बुधवार, 23 मार्च 2022

मंडे स्पेशल:जल संकट से निपटने को सरकार ने कसी कमर

 कैच दा रेन और मेरा पानी मेरी विरासत से तस्वीर बदलने की उम्मीद 
अब तक के प्रयासों को नहीं मिल पाई उम्मीद के मुताबिक कामयाबी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। राज्य सरकार को बीते कई सालों में प्रयासों के बाद भी जल संचय और भू-जल प्रबंध में वो सफलता नहीं मिल पाई, जिसकी उम्मीद थी। एक तरफ तो प्रदेश के 141 में से 85 ब्लॉक रेड कैटेगरी में शामिल हो गए है, जहां पानी पाताल में जा रहा है, वहीं भिवानी, रोहतक, कैथल, जींद, हिसार, झज्जर, सोनीपत जिलों की खेती भूमि का बडा हिस्सा सेम की चपेट में आ गया है। अनेक योजनाएं बनाने के बाद भी दोनों हालातों में सुधार नहीं हो पाया। अब राज्य सरकार ने एक बार फिर इन परेशानियों से निपटने को कमर कस ली है। एक तरफ तो ‘कैच दा रेन अभियान’ शुरू किया है, जिसमें बरसाती पानी को संचय करके मुरुथल हो रहे क्षेत्रों को संचित किया जाएगा। साथ ही ‘मेरा पानी-मेरी विरासत’ योजना के तहत पानी को बचाने का अभियान चल रहा है। इस योजना में किसानों को धान जैसी अधिक पानी से तैयार होने वाली फसलों की बजाय अन्य फसलों की ओर रुझान पैदा करने का प्रयास किया जा रहा है। जिससे सेमग्रस्त समस्या से निपटा जा सके। इसके लिए केंद्र सरकार ने भी राज्य सरकार की पीठ थपथपाई है। 

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 सरकारी आंकड़े के अनुसार राज्य में ‘मेरा पानी मेरी विरासत’ योजना के तहत वर्ष 2021 में 32,196 किसानों ने 51,874 एकड़ क्षेत्र में धान के स्थान पर अन्य फसलों की बुआई की गई और 7000 रुपये प्रति एकड़ प्रोत्साहन राशि का लाभ लिया। यही नहीं खेत में तालाब निर्माण के लिए किसान को कुल खर्च पर 70 प्रतिशत की सब्सिडी भी दी जा रही है। सरकार ने भूजल को कानूनी अमलीजामा भी पहना दिया है। यानी केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के दिशानिर्देशों के तहत संरक्षण प्रबंधन तथा भू-जल के विनियमन के दायरे में सूक्ष्म सिंचाई, अपशिष्ट जल का सिंचाई व अन्य के लिए प्रयोग और जलभराव वाले क्षेत्रों को शामिल किया गया है। 

जोहड़ों का कायाकल्प 

अब ग्रे-वाटर मैनेजमेंट अपशिष्ट स्थिरीकरण तालाब पद्धति के तहत पहले चरण में 3400 गांवों के जोहड़ों का कायाकल्प होगा। अब तक कुल 502 पूर्ण तालाब, जिसमे 213 तीन तालाब पद्धति व 289 पांच तालाब पद्धतियों का निर्माण किया जा चुका है। इनमें से 443 तालाब क्रियाशील है। यह पद्धति वातावरण में मौजूद ऑक्सीजन और सूर्य के प्रकाश के माध्यम से होने वाली एक प्राकृतिक उपचार प्रक्रिया है। इस प्रणाली में अन्य उपचार प्रणालियों की तरह किसी रसायन, बिजली या कुशल व्यक्तियों की आवश्यकता नहीं है। हरियाणा में अब तक जल विशेष जल संरक्षण अभियान के तहत जल शक्ति योजना के तहत 1.5 लाख सोख गड्ढे भी बनाए गए हैं। गांवों में 4 हजार तालाबों का विस्तार किया गया है और वाटर शेड के अलावा 30 लाख पेड़ लगाए गए हैं। 

रेड कैटेगरी में 85 ब्लॉक 

केंद्रीय भूजल प्राधिकरण के ताजा आंकड़ो पर गौर करें तो हरियाणा के कुल 141 ब्लॉकों में से 85 ब्लॉक के 1780 गांव भूजल दोहन के कारण रेड कैटेगरी में पहुंच गए हैं। यह 85 ब्लॉक राज्य के भौगोलिक क्षेत्र के 60 फीसदी हिस्से को दर्शाते हैं, जहां जल संकट है। जबकि वर्ष 2004 में 55 ब्लॉक रेड कैटेगरी में थे। यानी डेढ़ दशक में 30 और ब्लॉक इसमें जुड़ गए हैं। सरकार ने भूजल स्तर के हिसाब से गुलाबी, बैंगनी और नीली श्रेणियां भी गांवों के लिए बनाई हैं। वहीं सरकार ने हरियाणा में उचित जल ऑडिट भी शुरू कर दिया गया है। इसके लिए भूजल तालिका की रियल टाइम मॉनीटरिंग के लिए महत्वपूर्ण रेड ब्लॉक में 1,700 पीजोमीटर लगाए जा रहे हैं। भू-जलस्तर में गिरावट में सुधार के लिए हरियाणा के 22 जिलों में से 14 जिलों की 1669 ग्राम पंचायतों में सामुदायिक भागीदारी के साथ अटल भूजल योजना भी चलाई जा रही है। इस योजना के तहत भूजल संसाधनों का हाइड्रोजियोलॉजिकल डाटा नेटवर्क तैयार किया जा रहा है। 

गिरता भूजल स्तर खतरे की घंटी 

प्रदेश में आमतौर पर भूजल की दो श्रेणियां हैं, जिसमे एक जो गतिशील है और दूसरी स्थिर है और जमीन के काफी नीचे है। प्रदेश में गिरते भूल की समस्या से अंबाला, कुरुक्षेत्र, करनाल, कैथल, हिसार, झज्जर, भिवानी, रेवाड़ी, महेंद्रगढ़, सिरसा, सोनीपत, पानीपत और जींद सबसे ज्यादा प्रभावित हैं। वहीं रोहतक, झज्जर आदि क्षेत्रों में तो भूजल खारा है और इसे सिंचाई के लिए उपयोग नहीं किया जा सकता। हरियाणा में भूजल निकालने की क्षमता देश के औसत 63 फीसदी से भी ज्यादा 137 प्रतिशत अधिक निकाला जाता है। हरियाणा सरकार के आंकड़ों के अनुसार वर्षा जल और नहर के पानी से वार्षिक भूजल रिचार्ज 10.15 बिलियन क्यूबिक मीटर (बीसीएम) है, जिसमें से 9.13 बीसीएम का उपयोग किया जा सकता है। लेकिन राज्य में भूजल रिचार्ज के मुकाबले कहीं वार्षिक भूजल निकासी कहीं ज्यादा 12.50 बीसीएम है, जिसमें से 11.53 बीसीएम अकेले सिंचाई के लिए उपयोग किया जाता है और शेष घरेलू (0.63 बीसीएम) और औद्योगिक उपयोग (0.34 बीसीएम) के लिए रह जाता है। हरियाणा जल संसाधन प्राधिकरण के अनुसार तेजी से गिरते भूजल स्तर की सबसे बड़ी वजह धान की फसलों की खेती है। 

प्रदेश में करोड़ो की योजनाएं 

प्रदेश में चल रही जल सरंक्षण की योजनाओं पर पिछले तीन साल में 8452 कार्यो पर 1655.28 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च की गई है, इसमें 23.84 करोड़ रुपये के कार्य मनरेगा के तहत हुए है। इन कार्यो में मौजूदा वित्तीय वर्ष 2021-22 में गत 10 मार्च तक जल सरंक्षण और जल संचयन के 1235 कार्यो पर 20.163 करोड़ रुपये खर्च किए गए, जबकि 30.72 करोड़ रुपये की लागत से 1693 कार्य चालू हैं। प्रदेश में 14,898 जल निकाय काम कर रहे हैं। 

कैच दा रेन अभियान

देशभर में 22 मार्च 2021 से 30 नवंबर 2021 तक चलाए गए ‘कैच दा रेन’ अभियान के तहत सरकार ने जल सरंक्षण और जल संचय की दिशा में वर्षा जल को इकठ्ठा करने का कार्य किया, जिसमें मानसून आने से पहले वर्षा जल संचय करने की व्यवस्था सुनिश्चित करने पर विशेष बल देते हुए जल संचय करने से जुड़े रेन वाटर हार्वेस्टिंग, वृक्षारोपण, पोखरों की सफाई और निर्माण कार्यों जैसे आदि करवाए। इस अभियान को जमीनी स्तर पर लोगों की सहभागिता से जल संरक्षण को बढ़ावा देने के लिए एक जन आंदोलन के रूप वर्षा के जल संग्रह सुनिश्चित किया गया। कैच दा रेन अभियान के तहत प्रदेश में 49,136 कार्य किये गये, जिसमें 351 चेक डैम, 10,257 तालाब/ टैंक, 7,309 ट्रेंच, 9,735 रूफटॉप जल संचयन संरचना के अलावा 11,052 अन्य वर्षा जल पुनर्भरण संरचनाएं तथा 11,052 अन्य जल संरक्षण संरचना के कार्य किये गये। 

21Mar-2022

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