मंगलवार, 31 दिसंबर 2013

अलविदा 2013: कुछ कही, कुछ अनकही- हंगामे में होम होती रही संसद!

ओ.पी.पाल
वर्ष 2013 में दामिनी कांड की घटना के कारण आपराधिक कानून (संशोधन) विधेयक और राष्ट्रपति  के अभिभाषण पर पेश हुए धन्यवाद प्रस्ताव पर एक सारगर्भित चर्चा से हुई, लेकिन उसके बाद संसद के तीनों सत्रों में विभिन्न मुद्दे इस कदर गूंजते नजर आए कि इस साल दो संसदीय सत्र निर्धारित अवधि से पहले ही अनिश्चित काल के लिए स्थगित करने पड़े। संसद में हंगामे के कारण लोकसभा में 92 घंटे का रिकार्ड समय समूचे साल में बर्बाद हुआ।
हंगामे के कारण बजट सत्र के दूसरे चरण को 10 मई की बजाए 8 मई को ही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया। हंगामे से विरोध की दास्तां को संसद के शीतकालीन सत्र में दोहराया गया, जिसे निर्धारित अवधि 20 दिसंबर से दो दिन पहले ही 18 दिसंबर को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करना पड़ा। भ्रष्टाचार, महंगाई, 2जी स्पैक्ट्रम, तेलंगाना, श्रीलंकाई तमिलों, लोकपाल आंदोलन, महंगाई और मुजफ्फरनगर दंगा जैसे ज्वलंत मुद्दों से संसद बार-बार होम होती रही। हंगामे के कारण इस साल तीनों सत्रों के दौरान लोकसभा में 92 घंटे और राज्यसभा में 82 घंटे का समय बर्बाद हुआ।
शीतकालीन सत्र:
आगामी लोकसभा चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की चल रही तैयारियों का कारण ही माना जा सकता है कि संसद का शीतकालीन सत्र अल्प अवधि के लिए बुलाया गया और वह भी निर्धारित अवधि से दो दिन पहले ही स्थगित कर दिया गया। इस सत्र में सरकार ने विपक्ष से सहमति बनाकर लंबित लोकपाल विधेयक को पारित कराया, जिसकी वजह दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करने वाली आम आदमी पार्टी का चुनावी प्रदर्शन और चौतरफा जनदबाव का कारण माना गया है। संसद का शीतकालीन सत्र में जितना हंगामा बरपा उसके कारण लोकसभा में 94 प्रतिशत तथा राज्यसभा में 81 प्रतिशत समय की बर्बादी हुई। हालांकि सरकार के दावों पर तेलंगाना, सांप्रदायिक रोधी बिल और अन्य महत्वपूर्ण बिलों को इसी सत्र में पारित कराने का दावा किया जा रहा था, लेकिन हाल ही में पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव के नतीजों ने सभी राजनीतिक दलों में बेचैनी पैदा कर दी और बेमन से इस सत्र को समय से पूर्व स्थगित करने का उन दलों ने भी कोई विरोध नहीं किया जो इस सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग कर रहे थे।
मॉनसून सत्र:
पांच अगस्त से शुरू हुए संसद के मानसून सत्र के दौरान सदन ने खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण संबंधी ऐतिहासिक विधेयकों को पारित करने के साथ ही पेंशन विधेयक, लोक प्रतिनिधित्व संशोधन विधिमान्यकरण विधेयक और राजीव गांधी राष्ट्रीय विमानन विश्वविद्यालय विधेयक को भी मंजूरी प्रदान की गई। मॉनसून सत्र की निर्धारित अवधि 30 अगस्त को बढ़ाकर छह सितंबर तक करके महत्वपूर्ण विधेयकों और अन्य कामकाज का निपटारा किया गया गया। लेकिन हंगामे के कारण दोनों सदनों में कुछ कामकाज शोरशराबे के बीच ही निपटा दिये गये। तेलंगाना का विरोध करने वाले तेदेपा और कांग्रेस के सांसदों को इस सत्र के दौरान सदन से निलंबित भी होना पड़ा। मानसून सत्र में सुप्रीम कोर्ट के राजनीतिक दलों पर शिकंजे वाले मुद्दे भी छाए रहे जिन पर सभी राजनीतिक दल एकजुट नजर आए और कानून बदलने के प्रयास में नजर आए, लेकिन आरटीआई संशोधन विधेयक और सजायाफ्ता होने पर सदस्यता समाप्त करने वाले फैसले को बदल नहीं सके। सरकार ने बाद में सजायाफ्ता पाए जाने वाले के बचाव में अध्यादेश भी कैबिनेट में पारित किया,जिस पर कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी के एक बयान ने पानी फेर दिया।
बजट सत्र:
संसद के 21 फरवरी को शुरू हुए बजट सत्र में दिल्ली में एक युवती के साथ चलती बस में सामूहिक बलात्कार की जघन्य घटना की एक स्वर में निंदा की और एक कड़ा कानून पारित किया गया, तो वहीं सदस्यों ने संसद पर हमला मामले के दोषी अफजल गुरू को फांसी दिए जाने की निंदा करने वाले पाकिस्तान की नेशनल असेम्बली द्वारा पारित प्रस्ताव की निंदा के लिए पूरा संसद एकजुट नजर आया। इस सत्र के दौरान भ्रष्टाचार के आरोपों को लेकर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह, केंद्रीय मंत्रियों अश्विनी कुमार और पवन कुमार बंसल के इस्तीफे की मांग पर विपक्ष और सत्ता पक्ष के बीच बने गतिरोध के चलते संसद का बजट सत्र निर्धारित समय से दो दिन पूर्व अचानक अनिश्चितकाल के लिए स्थगित कर दिया गया था। हंगामे के कारण बजट सत्र के दूसरे चरण का पूरा समय शोर-शराबे की भेंट चढ़ कर व्यर्थ चला गया और इस दौरान केवल संवैधानिक रूप से आवश्यक वित्तीय कामकाज ही निपटाया जा सका। इसी कारण वित्त विधेयक और रेल बजट को बिना चर्चा के ही पारित कराना पड़ा, जिसके कारण इस दौरान विपक्ष ने वाकआउट भी किया। इस हंगामे के कारण 22 अप्रैल से शुरू हुए दूसरे चरण में एक दिन भी प्रश्नकाल नहीं चल सका। बजट सत्र के दो दिन पूर्व ही स्थगित किए जाने से राष्ट्रीय खाद्य सुरक्षा और भूमि अधिग्रहण जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयक पारित नहीं किए जा सके।
31Dec-2013

बुधवार, 25 दिसंबर 2013

पश्चिमी यूपी: मुस्लिमों पर कांग्रेस की नजर!

राजनीति: सियासी जमीन तलाशने की मुहिम
ओ.पी.पाल

लोकसभा चुनाव के लिए बनाई गई रणनीतियों में कांग्रेस मुजफ्फरनगर समेत यूपी में हुए दंगों के बाद सपा से दूरी बनाते दिख रहे मुस्लिमों में अपनी पैठ बनाने के अभियान में जुट गई है। दो दिन पूर्व कांग्रेस युवराज राहुल गांधी का मुजफ्फरनगर और शामली के राहत शिविरों में अल्पसंख्यकों के बीच जाकर उनका दुखदर्द सुनना इसी राजनीति का हिस्सा माना जा रहा है। वहीं अल्पसंख्यकों के लिए केंद्र की सभी योजनाओं को लागू कर दिये जाने से भी कांग्रेस अल्पसंख्यकों पर भरोसा जता रही है।
लोकसभा की रणनीति में सपा से नाराज मुस्लिम वर्ग को कांग्रेस अपने खेमे में लाने के लिए उनके बीच जाकर चिकित्सा सहायता, कौशल विकास और महिलाओं के बीच नेतृत्व विकास जैसी अल्पसंख्यक उन्नमुख योजनाओं का हवाला देकर इस वर्ग का भरोसा जीतने का भी प्रयास करने में जुटी हुई है। दूसरी ओर जाट आरक्षण पर यूपीए सरकार का फैसला भी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर माना जा रहा है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती पर सोमवार को मेरठ में आयोजित संकल्प रैली में साफ जाहिर हुआ कि रालोद के साथ मिलकर कांग्रेस पश्चिमी उत्तर प्रदेश में सियासी जमीन तैयार कर रही है। एक दिन पहले कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी को राहत शिविरों में मुस्लिम समुदाय के बीच जाना और उससे अगले दिन इन दंगों से बिखरे जाटों और मुसलमानों को एकजुट करने के प्रयास को कांग्रेस ने पूरी हवा दी।
सरकारी योजनाओं के प्रचार पर जोर
कांग्रेस ने अल्पसंख्यकों को लुभाने के लिए पार्टी कार्यकर्ताओं को सरकारी योजनाओं का जोरशोर से प्रचार कने और उनके बीच ज्यादा काम करने के दिशानिर्देश भी जारी किये हैं। सूत्रों के अनुसार अल्पसंख्यकों तक अपनी पहुंच बनाने के इरादे से ही सरकार ने अल्पसंख्यकों की ऋण तक आसान पहुंच, वक्फ सुधार और मौलाना आजाद शिक्षा फाउंडेशन के तहत अल्पसंख्यकों के लिए एक नयी स्वास्थ्य योजना को हाल ही में अमलीजामा पहनाया है। वहीं मौजूदा योजनाओं के तहत 2013-2014 के लिए 100 करोड़ रुपए की राशि निर्धारित करके कांग्रेस ने सीधे वर्ष 2014 के लोकसभा चुनाव का लक्ष्य साध है। इससे पहले कांग्रेस नेतृत्व ने 2014 के लिए पार्टी के चुनावी घोषणपत्र में अल्पसंख्यकों के मुद्दों और उनके उत्थान वाली योजनाओं पर मुस्लिमों की राय जानने के लिए बैठक करके रणनीति भी तैयार की है। यही नहीं कांग्रेस ने देशभर के सैकड़ों नागरिक समाज संगठनों के प्रतिनिधियों से भी राय हासिल की है, जिसका मकसद है कि लोकसभा चुनाव में कांग्रेस अल्पसंख्यकों तक अपनी पहुंच कैसे बनाएगी।
25Dec-2013

मंगलवार, 24 दिसंबर 2013

बिखरे जाट-मुस्लिम गठजोड़ का संकल्प!


चौधरी चरण सिंह की जयंती: कांग्रेस-जदयू बने रालोद के खेवनहार

ओ.पी.पाल. मेरठ(उ.प्र.)।
पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती के बहाने मुजμफरनगर दंगों और जाट आरक्षण के मुद्दे के बल पर पश्चिमी उत्तर प्रदेश में बिखरे जाट-मुस्लिम गठजोड़ को बहाल करने का संकल्प लिया गया। इस सकंल्प रैली के जरिए रालोद प्रमुख अजित सिंह शक्ति प्रदर्शन करके सियासी भविष्य को लेकर इतने आश्वस्त दिखे कि इस ताकत को भुनाने के लिए उन्होंने पूरी जिम्मेदारी कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और जदयू नेताओं शरद यादव व केसी त्यागी पर डाल दी।
रालोद के सियासी गढ़ पश्चिमी उत्तर प्रदेश में मुजफ्फरनगर  व आसपास हुए दंगों से जाटों और मुस्लिमों के छिटकने से बिगड़े राजनीतिक समीकरणों से सबसे बड़ा सियासी नुकसान रालोद का ही माना जा रहा था। हाल ही में यूपीए की सहयोगी रालोद की मांग पर केंद्र सरकार ने जाटों को आरक्षण देने का जो कैबिनेट में फैसला लिया है उसे रालोद ने चौधरी चरण सिंह की 111वीं जयंती पर मेरठ में संकल्प दिवस पर भुनाने का दावं खेला, जिसमें कांग्रेस और जदयू ने भी इस रैली में हिस्सा लेकर रालोद के हौंसले को बढ़ाने का काम किया। कांग्रेस के महासचिव दिग्विजय सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा ने रालोद की उस पहल पर मुहर लगाने का काम करके रैली में आए लोगों को आश्वस्त किया कि यूपीए की सरकार ने चौधरी चरण सिंह के सपने को पूरा करने के लिए जाटों को आरक्षण देने का ऐतिहासिक फैसला कर दिया है। कांग्रेस के इन दोनों नेताओं ने मुजफ्फरनगर के दंगों के लिए यूपी की सत्तारूढ़ सपा और भाजपा को बिना नाम लिये जिम्मेदार ठहराते हुए कहा कि स्व. चौधरी चरण सिंह को सच्ची श्रद्धांजलि तभी होगी, जब शिविरों में रहे रहे लोगों को गांवों में वापस भेजने का सभी संकल्प लेकर यहां से जाएं। जदयू प्रमुख शरद यादव और महासचिव केसी त्यागी ने भी चौधरी चरण सिंह को इंसानियत और मेहनतकशों को मसीहा बताते हुए कहा कि उन्होंने कभी किसी को किसी जाति बिरादरी के रूप में नहीं देखा। जदयू नेतओं ने चौधरी चरण सिंह के सिद्धांतों का वास्ता देकर रैली से संकल्प कराया कि मुजफ्फरनगर दंगे के कलंक को मिटाने के लिए इस अभियान में जुटें कि एक भी व्यक्ति शिविर में न रहे और वे वापसी अपने-अपने गांव में होने चाहिए। इस रैली में हरेक वक्ताओं ने जहां जाटो के आरक्षण का मुद्दे पर एकजुट होने का आव्हान किया। वहीं एकजुटता के लिए चौधरी चरण सिंह द्वारा बिछाई गई हिंदु-मुस्लिम गठजोड़ की बिसात को पुनर्जीवित करने का संकल्प भी लिया गया।
हाईकोर्ट की बैंच की वकालत
इस रैली में जहां जाट आरक्षण और दंगे के लगे कलंक को मिटाने पर बल दिया गया, वहीं जदयू केसी त्यागी ने मंचासीन कांग्रेस महासचिव दिग्विजय सिंह और हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र हुड्डा पर यह जिम्मेदारी डाली, कि यूपीए सरकार ने जाट आरक्षण से जो शुरूआत की है उसी के साथ पश्चिमी उत्तर प्रदेश के वकीलों के कई दशक से चल रहे इलाहाबाद हाईकोर्ट बैंच की मांग को पूरा कराए। सरकार का विवेक जागे तो यह काम मुश्किल नहीं है, वरना पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों के सब्र का इम्तहान लेने का प्रयास किया तो उन्हें रोकना कठिन हो जाएगा।
नौजवानों को ललकारा
रालोद के महासचिव एवं सांसद जयंत चौधरी ने कि किसाना बाहुल्य पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लिए भूमि अधिग्रहण और जाटों को आरक्षण पर सरकार का फैसला इस बात का संकेत है कि यूपीए सरकार किसानों, गरीबो, मजदूरों और मुस्लिमों की समस्याओं के लिए गंभीर है। मुजμफरनगर दंगों के दर्द को बयां करते हुए उन्होंने कहा कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश की इस एकता पर जो दाग लगा है उसे धोना इतना आसान तो नहीं है,लेकिन यदि नौजवान आपस में लड़ाने वाली ताकतों का एकजुट होकर मुकाबला करें तो खोया हुआ गौरव वापस लाया जा सकता है।
आरक्षण से खिली दिखी बांछे
पूर्व प्रधानमंत्री चौधरी चरण सिंह की जयंती पर अपनी सियासी जमीन को पुख्ता करने के लिए रालोद की संकल्प रैली में हुए शक्ति प्रदर्शन के जरिए भीड़ को देखकर रालोद प्रमुख चौधरी अजित सिंह की बांछे खिलती नजर आई और यहां तक कह गये कि उन्हें इस मौके पर जो उपहार पश्चिमी उत्तर प्रदेश के लोगों ने दिया है उससे बड़ा उपहार उन्हें आजतक नही मिला। जाट आरक्षण तो अभी शुरूआत बताते हुए अजित सिंह ने कहा कि अभी तो चौधरी चरण सिंह के बहुत से सपने पूरे करने है जिसके लिए इसी प्रकार उन्हें लोगों के प्यार की जरूरत होगी।
24Dec-2013

सोमवार, 23 दिसंबर 2013

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में नई सियासी बिसात की तैयारी!

चौ. चरण सिंह की जयन्ती पर मेरठ में संकल्प रैली आज
ओ.पी.पाल

जाट आरक्षण का शगूफा छोड़ने के बाद यूपीए सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की जयंती पर यूपीए की सहयोगी  राष्ट्रीय लोकदल की संकल्प रैली में शामिल होने का संदेश देकर साफ कर दिया है कि वह लोकसभा चुनाव में रालोद का पूरा साथ निभाएगी।
माना जा रहा है कि संकल्प रैली के बहाने पश्चिमी उत्तर प्रदेश में वोट बटोरने की राजनीति को गति मिलेगी। इस रैली में रालोद ने राजग से नाता तोड़ चुके जदयू को भी आमंत्रित करके भविष्य की नई रणनीति के संकेत दे दिए है। पूर्व प्रधानमंत्री स्व. चौधरी चरण सिंह की 111वीं जयन्ती पर राष्ट्रीय लोकदल ने मेरठ में कल सोमवार को संकल्प रैली का आयोजन किया है, जिसमें यूपीए के कांग्रेस-रालोद के साथ जदयू भी हिस्सा ले रही है। हालांकि जदयू यूपीए में शामिल नहीं है। जदयू के सांसद के.सी. त्यागी संकल्प रैली में अपने दल के नेताओं के शामिल होने को किसी राजनीति से जोड़कर न देखने का अनुरोध करते है। उन्होंने हरिभूमि को बताया कि जदयू के नेता चौधरी चरण सिंह को हमेशा अपना आदर्श मानते रहे हैं और इस रैली में रालोद के प्रमुख चौधरी अजित सिंह ने जदयू को आमंत्रित भी किया है इसलिए हम अपने नेता को श्रद्धाजलि देने के लिए इस कार्यक्रम में शामिल हो रहे हैं। लेकिन राजनीति पर पैनी नजर रखने वाले जद यू के संकल्प रैली में शामिल होने को भी भविष्य की राजनीति का संकेत मान रहे हैं। आगामी लोकसभा चुनाव के मद्देनजर माना जा रहा है कि मुजफ्फरनगर व आसपास पिछले दिनों हुए दंगों से टूटे मुसलिम और जाट समीकरण को एक बार फिर ठीक करने के लिए कांग्रेस पार्टी ने अपने सहयोगी दल रालोद के साथ मिलकर इस संकल्प रैली का सहारा तलाशा है, जबकि इन दंगे के बाद एकाएक भाजपा ने मिशन यूपी शुरू करके वोटों के धुव्रीकरण का लाभ उठाने की कवायद शुरू कर दी और चार राज्यों में मिली सफलता ने भाजपा की इस कवायद को और जोशीला बना दिया। अब यूपीए सरकार ने जाट आरक्षण का पासा फेंककर रालोद की इस संकल्प रैली के सहारे सियासी बिसात पर वोट बटोरने की कवायद शुरू कर दी है। पिछले सप्ताह ही केंद्रीय कैबिनेट ने जाटों को ओबीसी में आरक्षण के प्रस्ताव पर पिछड़ा आयोग को इस पर जल्द कार्यवाही करने का काम सौपा है। जाट आरक्षण पर कैबिनेट के फैसले पर रालोद ने तो पश्चिमी उत्तर प्रदेश में जोर-शोर से अपनी सफलता का प्रचार भी शुरू कर दिया है जिसकी काट ढूंढने के लिए सपा भी कोई कसर नहीं छोड़ रही है।
तय होंगे राजनीतिक समीकरण
मेरठ की इस संकल्प रैली में चौधरी चरण की सिंह की जयंती पर रालोद के प्रमुख एवं केंद्रीय नागर विमानन मंत्री चौधरी अजित सिंह, रालोद के सांसद जयंत चौधरी व संजय सिंह चौहान के साथ ही कांग्रेस के राष्टÑीय महासचिव दिग्विजय सिंह, हरियाणा के मुख्यमंत्री भूपेन्द्र सिंह हुड्डा, सांसद दीपेन्द्र हुड्डा, केन्द्रीय इस्पात मंत्री बेनी प्रसाद वर्मा व जदयू अध्यक्ष शरद यादव व महासचिव केसी त्यागी की मौजूदगी रहेगी। इस रैली में रालोद-कांग्रेस-जेडीयू की त्रिवेणी बहेगी तो जाहिर सी बात है कि पश्चिमी उत्तर प्रदेश में राजनीति के नये समीकरण भी तय होगें।
सियासत में सपा भी आगे
रालोद की संकल्प रैली के मुकाबले यूपी में सत्तारूढ समाजवादी पार्टी ने भी जाटों को लुभाने के लिए चरण सिंह की जयंती पर छुट्टी और उन्हें भारत रत्न देने की मांग को जोरशोर से उठाया है। चौधरी चरण सिंह जयंती से एक दिन पहले मेरठ में यूपी सरकार के मंत्री शाहिद मंजूर एवं लोक निर्माण मंत्री शिवपाल यादव के आगमन का मतलब भी यही माना जा रहा है। यही नहीं शिवपाल यादव ने मेरठ में विभागीय समीक्षा बैठक करके किसानों के साथ हमदर्दी जताने के मुद्दों पर भी बातचीत की।
23Dec-2013

रविवार, 22 दिसंबर 2013

म से मुलायम-म से मोदी के बीच सियासी जंग!

भाजपा की तरह सपा भी हाईटैक हुई
ओ.पी. पाल. बदायूं (उ.प्र.)।

आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारियों में जी-जान से जुटे राजनीतिक दलों की नजरें उत्तर प्रदेश पर टिकी हुई है। सबसे ज्यादा 80 संसदीय सीटों वाले यूपी में सत्तारूढ़ समाजवादी पार्टी अपना मुकाबला भाजपा से ही मानकर चल रही है। सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव इस बात को स्वयं स्वीकार कर रहे हैं कि म से मुलायम और म से मोदी के बीच ही जंग होनी है। शायद तभी तो जिस दिन उत्तर प्रदेश में भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की रैली होती है तो उसी दिन सपा भी अपनी रैली आयोजित करती आ रही है, लेकिन अभी तक मोदी की रैली का मुकाबला करने में सपा कामयाब नहीं हो पाई है।
नरेन्द्र मोदी की बनारस में हुई रैली के मुकाबले भले ही सपा प्रमुख ने इसी दिन बदांयू में हुई सपा की विकास रैली की भीड़ को देखकर उत्साहित स्वर में बोला हो कि बदायूं की जनता ने भाजपा यानि मोदी की रैली को भी पछाड़कर यह साबित कर दिया है कि सूबे की जनता राज्य में मोदी के पैर नहीं जमने देगी। इसमें कोई दो राय नहीं कि बदायूं में सपा की विकास रैली इससे पहले बरेली में 21 नवंबर की रैली से बेहतर भीड़ वाली कही जा सकती है। सपा की तकनीकियों से युक्त इस रैली ने अपनी पिछली रैलियों के रिकार्ड को ही दुरस्त किया है, हालांकि यूपी में मोदी की अभी तक हुई रैलियों से मुकाबला करना बेमाने होगा। हां इतना जरूर है कि भाजपा और कांग्रेस की रैलियों में अपनाई जाने वाली तकनीकों को अभी तक कंप्यूटर विरोधी मानी जाने वाली सपा ने भी अब लेपटॉप की राजनीति शुरू कर दी है। इसका असर बरेली की तरह ही बदायूं जिले के नजदीक गुनौरा वाजिदपुर स्थित राजकीय मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास व विकास रैली में भी दिखा, जहां मंच की साजसज्जा तकनीक पर आधारित रही, जिसमें आधुनिक तकनीक थ्री डी साउंड सिस्टम और विशाल एलईडी की मदद से बने हाई-फाई सिस्टम से सुसज्जित मंच तैयार किया गया था। मंच के साथ ही पंडाल भी आधुनिक तकनीक से तैयार किये गये थे। इस रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव और सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव भीड़ को देखकर गदगद नजर आए और अपने परिवार के ही बदायूं के सांसद धर्मेन्द यादव की पीठ थपथपाने व उनकी तारीफों के पुल बांधने में भी पीछे नहीं रहे। सपा प्रमुख मुलायम सिंह तो रैली की सफलता से इतने उत्साहित नजर आए कि उन्होंने कहा कि लखनऊ फतेह हो चुका है और अब लगता है कि दिल्ली फतेह दूर नहीं है।
रैलियों से जवाब देने की होड़
लोकसभा चुनाव की सियासत में जब रैलियों की बात चलती है, तो देशभर में सबसे पहले नरेंद्र मोदी की रैलियों के दृश्यों का ही जिक्र सामने आता है। मोदी की रैलियों की चर्चा देशभर में लोकप्रिय हो रही है तो उत्तर प्रदेश की सियासत में सत्तारूढ़ दल समाजवादी पार्टी भी नरेन्द्र मोदी को रैलियों से ही प्रेरित होकर जवाब देने में जुटी हुई है। जहां तक इन रैलियों का सवाल है उसमें मोदी की बनारस रैली के मुकाबले सपा ने बदायूं में रैली करके जवाब देने का प्रयास किया। इससे पहले 21 नवंबर को जब नरेन्द्र मोदी आगरा में गरजे तो सपा के मुखिया बरेली में गरजे। इससे पहले सपा आजमगढ़ और मैनपुरी में भी रैलियां कर चुकी हैं, लेकिन इन सभी रैलियों के मुकाबले बदायूं की रैली की भीड़ देखकर सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव की जान में जान आई। सपा अहसास कराना चाहती है कि उत्तर प्रदेश सपा के जनाधार वाला सूबा है और यहां वह अन्य किसी दल से अपने आपको कम नहीं आंकवाना चाहती, तभी तो इस रैली में भीड़ के साथ ग्लैमर और तकनीक भी नजर आई।
करोड़ों रुपये की परियोजनाओं को तोहफा
बदायूं रैली में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने 1184.21 करोड़ की 56 परियोजनाओं का शिलान्यास किया। इसमें 545 करोड़ रुपए की लागत से बनने वाले इस राजकीय मेडिकल कॉलेज के शिलान्यास के अलावा बदायूं जिलें के लिए ही कुल 1153.18 करोड़ रुपए लागत की 34 परियोजनाओं के साथ ३१.०२करोड़  रुपए की 22 परियोजनाओं का लोकार्पण किया। इसी प्रकार जनपद सम्भल की 179.42 करोड़ रुपए की 5 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं 4.53 करोड़ रुपए लागत की 2 परियोजनाओं का लोकार्पण किया गया। जनपद बदायूं में कुल 1184 करोड़ 21 लाख रुपए की 56 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं लोकार्पण करने के साथ ही जनपद सम्भल की 183.95 करोड़ रुपए की 7 परियोजनाओं का शिलान्यास एवं लोकार्पण भी किया गया।
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राग दरबार
बेमन का इतिहास
संसद के शीतकालीन सत्र में भ्रष्टाचार के खिलाफ लोकपाल विधेयक को मंजूरी देकर केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही कांग्रेस इसे इतिहास रचने से कम नहीं मान रही है। यही नहीं इस बेमन वाले इतिहास बनाने का श्रेय लेने की भी सपा को छोड़कर लोकपाल का समर्थन करने वाले ज्यादातर दलों में तक लगी हुई है। लोकपाल पास होने के बाद आम चर्चा है कि सरकार और राजनीतिक दलों ने इसे बेमन से पारित कराया है। जिसका कारण पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव के नतीजे खासकर दिल्ली में भ्रष्टाचार के खिलाफ संघर्ष करते आ रहे अण्णा हजारे के आंदोलन से निकली आम आदमी पार्टी के चुनावी प्रदर्शन ने सभी बड़े छोटे दलोे को जो सबक दिया, उसी नतीजे से लोकपाल विधेयक पास हो सका है? हो भी क्यों न सभी दलों की आप ने जो हवा बदली है और सभी दलों को लोकसभा चुनाव में भी जाना है। इस बदले राजनीतिक माहौल तो इन राज्यों के चुनाव नतीजे आते ही बदल गई थी, जिसके बाद संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग कर रहे दल भी चुप्पी साध गये और आगामी लोकसभा चुनाव की तैयारी के मद्देनजर बेमन से संसद सत्र में हिस्सा लेते रहे। सत्र के एजेंडे में 38 बिल थे, लेकिन दिल्ली में आप ने सरकार और सभी दलों को लोकपाल विधेयक को प्राथमिकता पर लाने के लिए मजबूर कर दिया। यही नहीं हुआ लोकपाल विधेयक को कमजोर साबित करने वाले दलों में भी लोकपाल विधेयक को समर्थन करने के लिए मजबूर कर दिया और इसके बावजूद सपा को छोड़कर ज्यादातर दलों ने उसे पारित कराने में समर्थन देने की मजबूरी को परोसा। वैसे भी एक कहावत आजादी के समय से ही चलजी आ रही है कि मजबूरी का नाम महात्मा गांधी। यह कहावत कुछ लोकपाल बिल को संसद की मंजूरी में साफ नजर आई और पिछले 45 साल से इतिहास के पन्नों में दर्ज होने की बाट जोह रहे लोकपाल को पारित करके एक बेमन का इतिहास रच दिया गया।
अधूरी रह गई युवराज पुकार
संसद के शीतकलीन सत्र में राज्यसभा से पारित होकर बुधवार को जब संशोधन पारित कराने के लिए लोकपाल विधेयक लोकसभा में पहुंचा तो सदन में कांग्रेस के उपाध्यक्ष और युवराज राहुल गांधी को भी बोलने का मौका मिला। उन्होंने लोकपाल विधेयक पारित कराने के लिए इतिहास रचने का गवाह बनते हुए सदन में पुकार लगाई कि भ्रष्टाचार पर अंकुश लगाने के लिए लोकपाल के अलावा कम से कम आठ विधेयक संसद में अभी लंबित है जिन्हें पारित कराने के लिए संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। लेकिन शायद यह सत्र लोकपाल बिल पारित कराने के लिए ही बुलाया गया हो इससे तो ऐसा ही लगता है कि लोकपाल विधेयक के पारित होने के बाद ही निर्धारित अवधि से दो दिन पहले ही लोकसभा को अनिश्चित कालीन के लिए स्थगित कर दिया गया, तो सदन में मौजूद सदस्य भौंचक्के रह गये और विपक्षी दलों के सदस्य ही नहीं मीडियाकर्मियों में चर्चा होती रही कि कम से कम कांगे्रस युवराज की पुकार तो सुन ही ली जाती, जो भ्रष्टाचार के खिलाफ सभी कानून पास कराने के लिए गंभीर रूप ले चुके थे।
हमनाम का हंगामा
संसद के शीतकालीन सत्र में उच्च सदन की कार्यवाही अनिश्चितकाल के लिए स्थगित करने से पहले बाली में हुए अंतर्राष्टÑीय व्यापार संगठन के सम्मेलन में भारत के हुए समझौते पर चर्चा कराने का निर्णय लिया गया, जिसमें केंद्रीय वाणिज्य मंत्री आनंद शर्मा को जवाब देना था। इस संक्षिप्त चर्चा की शुरूआत विपक्ष के नेता अरूण जेटली ने की और बारी-बारी से सभी दलों को मौका दिया गया। चर्चा के लिए शांत चल रही सदन की कार्यवाही में उस समय हंगामा हो गया जब उपसभापति ने चर्चा में हिस्सा लेने के लिए मनोनीत सदस्य अशोक कुमार गांगुली का नाम पुकारा। यह नाम आते ही तृणमूल कांग्रेस के सदस्य हाथों में पोस्टर लेकर हंगामा करते हुए आसन के करीब आ गये और अशोक गांगुली को गिरफ्तार करने की मांग करने लगे। बाद में सदस्यों की समझ में आया कि हंगामा क्यों हुआ। दरअसल पश्चिम बंगाल के उस जज का नाम भी अशोक कुमार गांगुली है जिस पर यौन उत्पीड़न का आरोप है। उधर अपनी सीट पर बोलने के लिए खड़े हुए अशोक गांगुली जब बोलने लगे तो उनके मुख से निकला कि वह तो सबकुछ भूल गये कि उन्हें क्या बोलना था और अब वह याद करते हुए कुछ तो बोलेंगे ही।
22Dec-2013

गुरुवार, 19 दिसंबर 2013

अमेरिका से लगातार मिलता रहा अपमान का घूंट!

अपमान का शिकार हुए अनेक राजनयिक, मंत्री और फिल्मी हस्तियां
ओ.पी.पाल

अमेरिका में भारतीय राजनयिक देवयानी खोबरगडे के साथ की गई बदसलूकी का कोई पहला मामला नहीं है, इससे पहले अमेरिका की भारतीयों को अपमानित करने की इस नीयती का अनेक राजनयिक, मंत्री और फिल्मी हस्तियां भी शिकार हो चुकी हैं। इसके बावजूद अमेरिका के इस रवैये पर भारत सरकार ने पहली बाद कड़ा रूख अपनाया है, जिसके बाद अमेरिका के तेवरों में नरमी देखने को भी मिल रही है।
अमेरिका में देवयानी मामले पर भारत सरकार द्वारा कड़ा रूख अपनाने का तात्पर्य यह भी नहीं है कि भारत-अमेरिका के रिश्तों में तनाव आएगा। दो साल पहले पूर्व राष्ट्रपति एपीजे अब्दुल कलाम की न्यूयार्क के जेएफके हवाईअडडे पर विस्फोटकों संबंधित तलाशी लेकर अमेरिकी सुरक्षाकर्मियों द्वारा अपमान करके बाद में अमेरिका की माफी सामने आई थी। संसद में गूंजे देवयानी के मामले पर विभिन्न दलों ने जिस प्रकार से केंद्र सरकार को नसीहत दी है कि यदि वह पहले मामलों में इसी तरह का रूख अपनाते तो ऐसी नौबत न आती। अपमान करके माफी मांगना भी अमेरिका नीयती में शामिल देखा गया है। हालांकि जब भी जांच के नाम पर भारतीय हस्तियों को अमेरिका में अपमानित किया है तो भारत ने ऐतराज तो जताया, लेकिन जो रूख इस बार अपनाया है उससे अमेरिका सहमा भी है और प्रतिक्रिया भी दे रहा है।
ये हस्तियां हुई अपमान का शिकार
वर्ष 2012 में ऐसी कोई शिकायत नहीं आई, लेकिन वर्ष 2211 नवंबर में पूर्व राष्ट्रपति अब्दुल कलाम और उससे एक साल पहले चार दिसंबर 2010 को अमेरिका में तत्कालीन राजदूत मीरा शंकर की अमेरिका के जैक्सन इवर्स अंतरराष्ट्रीय हवाई अड्डे पर सुरक्षा एजेंटों ने बेहूदगी तरीके से तलाशी ली थी। इसी दौरान दिसंबर 2010 में संयुक्त राष्ट्र में भारत के राजदूत हरदीप पुरी को हयूस्टन हवाई अड्डे पर सुरक्षा जांच के नाम पर पगड़ी उतारने के लिए कहा गया। सिख धर्म से ताल्लुक रखने वाले पुरी ने जब ऐसा करने से मना कर दिया तो उन्हें कुछ समय के लिए हिरासत में ले लिया गया था। इससे पहले अगस्त 2009 में बालीवुड स्टार शाहरुख खान को अमेरिका के नेवार्क हवाई अड्डे पर रोककर अलग ले जाया गया और उनसे दो घंटे तक पूछताछ करके अपमान करने का रवैया अपनाया था। सबसे पहले अमेरिका में भारतीयों का अपमान करने का मामला तो तब सुर्खियों में आया था जब जून 2003 में भारत के तत्कालीन रक्षामंत्री जार्ज फर्नांडिज की अमेरिका के डलास हवाई अड्डे पर जामा तलाशी ली गई थी। फर्नांडिज की इसी प्रकार ब्राजील जाते समय भी तलाशी ली गई थी। हालांकि इससे पहले वर्ष 2002 में तमिल फिल्मों के सुपरस्टार कमल हासन भी अमेरिकी सुरक्षा अधिकारियों के शिकार हो चुके हैँ। इसके अलावा मलयालम फिल्मों के सुपर स्टार ममूटी को अमेरिका के जेएफके हवाई अड्डे पर अपमान के घूंट पीने को मजबूर होना पड़ा था। यह सिलसिला पहले से ही चलता रहा जब आॅस्कर पुरस्कार जीतने वाली फिल्म स्लमडॉग मिलेनियर के अभिनेता इरफान खान और प्रख्यात गायक नितिन मुकेश के पुत्र एवं अभिनेता नील नितिन मुकेश तथा न्यूयार्क फिल्म के निर्देशक कबीर खान भी अमेरिका में इसी बेहूदगी तरीके से ली गई तलाशी की चपेट में आने वालों में शामिल रहे।
19Dec-2013

बुधवार, 18 दिसंबर 2013

लोकपाल पर चर्चा में दिखा जन दबाव का असर

भ्रष्टाचार के खिलाफ उठी आवाज ने बदली राजनीतिक हवा
ओ.पी.पाल

राज्यसभा में पारित हुए लोकपाल विधेयक में बनी राजनीतिक दलों की सहमति ऐसे ही नहीं बनी। इस ऐतिहासिक पल के पीछे राजनीतिक दलों को आगामी लोकसभा चुनाव में जाने के लिए राजनीतिक माहौल बदलने के लिए कहीं न कहीं भ्रष्टाचार के खिलाफ अपने दलों की प्रतिबद्धता भी साबित करनी थी। मजबूत लोकपाल के लिए आंदोलन कर रहे समाजसेवी अण्णा हजारे का संघर्ष और उनके इस संघर्ष की बदौलत बेहद कम समय में खडी हुई राजनीतिक पार्टी आप का अभ्युदय और दो प्रमुख राजनीतिक दलों के लिए चुनौती साबित हो गए दिल्ली विधानसभा चुनाव के नतीजे भी इसका कारण माने जा रहे हैं। भ्रष्टाचार के खिलाफ चली जन मुहिम का यह असर मंगलवार को राज्यसभा में लोकपाल विधेयक पर चर्चा के दौरान भी साफतौर से देखने को मिला।
पिछले 46 साल से राजनीतिक टाल-मटोल का शिकार रहे लोकपाल विधेयक को पारित कराने के हर मौकें पर राजनीति आड़े आती रही और समाजसेवी अण्णा हजारे के पिछले करीब तीन साल से चल रहे आंदोलन ने कांग्रेसनीत यूपीए सरकार को लोकपाल विधेयक कानून का मसौदा तैयार करने के लिए मजबूर कर दिया , लेकिन सरकार के भीतर तथा कुछ राजनीतिक दलों के विरोध के कारण लोकसभा में पिछले साल पारित होने के बावजूद इसे कानून की शक्ल देने पर संकट के बादल मंडराते रहे। हाल ही में संपन्न हुए पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों के नतीजों ने कांग्रेस ही नहीं सभी राजनीतिक दलों की हवा बदल दी। खासतौर पर दिल्ली के चुनाव नतीजों ने तो राजनीतिक दलों के सामने आगामी लोकसभा चुनाव में जाने की तैयारियों को भी झटका दिया। कारण अण्णा हजारे के आंदोलन की बदौलत दिल्ली में केजरीवाल के नेतृत्व वाली आम आदमी पार्टी के प्रदर्शन ने कांग्रेस, भाजपा और अन्य सभी दलों को बदलने को मजबूर कर दिया। इन नतीजों के बाद भ्रष्टाचार के खिलाफ काननू बनाने की कवायद में प्रमुख विपक्षी दल भाजपा की पहल और सत्तारूढ़ कांग्रेस की मशक्कत के बाद सपा को छोड़कर सभी दलों ने बदलती सियासी हवा के रूख को परखा और लोकपाल विधेयक को पारित कराने की ठानी। इस बात को भाजपा नेता अरूण जेटली ने भी चर्चा के दौरान सदन में माना कि आज हवा बदली है और राजनीतिक माहौल भी बदला है, तो सरकार की समझ भी थोड़ी बदली है। आगामी लोकसभा चुनाव में जाने से पहले ज्यादातर दलों के सदस्यों ने चर्चा के दौरान इशारों इशारों में ही दिल्ली विधानसभा चुनावों में आम आदमी पार्टी को मिली बेहतरीन सफलता का जिक्र करते हुए अपनी बदली सोच के संकेत दिये हैं। इसे बदले राजनीतिक माहौल में राज्यसभा में हुई चर्चा के दौरान अण्णा हजारे के संघर्ष और दिल्ली चुनावी नतीजों का असर साफ नजर आया, जिसका नतीजा था कि उच्च सदन ने इस विधेयक पर संशोधनों के साथ सर्वसम्मिति से मुहर लगा दी। इसी के साथ समाजसेवी अण्णा हजारे को भी उनके संघर्ष का सकारात्मक परिणाम मिल गया।
अंग्रेजी वाले भी हिंदी में दहाडे
उच्च सदन में लोकपाल विधेयक पर चर्चा के दौरान वे नेता भी हिंदी में दहाड़ते नजर आए जो ज्यादातर अंग्रेजी में बोलते रहे हैं। हिंदी में बोलने का अर्थ भी यही माना जा रहा है कि वे अपनी बात को आम आदमी तक पहुंचाना चाहते हैं। माकपा के सीताराम येचुरी तो स्वयं यह भी कह गये कि वे साधारण हिंदी में लोकपाल पर चर्चा कर रहे हैं। वहीं भाजपा नेता अरूण जेटली, बसपा के सतीश मिश्रा आदि ऐसे नेताओं ने हिंदी में बहस की। कुछ दलों के नेताओं ने अपनी टूटीफूटी हिंदी का उपयोग भी किया, जो अक्सर अंग्रेजी में बोलते रहे हैं। माना जा रहा है कि इस विधेयक पर उच्च सदन में हो रही चर्चा पर देश के आम आदमी की नजरें थी।
18Dec-2013

शुक्रवार, 13 दिसंबर 2013

भाजपा ने रोका संसद सत्र की अवधि घटाने का रास्ता!

अपनों से घिरी सरकार को राजग ने लगाया मरहम
ओ.पी.पाल

कांग्रेसनीत यूपीए सरकार संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने के बजाए कम करने का मन बना रही थी, लेकिन भाजपा सरकार के इस निर्णय के आड़े आई और सरकार के प्रति नरम रूख अपनाते हुए उसे लोकपाल और तेलंगाना संबन्धी विधेयकों को पारित कराने के साथ अन्य आवश्यक कामकाज को भी निपटाने में सहयोग के लिए तैयार है। अब यह यूपीए सरकार पर है कि वह भाजपा पर कितना भरोसा कर सकती है। सरकार के सिर पर अपने ही सांसदों का लाया अविश्वास प्रस्ताव तलवार की तरह लटक रहा है।
शीतकालीन सत्र शुरू होने से पहले लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार की अध्यक्षता में हुई सर्वदलीय बैठक में अमूनन सभी दलों ने इस सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग की थी। उस समय सरकार की ओर से आए संकेत से साफ हो गया था कि संसद की अवधि बढ़ाने का निर्णय पांच राज्यों में हुए विधानसभा चुनावों के नतीजों पर टिका है। इनमें से चार राज्यों में पस्त हुई कांग्रेस की जैसे ही संसद में भी मुश्किलें बढ़ी, तो सरकार ने शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने के बजाए कम करने का मन बना लिया था। इसका कारण यह माना गया कि अभी तक संसद में विभिन्न मुद्दों पर गतिरोध और हंगामा बरकरार है जिसके कारण दोनों सदनों की कार्यवाही पूरे दिन के लिए स्थगित करनी पड़ रही है। चूंकि सरकार के पास विपक्ष के मुद्दों का कोई ठोस जवाब नहीं है और कांग्रेस के ही सदस्य लोकसभा में अपनी सरकार के खिलाफ अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस दे चुके हैं, तो अपने सांसदों से दिक्कत का सामना कर रही सरकार आजकल में ही संसद की कार्यवाही स्थगित करने का मन बना चुकी थी। इस बात की पुष्टि गुरूवार को लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने भी यह कहते हुए की है कि संसदीय कार्यमंत्री का इस बाबत उन्हें फोन आया, जिस पर भाजपा ने सत्र की अवधि कम करके इसे स्थगित करने का विरोध किया। सुषमा स्वराज का कहना था कि सरकार यह मान चुकी थी कि दोनों सदनों में अब कोई कामकाज होने वाला नहीं है, लेकिन भाजपा ने सरकार को सर्वदलीय बैठक में किये गये सहयोग के वादे को निभाने की बात कही और कहा कि जेपीसी को छोड़कर सदन में राजग शांत है ओर कांग्रेस तथा यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दल ही हंगामा करने पर उतारू है। भाजपा ने सरकार के संसद सत्र की अवधि कम करके स्थगित करने के रास्ते को रोककर आश्वासन दिया कि वह सदन में लोकपाल और तेलंगाना वाले महत्वपूर्ण विधेयक पास कराये जिसमें राजग उसका सहयोग करेगा। विपक्ष के इस भरोसे पर ही शायद संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ को यह बयान देने के लिए मजबूर होना पड़ा कि संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि में कटौती करने की कोई योजना नहीं है क्योंकि लोकपाल विधेयक समेत कई अन्य महत्वपूर्ण कार्यों को किया जाना है। वहीं सरकार अन्य कार्यों के लिए  समय तय किया है और प्राथमिकताओं वाले कार्य को इसी सत्र में निपटाएगी।
अनिश्चितकाल के लिए स्थगन  थे पूरे संकेत
संसद में दिक्कतों से जूझ रही कांग्रेसनीत सरकार की सबसे ज्यादा अविश्वास प्रस्ताव का नोटिस को लेकर हलकान है और दूसरी ओर चार राज्यों के चुनाव नतीजों ने जिस प्रकार कांग्रेस की हिम्मत तोड़ दी, उससे लगातार अटकले यही थी कि संसद का सत्र शुक्रवार को अनिश्चितकाल के लिए स्थगित किया जा सकता है। इन सांकेतिक अटकलों को लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार ने गुरूवार को उस समय बल दे दिया, जब हंगामे के बीच ज्यादा से ज्यादा कामकाज निपटाए और हंगामे के कारण बाद में उन्होंने सदन की कार्यवाही को शुक्रवार 12 बजे तक स्थगित करने की घोषणा कर दी। जबकि संसद की कार्यवाही 11 बजे शुरू होती है। इसलिए गुरूवार को संसद के गलियारे में भी इन अटकलों का बाजार गर्म रहा।
13Dec-2013

मंगलवार, 10 दिसंबर 2013

दिल्ली में दागियों पर खेला गया दांव!

हर्षवर्धन व केजरीवाल समेत 25 विधायक दागी
ओ.पी.पाल

दिल्ली विधानसभा के लिए भले ही खंडित जनादेश आया हो, लेकिन विधानसभा चुनाव में जीत कर आए 70 विधायकों में इस बार 25 विधायक दागियों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिनमें 15 विधायक ऐसे हैं जो फिर से निर्वाचित हुए हैं। इन दागी धायकों में सर्वाधिक 17 विधायक भाजपा के हैं तो आम आदमी पार्टी ने दागियों पर दांव खेला और उसके ऐसे तीन विधायक जीते हैं।
दिल्ली विधानसभा चुनाव के त्रिशंकू नतीजों के बाद जो तस्वीर सामने आई हैं, उसमें 70 सीटों पर जीतकर निर्वाचित विधायकों में से 25 विधायकों पर आपराधिक दाग लगा हुआ है। हालांकि वर्ष 2008 के चुनाव में कांग्रेस के 15 समेत ऐसे विधायकों की संख्या 29 थी, जिनमें छह पर गंभीर मामले लंबित थे। देश में चुनाव सुधार के लिए कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन आफ डेमोक्रेटिक रिफार्म्स ने इन सभी निर्वाचित विधायकों का उनके द्वारा चुनाव आयोग में दाखिल शपथपत्रों का विश्लेषण किया है। इस विश्लेषण के बाद हुए खुलासे से कहा जा सकता है कि दिल्ली विधानसभा में दाखिल होने के लिए निर्वाचित विधायकों में 25 यानि 36 प्रतिशत आपराधिक छवि वाले हैं, जिनमें से 20 के खिलाफ संगीन मामले लंबित हैं । इनमें सर्वाधिक 32 सीटें जीतने वाली भाजपा के 17 विधायक शामिल हैं, जबकि दूसरे पायदान पर आम आदमी पार्टी के तीन विधायक दागियों की सूची में हैं। इसके अलावा कांग्रेस के दो, शिरोमणि अकाली दल, जद-यू के एक-एक के साथ एक मात्र विजयी निर्दलीय विधायक पर भी आपराधिक दाग लगा हुआ है। दिल्ली विधानसभा में दोबारा निर्वाचित होकर आए 22 विधायकों में 15 विधायकों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित है, जबकि वर्ष 2008 के चुनाव में इनमें से केवल दस विधायकों के खिलाफ भी ऐसे दाग थे।
प्रमुख दागियों में आसिफ मोहम्मद पर 68 मामले
दिल्ली विधानसभा चुनाव जीतकर आए कांग्रेस के ओखला के विधायक आसिफ मोहम्मद के खिलाफ सर्वाधिक 55 मामले लंबित हैं, जिनमें 14 मामले गंभीर धाराओं में हैं। इसके बाद दूसरे पायदान पर जद-यू के टिकट से निर्वाचित हुए मटियामहल के विधायक शुएब इकबाल हैं, जिनके खिलाफ 8 संगीन मामलों समेत 55 मामले लंबित हैं। इसके अलावा भाजपा के हर्ष वर्धन 19 के साथ मोहन सिंह बिष्ट व कुलवंत राणा 16-16, कांग्रेस के जय किशन 8 भी शामिल है। आम आदमी पार्टी के तीन दागियों में पार्टी प्रमुख एंव नई दिल्ली से निर्वाचित अरविंद केजरीवाल के खिलाफ तीन संगीन मामलों समेत 39 मामले लंबित चल रहे हैं। इसी पार्टी के पडपड़गंज से निर्वाचित हुए मनीष सिसौदिया के खिलाफ 25 मामले लंबित हैं जिनमें दो मामले गंभीर धाराओं में लंबित हैं। आप के रोहणी से निर्वाचित राजेश गर्ग के खिलाफ भी दस मामले हैं जिनमें दो गंभीर हैं।
करोड़पति विधायकों ने बाजी मारी
रविवार को जिन चार राज्यों के चुनाव के नतीजे सामने आएं हैं उनमें दिल्ली में करोड़पति नेताओं ने बाजी मारी है और 70 में से 51 विधायक कुबेरपतियों की सूची मेें शामिल हैं, जबकि वर्ष 2008 में चुनाव में ऐसे विधायकों की संख्या 47 थी। यानि दिल्ली में विजयी रहे विधायकों में से तीन चौथाई की संपत्ति करोड़ों में है। इनमें भाजपा के मुख्यमंत्री के दावेदार हर्षवर्धन और आप के प्रमुख अरविंद केजरीवाल भी शामिल हैं। सबसे ज्यादा 235.51 करोड़ की संपत्ति वाले राजौरी गार्डन से निर्वाचित शिरोमणी अकाली दल के मनजिन्दर सिंह सिरसा का नाम टॉप पर हैं। हालांकि इन करोड़पति विधायकों में आधे से ज्यादा भाजपा के नेताओं के नाम करोड़पतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं।
10Dec-2013

राज्यसभा भी दागियों से अछूती नहीं!


कांग्रेस के सर्वाधिक दस सदस्यों के खिलाफ मामले लंबित
राज्यसभा में जहां दो तिहाई सांसद करोड़पतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं, वहीं उच्च सदन दागियों से भी अछूता नहीं है, जहां 227 सदस्यों के विश्लेषण के बाद 38 सांसदों के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं, इनमें सर्वाधिक कांग्रेस के सांसद शामिल हैं।
देश में चुनाव सुधार के लिए सर्वेक्षण करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन आॅफ डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स के संस्थापक प्रो. जगदीप छोकर ने बताया कि एडीआर ने उच्च सदन में 227 सांसदों के शपथपत्रों का विश्लेषण किया है, जिनमें 38 सदस्य ऐसे हैं जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। इन 38 दागियों में 15 सदस्यों के खिलाफ संगीन मामले दर्ज हैं जो विभिन्न अदालतों में लंबित हैं। जिन 227 सदस्यों का विश्लेषण किया गया है उनमें कांग्रेस के 69 में से 10 सदस्य दागियों की सूची में शामिल हैं, जबकि भाजपा के 47 में सात, बसपा के 15 और शिवसेना के के चार में से चार-चार, अन्नाद्रमुक के सात में से दो, डीएमके व एनसीपी के छह-छह में दो-दो, तेलगू देशम पार्टी के चार में दो सदस्य इस फेहरिस्त में शामिल हैं। इनके अलावा सीपीएम के 11, जदयू व तृणमूल कांग्रेस के नौ-नौ, राजद के दो तथा निर्दलीय छह में एक-एक सदस्य इन दागी सदस्यों में शामिल है। जहां तक 15 संगीन मामलों में आरोपित सदस्यों का सवाल है उसमें भाजपा के चार, कांग्रेस के तीन, डीएमके के दो के अलावा बसपा, सीपीएम, एडीएमके, तेदेपा, शिवसेना और निर्दलीय में एक-एक सदस्य शामिल है।
राज्यों में महाराष्ट्र अव्वल
उच्च सदन में 38 दागी सदस्यों में सर्वाधिक दस सदस्य महाराष्ट्र राज्य से हैं, जहां से इस सदन में कुल 19 सदस्य हैं। इसके बाद उत्तर प्रदेश दूसरे पायदान पर हैं जहां से 28 सदस्यों में से छह, तमिलनाडु से 18 में चार, बिहार से 16 और आंध्र प्रदेश से 17 में से तीन-तीन, छत्तीसगढ़ से चार में से दो, कर्नाटक से 11 व केरला से नौ में से दो-दो सदस्य दागियों की सूची में शामिल हैं। जबकि दिल्ली, राजस्थान, झारखंड, मध्य प्रदेश, पश्चिम बंगाल व हरियाणा से निर्वाचित राज्यसभा सदस्यों में एक-एक के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं।
इनके खिलाफ दर्ज हैं संगीन मामले
राज्यसभा में बसपा के प्रो. एसपी सिंह बघेल पहले पायदान पर है जिसके खिलाफ हत्या के प्रयास का मामला दर्ज है। इनके अलावा इन 15 संगीन मामलों वाले सदस्यों में कांग्रेस के तीन सदस्यों में अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री एवं कर्नाटक से निर्वाचित सदस्य के. रहमान खान के खिलाफ धोखाधड़ी के दो मामले दर्ज हैं, जबकि दिल्ली से प्रवेज हाशमी व आंध्र प्रदेश से वी. हुनमंत राव इस श्रेणी में हैं। भाजपा के चार सदस्यों में मध्य प्रदेश से फग्गन सिंह, छत्तीसगढ़ से शिव प्रताप सिंह, यूपी से विनय कटियार व बिहार से धर्मेन्द्र प्रधान के खिलाफ संगीन मामला लंबित है। डीएमके के तमिलनाडु से टीएम सेल्वेगनपति व श्रीमती कनिमोझी का नाम शामिल है। जबकि सीपीएम के केरला से केएन बालगोपाल, एडीएमके के तमिनाडु से थीरू टी. रथीनवेल,शिवसेना के महाराष्ट्र से संजय राउत, तेदेपा के आंध्र प्रदेश से गुंडु सुधारानी के अलावा कर्नाटक से मनोनीत सदस्य डा. विजय माल्या इस फेहरिस्त में शामिल हैं।
08Dec-2013

शनिवार, 7 दिसंबर 2013

सांप्रदायिक हिंसा बिल पर बवाल से बैकपुट सरकार!

नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री की चिठ्ठी के बाद मसौदे में बदलाव का फैसला
ओ.पी.पाल
संसद के शीतकालीन सत्र के एजेंडे में शामिल न होते हुए भी सरकार की ओर से इसी सत्र में सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक लाने की सुगबुगाहट के बीच विपक्षी ही नहीं, बल्कि यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन दे रहे दलों के बवाल के सामने इस मुद्दे पर सरकार को बैकपुट पर आने के लिए मजबूर होना पड़ा है। भाजपा के पीएम उम्मीदवार नेरन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री को लिखे पत्र के बाद केंद्र सरकार ने इस विधेयक के मसौदे में बदलाव करने का निर्णय ले लिया है।
संसद परिसर में गुरूवार को जैसे ही गृहमंत्री सुशील कुमार शिंदे ने कहा कि सरकार इसी सत्र में सांप्रदायिक हिंसा रोधी विधेयक लेकर आ रही है, तो इस मुद्दे पर विपक्षी दलों के तेवर गर्म हुए और इस मुद्दे पर सियासी बवाल शुरू हो गया। भाजपा के पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी ने भी पीएम को विरोध स्वरूप चिठ्ठी लिखी। इस बवाल के बाद शीतकालीन सत्र में विवादास्पद सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक पर हंगामे के आसार बढ़ते देख केंद्र सरकार ने विधेयक के मसौदे में बदलाव करने का फैसला कर लिया है, जिसमें भाजपा की ओर से पीएम उम्मीदवार नरेन्द्र मोदी की प्रधानमंत्री को लिखी चिठ्ठी के मजमून ने तो सरकार के तेवर नरम ही कर दिये। भाजपा तो पहले से ही भाजपा इस विधेयक को भेदभावपूर्ण और संघीय ढांचे पर हस्तक्षेप करार देकर विरोध करती आ रही थी, वहीं इस विधेयक पर मोदी के बयान का समर्थन करके शिवसेना ने भी सरकार को घेरा, तो इससे पहले पश्चिम बंगाल की मुख्यमंत्री ममता बनर्जी और तमिलनाडु की मुख्यमंत्री जे. जयललिता भी इस प्रस्तावित विधेयक को प्रधानमंत्री को पत्र लिखकर विरोध जता चुकी हैं। दोनों सीएम का मानना है कि इस बिल के लागू होने से राज्य के मामलों में केंद्र का दखल बढ़ जाएगा। यही नहीं इस विधेयक को एजेंडे में शामिल न होने के बावजूद इसी सत्र में लाने पर अड़ी सरकार को बाहर से समर्थन कर रहे समाजवादी पार्टी और बहुजन समाज पार्टी जैसे दलों का भी विरोध झेलना पड़ेगा, जिनके साथ वामपंथी दलों ने भी साफ कर दिया है कि मौजूदा स्वरूप में उन्हें यह विधेयक स्वीकार नहीं है। ऐसे में इस विधेयक पर चौतरफा घिरी यूपीए सरकार को आखिर बैकपुट पर आना पड़ा और सरकार इस विधेयक में संशोधन करके नया मसौदा बनाने के लिए तैयार हो गई है। प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने अब इस बवाल को देखते हुए कहा कि सरकार इस विधेयक को आमसहमति बनने के बाद ही संसद में लायेगी। इससे पहले गुरूवार हो ही अल्पसंख्यक मामलों के मंत्री के. रहमान खान ने भी संसद के मौजूदा सत्र में ही सांप्रदायिक हिंसा रोकथाम विधेयक के आसानी से पारित होने की उम्मीद जताते हुए कहा कि यह विभाजनकारी विधेयक नहीं है, लेकिन इसे लेकर आम सहमति बनाने के प्रयास जारी हैं।
इसलिए है मौजूदा विधेयक का विरोध
सरकार द्वारा लाये जाने वाले मौजूदा सांप्रदायिक हिंसा रोधी विधेयक को लोने का मकसद केंद्र व राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों को सांप्रदायिक हिंसा को निष्पक्षता के साथ रोकने के लिए जिम्मेदार बनाना है। इस विधेयक में केंद्र द्वारा राष्ट्रीय सांप्रदायिक सौहार्द, न्याय और क्षतिपूर्ति प्राधिकरण का गठन भी प्रस्तावित है। इसमें हिंसा वाले राज्य के मुकदमे दूसरे राज्य में ट्रांसफर करने और गवाहों की सुरक्षा के लिए कदम उठाने का भी प्रस्ताव है। हालांकि यह विधेयक गृहमंत्रालय संबन्धी समिति के पास है, लेकिन इसमें शामिल इन प्रस्तावों का भाजपा समेत अनेक दल विरोध कर रहे हैं।
नौकरशाह भी नाखुश
सूत्रों की माने तो गृह मंत्रालय और कानून मंत्रालय के अधिकारियों ने विधेयक के मसौदे में कुछ क्लॉज पर आपत्ति दर्ज कराई है। इनमें सांप्रदायिक हिंसा फैलने पर नौकरशाहों की जिम्मेदारी शामिल है। सूत्रों का कहना है कि सामान्य ड्यूटी निभाने में ये बाधा पैदा करेगा। विधेयक का प्रपोजल व्यापक तौर पर सांप्रदायिक एवं लक्षित हिंसा विधेयक 2011 के प्रावधानों पर केन्द्रित है। गौरतलब है कि इस विधेयक के मसौदे को यूपीए अध्यक्ष सोनिया गांधी के नेतृत्व वाली राष्ट्रीय सलाहकार परिषद ने तैयार किया था। इस मौजूदा विधेयक के प्रस्ताव के मुताबिक, धार्मिक या भाषाई अल्पसंख्यक, अनुसूचित जाति और अनुसूचित जनजाति के लोगों को निशाना बनाकर की गई हिंसा को रोकने और कंट्रोल करने के लिए निष्पक्ष और भेदभावरहित ढंग से अधिकारों का इस्तेमाल करना केंद्र, राज्य सरकारों और उनके अधिकारियों की ड्यूटी का अनिवार्य हिस्सा होगा।
06Dec-2013

विपक्ष की तैयारियों से मुश्किल में होगी सरकार!

संसद का शीतकालीन सत्र आज से
ओ.पी.पाल

गुरुवार से शुरू हो रहा संसद का शीतकालीन सत्र भले ही देखने में छोटा नजर आ रहा हो, लेकिन इस संक्षिप्त सत्र में सरकार ने ज्यादातर ऐसे बिलों को पारित कराने का मन बनाया हैं जो एक सदन से पारित हो चुके हैं और उन्हें दूसरे सदन से पारित कराना चाहती है, लेकिन विपक्षी दलों की लामबंदी के सामने सरकार के लिए यह काम इतना आसान नहीं है।
पंद्रहवीं लोकसभा का सबसे छोटे संसद सत्र में कांग्रेसनीत यूपीए सरकार बड़े और लंबित महत्वपूर्ण विधेयकों को पारित कराकर लोकसभा चुनाव पर निशाना साधने का प्रयास करेगी, लेकिन इस छोटे सत्र पर विपक्षी दलों ने पहले ही सवालिया निशान खड़े कर दिये हैं और कई महत्वपूर्ण बिलों पर सरकार के साथ टकराव भी बरकरार है। इसलिए इस संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता कि गुरूवार से आंरभ हो रहे संसद का शीतकालीन सत्र हंगामेदार होगा। सरकारी एजेंडे में 38 विधेयक शामिल हैं जिनमें ऐसे महत्वपूर्ण बिल हैं जो विपक्ष के टकराव के चलते सरकार पिछले कई सालों से उन पर संसद की मुहर नहीं लगवा सकी है। इनमें आठ बिल ऐसे हैं जो राज्यसभा में पारित हो चुके हैं लेकिन लोकसभा में उन्हें पारित कराना बाकी है। इसी प्रकार लोकसभा में पारित हो चुके सात बिलों को पारित कराने के लिए सरकार ने इस सत्र के एजेंडे में शामिल किया है। इस सत्र के लिए तीन अध्यादेशों को विधेयक का रूप देने के लिए शामिल किया गया है। आगामी चुनाव में जाने से पहले सरकार ने लोकसभा में दस और राज्यसभा में तीन विधेयकों को पेश कर उन्हें पारित कराने के लिए मन बनाया है, जबकि पांच नये बिल भी सरकार इस सत्र में लेकर आ रही है। भाजपा ने पहले ही ऐलान कर दिया है कि इस सत्र में वह सबसे पहले कोयला घोटाला और सीबीआई के दुरूपयोग के साथ अनुच्देद 370 पर अपने रूख को भी रखेगी और बार-बार चक्रवात आने के मामले सहित महंगाई, किसानों की समस्या जैसे मुद्दे भी उठाएगी। उधर वामपंथी दलों ने पहले ही दिन महंगाई पर स्थगन प्रस्ताव लाने का ऐलान करके सरकार को चुनौती दी है। ऐसे में विपक्षी दलों से चौतरफा घिरी यूपीए सरकार के लिए शीतकालीन सत्र में आड़े आने वाली मुश्किलों के चलते अपने इरादों में सफल होना आसान नहीं होगा।
ये रहेगी सरकार की प्राथमिकता
इस सत्र में सरकार की प्राथमिकता लोकपाल बिल, महिला आरक्षण बिल और तेलंगाना जैसे महत्चपूर्ण बिलों को लेकर है, वहीं दूसरी ओर वह अपने आर्थिक सुधार से जुड़े एजेंडों, जिसमें इंश्योरेंस अमेंडमेंट बिल और डायरेक्ट टैक्स कोड बिल को भी पास कराना चाहेगी। सरकार ने इस सत्र के लिए संभावित सूची बनाई है, उसमें तमाम बिलों को पेश कराना और पास कराना शामिल है। वहीं लोकसभा में सरकार की कोशिश कोल माइंस अमेंडमेंट बिल,पंचायती राज में महिलाओं के आरक्षण से जुड़ा संविधान संशोधन बिल, तय समय सीमा के अंदर गुड्स-सर्विस की डिलिवरी और शिकायतों के निपटारे के लिए राइट्स आॅफ सिटिजंस बिल 2011 को पास कराने की होगी। तो राज्यसभा में जुडिशल स्टैंडर्ड एंड अकाउंटेबिलिटी बिल और विसलब्लोअर प्रोटेक्शन बिल सरकार की पहली प्राथमिकता होगी। वैसे तो सरकार तेलंगाना को पृथक राज्य बनाने वाला बिल भी प्राथमिकता पर है, तो वहीं मैरिज लॉ बिल, मोटर वीइकल अमेडमेंड बिल, स्ट्रीट वेंडर बिल और एजुकेशनल ट्रिब्यूनल बिल को भी सरकार इसी सत्र में आगे बढ़ाने का प्रयास करेगी।
05Dec-2013

भोज में मिठास नहीं घोल सकी सरकार!

सर्वदलीय दल की बैठक में विपक्ष लामबंद
संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग पर सरकार ऊहापोह में
ओ.पी.पाल

लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अमूमन सभी दलों ने पांच दिसंबर से आरंभ हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग उठाई। विपक्षी दलों के इस सुझाव पर सरकार किसी भी कीमत पर सत्र की अवधि बढ़ाने को तैयार नहीं है स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी स्पष्ट कर दिया है कि इस छोटे सत्र में सरकार सभी दलों के सहयोग से सारे जरूरी कामकाज निपटाने का प्रयास करेंगे।
संसदीय पुस्कालय में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के अंतिम क्षणों में पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी दोपहर के भोजन के दौरान अमूमन सभी दलों के नेताओं के साथ सहयोग के लिए चर्चा की, लेकिन ज्यादातर दलों ने तर्क दिया कि 38 विधेयकों के लिए 12 बैठकें प्रर्याप्त नहीं हैं इसलिए शीतकालीन सत्र की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। हालांकि इससे पहले बैठक को बीच में छोड़कर कुछ देर के लिए बाहर गये संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने मीडिया को विपक्षी दलों के सत्र की अवधि बढ़ाने के सुझाव पर सरकार की ओर से विचार करने के बारे में कोई आश्वासन तो नहीं दिया, लेकिन इतना जरूर कहा कि राज्यसभा के नेताओं से विचार विमर्श करने के बाद ही सरकार इस सुझाव के बारे में निर्णय लेगी। लेकिन जिस तरह से मीडिया के सवालों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इस छोटे सत्र में ही सरकार सभी जरूरी कामकाज निपटाने के लिए सभी दलों का सहयोग हासिल करेगी से संकेत मिल गये हैं कि सरकार शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार ने माना कि सर्वदलीय बैठक में लगभग सभी दलों ने संसद सत्र की अवधि बढ़ाने का सुझाव दिया है और वह भी इतने छोटे सत्र में एजेंडे में शामिल विधेयकों की संख्या और अन्य जरूरी विधायी कार्यो के निपटान को लेकर ऊहापोह की स्थिति को स्वीकारती नजर आई, लेकिन उन्होंने कहा कि संसद सत्र की अवधि बढ़ाने का फैसला सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
किसी भी मुद्दे पर नहीं बनी आम सहमति संसद सत्र शुरू होने से पहले परांपरागत रूप से बुलाई जाती रही सर्वदलीय बैठक का मकसद यही है कि सभी दलों के साथ चर्चा करके संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाया जाए और विवादित मुद्दों पर आमसहमति बनाने का प्रयास किया जाए, लेकिन मंगलवार को बुलाई गई बैठक में संसद सत्र की कम बैठÞकों को नाकाफी करार देते हुए विपक्षी दलों ने सरकार पर तंज तक कसे। वहीं किसी भी मुद्दे पर सरकार आमसहमति नहीं बना सकती है। सीपीआई सांसद गुरूदास दास गुप्ता ने तो यहां तक कह दिया कि यूपीए सरकार संसद के साथ भी मजाक कर रही है। जबकि हर पार्टी किसी न किसी मुद्दे पर संसद सत्र के दौरान चर्चा करना चाहती है, जिसका आश्वासन देने में सरकार पीछे तो नहीं है, लेकिन सवाल है कि इतनी कम बैठकों में भारी भरकम एजेंडा और अन्य विधायी कार्य संभव नहीं हैं।
आठ दिन ही मिलेंगे
संसद के शीतकालीन सत्र के लिए सरकारी एजेंडे में 38 विधेयक सूचीबद्ध किये गये हैं, लेकिन संसद के इस सत्र के पहले दिन दोनों सत्रों में कामकाज होने की संभावना नहीं है। इसका कारण है कि लोकसभा के भाजपा सांसद दिलीप सिंह जूदेव तथा राज्यसभा के सपा सदस्य मोहन सिंह का निधन हो चुका है, जिन्हें श्रद्धांजलि के बाद परंपरा के अनुसार सदन की बैठक स्थगित करने की संभावना है। अब बचे 11 दिन इनमें तीन शुक्रवार है और यह दिन गैर सरकारी कामकाज के लिए निर्धारित है। इसके बाद केवल आठ दिन की बैठक शेष रह जाती हैं और उनमें 38 विधेयकों और विधायी कार्यो के अलावा अन्य जरूरी कामकाज निपटाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
सरकार की प्राथमिकता तेलंगाना बिल एजेंडे से नदारद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं ने गुरूवार से आरंभ हो रहे संसद शीतकालीन सत्र में तेलंगाना की स्थापना के लिए विधेयक को प्राथमिकता बताया, लेकिन सरकार के शीतकालीन सत्र के लिए जारी हुई 38 विधेयकों की सूची में तेलंगाना विधेयक नदारद है।
सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने वैसे तो वित्तीय विधेयकों पर विभिन्न दलों के साथ बातचीत का विकल्प खुला रखा है और इस सत्र की प्राथमिकता वाले विधेयकों में उन्होंने तेलंगाना की स्थापना के लिए विधेयक को पारित कराने की प्रतिबद्धता रखी है, लेकिन इस सत्र के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय से जारी विधेयकों की सूची में तेलंगाना विधेयक सूचीबद्ध नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ भी उन्हीं के सुर में तेलंगाना की प्राथमिकता पर बोलते नजर आए। जहां तक सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के इस सत्र में लाए जाने का सवाल है उसकी इसलिए संभावना नहीं है क्योंकि वह अभी गृह मंत्रालय की स्थाई समिति में विचाराधीन है।
महंगाई पर विपक्ष लामबंद
सर्वदलीय बैठक में लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि इस सत्र के लिए विपक्ष के पास कई मुद्दे हैं जिन पर सरकार घिरती नजर आएगी। उन्होंने सीपीआई के गुरूदास दासगुप्ता के सुर में कहा कि सत्र के पहले दिन बढ़ती महंगाई पर स्थगन प्रस्ताव लाया जाएगा। सूत्रो के अनुसार अन्य दल भी इस मुद्दे पर इन दलों के प्रस्ताव के समर्थन में सरकार के खिलाफ हैं। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि अगप ने भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता से संबंधित विधेयक पेश किए जाने का भी विरोध किया है ,उनकी पार्टी भी विरोध करेगी, हालांकि सांप्रदायिकता विरोधी विधेयक के इस सत्र में आने की संभावनाएं नहीं है, लेकिन भाजपा भेदभाव वाले इस विधेयक को बिना संशोधन के किसी कीमत पर पारित नहीं होने देगी। इसी प्रकार वामपंथी पार्टियां मुजμफरनगर दंगों को लेकर यूपी समेत देश में बिगड़ती सांप्रदायिक स्थिति, आर्थिक संकट, महंगाई और देश में बेरोजगारी, कर्मचारियों की हड़ताल जैसे मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग की है।
कामकाज के आठ दिन, 38 बिल
संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने शीतकालीन सत्र छोटा होने के बावजूद कहा कि सरकार अहम लंबित विधेयकों को पारित कराने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता उन विधेयकों को पारित कराने की है, जो एक सदन में पारित हो गए हैं, लेकिन दूसरे सदन में लंबित हैं। इस सत्र में सिर्फ 12 बैठकें होगी, जिनमें से तीन दिन गैर-सरकारी कामकाज के लिए होंगे। कमलनाथ ने कहा कि अगर समय बचा, तो दूसरे दलों की मांगों पर अन्य मुद्दों पर भी चर्चा कराने का हमारा प्रयास होगा। उन्होंने दावा किया कि सभी दलों ने कहा है कि वे चाहते हैं कि सदन सुचारू रूप से चले। उन्होंने कहा कि विधेयकों को पारित कराने के लिए जरूरत हुई तो हम देर तक बैठेंगे।
महिला आरक्षण के पक्ष में मीरा
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में वर्ष 2009 में ही पारित हो चुका है। दो साल पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मांग उठी थी कि इस विधेयक पर आमसहमति बनाई जाए और उन्होंने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, लेकिन तीन-चार दल इस विधेयक पर विरोध करते नजर आए और आम सहमति नहीं बन सकी। इसलिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण बिल पर सरकार के साथ राजनीतिक दलों को आगे आकर आमसहमति बनाने की जरूरत है, क्योंकि सदन में बार-बार इस विधेयक को पारित कराने की मांग उठ चुकी है। 
04Dec-2013

सोमवार, 2 दिसंबर 2013

किसान राजनीति से गायब हुई गन्ने की मिठास!

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में कै्रशर उद्योग के साथ कोल्हू भी संकट में
ओ.पी.पाल

पश्चिमी उत्तर प्रदेश में गन्ने के बकाया भुगतान और और सरकार के साथ गतिरोध के कारण चीनी मिलों में पराई शुरू न होने के कारण गन्ना किसानों का आंदोलन बादस्तूर जारी है, जिसमें किसानों की राजनीति करने राजनीतिक दलों ने गन्ना किसानों के आंदोलन का समर्थन करते हुए यूपी की सपा सरकार चौतरफा घेरने की रणनीति तैयार कर ली है। इस गन्ने की राजनीति और सरकार की नीतियों के कारण गन्ने की मिठास गायब होती नजर आ रही है।
पश्चिमी उत्तर प्रदेश में ही नहीं बल्कि यूपी के अन्य क्षेत्रों में भी चीनी मिलों में पेराई सत्र अभी तक शुरू नहीं हो सका है। किसानों के प्रति दूरदर्शिता की कमी और सरकार की गलत नीतियों के कारण उत्तर प्रदेश का चीनी उद्योग तो बर्बादी के कगार पर है, वहीं गन्ना किसाना भी बेमौत इस राजनीति के चक्रव्यूह में फंसा हुआ है। यूपी सरकार ने भले ही चीनी मिल मालिकों को पेराई सत्र चार दिसंबर तक चलाने का अल्टीमेटम दिया हो, लेकिन गन्ना व चीनी की इस समस्या ने करोड़ों किसानों और इस उद्योग से जुड़े लाखों कामगारों की रोजी रोटी पर भी संकट पैदा कर दिया है। गन्ना किसानों के बकाया भुगतान न होने और चीनी मिलों का पेराई सत्र शुरू न होने के कारण किसानों के सामने गेंहू की बुआई को भी प्रभावित कर दिया है। मसलन पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसान और यहां की अर्थव्यवस्था को गन्ने और चीनी पर आये संकट ने संकट के मुहाने पर खड़ा कर दिया है। इसका कारण यह भी है कि चीनी उद्योग की स्थिति का आकलन करें तो पिछले दो वर्षों में गन्ने के दाम अस्सी रुपये कुंतल बढेÞ हैं। इसके आधार पर चीनी के दाम आठ रुपये प्रतिकिलो बढ़ने चाहिएं थे। इसके उलट चीनी के दाम सात रुपये प्रतिकिलो कम हुए हैं। भाकियू प्रवक्ता राकेश टिकैत का कहना है कि चीनी मिल प्रबंधन के इंकार के बाद गन्ने का मामला अब जनता की अदालत में जा चुका है, जिसका फैसला अब जनता ही करेगी। किसानों के साथ यह मामला सभी कामगारों, व्यापारियों और दूसरे लोगों के रोजगार से जुड़ा है। उधर बीएम सिंह कोर्ट गए जरूर हैं, लेकिन अभी तो सरकार पिछले बकाया को लेकर हाईकोर्ट के आदेश का पालन भी नहीं करा पाई है। गन्ने की समस्या को लेकर सरकार भी फंसी हुई है वहीं भारतीय किसान यूनियन के साथ भाजपा तथा रालोद समेत तमाम राजनीतिक दल भी इस मुद्दे को लेकर अपने सियासी हमलों की धार तेज कर रहे हैं। यही नहीं ममता के नेतृत्व वाली तृणमूल कांग्रेस ने भी यूपी में गन्ना राजनीति की शुरूआत कर दी है।
दम तोड़ चुके हैं के्रशर उद्योग
एक समय था जब समूचे पश्चिमी उत्तर प्रदेश में हर दस किमी पर औसतन दो क्रेशर होते थे और अकेले मुजफ्फरनगर जिले में आठ सौ से अधिक क्रेशर प्लांट थे, जो सल्फर का उत्पादन करते थे। चीनी लॉबी के दबाव में सरकार ने ऐसी नीतियां बनाई कि आज एक भी सल्फर प्लांट जीवित नहीं है। किसानों को गन्ना देने के लिए दूसरा विकल्प था कोल्हू। मुजफ्फरनगर तथा शामली जिलों में एक समय सात हजार तक कोल्हू सीजन भर गुड बनाने का काम करते थे, जिनकी संख्या भी घटकर करीब साढेÞ तीन हजार रह गई है। एक समय था जब समूचे मध्य और दक्षिण भारत में पश्चिमी उत्तर प्रदेश के गुड की धाक थी। राजस्थान, मध्य प्रदेश, गुजरात आदि राज्य तो यहां के गुड के दीवाने थे।
वेस्ट यूपी बंद 
इस समस्या को लेकर एक दिसंबर को रालोद और पांच दिसंबर को भाकियू के वेस्ट यूपी बंद के आव्हान पहले ही हो चुका है। इसके अलावा तमाम चीनी मिलों और जिला मुख्यालयों पर चल रहे धरना प्रदर्शन बेकाबू होने की स्थिति में हैं। मुजफ्फरनगर जिला मुख्यालय जिला कलेक्ट्रेट परिसर में तो किसानों ने कोल्हू ही गाड़ दिया है। पश्चिमी उत्तर प्रदेश के करीब सभी जिला मुख्यालयों के अलावा चीनी मिलों के बाहर गन्ना किसानों के धरने व प्रदर्शन लगातार जारी है और केंद्र सरकार के आव्हान पर भी यूपी सरकार व चीनी मिल मालिकों के बीच गतिरोध समाप्त नही हो सका है।
01Dec-2013