महंगाई की आग में घी ड़ालने का बन सकता है सबब
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
 सरकार द्वारा भले ही देश के एक करोड़ से ज्यादा सरकारी कर्मचारियों की जेब 
भरने के लिए सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें मंजूर कर ली हो, लेकिन इसका असर
 केंद्र से ज्यादा जहां राज्यों के खजाने पर ज्यादा पड़ने के साथ आम इंसान 
की जिंदगी पर भी पड़ने से इंकार नहीं किया जा सकता। मसलन विशेषज्ञ मान रहे 
हैं कि सातवें वेतन आयोग की सिफारिशें लागू होना महंगाई की जलती आग में घी 
डालने का सबब बन सकती है।
केंद्र सरकार ने बुधवार को सातवें वेतन
 आयोग की सिफारिशों को मंजूर करके भले ही देश के सरकारी कर्मचारियों को एक 
बड़ी सौगात दी हो, लेकिन जब करोड़ों कर्मचारियों की जेब में अतिरिक्त पैसा 
होगा, तो उसका कुछ न कुछ असर बाजार पर भी पड़ना तय है। मसलन विशेषज्ञों ने 
अनुमान लगाया है कि अगले साल उपभोक्ता सामग्री और रीयल स्टेट बाजार में 
रौनक बढ़ने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता। जाहिर सी बात है कि 
उपभोक्ता मूल्य सूचकांक में इजाफे का खतरा तय है। मसलन दाल, सब्जी और अन्य 
आवश्यक खाद्य सामग्री की कीमतों में वृद्धि की प्रबल संभावनाओं से आम आदमी 
को अपनी जेबें ढ़ीली करने के लिए मजबूर होना पड़ेगा यानि पहले से मुहं बाये 
खड़ी महंगाई की सुरसा आम नागरिकों की जिंदगी में भूचाल लाएगी और उसकी कमर 
तोड़ने का काम करेगी। ऐसे सवाल है कि बाजार की चमक कब तक बनी रहेगी? लेकिन 
विशेषज्ञ सातवें वेतन आयोग की सिफारिशों को देश में पहले से जल रही इस 
महंगाई की आग में घी डालने का काम करेगी।
अर्थव्यवस्था पर विपरीत असर 
राष्ट्रीय
 स्वयंसेवक संघ से संबद्ध भारतीय मजदूर संघ का कहना है कि वेतन आयोग की 
सिफारिशों के कारण प्रतिभाशाली लोगों का देश से पलायन बढ़ेगा, जिसका 
अर्थव्यवस्था पर भी विपरीत प्रभाव पड़ेगा। देश की अर्थव्यवस्था बेहतर न होते
 हुए भी कच्चे तेल के अंतरराष्ट्रीय मूल्यों में आई भारी कमी और सबसिडी बिल
 में कटौती के कारणआज मोदी सरकार के राजकोष की माली हालत बेहतर है। इसी 
कारण केंद्र सरकार को नए वेतन लागू करने में ज्यादा कठिनाई नहीं होगी, 
लेकिन आर्थिक विशेषज्ञों की माने तो वित्तीय संकट से घिरे देश के अधिकांश 
राज्यों के लिए सातवें वेतन आयोग को लागू करना इतनी आसान डगर नहीं होगी। 
केंद्र सरकार भले ही वेतन आयोग को सकल घरेलू उत्पाद यानि जीडीपी से आंक रही
 हो, लेकिन माना जा रहा है कि केंद्र के मुकाबले राज्य सरकारों को भारी 
वेतन मानों को लेकर परेशानी का सामना करना पड़ सकता है।
विशेषज्ञों
 का कहना है कि कर्मचारियों के वेतन वृद्धि से बाजार पर भी असर पड़ेगा और 
जरूरी सामानों की मांग बढ़ेगी और इससे कीमतों में बढ़ोतरी से इनकार नहीं किया
 जा सकता है। बाजार के जानकारों की मानें तो आॅटोमोबाइल और कंज्यूमर 
ड्यूरेबल सेक्टर में अच्छी खरीदारी देखने को मिल सकती है। वहीं आॅटो, आॅटो 
एंसिलियरी, कंज्यूमर ड्युरेबल्स और बैंकों को सबसे ज्यादा फायदा होगा। 
बैंकिंग के जानकारों का मानना है कि वेतन आयोग की सिफारिशें अर्थव्यवस्था 
के लिहाज से काफी बेहतर है, लेकिन सातवें वेतन आयोग के लागू होने से 
वित्तीय घाटा बढ़ेगा या नहीं, यह एक बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन 
विनिर्माण क्षेत्र में भी अच्छी कमाई की उम्मीद से बैंक डिपॉजिट में भी 
बढ़ोतरी होने की संभावना है।
छह दशकों में 225 गुना इजाफा
आजाद
 भाात में पिछले सत्तावन साल में सरकारी कर्मचारियों के वेतनमान में अब तक 
225 गुना बढ़ोतरी हो चुकी है, जब 1959 में दूसरो दूसरा वेतन आयोग लागू हुआ 
था तो न्यूनतम वेतन अस्सी रुपए था, जो आज बढ़कर 18000 रुपए हो गया है। इसके 
विपरीत यदि पिछले छह दशक की महंगाई पर गौर किया जाये तो उसके मुकाबले 
वार्षिक वेतन वृद्धि दस प्रतिशत ही बैठती है। विशेषज्ञों के मुताबिक 
न्यूनतम वेतन की गणना एक परिवार में चार सदस्यों के आधार पर की जाती रही है
 और यह वेतन निर्धारण का फामूर्ला वर्ष 1957 के श्रम सम्मेलन की सिफारिशों 
के आधार पर तय किया गया था, जो आज तक बादस्तूर जारी है।

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