-न्यायालयों व जजों की संख्या बढ़ाने की तैयारी
ओ.पी. पाल, नई दिल्ली
ओ.पी. पाल, नई दिल्ली
‘देश
की समूची न्यायिक प्रणाली में आमूल-चूल बदलाव की जरूरत है। यदि अदालतों
में जजों की संख्या न बढ़ाई गयी और सब कुछ मौजूदा रफ़्तार से ही चला तो लंबित
मुकदमों के निस्तारण में 464 साल लग जाएंगे।’ यह स्पष्ट चेतावनी संसद में
पेश की गयी जस्टिस एपी शाह की अध्यक्षता वाले विधि आयोग ने दी है।
संसद
में पेश विधि आयोग के अध्यक्ष जस्टिस एपी शाह की सालाना रिपोर्ट में
दर्शायी गई समस्या की विकराल तस्वीर को साफ करने के लिए महत्वपूर्ण सुझाव
दिये गये। हालांकि इस रिपोर्ट में आयोग ने इस बार भी हर बार की तरह जजों और
अदालतों की कमी की मांग को पूरा करने का सुझाव दिया। रिपोर्ट में कहा गया
कि अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुसार देश के 24 उच्च न्यायालयों में जजों की
संख्या 906 होनी चाहिए, मगर अभी यह 560 ही है। 346जजों की कमी को सरकार
सालों से संसाधनों या नियुक्ति की प्रक्रिया के चलते पूरा नहीं कर सकी। यह
बात दीगर है कि हाईकोर्ट में मांग के मुताबिक जजों की मौजूदा अधिकतम संख्या
में 25 फीसदी का इजाफा करना समय की मांग बन गया है। इस प्रकार सभी
हाईकोर्ट में ही कम से कम 500 जज तैनात किए जाएं, तब उच्च अदालतों में
लंबित मामलों की समस्या से निजात मिल सकती है। जबकि निचले स्तर पर नई
अदालतों के गठन और जजों की तैनाती पर फिलहाल सोचना भी मुमकिन नहीं है।
रिपोर्ट में दिल्ली उच्च न्यायालय के एक न्यायाधीश का हवाला देते हुए
अनुमान लगाया गया है कि मौजूदा स्थिति में अदालतों में लंबित तीन करोड़ से
अधिक मामलों को निपटाने में 464 सालों का समय लगेगा। रिपोर्ट कहती है कि
उनका अनुमान अगली बार धूमकेतु दिखाई देने को लेकर खगोलविदों की भविष्यवाणी
की तरह सही नहीं हो सकता, लेकिन यह निश्चित तौर पर न्यायापालिका की स्थिति
को बयां करता है।
संसद में विधि आयोग की रिपोर्ट पेश होने के बाद केंद्र
सरकार ने न्यायपालिका की चिरंतन समस्या के समाधान पर चिंतन ही शुरू नहीं
किया, बल्कि उच्च न्यायालयों में जजो की नियुक्ति के लिए राष्टÑीय न्यायिक
नियुक्ति आयोग की अधिसूचना भी जारी कर दी है। विधि मंत्रालय के अनुसार
सरकार ने न्यायालयों की संख्या बढ़ाने और जजों के अनुमोदित पदों की संख्या
बढ़ाने पर भी विचार शुरू कर दिया है ताकि सरकार नई अदालतों और अतिरिक्त जजों
के लिए संसाधन उपलब्ध करा कर जिम्मेदारी को पूरा कर सके। सरकार का यह भी
प्रयास है कि मौजूदा कानूनों की विभिन्न अदालतों में होने वाली व्याख्या को
नए कानूनों में बदलकर कर अदालतों का काम आसान किया जाए।
कुटुम्ब न्यायालय व ग्राम न्यायालय
विवाह
और पारिवारिक मामलों के निपटान और सुलहनामों की दिशा में देश में फिलहाल
410 कुटुम्ब न्यायालयों का भी संचालन किया जा रहा है। सरकार की इस योजना
में वर्ष 2014-15 के लिए सरकार ने पांच करोड़ का प्रावधान किया, जिसमें सबसे
ज्यादा पौने चार करोड़ उत्तर प्रदेश और एक करोड़ छत्तीसगढ़ सरकार को अनुदान
जारी किया गया। इसी प्रकार से यूपीए सरकार ने वर्ष 2009 में केंद्रीय
वित्तीय सहायता का प्रावधान करते हुए दस राज्यों में 194 ग्राम न्यायालयों
की अधिसूचना जारी कर दी थी, जिनमें फिलहाल 159 ही कार्य कर रहे हैं। इसके
लिए एक बारगी वर्ष 2014 तक के लए अधिसूचना के बाद ही 34.49 करोड़ रुपये की
धनराशि जारी कर दी गई थी।
---इनसेट-कोट--
अदालतों में तारीख
पर तारीख से परेशान जनता को मजबूरी में खुद ही अपने विवाद निपटाने के लिए
पंचायते करनी पड़ती है, भले ही वे गैरकानूनी करार ही क्यों न दी जाती रही
हों। सबसे ज्यादा गरीब और वंचित लोगों को जल्द न्याय की जरूरत है, जिनके 80 प्रतिशत
मामले सालों तक अटके रहते हैं।राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के जरिए
नीचे से ऊपर तक की न्याय प्रक्रिया में पारदर्शिता आएगी तो निश्चित रूप से
न्याय प्रक्रिया में तेजी आएगी और न्यायपालिका के प्रति जनता का विश्वास
बढ़ेगा।
-कमलेश जैन, वरिष्ठ अधिवक्ता, सुप्रीम कोर्ट
08May-2015
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