गुरुवार, 30 जून 2016

आम जिंदगी पर भी पड़ेगा वेतन आयोग का असर!

महंगाई की आग में घी ड़ालने का बन सकता है सबब
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार द्वारा भले ही देश के एक करोड़ से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों की जेब भरने के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर कर ली हो, लेकिन इसका असर केंद्र से ज्यादा जहां राज्यों के खजाने पर ज्यादा पड़ने के साथ आम इंसान की जिंदगी पर भी पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। मसलन विशेषज्ञ मान रहे हैं कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होना महंगाई की जलती आग में घी डालने का सबब बन सकती है।
केंद्र सरकार ने बुधवार को सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूर करके भले ही देश के सरकारी कर्मचारियों को एक बड़ी सौगात दी हो, लेकिन जब करोड़ों कर्मचारियों की जेब में अतिरिक्त पैसा होगा, तो उसका कुछ न कुछ असर बाजार पर भी पड़ना तय है। मसलन विशेषज्ञों ने अनुमान लगाया है कि अगले साल उपभोक्ता सामग्री और रीयल स्टेट बाजार में रौनक बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जाहिर सी बात है कि उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इजाफे का खतरा तय है। मसलन दाल, सब्जी और अन्य आवश्यक खाद्य सामग्री की कीमतों में वृद्धि की प्रबल संभावनाओं से आम आदमी को अपनी जेबें ढ़ीली करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा यानि पहले से मुहं बाये खड़ी महंगाई की सुरसा आम नागरिकों की जिंदगी में भूचाल लाएगी और उसकी कमर तोड़ने का काम करेगी। ऐसे सवाल है कि बाजार की चमक कब तक बनी रहेगी? लेकिन विशेषज्ञ सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को देश में पहले से जल रही इस महंगाई की आग में घी डालने का काम करेगी।
अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर 
राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि वेतन आयोग की सिफारिशों के कारण प्रतिभाशाली लोगों का देश से पलायन बढ़ेगा, जिसका अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। देश की अर्थव्यवस्था बेहतर न होते हुए भी कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में आई भारी कमी और सबसिडी बिल में कटौती के कारणआज मोदी सरकार के राजकोष की माली हालत बेहतर है। इसी कारण केंद्र सरकार को नए वेतन लागू करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी, लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो वित्तीय संकट से घिरे देश के अधिकांश राज्यों के लिए सातवें वेतन आयोग को लागू करना इतनी आसान डगर नहीं होगी। केंद्र सरकार भले ही वेतन आयोग को सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी से आंक रही हो, लेकिन माना जा रहा है कि केंद्र के मुकाबले राज्य सरकारों को भारी वेतन मानों को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।

सरकारी कर्मचारियों की बल्ले-बल्ले

केंद्रीय कैबिनेट ने दी सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूर करके सरकारी कर्मचारियों के इंतजार को विराम लगा दिया है, जिनके वेतनमानों और ग्रेच्युटी में बीस फीसदी से ज्यादा की बढोत्तरी हो जायेगी। सरकार के इस फैसले सरकार पर 1.02 करोड़ रुपये सालाना का बोझ पड़ेगा।
केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने सातवां वेतन आयोग की रिपोर्ट लागू करने के कैबिनेट के फैसले के बारे में जानकारी देते हुए बताया कि वेतन आयोग की इस रिपोर्ट को लागू करने से सरकार पर सालाना 1.02 लाख करोड़ रुपये का सालाना भार आएगा।, जबबकि एक जनवरी से एरियर का भुगतान करने से 12 हजार करोड़ रुपये का अतिरिक्त बोझ सरकार पर आ जाएगा। जेटली ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को हुई केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में बढ़े वेतन को जुलाई से देने पर सहमति बनी और सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को मंजूरी दे दी गई, जिसके तहत ये सिफारिशें एक जनवरी 2016 से लागू मानी जाएंगी। सरकार जनवरी से अभी तक का बढ़ा वेतन अपने कर्मचारियों को एरियर के तौर पर देगी। सरकार के इस फैसले से 56 लाख पेंशनरों समेत एक करोड़ से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों का सीधे फायदा होगा। जेटली ने दावा किया कि 5वे वेतन आयोग को लागू करने में 19 माह और छठे आयोग की सिफारिश के निर्णय में पिछली सरकारों को 36 महीने लगे थे। जबकि मोदी सरकार ने वेतन और पेंशन के संबंध में आयोग की सिफारिशों को स्वीकार करके एक जनवरी से लागू करने का निर्णय लिया है। उन्होंने कहा कि निजी सेक्टर से सरकारी सेक्टर की सैलरी की तुलना की गई। कमेटी की सिफारिशें आने तक मौजूदा भत्ते जारी रहेंगे।
अधिकांश सिफारिशें मंजूर
सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को अधिकतर स्वीकार किया गया है, लेकिन सरकार ने ग्रुप इंश्योरेंस के लिए सैलरी से कटौती की सिफारिश नहीं मानी। इस निर्णय से क्लास वन की सैलरी की शुरूआत 56100 रुपये होगी। ग्रैच्युटी को 10 लाख बढ़ाकर 20 लाख किया गया। एक्स ग्रेशिया लंपसम भी 10-20 लाख से बढ़ाकर 25-45 लाख रुपये किया गया। जबकि वेतन आयोग द्वारा सुझाए गए भत्तों पर वित्त सचिव अध्ययन करेंगे और फिर इस अंतिम निर्णय होगा।
किसकी कितनी बढ़ी सैलेरी
सिफारिशें लागू हो जाने के बाद केंद्रीय कर्मियों की मिनिमम पे 7000 से बढ़कर 18000 रुपए हो जाएगी। हायर पे बैंड में ये सैलेरी फिलहाल 90 हजार रुपए है जो बढ़कर 2,50,000 रुपए हो जाएगी। यानी बेसिक पे में कम से कम 3 गुना टोटल सैलेरी में 23.5 परसेंट और पेंशन में 24 परसेंट इजाफा हो जाएगा।
सिफारिशें लागू होने के बाद वेतनमान
7000-18000 रुपये
13500-35400 रुपये
21000-56100रुपये
46100-118500 रुपये
80000-225000 रुपये
90000-250000रुपये

अब दिन-रात खुली रह सकेंगी दुकानें व शॉपिंग मॉल्स!

सरकार ने दी एक मॉडल कानून को मंजूरी
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
देश में दुकानों, शापिंग मॉल व अन्य प्रतिष्ठानों को पूरे साल लगातार खुला रखने की अनुमति देने के इरादे से केंद्र सरकार ने एक ‘द मॉडल शाप्स एंड इस्टेबलिशमेंट’ (रेग्यूलेशन आफ इंप्लायमेंट एंड कंडीशन आफ सर्विसेज) विधेयक को मंजूरी दी है, जिसकी संसदसे मंजूरी लेना जरूरी नहीं है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को केंद्रीय मंत्रिमंडल की हुई बैठक में देश में दुकानों, शापिंग मॉल व अन्य प्रतिष्ठानों को साल के 365 दिन खुला रखने की अनुमति देने वाले एक मॉडल कानून को मंजूरी दी गई है। इस कानून से इन प्रतिष्ठानों को अपनी सुविधा के अनुसार कामकाज करने यानी खोलने व बंद करने का समय तय करने की सुविधा मिलेगी। इस कानून के दायरे में विनिर्माण इकाइयों के अलावा वे सभी प्रतिष्ठान आएंगे, जिनमें 10 या अधिक कर्मचारी हैं पर यह विनिर्माण इकाइयों पर लागू नहीं होगा। सूत्रों के अनुसार इस कानून में पर्याप्त सुरक्षा व्यवस्था के साथ महिलाओं को रात्रिकालीन पारी में काम पर लगाने की छूट तथा पेयजल, कैंटीन, प्राथमिक चिकित्सा व क्रेच जैसी सुविधाओं के साथ कार्य स्थल का अच्छा वातावरण रखने का प्रावधन किया गया है। सूत्रों के अनुसार इस माडल कानून के लिए संसद की मंजूरी की जरूरत नहीं होगी, क्योंकि श्रम मंत्रालय द्वारा रखे गए प्रस्ताव के तहत राज्य अपनी जरूरत के हिसाब से संशोधन करते हुए इस कानून को अपना सकते हैं।

बुधवार, 29 जून 2016

दुनिया में महिला कार्यबल में बहुत पीछे भारत!

एक दशक में दस फीसदी घटी भागीदारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार की देश में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘बेटी बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी कई महत्वपूर्ण पहल में जहां युद्धक क्षेत्र में महिलाओं ने कदम रखकर इतिहास रचा है। इसके बावजूद पिछले एक दशक में देश के कार्यबलों में महिलाओं की भागीदारी में दस प्रतिशत की गिरावट आई है।
देश के प्रख्यात वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम और शिक्षण क्षेत्र की कंपनी थॉट आब्रिट्रेज रिसर्च इंस्टीच्यूट की जारी ताजा संयुक्त रिपोर्ट में इसका खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक के दौरान कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी में 10 प्रतिशत तक की गिरावट को देखते हुए महिलाओं को आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने यानि महिला सशक्तिकरण की कवायद नगण्य है। रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2000-05 में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 34 प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो वर्ष 2014 तक लगातार गिरते हुए 27 प्रतिशत पर आ गई।
यहां चीन हमसे बहुत आगे
महिलाओं को सुरक्षा देने के मामले में ब्रिक्स देशों में भी भारत की रैंकिंग सबसे नीचे है। चीन में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 64 प्रतिशत, ब्रॉजील में 59 प्रतिशत, रूस में 57 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 45 प्रतिशत और भारत में 27 प्रतिशत है। इसका कारण भारत में उच्च शिक्षा का अभाव, बेरोजगारी बढ़ने और लचीले कामकाजी शर्तों की खामियों को माना गया है।
छत्तीसगढ़ समेत चार राज्य बेहतर
रिपोर्ट के अनुसार वर्ष 2011 में देश के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यबल में पुरुषों और महिलाओं की भागीदारी का अंतर 30 प्रतिशत और शहरों में 40 प्रतिशत रहा। यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर कायम भेदभाव और रोजगार के अवसरों के अभाव को प्रदर्शित करता है। जबकि वर्ष 2011-12 में देश में एफएलएफपी की दर 36 प्रतिशत रही थी। इस दौरान 35 में से 31 राज्यों में यह दर राष्ट्रीय औसत से भी कम रही थी। इस मामले में केवल आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, सिक्किम और हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन बेहतर रहा था।

दिल्ली में बनेगी कूड़े से पहली सड़क!

दुनिया में पहली बार भारत करेगा अपशिष्ट का इस्तेमाल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की सड़क परियोजनाओं में शायद यह दुनियाभर में इतिहास बन जाएगा, जहां सरकार दिल्ली-मेरठ एक्सपे्रस-वे पर दिल्ली के दायरे में बनने वाली सड़क निर्माण में कूड़े का इस्तेमाल करेगा।
दुनिया में अभी तक कूड़े का इस्तेमाल सड़क निर्माण में नहीं किया गया है, लेकिन भारत में पहली बार अपशिष्ट का मिश्रण सड़क निर्माण में सुनकर हैरानी तो हो सकती है, लेकिन सच भी यही है जिसके लिए केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय पिछले काफी समय से अनुसंधान करा रहा है और उसमें सफल भी हो रहा है। मंत्रालय की माने तो कूड़े से सड़क बनाने का काम पहली बार दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस वे पर करने का निर्णय लिया गया है, जो दुनियाभर में अब तक ऐसा कहीं नहीं हो पाया है। इस शोध को को साकार करते हुए सीएसआईआर के सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट ने अगस्त महीने से काम शुरू करने का निर्णय लिया है।
आठ किमी निर्माण पर होगा प्रयोग
सीएसआईआर के सेंट्रल रोड रिसर्च इंस्टीट्यूट के निदेशक प्रोफेसर सतीश चंद्र ने बताया कि नेशनल हाइवे आथोरिटी आॅफ इंडिया के दिल्ली-मेरठ एक्सप्रेस-वे के 16 लेन के पहले चरण में सराय काले खां से यूपी गेट के बीच के करीब साढे 8 किलोमीटर की दूरी में गाजीपुर के लैंडफिल साइट के म्यूनिसिपल सालिड वेस्ट को सड़क बनाने के लिए इस्तेमाल में लाया जाएगा। फिलहाल गाजीपुर के लैंडफिल साइट में 12 मिलियन टन कचरा है और रोजाना यहां 3000 टन कचरा पहुंचता है। इसका इस्तेमाल सीधे सड़क में नहीं कर सकते, लिहाजा सेग्रिगेशन मेथड के जरिए शीशा, मेटल, कपड़ा, प्लास्टिक आदि को अलग करना होगा। तब यहां पड़े कचरे का करीब 60-65 प्रतिशत सड़क बनाने के काम में ला सकते हैं। जितना कूड़ा यहां पड़ा है उससे 20 किलोमीटर लंबी सड़क बन सकती है।
29June-2016

मंगलवार, 28 जून 2016

साइबर खतरे की जद में भारतीय कारोबार!

भ्रष्टाचार और कारोबारी धोखाधड़ी में आई कमी 
हड़ताल, अशांति से भी प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उठाये गये कदमों के बावजूद भारतीय कारोबार पर खतरे मंडरा रहे हैं। मसलन साइबर खतरे समेत एक दर्जन ऐसे कारण सामने आये हैं, जो देश के आर्थिक तंत्र की जद को कुरेद रहे हैं।
दरअसल सोमवार को देश की अर्थव्यवस्था को लेकर प्रमुख कारोबारी संस्था फिक्की ने एक सालाना भारतीय जोखिम सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। यह सर्वेक्षण एक दर्जन प्रमुख जोखिमों पर केंद्रित है जो पूरे देश के आर्थिक तंत्र के लिए साइबर जैसे कई खतरे पैदा करते हैं। सबसे रोचक बात यह सामने आई कि खतरे की इजाद हो रही नई-नई श्रेणियां शीर्ष पर पहुंच रही हैं। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार ‘सूचना और साईबर असुरक्षा’ लगातार दूसरे साल भी भारतीय कारोबार सबसे बड़ा खतरा सामने आया है, जिसकी ऊंची रेटिंग के कारण उच्च-प्रौद्योगिकी संचालित वैश्विक अर्थव्यवस्था में निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों पर खतरा लगातार बना हुआ है। मसलन जहां साइबर हैकिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, वहीं बौद्धिक संपदा और कारोबारी धोखाधड़ी के उल्लंघन के साथ सूचना असुरक्षा ने सभी सेक्टरों और भौगोलिक क्षेत्रों में व्यापार रणनीति की महत्वपूर्ण चिंताओं में इजाफा किया है। इस जोखिम सर्वे रिपोर्ट में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की रणनीति, संचालन और सुरक्षा खतरों का अध्ययन किया गया है।
जाट व पटेल आंदोलन का असर
वर्ष 2016 के लिये सामने आये सर्वे रिपोर्ट में 'हड़तालों, बंद और अशांति' को भी भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला प्रमुख खतरा माना गया है। जबकि इस साल भारतीय कारोबार के लिए विशेष रुप से जाट और पटेल आंदोलनों के साथ सामाजिक अशांति के के अलावा श्रमिक अशांति, सुधारों, भूमि अधिग्रहण और औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन ने भी भारतीय कारोबार की धारणा को प्रभावित किया है।
आतंकवाद की रैंकिंग खिसकी
रिपोर्ट के अनुसार आतंकवाद और उग्रवाद' तीसरे स्थान से घिसकर इस वर्ष चौथे पायदान की रैंकिंग पर पाया गया, लेकिन यह भी सच है कि एक ही बड़ा आतंकी हमले की तबाही पूरे व्यापार के संचालन को आसानी से झकझोर सकती हैं। यानि आतंकी गतिविधियों में इजाफा और इसका भारतीय उपमहाद्वीप तक विस्तार में असंतुष्ट युवाओं की कट्टरता देश के नीति निमार्ताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। वहीं देश में वामपंथी समूहों, कथित नक्सलियों और भारत के विभिन्न भागों में अन्य जातीय विद्रोहों का उग्रवाद व्यापारिक प्रतिष्ठान और उनके संचालन के लिए प्रमुख खतरा बने हुए हैं, जिनके कारण खनिज संसाधनों से संपन्न राज्यों समेत देश के नए व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को प्रभावित कर सकते हैं।

सोमवार, 27 जून 2016

ऐसे सुधरेगी देश की परिवहन व्यवस्था!

छत्तीसगढ़ में दिया जायेगा सिफारिशों को अंतिम रूप
परिवहन मंत्री समूह का पार्किंग से टैक्स प्रणाली सुधार तक जारी मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने सड़क सुरक्षा के लिहाज से देश की परिवहन व्यवस्था में सुधार करने के लिए रोडमैप तैयार किया है, उसमें राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह की सिफारिशें लागू की गई तो देश में पार्किंग से लेकर टैक्स प्रणाली सुधर सकती है। हालांकि सरकार नये मोटर वाहन कानून में राज्यों के इन सुझावों को शामिल करने के लिए विचार कर रही है।
केंद्र सरकार ने देश की परिवहन व्यवस्था में सुधार के लिए सड़क सुरक्षा को प्राथमिकता में शामिल किया है। इस मुद्दे पर केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय ने पटरी पर उतारी गई सड़क परियोजनाओं को ज्यादा से ज्यादा सुरक्षित, पर्यावरण और सुगम यातायात की दिशा में राज्यों के साथ आम सहमति बनाने के लिए राजस्थान के परिवहन मंत्री यूनुस खान की अध्यक्षता में राज्यों के परिवहन मंत्रियों का एक समूह गठित किया था, जिसने अभी तक तीन बैठकों में मैराथन मंथन किया है। समूह की छत्तीसगढ़ में होने वाली अगली बैठक में इन सिफारिशों को अंतिम रूप दिये जाने की संभवना है। अभी तक समूह द्वारा केंद्र सरकार को सड़क परियोजनाओं के अलावा पार्किंग से लेकर टैक्ट प्रणाली तक में सुधार करने का सुझाव दिया है। माना जा रहा है कि यदि केंद्र सरकार ने नये मोटर वाहन कानून में इन सुझावों को हिस्सा बनाने पर गौर किया, तो देश में की परिवहन व्यवस्था में व्यापक सुधार और सरकार सड़क हादसों को रोकने के अलावा ट्रांसपोर्टरों की समस्या के समाधान का एक ऐतिहासिक अध्याय जुड़ सकता है। दरअसल इस माह ही पिछले दिनो सड़क सुरक्षा एंव सुविधाजनक परिवहन पर राज्यों के परिवहन मंत्रियों के समूह ने लगातार दो दिन तक मंथन किया, जिसमें केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने भी हिस्सा लिया।
नेशनल हाइवे पर ऐसी हो व्यवस्था
केंद्र सरकार को समूह ने राष्ट्रीय राजमार्गो पर सड़क हादसों के मद्देनजर ट्रामा सेंटरों में विशेषज्ञ चिकित्सकों की नियुक्तियां और सड़क सुरक्षा की दृष्टि से पार्किंग स्थलों का निर्माण कराने पर जोर दिया है। वहीं तेज गति वाहन चलाने वाले चालकों को चिह्नित कर दंडित करने हेतु सीसीटीवी कैमरे लगाने, परिवहन प्रणालियों की दुश्वारियां दूर करके नई इनोवेशन करने की बात कही। सड़क हादसे कम करने हेतु इंडियन लाइसेंस प्रक्रिया को और सुदृढ़ बनाने, सड़क निर्माण परियोजनाओं में रोड इंजीनियरिंग पर विशेष ध्यान देने पर भी विचार किया है। सरकार को राष्ट्रीय सड़क सुरक्षा के मद्देनजर पब्लिक ट्रांसपोर्ट सिस्टम को बेहतर सुगम बनाने और इसमें इंट्रा-सिटी टैक्सी को बढ़ावा देने का सुझाव दिया है।

अब एमटीसीआर से चीन को झटका देगा भारत

चीन के प्रति ऐसे बदलेगा भारत अपनी नीतियां
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
भारत ने परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानि एनएसजी की सदस्यता में रोड़ा अटकाकर चीन द्वारा दिये गये झटके पर पलटवार करने को तैयार है, जिसके लिए जल्द ही मिसाइल टेक्नॉलोजी कंट्रोल रीजम यानि एमटीसीआर का हिस्सा बनते ही चीन का झटका लगना तय है।
चीन के विरोध ने भारत को परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह यानि एनएसजी का सदस्य बनने के प्रयास को भले ही विफल कर दिया हो, लेकिन भारत ने इसके लिये अभी अपने प्रयास नहीं छोड़े हैं। विशेषज्ञों की माने तो चीन ने भारत को एनएसजी के मामले में धोखा देकर विश्वासघात किया है, जो भारत के धीरे-धीरे वैश्विक स्तर पर शक्ति बढ़ने से बौखलाया हुआ है। चीन के इस रवैये से भारत ने भी चीन से जुड़ी नीतियों के प्रति अपना रूख बदलना शुरू कर दिया है। वैश्विक शक्तियों को आगे बढ़ाने के लिए प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की कोशिशें जारी हैं, जिसके तहत कल भारत सोमवार को मिसाइल टेक्नॉलोजी कंट्रोल रीजम यानि एमटीसीआर की सदस्यता ग्रहण करने जा रहा है, जिसका चीन पिछले दस साल से प्रयास के बावजूद अभी तक हिस्सा नहीं बन सका है। एमटीसीआर की सदस्यता के लिए भारत को पहले ही हरी झंडी मिल चुकी है, जिसकी सोमवार को सदस्यता मिलते ही औपचारिक पूरी हो जाएगी। उधर विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता विकास स्वरूप ने इस बात की पुष्टि की है कि सोमवार को भारत पूर्णरूप से एमटीसीआर का सदस्य बन जाएगा और भारत की वैश्विक शक्तियों में एक पन्ना और जुड जाएगा। सूत्रों के अनुसार एनएसजी की तरह एमटीसीआर में भी अन्य सदस्य देशों की सहमति जरूरी होती है, जिसमें विरोध करते आ रहे इटली ने भारत को समर्थन देने का फैसला कर लिया है।
एक दशक से प्रयास में चीन
भारत के लिए एमटीसीआर में जाना जहां एक बड़ी उपलब्धि होगी, वहीं चीने के लिये यह एक बड़ा झटका माना जा रहा है, जिसके लिए चीन पिछले 10 साल से से इसकी सदस्यता ग्रहण करना चाहता है, लेकिन वह सदस्य नहीं बन पाया। विदेश मंत्रालय के अनुसार भारत एमटीसीआर का 35वां सदस्य होगा। इसकी सदस्यता से भारत की मिसाइल टेक्नोलॉजी की गुणवत्ता तो बढ़ेगी, वहीं भारत मिसाइल का निर्यात करने के लिए भी अधिकृत हो जाएगा।
ऐसे बदल रही है भारत की रणनीति
एनएसजी में भारत की सदस्यता का विरोध कर रास्ता रोकने वाले चीन को झटके देने के लिए भारत भी सक्रीय हो रहा है, जिसने एनएसजी की सदस्या का विरोध करते ही चीन के प्रति अपनी कुछ नीतियों में बदलाव करना शुरू कर दिया। एमटीसीआर का झटका देने के अलावा भारत ने दो दिन पहले ही एक आदेश जारी करके पड़ोसी देश चीन में बने दुग्ध उत्पादों की भारत में बिक्री पर लगी पाबंदी को अगले साल जून 2017 तक बढ़ा दिया है।

रविवार, 26 जून 2016

राग दरबार:- चीन की दीवार या मोदी फोबिया...

मोदी नहीं, कांग्रेस ज्यादा जिम्मेदार 
भारत योग में विश्वगुरु भले बन गया हो, लेकिन प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी चीन की चाल नहीं समझ सके, जिसने भारत को न्यूक्लियर सप्लायर ग्रुप यानि एनएसजी का सदस्य बनने में रोड़ा अटकाकर शायद पाकिस्तान की दोस्ती का फर्ज निभया है? एनएसजी के 48 सदस्य देशो मे चीन एक मात्र ऐसा देश रहा जिसने भारत का विरोध करके साबित कर दिया कि उसने पाक की दोस्ती के फेर में भारत के साथ ही विश्वासघात नहीं किया,बल्कि अमेरिका को भी नीचा दिखाने में कामयाब रहा, जिसने भारत के इस प्रयास में पूरी ताकत झोंकी। चीन से ज्यादा भारत की राजनीति में भी पीएम मोदी का फोबिया साफ नजर आ रहा है, जिसमें देश में सर्वाधिक शासन करने वाली कांग्रेस भारत के इस प्रयास के सफल न होने पर कहीं ज्यादा ही खुशी मनाती दिख रही है, जो इस विफलता की पूरी तरह जिम्मेदार है, जिसने एनएसजी का सदस्य की रुकावट का आधार माने गये एनपीटी पर हस्ताक्षर करने के कभी प्रयास ही नही किये। राजनीतिकारों की माने तो सियोल में भारत के एनएसजी सदस्य न बनने की पृष्ठभूमि में पीएम नरेन्द्र मोदी नहीं, बल्कि कांग्रेस को कहीं ज्यादा जिम्मेदार माना जाना चाहिए, जिसका आधार सबसे बड़ा रोड़ा बना? क्योंकि न तो कांग्रेस चीन से पहले कोई परमाणु परीक्षण कर पायी और न ही उसने कभी एनएसजी का सदस्य बनने का कोई प्रयास किये। देश की राजनीति में पीएम मोदी की विदेश कूटनीति को लेकर राजनीति गलियारो में अब चर्चा यही होरही है कि देश की जनता और राजनीजिक दलों को पीएम मोदी के इन प्रयासों की सराहना करनी चाहिए, ना कि इसे लेकर कोई आलोचनात्मक टिप्पणी की जाए। मसलन इस मुद्दे पर देश में सियासत करने से पाक जैसे भारत विरोधी देशों को ताकत मिलेगी। ये तो दुनिया मान ही रही है कि पीएम मोदी भारत को विश्व गुरु बनाने की राह पर है। ऐसे में विरोधी देशों और स्वदेशी विरोधियों का ये मोदी फाबिया नहीं है तो क्या..।
उल्टा चोर कोतवाल को डांटे
यह कहावत दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केरीवाल पर सटीक बैठती है कि उल्टा चोर कोतवाल को डांटे..। यही कारण है कि सोशल मीडिया के साथ ही राजनीति हल्कों में ऐसी टिप्पणियों की भरमार होती दिख रही है कि केजरीवाल की मानसिकता का इलाज कराना जरूरी है? यहीं तक कि ऐसी टिप्पणियां भी वायरल हो रही है कि यदि उन्हें जल्द प्रधानमंत्री न बनाया गया तो वह आने वाले समय में अंतर्राष्टीय मुखिया बनने के सपने देखने में भी कोई चूक नही करेंगें। भले ही वह अपने घर तक को ना संभाल पा रहे हो। यही नहीं पूरी केजरी सरकार उसके विधायको अहंकार सिर चढ़कर बोल रहा है और दिल्ली मूलभूत सुविधाओ और अस्तित्व कायम रखने की बाट जोह रही है। दरअसल केजरीवाल आजकल राजनीतिक ही नहीं, बल्कि संवैधानिक पदों को भी अपने से बौना साबित करने में जुटे हुए हैं। मसलन कोई और गलती करे तो उसे बख्शने को तैयार नही और यदि गलती या अपराध खुद का हो तो उसे फर्जी करार देकर दोष सीधे प्रधानमंत्री पर मढ़ने को तैयार रहते हैं। राजनीतिक हल्कों में चर्चा हो रही है कि अब जब केंद्र सरकार ने केजरीसरकार के जनलोकपाल समेत 14 विधेयक नामंजूर करने से केजरी की बौखलाहट का ऊंट किस करवट बैठने वाला है इसके नौटंकी नतीजे का इंतजार रहेगा?

शनिवार, 25 जून 2016

अब ऐसे होंगा रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प!

गांवों की तर्ज पर गोद दिये जाएंगे स्टेशन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार भारतीय रेलवे की आर्थिक सेहत सुधारने और ज्यादा से ज्यादा यात्रियों को सुविधाएं मुहैया कराने की दिशा में रेल सुधार की योजनाएं पटरी पर उतार रहा है। इसी योजना में रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प करने के लिए रेलवे ने नया तरीके के रूप में खासकर यात्रियों को सुविधा मुहैया कराने की दिशा में रेलवे स्टेशनों को गोद देने की नीति पर काम शुरू कर दिया है।
रेलवे के सूत्रों की माने तो देश के बुनियादी ढांचे को मजबूत बनाने के लिए मोदी सरकार की विकास संबन्धी परियोजनाओं में रेलवे भी एक अहम अंग है, जिसके सुधार के लिए कई परियोजनाएं पटरी पर उतारी गई है। सरकार की प्राथमिकता में आम आदमी यानि रेल यात्रियों को पर्याप्त सुविधाएं देना पहली प्राथमिकता है। इसके लिए हालांकि रेल मंत्री सुरेश प्रभु ने पिछले दो साल में रेलवे ने अनेक योजनाओं के तहत बड़े सुधार की योजनाएं शुरू की है, जिसमें अत्याधुनिक सेवाएं और टिकट प्रणाली में सुधार भी शामिल है। देशभर में रेलवे नेटवर्क को सुधारने के तहत रेलवे स्टेशनों का कायाकल्प करने हेतु रेलवे ने इस योजना को शुरू किया है। इस योजना के तहत रेलवे ने आदर्श गांव की परिकल्पना की तर्ज पर रेलवे स्टेशनों को भी मंत्रियों, सांसदों और समाजसेवी संस्थाओं या बड़ी कंपनियों को गोद देने का निर्णय इसका मकसद रेलवे स्टेशन पर यात्रियों को सुविधा मुहैया करवाने की जिम्मेदारी उनकी हो जाएगी। मसलन रेलवे स्टेशन पर साफ सफाई, प्लेटफार्म पर शेड लगवाने और वाटर कूलर आदि व्यवस्था की जिम्मेदारी भी गोद लेने वाले व्यक्तियों या कंपनियों की ही होगी।
रेलवे घाटे को पाटने की योजना
सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार रेलवे के आर्थिक घाटे से निजात पाने के लिए जहां माल भाड़ा कारोबार को प्रोत्साहन देने के लिए योजनाएं बना रही है, वहीं रेलवे स्टेशनों को गोद देने की योजना भी सरकारी खर्च बचाते हुए स्टेशनों पर यात्रियों के लिए अधिक से अधिक सुविधा जुटाने के लिए रेलवे स्टेशनों को गोद देने का निर्णय लिया है। सूत्रों के अनुसार रेलवे रेलवे स्टेशनों को गोद देने की रेल मंत्रालय ने सभी रेलवे जोन के महाप्रबंधकों को दिशानिर्देश भी जारी कर दिये हैं, जो रेल मंडल के द्वारा रेलवे स्टेशनों के स्टेशन अधीक्षकों को रेलवे की इस योजना के लिए इस जिम्मेदारी को संभालने के इच्छुक समाजसेवी संगठनों व कंपनियों को आकर्षित करेंगे। माना जा रहा है कि यदि रेलवे की यह योजना सिरे चढ़ी तो रेलवे स्टेशनों का सुधार करने की परिकल्पना सफल होगी।

शुक्रवार, 24 जून 2016

हाइवेज के जरिए बनेगा बैरियर मुक्त भारत!

25 हजार करोड़ की परियोजना का रोडमैप तैयार
पूरब-पश्चिम और उत्तर-दक्षिण तक बनेंगे हाइवेज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़क हादसों में कमी लाने की दिशा में उठाये जा रहे कदमों में केंद्र सरकार ने माल वाहक वाहनों के लिए अलग से कॉरिडोर बनाने की योजना का खाका तैयार कर लिया है, जिसके लिये सरकार 25 हजार करोड़ रुपये खर्च करने को तैयार है। इस मेगा परियोजना में सरकार तय रूट पर एकमुश्त टैक्स वसूलने की प्रणाली लागू करके इन कॉरिडोरों को बैरियरमुक्त करने की तैयारी भी देश में राष्ट्रीय राजमार्गो की लंबाई दो गुना से ज्यादा करने के लक्ष्य पर आगे बढ़ रही केंद्र सरकार सुरक्षित सड़क परियोजनाओं से संपर्क मार्गो के सुधार के बावजूद बढ़ रहे सड़क हादसों से चिंतित है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार सरकार ने सड़क हादसों पर अंकुश लगाने के लिए सरकार ने ट्रक जैसे मालवाहक वाहनों के लिए अलग हाइवे कॉरिडोर बनाने की योजना तैयार की है, ताकि ट्रक और अन्य भारी वाहन देश के एक कोने से दूसरे कोने तक आवागमन करते समय किसी शहर, कस्बे और गांव के अंदर से न गुजर सके। मसलन कश्मीर से कन्याकुमारी, पोरबंदर से कोलकाता, सूरत से पारादीप पोर्ट, रामेश्वरम से देहरादून और मंगलोर पोर्ट से चेन्नई के बीच करीब 36,600 किलोमीटर मार्ग की पहचान की गई है, जिसमें पहले से ही 30,100 किमी हाईवे हैं, लेकिन 18,800 किलोमीटर हाईवे ही चार लेन और बाकी की सड़कें या तो सिंगल हैं या फिर दो लेन ही हैं। एनएचआईए के अनुसार देश में करीब 6500 किमी सड़क तो नेशनल हाईवे से मिलती ही नहीं है, जिनमें या तो स्टेट हाईवे हैं या फिर जिले के विभिन्न स्थानों को एक दूसरे से जोड़ने वाली सड़कें हैं। इस प्रस्तावित परियोजना के तहत इन सड़कों को नेशनल हाईवे बनाने के साथ ही फोर लेन किया जायेगा। दरअसल देश में राष्ट्रीय राजमार्ग की लंबाई करीब डेढ़ लाख किलोमीटर तक पहुंच गई है,जिसमें एक भी सड़क वैज्ञानिक तौर पर ऐसी नहीं है जिस पर ट्रक चालक कश्मीर से कन्याकुमारी या पूरब से पश्चिम तक एक सीधे हाईवे पर चल सके। इसकी वजह से ट्रक जैसे भारी वाहनों को शहरों और गांवों के बीच से होकर गुजरना पड़ता है।
विदेशी तर्ज पर बनेंगे 27 हाइवे कॉरिडोर
राष्ट्रीय भारतीय राजमार्ग प्राधिकरण ने विदेशी तर्ज पर देश में ऐसे स्ट्रेट यानि सीधे मार्ग बनाने के लिए 27 राष्ट्रीय राजमार्ग कॉरिडोर की भी पहचान कर ली है, जिसमें प्रमुख शहर तो इन हाइवे के संपर्क मार्ग में रहेंगे, लेकिन ट्रक जैसे भारी वाहनों को शहरों, कस्बो या किसी गांव से होकर गुजरने की जरूरत नहीं पड़ेगी। मसलन देश उत्तर से दक्षिण और पूरब से पश्चिम तक का सफर सीधे यानि स्ट्रेट हो जाएगा। इस परियोजना के पूरा होने के बाद समय और धन की बचत के साथ यात्रा सुगम और सुरक्षित हो जाएगी। एनएचआईए के प्रस्ताव के अनुसार इनमें उत्तर से दक्षित यानि वर्टिकल 12 तथा पूरब से पश्चिम यानि हॉरिजोंटल 15 हाइवे कॉरिडोर बनाये जायेंगे। इन हाइवे का संपर्क सभी प्रमुख शहरों से किया जाएगा। परियोजना के प्रस्ताव में यह ये हाईवे कॉरिडोर हर 250 किलोमीटर पर एक दूसरे से मिलेंगे। सूत्रों के अनुसार नेशनल हाईवे ग्रिड बन जाने के बाद सरकार नेशनल हाईवे को नए नाम देगी ताकि उनको पहचानना आसान हो सके। उदाहरण के तहत पूर्व से पश्चिम को जोड़ने वाले नेशनल हाईवे ग्रिड ईवन नंबर से शुरू होंगे। जबकि आॅड नंबर वाले नेशनल हाईवे उत्तर को दक्षिण से जोड़ेंगे।

गुरुवार, 23 जून 2016

बिहार की लाइफ लाइन साबित होगा महात्मा गांधी सेतु!

पटना में गंगा पर केंद्र खर्च करेगा 1742 करोड़ की राशि
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
बिहार को उत्तर से दक्षिण तक जोड़ने वाले गंगा नदी पर बने महात्मा गांधी सेतु के क्षतिग्रस्त होते पुल का ढहाकर नया पुल बनाने की एक परियोजना को केंद्र सरकार ने मंजूरी दी है, जो बिहार की लाइफ लाइन साबित होगी। मसलन नेपाल और भूटान का कारोबार भी इसी संपर्क के माध्यम से होता आ रहा है।
दरअसल बिहार की राजधानी पटना से हाजीपुर को जोड़ने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग पर गंगा नदी पर बने एक मात्र पुल के रूप में महात्मा गांधी सेतु पूरी तरह से जर्जर हालत में है और इसके कारण लोगों को आये दिन घंटो यातायात जाम का शिकार होना पड़ता है। बुधवार को प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में आर्थिक मामलों की मंत्रिमंडलीय समिति ने बिहार के पटना में एनएच-19 पर गंगा नदी के उपर बने 5.575 किलोमीटर लम्बे चार लेन वाले महात्मा गांधी सेतु के पुनर्निर्माण संबंधी परियोजना को मंजूरी दी है। इस परियोजना पर अनुमानित 1742.01 करोड़ रुपये की राशि भी मंजूर की गई है, जिससे इस क्षतिग्रस्त पुल के ढांचे को ढहाया जाएगा और नई तकनीक के साथ नए पुल का निर्माण होगा। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस परियोजना के बारे में बताया कि इस क्षतिग्रस्त ढांचे को ढहाने के बाद स्टील ट्रस के साथ इसकी री-डैकिंग होगी, जिसके लिए यह परियोजना इंजीनियरिंग,खरीद एवं निर्माण (ईपीसी) मोड में की जाएगी। उन्होंने कहा कि 15 अगस्त से इस पुल का निर्माण शुरू करके ढाई साल में पूरा कर लिया जाएगा। महात्मा गांधी सेतु के समानांतर ही केंद्र सरकार छह हजार करोड़ रुपये की लागत से 40 मीटर लंबा एक पुल और बना रहा है, जिसकी तीन माह में डीपीआर तैयार होकर निर्माण कार्य शुरू हो जाएगा। वहीं इसी परियोयजना के तहत इस नेशनल हाइवे को चार लेन का भी बनाने का भी प्रस्ताव है।
डेढ़ दशक में ली सुध
मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार की इस परियोजना को मंजूरी मिलने के बाद राज्य में पटना-हाजीपुर क्षेत्र को कवर करते हुए यह परियोजना यातायात, विशेषकर उत्तर और दक्षिण बिहार के बीच चलने वाले भारी यातायात के समय और लागत में कमी लाने के अलावा राज्य में बुनियादी ढांचे में सुधार की प्रक्रिया में तेजी लाने का सबब बनेगी और महात्मा गांधी सेतु के पुनर्निर्माण से राज्य के इस क्षेत्र की सामाजिक आर्थिक स्थिति के उत्थान में भी सहायता मिलेगी। इस पुल की समस्या के लिए पिछले डेढ़ दशक से बिहार के सांसद और जनता केंद्र सरकार से नये पुल बनाने की मांग करते आ रहे हैं, लेकिन मौजूदा मोदी सरकार ने बिहार की लाइफ लाइन माने जाने वाले महात्मा गांधी सेतु की सुध ली है। इससे पहले भी केंद्र सरकार बिहार में विकास संबन्‍धी अनेक योजनाओं के लिए 200 करोड का पैकेज जारी कर चुकी है।

बुधवार, 22 जून 2016

चारधाम व अमरनाथ यात्रा जल्द होगी आसान!



राष्ट्रीय राजमार्गो से जुड़ेंगे धार्मिक यात्राओं के सभी मार्ग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।


देश में सड़क संपर्क मार्ग को सुगम बनाने की दिशा में चलाई जा रही सड़क परियोजनाओं में केंद्र सरकार ने कैलाश मानसरोवर और चारधाम यात्राओं को सड़क सपंर्क मार्ग से जोड़ने की योजना भी शामिल है। केंद्र सरकार ने इन धार्मिक यात्रााओं के मार्गो को राष्ट्रीय राजमार्गाे और अन्य प्रमुख सड़क मार्गो से जोड़ने की परियोजनाओं में तेजी लाने के दिशा निर्देश जारी किये हैं।
केंद्र सरकार ने मानसरोवर यात्रा उत्तराखंड में घाटीअबागढ-लिपुलेख मार्ग के जरिये कैलाश-मानसरोवर यात्रा के हिस्ससे के रूप में 75.54 किलोमीटर सड़क मार्ग के निर्माण में तेजी लाने के दिशानिर्देश जारी किये हैं। इस मार्ग बीआरओ के साथ रक्षा मंत्रालय द्वारा वित्तपोषित निमार्णाधीन है। इस मार्ग की लंबाई 75.54 किलोमीटर है और यह मानसरोवर यात्रा मार्ग का हिस्सा है। सड़क मंत्रालय के अनुसार इस मार्ग पर घाटीअबागढ़ से गुंजी तक 45 किमी के निर्माण पर सेना की निगरानी में निर्माण कार्य चल रहा है और इस सड़क संपर्क मार्ग को घाटीअबागढ़ की और 29वें किमी से लिपुलेख की ओर 62वें किमी तक विकसित कर लिया गया है। निर्माण कार्य की प्रगति के बारे में मंत्रालय ने बताया कि घाटीअबागढ़ की तरफ से कटान का काम शुरू कर दिया गया है और 2.90 किमी तक पहुंच गए हैं। दस किमी मार्ग गत दिसंबर में पूरा करने के बाद अब दस किमी ओर यानि 20 किमी तक के कार्य पूरा होने की स्थिति में है।
यहां इसलिए आई अड़चन
मंत्रालय के अनुसार सैन्य विभाग के निर्देश के तहत लिपुलेख की ओर 62वें किमी से 75.54 किमी तक कटान का काम इसलिए शुरू नहीं किया जा सका है। सैन्य विभाग के निर्देशानुसार इस टुकड़े पर तब तक काम शुरू नहीं हो सकता, जब तक घाटीअबागढ़ तक संपर्क हासिल न कर लिया जाये। हालांकि इस टुकड़े पर शुरूआती काम मार्च 2016 में करा लिया गया था और डीपीआर पर अब काम शुरू हो गया है। इस मार्ग इस मार्ग पर काम में तेजी लाने के लिए बुधी यानि जीएल मार्ग पर 20वें किमी पर 25 गुणा 22 मीटर आकार के समतल क्षेत्र की पहचान कर ली गई है।
हेलीकॉप्टर पट्टी की योजना
मंत्रालय के अनुसार एएलएच हेलिकॉप्टर के उतरने के लिए अप्रैल 2016 के दौरान परीक्षण कराया गया था। वायुसेना ने इस भूखंड को विकसित करने के लिए अतिरिक्त स्वीकृति दे दी है, जिस पर काम चल रहा है और एमआई-17 हेलिकॉप्टर के परीक्षण की भी योजना है। इसके सफल रहने पर एयर लिμट के माध्यम से संसाधन पहुंचाए जाएंगे।
उत्तराखंड के चारधाम
उत्तराखंड के चार धाम की यात्रा के सफर की राह आसान बनाने के लिए केंद्र सरकार ने पिछले साल 12 हजार करोड़ की सड़क परियोजना को मंजूरी दी थी। जिसके लिए निर्माण कार्य जारी है। सड़क परिवहन मंत्रालय ने देहरादून से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री तक एक हजार किमी लंबे नए राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने की योजना शुरू कराई है। इस परियोजना का मकसद है कि चार धाम यात्रा करने वालों श्रद्धालुओं के आवागमन की समस्या का स्थायी समाधान करने की दिशा में सरकार ने इन सभी तीर्थ स्थलों को आपस में नये राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़ा जाएगा। सरकार ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए तीन साल का लक्ष्य तय किया है।
22June-2016




अब कर चोरों की खैर नहीं!

पैन कार्ड ब्लॉक होने के साथ जेल भी होगी
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के आर्थिक सुधारो की नीतियों के तहत अब आयकर विभाग ने जान बूझकर टेक्स चोरी करने वालों के खिलाफ ऐसा शिकंजा कसना शुरू कर दिया है कि ऐसे लोग कर की चोरी करना ही भूल जाएंगे। मसलन आयकर विभाग ने निर्णय लिया है कि जो लोग कर का भुगतान नहीं करेंगे उनकी एलपीजी सब्सिटी खत्म करने के साथ पैन कार्ड भी ब्लॉक कर दिये जाएंगे। यही नहीं ऐसे कर चोरों को को जेल तक की हवा खानी पड़ सकती है।
केंद्र सरकार द्वारा आर्थिक सुधारों और कालेधन की रोकथाम के लिए चलाये गये अभियान के तहत केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड यानि सीबीउीटी ने चालू वित्तीय वर्ष के लिए एक रणनीति पत्र तैयार किया है, जिसमें ऐसे प्रावधान किये हैं कि जानबूझकर कर की चोरी करने वाले लोगों को उसका खामियाजा भुगतना पड़ सकता है। आयकर विभाग के ऐसे प्रावधानों का मकसद ऐसे लोगों पर शिकंजा कसना है, जो कालाधन छुपाने के लिए जानबूझकर कर की अदायगी नहीं करना चाहते और ऐसे लोगों की संख्या देश में लगातार बढ़ रही है। सीबीडीटी के रणनीति पत्र के तहत आयकर विभाग ऐसे कर चोेरों को हिरासत में लेने और उनकी संपत्तियों को जब्त कर नीलामी करने में भी पीछे नहीं रहेगा। इस निर्णय के तहत कर चारों के लिए आयकर अधिनियम की धारा 276सी(2) के तहत तीन माह से लेकर तीन साल तक की कैद और जुर्माने का भी प्रावधान किया गया गया है। मसलन आयकर विभाग के अधिकारों को ज्यादा शक्तिशाली बनाया जा रहा है। इसके एिल आयकर विभाग में वसूली अधिकारियों यानि टीआरओ को प्राधिकृत किया जा रहा है। मसलन विभाग के कर्मचारी और बेहतर बुनियादी ढांचा व संसाधन मुहैया कराकर टीआरओ व्यवस्था को सुदृढ़ करने की कवायद की गई है। इसके लिए टीआरओ को विशेष प्रशिक्षण भी दिया जाएगा। टीआरओ को दूसरी अनुसूची के 73-81 नियमों के प्रावधान के मुताबिक अनुपालन नहीं करने वालों की गिरμतारी के प्रावधान को अमल में लाना चाहिये। आयकर विभाग के निर्णय के अनुसार कर चोरी करने वालों की एलपीजी सब्सिडी काटने के साथ उनके पैन कार्ड भी ब्लॉक करने का भी प्रावधान किया जा रहा है। वहीं ऐसे लोगों को किसी भी बैंक से ऋण भी नहीं मिल सकेगा, ऐसी व्यवस्था को लागू किया जा रहा है।

मंगलवार, 21 जून 2016

एफडीआई के नियमों में बड़े बदलाव!


रक्षा, विमानन, पेंशन और बीमा में 100 प्रतिशत एफडीआई की मंजूरी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने प्रत्यक्ष विदेशी निवेश यानि एफडीआई की नीति में बड़े बदलाव किये हैं। केंद्र सरकार के इन फैेसलों के तहत अब रक्षा तथा विमानन से लेकर ई-कॉमर्स क्षेत्र तक 100 फीसदी विदेशी निवेश का रास्ता खुल गया है। मसलन अब भारत एफडीआई के मामले में दुनिया में सबसे खुली अर्थव्यवस्था का केंद्र साबित हो सकेगा, जहां रोजगार और बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में भी मदद मिलेगी।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में सोमवार को यहां एक उच्च स्तरीय बैठक में एफडीआई नीति में ढील देते हुए इन बड़े फैसलों का ऐलान किया गया। सरकार ने एफडीआई नीति के जिन नियमों को उदार किया है, उनमें अब एक छोटी ‘नकारात्मक’ सूची को छोड़कर ज्यादातर क्षेत्र में एफडीआई स्वत: मंजूर होने की राह को आसान हो जाएगी। मसलन सरकार ने रक्षा, विमानन, बीमा, पेंशन, निर्माण विकास, प्रसारण, चाय, कॉफी, रबड़, इलायची, पाम तेल और जैतून तेल पौधरोपण, एकल ब्रांड खुदरा कारोबार, विनिर्माण क्षेत्र, सीमित देनदारी भागीदारी,, क्रेडिट सूचना कंपनियों, सैटेलाइट तथा संपत्ति पुनर्गठन कंपनियों के क्षेत्र में प्रमुख एफडीआई सुधार किए हैं। इनमें खाद्य उत्पादों का ई-कामर्स क्षेत्र, प्रसारण कैरेज सेवाएं, निजी सुरक्षा एजेंसियां तथा पशुपालन भी शामिल हैं। सरकार द्वारा किए गए उपायों से एफडीआई का प्रवाह 2013-14 के 36.04 अरब डॉलर से बढ़कर 2015-16 में 55.46 अरब डॉलर पर पहुंच गया। मोदी सरकार का यह एफडीआई क्षेत्र में दूसरा प्रमुख सुधार है। इससे पहले केंद्र ने पिछले साल नवंबर में विदेशी निवेश व्यवस्था में उल्लेखनीय रूप से ढील दी थी।
नागर विमानन में शत-प्रतिशत की अनुमति 
केंद्र सरकार ने हवाई परिवहन सेवाओं के तहत नियमित समय सारिणी के अनुसार परिचालित यात्री-सेवा एयरलाइनों तथा क्षेत्रीय हवाई परिवहन सेवा में 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी है। इस नई व्यवस्था में 49 प्रतिशत एफडीआई तथा मौजूदा हवाई अड्डों के आधुनिकीकरण तथा उच्च मानदंड स्थापित करने के साथ ही हवाई अड्डों का दबाव कम करने का प्रयास होगा। इसमें पुरााने अड्डों की परियोजनाओं में स्वत: मंजूर मार्ग से 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति दी गई है। वहीं प्रवासी भारतीयों के लिए स्वत: मंजूर मार्ग से 100 प्रतिशत एफडीआई की अनुमति बनी रहेगी। जबकि विदेशी एयरलाइनों को भारत में अनुसूचित तथा गैर अनुसूचित हवाई परिवहन सेवाओं का परिचालन करने वाली भारतीय कंपनियों में तय शर्ते पूरी करने पर उनकी चुकता पूंजी के 49 प्रतिशत के बराबर निवेश की अनुमति बनी रहेगी।
रक्षा क्षेत्र में 49 फीसदी से अधिक एफडीआई 
एफडीआई नीति के नये बदलाव के तहत रक्षा क्षेत्र में सरकार ने ‘अत्याधुनिक’ प्रौद्योगिकी के प्रावधान को समाप्त करते हुए उन मामलों में मंजूरी मार्ग से 49 प्रतिशत से ऊपर भी एफडीआई की अनुमति दी है, जिनसे देश को आधुनिक प्रौद्योगिकी प्राप्त हो सकती है। गौरतलब है कि रक्षा क्षेत्र में अब तक 49 प्रतिशत से अधिक एफडीआई के प्रस्ताव पर मामला दर मामला आधार पर मंजूरी मार्ग से किया जा सकता था, बशर्ते उससे देश को ‘अत्याधुनिक’ प्रौद्योगिकी मिल सके। सरकार ने रक्षा क्षेत्र के लिए एफडीआई की सीमा को शस्त्र अधिनियम-1959 के तहत छोटे हथियारों और अन्य युद्ध सामग्रियों गोला बारूद आदि बनाने वाले उद्योगों पर भी लागू कर दिया है। वहीं एकल ब्रांड खुदरा क्षेत्र के बारे में स्थानीय स्तर पर खरीद के नियम को उदार कर छूट की अवधि तीन साल की गई है। वहीं ऐसे उत्पादों का एकल ब्रांड खुदरा कारोबार करने वाली ‘अत्याधुनिक’ प्रौद्योगिकी वाले उद्योगों के लिए यह सीमा पांच साल की होगी।

जीएसटी का मॉडल ड्राफ्ट पेपर तैयार


मानसून सत्र में पारित कराने की जुगत में सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में एक समान कर की प्रणाली लागू करने के लिए प्रयास में जुटी केंद्र सरकार ने वस्तु एवं सेवाकर संबन्धी जीएसटी विधेयक का मॉडल ड्राफ्ट पेपर तैयार कर लिया है। सरकार इस विधेयक को संसद के आगामी मानसून सत्र में राज्यसभा से पारित कराना चाहती है।
अगले वित्तीय वर्ष यानि एक अप्रैल से देश में जीएसटी कानून लागू करने का प्रयास कर रही सरकार राज्यसभा में लंबित जीएसटी विधेयक को पारित कराने की तैयारियों में जुटी हुई है। राज्यसभा में राजग की ताकत बढ़ाने के साथ सरकार ने राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति के साथ भी इस मुद्दें पर आम सहमति बना ली है और राज्यसभा में विरोध करने वाले दलों से भी बातचीत का सिलसिला जारी रखे हुए है। जीएसटी बिल को लेकर मोदी सरकार को समर्थन देने के लिए भी विपक्षी दल अपना रूख नरम करने लगे हैं, जिससे सरकार की उम्मीदें मजबूत हो रही हैं। इसी तैयारी के तहत सरकार ने गुड्स और सर्विस टैक्स यानि जीएसटी का मॉडल ड्राμट पेपर भी तैयार कर लिया है। इसी मसौदे के आधार पर केंद्र सरकार राज्यों के वित्त मंत्री, इंडस्ट्री, स्टेकहोल्डर, सैक्रेटरी के साथ मिलकर जीएसटी की दरों को लेकर विचार करने में जुटी हैै। हाल ही में जीएसटी. को लेकर वित्त मंत्री अरुण जेटली ने स्टेकहोल्डर के साथ भी बैठक करके विचार विमर्श किया, जिसमें सर्विस टैक्स, इनडायरेक्ट टैक्स के रेट तय करने पर ज्यादा फोकस रहा। यह जीएसटी केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगाए जाने वाले विभिन्न टैक्स की जगह लेगा।

सोमवार, 20 जून 2016

कांग्रेस के बगैर पास हो जाएगा जीएसटी बिल!

सरकार की ताकत में वामदलों का भी मिला साथ
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा में लंबित वस्तु एवं सेवाकर से संबन्धित जीएसटी विधेयक को समर्थन देने का ऐलान करके वामदलों ने मोदी सरकार के सामने उच्च सदन में इस बिल को पारित कराने की राह आसान कर दी है। वहीं जब ज्यादातर राज्यों का भी सरकार को इस मुद्दे पर समर्थन मिल रहा है तो ऐसे में लगातार जीएसटी पास कराने में अडंगे लगाती आ रही कांग्रेस के अलग-थलग पड़ने की नौबत आ गई है।
राज्यसभा की 58 सीटों पर इसी माह हुए चुनाव से उच्च सदन की बदली तस्वीर में राजग सरकार की ताकत बढ़ी है, तो वहीं राज्यों के वित्तमंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति में भी ज्यादातर राज्यों ने जीएसटी पर आमसहमति बनाकर सरकार की राह को आगे बढ़ाया है। ऐसी स्थिति में उच्च सदन में बदली दलगत तस्वीर के धुंधलेपन को वामदलों ने समर्थन देने का ऐलान करके और भी साफ कर दिया है, उस सदन में वामदलों के नौ सदस्य हैं। मसलन अब मोदी सरकार राज्यसभा में वस्तु एवं सेवा कर यानी जीएसटी विधेयक को पास कराने की स्थिति में मजबूत होती जा रही है। राज्यसभा में हाल के चुनावी नतीजों के बाद संख्याबल में यूपीए को पीछे धकेल चुके राजग सरकार को जीएसटी पर अब विपक्षी दलों का समर्थन मिलने का सिलसिला शुरू हो चुका है। आगामी मानसून सत्र में इस विधेयक को प्राथमिकता के साथ पारित कराने की तैयारी में जुटी मोदी सरकार ने हर पहलुओं के साथ तैयारियां शुरू कर दी है, जिसमें सरकार हर राजनीतिक दल से बातचीत कर रहा है। इसी तैयारी का नतीजा है कि वामदलों के जीएसटी के समर्थन करने का ऐलान करके इस मुद्दे पर सरकार की ताकत में इजाफा कर दिया है। ऐसे में हालांकि कांग्रेस सशर्त समर्थन करने की बात कर रही है,लेकिन यदि सरकार ने उसकी शर्ते भी न मानी तो ऐसे में उच्च सदन में जीएसटी पर कांग्रेस अलग-थलग नजर पड़ती नजर आएगी।
दो-तिहाई बहुमत जरूरी
राज्यसभा की 58 सीटों के चुनाव के बाद उच्च सदन में सत्तारूढ राजग सबसे बड़ा गठबंधन बन चुका है। मसलन 245 सदस्य वाले ऊपरी सदन में संविधान संशोधन विधेयक होने के कारण जीएसटी को पारित कराने के लिए मतदान के समय सरकार को दो तिहाई यानी 164 सदस्यों का समर्थन चाहिए। यह जब है जब सदन में सभी सदस्य उपस्थित रहे। हालांकि नियम के अनुसार संविधान संशोधन बिल को पारित कराने के लिए सदन में आधे यानि कम से कम 123 की सदस्यों की सदन में उपस्थिति भी जरूरी है। मसलन सदन में उपस्थित सदस्यों के दो-तिहाई मतों से यह बिल पारित हो जाएगा। राजग की संख्या 81 तक पहुंच गई है तो वहीं दूसरी ओर जीएसटी के समर्थन करने वाले दलों में 19 सपा, 12 तृणमूल कांग्रेस, 10 जदयू, 8 बीजद, छह बसपा, पांच राकांपा, तीन टीआरएस के कुल 63 सदस्यों के अलावा अन्नाद्रमुक के 13 सदस्यों का समर्थन लेने के लिए सरकार जयललिता की आपत्तियों को दूर करने का प्रयास कर रही है। इसके अलावा करीब 90 अन्य क्षेत्रीय दलों व निर्दलीयों का रूख भी जीएसटी के पक्ष में बदलता नजर आ रहा है। सूत्रों के अनुसार राजद, द्रमुक, इनेलो, झामुमो, केरल कांगेस, जद-एस व वाईएसआर कांग्रेस भी इस मुद्दे पर नरम रूख अपना रही है। यदि इस समर्थन को पाने में सरकार सफल रही तो यह आंकडा करीब 179 का होता है यानि दो-तिहाई से भी ज्यादा। ऐसे में सरकार के जारी प्रयास से कांग्रेस के बिना भी सरकार जीएसटी को पारित कराने की स्थिति में पहुंचने लगी है।

राजदरबार: सियासी कस्तूरी की तलाश

सियासत का पर्यटन बना कैराना
देश की राजनीति में चुनावी वैतरणी पार करने की फिराक में हरेक सियासी दल किसी न किसी ऐसे मुद्दे रूपी तीर अपने तरकश में रखना चाहते हैं जिससे अपने प्रतिद्वंद्वी को पटकनी दे सकें। शायद मिशन यूपी के लिए कैराना में हिंदू पलायन का मामला उठाकर भाजपा ने ऐसी ही सियासी कस्तूरी की तलाशने का प्रयास किया, जिससे अन्य राजनेता ऐसे हलकान हुए कि देश की सियासत गरमा गई। नतीजा एक-दूसरे पर आरोप-प्रत्यारोपों की बारिश और भाजपा की काट में अन्य राजनीतिक दल भी हिरण की तरह ऐसी ही सियासी कस्तूरी की तलाश में कैराना के इस वन में भटक रहे हैं। यानी यूपी मिशन में कैराना एक सियासत का पर्यटन नजर आ रहा है। इस माहौल में पुराने सियासी चावल हुकुम सिंह की खुशबू ऐसी फैली कि इलाहाबाद में भाजपा के आला नेताओं के जमावड़े में हर तरफ वाह कैराना-वाह कैराना की गूंज सुनी और पूरी भाजपा को कैराना में हुकुम सिंह की साधना में ही यूपी की सत्ता में 14 बरस के वनवास से वापसी नजर आने लगी। ऐसे में राजनीतिकारों का मानना है कि अखिलेश, गुलाम नबी और अजित सिंह के बयान हिंदू मन को आहत करने वाले हैं, मायावती ने बीच का रास्ता अपनाते हुए हिंदू-मुसलमान दोनों के गले उतरने वाली बात करके कैराना ही नहीं, बल्कि प्रदेश में हर जगह लोगों के पलायन की वजह खराब कानून व्यवस्था और समुचित सरकारी मदद न मिलना कारण मानकर हुए हिंदू-मुसलमान दोनों के गले उतरने वाली बात से एक तीर से कई निशाने साधन की रणनीति पर हैं। जबकि राजनीतिक गलियारों में चर्चा हो रही है कि कैराना में पलायन का सच कुछ भी हो, लेकिन हफ्ते भर में ही भाजपा सांसद हुकुम सिंह देश की सियासत पर छा गए, जिसने भाजपा को यूपी मिशन में संजीवनी दी है, कि यह मामला दो-चार दिन में ठंडा होने वाला नहीं है और महीनों तक हुकुम सिंह द्वारा लिखी पटकथा पर कैराना लीला का मंचन चलता रहेगा। ऐसे में सपा के अलावा बसपा, रालोद और कांग्रेस को यह सूझ नहीं पा रहा कि हुकुम सिंह के ब्रrास्त्र की काट कैसे करें यानी इन दलों को सियासी कस्तूरी की है तलाश.।

शुक्रवार, 17 जून 2016

भूजल स्तर न सुधरा तो बूंद-बूंद से तरसेंगे हम!

समस्या से निपटने के लिए विशेषज्ञों के साथ मंथन शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बढ़ते जल संकट और गिरते भूजल की चिंता से निपटने के लिए केंद्र सरकार ने जल सरंक्षण और जल प्रबंधन के लिए कई योजनाएं पटरी पर उतारी हैं, लेकिन लगातार गिरते भूजल और बढ़ते जल संकट संकेत दे रहे हैं कि यदि इस समस्या में सुधार न हुआ तो वर्ष 2025 तक भारत दुनिया का सबसे बढ़ा जल संकट वाला देश बन जाएगा।
देश ही नहीं दुनियाभर में तेजी के साथ गिरते भूजल पर किये गये अध्ययन के बाद अपनी ताजा रिपोर्ट में वैज्ञानिकों और विशेषज्ञों ने साफतौर पर संकेत दे दिये हैं। मसलन भारत भी हर साल विश्व जल दिवस मनाया जाता है और जल संकट में तेजी से गिरते भूजल के स्तर को सुधारने की योजनाओं को आगे बढ़ाने के दावे किये जाते रहे हैं, लेकिन इस साल देश में पिछले दशकों के रिकार्ड संकट ने वैज्ञानिकों के ऐसे अध्ययन को हवा दी है कि यदि जल्द ही भू-जल के गिरते स्तर और सूखे से निपटने के उपाये न किये गये तो भारत 2025 तक दुनिया का पहला जल संकट वाला देश बन जाएगा। अध्ययन में कहा गया है कि परिवार की आय बढ़ने और सेवा व उद्योग क्षेत्र से योगदान बढ़ने के कारण घरेलू और औद्योगिक क्षेत्रों में पानी की मांग में लगातार वृद्धि हो रही है। देश की सिंचाई का करीब 70 फीसदी और घरेलू जल खपत का 80 फीसदी हिस्सा भूमिगत जल से पूरा होता है, जिसका स्तर तेजी से घट रहा है। हालांकि घटते जलस्तर को लेकर जब-तब देश में पर्यावरणविदों द्वारा चिंता जताई जाती रहती हैं, लेकिन जलस्तर को संतुलित रखने के लिए सरकारी स्तर पर जिन ठोस प्रयास के दावे किये जा रहे हैं उनसे मौजूदा छाए जल संकट के बादलों से कोई नतीजे आते नजर नहीं आते।

गुरुवार, 16 जून 2016

तो अलग कॉरिडोर पर दौड़ेंगे मालवाही वाहन!

देश में 28 नए सड़क मार्ग बनाने पर अध्ययन शुरू
सड़क हादसों में कमी लाने का बन सकता है विकल्प
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की सड़को पर बढ़ते हादसों से हलकान केंद्र सरकार ने सड़क परियोजनाओं और परिवहन व्यवस्था को सुरक्षित बनाने में जुट गई है। राष्ट्रीय राजमार्गो पर इस हादसों का बड़ा कारण माने जा रहे ट्रक एवं डंपर जैसे मालवाहक वाहनों को देश में अलग से सड़क मार्ग यानि कॉरिडोर बनाने की योजना शुरू करने की तैयारी है। इसके लिए सरकार ने टीसीआई की रिपोर्ट में 28 नए सड़क मार्ग बनाने के प्रस्ताव का अध्ययन कराना शुरू कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार पिछले सप्ताह देश में सड़क हादसों पर जारी रिपोर्ट ने सरकार की चिंताएं बढ़ा दी है, जिसमें आजाद भारत की सबसे ज्यादा सड़क दुर्घटनाओं और उनमें मारे गये लोगों की संख्या में इजाफा दर्ज किया गया है। सरकार के बुनियादी ढांचे को मजबूत करने की दिशा में देश में सड़कों को सुरक्षित करने की प्राथमिकता के साथ सड़क निर्माण की परियोजनाओं में इजाफे के बावजूद सरकार अन्य विकल्पों पर विचार कर रही है। सूत्रों के अनुसार सड़क हादसों के जारी आंकड़ो के बाद ही केंद्रीय सड़क परिवहन मंत्री नितिन गडकरी को सड़क क्षेत्र से जुड़ी ट्रांसपोर्ट कॉपोर्रेशन आॅफ इंडिया यानि टीसीआई तथा आईआईएम कोलकता द्वारा देश में सड़क मार्ग से माल ढुलाई की परिचालन दक्षता पर एक संयुक्त रिपोर्ट सौंपी गई है। इस रिपोर्ट में मालवाहक वाहनों के लिए 2014-15 के दौरान 28 सड़क मार्गो पर अध्ययन का जिक्र है, जिसमें ट्रक जैसे मालवाहक वाहनों के लए नए मार्ग बनाने की सिफारिश की गई है। नए कॉरिडोर बनाने का मकसद भी स्पष्ट किया गया है, जिससे सड़क के जरिए मालभाडे और ट्रकों के स्टॉप टाइम को कम करने के साथ र्इंधन और समय की बबार्दी को कम किया जा सकता है और अन्य वाहनों के सफर को सुरक्षित और सुगम बनाने में मदद मिल सकती है।
पिछले सर्वेक्षण से हुई तुलना
टीसीआई ने इस ताजा रिपोर्ट की तुलना वर्ष 2008-09 और 2011-12 के सर्वेक्षण से की है जिसमें इस बात का जिक्र है कि परिवहन क्षेत्र इस दौरान क्या मुख्य परिवर्तन हुए हैं और इनका क्या प्रभाव हुआ है। रिपोर्ट में सड़क मार्ग से माल ढुलाई की परिचालन दक्षता के अध्ययन में परिचालन दक्षता बढ़ाने के विभिन्न उपायों के सुझाव भी दिये गये हैं। अध्ययन बताया गया है। टीसीआई की रिपोर्ट के अनुसार 2011-12 तक टोल कलेक्शन के तरीके में सुधार आया है, लेकिन पेपर चैकिंग, टैक्स कलेक्शन, राज्यों की चैक पोस्ट, सड़क पर पुलिस का ट्रक को रोककर पूछताछ करने से उसे गतंव्य स्थान तक पहुंचने में देरी दर्ज की गई।

अखिर केंद्र ने दी नई विमानन नीति को मंजूरी

मात्र ढ़ाई हजार रुपये में होगा एक घंटे का सफर
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने रेल व सड़क मार्ग की तर्ज पर आम आदमी को भी हवाई सफर करने का मौका दे दिया है। मसलन लंबे इंतजार के बाद केंद्र सरकार ने नई विमानन नीति को मंजूरी दे दी है। इस नीति में घरेलू हवाई संपर्क को बढ़ाने के साथ देश के विमानन क्षेत्र को दुनिया के बेहतर विमानन बाजारों में शुमार करने के प्रावधानों बदलाव किया गया है।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में बुधवार को नागर विमानन मंत्रालय के पिछले साल तैयार किये गये नई विमानन नीति को मंजूरी दी गई। सरकार की मंजूरी के बाद देश के विमानन क्षेत्र को 2022 तक दुनिया का तीसरा सबसे बड़ा विमानन क्षेत्र बनाने के लक्ष्य के पूरा होने और अंतर्राष्ट्रीय और राष्ट्रीय विमानन क्षेत्र को प्रोत्साहन मिलने की संभावना है। नई विमानन नीति में क्षेत्रीय संपर्क योजना यानि आरसीएस के तहत क्षेत्रीय हवाई अड्डों के बीच एक घंटे तक की उड़ान के लिए सभी शुल्कों तथा करों समेत अधिकतम किराया 2500 रुपये करने का भी प्रावधान है ताकि अधिक से अधिक यात्रियों को रेल की बजाय विमान यात्रा के लिए प्रोत्साहित किया जा सके। यानि आम आदमी के लिये घरेलू हवाई यात्रा के तहत एक शहर से दूसरे शहरों में 2500 रुपये खर्च करके एक घंटे का सफर कर सकेगा। इसमें आधे घंटे के सफर के लिए 1200 रुपये का किराया निर्धारित किया गया है। इसके अलावा नई विमानन नीति में विमानन कंपनियों को भी प्रोत्साहन दिया गया है यानि कंपनियों के लिए मौजूदा 5-20 नियम में बदलाव करके उसे 0-20 कर दिया गया है। इस नियम के तहत अब विमानन कंपनियों को अंतर्राष्ट्रीय उड़ानों के लिए 20 विमानों की जरूरत होगी, लेकिन अंतर्राष्ट्रीय सेवा शुरू करने के लिए पांच साल का इंतजार नहीं करना पड़ेगा।
हवाई यात्रियों को मिलेगी राहत
नई नीति के लागू होने के बाद अब यात्रियों को टिकट कैंसिल कराने पर रिफंड महज पंद्रह दिनों के अंदर मिल जाएगा। यह भी प्रस्ताव है कि अगर कोई यात्री अपना टिकट कैंसल करवाता है तो कंपनी कैंसिलेशन चार्ज के तौर पर यात्री से 200 रुपए से ज्यादा नहीं वसूल सकती। नई नीति में यह भी प्रस्ताव है कि एविएशन कंपनी अगर कोई μलाइट रद्द करती है, तो उसे इसकी सूचना ग्राहकों को 2 महीने पहले देनी होगी और पूरा रिफंड भी करना होगा। वहीं टिकट कैंसल करने के मामले में घरेलू हवाई यात्रा के लिए रिफंड 15 दिन और अंतर्राष्ट्रीय यात्रा के मामले में 30 दिनों के भीतर रिफंड देना होगा। अब तक अगर कोई यात्री अपना टिकट कैंसल करवाता था तो कंपनी कैंसिलेशन चार्ज के तौर पर यात्री से 200 रुपए से ज्यादा नहीं वसूल सकती थी। यही नहीं विमान में यात्रा के दौरान यात्रियों को अपने साथ अब 15 किलो तक का सामान ले जाने की छूट होगी और इससे ज्यादा वजन पर हर एक किलो पर 100 रुपए देने होंगे। इससे पहले कंपनियां हर एक किलो पर 300 रूपए वसूलती थीं। विमान में ओवर बुकिंग होने पर अगर यात्री को सवार नहीं होने दिया जाता है, तो उसकी मुआवजा राशि बढ़ाकर 20 हजार रुपए कर दी गई है।

बुधवार, 15 जून 2016

जीएसटी:राज्यों की सहमति का रोडमैप तैयार!

तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में बनी सहमति
मानसून सत्र में पारित होने की संभावनाएं बढ़ी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर देश में वस्तु एवं सेवाकर संबन्धी जीएसटी कानून लागू करने के लिए मोदी सरकार ने अपने प्रयास तेज कर दिये हैं, जिस पर देश के ज्यादातर राज्यों के साथ सहमति बनती नजर आने लगी। जीएसटी पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की मंगलवार को केंद्र सरकार के साथ हुई चर्चा में लगभग सभी राज्य सहमत होते नजर आए। इसी आधार पर सरकार जीएसटी मॉडल का रोडमैप तैयार करने में जुट गई है।
मोदी सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में अटके जीएसटी विधेयक को पारित कराने के प्रयास कर रही है, जिसमें वह सार्थक साबित होती भी नजर आने लगी है। हाल ही में चुनाव के बाद राज्यसभा में यूपीए से आगे आकर सरकार की ताकत बढ़ाने के साथ इस मुद्दे पर सरकार ने तेजी से कदम बढ़ाना शुरू किया और मंगलवार को कोलकाता में शुरू कराई गई राज्यों के वित्तमंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति की बैठक में शामिल हुए 22 राज्यों के वित्त मंत्रियों और सात राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ खुद केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी मॉडल पर बिंदुवार चर्चा की। बैठक के बाद जेटली ने दावा किया है कि इस बैठक में लगभग सभी राज्य जीएसटी विधयेक पर आम सहमति बनाते दिखे जो एक रोडमैप तैयार करने से कम नहीं। जेटली का कहना है कि इस बैठक में तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों ने अपने सुझाव दिये और विधेयक को समर्थन दिया। तमिलनाडु ने आपत्तिया दर्ज कराते हुए जो कुछ सुझाव दिए हैं सरकार के साथ समिति भी उन पर विचार कर रही है।
क्या हैं आपत्तियां
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि जीएसटी के तहत तीन सालों के लिए एक प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाने के मामले में सरकार का रुख हमेशा ही लचीला रहा है, जिसे लागू किया जा सकता है। फिर भी इसके लिए सरकार के दरवाजे बातचीत के लिये खुले हैं। जबकि बिल के प्रावधान में दोहरे नियंत्रण एवं राजस्व निरपेक्ष दर के मुद्दे पर अंतिम फैसला अधिकार प्राप्त समिति को ही करना है। केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी दर पर संवैधानिक सीमा नहीं लगाने को लेकर पूरी तरह सहमति क्योंकि भविष्य में दरों में संशोधन की जरूरत पड़ सकती है। दरअसल देशभर में एकल कर व्यवस्था लागू करने के मकसद से जीएसटी पिछले कई सालों से राज्यसभा में अटका हुआ है, जिसमें खासकर कांग्रेस अडंगा लगाती आ रही है।
कांग्रेस भी सशर्त समर्थन को तैयार
इस टैक्स बदलाव की जनक कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि वह इसका समर्थन करेगी, यदि केंद्र सरकार ऊपरी कर सीमा के तौर पर 18 प्रतिशत को सुनिश्चित करे। वहीं राज्यों के बीच कर बंटवारे को लेकर होने वाले विवादों के लिए स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने का प्रावधान किया गया तो केंद्र सरकार को इस विधेयक को पारित कराने में कांग्रेस सहयोग करेगी। गौरतलब है कि यह विधेयक लोकसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है और अब संसद के मॉनसून सत्र के दौरान उच्च सदन में इसके पारित होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीएसटी पर केंद्र सरकार को समर्थन देने की घोषणा की है। इससे संसद के आगामी मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक के राज्यसभा से भी पारित होने की आशा बलवती हो उठी है। ज्यादातर अन्य विपक्षी दल भी इस विधेयक के पक्ष में हैं। यदि सरकार इस प्रयास में सफल रही तो वर्ष 1947 में भारत की स्वाधीनता के बाद से अब तक के सबसे बड़े प्रस्तावित टैक्स बदलाव के तहत बहुत-से केंद्रीय और राज्यीय करों के स्थान पर नया कर जीएसटी देश में लागू हो जाएगा।

मंगलवार, 14 जून 2016

जीएसटी पास कराने की तैयारी में सरकार!


कल शुरू होगी राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद में आगामी मानसून सत्र में मोदी सरकार वस्तु एवं सेवा कर से संबन्धित जीएसटी विधेयक को पारित कराने की तैयारी में जुट गई है। जीएसटी के मॉडल कानून पर चर्चा के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की दो दिवसीय बैठक कल मंगलवार से कोलकाता में आयोजित की गई है।
मोदी सरकार की हाल ही में राज्यसभा चुनाव के बाद उच्च सदन में राजग के बेहतर प्रदर्शन से यूपीए को संख्या बल में पीछे धकेलकर राजग सरकार को उम्मीद है कि कांग्रेस की अडंगेबाजी के कारण राज्यसभा में अटके जीएसटी विधेयक को आगामी मानूसन सत्र में पारित करा लिया जाएगा। इस मुद्दे पर आगे बढ़ते हुए मोदी सरकार ने राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति की 14 व 15 जून को कोलकाता में बैठक बुलाई है। इस बैठक की अध्यक्षता समिति के अध्यक्ष पश्चिम बंगाल के वित्त मंत्री अमित मित्रा करेंगे, जिसमें पहले दिन केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटली भी हिस्सा लेंगे। वित्त मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार इस बैठक में जीएसटी के मॉडल कानून को अंतिम रूप देने के लिए चर्चा होगी, ताकि राज्यों की सहमति से इसे राज्यसभा में पारित कराया जा सके। इसलिए वित्त मंत्री अरुण जेटली राज्यों के वित्त मंत्रियों की समिति के साथ मतभेद वाले मुद्दों पर सहमति बनाने के प्रयास तेज कर दिये हैं। इस बैठक में वस्तुओं के राज्यों के बीच परिवहन पर एक फीसदी अतिरिक्त कर लगाए जाने के प्रस्ताव के अलवा सरकार कुछ अन्य विवादित मुद्दों को पर भी सहमति बनाने का भी प्रयास करेगी।
इसलिए बढ़ी सरकार की उम्मीद
मोदी सरकार के इस प्रस्तावित वस्तु एवं सेवा कर (जीएसटी) विधेयक को सरकार हर हालत में पारित कराकर अगले साल अप्रैल 2017 में देश में लागू करना चाहती है। संशोधन विधेयक होने के कारण जीएसटी बिल पास कराने के लिए सरकार को दो तिहाई बहुमत चाहिए। हाल ही में 58 सीटों पर हुए चुनाव के बाद कांग्रेस के नुकसान और भाजपा के फायदे से सदस्यों की संख्या में उलटफेर से यूपीए के मुकाबले राजग का गणित मजबूत हुआ है। वहीं पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी जीएसटी का समर्थन करने का ऐलान कर चुकी है। जबकि बीजद, राकांपा, सपा व जदयू जैसे दल भी जीएसटी के पक्ष में बोलते रहे हैं, जिनकी संख्या भी पचास से ज्यादा है। इसी प्रकार 13 सदस्यों वाली अन्नाद्रमुक और छह सदस्यों बसपा सीधे समर्थन न देकर वोटिंग के समय वाकआउट करने की रणनीति अपना सकती है। इसके अलावा सरकार को करीब 90 अन्य क्षेत्रीय दलों व निर्दलीयों का सहारा मिलने की भी उम्मीद नजर आ रही है।
क्या है मंजूरी की प्रक्रिया
जीएसटी एक संविधान संशोधन विधेयक को लागू कराने की प्रक्रिया में संसद से पारित होने के बावजूद सरकार को देश के कम से कम आधे राज्यों की विधानसभाओं से मंजूरी लेना जरूरी होगा। इस प्रक्रिया के मुताबिक केंद्र और राज्यों को देशभर में वस्तुओं की आवाजाही निर्बाध बनाने के लिए इंटीग्रेटेड जीएसटी कानून को पारित कराने का प्रावधान है। इसके बाद ही इसे मंजूरी के लिए राष्‍ट्रपति के पास भेजा जा सकता है।

अब वाहनों की रफ्तार में बाधा नहीं होंगे टोल प्लाजा!

सरकार का फास्टैग उपलब्ध कराने का फैसला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने राष्ट्रीय राजमार्गों के टोल प्लाजा पर टोल भुगतान के लिए बाध्य वाहनों के सफर को आसान बनाने की पहल की है। मसलन ‘फास्टैग’ के जरिये नकद रहित भुगतान की योजना के तहत मासिक पास धारक वाहनों को एक बारगी लागत पर ‘फास्टैग’मुहैया कराने का निर्णय लिया है।
केंद्र सरकार की योजना के तहत एनएचएआई ने राष्ट्रीय राजमार्गों पर आवाजाही करने वालों के लिए सुरक्षित, सुचारू एवं निर्बाध सफर सुनिश्चित करने हेतु फास्टैग के जरिए सड़क के सुगम सफर के सपने को साकार करने की दिशा में यह कदम उठाया है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचआईए के इस महत्वपूर्ण फैसले के तहत आगामी 20 जून से दिल्ली-मुंबई और मुंबई-चेन्नई कॉरिडोर पर स्थित 48 टोल प्लाजा पर एक समर्पित ‘फास्टैग’ लेन सुनिश्चित हो जाएगी। यानि एक बारगी लागत पर ‘फास्टैग’ हासिल करने वाले वाहनों को टोल प्लाजाओं पर लंबी कतारों से होकर न गुजरना पड़े। मंत्रालय के अनुसार सड़कों का इस्तेमाल करने वाले वाहन मालिकों द्वारा ‘फास्टैग’ की आसानी से खरीद के लिए इन कॉरिडोर पर स्थित 23 टोल प्लाजाओं पर ही बिक्री केंद्र (पीओएस) स्थापित किये गये हैं, जिनमें से 19 पीओएस पहले से ही काम कर रहे हैं और चार पीओएस एक हμते के भीतर चालू हो जाएंगे। इस सुविधा से सड़कों पर सुरक्षित और सुगम यातायात में वाहनों का इस्तेमाल करने वाले लोगों अत्यंत ज्यादा यातायात घनत्व वाले कॉरिडोर पर यात्री एवं वाणिज्यिक यातायात की कुशल एवं किफायती आवाजाही को भी बढ़ावा मिलेगा।
ऐसे काम करेगा फास्टैग
एनआईएचए द्वारा शुरू की गई फास्टैग सुविधा के लिए वाहन उपयोगकर्ता हो 200 रुपये का एकबारगी शुल्क देना होता है और फास्टैग वाहन की विंड स्क्रीन पर चिपकाना होगा। इसमें संबंधित प्री-पेड खाते से सीधे टोल भुगतान करने के लिए आरएफआईडी प्रौद्योगिकी का इस्तेमाल किया गया है। इस तकनीक से फास्टैग वाला वाहन जैसे ही राष्ट्रीय राजमार्गों पर स्थित चुनिंदा टोल प्लाजा से गुजरेगा तो उसका टोल भुगतान वाली राशि स्वत: ही कट जाएगी और वह बिना रूके आगे जा सकेगा। फास्टैग के इस्तेमालकतार्ओं को अपने समस्त टोल लेन-देन, कम बैलेंस इत्यादि होने पर एसएमएस प्राप्त होगा।

सोमवार, 13 जून 2016

राज्यसभा: बदली तस्वीर ने खोला जीएसटी का रास्ता!

भाजपा की बढ़ी ताकत से कांग्रेस की वीटो पॉवर खत्म
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा की 58 सीटों के चुनावी नतीजों सके उच्च सदन में दलीय गणित की ताजा तस्वीर में भाजपा ने राजग की ताकत बढ़ने से विपक्षी संप्रग के आंकड़े को पार कर लिया है। इस वजह से अब कांग्रेस की अडंगेबाजी के कारण अधर में लटके जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण विधेयक को पारित कराने का रास्ता कुछ हद तक साफ नजर आने लगा है। हालांकि सरकार को सदन में छोटे दलों पर निर्भर रहना पड़ सकता है।
उच्च सदन में विपक्ष के सामने कमजोर पड़ रही भाजपानीत राजग सरकार को हाल ही में 57 सीटों के लिए द्विवार्षिक चुनाव और गुजरात की एक सीट पर हुए उप चुनाव के नतीजों ने एक नई ताकत दी है। कांग्रेस के नुकसान और अपने फायदे के बावजूद भाजपा कांग्रेस के आंकड़े को तो पार नहीं कर पायी, लेकिन कांग्रेस के नेतृत्व वाले यूपीए के आंकडे से अपने राजग के आंकड़े को आगे कर दिया है। इसका फायदा राजग सरकार को राज्यसभा में जीएसटी जैसे महत्वपूर्ण बिलों को पारित कराने में मिलने की संभावना है। हालांकि जीएसटी जैसे संशोधन विधेयकों के लिए जरूरी दो तिहाई आंकडे से बहुत पीछे है, जिसके लिए मोदी सरकार को सदन में क्षेत्रीय व छोटे दलों के समर्थन लेने की जरूरत पड़ेगी, जिनकी संख्या 89 है। यह जरूर है कि उच्च सदन में भाजपा कांग्रेस की वीटो पॉवर खत्म करने में एक कदम आगे बढ़ गई है। राज्यसभा चुनाव के बाद 245 सदस्यीय उच्च सदन में राजग के पांच सदस्यों का इजाफा होने के बाद यह आंकड़ा अब 74 हो गया है, जबकि यूपीए में कांग्रेस की पांच सीटों के नुकसान के बाद राजद की दो सीटे बढ़ी, लेकिन तीन सदस्यों की गिरावट के बाद कांग्रेसनीत यूपीए 71 सीट पर सिमट गया है। इसके बावजूद भाजपानीत राजग में उसकी खुद की संख्या 56 में तेदपा, शिवसेना, अकाली दल, पीडीपी, आरपीआई के 18 सदस्य शामिल है। जबकि सदन में मनोनीत सात सदस्यों का भी भाजपा के साथ रहना स्वाभाविक है। इसके अलावा सदन में पांच निर्दलीय सदस्यों का सहारा भी मिल सकता है।
इन दलों के समर्थन की भी उम्मीद
राज्यसभा में पिछले दिनों जीएसटी विधेयक को पारित कराने के पक्ष वाले विपक्षी दलों में तृणमूल कांग्रेस के अलावा बीजद, राकांपा,सपा व जदयू भी शामिल रहे हैं, जिनकी सदन में संख्या 52 है। इसके अलावा इस बिल पर भाजपा को अब ममता बनर्जी और जयललिता के अलावा बसपा की मायावती का साथ भी मिलने के आसार है, जिनकी उच्च सदन में सदस्यों की संख्या 31 है। टीएमसी प्रमुख ममता बनर्जी पश्चिम बंगाल चुनाव के बाद जीएसटी पर ऐसे संकेत दे चुकी है, जिसके सदन में 12 सदस्य हैं। जबकि 13 सदस्यों वाली जयललिता की अन्नाद्रमुक और छह सदस्यों वाली मायावती की बसपा को लेकर जो कयास लगाए जा रहे हैं वह सीधेतौर पर सरकार का समर्थन न करके वोटिंग के समय सदन से वाकआउट कर सकती हैं। ऐसी स्थिति में ऐसी संभावना प्रबल होती नजर आ रही है कि सरकार के सामने जीएसटी विधेयक को पारित कराने का रास्ता खुल गया है।

रविवार, 12 जून 2016

राज्यसभा में बड़ा उलटफेर- बढ़ी भाजपा की ताकत!

भाजपा का 18 व सपा का सात सीटों पर कब्जा
कांग्रेस को 9 व बसपा को दो सीटें मिली
एक-एक सीट भाजपा समर्थित निर्दलीयों ने कब्जाई
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा की सात राज्यों में 27 सीटों के लिए हुए चुनाव के नतीजे बड़ा उलटफेर लेकर सामने आए, जहां हरियाणा और झारखंड में भाजपा समर्थित दो निर्दलीय प्रत्याशियों ने सियासी दलों को बौना साबित कर दिया। वहीं यूपी के दिलचस्प मुकाबले में चौतरफा घेराबंदी के बावजूद कांग्रेस के कपिल सिब्बल बाजी मार ले गये।
राज्यसभा की 15 राज्यों की 57 सीटों में में 30 पहले ही निर्विरोध चुन लिये गये थे, बाकी 27 सीटों के चुनाव में उच्च सदन में सरकार की ताकत बढ़ाने की रणनीति को सहारा दिया है। इन 57 सीटों में भाजपा चार सीटों की बढ़ोतरी के साथ दो निर्दलीयों को सहारा देकर भी राज्यसभा लाने में सफल रही। जबकि प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस को अपनी 14 सीटों में 5 सीटों का नुकसान सहना पड़ा। राज्यसभा के ये चुनाव बड़े उलटफेर का सबब बनकर सामने आये।
किसे कितना नफा-नुकसान
राज्यसभा की 15 राज्यों की 57 सीटों और गुजरात में एक सीट के उपचुनाव समेत 58 सीटों पर हुए द्विवर्षीय चुनाव में में ऐसा फेरबदल देखने को मिलाा मसलन संसद के उच्‍च सदन में अब कांग्रेस से मुकााबला करनेे की ताकत भाजपाा को मिली है इन 58 सीटों के गणित में भाजपा व कांग्रेस की 14-14 सीटें खाली हो रही थी। इन चुनाव के बाद अब जो राज्‍यसभा की दलगत स्थिति की तस्‍वीर सामने आई है उसमे भाजपा सांसदो की संख्‍या में झारखंड व हरियाणा के दो निर्दलीय समेत 56 और कांग्रेस की 59 सीट हो गयी है जो चुनाव से पहले दोनो के बीच ये अंतर 16 का था यानि उपरी सदन में दो समर्थित निर्दलीय प्रत्याशियों की जीत के साथ भाजपा को छह सीटों का फायदा हुआ। सदन में भाजपा व कांग्रेस की 14-14 सीटें खाली हो रही थी। भाजपा की इस बढ़त के साथ कांग्रेस को पांच सीटों का नुकसान हुआ है। यदि राजग व संप्रग की तुलना की जाए तो यूपीए 80 से घटकर 75 रह गयी तो राजग भी लगभग 75 मानी जा सकती है जिसमें 7 मनोनीत की संख्‍या को माना जाना शामिल है हालांकि अन्‍य गैर भाजपाई व गैर कांग्रेसी दलों के समर्थन की वजह से सदन में यूूपीए सरकार पर भारी बना रहेगा इससे इंकार नही किया जा सकता इन चुनावों में इसके अलावा सपा को चार सीटों, अन्नाद्रमुक व टीआरएस, राजद को दो-दो, तेदपा को एक सीट का फायदा हुआ है। जबकि बीजद, डीएमके, एनसीपी, शिवसेना और अकाली दल की सीटें बरकरार रही है। इस चुनाव में कांग्रेस को पांच सीटों के अलावा बसपा को चार, जदयू को तीन सीटों का नुकसान सहने को मजबूर होना पड़ा है।

राग दरबार: नफरत नहीं महफिल लूटना सीखों जनाब...

पाक-चीन को मोदी फोबिया
किसी शायद ने कहा है-मरना इस जहॉ में कोई हादसा नहीं, इस दौर-ए-नागवार में जीना कमाल है। यह कहावत ऐसे में सटीक चरितार्थ होती दिख रही है, जब दुनिया में शायद ऐसा पहली बार हो रहा है कि नरेन्द्र मोदी के रूप में कोई प्रधानमंत्री दुनिया को देश की ताकत का अहसास करा रहा है। तभी तो दुनिया के ताकतवर माने जाने वाले अमेरिका की संसद में उन्हें इतना सम्मान मिला, जो अन्य किेसी भारतीय प्रधानमंत्री को नहीं मिला होगा। मोदी के अमेरिका समेत कई देशों में सम्मान से पडोसी पाकिस्तान और चीन को ईष्या होना स्वाभाविक है, जो सबसे ज्यादा दुखी नजर आए। मोदी जैसे प्रधानमंत्री जिसने अमेरिका जैसे देश की संसद में जैसे पूरी महफिल ही लूट ली हो, पर हर भारतवासी को गर्व का क्षण महसूस होना लाजिमी है, लेकिन देश में ऐसे भी स्वार्थी लोग है जो देशभक्ति का चोला पहनकर भारत की मोदी जैसे प्रधानमंत्री की ऐसी ऐतिहासिक विदेश नीति और कूटनीति को लेकर पूरी तरह से हलकान है और दुश्मन देशों की तर्ज पर आलोचना के साथ नकारात्मक सियासत करने से बाज नहीं आ रहे हैं। अमेरिका की संसद में प्रधानमंत्री मोदी के अंग्रेजी में दिये गये भाषण के शब्दजाल ने दूसरे देशों को भी भारत के ताकतवर देश के आगे बढ़ने के जो संकेत दिये है उसकी वजह से ऐसे देशों की नजरें भी भारत पर टिकने लगी है। प्रधानमंत्री मोदी के अमेरिका समेत पांच देशों की यात्रा में देश को अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर सकारात्मक सुर्खियों में आने पर सोशल मीडिया में भी तारीफों के पुल बंधते देखे गये हैं। देश में राजनीतिक गलियारों में चर्चा है कि नरेन्द्र मोदी के रूप में भारत के ऐसे ऐतिहासिक क्षणों के कारण देश की बढ़ती ताकत को देख सबसे ज्यादा राज करने वाली कांग्रेस भी इस कदर दुखी नजर आ रही है कि वह कोमे में जाने को तैयार है। मलसन कांग्रेस जैसी अपने आपको देशभक्त कहलवाना पसंद करने वाले दल और उनके नेता आलोचनात्मक बयानबाजी करने से बाज नहीं आ रहे हैं। विदेश नीतिकार और राजनीतिकार तो ऐसे में देश के बढ़ते कदम को लेकर यही कहते नजर आ रहे हैं कि राष्ट्रीय संप्रभुता और अखंडता की मजबूती वाले मोदी सरकार की नीतियों से दुखी और परेशान अथवा आलोचना या नफरत करने के बजाए उन्हें मोदी जैसे प्रधानमंत्री की विदेश नीति और कूटनीति से यह सबक लेना चाहिए कि स्वामी विवेकानंद के रूप में प्रधान सेवक बनकर नरेन्द्र मोदी दुनिया की महफिल लूट कर देश का दुनिया में सम्मान कैसे बढ़ा रहा है?
अपने गिरेवान में झांको सीएम साहब
मोदी सरकार के दो साल पूरे होने पर अखबारों में प्रकाशित विज्ञापनों को लेकर दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल की आदतन टिप्पणियां शुरू हुई ओर मोदी सरकार पर जनता के पैसों की बर्बादी करने का ठींकरा फोड़ने का प्रयास किया। ऐसी टिप्पणी करते हुए केजरीवाल शायद यह भूल जाते हैं कि जब किसी की तरफ उंगली उठती है तो पांच में से ज्यादा यानि चार उंगलियां अपनी तरफ गिरवान में झांकने का संकेत करती हैं। मसलन ऐसी टिप्पणी करने वाले केजरीवाल यह भी भूल रहे हैं कि आॅड-ईवन फार्मूला दिल्ली में चलाया गया, जिसके विज्ञापन पूरे भारत में करीब-करीब सभी राज्यों में प्रकाशित किये गये, जबकि अन्य राज्यों में ऐसे प्रचार का कोई औचित्य नहीं था। ऐसे ही पंजाब में केजरी के दिल्ली के विज्ञापनों के सहारे जाने का प्रयास किया जा रहा है। पहले ही केजरी सरकार पर विज्ञापनों के रूप में जनता की उतनी रकम खर्च करने का आरोप लग रहा है जितनी दिल्ली के विकास कार्यो पर भी खर्च नहीं की गई। ऐसे में चर्चा यही है कि केजरी का ध्यान दिल्ली पर कम और देश पर ज्यादा है। मसलन ऐसी कहावत को चरितार्थ करते नजर आ रहे हैं कि अपना घर तो ठीक हो नहीं रहा और दूसरे के घरों को ठीक करने की जिम्मेदारी का ठींकरा दूसरो पर फोडना चाहते हैं।