मंगलवार, 28 जून 2016

साइबर खतरे की जद में भारतीय कारोबार!

भ्रष्टाचार और कारोबारी धोखाधड़ी में आई कमी 
हड़ताल, अशांति से भी प्रभावित हुई अर्थव्यवस्था
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा भारतीय अर्थव्यवस्था में सुधार के लिए उठाये गये कदमों के बावजूद भारतीय कारोबार पर खतरे मंडरा रहे हैं। मसलन साइबर खतरे समेत एक दर्जन ऐसे कारण सामने आये हैं, जो देश के आर्थिक तंत्र की जद को कुरेद रहे हैं।
दरअसल सोमवार को देश की अर्थव्यवस्था को लेकर प्रमुख कारोबारी संस्था फिक्की ने एक सालाना भारतीय जोखिम सर्वेक्षण रिपोर्ट जारी की है। यह सर्वेक्षण एक दर्जन प्रमुख जोखिमों पर केंद्रित है जो पूरे देश के आर्थिक तंत्र के लिए साइबर जैसे कई खतरे पैदा करते हैं। सबसे रोचक बात यह सामने आई कि खतरे की इजाद हो रही नई-नई श्रेणियां शीर्ष पर पहुंच रही हैं। सर्वे की रिपोर्ट के अनुसार ‘सूचना और साईबर असुरक्षा’ लगातार दूसरे साल भी भारतीय कारोबार सबसे बड़ा खतरा सामने आया है, जिसकी ऊंची रेटिंग के कारण उच्च-प्रौद्योगिकी संचालित वैश्विक अर्थव्यवस्था में निजी और सरकारी क्षेत्र दोनों पर खतरा लगातार बना हुआ है। मसलन जहां साइबर हैकिंग की घटनाएं बढ़ी हैं, वहीं बौद्धिक संपदा और कारोबारी धोखाधड़ी के उल्लंघन के साथ सूचना असुरक्षा ने सभी सेक्टरों और भौगोलिक क्षेत्रों में व्यापार रणनीति की महत्वपूर्ण चिंताओं में इजाफा किया है। इस जोखिम सर्वे रिपोर्ट में व्यावसायिक प्रतिष्ठानों की रणनीति, संचालन और सुरक्षा खतरों का अध्ययन किया गया है।
जाट व पटेल आंदोलन का असर
वर्ष 2016 के लिये सामने आये सर्वे रिपोर्ट में 'हड़तालों, बंद और अशांति' को भी भारतीय अर्थव्यवस्था को प्रभावित करने वाला प्रमुख खतरा माना गया है। जबकि इस साल भारतीय कारोबार के लिए विशेष रुप से जाट और पटेल आंदोलनों के साथ सामाजिक अशांति के के अलावा श्रमिक अशांति, सुधारों, भूमि अधिग्रहण और औद्योगिक परियोजनाओं के खिलाफ हड़ताल और प्रदर्शन ने भी भारतीय कारोबार की धारणा को प्रभावित किया है।
आतंकवाद की रैंकिंग खिसकी
रिपोर्ट के अनुसार आतंकवाद और उग्रवाद' तीसरे स्थान से घिसकर इस वर्ष चौथे पायदान की रैंकिंग पर पाया गया, लेकिन यह भी सच है कि एक ही बड़ा आतंकी हमले की तबाही पूरे व्यापार के संचालन को आसानी से झकझोर सकती हैं। यानि आतंकी गतिविधियों में इजाफा और इसका भारतीय उपमहाद्वीप तक विस्तार में असंतुष्ट युवाओं की कट्टरता देश के नीति निमार्ताओं के लिए एक प्रमुख चिंता का विषय है। वहीं देश में वामपंथी समूहों, कथित नक्सलियों और भारत के विभिन्न भागों में अन्य जातीय विद्रोहों का उग्रवाद व्यापारिक प्रतिष्ठान और उनके संचालन के लिए प्रमुख खतरा बने हुए हैं, जिनके कारण खनिज संसाधनों से संपन्न राज्यों समेत देश के नए व्यावसायिक प्रतिष्ठानों को प्रभावित कर सकते हैं।
कारोबारी धोखाधड़ी में कमी
वैश्विक भ्रष्टाचार और व्यापार में आसानी के सूचकांकों में भारत की रेटिंग में निरंतर सुधार से पिछले दो साल में भ्रष्टाचार, रिश्वत और कारपोरेट धोखाधड़ी के खतरे की रैंकिंग में गिरावट आई है, जो भारतीय जोखिम सर्वे में पहले स्थान से फिसलकर 5वें स्थान पर आ गया है। जबकि देश में पिछले साल के सर्वे के नतीजों में 'भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारोबारी धोखाधड़ी' जैसे खतरे सामने आए थे। करप्शन परसेप्शन इंडेक्स 2015 यानि सीपीआई में भारत के निरंतर सुधार से भारत ने 76वें स्थान पर आकर अपनी स्थिति में सुधार किया है, जो भूटान के बाद दक्षिण एशिया क्षेत्र में सर्वश्रेष्ठ है। यहां तक कि भारत ने एक अन्य प्रमुख एशियाई पड़ोसी देश से भी बेहतर प्रदर्शन किया, जिसे इस सूची में 83वें स्थान पर रखा गया। विश्व बैंक के व्यापार सूचकांक में भारत ने 2014 में 134 के मुकाबले 2015 में चार स्थान ऊपर चढ़कर 130वें स्थान पर जगह बनाई है। इसी तरह पांच साल तक लगातार गिरावट के बाद विश्व आर्थिक मंच के (डब्ल्यूईएफ) वैश्विक प्रतिस्पर्धी सूचकांक 2015-16 में 16 स्थान का सुधार कर भारत ने 55वें पायदान पर आ गया है।
राजनीतिक खतरा भी कम नहीं
आईआरएस 2016 में 'राजनीति और शासन अस्थिरता' का खतरा छठे स्थान पर रहा है। इस साल इस खतरे की रैंकिंग सरकारी नीतियों, और उद्योग व व्यापार की मांग को बड़े आर्थिक सुधारों के एक ही पैकेज में शामिल करने का संकेत दे रही हैं, जो जीएसटी जैसे मौजूदा नीतिगत बदलाव और मल्टीब्रांड रिटेल आदि में प्रत्यक्ष विदेशी निवेश ही देश में व्यापार को एक सकारात्मक माहौल दे सकते हैं। मसलन सरकार की यह कवायद 'राजनीतिक और शासन अस्थिरता' के जोखिम को कम कर सकती है।
अपराधों ने बिगाड़ी रμतार
पिछले साल के भारत जोखिम सर्वे में 5वें स्थान पर रहे ‘अपराध’ ने इस साल 2016 में दो स्थान की छलांग लगाई है, जो अब तीसरे पायदान पर पहुंच गया है। राष्ट्रीय अपराध रेकॉर्ड ब्यूरो के 2014 के आंकड़ों में 2013 की तुलना में 8.9 फीसदी की वृद्धि दिखाई गई थी। इस संख्या के हिसाब से 2013 में पंजीकृत 66,40,378 मामलों की तुलना में 2014 में 72,29,193 संज्ञेय अपराध दर्ज किए गये,जिनमें 28,51,563 भारतीय दंड संहिता यानि आईपीसी के अपराध थे। जबकि 43,77,630 विशेष और स्थानीय कानूनों के तहत आने वाले अपराध शामिल रहे। अपराध की ऊंची दर अधिकांश सामाजिक अशांति में वृद्धि से जुड़ी होती है, जो हर तरह के अपराधियों के लिए अनुकूल परिस्थितियां बना देती हैं। वहीं भारत में महिलाओं के खिलाफ अपराध बढ़ रहे हैं, जो अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर और व्यापक व्यापार समुदाय में भारत की छवि पर असर डालते हैं।
समग्र खतरे की श्रेणियां
ऊपर दिए गए आंकड़े दिखाते हैं कि शीर्ष पाँच खतरे जिन्होंने इस साल भारत के कारोबारी माहौल पर असर डाला उनमें हड़ताल, बंद और अशांति, सूचना और साईबर असुरक्षा, अपराध और उग्रवाद, और भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी शामिल हैं। 2014 और 2015 के सर्वे के नतीजों में पहला स्थान लेने वाले भ्रष्टाचार, रिश्वतखोरी और कारपोरेट धोखाधड़ी इस साल पांचवें स्थान पर खिसक चुके हैं। हड़ताल, बंद और अशांति में इजाफे के लिए निर्माण क्षेत्र में श्रमिक अशांति की लगातार धमकी के साथ-साथ पिछले कुछ महीनों में शिक्षा और सरकारी नौकरियों आदि में आरक्षण की मांग को लेकर जाट और पटेल समुदाय के आंदोलन को इस अशांति के लिए जिम्मेदार माना जा सकता है, पिछले कुछ महीनों में 'सूचना एवं साईबर असुरक्षा' इस साल के सर्वे में भी दूसरी स्थान पर कायम है।
28June-2016

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