एक दशक में दस फीसदी घटी भागीदारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी
 सरकार की देश में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए ‘बेटी 
बचाओ बेटी पढ़ाओ’, ‘मेक इन इंडिया’ और ‘स्टार्टअप इंडिया’ जैसी कई 
महत्वपूर्ण पहल में जहां युद्धक क्षेत्र में महिलाओं ने कदम रखकर इतिहास 
रचा है। इसके बावजूद पिछले एक दशक में देश के कार्यबलों में महिलाओं की 
भागीदारी में दस प्रतिशत की गिरावट आई है।
देश के प्रख्यात 
वाणिज्य एवं उद्योग संगठन एसोचैम और शिक्षण क्षेत्र की कंपनी थॉट 
आब्रिट्रेज रिसर्च इंस्टीच्यूट की जारी ताजा संयुक्त रिपोर्ट में इसका 
खुलासा हुआ है। इस रिपोर्ट के अनुसार पिछले दशक के दौरान कार्यबल में 
महिलाओं की भागीदारी में 10 प्रतिशत तक की गिरावट को देखते हुए महिलाओं को 
आर्थिक रूप से आत्मनिर्भर बनाने यानि महिला सशक्तिकरण की कवायद नगण्य है। 
रिपोर्ट के मुताबिक वर्ष 2000-05 में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 34 
प्रतिशत से बढ़कर 37 प्रतिशत पर पहुंच गई थी, जो वर्ष 2014 तक लगातार गिरते 
हुए 27 प्रतिशत पर आ गई।
यहां चीन हमसे बहुत आगे
महिलाओं
 को सुरक्षा देने के मामले में ब्रिक्स देशों में भी भारत की रैंकिंग सबसे 
नीचे है। चीन में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी 64 प्रतिशत, ब्रॉजील में
 59 प्रतिशत, रूस में 57 प्रतिशत, दक्षिण अफ्रीका में 45 प्रतिशत और भारत 
में 27 प्रतिशत है। इसका कारण भारत में उच्च शिक्षा का अभाव, बेरोजगारी 
बढ़ने और लचीले कामकाजी शर्तों की खामियों को माना गया है।
छत्तीसगढ़ समेत चार राज्य बेहतर
रिपोर्ट
 के अनुसार वर्ष 2011 में देश के ग्रामीण क्षेत्र में कार्यबल में पुरुषों 
और महिलाओं की भागीदारी का अंतर 30 प्रतिशत और शहरों में 40 प्रतिशत रहा। 
यह सामाजिक एवं सांस्कृतिक स्तर पर कायम भेदभाव और रोजगार के अवसरों के 
अभाव को प्रदर्शित करता है। जबकि वर्ष 2011-12 में देश में एफएलएफपी की दर 
36 प्रतिशत रही थी। इस दौरान 35 में से 31 राज्यों में यह दर राष्ट्रीय औसत
 से भी कम रही थी। इस मामले में केवल आंध्र प्रदेश, छत्तीसगढ़, सिक्किम और 
हिमाचल प्रदेश का प्रदर्शन बेहतर रहा था।
रिपोर्ट
 में एशिया-प्रशांत क्षेत्र के लिए संयुक्त राष्ट्र आर्थिक एवं सामाजिक 
आयोग (ईएससीएपी) के आंकड़ों के हवाले से कहा गया है कि एफएलएफपी दर में 10 
प्रतिशत की बढ़ोतरी से सकल घरेलू उत्पाद (जीडीपी) 0.3 प्रतिशत तक बढ़ सकता 
है। यह एक सकारात्मक संकेत है और इसे हासिल करने के लिए सरकार को नीतिगत 
स्तर पर आवश्यक कदम उठाने के साथ ही कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने
 के लिए प्रयास करने की जरुरत है।
कानून से नहीं रुका यौन उत्पीड़न?
सुप्रीम
 कोर्ट ने भारत की सभी राज्य सरकारों को काम के स्थान पर यौन उत्पीड़न से 
निपटने के लिए जारी किए गए निदेर्शों को लागू करने और उसके लिए उचित कानूनी
 तंत्र बनाने के निर्देश पर संसद में एक विधेयक पारित किया गया था, लेकिन 
सरकार के इस कदम के बावजूद यौन उत्पीड़न में कोई कमी नहीं आई। इसलिए कानून 
को सख्त बनाने का सुझाव दिया गया है।
सरकार को सुझाव
मोदी
 सरकार की देश में कार्यबल में महिलाओं की भागीदारी बढ़ाने के लिए बेटी बचाओ
 बेटी पढ़ाओ, मेक इन इंडिया और स्टार्टअप इंडिया जैसी कई महत्वपूर्ण पहल में
 सुझाव दिये गये हैं कि महिलाओं के लिए रोजगार के नए अवसरों के सृजन जैसे 
कई और पहल करने की जरूरत है। सर्वे रिपोर्ट में एफएलएफपी दर में बढ़ोतरी के 
लिए कई सुझाव दिए गए हैं, जिसमें महिलाओं के लिए कौशल विकास प्रशिक्षण, बड़े
 पैमाने पर चाइल्ड केयर सेंटर की स्थापना करने के अलावा केंद्र एवं राज्य 
सरकार के संयुक्त प्रयास से महिलाओं की सुरक्षा सुनिश्चित की जा सकती है।
29June-2016 

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