या बढ़ाते? क्यों नहीं कोर्ट स्टाफ की गिनती में इजाफा किया जाता है। एक जज पांच जजों के बराबर काम नहीं कर सकता। हमारे यहां कहावत है- न्याय मिलने में देरी हुई तो इसका मतलब है वादी को न्याय मिला ही नहीं। और न्याय का फैसला अगर जल्दबाजी में सुना दिया जाए तो बहुत कुछ गड़बड़ी का अंदेशा बना रहता है। इसीलिए मौजूदा व्यवस्था में देर तो हो रही है मगर न्याय लोगों को दुरुस्त मिल रहा है।
10May-2015

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