मंगलवार, 7 जून 2016

डाकियों का हुलिया बदलेगी सरकार!

नये ड्रेस कोड से होगा कॉर्पोरेट मेकओवर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का के साल की उपलब्धियों को लेकर कहे गये बोल कम से कम अब डाकियों को तो होने जा रहा है, जिसनकी लंबे अरसे से चली आ रही मांग पूरी होने जा रही है। मसलन मोदी सरकार ने ’डिजीटल इंडिया’ के तहत भारतीय डाक विभाग की सूरत बदलने की योजनाएं शुरू की है उसमें जल्द ही घर-घर संदेश पहुंचाने वाले डाकियों को कॉर्पोरेट मेकओवर के तहत एक कलरफुल वर्दी के रूप में नया ड्रेस कोड लागू होगा।
देश की व्यवस्था बदलने के लिए मोदी सरकार ने पहले से ही भारतीय डाक की आर्थिक सेहत सुधारने की दिशा में कई योजनाओं के साथ उसकी सूरत बदलने की योजनाओं को लागू किया है। सरकार की ऐसी ही योजनाओं में ई-कॉमर्स क्षेत्र में तेजी से बढ़ती स्पर्धा के तहत अब देशभर में अब हजारों पुरुष व महिला डाकिए जल्दी ही नए अवतार में नजर आएंगे। पिछले सप्ताह ही केंद्रीय कैबिनेट ने 800 करोड़ रुपये के कोष के साथ भारतीय डाक भुगतान बैंक के गठन के प्रस्ताव को मंजूरी देकर डाक विभाग के कर्मचारियों को अच्छे दिनों का अहसास कराया है, जिसमें डाकघरों में डाकियों को आईपैड तथा स्मार्टफोन और अन्य आधुनिक संसाधन से लैस करने की योजना भी शामिल है। इस आधुनिक युग में पिछले कुछ अरसे से मोबाइल, इंटरनेट द्वारा मैसेज, फेसबुक और व्हाट्सऐप जैसे अत्याधुनिक प्रचलन ने डाक विभाग में नियुक्त डाकियों की भूमिका केवल कुछ सरकारी पत्रों, रजिस्ट्री और पार्सलों तक ही सिमट रही थी। ऐसे में सरकार देशभर के डाकियों को प्रोत्साहन देने के लिए उन्हें नये अवतार में लाकर उनकी भूमिका को महत्वपूर्ण बनाएगी।
नये संसाधनों से लैस होंगे डाकिए
देशभर में 1.39 ग्रामीण क्षेत्रों समेत करीब 1.54 लाख डाकघर हैं, जहां हजारों की संख्या में डाकयों यानि डाक सेवकों की भूमिका को पुनर्जीवित करने के लिए डाकघरों को आधुनिक तकनीक से सुधार के साथ उन्हें भी अत्याधुनिक संसाधनों से लैस करने की योजना चलाई जा रही है। ग्रामीण क्षेत्रों के डाकियों को साइकिलों के स्थान पर हस्तचलित वाहन मुहैया कराने पर भी विचार हो रहा है। यदि ई-कॉमर्स क्षेत्र में बढ़ी स्पर्धा का मुकाबला करने में मोदी सरकार की नई योजनाएं कारगर सिद्ध हुई, तो निश्चित रूप से 197 साल पुरानी डाक व्यवस्था में डाकियों की भूमिका भी पहले से ज्यादा महत्वपूर्ण हो जाएगी। यही नहीं डाकियों के आर्थिक और सामाजिक हालात भी बदलने से उनमें नई ऊर्जा का संचार होगा।
ऐसी हो सकती है नई ड्रेस
अभी तक खाकी वर्दी में नजर आने वाले डाक सेवकों का कॉर्पोरेट मेकओवर होने जा रहा है, जिनके हाथों में स्मार्टफोन और आईपैड के साथ उन्हें खाकी वर्दी से बाहर निकालकर नए डेÑस कोड में लाने का प्रस्ताव है। सूत्रों के अनुसार जहां तक डाकियों के नए ड्रेस कोड का सवाल है उसमें खाकी को बदलने के लिए आरामदायक फेब्रिक कर्ई रंगों को अपनाने पर विचार हो रहा है, जिसमें र्शट और पेंट और उनके बैग के रंग अलग-अलग रखने का प्रस्ताव है। डाक विभाग के एक अधिकारी की माने तो मौजूदा वर्दी में 67 प्रतिशत पॉलिएस्टर और 33 प्रतिशत विस्कोस का मिश्रण है, जो टिकाऊ और कम रखरखाव वाला तो है, लेकिन वातावरण के हिसाब से सहज नहीं है। कॉटन और पॉलिएस्टर के खादी फेब्रिक का मिश्रण पॉली-वस्त्र इसके लिए चुना गया था लेकिन डाकिए इसके रखरखाव में ज्यादा परेशानी के चलते इसके इच्छुक नहीं थे।
ऐसे बढ़ेगा डाक सेवकों का कद
केंद्र सरकार के वित्तीय समावेशन के उद्देश्य की पूर्ति के लिए यह योजना कारगर सिद्ध हो सकती है। क्योंकि डाकिये ही प्रतिदिन गावों में जाकर उनके पास उपलब्ध मशीनों के माध्यम से ग्रामीणों के खातों का संचालन करेंगे, जहां देश के कुल 1.55 लाख डाकघरों में लगभग 90 प्रतिशत यानि एक लाख चालीस हजार डाकघर गावों में ही है। सरकार द्वारा लाया जा रहा पेमेंट बैंक भारतीय डाक विभाग के सहयोगी संस्था के रूप में ही काम करेगी और पोस्ट मैन की नई भूमिका यहीं से शुरू होगी। यही नहीं इन डाकियों को कुछ और भी दायित्व सौंने से उनके कद यानि छवि को बढ़ाने की योजना है। भारतीय कृषि अनुसन्धान संस्थान ग्रामीणों को अच्छे बीज और अन्य तकनीकी जानकारी किसानों तक पहुंचाने की जिम्मेदारी भी डाकियों को दी जा सकती है।
क्या है भारतीय डाक का इतिहास
देश की डाक व्यवस्था के करीब 197 साल पुराने इतिहास पर नजर डाली जाए तो भारत सरकार के जन सूचना निदेशक ने 1923 में संसद में जानकारी दी थी कि वर्ष 1921-22 के दौरान राहजनी करने वाले चोरों द्वारा डाक लूटने की 57 घटनाएं हुई थीं। मसलन पुराने जमाने में हरेक डाकिए को ढोल बजाने वाला मिलता था, जो जंगली रास्तों से गुजरते समय डाकिए की सहायता करता था। रात घिरने के बाद खतरनाक रास्तों से गुजरते समय डाकिए के साथ दो मशालची और दो तीरंदाज भी चलते थे। ऐसे कई किस्से मिलते हैं जिनमें डाकिए को शेर उठा ले गया या वह उफनती नदी में डूब गया या उसे जहरीले सांप ने काट लिया या वह चट्टान फिसलने या मिटटी गिरने से दब गया या चोरों ने उसकी हत्या करने जैसी घटनाएं भी घटी हैं। पिछले पिछले कई सालों में डाक लाने ले जाने के तरीकों और परिमाण में बदलाव आया है। इस कारण डाकघर ने राष्ट्र को परस्पर जोड़ने, वाणिज्य के विकास में सहयोग करने और विचार व सूचना के अबाध प्रवाह में मदद की है। डाक वितरण में पैदल से घोड़ा गाड़ी द्वारा, फिर रेल मार्ग से, वाहनों से लेकर हवाई जहाज तक विकास हुआ है।
07June-2016



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