बुधवार, 15 जून 2016

जीएसटी:राज्यों की सहमति का रोडमैप तैयार!

तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों में बनी सहमति
मानसून सत्र में पारित होने की संभावनाएं बढ़ी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
आखिर देश में वस्तु एवं सेवाकर संबन्धी जीएसटी कानून लागू करने के लिए मोदी सरकार ने अपने प्रयास तेज कर दिये हैं, जिस पर देश के ज्यादातर राज्यों के साथ सहमति बनती नजर आने लगी। जीएसटी पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति की मंगलवार को केंद्र सरकार के साथ हुई चर्चा में लगभग सभी राज्य सहमत होते नजर आए। इसी आधार पर सरकार जीएसटी मॉडल का रोडमैप तैयार करने में जुट गई है।
मोदी सरकार संसद के आगामी मानसून सत्र के दौरान राज्यसभा में अटके जीएसटी विधेयक को पारित कराने के प्रयास कर रही है, जिसमें वह सार्थक साबित होती भी नजर आने लगी है। हाल ही में चुनाव के बाद राज्यसभा में यूपीए से आगे आकर सरकार की ताकत बढ़ाने के साथ इस मुद्दे पर सरकार ने तेजी से कदम बढ़ाना शुरू किया और मंगलवार को कोलकाता में शुरू कराई गई राज्यों के वित्तमंत्रियों की अधिकारप्राप्त समिति की बैठक में शामिल हुए 22 राज्यों के वित्त मंत्रियों और सात राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ खुद केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने जीएसटी मॉडल पर बिंदुवार चर्चा की। बैठक के बाद जेटली ने दावा किया है कि इस बैठक में लगभग सभी राज्य जीएसटी विधयेक पर आम सहमति बनाते दिखे जो एक रोडमैप तैयार करने से कम नहीं। जेटली का कहना है कि इस बैठक में तमिलनाडु को छोड़कर सभी राज्यों ने अपने सुझाव दिये और विधेयक को समर्थन दिया। तमिलनाडु ने आपत्तिया दर्ज कराते हुए जो कुछ सुझाव दिए हैं सरकार के साथ समिति भी उन पर विचार कर रही है।
क्या हैं आपत्तियां
वित्त मंत्री अरुण जेटली का कहना है कि जीएसटी के तहत तीन सालों के लिए एक प्रतिशत अतिरिक्त कर लगाने के मामले में सरकार का रुख हमेशा ही लचीला रहा है, जिसे लागू किया जा सकता है। फिर भी इसके लिए सरकार के दरवाजे बातचीत के लिये खुले हैं। जबकि बिल के प्रावधान में दोहरे नियंत्रण एवं राजस्व निरपेक्ष दर के मुद्दे पर अंतिम फैसला अधिकार प्राप्त समिति को ही करना है। केंद्रीय वित्त मंत्री ने कहा कि जीएसटी दर पर संवैधानिक सीमा नहीं लगाने को लेकर पूरी तरह सहमति क्योंकि भविष्य में दरों में संशोधन की जरूरत पड़ सकती है। दरअसल देशभर में एकल कर व्यवस्था लागू करने के मकसद से जीएसटी पिछले कई सालों से राज्यसभा में अटका हुआ है, जिसमें खासकर कांग्रेस अडंगा लगाती आ रही है।
कांग्रेस भी सशर्त समर्थन को तैयार
इस टैक्स बदलाव की जनक कांग्रेस पार्टी ने कहा है कि वह इसका समर्थन करेगी, यदि केंद्र सरकार ऊपरी कर सीमा के तौर पर 18 प्रतिशत को सुनिश्चित करे। वहीं राज्यों के बीच कर बंटवारे को लेकर होने वाले विवादों के लिए स्वतंत्र व्यवस्था स्थापित करने का प्रावधान किया गया तो केंद्र सरकार को इस विधेयक को पारित कराने में कांग्रेस सहयोग करेगी। गौरतलब है कि यह विधेयक लोकसभा द्वारा पहले ही पारित किया जा चुका है और अब संसद के मॉनसून सत्र के दौरान उच्च सदन में इसके पारित होने की उम्मीदें बढ़ गई हैं। गौरतलब है कि पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने जीएसटी पर केंद्र सरकार को समर्थन देने की घोषणा की है। इससे संसद के आगामी मानसून सत्र में जीएसटी विधेयक के राज्यसभा से भी पारित होने की आशा बलवती हो उठी है। ज्यादातर अन्य विपक्षी दल भी इस विधेयक के पक्ष में हैं। यदि सरकार इस प्रयास में सफल रही तो वर्ष 1947 में भारत की स्वाधीनता के बाद से अब तक के सबसे बड़े प्रस्तावित टैक्स बदलाव के तहत बहुत-से केंद्रीय और राज्यीय करों के स्थान पर नया कर जीएसटी देश में लागू हो जाएगा।

पहले ही शुरू हो गई थी उम्मीदों की पटकथा
संसद सत्र से पहले अंतिम रूप लेगा जीएसटी मसौदा
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
राज्यसभा की 58 सीटों पर चुनावी नतीजो से पहले ही मोदी सरकार ने जीएसटी विधेयक को आगे बढ़ाने को प्रयास तेज कर दिये थे और राज्यसभा में राजग सरकार की बढ़ती ताकत से जिस प्रकार अन्य दलों के रूख में बदलाव आया है उसे देखते हुए सरकार ने राज्यों के वित्तमंत्रियों की विशेष समिति की बैठक बुलाकर रोडमैप बनाने की तैयारी कर ली थी। इसके मसौदे को अंतिम रूप देने के लिए राज्यों के वित्त मंत्रियों की संसद सत्र से पहले जुलाई में बैठक होने की भी संभावना है।
सूत्रों के अनुसार मानसून सत्र में जीएसटी को अंजाम तक पहुंचाने के इरादे से जैसे ही राज्यसभा की 31 सीटों पर निर्विरोध चुने गये सदस्यों में भाजपा और उसके सहयोगी दलों को बढ़त मिली तो सरकार ने अपनी तैयारी को बढ़ाते हुए राज्यों के वित्तमंत्रियों की विशेष समिति की बैठक बुलाना तय करते हुए संकेत दे दिये थे। मसलन गत 28 मई को नॉर्थ ब्लॉक स्थित मंत्रालय में वित्त मंत्री अरुण जेटली ने राजस्व विभाग के अधिकारियों की उच्चस्तरीय बैठक बुलाकर राज्यों के वित्त मंत्रियों की बैठक बुलाने की पटकथा तैयार करा ली थी, जिसमें राजस्व सचिव राजीव टकरू और अन्य शीर्ष अधिकारियों ने राजस्व लक्ष्य व संग्रहण, प्रत्यक्ष एवं परोक्ष कर प्रणाली में लंबित सुधार जैसे विषयों पर वस्तुस्थिति का ब्यौरा जेटली को सौंपा था। यही नहीं इस बैठक में केंद्रीय प्रत्यक्ष कर बोर्ड (सीबीडीटी) तथा केंद्रीय उत्पाद एवं सीमा शुल्क बोर्ड (सीबीईसी) के शीर्ष अधिकारी भी शामिल हुए थे। सूत्रों के मुताबिक जेटली ने अधिकारियों से जीएसटी की मौजूदा स्थिति के बारे में इस मुद्दे पर राज्यों के वित्त मंत्रियों की शीघ्र ही बैठक बुलाने के मकसद का साफ कर दिया था।
यूपीए ने की थी पहल
पूर्ववर्ती संप्रग सरकार ने जीएसटी लागू करने के इरादे से लोकसभा में 2011 में एक संविधान संशोधन विधेयक पेश किया था। लेकिन राज्यों के वित्त मंत्रियों की अधिकार प्राप्त समिति ने जीएसटी के स्वरूप और प्रावधानों पर अपनी आपत्ति जाहिर की। नतीजतन इस पर राजनीतिक सहमति नहीं बन सकी।
सभी करों का होगा विकेंद्रीकरण
जीएसटी के लागू होने पर केंद्रीय उत्पाद शुल्क और सेवाकर और राज्य सरकारों के मूल्यवर्धित कर यानि वैट, केंद्रीय बिक्री कर,लक्जरी टैक्स, मनोरंजन कर, जैसे कई टैक्स जीएसटी में समाहित हो जाएंगे। सरकार का मानना है कि इससे न सिर्फ टैक्स प्रक्रिया सरल हो जाएगी, बल्कि कारोबारियों को फायदे के साथ इससे उपभोक्ताओं को भी राहत मिलेगी। जीएसटी के प्रस्तावों के तहत कई वस्तुओं की कीमत में 25 से 30 प्रतिशत हिस्सा विभिन्न तरह के मौजूदा करों कम हो जाएगा। हालांकि जीएसटी दो तरह से काम करेगा, जिसमें एक केंद्र तथा दूसरा दूसरा राज्य के क्षेत्राधिकारों के रूप में काम करेगा।
15June-2016

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