सोमवार, 28 मार्च 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश में गरीबों के आशियाने पर दस्तावेजों का अडंगा

सरकार को नहीं मिल रहे गरीब, तो अमीरों के लिए खोले दरवाजे 
घर के सपना पूरा करने का गरीबों को बेसब्री से इंतजार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में गरीबों और बेघरों को आशियाना देने के लिए चलाए जा रहे ‘सबके लिए आवास’ मिशन यानी प्रधानमंत्री आवास योजना के अलावा राज्य स्तर की आवास योजनाओं के तहत भले ही मकान बनाने की रफ्तार धीमी हो, लेकिन जो भी आवास बनाए गये हैं, उनके लिए भी सरकार को गरीब नहीं मिल रहे। ऐसा भी नहीं है कि प्रदेश में गरीबों या बेघर परिवारों की कमी हो, लेकिन छत मुहैया कराने के लिए जो पात्रता तय की गई है, उसके लिए दस्तावेजों के अभाव में अधिकांश गरीब परिवार पात्रता के दायरे से बाहर हो जाते हैं। शायद इसीलिए राज्य सरकार ने घोषणा की है की प्रदेश में गरीबों के लिए बनाए जा रहे आवासों का लाभ सामान्य श्रेणी के लोग भी उठा सकते हैं। दूसरी ओर प्रधानमंत्री आवास योजना के लिए आवासों के निर्माण और उनके आंवटन को कछुआ चाल ही कहा जा सकता है, जिसमें शहरी और ग्रामीण क्षेत्र में प्रस्तावित आवासों का 18 फीसदी भी निर्माण नहीं हो पाया है। ऐसा भी नहीं है कि इस योजना के तहत प्रदेश के शहरी व ग्रामीण अंचलों में गरीबों को मकानों का आवंटन नहीं हुए, लेकिन ज्यादातर पात्र गरीब लोगों को तीन किस्तों में जारी होने वाली सहायता राशि के विलंब के कारण भी उनके आशियाना मिलने का सपना अभी अधूरा है। वहीं खासकर शहरी क्षेत्र में आवंटित आवासों को लेकर उन्हें किराए पर देकर मुनाफा कमाने और कुछ गरीबों के आशियानों पर दबंगों ने हथियाकर गरीबों के हकों पर डांका डाल रखा है। 
हरियाणा में केंद्र सरकार की ‘प्रधानमंत्री आवास योजना की रफ्तार इतनी धीमी है कि 2022 तक ‘हर सिर पर छत’ का लक्ष्य मुश्किल ही नहीं, बल्कि नामुमकिन है। प्रदेश में अभी तक शहरी व ग्रामीण क्षेत्र में गरीबों के आशियाने के लिए प्रस्तावित लक्ष्य के विपरीत अभी तक 18 फीसदी भी मकानों का निर्माण नहीं हो सका है, जिसमें केंद्र सरकार द्वारा प्रधानमंत्री आवास योजना में प्रदेश में स्वीकृत मकानों में से शहरी क्षेत्र में 30.56 और ग्रामीण क्षेत्र में 67.3 फीसदी आवासों का निर्माण हुआ है। पीएमएवाई के तहत प्रदेश के सभी नगर निगम, नगर परिषद व नगर पालिकाएं इस योजना के तहत सरकारी कर्मचारियों को छोड़कर गरीबों और जरूरतमंद लोगों को शहरी क्षेत्र में घर बनाने के लिए वित्तीय मदद उपलब्ध करवा रहे हैं। हालांकि प्रधानमंत्री आवास योजना के तहत हरियाणा में सरकार का 3.94 लाख आवास का प्रस्ताव है, लेकिन केंद्र सरकार ने अभी तक हरियाणा में 2.78 लाख से ज्यादा आवासों को ही मंजूरी दी है। प्रदेश में पीएमएवाई के तहत स्वीकृत आवासों में करीब 1.58 लाख शहरी और 1.20 लाख से ज्यादा ग्रामीण क्षेत्रों के शामिल हैं। लेकिन पिछले सात साल में अभी तक 68,852 आवासों के निर्माण ही पूरा हो सका है, जिसमें शहरी क्षेत्र में 48,130 और ग्रामीण क्षेत्र में 20,722 आवास शामिल हैं। यानी राज्य के शहरी क्षेत्र में 83,597 और ग्रामीण क्षेत्र में 10067 आवासों के निर्माण कार्य अंतिम चरण में हैं। वहीं हाउसिंग बोर्ड हरियाणा भी योजना के तहत आवासों का लगातार निर्माण कर रहा है। 
गरीबों के घर पर सरकार गंभीर 
हरियाणा सरकार ने हाल ही में ऐलान किया है गरीबों के लिए बनाए जा रहे मकानों को सामान्य श्रेणी के लोगों को भी आवंटित किया जा सकेगा। इसका प्रमुख कारण यही माना जा रहा है कि मकान के लाभ के लिए ज्यादातर गरीब परिवार दस्तावेजों के अभाव में पात्रता से बाहर हो रहे हैं। यही कारण है कि प्रदेश में लाखों में तादाद के बावजूद गरीब परिवार मकानों के लिए सरकार के आंकड़े मे नहीं आ रहे हैं। हाउसिंग बोर्ड की ओर से आर्थिक रूप से कमजोर लोगों के लिए प्रदेश के अधिकतर जिलों में हजारों मकान बनाए गए थे। कुछ लोगों ने इन मकानों को छोटा तो कुछ ने महंगा और शहरी आबादी से दूर बताते हुए खरीदने में खास रूचि नहीं दिखाई। सरकार का तर्क है कि काफी लोगों ने तो मामूली कटौती के बाद अपने पैसे भी वापस ले लिए हैं। प्रदेश सरकार को लगता है कि सामान्य श्रेणी में भी लाखों-हजारों लोग ऐसे हैं, जो गरीब हैं और उनके पास अपनी खुद की कोई छत नहीं है। ऐसे लोग बीपीएल श्रेणी के लोगों के लिए बने इन मकानों की खरीद कर सकते हैं। हाउसिंग बोर्ड की ओर से हर माह 15 तारीख और 30 या 31 तारीख को ई-नीलामी करने की व्यवस्था की हुई है। 
ऐसे गरीबों का सपना अधूरा 
सरकारी आंकड़ों के अनुसार पीएमएवाई के तहत जिस प्रकार से पात्रता के लिए दस्तावेज अनिवार्य किये गये हैं। उसके मुताबिक को बेघर गरीबों की छत का सपना अधूरा ही रहने की संभावना है। सरकारी आंकड़े के मुताबिक हरियाणा में 51,871 परिवार बेघर हैं, जिनमें 23,789 यानी 45.86 प्रतिशत शहरी और 28,082 यानी 54.14 प्रतिशत ग्रामीण इलाकों में हैं। जनगणना 2011 के मुताबिक हरियाणा में झुग्गियों मे रहने वाले 3,32,697, स्लम परिवारों की आबादी 16,62,305 है। वहीं हरियाणा में सर्वेक्षण के अनुसार बीपीएल परिवारों यानि गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की संख्या 46,30,959 है और आवास या अन्य सरकारी योजनाओं को इसी आंकड़े के तहत मदद मिल रही है। ऐसे बीपीएल परिवारों में 16,61,450 शहरी और 29,69,509 ग्रामीण परिवार हैं। वहीं प्रदेश में गरीब वर्ग के 81900 परिवार किराए के मकानों में जीवन व्यतीत कर रहे हैं, जिनमें 62176 परिवार शहरी और 19724 परिवार ग्रामीण क्षेत्रों में किराएदार हैं। हालांकि राज्य सरकार ने अंत्योदय-सरल योजना के तहत आर्थिक रूप से कमजोर वर्ग के लिए मकान मुहैया कराने हेतु हाउसिंग बोर्ड हरियाणा के फ्लैट और प्लाट देने की योजना चलाई है, जिसमें गरीबो के सिर पर छत का इंतजाम करने का लक्ष्य है। 
बीपीएल परिवारों की भरमार 
हरियाणा में वर्ष 2007 के सर्वेक्षण के अनुसार बीपीएल परिवारों यानि गरीबी की रेखा से नीचे जीवन यापन करने वाले परिवारों की संख्या 46,30,959 थी और और केंद्रीय व राज्य स्तर की आवास या अन्य योजनाओं को इसी आंकड़े के तहत मदद दी जा रही है। ऐसे बीपीएल परिवारों में 16,61,450 शहरी और 29,69,509 ग्रामीण परिवार हैं। ग्रामीण बीपीएल वर्ष 2007 के सर्वे के अनुसार ग्रामीण बीपीएल परिवारों में 8,58,389 परिवारों के पास अपने मकान हैं, जबकि हरियाणा में 7,86,862 परिवार ऐसे थे, जिनके पास न तो अपनी जमीन या मकान तक नहीं था। ऐसे बिना किसी संपत्ति वाले बीपीएल परिवारों में सबसे ज्यादा 58,087 भिवानी तथा 56,499 परिवार हिसार के ग्रामीण परिवार सामने आए हैं। मकान व भूमिहीन बीपीएल परिवारों में झज्जर में 50691, करनाल में 50665 परिवार पाए गये थे। हरियाणा सरकार ने बीपीएल व ईडब्ल्यूएस श्रेणी के लोगों की इस परेशानी को समझते हुए उन्हें फ्लैट हस्तांतरण की सुविधा प्रदान की है। यानी वे उन्हें बेच सकते हैं। 
बेघरों के 52 आश्रय गृह 
शहरी बेघरों समेत लोगों को आश्रय उपलब्ध कराने की प्राथमिक जिम्मेदारी राज्य सरकार की है। तथापि केंद्र सरकार राज्य सरकारों के माध्यम से शहरी बेघरों के लिए आश्रय उपलब्ध कराने में उनके प्रयास को सफल बनाने के मकस से दीनदयाल अंत्योदय योजना-राष्ट्रीय शहरी आजीविका मिशन यानि डीएवाई-एनयूएलएम योजना के अंतर्गत शहरी बेघरों के लिए आश्रय(एसयूएच) योजना को प्रशासित कर रहा है। इस योजना में सर्वेक्षण के मुताबिक हरियाणा के 20 हजार से ज्यादा शहरी बेघरों के लिए आधारभूत सुविधाओं वाले 52 आश्रयगृह सक्रीय हैं। 28Mar-2022

साक्षात्कार. संस्कृति निर्माण में साहित्य की अहम भूमिका: राजेश भारती

जापानी काव्य विधा में बाल साहित्य लिखने का अनूठा प्रयास
-ओ.पी. पाल 
व्यक्तिगत परिचय
नाम: राजेश ‘भारती’ 
जन्म: 10 नवंबर 1989 
जन्म स्थान: गांव काकौत, जिला कैथल (हरियाणा) 
शिक्षा: स्नातक 
संप्रत्ति: कविता लेखन और खेती किसानी 
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साहित्य जगत में बाल साहित्य जैसे कठिन लेखन को धार देने वाले गिने चुने साहित्यकारों में ही हरियाणा के रचनाकार राजेश ‘भारती’ एक ऐसे उदयीमान प्रतिभाशाली युवा लेखक एवं कवि हैं, जिन्होंने समाज को नई दिशा देने के लिए भाषा, सभ्यता, संस्कृति और संस्कार के प्रति जागरूकता करने के अलावा राष्ट्रप्रेम, सामाजिक समरसता जैसे सामयिक विषयों पर गंभीरता के साथ सृजनात्मक लेखन को धार दी है। खासतौर से उन्होंने बाल मन को मोहने और बाल पाठकों को परिवार, समाज व देश के प्रति सम्मान की प्रेरणा देते हुए संस्कारों का पाठ पढ़ाने के मकसद से बाल साहित्य को ही अपने रचना संसार का आधार बनाया है। उनके इसी सृजनात्मक लेखन की विभिन्न विधाओं में अपने रचना संसार का विस्तार करने में जुटे युवा रचनाकार को हाल ही में हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के लिए स्वामी विवेकानन्द स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से नवाजा है। प्रदेश के युवा कवि एवं लेखक राजेश भारती ने अपने अनूठे साहित्यिक सफर के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत में विस्तार से अनेक पहलुओं के साथ साझा किया है। 
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रियाणा में कैथल जिले के गांव काकौत के रहने वाले युवा साहित्यकार राजेश भारती का जन्म 10 नवंबर 1989 को पाला राम के घर में हुआ। प्राथमिक शिक्षा गांव के सरकारी स्कूल से हुई। इनका व्यक्तित्व शुरू से ही गंभीर प्रवृति का रहा है। स्कूल टाइम से ही सांस्कृतिक कार्यक्रमों में बढ़ चढ़ कर भाग लेते रहे हैं। लेकिन पूरा परिवार खेतीबाड़ी के पवित्र कार्य से जुड़ा हुआ है। राजेश भारती भी स्वयं किसानी का कर्म करते हुए लेखन कार्य में इस मकसद से जुटे हैं कि वह हरियाणा के साहित्य क्षेत्र को विश्व पटल तक ले जाया जा सके, क्योंकि संस्कृति निर्माण में साहित्य की अहम भूमिका होती है। उनका कहना है कि कक्षा छह से उन्होंने दसवीं कक्षा तक चार पांच हजार फिल्मी गाने लिखे, उसके बाद उन्होंने समाज व देश के सामयिक विषयों पर कविताएं लिखने का सिलसिला शुरू किया। उनका मुख्य फोकस बाल साहित्य पर रहा है। बाल साहित्य के अलावा इनका लेखन बेटियों और नारी सम्मान के अलावा समाजिक कुरितियों के उन्मूलन और देशभक्ति से जुड़ा हुआ है। बाल साहित्य को आधार बनाकर राजेश भारती ने बालकों परिवार, समाज, व देश के प्रति प्रेम और सम्मान की प्रेरणा देकर उन्हें अपनी बाल कविताओं के माध्यम से साहस, ईमानदारी, मेहनत, सत्यवादी, अहिंसा जैसे गुणों का संचार करना है। जापानी काव्य विधा में बाल हाइकु संग्रह और तांका छंद में बच्चों के लिए जिस प्रकार रचनाएं लिखी है, वह उनका बेहद कठिन, लेकिन अनूठा प्रयास है। इसमें तांका विधा में कविताएं बच्चों को प्रकृति, पशु व पक्षी के प्रति लगाव सिखाता नजर आता है। ऐसे सृजनात्मक लेखन के जरिए बाल जीवन से जुड़ हर छोटे व बड़े पल को उन्होंने हाइकु संग्रह के जरिए बालकों में अपनी संस्कृति और संस्कार भरने का प्रयास किया है। राजेश भारती ने कहा कि हाइकु 5-7-5 ध्वनि घटकों में विभाजित 17 अक्षरों वाली जापानी मूल की वह कविता है, जो तीन पंक्तियों और तांका पांच लाइनों में लिखी जाती है। हाइकु व तांका काव्य विधा की रचनाओं के लिए तो हिंदी साहित्य के प्रसिद्ध साहित्यकारों और आलोचकों ने आश्चर्य जताते हुए सराहना की है, कि खेती बाड़ी के कार्य में व्यस्त इतना कठिन साहित्य लिखना कैसे संभव हो पा रहा है, जो उनकी सबसे बड़ी उपलब्धियां हैं। आज के आधुनिक युग में साहित्य की स्थिति के बारे में राजेश भारती का कहना है कि साहित्य का सृजन तो धरती के साथ ही हो रहा है। फर्क केवल इतना है कि इसमें समय के साथ परिवर्तन होते रहते हैं, लेकिन अच्छा साहित्य ही हमेशा जिंदा रहता है। यह बात जरुर है कि इंटनेट, मोबाईल और ईबुक्स के कारण प्रकाशित पुस्तकों पर इस तकनीकी युग में प्रभाव पड़ा है, जिसकी वजह से सोशल मीडिया की बढ़ती अहम भूमिका सामने आती है और लोगों में किताबे पढ़ने की रुचि खासकर युवा पीढ़ी में कम होने लगी है। वह मानते हैं कि आज सोशल मीडिया का बढ़ते प्रभाव के कारण साहित्य के लेखन स्तर में गिरावट भी आई है और हर कोई स्वतंत्र है, तो सोशल मीडिया के जरिए ही कुछ भी कहने को लिखने से नहीं चूकता। यहां तक कि अश्लील से अश्लील शब्द या वाक्य भी सोशल मीडिया पर आसानी से प्रचारित हो जाती है। साहित्य तो एक लंबी साधना है, जो जीवन के आखिर तक करनी पड़ती है। इसके लिए शार्टकट लेना हितकारी नही होता। इसलिए इस आधुनिक युग में आज और भी आवश्यक हो गया है कि बच्चों कोई साहित्य से जोड़ा जाए, क्योंकि साहित्य में ही संस्कार और संस्कृति के साथ जीवन जीने के तौर तरीके और सलीके विद्यमान हैं। 
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पुस्तकें प्रकाशित 
प्रदेश के साहित्यकार राजेश भारती की प्रकाशित करीब आधा दर्जन पुस्तकों में कविता संग्रह ' बेटियां हैं अनमोल', 'बेटी करे पुकार' और 'बिटिया के बस्ते में' हरियाणा साहित्य अकादमी के सौजन्य से 2014 में प्रकाशित हुई हैं। जबकि बाल कविता संग्रह 'मच्छर की शादी' भी बाल मन को खूब मोह रही है। युवा रचनाकार के बाल साहित्य में बालमन को मोहने वाला जापानी मूल की काव्य विधा में लिखा गया बाल हाइकु संग्रह 'आँख-मिचौली' इसलिए सुर्खियों में है कि जापानी विधा का यह बाल कविता संग्रह देश का पांचवा और हरियाणा में पहली बार किसी रचनाकार ने लिखकर बाल साहित्य के क्षेत्र में लोकप्रियता हासिल की है।वहीं हाल ही में एक ओर जापानी काव्य विधा-ताँका पर आधारित 'कच्ची धूप' नामक बाल-ताँका संग्रह बाल पाठकों के सामने आया है, जो जापानी काव्य विधा-ताँका पर यह देश का पहला बाल साहित्य है।
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पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा सरकार ने प्रदेश के युवा साहित्यकार एवं कवि राजेश भारती को पिछले माह फरवरी में हरियाणा साहित्य अकादमी के वर्ष 2018 के लिए स्वामी विवेकानंद युवा लेखक सम्मान से नवाजा गया है। राजेश भारती को साहित्य की विभिन्न विधाओं में लेखन और काव्य पाठ के लिए निर्मला स्मृति हिन्दी साहित्य गौरव सम्मान से सम्मानित (चरखी दादरी), अखिल भारतीय साहित्य मंथन शोध संस्थान दिल्ली से श्री देवेन्द्र माँझी साहित्य शिरोमणि सम्मान, हिन्दी प्रेरक साहित्य संस्था जींद से श्री कमल प्रकाश स्मृति साहित्य रत्न सम्मान हासिल हुआ है। साहित्य सभा कैथल से जुड़े राजेश भारती को मासिक गोष्ठियों और वार्षिक कवि सम्मेलनों में भी एक कवि एवं रचनाकर में अनेकों सम्मान हासिल हो चुके हैं। 
संपर्संक: राजेश भारती सुपुत्र श्री पाला राम, गांव काकौत, जिला कैथल-136027 हरियाणा। मोबाईल:9896992737 28Mar-2022

बुधवार, 23 मार्च 2022

मंडे स्पेशल:जल संकट से निपटने को सरकार ने कसी कमर

 कैच दा रेन और मेरा पानी मेरी विरासत से तस्वीर बदलने की उम्मीद 
अब तक के प्रयासों को नहीं मिल पाई उम्मीद के मुताबिक कामयाबी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। राज्य सरकार को बीते कई सालों में प्रयासों के बाद भी जल संचय और भू-जल प्रबंध में वो सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद थी। एक तरफ तो प्रदेश के 141 में से 85 ब्लॉक रेड कैटेगरी में शामिल हो गए है, जहां पानी पाताल में जा रहा है, वहीं भिवानी, रोहतक, कैथल, जींद, हिसार, झज्जर, सोनीपत जिलों की खेती भूमि का बडा हिस्सा सेम की चपेट में आ गया है। अनेक योजनाएं बनाने के बाद भी दोनों हालातों में सुधार नहीं हो पाया। अब राज्य सरकार ने एक बार फिर इन परेशानियों से निपटने को कमर कस ली है। एक तरफ तो ‘कैच दा रेन अभियान’ शुरू किया है, जिसमें बरसाती पानी को संचय करके मुरुथल हो रहे क्षेत्रों को संचित किया जाएगा। साथ ही ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’ योजना के तहत पानी को बचाने का अभियान चल रहा है। इस योजना में किसानों को धान जैसी अधिक पानी से तैयार होने वाली फसलों की बजाय अन्य फसलों की ओर रुझान पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे सेमग्रस्त समस्या से निपटा जा सके। इसके लिए केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार की पीठ थपथपाई है। 

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 सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य में ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना के तहत वर्ष 2021 में 32,196 किसानों ने 51,874 एकड़ क्षेत्र में धान के स्थान पर अन्य फसलों की बुआई की गई और 7000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि का लाभ लिया। यही नहीं खेत में तालाब निर्माण के लिए किसान को कुल खर्च पर 70 प्रतिशत की सब्सिडी भी दी जा रही है। सरकार ने भूजल को कानूनी अमलीजामा भी पहना दिया है। यानी केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के दिशानिर्देशों के तहत संरक्षण प्रबंधन तथा भू-जल के विनियमन के दायरे में सूक्ष्म सिंचाई, अपशिष्ट जल का सिंचाई व अन्य के लिए प्रयोग और जलभराव वाले क्षेत्रों को शामिल किया गया है। 

जोहड़ों का कायाकल्प 

अब ग्रे-वाटर मैनेजमेंट अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब पद्धति के तहत पहले चरण में 3400 गांवों के जोहड़ों का कायाकल्प होगा। अब तक कुल 502 पूर्ण तालाब, जिसमे 213 तीन तालाब पद्धति व 289 पांच तालाब पद्धतियों का निर्माण किया जा चुका है। इनमें से 443 तालाब क्रियाशील है। यह पद्धति वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और सूर्य के प्रकाश के माध्यम से होने वाली एक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया है। इस प्रणाली में अन्य उपचार प्रणालियों की तरह किसी रसायन, बिजली या कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं है। हरियाणा में अब तक जल विशेष जल संरक्षण अभियान के तहत जल शक्ति योजना के तहत 1.5 लाख सोख गड्ढे भी बनाए गए हैं। गांवों में 4 हजार तालाबों का विस्तार किया गया है और वाटर शेड के अलावा 30 लाख पेड़ लगाए गए हैं। 

रेड कैटेगरी में 85 ब्लॉक 

केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के ताजा आंकड़ो पर गौर करें तो हरियाणा के कुल 141 ब्लॉकों में से 85 ब्लॉक के 1780 गांव भूजल दोहन के कारण रेड कैटेगरी में पहुंच गए हैं। यह 85 ब्लॉक राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के 60 फीसदी हिस्से को दर्शाते हैं, जहां जल संकट है। जबकि वर्ष 2004 में 55 ब्लॉक रेड कैटेगरी में थे। यानी डेढ़ दशक में 30 और ब्लॉक इसमें जुड़ गए हैं। सरकार ने भूजल स्तर के हिसाब से गुलाबी, बैंगनी और नीली श्रेणियां भी गांवों के लिए बनाई हैं। वहीं सरकार ने हरियाणा में उचित जल ऑडिट भी शुरू कर दिया गया है। इसके लिए भूजल तालिका की रियल टाइम मॉनीटरिंग के लिए महत्वपूर्ण रेड ब्लॉक में 1,700 पीजोमीटर लगाए जा रहे हैं। भू-जलस्तर में गिरावट में सुधार के लिए हरियाणा के 22 जिलों में से 14 जिलों की 1669 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक भागीदारी के साथ अटल भूजल योजना भी चलाई जा रही है। इस योजना के तहत भूजल संसाधनों का हाइड्रोजियोलॉजिकल डाटा नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। 

गिरता भूजल स्तर खतरे की घंटी 

प्रदेश में आमतौर पर भूजल की दो श्रेणियां हैं, जिसमे एक जो गतिशील है और दूसरी स्थिर है और जमीन के काफी नीचे है। प्रदेश में गिरते भूल की समस्या से अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, हिसार, झज्जर, भिवानी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, सोनीपत, पानीपत और जींद सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वहीं रोहतक, झज्जर आदि क्षेत्रों में तो भूजल खारा है और इसे सिंचाई के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। हरियाणा में भूजल निकालने की क्षमता देश के औसत 63 फीसदी से भी ज्यादा 137 प्रतिशत अधिक निकाला जाता है। हरियाणा सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्षा जल और नहर के पानी से वार्षिक भूजल रिचार्ज 10.15 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है, जिसमें से 9.13 बीसीएम का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन राज्य में भूजल रिचार्ज के मुकाबले कहीं वार्षिक भूजल निकासी कहीं ज्यादा 12.50 बीसीएम है, जिसमें से 11.53 बीसीएम अकेले सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और शेष घरेलू (0.63 बीसीएम) और औद्योगिक उपयोग (0.34 बीसीएम) के लिए रह जाता है। हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण के अनुसार तेजी से गिरते भूजल स्तर की सबसे बड़ी वजह धान की फसलों की खेती है। 

प्रदेश में करोड़ो की योजनाएं 

प्रदेश में चल रही जल सरंक्षण की योजनाओं पर पिछले तीन साल में 8452 कार्यो पर 1655.28 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की गई है, इसमें 23.84 करोड़ रुपये के कार्य मनरेगा के तहत हुए है। इन कार्यो में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 में गत 10 मार्च तक जल सरंक्षण और जल संचयन के 1235 कार्यो पर 20.163 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि 30.72 करोड़ रुपये की लागत से 1693 कार्य चालू हैं। प्रदेश में 14,898 जल निकाय काम कर रहे हैं। 

कैच दा रेन अभियान

देशभर में 22 मार्च 2021 से 30 नवंबर 2021 तक चलाए गए ‘कैच दा रेन’ अभियान के तहत सरकार ने जल सरंक्षण और जल संचय की दिशा में वर्षा जल को इकठ्ठा करने का कार्य किया, जिसमें मानसून आने से पहले वर्षा जल संचय करने की व्यवस्था सुनिश्चित करने पर विशेष बल देते हुए जल संचय करने से जुड़े रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वृक्षारोपण, पोखरों की सफाई और निर्माण कार्यों जैसे आदि करवाए। इस अभियान को जमीनी स्तर पर लोगों की सहभागिता से जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक जन आंदोलन के रूप वर्षा के जल संग्रह सुनिश्चित किया गया। कैच दा रेन अभियान के तहत प्रदेश में 49,136 कार्य किये गये, जिसमें 351 चेक डैम, 10,257 तालाब/ टैंक, 7,309 ट्रेंच, 9,735 रूफटॉप जल संचयन संरचना के अलावा 11,052 अन्य वर्षा जल पुनर्भरण संरचनाएं तथा 11,052 अन्य जल संरक्षण संरचना के कार्य किये गये। 

21Mar-2022

सोमवार, 14 मार्च 2022

मंडे स्पेशल: प्रदेश के सभी ग्रामीण घरों तक पहुंचा जल कनेक्शन, फिर भी ‘हर घर जल का सपना अधूरा

जल जीवन मिशन: समय से पहले लक्ष्य हासिल करने वाला तीसरा राज्य हरियाणा 
प्रदेश में 17.66 लाख से ज्यादा जल कनेक्शन के साथ 30.97 लाख ग्रामीण जल कनेक्शन 
ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रत्येक ग्रामीण परिवारों को शुद्ध पेयजल मुहैया कराने के मकसद से पाइप जल कनेक्शन देने में हरियाणा देश के उन राज्यों में तीसरा राज्य बन गया है, जिन्होंने जल जीवन मिशन का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया है। प्रदेश में जल जीवन मिशन के तहत ग्रामीण ग्रामीण परिवारों को 17,66,363 जल कनेक्शन देने के बाद प्रदेश 6804 गांवों में सभी ग्रामीण परिवारों के पास अब 30,96,792 जल कनेक्शन मौजूद हैं। जल जीवन मिशन के तहत जल कनेक्शन हासिल करने वालों को अभी भी शुद्ध पेयजल आपूर्ति के लिए इंतजार करना पड़ रहा है। मसलन सरकार द्वारा प्रदेश मंज हर घर जल के इस लक्ष्य में पानी की गुणवत्ता पूर्वक पेयजल आपूर्ति में बढ़ोतरी के लिए 404 नलकूप, 75 बूस्टिंग स्टेशन और 4643 किलोमीटर लम्बी नई पाइप लाईनें बिछाई गईं है। जहां ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार को अपने घरों में स्वच्छ नल का पानी मिलने लगेगा। वहीं मिशन के तहत राज्य के सभी स्कूलों, आंगनवाड़ी केंद्रों, स्वास्थ्य केंद्रों आदि में भी नल के पानी की आपूर्ति की व्यवस्था की गई है। 
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जल जीवन मिशन की घोषणा प्रधान मंत्री नरेन्द्र मोदी ने 15 अगस्त 2019 को 2024 तक हर घर में कार्यात्मक घरेलू नल कनेक्शन देने का ऐलान किया था। हरियाणा को 30 जून, 2022 तक ‘हर घर जल’ राज्य बनना था, लेकिन राज्य सरकार ने इसे निर्धारित अवधि से पहले साल 2021 में ही हासिल कर लिया। हरियाणा में सभी गांवों के 30 लाख 96 हजार 792 ग्रामीण घरों तक पानी के कनेक्शन पहुंचाने का काम पूरा कर लिया है। जल जीवन मिशन के तहत हरियाणा में लक्षित ग्रामीण परिवारों को 17,66,363 जल कनेक्शन प्रदान कर दिये गये हैं। जबकि मिशन शुरु के समय ग्रामीण घरों में 13,30,429 जल कनेक्शन पहले से ही लगे थे। सभी ग्रामीण घरों में जल जीवन मिशन का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल करने के बाद हरियाणा गोवा, तेलंगाना के बाद तीसरा राज्य बन गया है, जहां ग्रामीण क्षेत्रों के प्रत्येक परिवार को अपने घरों में स्वच्छ नल का कनेक्शन दिया गया है। जबकि देश के प्रत्येक ग्रामीण घर में नल जल कनेक्शन के माध्यम से नियमित और दीर्घकालिक आधार पर निर्धारित गुणवत्ता के लिए पर्याप्त मात्रा में पीने योग्य पानी उपलब्ध कराने के उद्देश्य से राज्यों के साथ साझेदारी में केंद्र सरकार का जल जीवन मिशन को परा करने का राष्ट्रीय लक्ष्य जल जीवन 2024 तक निर्धारित किया गया था। प्रदेश के 22 जिलों में 142 ब्लॅकों की 6176 में पंचायतो के 6804 गांवों में से 6420 ग्राम जल और स्वच्छतता कमेटियों का गठन करके अब तक 6694 ग्राम कार्य योजना तैयार की गई है, ताकि हर घर जल का सपना पूरा किया जा सके। सरकार के आंकड़ो के मुताबिक इस योजना पर खर्च के लिए केंद्र और राज्य की 50:50 की हिस्सेदारी है। हरियाण में मिशन को जलापूर्ति होने तक 2,285.26 करोड़ रुपये की धनराशि सुनिश्चित की गई, जिसमें से अब तक 1013.14 करोड़ रुपये खर्च किये जा चुके हैं। 
जल की शुद्ध धारा देने की तैयारी 
हरियाण सरकार ने इस मिशन के तहत प्रदेश में पेयजल आपूर्ति में बढ़ोतरी के लिए 104.75 करोड़ रुपये की लागत से 404 नलकूप, 75 बूस्टिंग स्टेशन और 24.25 करोड़ रुपये की लागत से 17 नए जलघर स्थापित करने के साथ ही 765.58 करोड़ रुपये की लागत से 4643 किलोमीटर लम्बी नई पाइप लाईनें बिछाई है। मिशन के तहत प्रदेश में 10 हजार से ज्यादा आबादी वाले सभी गांवों में 135 लीटर प्रति व्यक्ति प्रतिदिन की दर से जल आपूर्ति बढ़ाने तथा सीवरेज व्यवस्था को ठीक करने के लिए ‘महाग्राम योजना’ के तहत 128 गांवों का चयन काम शुरु कर दिया गया है। सरकार ने ताजा जल संसाधनों पर निर्भरता कम करने के लिए सीवेज ट्रीटमेंट प्लांट के 50 किलोमीटर के दायरे में आने वाले थर्मल पावर प्लांट्स में टावरों की कूलिंग के लिए ट्रीटेड वेस्ट वाटर का उपयोग।करने के अलावा प्रतिदिन 1000 किलो लीटर पानी का उपयोग करने वाले उद्योग के लिए भी ट्रीटेड वेस्ट वाटर का उपयोग करना अनिवार्य कर दया है। हरियाणा के जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के अनुसार प्रदेश के 6804 गांवों में प्रति व्यक्ति के लिए प्रतिदिन 160 से 165 लीटर पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। इसमें 127 गांवों में प्रति दिन प्रति व्यक्ति के लिए 40 लीटर, 4062 गांवों में 40 से 55 एलपीसीडी तथा 2615 गांवों में 70 एलपीसीडी पेयजल की आपूर्ति की जा रही है। हालांकि गांवों में की जा रही यह जलापूति शहरी क्षेत्रों में होने वाली जलापूर्ति के मुकाबले लगभग आधी है। 
आंगनबाड़ी केंद्रों में नल का जल 
मिशन के तहत ही प्रदेश के 12,988 स्कूलों और 21,789 आंगनबाड़ी केंद्रों में नल का सुरक्षित पानी सुनिश्चित करने वाले 2 अक्टूबर 2020 को 100 दिनों के अभियान का लक्ष्य को भी हासिल कर लिया गया है। प्रदेश के विद्यालय और 21,789 आंगनवाड़ी केद्रों में जल का उपयोग बच्चों और शिक्षकों द्वारा पीने, मध्याह्न भोजन पकाने, हाथ धोने और शौचालयों में किया जाता है। हालांकि इसके अलावा हालांकि हरियाणा में 19419 प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों में यह लक्ष्य 88 प्रतिशत ही हासिल किया जा सका है। 
हिसार में सबसे ज्यादा जल कनेक्शन 
प्रदेश में ग्रामीण घरों में सबसे ज्ययादा 2,20,134 जल कनेक्शन हिसार जिलें में हैं, मिशन से पहले ही 51 प्रतिशत जल कनेक्शन थे।जबकि सोनीपत में मिशन के तहत 57.74 प्रतिशत काम के बाद 2,04,620 ग्रामीण जल कनेक्शन के साथ दूसरे पायदान पर है। घरों वहीं सबसे कम 34,433 कनेक्शन के जरिए पंचकूला जिलें में शुद्ध जल धारा पहुंचाने की तैयारी है, जहां मिशन से पहले महज 14.49 जल कनेक्शन थे। 
पानी की गुणवत्ता पर फोकस 
प्रदेश में जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के पास प्रदेशभर में 43 परीक्षण प्रयोगशालाएं हैं। यह अत्याधुनिक मोबाइल वाटर टेस्टिंग लेबोरेटरी वैन पूरी तरह से मल्टीमीटर प्रणाली से लैस है, जिसमें एनालइजऱ, सेंसर, प्रॉब्स और कलरीमेट्रिक आधारित उपकरण, इलेक्ट्रोकेमिस्ट्री आदि हैं। सभी प्रयोगशालाओं से परीक्षण की गुणवत्ता की काउंटर चैकिंग करना है। वहीं जल जीवन मिशन के तहत प्रदेश में जल की गुणवत्ता के परीक्षण के मद्देनजर अति आधुनिक 'चलित जल परीक्षण प्रयोगशाला वैन' भी कार्य कर रही है, जो जल परीक्षण की बहु-आयामी प्रणाली से लैस है, जिसमें सेंसर और विभिन्न उपकरण लगे हैं। इस वैन में जीपीएस और जीपीआरएस/3जी कनेक्टिविटी के जरिए परीक्षण किए गए नमूनों के डेटा को एक केन्द्री य जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग के सर्वर को भेजा जा सकता है. इस प्रयोगशाला वैन में एलईडी डिस्लेाम यूनिट के जरिए परीक्षण का नतीजा तुरंत सामने आ जाता है। प्रदेश में जल की गुणवत्ता को लेकर जन स्वास्थ्य अभियांत्रिकी विभाग एवं वासो क्षमता संवर्धन कार्यक्रम भी चला रहे हैँ। जल जीवन मिशन जल की गुणवत्ता की निगरानी और निरीक्षण पर बहुत जोर देता है। यह अनिवार्य है कि प्रत्येक गाँव में 5 व्यक्तियों विशेषकर महिलाओं को फील्ड टेस्ट किट के उपयोग के लिए प्रशिक्षित किया जाए, ताकि गाँवों में पानी की जांच की जा सके। 
क्या है जल जीवन मिशन योजना? 
देश के हर गांव में घर के अंदर नल पहुंचाने की सरकार की योजना हर घर नल स्कीम के तहत अबतक गांव के 6 करोड़ से ज्यादा घरों में सरकारी नल लग चुका है। दरअसल केंद्र सरकार ने इस योजना की शुरुआत गांवों में पानी की किल्लत को देखते हुए की है। भारत में अभी भी कई गांव ऐसे हैं जहां लोगों को पानी भरने के लिए कुएं पर दूसरे के घरों में या सरकारी नल पर जाना पड़ता है। ऐसे ही देश की स्वतंत्रता के 7 दशक बाद भी गांवों में महिलाओं को अपने परिवार की घरेलू आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए पीने योग्य पानी लाने के लिए दूर तक जाना पड़ रहा था। हालांकि सरकार का आपूर्ति विभाग ग्रामीण घरों में सुरक्षित पेयजल की आपूर्ति सुनिश्चित कर रहा है और प्रयोगशालाओं में जांच करके नियमित रूप से पानी की गुणवत्ता की निगरानी कर रहा है। 
14Mar-2022

साक्षात्कार:साहित्य के मापदंड़ो दरकिनार नहीं किया जा सकता: महेन्द्र शर्मा

साहित्यकारों को इस बदलते युग में रचनाओं मे संतुलन की जरुरत 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: महेन्द्र शर्मा 
जन्म: 25 अगस्त 1954 
जन्म स्थान: गांव खलीलपुर, जिला गुरुग्राम (हरियाणा) शिक्क्षा: स्नातक (पंजाब विश्वविद्यालय) 
संप्रत्त्ति: स्वतंत्र लेखन, काव्य पाठ एवं पत्रकारिता। 
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-ओ.पी. पाल 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के लिए आदित्य अल्हड़ सम्मान से सम्मानित साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार महेन्द्र शर्मा हास्य-व्यंग्य के ऐसे लोकप्रिय कवि के रुप में पहचाने जाते हैं, जिन्होंने अपने काव्य पाठ से राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में ही नही, बल्कि विदेशों में भी श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित किया हैं। उन्होने साहित्य के क्षेत्र में पद्य के साथ गद्य लेखन में भी कहानी, नाटक, निबंध जैसी पुस्तकों का संपादन कर विभिन्न विधाओं में अपना रचना संसार रचा है। यही नहीं शर्मा ने बालको से लेकर बुजुर्गों तक के लिए रचनाएं लिखकर साहित्यकार व कवि के अलावा नाटकों एवं फीचर फिल्म में अभिनय की भूमिका से अपनी कला का हुनर प्रस्तुत किया हैं। समाज को नई दिशा देने के मकसद से अपनी अलग-अलग विधाओं के बीच सामंजस्य बनाकर साहित्य के क्षेत्र में सेवा देते आ रहे महेन्द्र शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत के दैरान अपने साहित्यिक सफर के अनुभवों को साझा किया है। -------- 
रियाण के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार महेन्द्र शर्मा मानते हैं कि साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि किताबी ज्ञान कभी मरता नहीं है, भले ही आज के इस आधुनिक युग में नई तकनीक, इंटरनेट या सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण खासकर युवाओं में किताबे पढ़ने में रुचि कम हो रही हो? उसे में साहित्य के मापदंडों को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता है। इसलिए साहित्य को जिंदा रखने के लिए साहित्यकारों को भी इस बदलते युग में युवा पीढ़ी के मन और रुचि के अनुसार संतुलन बनाकर साहित्य और रचनाएं लिखने का प्रयास करना चाहिए। उनका कहना है कि यथार्थ के नाम पर छोटी बड़ी लाइन करके जो साहित्य रचा जा रहा है, उसे छोड? कविताओं जैसी रचनाओं में युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता है। अपने साहित्य जीवन को लेकर महेन्द्र शर्मा का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले एक परौड़ी लिखी औ उसके बाद करनाल में पढ़ते समय नहर के किनारे बैठकर जो लाइने लिखी थी वे अखबार में छपी, जिसमें उन्हे यह भी मालूम नही था कि ये कविता है या गजल। हौंसला और आत्मविश्वास बढ़ा तो साल 1981 के बाद उनकी कलम नही रुकी और उसके बाद उन्हें एक साहित्यकार औ हास्य कवि के रुप में पहचाना गया और सम्मान मिला। वे इसके साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में आए और पंजाब, हरियाण तथा दिल्ली में कई अखबारों में विभिन्न पदो पर कार्य किया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लालकिला ग्राउंड में देश के सर्वोच्च गणतंत्र दिवस और 'स्वतंत्रता दिवस कवि-सम्मेलनों में पिछले डेढ़ दशक तक अपने काव्यपाठ की दमदार प्रस्तुति और संचालन किया। लोकप्रिय कवि महेन्द्र शर्मा तीन साल तक केन्द्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के बतौर मनोनीत सदस्य भी रहे। यही नहीं सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में आयोजित हिंदी प्रतियोगिताओं एवं कार्यशालाओं में निर्णायक की भूमिका निभाने वाले साहित्यकार महेन्द्र शर्मा को हरियाणा में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक, कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी तथा देश के अन्य विश्वविद्यालयों में निर्णायक, कविता पाठ एवं आतिथ्य भाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का दायित्व भी सौंपा गया है। भारतीय सेना के लिए लेह, लाख, कारगिल, द्रास, श्रीनगर, जम्मू, उधमपुर में सेना के अफसरों व सैनिकों के लिए कवि-सम्मेलनों में कवितापाठ करना भी राष्ट्र सेवा के रुप में विशेष साहित्यिक उपलब्धियां रही हैं। लेखन एवं काव्य पाठ के अलावा उन्होंने नाटकों एवं हरियाणवी फीचर फिल्म 'ज़र जोरू और जमीन' में अभिनय भी किया। आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा अन्य अनेक चैनलों पर कविता पाठ करने वाले महेन्द्र शर्मा की कविताएं, रचनाएं और साक्षात्कार देश के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। उनकी उपलब्धियों में दुबई, मारिशस, नेपाल तथा बैंकाक में आयोजित कवि सम्मेलनों व कार्यशालाओं में कविता पाठ करना भी शामिल है। साहित्यकार, कवि, अभिनेता और मंचन के साथ उनकी पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अहम भूमिका रही है, एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र दिल्ली मे ढ़ाई दशक से ज्यादा समय तक सेवाओं के उपरान्त 'मुख्य उप संपादक' के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति हुए हैं। इसके बाद 13 वर्षों तक अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिल्ली में हिन्दी विभाग के प्रभारी पद पर कार्यरत है। 
प्रकाशित पुस्तक 
साहित्यकार महेन्द्र शर्मा ने समाज के सामने अपने साहित्यिक जीवन में दो उपन्यास प्रेमपथ और प्रेरणा, एक कहानी संग्रह तंग गली,दो कविता-संग्रह खण्डहर तुम लौट जाओं और आहट उजाले की के साथ ही एक हास्य व्यंग्य कविता-संग्रह ‘ऐसा भी होता है’ नामक पुस्तकों को प्रस्तुत किया है। उनके बाल गीत संग्रह ‘प्यारे-प्यारे गीत तुम्हारे’ नाम की पुस्तक हिंदी के अलावा पंजाबी में अनुवाद में भी सुर्खियों में है। महेन्द्र शर्मा के साहित्य कर्म की पुस्तक में हरियाणा के कहानीकारों की महिला-समस्याओं पर केन्द्रित कहानियों का संकलन एक नया आकाश, रेत में उगा गुलाव का संपादन भी शामिल है। उन्होंने 'अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिल्ली' द्वारा आयोजित विद्यार्थियों के लिए निबंध प्रतियोगिता तथा शिक्षकों के लिए कविता, कहानी, नाटक प्रतियोगिता की रचनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर 32 पुस्तकों का संपादन भी किया है। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाण सहित्य अकादमी ने पिछले माह फरवरी में ही साहित्यकार महेन्द्र शर्मा को वर्ष 2018 के आदित्य अल्हड़ सम्मान से नवाजा है। इससे पहले भी हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें विशेष हिन्दी साहित्य मेवी सम्मान-2013 से पुरस्कृत कर चुकी है। विभिन्न विधाओं में रचनाओं और काव्य मंचों पर लोकप्रियता ने उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा काका हाथरसी सम्मान-2007 का गौरव भी प्रदान किया है। इसके अलावा अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक सांस्कृतिक विकास संस्थान, जबलपुर, म.प्र. से सारस्वत सम्मान, जीवन विकास संस्थान, भाषनगर, बस्ती, उ.प्र से साहित्य रश्मि सम्मान, उदभव, दिल्ली से पानव सेवा सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुरुग्राम, हरियाणा से साहित्यकार सम्मान, नेशनल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, बुलंदशहर, उ.प्र से गौरव विपार्धा राम सम्मान हासिल किया है। इसके अतिरिक्त उन्हें देश विदेश की अनेक संस्थाओ द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। 
संपर्क सूत्र:3073 जॉय अपार्टमेंट, प्लॉट न.2, सैक्टर-2, द्वारका,नई दिल्ली-110075
मोब. 9868153592 
14Mar-2022

सोमवार, 7 मार्च 2022

मंडे स्पेशल: हरियाणा सड़क निर्माण में देशभर में सबसे तेज

केंद्र भी प्रदेश सरकार की रफ्तार की कायल 
देश के कई राज्य प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक सडक योजना के पहले चरण में अटके 
हरियाणा में दो चरण पूर्ण, तीसरे का भी 47 फीसदी काम हो चुका 
500 की आबादी वाले गांवों को भी सडक से जोड़ने वाला हरियाणा देश का पहला राज्य 
ग्रामीण क्षेत्र में सड़क तंत्र को मजबूत कर बनाई 1200 से ज्यादा सड़कें 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
ग्रामीण सड़क निर्माण में हरियाणा प्रदेश की रफ्तार देशभर में सबसे तेज हैं। केंद्र सरकार भी इस रफ्तार की कायल है। देश के कई राज्य जहां गांवों में सड़क तंत्र को मजबूत करने वाली ‘प्रधानमंत्री ग्रामीण सडक योजना’ के पहले चरण में अटके हुए हैं, वहीं हरियाणा तीसरे चरण का भी 47 फीसदी कार्य पूर्ण कर चुका है। प्रदेश के करीब आधा दर्जन जिलों में तो इस योजना का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया गया है। इसी को देखते हुए केंद्र की मोदी सरकार भी मेहरबान है। एक ओर जहां कई राज्यों को अभी तक दूसरे चरण की ही मंजूरी नहीं मिली, वहीं हरियाणा को तीसरे चरण न केवल इजाजत मिल गई, बल्कि इसके लिए धनराशि भी उपलब्ध करवा दी गई। हरियाणा सरकार का लक्ष्य है कि इस साल के मध्य तक राज्य में ऐसा कोई गांव नहीं बचेगा, जो अपने आसपास के गांवों से जुड़ा हुआ न हो। केवल इतना ही नहीं 500 की आबादी वाले हर गांव को सड़क से जोडने वाला भी हरियाणा देश का पहला राज्य होगा। 
पहले चरण में बनी सर्वाधिक सड़कें 
योजना के ने पहले चरण के तहत 9,130.45 कमी लंबी सभी 852 सड़कों का निर्माण कार्य 2,788.86 करोड़ रुपये का खर्च करके पूरा किया गया और दूसरे चरण में 36 पुलों के साथ सभी लक्षित 2,031.48 किमी लंबाई वाली सभी 176 सड़कों का निर्माण पूरा कर लिया है, जिसमें 1,615.48 करोड़ रुपये खर्च किए गए। प्रदेश में दिसंबर 2020 में शुरु हुए योजना के तीसरे चरण में भी हरियणा में 406 में 2,923.87 किलोमीटर लंबाई वाली 192 सड़कों का निर्माण पूरा किया जा चुका है। इसके लिए 1,273.79 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की जा चुकी हैं। तीसरे चरण में प्रदेश के गुरुग्राम जिले को छोड़कर बाकी सभी 20 जिलों में 1,866.19 करोड़ रुपये के खर्च से 3,791.09 किमी लंबी ग्रामीण सड़के बनाने का लक्ष्य है। इस प्रकार हरियाणा में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तीनों चरणों के लिए स्वीकृत 14,953.01 किमी लंबाई की 1,434 सड़कों में से अब तक 5,678.13 करोड़ रुपये की लागत से 14,085.80 किमी यानि 94.20 फीसदी लंबाई की 1,220 सड़कों का निर्माण पूरा किया जा चुका है। गुरुग्राम,करनाल, पंचकूला,रेवाड़ी व यमुनानगर में योजना का शतप्रतिशत लक्ष्य हासिल कर लिया ह, जबकि मेवात इस लक्ष्य को पूरा करने के मुहाने पर आ चुका है। 
तीसरे चरण में 192 सड़कें पूरी 
ग्रामीण सड़क एवं आधारभूत विकास एजेंसी के अनुसार केंद्र ने हरियाणा के 20 जिलों में प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना के तीसरे चरण में 406 सड़कें बनाने की मंजूरी दी है। इसमें अंबाला की 18, भिवानी की 34, फरीदाबाद की 4, फतेहाबाद की 28, हिसार की 28, झज्जर की 28, जींद की 24, कैथल की 14, करनाल की 12, कुरुक्षेत्र की 16, महेंद्रगढ़ की 2, पानीपत की 22, रोहतक की 38, सिरसा की 36, सोनीपत की 22, यमुनानगर की 12,चरखी दादरी की 22, पलवल की 24और मेवात की 22 सड़कें बनाई जानी हैं। इनमें से अंबाला की 10, भिवानी की 10, फतेहाबाद की 8, हिसार की 12, झज्जर की 10, जींद की 22, कैथल की 8, करनाल की 8, कुरुक्षेत्र की 6, पानीपत की 8, रोहतक की 30, सिरसा की 16,सोनीपत की 2, यमुनानगर की 12, चरखी दादरी की 20 और मेवात की 10 सड़कें बनाई जा चुकी हैं। 
खेतों तक सड़क कनेक्विटी 
पीएमजीएसवाई के अलावा राज्य सरकार ने गांवों में सभी छोटे मार्गों को मजबूत करने के लिए मुख्यमंत्री किसान खेत सड़क मार्ग योजन-2022 शुरू की है। इस योजना के तहत अगले 5 साल में चरणबद्ध तरीके से गांवों खडांजा की सड़कों का निर्माण किया जाएगा। ग्रामीण इंटर कनेक्टिविटी के लिए सड़कों को मजबूत करने के लिए शुरु की जा रही इस योजना को ग्रामीण विकास विभाग कार्य कराएगा। योजना के प्रथम चरण के तहत प्रत्येक निर्वाचन क्षेत्र के गांवों में 3 व 4 करम के 25 किलोमीटर मार्ग का कार्य किया जाएगा। मुख्यमंत्री किसान खेत सड़क मार्ग योजना 2022 का मुख्य उद्देश्य किसानों की कृषि भूमि को सड़क नेटवर्क से जोड़ना है। इससे यह सुनिश्चित होगा कि किसानों की उपज को नए सड़क नेटवर्क के माध्यम से आसानी से बाजारों तक पहुंचाया जा सके। कृषि उपज के परिवहन की लागत कम होगी और किसानों को उनकी फसलों का बेहतर मूल्य मिलेगा। 
ओम्मास से निगरानी
पीएमजीएसवाई के लक्ष्यों की पहचान करने और सड़क विकास के सभी चरणों की प्रगति की निगरानी के लिए ऑनलाइन प्रबंधन, निगरानी और लेखा प्रणाली या ओम्मास जीआईएस प्रणाली विकसित की गई है। इस प्रणाली में ई-भुगतान और विस्तृत रिपोर्ट जैसी उन्नत सुविधाएं हैं। यही नही ग्रामीण विकास मंत्रालय द्वारा लॉन्च किए गए एक मोबाइल ऐप डिजिटल इंडिया कार्यक्रम के तहत एक ई-गवर्नेंस पहल शुरू की गई है, जो किसी को शिकायत दर्ज करने या निष्पादित किए जा रहे कार्य के बारे में अपनी प्रतिक्रिया साझा करने में सक्षम बनाती है। 
क्या है पीएमजीएसवाई 
केंद्र सरकार द्वारा प्रायोजित प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना यानी पीएमजीएसवाई को दिसंबर 2000 में तत्कालीन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने शुरू किया था। यह योजना केवल ग्रामीण क्षेत्रों को कवर करती है। पीएमजीएसवाई का मूल उद्देश्य उन सड़कों को प्राथमिकता देना है जो एक बड़ी आबादी की सेवा करती हैं और मैदानी क्षेत्रों में 500 या उससे अधिक की आबादी के साथ योग्य असंबद्ध बसावटों को कनेक्टिविटी प्रदान करती हैं। एक कोर नेटवर्क सभी पात्र बसावटों के लिए सामाजिक और आर्थिक सेवाओं तक बुनियादी पहुंच प्रदान करने के लिए आवश्यक सभी ग्रामीण सड़कों का नेटवर्क है। इस योजना का पहला चरण 2001 में शुरु किया गया, जिसके तहत मुख्य फोकस नई कनेक्टिविटी विकसित करना और नई सड़कों का निर्माण करना था। सरकार ने 2013 में शुरु पीएमजीएसवाई के दूसरे चरण के तहत गांव की कनेक्टिविटी के लिए सड़कों का उन्नयन किया गया था। उन्नयन की कुल लागत में से 75 प्रतिशत केंद्र और 25 प्रतिशत राज्यों द्वारा वहन करने का प्रावधान किया गया। जबकि दिसंबर 2019 को योजना के तीसरे चरण के तहत प्रदेश में सड़कों को चौड़ा करने और सुधारने पर फोकस किया गया, ताकि गांवों, अस्पतालों, स्कूलों और ग्रामीण कृषि बाजारों से कनेक्टिविटी में सुधार किया जा सके। इस चरण की अवधि 2024-25 के लिए निर्धारित की गई। इस तीसरे चरण केंद्र और राज्यों के बीच 60:40 के अनुपात में लागत को वहन करना है। 
प्रधानमंत्री ग्रामीण सड़क योजना में किस जिले में कितना विकास
जिला      सड़के     लंबाई (किमी)    काम पूरा(किमी)      खर्च (करोड़)   
अंबाला        72        602.91            579.28             241.30
भिवानी       70        799.53             746.02             275.65
फरीदाबाद     28        206.90             183.36            65.77
फतेहाबाद     64        787.14              657.75             191.47
गुरुगाम      32        282.82              282.82             104.18
हिसार       92        1,087.46           1,008.07           264.48 
झज्जर      108       1,045.22           1,015.86            500.65
जींद        86        1,101.23           1,069.95           527.73 
कैथल       60        762.95              726.88             280.44
करनाल      72        645.20              645.20             325.76
कुरुक्षेत्र      80        752.16               707.14            248.20
महेंद्रगढ़     42        408.54               408.54            134.95
पंचकूला     12        122.34               122.34             46.14
पानीपत     76        722.28               680.88            258.45 
रेवाडी       52        537.69               537.69           178.43
रोहतक      122       974.67               954.01          316.39
सिरसा       80       1,132.35              991.91         440.83
सोनीपत     84        926.63               841.40          462.61                
यमुनानगर   54        67.80                567.80         250.27
चरखी.दादरी  42        427.17              414.35          165.31
पलवल        54        568.47              455.95         198.72
मेवात (नूहं )  52      491.55               488.61         200.40
________________________________________________________________      
कुल       1,434     14,953.01           14,085.80         5,678.13
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07Mar-2022

चौपाल: सात समंदर पार हरियाणवी संस्कृति को महकाते रवि शर्मा

मातृभूमि, मातृभषा और संस्कृति को हमेशा सर्वोपरि रहा
(बाततचीत:दिनेश शर्मा) 
हरियाणा के रोहतक जिले के बखेता गांव के रहने वाले रवि शर्मा एक ऐसे विश्व प्रसिद्ध रेडियो एवं टीवी कलाकार के रुप में पहचाने जा रहे हैं, जिन्होंने अपनी मातृभूमि, मातृभषा और संस्कृति को हमेशा सर्वोपरि रखा है। भले ही वह रोहतक से लंदन तक का सफर करते हुए वदेशी संस्कृति के माहौल में अपनी कला का हुनर बिचोर रहे हों। मसलन लायका मीडिया लंदन ब्रिटेन में रेडियो प्रस्तौता और हेड ऑफ प्रोडक्श न जैसे कला के दायरे मे काम कर रहे हों, लेकिन विदेश रहकर भी उन्होंने अपने संस्कार सनातन धर्म पद्धति, कर्मकांड, पूजा-पाठ, भजन-कीर्तन कुछ भी नहीं छोडा और न बदलाव आने दिया। हरियाणवी संस्कृति के बीच अभावों में बचपन व्यतीत करने वाले रवि शर्मा ने जिस संकट के दौर को झेला है, बावजूद इसके अमेरीका, रियोलीन, ऑस्ट्रिया, बेल्जियम, जर्मनी, आयरलैंड, थाईलैंड, अफ्रीका आदि लगभग 25 देशों की यात्रा में अपनी कला के हुनर की प्रस्तुति देने के लिए भारतीय, खासकर हरियाणवी संस्कृति के गौरव को झुकने नही दिया। उन्होंने हरियाणवी और हिंदी में धारावाहिकों और फिल्मों में काम करने के साथ-साथ अनेक राग़नी और गीत भी लिखे हैं। अपनी भारतीय संस्कृति से मोह रखने वाले इस बहुयामी प्रतिभा के धनी रवि शर्मा को नवम्बर 2015 में भारतीय प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लंदन के वेम्बले फुट्बॉल स्टेडियम लंदन में आयोजित सम्मान कार्यक्रम के संचालन का गौरव प्राप्त हुआ,जिसमें 65 हजार लोग उपस्थित थे। वदेश में वह अपनी कला के हुनर से बढ़ावा देने में हरियाणवी संस्कृति और संस्कार को गौरवान्वित कर रहे हैं। 
प्रसिद्ध कलाकार रवि शर्मा का जन्म 17 जुलाई 1963 को उनके ननिहाल गांव टिटौली जिला रोहतक में हुआ। प्राथमिक शिक्षा गांव टिटौली गांव के स्कूल में हुई। अपना बचपन अभावों में व्यतीत करने वाले रवि शर्मा ने बताया कि उनके पिता को जन्म देते समय मेरी दादी का निधन ही हो गया और पिताजी का पालन-पोषण उनकी ताई ने किया। पारिवारिक सम्पत्ति के नाम पर कुछ भी नहीं मिला सका। शादी के कुछ वर्ष बाद गांव से रोहतक आए तो पिताजी की नौकरी रोहतक प्राइवेट स्कूल में लगी थी। जहां हम एक ही छोटे-से कमरे में रहते थे। फिर हमने माता-पिता के साथ काम भी किया। हमारी मां मजदूरी करने जाती थी तो वह उनके साथ जाता था। हम थोड़े बड़े हुए तो मां से मजदूरी छुड़वाकर हमने खुद काम करना शुरू कर दिया। यहां तक कि उन्हे कई बार रिक्शा भी चलाने के लिए मजबूर होना पड़ा। लेकिन जब उच्च शिक्षा पाने के लिए विश्वविद्यालय पहुंचे तो जीवन ने करवट बदली। रोहतक में रेडियो स्टेशन खुल गया और उसमें मेरा सिलेक्शन हो गया। आकाशवाणी में गया तो वहां ज्यादा पैसा मिलने लगा। मेरी जिंदगी में चल रहा संघर्ष धीरे-धीरे समाप्त हो गया। बातचीत के दौरान रवि शर्मा ने बताया कि कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में अध्ययन के दौरान 1980 में मॉरीशस स्थित थिएटर के बाद लंदन में भी एक प्रस्तुति दी। इसके बाद बी.बी.सी. लंदन से रेडियो शुरू की तो वापस मुडकर नहीं देखा। वर्ष 1982 में लंदन से रेडियो की शुरूआत करते ही रवि शर्मा की मेहनत रंग लाने लगी और वे रेडियो के साथ-साथ टीवी पर भी एक कलाकार के रुप में लोकप्रिय रहे। 
ऐसे हुई कलाकार जीवन की शुरुआत 
संगीत और मंच की ओर झुकाव के बारे में उन्होने कहा कि जब वह पांचवी-छठी में पढ़ते थे तो उनका मन पढ़ाई से ऊब गया और उन्होने स्कूल छोड़ दिया। घरवालों ने मुझे दूर के रिश्ते के एक रिश्तेदार के पास मजदूरी करने के लिए भेज दिया। वहां उनके पास 2-3 साल तक कुछ काम किया। फिर तीन साल बाद यह महसूस हुआ कि पढ़ाई बहुत जरूरी है और पढ़ाई के साथ गाना, बजाना, बोलना आदि कलाएं भी। फिर दोबारा स्कूल में एडमिशन ले लिया। आठवीं क्लास में भी पढ़ाई की जगह मेरा ध्यान सांस्कृतिक कार्यक्रमों में ज्यादा रहा। हाई स्कूल में गया तो छोटे मोटे कार्यक्रम जैसे मोनो एक्टिंग आदि चीजों में मेरा ज्यादा रुझान था। फिर पढ़ाई की जगह इन पर ध्यान दिया और इस प्रकार की गतिविधियों में स्कूल में बहुत इनाम स्कॉलरशिप मुझे मिलने लगे। कॉलेज में आते-आते उन्होने देखा कि यह रिक्शा चलाना या मजदूरी करना मेरे लिए जरूरी नहीं है,बल्कि अपनी कला के जरिये गीतों से या लोगों को हंसाकर पैसा कमाया जा सकता है। ऐसा करने से अपना खर्चा निकाल इस कलाकार जीवन की शुरुआत हुई। रवि शर्मा का कहना है कि चाहे रेडियो हो, मंच हो, थिएटर हो, गीत हों या संगीत हो अथवा जो भी कार्य वह कर रहे हैं उनका माध्यम हिंदी ही रहा है। लंदन स्थित भारतीय उच्चायोग हिंदी कवि सम्मेलन करवाता है जिसमें वह मुझे भी बुलाते हैं। मुझे यह लगता है कि मैंने नहीं बल्कि हिंदी ने मेरी सेवा की और उसने ही मेरा पालन-पोषण किया। क्योंकि पिछले लगभग 40 वर्षों से मैं हिंदी का अपने व्यवसायिक जीवन में प्रयोग कर रहा हूं और हिंदी ने मुझे मान-सम्मान, धन-दौलत सब दिया है। 
लगातार मिला श्रेष्ठ अभिनेता का खिताब 
रवि शर्मा की कला प्रतिभा यहीं से जगजाहिर है, जब एमडीयू रोहतक में स्नातक की शिक्षा के दौरान तीन साल तक श्रेष्ठ अभिनेता का ताज सिर पर बंधा। इसके बाद वर्ष 1979 से 1981 तक कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय कुरुक्षेत्र में स्नातकोत्तर के बीच 1980 में मॉरीशस में थिएटर करने का मौका मिला और वहीं एक ग्रुप के साथ शूट किया। मॉरीशस से एक कार्यक्रम करने का मुझे अनुबंध प्राप्त हुआ और अपनी पढ़ाई लिखाई जारी रखने के लिए धन जुटाने के साथ स्वाभिमान भी जगा और फिर लंदन में परफॉर्म किया। बी.बी.सी. से रेडियो शुरू किया, तो रेडियो पूरे यूरोप में जाता था और इस तरह से यूरोप में मुझे प्रोग्राम मिलने लगे। इन कार्यक्रमों से मुझे एक्स्ट्रा आय शुरू हो गई। कला के हुनर की वजह से रेडियो के साथ साथ स्टेज शो भी काफी चलने लगे। इस कला से आय होने लगी तो स्वत: ही यह पेशा व्यवसायिक रूप में बदल गया। 
यादगार बना जर्मनी शो
हरियाणा के कलाकार रवि शर्मा की कला का हुनर इस बात का गवाह है, कि वह जर्मनी के एक कार्यक्रम हमेशा याद रखते है। जहां एक हॉल की बैठने की क्षमता 700 लोगों की थी और ज्यादा टिकट की अनुमति प्रशासन से नहीं मिलती थी। पर वहां के ग्रुप ने अतिरिक्त टिकट लगाकर 1100 लोगों के सामने प्रोग्राम करवाया। उस समय वह लोकप्रियता की चरम स्थिति थी। जब मुझे सुनने के लिए और देखने के लिए लोग टिकट खरीदते थे। उन्होने बताया कि 2015 में लंदन के वेम्बले स्टेडियम में पीएम नरेंद्र मोदी के शो कार्यक्रम का संचालन करने का मौका मिला, जहां मोदी जी के आने से पहले 65000 लागों के बीच लोकनृत्य आदि सांस्कृतिक परफॉर्मेंस भी एक उपलब्धियों में गिनी जा सकती है। 
हरियाणवी क्रिकेट कॉमेंट्री 
हरियाणवी संस्कृति की बात की जाए तो 80 के दशक की प्रसिद्ध हरियाणवी क्रिकेट कॉमेंट्री ‘मैं देखण लाग रा सूं ग्राउंड के मैं लोग लामणी छोड़-छोड़ अर क्रिकेट देखन आ रे सैं। नाई का चाल्या गिंडो ले कै, नाई के न गिंडो बगाई अर सुरते नै मारी थापी गिंडो गई बाउंड्री लाइन कानी 4 रन खातर। मेरे बेटे नै रेल बना दी गिंडो की भाई, लाला केदारनाथ ने बही खोल खाते मैं चार रन लिख दिए..।’ से लेकर धारे जिब पहुंचया इंग़्लैड, देशी का पव्वा, कईं हरियाणवी राग़नी बहुत पसंद की गई हैं। रवि ने बताया कि हमने यहां लंदन में हरियाणा एसोसिएशन का गठन भी किया है। इसके उद्देश्य यहां हरियाणवी सांस्कृतिक कार्यक्रम कराना और हरियाणवी को बढावा देना है। हम पिछले 28 वर्षों से हरियाणा एसोसिएशन के मंच पर हरियाणा दिवस मनाते आ रहे हैं। उनका कहना है कि असल में हरियाणवी संस्कृति और भाषा एकदम अलग हैं। फिर हमारे तीज त्योहार भी अपने आप में विशेष ही हैं। कहते हैं ना आप किसी हिंदुस्तानी को हिंदुस्तान से बाहर निकाल सकते हैं लेकिन हिंदुस्तान को हिंदुस्तानी के दिल से बाहर नहीं निकाल सकते। सच तो यह है कि आप भारत में बसते हैं और भारत हमारे दिल में बसता है। 
लंदन में कर्मकांडी ब्राह्मण का किरदार 
लंदन में पंडित रवि शर्मा का एक अलग किरदार है। जिसका परचम पूरे यूरोप में घूमता है। जो कुछ लोग जानते हैं वह शादी का मुहर्त निकलवाने के लिए उनका इंतजार करते हैं। उनका कहना है कि रोहतक गुरु जी के आश्रम में रहते हुए उन्होंने सनातन धर्म में होने वाले सारे पूजा-कर्म सीखे हैं। यहां वर्ष भर होने वाले सारे हिंदू कार्यक्रमों में सहभागिता के लिए मेरा प्रयास रहता है। उनका लगातार यही प्रयास है कि विदेश में रहने वाले भारतीय अपने संस्कारों और अपनी संस्कृति से जुड़े रहें। 
प्रमुख सम्मान/पुरस्कार 
यूके हिंदी समिति द्वारा संस्कृति सेवा सम्मान (2002), हरियाणा सरकार द्वारा हरियाणवी संस्कृति प्रचार-प्रसार सम्मान (2009), भारतीय उच्चायोग लंदन द्वारा आचार्य महावीर प्रसाद द्विवेदी यूके हिंदी मीडिया सम्मान (2013), हाउस ऑफ कॉमन्स ब्रिटिश पार्लियामेंट लंदन में प्रवासी समाचार द्वारा प्रवासी संसार पत्रकारिता सम्मान (2016), हरियाणा सरकार द्वारा प्रदत्त प्रवासी हरियाणा गौरव सम्मान (2017), ब्रिटिश पार्लियामेंट में संस्कृति युवा संस्था द्वारा भारत गौरव अवॉर्ड (2019)। 
 07Mar-2022

गुरुवार, 3 मार्च 2022

साक्षात्कार: आजादी के अमृत महोत्सव में ‘आल्हा’ हरियाणवी गीत के रचनाकार नाहड़िया

सामाजिक परिस्थितियों से लोक संस्कृति के संरक्षण का दृष्टिकोण मिला 
-ओ.पी. पाल
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम:सत्यवीर यादव 
साहित्यिक नाम : सत्यवीर नाहड़िया 
जन्म: 15 फरवरी 1971 
जन्म स्थान: नाहड़, रेवाड़ी (हरियाणा) सैनिक परिवार में शिक्षा:एम.एससी.,बी.एड.,पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातकोत्तर डिप्लोमा 
सम्प्रति: प्राध्यापक (रसायन शास्त्र) शिक्षा विभाग, हरियाणा सरकार 
अभिरुचि:अध्ययन, लेखन, काव्यपाठ, गायन, छायांकन एवं संचालन-संयोजन 
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रियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के लिए जनकवि मेहर सिंह सम्मान से नवाजे गये रचनाकार सत्यवीर नाहड़िया प्रदेश के एक ऐसे साहित्यकार हैं, जिन्हे आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत हरियाणा राज्य का आजादी गीत हरियाणवी संस्कृतिक विधा ‘आल्हा’ रूप में लिखने का सौभाग्य हासिल हुआ है। यही नहीं वे उन चुनिंदा साहित्यकारों में शुमार हैं, जिन्होंने गद्य लेखन हिंदी तथा पद्य लेखन हरियाणवी में किया है। उन्होंने साहित्य जगत में सामाजिक, सांस्कृतिक तथा पर्यावरणीय मुद्दों के साथ ही राष्ट्रीयता तथा सामाजिक विसंगतियों पर आधारित बहुआयामी विषयों पर अपनी रचनाधर्मिता को केन्द्रित रखा है। खासतौर से ग्रामीण संस्कृति से तेजी से विलुप्त होती लोकसंपदा तथा लोककलाओं के संरक्षण एवं संवर्धन हेतु नाहड़िया ने निबंध, शोध आलेख, अध्ययन, गायन, छायांकन, फीचर लेखन, संयोजन, संचालन आदि विधाओं में निरंतर लेखन कार्य किया है। रेवाड़ी जिले के गांव खोरी स्थित राजकीय आदर्श वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय में रसायन शास्त्र के प्राध्यापक के तौर पर सेवारत सत्यवीर नाहड़िया ने अपने साहित्यिक सफर और अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई खास बातचीत के दौरान साझा किया। ---- केंद्र सरकार की पहल पर केंद्रीय साहित्य अकादमी ने आजादी के अमृत महोत्सव के अंतर्गत हरियाणा के जिस आजादी गीत को आने वाले समय मे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी लांच करेंगे, वह प्रसिद्ध साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया से ही हरियाणवी बोली में लिखवाया गया है, जिसे संगीत नाटक अकादमी संगीतबद्ध कर रही है। हरियाणा में रेवाड़ी जिले के नाहड़ गांव में किसानी संस्कृति के एक सैनिक परिवार में 15 फरवरी 1971 को जन्में साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया के पिता होशियार सिंह यादव भूतपूर्व सैनिक हैं। तीन भाइयों में उनके दोनों अग्रज भारतीय वायु सेना में सेवारत रहे। सैनिक परिवार से राष्ट्रीयता व अनुशासन के संस्कार की वजह से ही शयद उन्हें सामाजिक परिस्थितियों से लोक संस्कृति के संरक्षण, संवर्धन लेखन तथा विश्लेषण का दृष्टिकोण मिला होगा, तभी तो लोक जीवन के बहुआयामी पक्षों को वैज्ञानिक दृष्टि से विश्लेषण भी उनके रचना संसार के लेखन में देखा जा सकता है। लोकजीवन, किसानी संस्कृति तथा सैन्य परंपरा इसी सामाजिक परिवेश से उन्हें विरासत में मिली। साहित्यकार नाहड़िया का कहना है कि देश और दुनिया में अपने स्वर्णिम सैनिक संस्कृति तथा अनूठी लोक संस्कृति के लिए विख्यात रहे हरियाणा प्रदेश का अनूठा लोकजीवन उनके लेखन की प्रेरणा रही है। प्रदेश की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को सहेजने के लिए सामाजिक, सांस्कृतिक तथा साहित्यिक पहलुओं पर अपनी भावनाओं को अभिव्यक्त करने का मकसद उनके लेखन का हिस्सा रहा है। फिलहाल रेवाड़ी के सेक्टर-1 में रहे साहित्यिक हरफनौला नाहड़िया ने बताया कि नवीं कक्षा में पढाई के दौरान उनकी पहला रचना शीर्षक बताइए प्रतियोगिता में नारानुमी तुकबंदी पहली बार प्रकाशित हुई, उसके बाद वह लिखते ही चले गये। हिंदू कॉलेज सोनीपत व रोहतक के छात्रावासीय छात्रकाल ने लेखन तथा मंच का माहौल मिलने के कारण उन्हे बहुत कुछ निरंतर सीखने को मिला और हरियाणा के हर जिले का प्रतिनिधित्व होने से इस अनूठे प्रदेश की विविधता में एकता के साक्षात दर्शन हुए। यहीं पर रहते हुए खादर, बांगर, बागड़ मेवात, अहीरवाल, ब्रज आदि क्षेत्रों की बोलियां को सीखने व समझने का अवसर भी मिला। सत्यवीर नाहड़िया दोहा, कुंडलिया, आल्हा, रागिनी,मुक्तक चौपाई, कविता आदि विधाओं में हिंदी तथा हरियाणवी की एक दर्जन कृतियां, कुछ संगीत एल्बम्स के अलावा राष्ट्रीय पत्र पत्रिकाओं में फीचर, लेख, समीक्षा, शोधपत्र तथा स्तंभ लेखन से जुड़े हैं। छायांकन की सफाई में हाथ आजमाते हुए उनी निपुणता जगजाहिर है, जिनके करीब डेढ़ सौ कलात्मक छायाचित्र राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रमुखता से प्रकाशित हुए हैं। वे 17 वर्ष बोड़िया कमालपुर तथा गत 4 वर्ष से खोरी में बतौर रसायनशास्त्र प्राध्यापक रहे नाहड़िया की प्रमुख लेखन विधाओं में दोहा, कुंडलिया, रागनी आल्हा, मुक्तक, निबंध, फीचर, संस्मरण,लेख आलेख तथा समीक्षा शामिल है। 
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प्रकाशित पुस्तकें 
प्रदेश के नामचीन साहित्यकारों में शुमार सत्यवीर नाहड़िया की साहित्य की विभिन्न विधाओं में हिंदी तथा हरियाणवी की करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं। इनमें प्रमुख रुप से लोक राग(हरियाणवी रागनी-संग्रह) एक बख़त था (हरियाणवी मुक्तक संग्रह), ज़रा याद करा क़ुर्बानी (रेजांगला शौर्य गाथा, आल्हा संग्रह), बख़त बख़त की बात (हरियाणवी दोहा सतसई), गाऊँ गोबिंद गीत (हरियाणवी दोहा सतसई, गीता अनुवाद), चालती चाक्की और नाहड़िया की कुण्डलियाँ (हरियाणवी कुण्डलिया संग्रह), हिन्दी पत्रकारिता के मसीहा गुप्त जी, गुड़ियानी और गुमनामी की पीर (निबन्ध), संत शिरोमणि बाबा रामस्वरूप दास जी: व्यक्तित्व एवं कृतित्व (काव्य संग्रह), पंचतत्त्व की पीर और रचा नया इतिहास (बाल दोहावली), दिवस खास त्योहार (बाल कविता संग्रह), हरियाणवी लोक संस्कृति के आयाम (निबंध), बोल कबीरा बोल (चौपाई-ग़ज़ल संग्रह), ठाड्डा मारै रोवण दे ना (हरियाणवी लघुकविता संग्रह) शामिल हैं। इसके अलावा तीन अन्य कृतियाँ प्रकाशनाधीन हैं। सत्यवीर नाहड़िया चार हरियाणवी फिल्मों में अब तक विभिन्न विधाओं में करीब डेढ़ दर्जन पुस्तकें लिख चुके नाहड़िया हरियाणवी कृतियों में रागनियां पर आधारित लोक राग, हरियाणवी मुक्तक में एक बखत था, हरियाणवी दोहा सतसई बखत-बखत की बात, श्रीमद्भगवत गीता का हरियाणवी दोहों में अनुवाद गाऊं गोविद गीत, आल्हा में हरियाणवी शौर्यगाथा जरा याद करो कुर्बानी तथा कुंडलियां विधा में नाहड़िया की कुंडलियां वह चालती चाक्की, चौपाई-गजल विधा में बोल, कबीरा बोल, ठाड्डा मारै रोवण दे ना आदि शामिल हैं। वहीं अग तक चार हरियाणवी फिल्मों में गीत एवं संवाद लेखन के अलावा कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय में रचनाकार के समग्र लेखन पर शोध कार्य संपन्न कर चुके हैं। नाहड़िया की पांच हजार से अधिक लेख, रचनाएं, फीचर, शोध आलेख, समीक्षाएं, रचनाएं राष्ट्रीय पत्र-पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुकी हैं। पिछले एक दशक से एक दैनिक अखबार में हरियाणवी काव्य स्तंभ के स्तंभकार और हरियाणवी इलेक्ट्रॉनिक चैनल एवन तहलका के लिए हरियाणवी रागनी दैनिक स्तंभ लेखन का कार्य करते आ रहे हैं।
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पुरस्कार/सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा सुप्रसिद्ध साहित्यकार सत्यवीर नाहड़िया को साल 2018 के लिए दो लाख रुपये के जनकवि मेहर सिंह सम्मान से नवाजा है। यह पुरस्कार हाल ही में 24 फरवरी को पंचकूला में मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने प्रदान किया। इससे पहले बाबू बालमुकुंद गुप्त सम्मान हासिल करने वाले नाहड़िया देवीशंकर प्रभाकर साहित्य सम्मान, स्व. माता रघुराजी देवी एवं पं. राजकरण शुक्ल स्मृति सम्मान, अंतर्राष्ट्रीय हिंदी साहित्य सेवा एवं शोध संस्थान गुरुग्राम द्वारा लोक साहित्य साधना सम्मान, डॉ. जे. एस. यादव साहित्य सम्मान, साहित्य अनुराग सम्मान, लालसौट, (दौसा, राजस्थान), सरस्वती सम्मान, अहीरवाल गौरव सम्मान, दैनिक भास्कर के फोटोमेनिया अवार्ड के अलावा रसायन शास्त्र प्राध्यापक हेतु राज्य शिक्षक पुरस्कार का सम्मान भी हासिल कर चुके हैं। यही नहीं वे हरियाणा विद्यालय शिक्षा बोर्ड द्वारा आयोजित काव्यपाठ एवं स्लोगन लेखन और हरियाणा विज्ञान मंच द्वारा विज्ञान निबंध लेखन में राज्यस्तर पर प्रथम स्थान लेकर अव्वल रहे हैं। वहीं आकाशवाणी तथा दूरदर्शन से उनकी हरियाणवी रचनाएं, हरियाणवी संस्कृति पर आधारित फीचर, शोधपत्र एवं वार्ताएं प्रसारित होते रहे हैं।
संपर्क सूत्र: चाँद-धरोहर, 257, सेक्टर-1, रेवाड़ी (हरियाणा) 01274-222325, 8168507684, 9416711141 
28Feb-2022

मंडे स्पेशल: देश में सबसे ज्यादा मनरेगा दिहाडी देने में हरियाणा में घटे मजदूर

योजना में सर्वाधिक मजदूरी देने वाला राज्य बना हरियाणा ग्रामीण विकास और ग्रामीण उत्थान में वरदान ‘मनरेगा’ ओ.पी. पाल.रोहतक। प्रदेश में बेकारी-बेरोजगारी का हो हल्ला मचा हुआ है, हर ओर इसकी चर्चा हो रही है। सरकार अपने तर्क दे रही है और विपक्ष आरोप लगा रहा है। इस सबके बीच एक कडवा सच यह भी है कि राज्य में मनरेगा रोजगार मांगने वालों की तादाद में कमी आई है। वर्ष 2020-2021 में जहां मनरेगा के तहत रोजगार मांगने वालों की संख्या 5.23 लाख थी वहीं 2021-2022 में यह घटकर 4.08 लाख रह गई। हालांकि कुछ लोग इसके पीछे उत्तर प्रदेश, बिहार या अन्य राज्य से आकर काम करने वाले मजदूरों के वापस चले जाने को कारण बता रहे है, तो कुछ मजदूरों के मनरेगा से दूर जाने का जिम्मेदार ठहरा रहे हैं। यह हालात तो तब है, जब देश में मनरेगा सर्वाधिक मनरेगा मजदूरी देने वाला प्रदेश हरियाणा ही है। यहां प्रति श्रम दिवस के 315 रुपये दिए जाते हैं वहीं पडोसी पंजाब में 263 और राजस्थान में 220 रूपये का ही भुगतान किया जा रहा है। 
रियाणा राज्य के सभी जिलों में वर्ष 2008-09 से लागू महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना (मनरेगा) में खर्च होने वाली राशि का 90 प्रतिशत केंद्र और 10 प्रतिशत हिस्सा राज्य सरकार वहन कर रही है। राज्य के ग्रामीण क्षेत्रों के लिए लागू इस योजना का मूल उद्देश्य प्रत्येक ग्रामीण परिवार के वयस्क सदस्य को स्वेच्छा से अकुशल शारीरिक श्रम के तहत एक वित्तीय वर्ष में कम से कम 100 दिनों का गारंटीकृत मजदूरी रोजगार प्रदान करना है। ग्राम पंचायतों में पंजीकृत ग्रामीण परिवारों को जॉब कार्ड जारी किए जाते हैं। हांलाकि हरियाणा में केद्र सरकार द्वारा सितंबर 2005 में पारित महात्मा गांधी राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी अधिनियम, 2005 को पहली बार मनरेगा योजना 2 फरवरी 2006 को महेंद्रगढ़ और सिरसा जिलों की सभी ग्राम पंचायतों में लागू किया गया। जबकि एक अप्रैल 2007 को दो और जिलों अंबाला और मेवात में भी लागू कया गया। जबकि 1 अप्रैल, 2008 को यह योजना हरियाणा के शेष सभी जिलों में लागू कर दी गई थी। खास बात ये है। कि इस योजना के तहत सबसे ज्यादा दैनिक मजदूरी हरियाणा में दी जाती है। सरकार ने मनरेगा में पिछले चार साल में 2859 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च कर चंकी है। इस योजना में पुरुष और महिला श्रमिकों के बराबर वेतन दिया जा रहा है। मजदूरी का यह भुगतान श्रमिकों के बचत बैंक या डाकघरों के खातों के माध्यम से साप्ताहिक या पाक्षिक आधार पर किया जा रहा है। 
हर साल घट रही है संख्या
प्रदेश सरकार का दावा है कि प्रदेश में मनरेगा के तहत 12 लाख परिवार पंजीकृत हैं। जबकि हरियाणा में साल दर साल इस योजना के तहत 100 दिनों का रोजगार पाने के लिए पंजीकृत लोगों की संख्याा तो बढ़ी है, लेकिन काम मिलने में मामले में इनकी संख्या् घटती नजर आ रही है। साल 2020-2021 में 5.23 लाख परिवारों पंजीकरण कराकर रोजगार मांगा, जिनमें से 4.57 लाख को काम मिला। जबकि मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-2022 में 4.08 लाख पंजीकृत परिवारों में से दिसंबर 2021 तक 3.31 लाख परिवारों को मनरेगा में रोजगार मिल पाया। इससे पहले साल 2013-14 में पंजीकृत 7,80,025 थी। इसमें 14,103 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिला था। जबकि 2017-18 में रजिस्टधर्ड परिवार की संख्या बढ़कर 886781 हो गई, जबकि 100 दिनों का रोजगार केवल 3942 परिवार को मिला। साल 2018-19 में प्रदेश में केवल 3783 परिवारों को 100 दिनों का रोजगार मिला है, जबकि इस दौरान पूरे प्रदेश में 9,30,111 परिवार रजिर्स्टसड थे। 
पुरुषों से आगे महिलाएं 
प्रदेश सरकार के ग्रामीण विकास विभाग के अनुसार प्रदेश में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 के दौरान अब तक मनरेगा ₹में 639.86 करोड़ का व्यय किया गया है और ग्रामीण क्षेत्रों में 128.32 लाख श्रम दिवसों का सृजन किया गया है। इन कुल श्रम दिवसों में से 54.03 लाख यानि 42 प्रतिशत अनुसूचित जाति और महिलाओं के लिए 67 लाख यानि 52 प्रतिशत श्रम दिवस रहे। इसके अलावा साल 2020-21 में 185 लाख श्रम दिवस सृजित हुए। जबकि साल 2019-20 के दौरान केवल सात लाख श्रम दिवसों का आयोजन हो सका। इसका कारण कोरोना काल बताया गया है। मसलन साल साल 2020 के मार्च से जून और साल 2021 के अप्रैल से जुलाई माह में एक भी श्रमिक दिवस का सृजन नही हो सका। 
बेरोजगारी भत्ता देने का प्रावधान 
मनरेगा योजना के लिए आवेदन प्राप्त होने के 15 दिनों के भीतर रोजगार उपलब्ध नहीं कराने पर बेरोजगारी भत्ता देय होगा। रोजगार भत्ते की दर पहले तीस दिनों के लिए मजदूरी दर का एक चौथाई और शेष अवधि के लिए मजदूरी दर के आधे से कम नहीं होगी। यदि आवेदक पंद्रह दिनों के भीतर काम के लिए रिपोर्ट नहीं करता है या वित्तीय वर्ष के दौरान परिवार के वयस्क सदस्यों को कम से कम एक सौ दिन का काम प्राप्त होता है, तो बेरोजगारी भत्ता का भुगतान नहीं किया जाएगा। 
संकट मोचक बना कोरोना काल 
प्रदेश को साल 2020 ने पूरी दुनिया के साथ कुछ ऐसे अनुभव दिए कि कोई नहीं भुला सकता। कोरोना संक्रमण की वजह से लगे लॉकडाउन ने हर किसी के जीवन पर जबरदस्त असर डाला और सबसे ज्यादा असर प्रवासी मजदूरों पर हुआ। उद्योग धंधे चौपट होने की वजह से मजदूरों का सबसे बड़ा पलायन शुरू हुआ और प्रवासी मजदूर अपनी कार्यभूमि को छोड़ घर की तरफ पलायन करने लगे। ऐसे में प्रदेश के बेरोजगार मजदूरों के लिए मनरेगा योजना संकट मोचन बनी। इस बात का प्रमाण हरियाणा में भी देखने को मिला। प्रदेश में जो आंकड़े सामने आए वो वाकई हैरान करने वाले रहे। ऐसे समय हरियाणा मुख्यमंत्री कार्यालय से जारी एक रिपोर्ट में बताया गया है कि साल 2020 में मनरेगा के तहत दिए जाने वाले रोजगार में साल 2019 की तुलना में करीब-करीब 85 फीसदी बढ़ोतरी हुई है। हरियाणा में साल 2019 में मनरेगा स्कीम में 3.64 लाख वर्कर्स को काम दिया गया, जबकि साल 2020 में 5.62 लाख लोगों को काम दिया जा चुका है। 
एक समान मजदूरी की सिफारिश 
मनरेगा में प्रतिदिन कामगारों को दी जाने वाली मजदूरी एक समान नहीं है। मनरेगा योजना में काम करने वाले को सबसे ज्यादा 315 रुपये रोज हरियाणा में मिलते हैं, जबकि सबसे कम यह दर सिर्फ 190 रुपए मजदूरी तो छत्तीसगढ़ और मध्यप्रदेश में है। इसीलिए ग्रामीण विकास मंत्रालय से जुड़ी संसद की स्थायी समिति ने हाल ही में संसद में पेश अपनी एक रिपोर्ट में सरकार से सिफारिश की है कि मनरेगा के तहत मिलने वाली मजदूरी दर पूरे देश में एक समान की जाए। वहीं मनरेगा में काम के दिनों को वर्तमान 100 दिनों से बढ़ाकर 150 दिन के रोजगार की गारंटी देने का सुझाव दिया है। इस रिपोर्ट में मनरेगा के लिए आवंटित बजट में लगातार होती आ रही बेहद कमी पर भी समिति ने इस बात पर भी चिंता व्यक्त की है और कहा कि बजट का आवंटन व्यावहारिक होना चाहिए, ताकि वर्ष के बीच में धन की कमी आड़े न आए। यही नहीं समिति ने मनरेगा को सोशल आडिट, समय पर मजदूरी भुगतान और केंद्र व राज्यों के बीच बेहतर समन्वय पर भी रिपोर्ट में जोर दिया और सरकार को सुझाव दिया कि मनरेगा में जल संरक्षण, हरियाली बढ़ाने और वनीकरण जैसे कार्य भी जोड़े जा सकते हैं, जो पर्यावरण रक्षा के लिहाज से उपयोगी हैं। 
मनरेगा में प्रमुख कार्य 
मनरेगा के तहत कंटूर ट्रेंच, कंटूर बंड, बोल्डर चेक, गेबियन स्ट्रक्चर, अंडरग्राउंड डाइक, मिट्टी के बांध, स्टॉप डैम और स्प्रिंगशेड विकास सहित जल संरक्षण और जल संचयन, वनीकरण और वृक्षारोपण सहित सूखा रोधन, सूक्ष्म और लघु सिंचाई कार्यों सहित सिंचाई नहरें, खोदे गए खेत तालाब, बागवानी, वृक्षारोपण, फार्म बंधन और भूमि विकास, तालाबों से गाद निकालने सहित पारंपरिक जल निकायों का नवीनीकरण, भूमि विकास, बाढ़ नियंत्रण और जल भराव वाले क्षेत्रों में जल निकासी जैसे कार्य शामिल है, जिसमें बाढ़ चैनलों को गहरा करना और मरम्मत करना, चौर का जीर्णोद्धार, तटीय सुरक्षा के लिए तूफानी जल नालियों का निर्माण भी शामिल है। जहां कहीं आवश्यक हो, गांव के भीतर पुलियों और सड़कों सहित सभी मौसमों में पहुंच प्रदान करने के लिए ग्रामीण संपर्क, भारत निर्माण राजीव गांधी सेवा केंद्र का ब्लॉक स्तर पर ज्ञान संसाधन केंद्र के रूप में और ग्राम पंचायत स्तर पर ग्राम पंचायत भवन के रूप में निर्माण के अलावा कृषि से संबंधित वर्मी कम्पोस्टिंग, तरल जैव-खाद, पशुधन संबंधी कार्य मुर्गी पालन आश्रय, बकरी आश्रय जैसे कार्यो में भी रोजगार दिया जाता है। 
28Feb-2022