शनिवार, 7 दिसंबर 2013

भोज में मिठास नहीं घोल सकी सरकार!

सर्वदलीय दल की बैठक में विपक्ष लामबंद
संसद सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग पर सरकार ऊहापोह में
ओ.पी.पाल

लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार की अध्यक्षता में मंगलवार को बुलाई गई सर्वदलीय बैठक में अमूमन सभी दलों ने पांच दिसंबर से आरंभ हो रहे संसद के शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने की मांग उठाई। विपक्षी दलों के इस सुझाव पर सरकार किसी भी कीमत पर सत्र की अवधि बढ़ाने को तैयार नहीं है स्वयं प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी स्पष्ट कर दिया है कि इस छोटे सत्र में सरकार सभी दलों के सहयोग से सारे जरूरी कामकाज निपटाने का प्रयास करेंगे।
संसदीय पुस्कालय में बुलाई गई सर्वदलीय बैठक के अंतिम क्षणों में पहुंचे प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने भी दोपहर के भोजन के दौरान अमूमन सभी दलों के नेताओं के साथ सहयोग के लिए चर्चा की, लेकिन ज्यादातर दलों ने तर्क दिया कि 38 विधेयकों के लिए 12 बैठकें प्रर्याप्त नहीं हैं इसलिए शीतकालीन सत्र की अवधि को बढ़ाया जाना चाहिए। हालांकि इससे पहले बैठक को बीच में छोड़कर कुछ देर के लिए बाहर गये संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने मीडिया को विपक्षी दलों के सत्र की अवधि बढ़ाने के सुझाव पर सरकार की ओर से विचार करने के बारे में कोई आश्वासन तो नहीं दिया, लेकिन इतना जरूर कहा कि राज्यसभा के नेताओं से विचार विमर्श करने के बाद ही सरकार इस सुझाव के बारे में निर्णय लेगी। लेकिन जिस तरह से मीडिया के सवालों पर प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह ने कहा कि इस छोटे सत्र में ही सरकार सभी जरूरी कामकाज निपटाने के लिए सभी दलों का सहयोग हासिल करेगी से संकेत मिल गये हैं कि सरकार शीतकालीन सत्र की अवधि बढ़ाने के लिए तैयार नहीं है। हालांकि लोकसभा अध्यक्ष मीराकुमार ने माना कि सर्वदलीय बैठक में लगभग सभी दलों ने संसद सत्र की अवधि बढ़ाने का सुझाव दिया है और वह भी इतने छोटे सत्र में एजेंडे में शामिल विधेयकों की संख्या और अन्य जरूरी विधायी कार्यो के निपटान को लेकर ऊहापोह की स्थिति को स्वीकारती नजर आई, लेकिन उन्होंने कहा कि संसद सत्र की अवधि बढ़ाने का फैसला सरकार के अधिकार क्षेत्र में है।
किसी भी मुद्दे पर नहीं बनी आम सहमति संसद सत्र शुरू होने से पहले परांपरागत रूप से बुलाई जाती रही सर्वदलीय बैठक का मकसद यही है कि सभी दलों के साथ चर्चा करके संसद की कार्यवाही को सुचारू रूप से चलाया जाए और विवादित मुद्दों पर आमसहमति बनाने का प्रयास किया जाए, लेकिन मंगलवार को बुलाई गई बैठक में संसद सत्र की कम बैठÞकों को नाकाफी करार देते हुए विपक्षी दलों ने सरकार पर तंज तक कसे। वहीं किसी भी मुद्दे पर सरकार आमसहमति नहीं बना सकती है। सीपीआई सांसद गुरूदास दास गुप्ता ने तो यहां तक कह दिया कि यूपीए सरकार संसद के साथ भी मजाक कर रही है। जबकि हर पार्टी किसी न किसी मुद्दे पर संसद सत्र के दौरान चर्चा करना चाहती है, जिसका आश्वासन देने में सरकार पीछे तो नहीं है, लेकिन सवाल है कि इतनी कम बैठकों में भारी भरकम एजेंडा और अन्य विधायी कार्य संभव नहीं हैं।
आठ दिन ही मिलेंगे
संसद के शीतकालीन सत्र के लिए सरकारी एजेंडे में 38 विधेयक सूचीबद्ध किये गये हैं, लेकिन संसद के इस सत्र के पहले दिन दोनों सत्रों में कामकाज होने की संभावना नहीं है। इसका कारण है कि लोकसभा के भाजपा सांसद दिलीप सिंह जूदेव तथा राज्यसभा के सपा सदस्य मोहन सिंह का निधन हो चुका है, जिन्हें श्रद्धांजलि के बाद परंपरा के अनुसार सदन की बैठक स्थगित करने की संभावना है। अब बचे 11 दिन इनमें तीन शुक्रवार है और यह दिन गैर सरकारी कामकाज के लिए निर्धारित है। इसके बाद केवल आठ दिन की बैठक शेष रह जाती हैं और उनमें 38 विधेयकों और विधायी कार्यो के अलावा अन्य जरूरी कामकाज निपटाना किसी चुनौती से कम नहीं है।
सरकार की प्राथमिकता तेलंगाना बिल एजेंडे से नदारद
प्रधानमंत्री मनमोहन सिहं ने गुरूवार से आरंभ हो रहे संसद शीतकालीन सत्र में तेलंगाना की स्थापना के लिए विधेयक को प्राथमिकता बताया, लेकिन सरकार के शीतकालीन सत्र के लिए जारी हुई 38 विधेयकों की सूची में तेलंगाना विधेयक नदारद है।
सर्वदलीय बैठक के बाद प्रधानमंत्री ने वैसे तो वित्तीय विधेयकों पर विभिन्न दलों के साथ बातचीत का विकल्प खुला रखा है और इस सत्र की प्राथमिकता वाले विधेयकों में उन्होंने तेलंगाना की स्थापना के लिए विधेयक को पारित कराने की प्रतिबद्धता रखी है, लेकिन इस सत्र के लिए संसदीय कार्य मंत्रालय से जारी विधेयकों की सूची में तेलंगाना विधेयक सूचीबद्ध नहीं है। प्रधानमंत्री के इस बयान के बाद संसदीय कार्य मंत्री कमलनाथ भी उन्हीं के सुर में तेलंगाना की प्राथमिकता पर बोलते नजर आए। जहां तक सांप्रदायिक हिंसा विधेयक के इस सत्र में लाए जाने का सवाल है उसकी इसलिए संभावना नहीं है क्योंकि वह अभी गृह मंत्रालय की स्थाई समिति में विचाराधीन है।
महंगाई पर विपक्ष लामबंद
सर्वदलीय बैठक में लोकसभा में प्रतिपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि इस सत्र के लिए विपक्ष के पास कई मुद्दे हैं जिन पर सरकार घिरती नजर आएगी। उन्होंने सीपीआई के गुरूदास दासगुप्ता के सुर में कहा कि सत्र के पहले दिन बढ़ती महंगाई पर स्थगन प्रस्ताव लाया जाएगा। सूत्रो के अनुसार अन्य दल भी इस मुद्दे पर इन दलों के प्रस्ताव के समर्थन में सरकार के खिलाफ हैं। लोकसभा में विपक्ष की नेता सुषमा स्वराज ने कहा कि अगप ने भारत-बांग्लादेश भूमि सीमा समझौता से संबंधित विधेयक पेश किए जाने का भी विरोध किया है ,उनकी पार्टी भी विरोध करेगी, हालांकि सांप्रदायिकता विरोधी विधेयक के इस सत्र में आने की संभावनाएं नहीं है, लेकिन भाजपा भेदभाव वाले इस विधेयक को बिना संशोधन के किसी कीमत पर पारित नहीं होने देगी। इसी प्रकार वामपंथी पार्टियां मुजμफरनगर दंगों को लेकर यूपी समेत देश में बिगड़ती सांप्रदायिक स्थिति, आर्थिक संकट, महंगाई और देश में बेरोजगारी, कर्मचारियों की हड़ताल जैसे मुद्दों पर चर्चा कराने की मांग की है।
कामकाज के आठ दिन, 38 बिल
संसदीय कार्यमंत्री कमलनाथ ने शीतकालीन सत्र छोटा होने के बावजूद कहा कि सरकार अहम लंबित विधेयकों को पारित कराने का प्रयास करेगी। उन्होंने कहा कि सरकार की प्राथमिकता उन विधेयकों को पारित कराने की है, जो एक सदन में पारित हो गए हैं, लेकिन दूसरे सदन में लंबित हैं। इस सत्र में सिर्फ 12 बैठकें होगी, जिनमें से तीन दिन गैर-सरकारी कामकाज के लिए होंगे। कमलनाथ ने कहा कि अगर समय बचा, तो दूसरे दलों की मांगों पर अन्य मुद्दों पर भी चर्चा कराने का हमारा प्रयास होगा। उन्होंने दावा किया कि सभी दलों ने कहा है कि वे चाहते हैं कि सदन सुचारू रूप से चले। उन्होंने कहा कि विधेयकों को पारित कराने के लिए जरूरत हुई तो हम देर तक बैठेंगे।
महिला आरक्षण के पक्ष में मीरा
लोकसभा अध्यक्ष मीरा कुमार ने कहा कि महिला आरक्षण विधेयक राज्यसभा में वर्ष 2009 में ही पारित हो चुका है। दो साल पहले अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर मांग उठी थी कि इस विधेयक पर आमसहमति बनाई जाए और उन्होंने सर्वदलीय बैठक भी बुलाई, लेकिन तीन-चार दल इस विधेयक पर विरोध करते नजर आए और आम सहमति नहीं बन सकी। इसलिए इस अत्यंत महत्वपूर्ण बिल पर सरकार के साथ राजनीतिक दलों को आगे आकर आमसहमति बनाने की जरूरत है, क्योंकि सदन में बार-बार इस विधेयक को पारित कराने की मांग उठ चुकी है। 
04Dec-2013

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