सोमवार, 14 मार्च 2022

साक्षात्कार:साहित्य के मापदंड़ो दरकिनार नहीं किया जा सकता: महेन्द्र शर्मा

साहित्यकारों को इस बदलते युग में रचनाओं मे संतुलन की जरुरत 
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: महेन्द्र शर्मा 
जन्म: 25 अगस्त 1954 
जन्म स्थान: गांव खलीलपुर, जिला गुरुग्राम (हरियाणा) शिक्क्षा: स्नातक (पंजाब विश्वविद्यालय) 
संप्रत्त्ति: स्वतंत्र लेखन, काव्य पाठ एवं पत्रकारिता। 
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-ओ.पी. पाल 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के लिए आदित्य अल्हड़ सम्मान से सम्मानित साहित्यकार एवं वरिष्ठ पत्रकार महेन्द्र शर्मा हास्य-व्यंग्य के ऐसे लोकप्रिय कवि के रुप में पहचाने जाते हैं, जिन्होंने अपने काव्य पाठ से राष्ट्रीय कवि सम्मेलनों में ही नही, बल्कि विदेशों में भी श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित किया हैं। उन्होने साहित्य के क्षेत्र में पद्य के साथ गद्य लेखन में भी कहानी, नाटक, निबंध जैसी पुस्तकों का संपादन कर विभिन्न विधाओं में अपना रचना संसार रचा है। यही नहीं शर्मा ने बालको से लेकर बुजुर्गों तक के लिए रचनाएं लिखकर साहित्यकार व कवि के अलावा नाटकों एवं फीचर फिल्म में अभिनय की भूमिका से अपनी कला का हुनर प्रस्तुत किया हैं। समाज को नई दिशा देने के मकसद से अपनी अलग-अलग विधाओं के बीच सामंजस्य बनाकर साहित्य के क्षेत्र में सेवा देते आ रहे महेन्द्र शर्मा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत के दैरान अपने साहित्यिक सफर के अनुभवों को साझा किया है। -------- 
रियाण के प्रसिद्ध साहित्यकार, कवि एवं पत्रकार महेन्द्र शर्मा मानते हैं कि साहित्य को समाज का दर्पण इसलिए कहा जाता है कि किताबी ज्ञान कभी मरता नहीं है, भले ही आज के इस आधुनिक युग में नई तकनीक, इंटरनेट या सोशल मीडिया के बढ़ते प्रभाव के कारण खासकर युवाओं में किताबे पढ़ने में रुचि कम हो रही हो? उसे में साहित्य के मापदंडों को दरकिनार भी नहीं किया जा सकता है। इसलिए साहित्य को जिंदा रखने के लिए साहित्यकारों को भी इस बदलते युग में युवा पीढ़ी के मन और रुचि के अनुसार संतुलन बनाकर साहित्य और रचनाएं लिखने का प्रयास करना चाहिए। उनका कहना है कि यथार्थ के नाम पर छोटी बड़ी लाइन करके जो साहित्य रचा जा रहा है, उसे छोड? कविताओं जैसी रचनाओं में युवाओं को जोड़ने की आवश्यकता है। अपने साहित्य जीवन को लेकर महेन्द्र शर्मा का कहना है कि उन्होंने सबसे पहले एक परौड़ी लिखी औ उसके बाद करनाल में पढ़ते समय नहर के किनारे बैठकर जो लाइने लिखी थी वे अखबार में छपी, जिसमें उन्हे यह भी मालूम नही था कि ये कविता है या गजल। हौंसला और आत्मविश्वास बढ़ा तो साल 1981 के बाद उनकी कलम नही रुकी और उसके बाद उन्हें एक साहित्यकार औ हास्य कवि के रुप में पहचाना गया और सम्मान मिला। वे इसके साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में आए और पंजाब, हरियाण तथा दिल्ली में कई अखबारों में विभिन्न पदो पर कार्य किया। राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली के लालकिला ग्राउंड में देश के सर्वोच्च गणतंत्र दिवस और 'स्वतंत्रता दिवस कवि-सम्मेलनों में पिछले डेढ़ दशक तक अपने काव्यपाठ की दमदार प्रस्तुति और संचालन किया। लोकप्रिय कवि महेन्द्र शर्मा तीन साल तक केन्द्रीय खाद्य एवं उपभोक्ता मामले एवं सार्वजनिक वितरण मंत्रालय की हिन्दी सलाहकार समिति के बतौर मनोनीत सदस्य भी रहे। यही नहीं सरकारी एवं गैर सरकारी संस्थानों में आयोजित हिंदी प्रतियोगिताओं एवं कार्यशालाओं में निर्णायक की भूमिका निभाने वाले साहित्यकार महेन्द्र शर्मा को हरियाणा में महर्षि दयानंद यूनिवर्सिटी रोहतक, कुरूक्षेत्र यूनिवर्सिटी तथा देश के अन्य विश्वविद्यालयों में निर्णायक, कविता पाठ एवं आतिथ्य भाव में महत्वपूर्ण जिम्मेदारी का दायित्व भी सौंपा गया है। भारतीय सेना के लिए लेह, लाख, कारगिल, द्रास, श्रीनगर, जम्मू, उधमपुर में सेना के अफसरों व सैनिकों के लिए कवि-सम्मेलनों में कवितापाठ करना भी राष्ट्र सेवा के रुप में विशेष साहित्यिक उपलब्धियां रही हैं। लेखन एवं काव्य पाठ के अलावा उन्होंने नाटकों एवं हरियाणवी फीचर फिल्म 'ज़र जोरू और जमीन' में अभिनय भी किया। आकाशवाणी, दूरदर्शन तथा अन्य अनेक चैनलों पर कविता पाठ करने वाले महेन्द्र शर्मा की कविताएं, रचनाएं और साक्षात्कार देश के विभिन्न प्रतिष्ठित समाचार पत्रों, पत्रिकाओं में प्रकाशित हो रहे हैं। उनकी उपलब्धियों में दुबई, मारिशस, नेपाल तथा बैंकाक में आयोजित कवि सम्मेलनों व कार्यशालाओं में कविता पाठ करना भी शामिल है। साहित्यकार, कवि, अभिनेता और मंचन के साथ उनकी पत्रकारिता के क्षेत्र में भी अहम भूमिका रही है, एक राष्ट्रीय दैनिक समाचार पत्र दिल्ली मे ढ़ाई दशक से ज्यादा समय तक सेवाओं के उपरान्त 'मुख्य उप संपादक' के पद से स्वैच्छिक सेवानिवृत्ति हुए हैं। इसके बाद 13 वर्षों तक अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिल्ली में हिन्दी विभाग के प्रभारी पद पर कार्यरत है। 
प्रकाशित पुस्तक 
साहित्यकार महेन्द्र शर्मा ने समाज के सामने अपने साहित्यिक जीवन में दो उपन्यास प्रेमपथ और प्रेरणा, एक कहानी संग्रह तंग गली,दो कविता-संग्रह खण्डहर तुम लौट जाओं और आहट उजाले की के साथ ही एक हास्य व्यंग्य कविता-संग्रह ‘ऐसा भी होता है’ नामक पुस्तकों को प्रस्तुत किया है। उनके बाल गीत संग्रह ‘प्यारे-प्यारे गीत तुम्हारे’ नाम की पुस्तक हिंदी के अलावा पंजाबी में अनुवाद में भी सुर्खियों में है। महेन्द्र शर्मा के साहित्य कर्म की पुस्तक में हरियाणा के कहानीकारों की महिला-समस्याओं पर केन्द्रित कहानियों का संकलन एक नया आकाश, रेत में उगा गुलाव का संपादन भी शामिल है। उन्होंने 'अखिल भारतीय अणुव्रत न्यास, दिल्ली' द्वारा आयोजित विद्यार्थियों के लिए निबंध प्रतियोगिता तथा शिक्षकों के लिए कविता, कहानी, नाटक प्रतियोगिता की रचनाओं का राष्ट्रीय स्तर पर 32 पुस्तकों का संपादन भी किया है। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
हरियाण सहित्य अकादमी ने पिछले माह फरवरी में ही साहित्यकार महेन्द्र शर्मा को वर्ष 2018 के आदित्य अल्हड़ सम्मान से नवाजा है। इससे पहले भी हरियाणा साहित्य अकादमी उन्हें विशेष हिन्दी साहित्य मेवी सम्मान-2013 से पुरस्कृत कर चुकी है। विभिन्न विधाओं में रचनाओं और काव्य मंचों पर लोकप्रियता ने उन्हें हिन्दी अकादमी, दिल्ली सरकार द्वारा काका हाथरसी सम्मान-2007 का गौरव भी प्रदान किया है। इसके अलावा अन्तर्राष्ट्रीय साहित्यिक सांस्कृतिक विकास संस्थान, जबलपुर, म.प्र. से सारस्वत सम्मान, जीवन विकास संस्थान, भाषनगर, बस्ती, उ.प्र से साहित्य रश्मि सम्मान, उदभव, दिल्ली से पानव सेवा सम्मान, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुरुग्राम, हरियाणा से साहित्यकार सम्मान, नेशनल प्रेस क्लब ऑफ इंडिया, बुलंदशहर, उ.प्र से गौरव विपार्धा राम सम्मान हासिल किया है। इसके अतिरिक्त उन्हें देश विदेश की अनेक संस्थाओ द्वारा पुरस्कृत एवं सम्मानित किया जा चुका है। 
संपर्क सूत्र:3073 जॉय अपार्टमेंट, प्लॉट न.2, सैक्टर-2, द्वारका,नई दिल्ली-110075
मोब. 9868153592 
14Mar-2022

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