मंगलवार, 30 जून 2015

बस तीन का इंतजार, साफ-सुधरी हो जाएगी गंगा !

नमामि गंगे पर केंद्र के साथ यूपी भी गंभीर
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की नदियों को प्रदूषणमुक्त करने के लिए  राष्ट्रीय गंगा स्वच्छ अभियान के तहत नमामि गंगे पर सरकार ने गंभीर है, जिसके लिए सरकार ने दावा किया है कि अगले तीन साल में गंगा के जल का प्रवाह पूर्णतया निर्मल हो जाएगा, जिसका पहला चरण में अगले साल अक्टूबर में पूरा कर लिया जाएगा।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार केंद्र सरकार के नमामि गंगे मिशन में उत्तर प्रदेश सरकार ने भी केंद्र के सहयोग हेतु गंभीरता के साथ गंगा सफाई के लिए कमर कस ली है। सोमवार को इलाहाबाद में नमामि गंगे मिशन पर केंद्र और उत्तर प्रदेश सरकार ने संयुक्त रूप से योजनाओं के खाके की संयुक्त प्रस्तुति पेश की। इसका अवलोकन करने के बाद केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने दावा किया है कि जिस प्रकार से यूपी सरकार इस महत्वाकांक्षी मिशन में केंद्र का सहयोग करके आगे बढ़ रही है उससे निश्चित रूप में अगले तीन सालों में 11 प्रमुख शहरों में गंगा के जल का प्रवाह पूर्णतया निर्मल हो जाएगा, जिसका पहला चरण अगले वर्ष अक्टूबर तक पूरा कर हो जाएगा। नमामि गंगे कार्यक्रम के तहत केंद्र सरकार 20 हजार करोड़ रुपए खर्च करेगी। सुश्री भारती ने उत्तर प्रदेश सरकार का आव्हान किया है कि वह पूरी निष्ठा और गंभीरता के साथ केंद्र सरकार के इस कार्यक्रम में इसी प्रकार सहयोग दे। उन्होंने कहा कि इस पूरे कार्यक्रम को पारदर्शी बनाने के लिए इसके आकलन की जिम्मेदारी नेहरू युवा केंद्र और गंगा वाहिनी पर होगी। उन्होंने कहा कि नमामि गंगे कार्यक्रम में गंगा के साथ-साथ उसकी सहयोगी नदियों पर भी बराबर ध्यान दिया जाएगा।

दिल्ली पुलिस के पर कतरने की तैयारी में केंद्र!

संसदीय समिति ने की कामकाज की समीक्षा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच तल्खी का कारण बनती आ रही दिल्ली पुलिस के पर कतरने की तैयारी शुरू कर दी है? वहीं केंद्र सरकार पुलिस आधुनिकीकरण की दिशा में संसाधनों को बढ़ाने की कवायद में जुटी हुई। शायद इसी मकसद से गृह मंत्रालय की संसदीय समिति ने सोमवार को दिल्ली पुलिस मुख्यालय पहुंचकर दिल्ली पुलिस के कामकाज और कार्यशैली की समीक्षा की और पुलिस की समस्याओं को भी समझा है।
सूत्रों के अनुसार राज्यसभा की पी. भट्टाचार्य की अध्यक्षता वाली गृह कार्य संबन्धी संसदीय समिति के करीब दो दर्जन सांसद सदस्यों ने दिल्ली पुलिस मुख्यालय पहुंचकर पुलिस आयुक्त बीएस बस्सी समेत अन्य वरिष्ठ पुलिस अधिकारियों के साथ विचार विमर्श किया। समिति ने पुलिस के कामकाज और कार्यशैली का जायजा लेने के महकमें के सामने आने वाली समस्याओं और पुलिस की जरूरतों के बारे में पुलिस अधिकारियों से पूछा। सूत्रों की माने तो हालिया एंटीकरप्सन ब्यूरो के प्रमुख को लेकर केंद्र व दिल्ली की केजरीवाल सरकार के बीच चल रही तल्खी के बीच केंद्र सरकार दिल्ली पुलिस के साथ संसदीय समिति के जरिए यह भी जताना चाहती है कि दिल्ली की पुलिस दिल्ली सरकार के नहीं, बल्कि केंद्र सरकार के अधीन कार्य करती है। गौरतलब है कि दिल्ली की केजरीवाल सरकार का दिल्ली पुलिस को अपने अधिकार क्षेत्र में लेने के लगातार किये जा रहे प्रयासों के बीच केंद्र और दिल्ली सरकार के बीच दिल्ली पुलिस की भूमिका तल्खी का कारण बनी है, लेकिन दिल्ली पुलिस केंद्र सरकार के अधीन है यह जानते हुए भी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल एसीबी की नियुक्ति जैसे ताजा प्रकरण को लेकर सीधे केंद्र सरकार को निशाने पर लेते नजर आए हैं।

सोमवार, 29 जून 2015

लिंगानुपात सुधारने में सबक ले हरियाणा!

राजस्थान की पंचायतों से हुई सुधार की पहल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की रविवार को ‘मन की बात’ कार्यक्रम में देश में खासकर हरियाणा के घटते लिंगानुपात पर चिंता जताते हुए हरियाणावासियों को नसीहत भी दी है। विशेषज्ञों की माने तो हरियाणा को लिंगानुपात में बदलाव के लिए राजस्थान की पंचायतों द्वारा पेश की गई मिसाल से सबक लेने की जरूरत है।
दरअसल देश में हरियाणा की तस्वीर आज खेती, शिक्षा,औद्योगिक विकास और आर्थिक रूप से संपन्न समाज जैसे मुद्दों के एक प्रगतिशील, विकसित राज्य के रूप में होती है, लेकिन लड़कियां इस सूबे में शायद बोझ मानी जाती है। राज्य की दूसरी तस्वीर वर्ष 2011 की जनगणना के आंकड़ो लिंगानुपान के मामले में सबसे फिसड्डी राज्य के रूप में पेश की थी। मसलन 2011 की जनगणना के समय देश में सबसे कम लिंगानुपात वाले हरियाणा के दस जिलों को चिन्हित किया गया। सूबे में 1000 पुरुषों की तुलना में 879 महिलाओं का अनुपात निराशाजनक आंकड़ा सामने था, जिसमें सबसे बदतर स्थिति झज्जर जिले की थी, जहां 2001 के लिंगानुपात 801 की तुलना में 2011 की जनगणना में घटकर 774 रह गयी थी। इसी तरह रेवाड़ी, महेंद्रगढ़ व फरीदाबाद भी इस फेहरिस्त में शािमल रहे। शायद यही कारण था कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने गत 12 जून को ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ’ अभियान की शुरूआत हरियाणा के पानीपत से की थी। हालांकि इस आंकड़े में सरकार की ओर से सुधार के दावे किये जा रहे हैं, लेकिन एक रिपोर्ट के मुताबिक यह हकीकत भी छुपाई नहीं जा सकती कि वर्ष 2014 में महेंद्रगढ़, रेवाड़ी, झज्जर, भिवानी, सोनीपत, गुड़गांव, रोहतक, पलवल, फतेहाबाद, कैथल कुछ ऐसे जिले हैं, जहां सैकड़ों गांवों में वर्ष 2014 में एक भी बेटी ने जन्म नहीं लिया है। शायद यही कारण था कि रविवार को मन की बात में देश के 100 जिलों में घटते लिंगानुपात पर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को खासकर हरियाणा का जिक्र करना पड़ा।

दुनिया के सबसे बड़े नियोक्ता की सूची में आठवें पायदान पर भारतीय रेलवे!

रिपोर्ट: बड़े नियोक्तओं में सेना भी भी शामिल      नई दिल्ली।   
भारतीय रेल एशिया का सबसे बड़ा रेल नेटवर्क है तथा एकल प्रबंधनाधीन यह विश्व का दूसरा सबसे बड़ा रेल नेटवर्क में शुमार है,जिसे विश्व का सबसे बड़ा नियोक्ता भी माना गया है, लेकिन हालिया रिपोर्ट के इस दावे ने भारत को आहात किया है जिसमें भारतीय रेलवे को विश्व में आठवें पायदान पर पेश किया है।
भारतीय रेलवे को लेकर विश्व आर्थिक मंच यानि डब्ल्यूईएफ की इस रिपोर्ट ने भारत के गौरवशाली रेलवे के इतिहास को उलटते हुए चौंका ही नहीं दिया, बल्कि हर भारतीय को हैरत में डाल दिया है कि विश्व के सबसे बड़े नियोक्ता में भारतीय रेलवे साथ सेना भी शामिल है और इस रिपोर्ट के अनुसार भारतीय रेलवे व भारतीय सेना में 27 लाख कर्मचारियों की संख्या का जिक्र किया गया हैं। हालांकि आमतौर पर भारतीय रेलवे को दुनिया का सबसे बड़ी नियोक्ता संगठन कहा जाता है, लेकिन दुनिया के सबसे बड़े नियोक्ता की सूची में 14 लाख कर्मचारियों के साथ भारतीय रेलवे आठवें पायदान पर रखा है, जबकि उसके तुरंत बाद 13 लाख कर्मचारियों के साथ भारतीय सशस्त्र सेनाएं को स्थान दिया गया है। इस रिपोर्ट में अमेरिकी रक्षा विभाग को दुनिया का सबसे बड़े नियोक्ता का खिताब दिया गया, जिसके पास 32 लाख से अधिक कर्मचारी बताए गये हैं। जबकि चीन की सेना यानि पीपल्स लिबरेशन आर्मी को 23 लाख कर्मचारियों के साथ दूसरे स्थान पर बताया गया है। तीसरे पायदान पर अमेरिकी खुदरा कंपनी वॉलमार्ट को रखा गया है जिसके पास  21 लाख कर्मचारी हैं।

रविवार, 28 जून 2015

मुद्दों की राजनीति ने बिगाड़ा उसूलों स्वाद!

केंद्र सरकार से जो मांगा, वही मिला:दुष्यन्त
 नई दिल्ली
भारतीय संसद के इतिहास पहली बार सबसे कम उम्र में इनेलो नेता दुष्यन्त चौटाला 16वीं लोकसभा में सांसद बनकर लिम्का बुक आॅफ रिकार्ड में अपना नाम दर्ज कराकर चर्चाओं में हैं। दुष्यंत चौटाला हरियाणा की राजनीति में लंबे समय से तक झंडा बुलंद करने वाले ताऊ चौधरी देवीलाल परिवार की राजनीतिक विरासत को अब चौथी पीढ़ी में झंडा बरदार बनकर पुनर्जीवित करने को तैयार है। संसद में देश व हरियाणा राज्य के तमाम बड़े मुद्दों, समायिक विषयों, केंद्र की मोदी सरकार के एक साल के प्रदर्शन तथा राजनीति के बदलते स्वरूप को लेकर लोकसभा में अपने संसदीय क्षेत्र और सूबे के मुद्दे उठाने में रिकार्ड पर आए इनेलो सांसद दुष्यंत चौटाला से हरिभूमि के वरिष्ठ संवाददाता ओ.पी. पाल ने विस्तृत बातचीत की, जिसके अंश इस प्रकार हैं:-

राग दरबार: आडवाणी और आपातकाल

आडवाणी का मर्म 
देश के लिए चार दशक पहले आपातकाल कि बुरे दौर के गवाह बने भाजपा के वरिष्ठ नेता लालकृष्ण आडवाणी के हालिया बयान पर काफी हु-हल्ला हुआ, जिसमें छिपी सच्चाई को खासकर कांग्रेस पचा नहीं पाई या फिर समझ नहीं पाई, बल्कि उनकी केंद्र में सत्तासीन भाजपा भी गफलत में नजर आई। सही मायने में आडवाणी के आपातकाल से जुड़े हालिया बयान में मर्म की कुछ सच्चाई तो थी, जिन्होंने मौजूदा देश की राजनीतिक व्यवस्था में फैल रही अराजकता पर सवाल खड़े करते हुए ऐसा एक अंदेशा ही तो जताया। इसका कारण समस्त राजनीतिक दलों को नसीहत भी देना था, क्योंकि आडवाणी स्वयं आपातकाल के उस काले दौर का हिस्सा रहे हैं, तो उन्होंने इस बयान में केवल अपना एक अनुभव बांटा और बहुत ही सरल शब्दों में आपातकाल को परिभाषित करते हुए उन तथाकथित सेक्युलर नेताओं को भी दलील दी, जो चार दशक पहले लोकतंत्र और लोकशाही का गला घोटने के प्रयास में इंदिरागांधी ने देश को आपातकाल के अंधकार में धकेला था। मसलन वामपंथी और तमाम सेक्युलर सूरमा तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी के सामने दुम हिलाते नजर आए थे। केवल इंदिरा के तानाशाही वाले शासन के खिलाफ लोकनायक जयप्रकाश नारायण के साथ-साथ आपातकाल का प्रतिरोध जनसंघ और अकाली दल ने किया था। ऐसा विश्लेषण संघी या भाजपा ने नहीं बल्कि दक्षिणपंथ के धुर विरोधी लेखकर कुलदीप नैयर का है।
उल्टा पड़ा कांग्रेस का दांव
कहते हैं कि उसूलों के विपरीत राजनीति कभी कभी दर्द दे जाती है। ललित मोदी प्रकरण में भाजपा के शीर्ष नेतृत्व के खिलाफ जहर उगल रही कांग्रेस भी अब सांसत में फंस गई, जबकि ललित मोदी ने खुलासा किया कि गांधी परिवार के बेहतर रिश्तों के चलते लंदन आई प्रियंका गांधी और राबर्ट वाड्रा से भी उनकी मुलाकात हुई थी। इस प्रकरण में उलटे पड़ते दांव से विवाद में फंसती कांग्रेस को लेकर भाजपा नेता सुब्ह्मण्यम स्वामी के इस सनसनीखेज खुलासे ने तो आग में घी डालने का काम कर दिया, जिन्होंने दावा किया है कि कांग्रेस प्रमुख सोनिया गांधी और राहुल गांधी फिलहाल ललित विवाद से खुद को बचाने के लिए ललित मोदी से मिलने लंदन गये हुए हैं। भाजपा और कांगे्रस के बीच ये सब दावे सोशल मीडिया पर वायरल होने से भाजपा के साथ अब कांग्रेस भी ललित मोदी विवाद के ईर्दगिर्द दर्द देता नजर आ रहा है। अब भाजपा की साख खराब करने सडकों पर उतरी कांग्रेस को भी अपनी पार्टी और शीर्ष नेताओं की साख बचाने की चुनौती सामने है।
तो जल्द मिलेगा मंत्री जी को बड़ा कमरा
एक ओर केंद्र सरकार देश को विश्वस्तरीय मानकों के अनुरूप विकसित बनाने के लिए कड़ी मेहनत कर रही है। वहीं दूसरी ओर सरकार के मंत्री अपने रोजमर्रा के कामकाज निपटाने के लिए परमानेंट व्यवस्था किए जाने की आस लगाए बैठे हैं। यहां बात सरकार के एक बड़े मंत्रालय के राज्य मंत्री की हो रही है जो बीते एक वर्ष से अधिक समय से अपने मंत्रालय में एक छोटे से कमरे से अपना दैनिक कामकाज निपटाने को मजबूर हैं। क्योंकि उनके पास मंत्री स्तरीय बैठने की व्यवस्था नहीं थी। इस व्यवस्था को देखते हुए मंत्री जी ने कुछ दिनों तक मंत्रालय में आना बंद करके अपने सरकारी आवास से ही काम करना शुरू कर दिया था। लेकिन अब मंत्रालय में उनके लिए एक भव्य कमरे का निर्माण कराया जा रहा है। इससे अब यह तय है कि मंत्री जी जल्द ही बड़ा कमरा मिल जाएगा।
मंत्रीजी का दांत दर्द
केंद्र सरकार में एक जूनियर मंत्री इन दिनों एक ऐसे रोग से पीड़ित हैं कि न कुछ खा पा रहे और न ही ज्यादा बोल पा रहे हैें। हालांकि, वह किसी खतरनाक रोग की चपेट में नही हैं, लेकिन रोग तो रोग ही है। आलम यह है कि उनको कार्यालय से पहले और कार्यालय से निकलने के बाद सीधे डॉक्टर का चक्कर लगाना पड़ रहा है। दरअसल, महाराष्ट्र से आने वाले ये मंत्रीजी दांतों के दर्द से परेशान हैं। जब कोई मिलने जा रहा ता सबसे पहले उनके दांत के दर्द के बारे में पूछ रहा है। इतना ही नही, मंत्रीजी के चुनाव के कुछ खासमखास लोग तो इसकी भनक लगते ही दिल्ली आकर मंत्रीजी की कुशलक्षेम पूछ रहे हैं। अब क्षेत्र की जनता से तो मिलना मजबूरी है, पर उसके अलावा भी मिलने वाले दांत दर्द के बारे में ही पूछ रहे हैं।अब मंत्रीजी को इससे झुंझलाहट हो रही है। यही कारण है कि अपने स्टाफ को उन्होंने हिदायत दे दी है कि जो भी आए उससे काम के बारे में पहले पूछ ले..अगर कोई काम नही है तो बोेल दे कि, मंत्रीजी से मिल कर दांत के दर्द के बारे में न पूछे। भई.. अब मंत्रीजी को कौन याद दिलाए कि इन्हीं छोटी-छोटी औपचारिकताओं से बड़े-बड़े नाते बन जाते हैं।
राजनीति इसी को कहते हैं
सुषमा स्वराज और ललित मोदी का मामला सामने आने के बाद से कांग्रेस नेताओं की खुशी छुपाये नहीं छुप रही। पिछले कई दिनों से कांग्रेस प्रवक्ताओं को फुर्सत के पल नहीं मिल पा रहे हैं। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और विदेश मंत्री सुषमा स्वराज पर आईपीएल के पूर्व कमिश्नर ललित मोदी को मदद पहुंचाने के तमाम आरोप जड़ने के बाद जब वसुंधरा राजे का नाम भी उछला तो कांग्रेस के रणनीतिकारों ने नई दिल्ली में प्रेस कॉफ्रेस बुलाकर राजस्थान की मुख्यमंत्री को कठघरे में खड़ा करने के लिए पूरा जोर लगा दिया। मामला राजस्थान का था तो रणदीप सिंह सुरजेवाला के साथ सचिन पायलट और गुरूदास कामत भी पत्रकारों से रूबरू होने आ पहुंचे। पायलट राजस्थान कांग्रेस के अध्यक्ष हैं और कामत प्रदेश प्रभारी महासचिव। सवाल-जवाबों के बीच तमाम आरोप कांग्रेस नेताओं ने जड़े। सुरजेवाला बोले ‘वसुधंरा राजे जब पिछली बार राजस्थान की मुख्यमंत्री थी तो ललित मोदी पर्दे के पीछे से सरकार चलाते थे।’ उनका आशय था कि उस दौरान ललित मोदी ने तमाम घपले किये और जमकर माल कूटा। इसी बीच एक पत्रकार ने पूछ लिया फिर जब अशोक गहलोत सरकार बनी तो ललित मोदी के घपलों-घाटालों की जांच कांग्रेस ने क्यों नहीं कराई? सवाल तो वाजिब था। भई अगर प्रदेश में आपकी सरकार बनी तो ललित को क्यों छोड़ दिया गया। कांग्रेस नेता से कोई ठोस उत्तर नहीं मिला। मतलब ये है कि विपक्ष में होंगे तो खूब शोर-शराबा करेंगे और जब सत्ता में कुर्सी पर बैठे होंगे तो घोटालेबाजों को भूल जायेंगे। राजनीति इसी को कहते हैं जनाब।
-ओ.पी. पाल, कविता जोशी,अजीत पाठक, आनंद राणा
28June-2015

शनिवार, 27 जून 2015

जलमार्गो के विकास में आगे बढ़ी सरकार!

राज्यों के संग बनेगा अंतर्देशीय जलमार्ग निगम
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार के देश में 101 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग के रूप विकसित करने के लिए राज्यों से संयुक्त उद्यम बनाने के लिए उद्योगोें को आगे लाने का आग्रह किया। सरकार ने राज्यों से केंद्र के साथ मिलकर अंतर्देशीय जलमार्ग निगम बनाने का प्रस्ताव भी दिया है,जिसमें राज्यों की 26 प्रतिशत हिस्सेदारी होगी।
केंद्र सरकार देश की नदियों को जलमार्ग के रूप में विकसित करने की परियोजनाओं के लक्ष्य पर तेजी से आगे बढ़ने की तैयारी कर चुकी है, जिसके लिए सरकार ने देश की 101 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करने के लिए चिन्हित किया है। केंद्रीय सडक परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने इस महत्वाकांक्षी परियोजना को पंख लगाने की दिशा में राज्यों के साथ समन्वय करके उन्हें हिस्सेदार बनाने की योजना भी बनाई है, जिसके लिए राज्यों के साथ विचार-विमर्श किया जा रहा है। मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार सरकार राष्ट्रीय जलमार्गो के विकास के लिए संयुक्त उद्यम बनाने की योजना पर काम कर रही है जिसके लिए केंद्र ने राज्यों से केंद्र के साथ मिलकर एक अंतर्देशीय जलमार्ग निगम बनाने का प्रस्ताव दिया है। केंद्र सरकार ने राज्यों से इस निगम के गठन में राज्यों की हिस्सेदारी 26 प्रतिशत रखने का प्रस्ताव रखा है, जबकि शेष केंद्र सरकार वहन करेगी। गडकरी पहले भी कह चुके हैं कि माल ढुलाई और यात्री परिवहन के लिए अंतदेर्शीय जलमार्गों के विकास के लिए सरकार निजी निवेश को भी बढ़ावा देगी।

शुक्रवार, 26 जून 2015

अब होगी श्रमिकों के हितों की रक्षा!

श्रमिक संगठनों पर शिकंजा कसने की तैयारी!
श्रमिकों के हित में जल्द आएगा नया श्रम कानून बिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार रोजगार सृजन को बढ़ावा देने की दिशा में श्रम कानूनों में बदलाव करते हुए एक ऐसा श्रम विधेयक का मसौदा तैयार कर चुकी है,जिसमें श्रमिक संगठनों पर पूरी तरह से शिकंजा कसा जाएगा और कर्मचारियों के हितों की रक्षा हो सकेगी।
मोदी सरकार ने केंद्र में सत्ता संभालते ही श्रम कानूनों में व्यापक बदलाव करने के संकेत दे दिये थे। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय में नये श्रम कानून संबन्धी विधेयक का मसौदा तैयार हो चुका है। श्रम एवं रोजगार मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार नए श्रम कानून में सरकार ने श्रमिकों की भर्ती-बर्खास्तगी के सख्त कानूनों में ढील देने, श्रमिक यूनियन बनाने के नियमों को अपेक्षाकृत अधिक कठिन बनाने और कर्मचारियों के हितों की रक्षा के लिए छंटनी से जुड़े पैकेज को तिगुना करने प्रस्ताव किया हैं। इस बात के संकेत केंद्रीय श्रम एवं रोजगार मंत्री बंडारू दत्तात्रेय पहले भी दे चुके हैं। दत्तात्रेय का कहना है कि देश में कारोबार का वातावरण और सुगम बनाने और रोजगार के अवसरों के सृजन में बढोतरी के उपायों के तहत एक विधेयक का मसौदा तैयार कर लिया है। सूत्रों के अनुसार विधेयक के इस मसौदे में ट्रेड यूनियन अधिनियम, औद्योगिक विवाद अधिनियम और औद्योगिक रोजगार (स्थायी आदेश) अधिनियम को एकीकृत कर औद्योगिक संबंधों के लिए एकल संहिता बनाने का प्रावधान किया गया है। मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार का मकसद है कि देश में उद्योगों और श्रमिकों के बीच समरसता का माहौल तैयार करने और ज्यादा से ज्यादा रोजगार सृजन को बढ़ावा दिया जाए। सरकार श्रम कानूनों को आसान बनाने और तर्कसंगत बनाने के लिए श्रमिको के हितों को दांव पर लगाने के पक्ष में नहीं है, बल्कि श्रमिकों के हितों की रक्षा करके कारोबार को सुगम बनाने की दिशा में कदम बढ़ा रही है। सूत्रों के अनुसार उम्मीद है कि सरकार इस नये श्रम कानून संबन्धी विधेयक को संसद के आगामी मानसून सत्र में पारित कराने का प्रयास करेगी। हालांकि श्रमिक संगठन एवं टेÑड यूनियने सरकार के इस नए कानूनों का पुरजोर विरोध कर रही है। इस विरोध से निपटने के लिए प्रधानमंत्री मोदी के हस्तक्षेप से पहले ही वित्त मंत्री अरुण जेटली के नेतृत्व में मंत्रिस्तरीय समिति गठित कर दी है, जिसमें समिति इन मुद्दों से निपटने के लिए श्रमिक संगठनों से परामर्श करने की रणनीति बनाई है, जिसमें श्रमिक संगठनों को मनाने के प्रयास हैं।

गुरुवार, 25 जून 2015

बिहार चुनाव में ऐसे नैया पार करेगी भाजपा!


केंद्र सरकार ने बिहार के लिए खोलना शुरू किया पिटारा
सिताब दायरा में बनेगा जेपी की स्मृति में राष्ट्रीय संग्रालय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने आपातकाल के खिलाफ देश की जनता की आवाज बुलंद करने वाले लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्मान में उनकी स्मृति में छपरा जिले के जेपी की जन्मस्थली पर एक राष्ट्रीय स्तर का संग्राहलय और एक ऐसा संस्थान खोलने का निर्णय लिया है, जहां उनकी राष्ट्र निर्माण में भूमिका व गांधी के विचारों का अध्ययन व अनुसंधान हो सके।
केंद्र सरकार के इस फैसले को आपातकाल के चालीस साल होने के बहाने बिहार में होने वाले आगामी विधानभा चुनावों की रणनीति का हिस्सा माना जा रहा है, जिसकी तैयारी में सियासी जमीन की खातिर सभी राजनीतिक दल अपनी रणनीतियां बनाने में जुटे जुटे हुए हैं। भाजपा को बिहार में सियासी जमीन की बिसात को मजबूत करने के लिए अपनी केंद्र सरकार का ही सहारा नजर आ रहा है। भाजपानीत केंद्र सरकार भी बिहार के लिए सौगातों का पिटारा खोलती नजर आ रही है। हाल ही में वित्तमंत्री अरुण जेटली के बिहार को हर संभव वित्तीय मदद के बयान के बाद बुधवार को केंद्रीय कैबिनेट की बैठक में लोकनायक जयप्रकाश नारायण के सम्मान में एक बड़ा फैसला लिया गया है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अध्यक्षता में हुई कैबिनेट की बैठक में आपातकाल के चालीस साल पूरे होने पर समाजवादी नेता जयप्रकाश नारायण की स्मृति में छपरा जिले में सिताब दायरा गांव में राष्ट्रीय स्तर संग्रालय तथा एक ऐसा संस्थान की स्थापना का निर्णय लिया, जिसमें आपातकाल के खिलाफ जागरूकता अभियान चलाकर जनता की आवाज बुलंद करने राष्ट्र निर्माण में लोकशाही व लोकतंत्र को बहाल करने में अहम भूमिका निभाने वाले लोकनायक जय प्रकाश नारायण पर अध्ययन और अनुसंधान भी हो सके। केंद्र सरकार के फैसले की जानकारी देते हुए गृहमंत्री राजनाथ ने लोकनायक जयप्रकाश नारायण ने राष्ट्र निर्माण में पंयाचत की भूमिका व गांधी के विचार पर व्यापक अध्ययन किया है, जिसकी तमाम स्मृतियों को समेटा जाएगा और उनकी कृतियों को सभी भारतीय भाषाओं में उपलब्ध कराया जाएगा। लोकनायक जयप्रकाश स्मृति परिसर में उनके नाम से स्थापित होने वाले संस्थान के साथ उनके गांव में महिलओं द्वारा संचालित राष्ट्रीय ध्वज के निर्माण के लिए एक लोकनायक खादी गौरव संवर्धन केंद्र की भी स्थापना की जाएगी। इसके लिए बिहार सरकार से जमीन उपलब्ध कराने की जल्द कार्यवाही शुरू कर दी जाएगी।
नीतीश ने भी मारा नहले पर दहला
बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने राज्य को विशेष दर्जा और आर्थिक सहायता देने की मांग दोहराते हुए फिर प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को पत्र लिखा। जिमसें मुख्यमंत्री ने केंद्र सरकार को 'कॉपरेटिव फेडरेलिज्म' की याद दिलाते हुए जनता की आकांक्षाओं को पूर्ण करने वाले प्रस्तावों पर फौरन कार्रवाई करने की मांग की है। उन्होंने इस पत्र में वित्त मंत्री अरुण जेटली के कैलिफोर्निया (अमेरिका) के हालिया उस बयान का भी जिक्र किया जिसें वित्त मंत्री ने बिहार को आपार संभावनाओं वाला राज्य बताते हुए देश के न्यायोचित विकास के लिए बिहार की मदद जरुरी बताया है।
25June-2015

बुधवार, 24 जून 2015

चुनाव खर्च देने में भाजपा व कांग्रेस में भी झोल!

जदयू ने नहीं दिया सबसे ज्यादा 15 चुनावों के खर्च का ब्यौरा
सभी राष्‍ट्रीय दलों समेत 35 दलों ने किया नियमों का उल्लंघन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्रीय निर्वाचन आयोग ने पिछले सप्ताह ही पीए संगमा की नेशनल पीपुल्स पार्टी की मान्यता इसलिए निलंबित कर दी थी, कि वह लोकसभा चुनाव के खर्च का ब्यौरा नहीं दे पाई थी। चुनावी खर्च का ब्यौरा न देकर चुनावी नियमों का उल्लंघन करने वाली एनपीपी ही अकेली पार्टी नहीं थी, बल्कि भाजपा व कांग्रेस जैसे पांचों राष्‍ट्रीय दलों समेत 35 राजनीतिक दल चुनावी खर्च का ब्यौरा न देने के दोषी पाये गये हैं।
देश में चुनाव सुधारों के लिए कार्य करने वाली गैर सरकारी संस्था एसोसिएशन फॉर डेमोक्रेटिक रिफॉर्म्स ने पिछले पांच साल के दौरान विभिन्न राज्यों में हुए विधानसभा चुनाव में चुनाव खर्च का विश्लेषण किया। इस अध्ययन में चुनावों में हिस्सा लेने वाले तमाम राजनीतिक दलों के चुनावी खर्च के ब्यौरे को खंगालने के बाद जो तथ्य सामने आए हैं उसमें भाजपा, कांग्रेस, रांकापा, सीपीआई, सीपीआईएम जैसे सभी राष्‍ट्रीय दलों के अलावा 30 मान्यता प्राप्त क्षेत्री राजनीतिजक दल भी चुनाव आयोग के नियमों का उल्लंघन करते नजर आए हैं। भाजपा व कांग्रेस ने वर्ष 2011 से 2015 तक राज्यों में हुए पांच-पांच विधानसभा चुनावों में हुए खर्च का ब्यौरा चुनाव आयोग को देने में विफल रही है, जबकि राकांपा दो, सीपीआई चार तथा सीपीआईएम एक चुनाव के खर्च का ब्यौरा पेश नहीं कर सकी। चुनावी खर्च का ब्यौरा देने वाले नियमों का उल्लंघन करने वाले दलों में जद-यू सबसे आगे है, जिसने इन पांच सालों में 15 चुनावों का खर्च आयोग को नोटिस जारी करने के बावजूद पेश नहीं किया। इसके बाद राम विलास पासवान की लोजपा ने 11 चुनावों, शिवसेना व आरएसपी 10-10, लालू यादव की राजद, मुलायमसिंह यादव की समाजवादी पार्टी तथा एचडी देवगौडा की जदएस ने नौ-नौ चुनावों के खर्चो को ब्यौरा चुनाव आयोग को आज तक पेश नहीं किया है। इसके बाद ममता बनर्जी की तृणमूल कांग्रेस भी आठ चुनावों का चुनावी खर्च न देकर नियमों का उल्लंघन करने की दोषी है। जम्मू की जेकेएनपीपी भी आठ चुनावों के खर्चो का ब्यौरा न देने पर तृणमूल के साथ संयुक्त रूप से चौथे पायदान पर है। इसके अलावा चुनावी खर्च का ब्यौरा पेश न करने वाले क्षेत्रीय दलों में जय ललिता की अन्नाद्रमुक, करूनानिधि की द्रमुक, केजरीवाल की आप, ओमप्रकाश चौटाला की इनेलो, शिबूसोरेन की झामुमो, चौधरी अजित सिंह की रालोद, ओवैसी की मुस्लिम लीग के साथ जेवीएम, एनपीपी, यूकेडी, यूडीपी, एमपीसी, एनपीएफ, पीएमके जैसे दल भी शामिल हैं।

14 करोड़ की सब्सिडी डकार गये नेता

संसद की कैंटीन में बाजार से दस गुना सस्ता खाना
पांच साल में संसद की कैंटीनों को मिली 60.7 करोड़ की सब्सिडी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद की कैंटीनों में परोसे जाने वाले भोजन बाजार मेें मिलने वाले भोजन से दस गुना सस्ता होता है, इसके लिए इन कैंटीनों को लोकसभा सचिवालय द्वारा सब्सिड़ी दी जाती है। पिछले पांच सालों में नेताओं को सस्ता भोजन मुहैया कराने के लिए इन कैंटीनों को 60.7 करोड़ रुपये से भी ज्यादा की सब्सिडी दी जा चुकी है।
लोकसभा सचिवालय ने एक आरटीआई के जवाब में स्वीकार किया है कि संसद भवन परिसर की सभी कैंटीनों का संचालन उत्तर रेलवे करता आ रहा है, जिन्हें लोकसभा सचिवालय की ओर से खान-पान के सामानों पर सब्सिडी दी जाती है। वर्ष वर्ष 2013-14 के दौरान लोकसभा सचिवालय ने इन कैंटीनों को 14 करोड़ नौ लाख रुपये की सब्सिडी प्रदान की है। यदि पिछले पांच साल के आंकड़े को देखें तो इन कैंटीनों को 60.70 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई है। आंकड़ों के मुताबिक वर्ष 2009-10 में 10.46 करोड़ रुपये की सब्सिडी बढ़कर वर्ष 2012-13 में 12.52 करोड़ रुपये तक पहुंची। जबकि वर्ष 2013-14 में 14.09 करोड़ रुपये की सब्सिडी दी गई। संसद भवन परिसर की कैंटीनों में एक संसद भवन इमारत में हैं, जबकि एक संसद भवन एनेक्सी में, एक संसद भवन के स्वागत कक्ष में और एक संसद भवन लाइब्रेरी में है। सभी कैंटीन उत्तर रेलवे द्वारा संचालित हैं और हर कैंटीन में खाने की चीजों की कीमतें एक हैं। कैंटीन के लिए राशि लोकसभा के बजटीय अनुदान से मिलती है। संसद भवन परिसर में खाद्य प्रबंधन की संयुक्त समिति रोजमर्रा की गतिविधियों पर नजर रखती है।

मंगलवार, 23 जून 2015

विमानन व रेल क्षेत्र में नजदीक आएंगे भारत व रूस!

जल्द ही दोनों देशों के बीच सहयोग बढ़ाने पर होंगे करार
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार के ‘मेक इन इंडिया’ मिशन के जरिए विदेशी निवेश की बढ़ती संभावनाओं को पंख लगने शुरू हो गये हैं, जिसमेें कई देश भारत में निवेश करने के लिए उत्सुकता जाहिर कर रहे हैं। ऐसे में भारत के अरसो पुराने दोस्त रहे रूस ने अपने आपसी रिश्तों को और नजदीक लाने के लिए भारत के साथ खासकर विमानन और रेल के क्षेत्र में आपसी सहयोग आधुनिकीकरण की दहलीज पर और मजबूत करने का निर्णय लिया है।
नागर विमानन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो विमानन और रेल क्षेत्र में दोनों देशों के बीच पहले से द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौता है, जिसमें दोनों देश और सुधार करने की तैयारी में हैं। भारत की दोनों देशों के बीच रिश्तों को और भी बेहतर बनाने की पहल पर रूस भी कारोबारी संबन्धों समेत विमानन व रेल क्षेत्र में सहयोग को बढाने के प्रति आश्वस्त हैं और दोनों देश लंबी अवधि के दोस्त और भागीदार के रूप में दोनों देश एक दूसरे देश को मदद करने को तैयार हैं। सूत्रों के अनुसार रूस सरकार निवेश को प्रोत्साहित करने और उसके परस्पर संरक्षण के लिए अंतर सरकारी समझौते के आधुनिकीकरण की प्रक्रिया में आगे बढ़ चुकी है। मसलन रूस एंड इंडिया रिपोर्ट (आरआईआर) ने रूस के आर्थिक विकास मंत्री एलेक्सी उलयुकाएव के साथ इस दिशा में आगे बढ़ने के इरादे से भारत-रूस व्यापारिक संबंधों में अन्य कई मुद्दों पर विचार विमर्श किया है, जिसमें दोनों देशोें के बीच द्विपक्षीय निवेश संरक्षण समझौते में सुधार करना भी शामिल हैं।

सोमवार, 22 जून 2015

टेम्स जैसी बनेंगी देश की नदियां।


साबरमती की तर्ज पर सुधरेगी हालत!
नमामि गंगे मिशन को आगे बढ़ाने में जुटी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में बहती नदियों को प्रदूषणमुक्त करके उनकी हालत सुधारने के इरादे से मोदी सरकार ने उन्हें लंदन की खूबसूरत थेम्स नदी जैसी बनाने के लिए साबरमती नदी की तर्ज पर अभियान को तेज करने का निर्णय लिया है। सरकार ने नदियों की स्वच्छता और उन्हें निर्मल धारा में बदलने के लिए जनांदोलन के रूप में नमामि गंगे मिशन को आगे बढ़ाना शुरू कर दिया है।
मोदी सरकार के एक साल में केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा संरक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने राष्ट्रीय स्वच्छ गंगा मिशन को गति देने के लिए सभी परियोजनाओं को अंतिम रूप तो दे दिया है, लेकिन गंगा व अन्य नदियों की सफाई के काम को शुरू नहीं किया जा सका। जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार नमामि गंगे के रूप में इस मिशन को आगे बढ़ाने के लिए मंत्रालय के राष्ट्रीय गंगा नदी बेसिन प्राधिकरण ने एक व्यापक दृष्टिकोण के साथ चार विभिन्न क्षेत्रों यानि अपशिष्ट जल प्रबंधन, ठोस अपशिष्ट प्रबंधन, औद्योगिक प्रबन्धन और नदी तट विकास के जरिए गंगा व अन्य नदियों के समक्ष आ रही चुनौतियों से निपटने के लिए कमर कस ली है। केंद्र सरकार ने अगले पांच साल के लिए इन अभियान के लिए 20 हजार करोड़ रुपये के परिव्यय से नमामि गंगे के संबन्ध में एकीकृत गंगा संरक्षण नाम से एक व्यापक कार्यक्रम का अनुमोदन किया है। इस अभियान के लिए मंजूर हुए बजट को इससे जुड़ी सभी परियोजनाओं के लिए निर्धारित भी कर दिया गया है। मसलन इस अभियान के लिए जल शोधन संयंत्रों की स्थाना, सीवर नेटवर्क बिछाना, नदियों के तटों को विकसित करने और अन्य मॉडल परियोजनाओं में इस धनराशि को खर्च किया जा रहा है। सरकार को उम्मीद है कि नदियों की सफाई और उन्हें अविरल निर्मल धारा में बदलना एक चुनौती है, लेकिन इस अभियान को अंजाम तक पहुंचाना नामुमकिन भी नहीं है। देश में साबरमती नदी की खूबसूरती के लिए मिसाल बनी परियोजना को देश-विदेश में ख्याति मिल चुकी है, जिसे नरेन्द्र मोदी की गुजरात में बड़ी उपलब्धि के तौर पर भी देखा गया है।

रविवार, 21 जून 2015

फास्ट ट्रैक पर सीमाओं की सड़क परियोजना!

दस हजार किमी सड़क निर्माण में दो हजार पुल भी शामिल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़को का जाल बिछाकर विकास के एजेंडे को अंजाम तक पहुंचाने की कवायद में जुटी मोदी सरकार ने सीमावर्ती इलाकों को आबाद करने का खाका तैयार किया है। इसके लिए देश की सीमावर्ती इलाकों की सड़कों को राष्ट्रीय राजमार्ग से जोड़ने की सड़क परियोजनाओं को अंतिम रूप दे दिया गया है। सीमावर्ती इलाकों की सड़कों राष्ट्रीय राजमार्ग से जोडने के लिए सरकार के इस मेगा प्लान में सरकार 10 हजार किमी सड़क निर्माण होगा, जिसमें दो हजार पुलों का निर्माण भी शामिल है।

शनिवार, 20 जून 2015

सोलर ऊर्जा से रोशन करने की कवायद!

एक लाख मेगावाट बिजली उत्पादन का लक्ष्य 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मोदी सरकार ने विकास के एजेंडे को पंख लगाने की ऐसी परियोजनाओं को शुरू करने के लिए कदम बढ़ाए हैं, जिसमें देश की अर्थव्यवस्था भी मजबूत हो सके। इसी दिशा में देश को सोलर ऊर्जा से रोशन करके दुनिया में भारत की ताकत का अहसास कराने की कवायद शुरू की है। सरकार ने छह लाख करोड़ रुपये के निवेश के सहारे एक लाख मेगावाट सौर ऊर्जा का उत्पादन करने का लक्ष्य तय किया है।

बुधवार, 17 जून 2015

जजों की नियुक्ति प्रणाली पर असमंजस में सरकार!


एनजेएसी पर केंद्र व सुप्रीम कोर्ट आमने-सामने 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
सुप्रीम कोर्ट और राज्यों के उच्च न्यायालयों में न्यायाधीशों की नियुक्ति करने के लिए दो दशक से ज्यादा समय से चली आ रही कॉलोजियम व्यवस्था को खत्म करने एवं राष्ट्रीय न्यायिक आयोग के गठन की अधिसूचना जारी करने के बावजूद मोदी सरकार असमंजस की स्थिति में है। इस मामले को लेकर केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट आमने सामने नजर आ रहे हैं। 
दरअसल न्यायाधीश कॉलेजियम प्रणाली को खत्म करने का विरोध करते आ रहे थे। केंद्र सरकार ने पहले संवधिान के 121वें संशोधन विधेयक और बाद में राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग विधेयक पर संसद की मंजूरी ली तो जजो ने आयोग पर आपत्तियां उठानी शुरू कर दी और वकीलों की कुछ संस्थाओं ने आयोग असंवैधानिक घोषित कर निरस्त करने की अपील करते हुए सुप्रीम कोर्ट में याचिकाएं दायर कर चुनौती दी। इन याचिकाओं को स्वीकार करते हुए मामले की सुनवाई के लिए सुप्रीम कोर्ट में पाचं जजों की संविधान पीठ बनाई गई। याचिका में कहा गया है कि न्यायिक नियुक्ति आयोग कानून और 121वां संविधान संशोधन कानून निरस्त किया जाए, क्योंकि इससे सुप्रीम कोर्ट और हाईकोर्ट में न्यायाधीशों की नियुक्ति में कार्यपालिका का हस्तक्षेप बढ़ता है, जो न सिर्फ न्यायपालिका की स्वतंत्रता को बाधित करता है बल्कि संविधान के मूल ढांचे को भी प्रभावित करता है जिसमें स्वतंत्र न्यायपालिका की बात कही गई है। सुप्रीम कोर्ट की संविधानपीठ की सुनवाई के दौरान केंद्र सरकार ने कोर्ट में आयोग के गठन को सही ठहराते हुए कॉलोजियम व्यवस्था की खामियों को भी उजागर किया। उधर इसी प्रकार सुप्रीम कोर्ट और हाइकोर्ट के जजों की नियुक्ति के लिए बने राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग की वैधता पर सुनवाई करते हुए सुप्रीम कोर्ट ने भी केंद्र सरकार पर कई सवाल दागे। कोर्ट ने दलील दी कि पहले सरकार यह साबित करे कि आयोग कॉलोजियम प्रणाली से बेहतर है और इससे न्यायपालिका की आजादी में कोई खलल नहीं पड़ेगा। इससे पहले सरकार कॉलोजियम व्यवस्था को खत्म करके राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग के गठन की गत 13 अप्रैल को अधिसूचना भी जारी कर चुकी है, जिसे सुप्रीम कोर्ट में चुनौती दी गई। इसके बावजूद इस मामले पर सुप्रीम कोर्ट के सामने केंद्र सरकार आयोग के गठन की प्रक्रिया को शुरू करने में असमंजस की स्थिति में फंसी हुई है।
चुनौती से निपटने की तैयारी में सरकार
केंद्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट के एनजेएसी पर फैसला अपने पक्ष में आने की उम्मीद कम है। इसका कारण है कि आयोग के गठन में भारत के मुख्य न्यायाधीश को अध्यक्ष बनाने का प्रावधान है, लेकिन जजो की नियुक्ति के लिए बनाए गये इस आयोग में शामिल होने से मुख्य न्यायाधीश पहले ही इंकार कर चुके हैं। जब सुप्रीम कोर्ट में हाईकोर्ट और सुप्रीम कोर्ट के जजों की नियुक्ति को लिए बने आयोग पर सुनवाई अंतिम दौर में है तो केंद्र सरकार ने संकेत दिये हैं कि यदि सुप्रीम कोर्ट राष्ट्रीय न्यायिक नियुक्ति आयोग को निरस्त करता है तो भी जजो की नियुक्ति की प्रक्रिया को निष्पक्ष और कारगर बनाने के लिए सरकार फिर से नया कानून लेकर आएगी। उधर विधि विशेषज्ञ एवं सुप्रीम कोर्ट की वरिष्ठ अधिवक्ता कमलेश जैन का कहना है कि आयोग के गठन से न्यायपालिका में पारदर्शिता बढ़ेगी और कॉलोजियम प्रणाली में चले आ रहे अंकल सिंड्रोम की परंपरा भी खत्म हो सकेगी।
17June-2015

मंगलवार, 16 जून 2015

आखिर खुले सार्क देशों के बीच वाहनों के रास्ते!

बांग्लादेश, भूटान व नेपाल के साथ लागू हुआ करार

मोदी सरकार ने पडोसी देशों के साथ हरेक क्षेत्र में बेहतर संबन्ध बनाने की कवायद में एक कदम आगे बढ़ा लिया है। मसलन सार्क देशों में बांग्लादेश, भूटान और नेपाल के साथ एक महत्वपूर्ण मोटर वाहन समझौते अंजाम तक पहुंचाकर सार्क देशों के बीच आपस में यात्री और माल वाहनों की निर्बाध आवाजाही को सुनिश्चित कर लिया है।

सोमवार, 15 जून 2015

भू-बिल में संशोधनों से इसलिए खफा किसान!

भाकियू ने जेपीसी को आपत्ति के साथ भेजे सुझाव
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक में किये जा रहे संशोधनों को किसान स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिसे भारतीय किसान यूनियन ने अंगे्रजी हुकूमत के कानून को फिर से पुनर्जीवित करके किसानों की बर्बादी का परवाना करार दिया है। भाकियू ने नए विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को इसमें संशोधनों पर आपत्ति जताते हुए कई ऐसे महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं जो किसानों के हित में हैं।

रविवार, 14 जून 2015

साक्षात्कार: खनन उद्योग की सूरत में आया बदलाव: तोमर

नये अधिनियम से बदलेगी भारतीय खनन उद्योग की सूरत: तोमर
    प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में केंद्रीय खान मंत्रालय ने राज्यों को संसाधन संपन्न करने के लिए हर संभव कदम उठाए हैं। बदले निजाम में मंत्रालय द्वारा साल भर में लिए गए फैसलों के कारण राज्यों को प्राप्त होने वाले राजस्व में तेजी से इजाफा हुआ है। रॉयल्टी दर तथा अनिवार्य किराए में संशोधन के कारण अब राज्यों को मिलने वाला कुल राजस्व लगभग 9400 करोड़ रुपएसे बढ़कर तकरीबन 13,300 करोड़ पहुंच गया है। खनन की नीलामी मे पारदर्शिता, निष्पक्षता और स्पष्टता आने से निवेशकों का भरोसा भी बढ़ने लगा है। जिससे आने वाले दिनों में खनन उद्योग को पंख लगेंगे। यह बात केंद्रीय इस्पात और खनन मंत्री नरेन्द्र सिंह तोमर ने ‘हरिभूमि’ के वरिष्ठ संवाददाता ओ.पी. पाल के साथ हुई खास बातचीत में कही है, जिसके अंश इस प्रकार हैं।

तेल की धार बढ़ाने की कवायद !

तेल कंपनियों की आर्थिक सेहत सुधारने की कोशिश 
तेल निर्यातक देशों से करार करेगी सरकार 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने भारतीय तेल कंपनियों को घाटे से निजात दिलाने के लिए तेल निर्यातक देशों से ऐसे करार करने की रणनीति तैयार की है, जिसमें तेल की जरूरत के अवसर बदले और आर्थिक स्थिति मजबूत होने के साथ इस क्षेत्र में रोजगार सृजन को भी बढ़ावा मिल सके।

शुक्रवार, 12 जून 2015

सड़क परियोजनाओं का जल्द बदलेगा मॉडल!

सड़क निर्माण में तेजी लाने की नीति पर सरकार
निजी कंपनियों के प्रोत्साहन को तैयार किया हाईब्रिड मॉडल
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।

देश में सड़कों का जाल बिछाने के इरादे से एक साल में सड़क निर्माण में तेजी लाने से उत्साहित मोदी सरकार ने अब नई सड़क परियोजनाओं को निजी भागीदारी के साथ हाईब्रिड मॉडल की पटरी पर उतारने की तैयारी कर ली है, ताकि राष्ट्रीय राजमार्गो समेत सभी सड़क परियोजनाओं में और भी तेजी लाई जा सके।
दरअसल केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन गड़करी ने महाराष्ट में मंत्री रहते हुए जिस तरह सड़क और ओवर ब्रिज का जाल बिछाकर सूबे की वाहवाही लूटी थी, उसी तरह वह इस अनुभव को  राष्ट्रीय स्तर पर समर्पित करना चाहते हैं। यही कारण था कि उन्होंने मंत्रालय का कार्यभार ग्रहण करते ही देशभर में सड़क निर्माण में तेजी लाने के लिए शुरूआती दो साल में प्रतिदिन 30 किमी सड़क निर्माण का लक्ष्य तय किया था। हाालांकि इस लक्ष्य में गडकरी सड़क निर्माण के कार्य को प्रतिदिन 15 किमी तक लाने में सफल रहे हैं, जो पिछले डेढ़ दशक में एक रिकार्ड है। गडकरी इस लक्ष्य के आधे रास्ते पर पहुंचने पर यह उम्मीद भी जता चुके हैं कि देश के विकास में सड़क परियोजनाओं के कार्यान्व्यन के लिए सरकार इस लक्ष्य से भी आगे बढ़ेगी। इसी इरादे से उन्होंने हॉल ही में निजी भागीदारी को बढावा देने के लिए एक मिश्रित हाइब्रिड मॉडल पेश किया है, जिसमें सरकार अब नई सड़क परियोजनाओं को इसी मॉडल के आधार पर पूरा कराने का निर्णय लिया गया है। अभी तक एक साल की सड़क परियोजनाओं में निर्माण कार्य भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण यानि एनएचएआई द्वारा कराया गया है, लेकिन सड़क निर्माण में और भी ज्यादा तेजी लाने के लिए अब सरकार इस मॉडल के जरिए जोखिम के साथ निजी कंपनियों के टूटे भरोसे का वापस लाना चाहती है।

बुधवार, 10 जून 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश: रणनीतिक फार्मूले की राह पर सरकार!

जेपीसी में भूमि अध्यादेश पर उठे सवालों से बढ़ी मुश्किलें
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक की जांच पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति में विपक्षी दलों के सदस्यों के कड़े तेवरों ने केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इन मुश्किलों से बाहर आने के लिए अब मोदी सरकार इस मुद्दे पर रणनीतिक फार्मूले की राह पकड़ती नजर आ रही है। ऐसे संकेत हैं कि सरकार विधेयक के प्रावधानों को लेकर किसान संगठनों और कांग्रेस से कुछ मुद्दों पर आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी।
मोदी सरकार देश के विकास संबन्धी कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाओं में रोड़ा बन रही भूमि अधिग्रहण की समस्या से निपटने के लिए हर संभव संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराना चाहती है। सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण पर चार जून को लागू किये गये तीसरे और अंतिम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की आगामी तीन अगस्त को खत्म होने वाली मियाद को देखते हुए ऐसे रणनीतिक फार्मूले पर काम करेगी। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने तमाम किसान संगठनों से विधेयक के प्रावधानों पर सीधे संवाद करने के लिए कुछ केंद्रीय मंत्रियों की फौज तैयार कर ली है। यह मंत्री समूह भूमि विधेयक का विरोध कर रहे विपक्षी दलों की अगुवाई कर रही कांग्रेस पार्टी से भी बातचीत करेगी और सुझाव लेकर देश और किसानों के हित में आने वाले सुझावों को विधेयक के प्रावधानों में शामिल करेगी। सरकार की ओर से सूत्रों से मिले संकेतों की माने तो सरकार ने इस विधेयक की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल कांग्रेस के सदस्यों के विरोध और समिति का बहिष्कार करने की सुगबुगहाट को गंभीरता से लिया है। मसलन सरकार अब इस विधेयक में अपने संशोधनों में आपसी सहमति बनाकर संशोधन करने का संकेत देती दिखाई दे रही है। इस मुद्दे पर जेपीसी में कांग्रेस सदस्यों के बहिष्कार के संकेत को देखते हुए अपनी रणनीतिक भाषा में सरकार कह रही है कि भूमि विधेयक पर जेपीसी के सुझावों का सरकार सम्मान करेगी।

मंगलवार, 9 जून 2015

बिहार में भाजपा का अश्वमेध रथ रोकने को लामबंद विपक्ष



जदयू-राजद गठबंधन में नीतीश के नेतृत्व में सियासी दावं
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
आखिर जनता परिवार में मुखिया की भूमिका निभाते आ रहे सपा प्रमुख मुलायम सिंह ने बिहार चुनाव में जदयू व राजद गठबंधन पर मुहर लगा दी है। जदयू व राजद में सहमति बनाकर नीतीश कुमार के नेतृत्व में बिहार चुनाव लड़ने का दांव खेलकर समाजवादी दलों ने भाजपा के अश्वमेध रथ को रोकने की सियासत को मजबूत करने का भी दावा किया है।
बिहार में इसी साल सितंबर-अक्टूबर में संभावित विधानसभा चुनाव में जदयू-राजद के गठबंधन में मुख्यमंत्री पद और सीटों के बंटवारे को लेकर विवाद की सुगबुगाहट होने लगी थी। जब यह विवाद जनता परिवार की एकजुटता के लिए मुखिया की भूमिका निभा रहे सपा प्रमुख मुलायम सिंह के दरबार पहुंचा तो जदयू-राजद गठबंधन से एक दिन पहले मुहर लगी, लेकिन मुख्यमंत्री पद का पेंच फंसा हुआ था, जिसे सोमवार को राजद प्रमुख लालू प्रसाद यादव और जदयू प्रमुख शरद यादव की मौजूदगी में नीतीश कुमार पर चुनावी दांव खेलने पर सहमति बन गई, जिसका एक संवाददाता सम्मेलन बुलाकर इन स्वयं सपा प्रमुख मुलायम सिंह यादव ने ऐलान कर दिया। मसलन बिहार चुनाव में इस गठजोड में नीतीश कुमार को मुख्यमंत्री पद का उम्मीदवार तय कर दिया गया और दोनों दलों के गठबंधन पर मंडराए संकट के बादलो को छांट दिया गया।
सीटों के बंटवारे पर समिति गठित
बिहार चुनाव में जदयू और राजद के गठबंधन के विवाद को लेकर दोनों ही दल सपा प्रमुख मुलायम सिंह के दरबार पहुंचे हुए थे। दोनों ही दलो का मानना था कि मुख्यमंत्री पद से ज्यादा सीटों के बंटवारा बिहार चुनाव सियासी जमीन तय करेगा। इसलिए दोनों दलों की सहमति से छह सदस्यीय समिति गठित की गई, जो सीटो के बंटवारे को अंतिम रूप देने के लिए विचार करेगी। हालांकि सोमवार को दोनों ही दलों के प्रमुखों लालू यादव व शरद यादव ने कहा कि सीटों के बंटवारे पर भी आपस में कोई मतभेद नहीं है। इस समिति में महत्वपूर्ण भूमिका में शामिल सपा महासचिव रामगोपाल यादव ने विश्वास जताया कि दोनों दलों के नेता प्रभावी सीट बंटवारे का प्रबंध जल्द ही पूरा करके सूची सौंपेगी और यह समिति उन पर विचार करके अंतिम निर्णय लेगी।
सांप्रदायिक ताकतों की विदाई करना मकसद
सपा प्रमुख मुलायम सिेंह यादव ने कहा कि बिहार में दोनों दल का गठबंधन साम्प्रदायिक ताकतों को उखाड़ फेंकने के लिए तैयार किया गया है, जिसमें अन्य समाजवादी विचारधारा के दलों से भी बातचीत हो रही है। वहीं लालू यादव ने कहा है कि दोनों दलो के गठजोड पर कोई मतभेद नहीं है और न ही हम कोई मतभेद उत्पन्न नहीं होने देंगे। लालू यादव ने राज्य में इस शीर्ष पद के लिए नीतीश कुमार के नाम का प्रस्ताव करने के बारे में कहा कि नीतीश से कोई मतभेद नहीं है। वैसे भी राजद या उनके से मुख्यमंत्री पद का कोई दावेदार नहीं है और वह स्वयं चुनाव लड़ नहीं सकते, इसलिए जदयू व राजद नीतीश के नेतृत्व में एकजुट होकर सांप्रदायिक ताकतों को रोकने के लिए चुनाव मैदान में आ रहे हैं। इन दोनों दलो के गठजोड़ से बिहार चुनाव के दौरान सपा समेत जनता परिवार में शाामिल अन्य दलों के वरिष्ठ नेता भी चुनाव प्रचार करेंगे।
कांग्रेस से गठजोड नहीं
कांग्रेस उपाध्यक्ष राहुल गांधी से मुलाकात करने से नाराज मुलायम सिंह यादव की नसीहत के बाद सोमवार को नीतीश कुमार ने सफाई में कहा कि भाजपा जैसे दलों को रोकने के लिए कांग्रेस पार्टी उनके समर्थन में हैं, लेकिन कांग्रेस के साथ उनका कोई चुनाव गठजोड़ नहीं है। कांग्रेस की तरह ही एनसीपी और सीपीआई भी जदयू व राजद गठबंधन का समर्थन कर रही है। नीतीश का कहना है
कि जदयू व राजद विलय के पक्ष में हैं।
हार की निराशा का गठजोड़
बिहार चुनाव में भाजपा के खिलाफ लामबंद होते विपक्षी दलों में राजद-जदयू गठबंधन पर कटाक्ष करते हुए भाजपा नेता एवं केंद्रीय मंत्री रविशंकर प्रसाद ने कहा कि यह गठबंधन दो हारे हुए नेताओं की निराशा का प्रतीक है। रविशंकर प्रसाद ने कहा कि भाजपा के बढ़ते जनाधार से घबराए उस नीतीश कुमार जो लालू यादव के शासन का 17-18 साल से भाजपा के साथ विरोध करते थे, अब उसी लालू यादव के साथ सियासी दांव खेलकर नया बिहार बनाने का दावा कर रहे हैं। वहीं लोजपा प्रमुख रामविलास पासवान ने भी लालू-नीतीश की दोस्ती पर व्यंग्य बाण छोड़े और कहा कि अब तो नीम करेला के साथ जुड़ गया है।
09June-2015

सोमवार, 8 जून 2015

नदियों को जोड़ने पर आगे बढ़ी सरकार

विरोध करने वाले राज्यों को मनाने की कवायद तेज
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
अटल सरकार की महत्वाकांक्षी नदियों को आपस में जोड़ने की परियोजनाओं को लेकर मोदी सरकार गंभीर है, जिसके लिए सरकार ने 30 नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं का खाका तैयार किया है। इसके लिए सरकार राज्यों के समन्वय से डीपीआर यानि डिटेल्ड प्रोजेक्ट रिपोर्ट्स तैयार कराने में जुटी हुई है।
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसर मोदी सरकार के एक साल के कार्यकाल के दौरान नदियों को आपस में जोड़ने वाली परियोजनाओं को पंख लगाने की दिशा में सितंबर 2014 में राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ गठित विशेष समिति की चार बैठकों में तीस नदियों को इस परियोजना के लिए चिन्हित किया जा चुका है। इनमें 14 हिमालयी और 16 प्रायद्वीपीय संपर्क शामिल हैं। सरकार का दावा है कि नदियों को परस्पर जोड़ने की इन योजनाओं से करीब 350 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षेत्र की बढ़ोतरी और 34 हजार मेगावाट बिजली का उत्पादन होने की गुंजाइश काकलन किया गया है। नदियों को जोड़ने के मुद्दे पर अध्ययन के लिए पहले ही सरकार विशेषज्ञ बीएन नवलावाला की अध्यक्षता में एक टास्क फोर्स का गठन भी कर चुकी है। इस परियोजना पर कुछ राज्यों के विरोध को दूर करने के लिए भी केंद्र सरकार के विशेषज्ञ दल तर्को के साथ चर्चा करने में जुटे हुए हैं।
पटरी पर केन-बेतवा व दमनगंगा-पिंजाल
पूर्ववर्ती अटल सरकार में नदी जोड़ने की पहली परियोजना के रूप में केन-बेतवा को आपस में जोड़ने के लिए परियोजनाओं को शुरू करने के लिए सभी औपचारिकताएं पूरी हो चुकी हैं। इस परियोयजना के पूरा होने से उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के सूखाग्रस्त बुंदेलखंड क्षेत्र के कई जिलों में 6.35 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता में इजाफा होगा। मंत्रालय के अनुसार महाराष्टÑ और गुजरात की राज्य सरकारों ने दमनगंगा-पिंजाल नदियों को जोड़ने की परियोजनाओं को हरी झंडी देदी है, जिसकी डीपीआर भी तैयार कर ली गई है। इस परियोजना से जहां मुंबई जैसे महानगर में पेयजल की जरूरत को पूरा करने के लिए 579 एमसीएम जल की उपलब्धता बढ़ेगी, वहीं आने वाले साढ़े पांच दशक तक जल सुरक्षा सुनिश्चित हो जाएगी। इसी प्रकार गुजरात के कच्छ क्षेत्र के अनेक जिलों में 1.88 लाख हेक्टेयर सिंचाई क्षमता उपलब्ध कराने वाली पार-तापी नर्मदा परियोजना की डीपीआर भी इसी साल पूरी हो जाएगी। इसके अलावा सरकार के रोडमैप में अंतर्राज्यीय लिंक परियोजना के तहत बिहार की बूढ़ी गंडक-नून-बया-गंगा लिंक तथा कोसी-मेची लिंक परियोजना है जिनकी डीपीआर भी तैयार हो गई है।
महानदी-गोदावरी व ब्रह्मपुत्र-कावेरी महत्वपूर्ण
सरकार महानदी-गोदावरी व ब्रह्मपुत्र-कावेरी को आपस में जोड़ने को सबसे ज्यादा महत्वपूर्ण मान रही है, लेकिन इसका विरोध करते ओडिसा, पश्चिम बंगाल व केरल को मनाने के लिए जल संसाधन मंत्रालय के विशेषज्ञ अधिकारियों ने ओडिसा के मुख्यमंत्री नवीन पटनायक और संबन्धित अधिकारियों के साथ चर्चा शुरू कर दी है। मंत्रालय के अनुसार इन परियोजनाओं से ओडिसा में 5 से छह लाख एकड़ भूमि सिंचाई के लिए जल की उपलब्धता बढ़ जाएगी।
08June-2015

रविवार, 7 जून 2015

विकास की राह पर चल आदिवासियों से जुड़ रही सरकार

साक्षात्कार
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार आदिवासियों व गरीबों के साथ जुड़ने के लिए विकास की राह पर चल रही है। आदिवासी मामलों के केंद्रीय मंत्री जुएल ओराम ने हरिभूमि से बातचीत में साफ कहा कि बुनियादी सुविधाओं के साथ नक्सल प्रभावित क्षेत्रों में विश्वास पैदा करना सुनिश्चित किया जा रहा है।
आदिवासी कल्याण के लिए आपकी क्या योजनाएं हैं?
एजेंडा साफ है..देश में समान और संपूर्ण विकास की दृष्टि से सभी राज्यों में आदिवासी और अत्यंत पिछड़े व कमजोर वर्ग के लिए 21 योजनाओं पर कार्यान्वयन हो रहा है।
नक्सली इलाकों में आदिवासियों तक सरकारी योजनाएं ठीक से लागू नहीं हो पा रही, इसे सुनिश्चित करने की क्या योजना है?
यह बिल्कुल सच है कि ऐसे इलाकों के दूर-दराज के गांवों में पहले से ही कठिनाई रही है, हम कोशिश कर रहे हैं कि ऐसे इलाकों के आदिवासियों को केंद्रीय योजनाओं में शामिल करके जागरूकता कार्यक्रम चलाए जाएं। इसके लिए केंद्र से सभी राज्यों को दिशानिर्देश जारी किये गये हैं कि विकास संबंधी योजनाओं का प्रचार-प्रसार करके उनकी विचारधारा बदलें।
सबका साथ-सबका विकास की बात हो रही है, तो नक्सलग्रस्त इलाकों में दिल्ली से विकास किस तरह पहुंचाएंगे?
दिल्ली से तो केवल दिशानिर्देश और मार्गदर्शन दिया जाता है। मोदी सरकार के इस नारे का मतलब साफ है कि राजनीति से परे हटकर देश के विकास के लिए सभी का साथ लेंगे, तो विकास की राह आसान होगी। जहां तक नक्सली क्षेत्रों के विकास का सवाल है उसके लिए राज्य शासन व प्रशासन को लोगों में बुनियादी सुविधाओं के जरिए विश्वास पैदा करके विकास को बढ़ावा देना चाहिए।
वन भूमि पर पर्यावरण मंत्रालय से क्लियरेंस को लेकर क्या विवाद है और इसे कैसे दूर करने के प्रयास हो रहे हैं?
वन अधिकार अधिनियम के तहत वनों में रहने वाले सबसे गरीब और परंपरागत लोगों को भी सशर्त भूमि पट्टा देने की प्रक्रिया अपनायी जा रही है। यह बिल्कुल साफ है कि ऐसा कोई विवाद मौजूदा सरकार में नहीं है।
क्या योजनाओं में प्रासंगिकता प्रावधानों को कमजोर करने के लिए दबाव है?
नहीं, यह सब कांग्रेस की साजिश है, जिसने अपने कार्यकाल में अधिनियमों की धज्जियां उड़ाते हुए वनों मेंं रहने वाले कमजोर वर्गो और आदिवासियों की 25-27 योजनाओं को रोक दिया था। जिन्हें समीक्षा के बाद मेरा मंत्रालय शुरू करने जा रहा है।
भूमि अधिग्रहण का आदिवासी इलाकों में कितना महत्व है?
आदिवासी क्षेत्रों के विकास में इस विधेयक के प्रावधानों का सबसे अधिक लाभ होने वाला है। अगर देश का विकास देखना है तो विरोध करने वालों को सरकार के साथ सहयोग करना चाहिए। सरकार के दिशा निर्देशों में जमीन लेने के लिए सीधे किसानों से संवाद और मुआवजा देने का प्रावधान क्या बुरा है।
मोदी सरकार की जनधन जैसी योजनाओं का आदिवासी क्षेत्रों में क्या प्रभाव है?
असली प्रभाव तो सकारात्मक रूप से आदिवासी क्षेत्रों में ही हो रहा है, जहां सबसे गरीब लोगों को भी बैंक खाते मिल गये हैं। सबसे बड़ा लाभ सरकारी योजनाओं में गरीबों को मिलने वाली आर्थिक सहायता का पैसा सीधे हर गरीब के खाते में पहुंचेगी। यही नहीं गरीबों के हितों की रक्षा करने वाली प्रधानमंत्री जीवन सुरक्षा योय्जना और अटल पेंशन योजना आदिवासी क्षेत्रों में रहने वाले गरीबों के उत्थान का सबब बनेगी।
आदिवासी इलाकों के लोगों को आपराधिक गतिविधियों से बाहर लाने की कोई योजना?
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी का नक्सलवाद से प्रभावित बस्तर का दौरा ऐसे आदिवासियों के लिए सकारात्मक संदेश है जो मजबूरन नक्सलियों का समर्थन करने को बाध्य रहते हैं। ऐसे लोगों में विश्वास पैदा करने के लिए आदिवासी इलाकों में सुरक्षा व्यवस्था बढ़ाने के साथ विकास कार्यो को प्रोत्साहन दिया जा रहा है ताकि भटके हुए गरीब व कमजोर आदिवासियों को समाज की मुख्यधारा में शामिल किया जा सके।
07June-2015

भारत-बांग्लादेश के बीच टूटेगी बर्लिन की दीवार!

-चार दशक बाद मिलेगी सीमा के 51 हजार लोगों को पहचान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
भारत-बांग्लादेश के बीच 41 साल पुराने सीमा विवाद के खत्म होने से सीमा पर रहते आ रहे 51 हजार से ज्यादा लोगों को भारतीय नागरिक के रूप में पहचान मिलने जा रही है। इसके लिए मोदी सरकार दोनों देशों के बीच भूमि विवाद समझौते को लागू करने के लिए एक माह पहले ही संसद में विधेयक को मंजूरी दे चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के बांग्लादेश दौरे पर दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण करार होने की उम्मीद है जिससे भारत और बांग्लादेश के रिश्ते और भी ज्यादा मजबूत होंगे।
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी बांग्लादेश के दौरे पर हैं जहां 41 साल से अटके पड़े ऐतिहासिक भूमि सीमा समझौते पर भारत और बांग्लादेश के प्रधानमंत्री के बीच हस्ताक्षर होने जा रहे हैं। इस विवाद को सुलझाने की राह को मोदी सरकार ने एक माह पहले ही संसद में एक विधेयक को मंजूरी हासिल कर चुकी है। दोेनों देशों के बीच हालांकि ऊर्जा, बिजली, सामाजिक, सुरक्षा, आर्थिक-व्यापार और तीस्ता नदी जैसे महत्वूपर्ण क्षेत्रों के अलावा सड़क, रेल व जल मार्ग जैसे मुद्दों पर भी समझौते होने की संभावना है, लेकिन सीमा विवाद में अटकी भारतीय सीमा में रह रहे 51 हजार से ज्यादा नागरिकों को भारतीय नागरिक के रूप में मिलने वाली पहचान के लिए चार दशक पुराना सीमा विवाद खत्म करने का मामला अत्यंत महत्वपूर्ण है, जिसे प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी पहले ही बर्लिन की दीवार गिराने जैसी घटना की संज्ञा दे चुके हैं। मोदी के बांग्लादेश दौरे से पहले ही गृह मंत्रालय ने भारत-बांग्लादेश की सीमा पर रहने वाले 51 हजार लोगों को भारतीय नागरिक की पहचान देने की योजना को अंतिम रूप दे दिया है। गौरतलब है कि 1947 से ही सरहद के दोनों तरफ ऐसी 111 भारतीय बस्तियां और 51 बांग्लादेशी बस्तियां हैं, जो गलत तरफ पड़ गई हैं। इनमें भारतीय सीमा में 51 हजार से ज्यादा लोग रहते आ रहे हैं। इस सीमा समझौते के बाद ये एन्क्लेव उन देशों का हिस्सा हो जाएंगे, जहां उनका वास्तरिक दायरा है और यहां रहने वाले लोगों को भारतीय या बांग्लादेशी नागरिकता चुनने का मौका मिल सकेगा। विदेश मामलों के विशेषज्ञ तो सीमा समझौते को लागू करने के फैसले को सीमा पर बसे लोगों की आजादी करार दे रहे हैं, जिन्हें एक देश की नागरिकता मिलने से उन्हें नई पहचान मिलने जा रही है। भूमि सीमा समझौते के अनुसार बांग्लादेश मे 17,160 एकड़ में करीब 111 भारतीय एनक्लेव हैं, जो बांग्लादेश को दिये जाएंगे, जबकि 7,110 एकड़ में मौजूद 51 बांग्लादेशी एनक्लेव भारत को मिलने जा रहे हैं।
सहमति से मिलेगी नागरिकता
गृह मंत्रालय के सूत्रों के अनुसार पहले नागरिकता के लिए आवेदन करने वालों को 12 साल का निवास साबित करना होता है, लेकिन अब भूमि सीमा समझौते के मद्देनजर एनक्लेव का नियंत्रण लिए जाने के बाद सरकार की योजना सामूहिक आधार पर नागरिकता देने की है। सूत्रों के अनुसार इसके लिए हर शख्स की सहमति ली जाएगी और नागरिकता दिए जाने से पहले उन्हें भारत में रहने या बांग्लादेश जाने का विकल्प दिया जाएगा। भारतीय नागरिकता कानून, 1955 के प्रावधानों के मुताबिक किसी खास इलाके में रहने वाले सभी लोगों को सरकार नागरिक घोषित कर सकती है और इन लोगों के लिए विशेष अभियान चलाने या फॉर्म भरने की जरूरत नहीं होगी, जिससे पहले के ठिकाने के वेरिफिकेशन के झंझट से बचा जा सकेगा।
07June-2015

शनिवार, 6 जून 2015

एक साल में ज्यादा खर्चीले साबित हुए भाजपा सांसद!

-यूपीए के दस साल के खर्च पर भारी राजग का एक साल
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
देश और जनता के लिए अच्छे दिन लाने के वादे पर विपक्षी दलों से घिरी मोदी सरकार एक साल की उपलब्धियों के सहारे विपक्ष को मुहंतोड़ जवाब देने का प्रयास कर रही है। इसके विपरीत मोदी सरकार एक साल में केंद्रीय मंत्रियों और भाजपा सांसदों पर हुए खर्च को लेकर विपक्ष के निशाने पर भी आती नजर आ रही है। मसलन भाजपा सांसदों पर जितना खर्च एक साल में हुआ है उतना यूपीए के दस साल के शासन में भी मनमोहन सरकार के मंत्रियों और सांसदों पर नहीं हुआ था।
दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की अगुवाई वाली राजग सरकार के मंत्रियों और भाजपा सांसदों पर एक साल में खर्च को लेकर जो रिपोर्ट सामने आई है, वह मोदी सरकार के लिए इस कारण मुश्किलें खड़ी कर सकती है, क्योंकि मोदी सरकार अच्छे दिनों के वादे पर पहले से ही विपक्षी दलों के निशाने पर है और अब विपक्ष एक साल में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों पर हुए खर्च के रिकार्ड को मुद्दा बनाने से नहीं चूकेंगे। लोकसभा सचिवालय के सूत्रों के मुताबिक केंद्र सरकार के मंत्रियों और भाजपा सांसदों पर एक साल में 25 करोड़ रुपये की धनराशि खर्च हुई है, जबकि इससे पहले यूपीए सरकार के कार्यकाल में मंत्रियों व सांसदों का दस साल में कुल खर्च 19.77 करोड़ था। यह खर्च उस स्थिति के बावजूद रिकार्ड बनता नजर आ रहा है जब पहले ही प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने अपनी टीम के मंत्रियों और सांसदों को पांच सितारा होटलों में प्रेस कांफ्रेंस और प्रथम श्रेणी की यात्रा न करने का फरमान जारी किया हुआ है। संसदीय नियमों के अनुसार सांसदों को शपथ लेने के दिन से ही उनके रहने हेतु आवास उपलब्ध कराने की जिम्मेदारी केंद्र सरकार की होती है। सरकार आवास मिलने तक सांसदों के ठहरने के लिए राज्य अतिथि गृहों या सरकारी होटलों में उनके ठहरने की व्यवस्था करती है, जिसका खर्च लोकसभा सचिवालय वहन करता है।
इसलिए बढ़ा खर्च
एक साल में केंद्रीय मंत्रियों और सांसदों के इतने बड़े खर्च के बारे में भाजपा सांसद और आवास समिति के अध्यक्ष अर्जुन मेघवाल का तर्क है कि 16वीं लोकसभा में पहली बार 330 सांसद निर्वाचित होकर आए हैं, जिनका दिल्ली में कोई आवास नहीं है। वहीं अनेक पूर्व मंत्रियों एवं पूर्व सांसदों ने सरकारी आवास भी खाली नहीं किये हैं। इसलिए नए सांसदों को होटलों में रहना पड़ रहा है, तो होटलों का खर्च बढ़ना स्वाभाविक है। सूत्रों के अनुसार लोकसभा में चुनकर आए नए सांसदों में से ज्यादातर जैसे जैसे आवास खाली हो रहे है उनमें अपना घर बनाते जा रहे हैं, लेकिन फिलहाल 141 सांसदों का बसेरा अभी होटलों में बना हुआ है, जिन्हें अभी सरकारी आवास मिलने का इंतजार करना पड़ रहा है। सूत्रों का यह भी कहना है कि सरकारी आवास उपलब्ध कराने में देरी हो रही है, जिसकी वजह कई पूर्व मंत्रियों और सांसदों द्वारा नोटिस जारी होने के बावजूद सरकारी आवास खाली न करना भी है। दिल्ली में सरकाकरी नियंत्रण वाले पांच सितारा अशोका जैसे होटल के कमरों का किराया सब्सिडी के बावजूद महंगा है जिसमें ज्यादातर सांसद सरकारी आवास मिलने तक ठहरने के लिए तरजीह देते हैं।
06June-2015

शुक्रवार, 5 जून 2015

भू-जल के गिरते स्तर को सुधारना बड़ी चुनौती!

राज्यों में लागू किया केंद्रीय मास्टर प्लान
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मौसम विभाग के मानसून और गर्मी के तापमान को लेकर लगाए अनुमान ने जल प्रबंधन की दिशा में उपाय और योजना बनाने के बावजूद सरकार की चिंताएं बढ़ा दी है। भूजल स्तर को सुधारने के लिए तैयार कराये गये मास्टर प्लान के बावजूद सूखा पड़ने की स्थिति में गिरते भूजल में सुधार करने की योजना केंद्र सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। उधर सरकार दावा कर रही है कि केंद्र के इस मास्टर प्लान को जल्द ही राज्योें में लागू किया जाएगा।
देश में जल संकट से निपटने के लिए मोदी सरकार ने केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के माध्यम से गिरते भूजल में सुधार करने की कार्ययोजना भी तैयार कराई गई है। हाल में मौसम विभाग की मानसून को लेकर सामने आए अनुमान को माने तो लगातार बढ़ती गर्मी के तापमान और आने वाले दिनों में सूखे की स्थिति के अनुमान को देखते हुए विशेषज्ञों का मानना है कि ऐसी स्थिति में भूजल के स्तर में सात से दस मीटर की गिरावट आ सकती है। मसलन जन सामान्य के लिए जल संकट बढ़ने के साथ रबी की फसल में किसानों के सामने सिंचाई की समस्या बड़ी चुनौती बन सकती है। हालांकि गिरते भूजल पर पेयजल की संभावित किल्लत को लेकर चिंताओं से घिरे होने के बावजूद केंद्र सरकार और जल संसाधन मंत्री उमा भारती का दावा है कि सरकार ने हर स्थिति से निपटने के उपाय कर लिये हैं और किसी के जन जीवन को प्रभावित नहीं होने दिया जाएगा। जल संसाधन विभाग को पिछले कुछ दिनों से पेयजल समस्या को लेकर मिल रही रिपोर्ट की माने तो पिछले दिनों छिटपुट बारिश के कारण भी शहर के ग्रामीण क्षेत्रों का भू-जल स्तर करीब 2 से 3 फीट तक नीचे खिसका है। जबकि मौजूदा समय में औसतन भूजल का स्तर 55-60 फीट आंका जा रहा है, लेकिन भू-जल का स्तर और गिरने की संभावना के चलते यह भी तय है कि कुओं और हैण्डपंपों के सूखने के हालात बनेंगे, तो सामने आने वाले पेयजल का संकट से निपटने के लिए सरकार के लिए किसी चुनौती से कम नहीं होगा।
इस कारण गिरता है भूजल
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार सामान्य सीजन की अपेक्षा रबी फसल के लिए धान की खेती करने में अधिक पानी लगता है। एक किलो धान की सिंचाई के लिए 3.5 हजार लीटर पानी की जरूरत पड़ती है, जबकि खरीफ फसल की अपेक्षा किसानों को इस मौसम में कम धान मिलता है। इसलिए विशेषज्ञ इसमें दलहन, तिलहन खेती करने की सलाह देते हैं। खेती की इन्हीं जरूरतों को पूरा करने के लिए किसान खेतों में ट्यूबवेल लगाकर मोटरपंपों का इस्तेमाल करते हैं। इसके कारण भू-जल का ग्राफ गिरता है। विशेषज्ञों का कहना है कि अलनीनों और लानीनों प्रभाव से पहले की मौसम विभाग और पीएचई की रिपोर्ट में भू-जल में गिरावट का अनुमान बेहद चिंता का विषय है। इसके लिए सरकार को समूचे खेती और जल संरक्षण के सिस्टम में सुधार करने की जरूरत है। तकनीकी तौर पर दुरुस्त और गुणवत्ता पूर्ण तालाबों और पौधरोपण से इस समस्या को काफी हद तक कम किया जा सकता है। क्योंकि गर्मी के दिनों में नदी, तालाबों का पानी सूखता है। वहीं बैमौसम खेती के लिए जमीन से पानी निकालना भी भूजल के स्तर में कमी का बड़ा कारण है।
क्या है सरकार की योजना
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास और गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने कहा कि भूजल का गिरता स्तर बेहद चिंताजनक पहलू है। इस तथ्य को संज्ञान में रखते हुए सरकार ने वर्षा जल एवं बाढ़ के जल के संचयन के साधनों को सतही और जल संसाधन के कुशल प्रबंधन को मजबूत करने पर बल दिया है। गिरते भूजल की समस्या से निपटने के लिए उनके मंत्रालय ने जल संरक्षण हेतु एक मास्टर प्लान तैयार किया है जिसे जल्द ही सभी राज्यों में परिचालित किया गया है। वहीं सरकार ने इस मास्टर प्लान के तहत पेड़ों की कटाई रोकने तथा ज्यादा से ज्यादा पौधारोपण करने का उपाय है ताकि पेड़ों की जड़े जड़ें पानी को रोककर वाटर लेबर रिचार्ज करती रहें। उमा भारती ने कहा कि ऐसे संकट से लोगों को प्रभावित न होना पड़े इसके लिए सरकार ने कई अन्य ठोस उपाय भी किये हैँ।
05June-2015

गुरुवार, 4 जून 2015

तो डाकघरों के भी फिरने लगे दिन!

ग्रामीण डाकघरों को मिलेगी वायरलेस कनेक्टिविटी
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने ‘डिजीटल इंडिया’ अभियान के तहत देशभर में डाकघरों का भी नई तकनीक के साथ आधुनिकीकरण करने का निर्णय लिया है, जहां आम जनता को बैंकिंग और रेलवे टिकट जैसी सुविधाएं भी उपलब्ध कराने की योजनाओं का विस्तार करना शामिल है।
केंद्रीय संचार एवं सूचना प्रौद्योगिक मंत्रालय के अनुसार एक साल के कार्यकाल में डाक विभाग का कायाकल्प करने की योजना के तहत केंद्र सरकार ने देशभर के डाकघरों का आधुनिकीकरण करने पर ज्यादा जोर दिया है। इसके तहत देश में 14.55 करोड़ खाते रखने वाले 2590 डाकघरों को कोर बैंकिंग समाधान सुविधा प्रदान करके उनका आधुनिकीकरण किया गय है। इस तकनीक के साथ ही सरकार ने 115 डाकघरों में एटीएम की व्यवस्था को शुरू किया है। इसी प्रकार 1.30 लााख ग्रामीण डाकघरों के लिए वायरलैस कनेक्टविटी सहित बायोमिट्रिक सौर ऊर्जा चालित मोबाइल उपकरणों का प्रमाणन देने की योजना को पूरा किया है। डाकघरो की कायाकल्प और उनके प्रति लोगों को आकर्षित करने की दिशा में 13264 डाकघरों को कोर डाक जीवन बीमा व्यवस्था में अंतरित किया गया है। मंत्रालय के अनुसार मोदी सरकार की गत 22 जनवरी को शुरू की गई 'सुकन्या समृद्धि योजना' के तहत पांच माह में ही 47 लाख से भी ज्यादा खाते डाकघरों में खोले जा चुके हैं। इसके लिए सरकार ने कुल निवेश का 570 करोड़ रुपये का आंकड़ा भी पार कर लिया है। मंत्रालय ने कहा कि डाकघरों में पिछले साल नवंबर में शुरू की गई किसान विकास पत्र की योजना में करीब 2600 करोड़ रुपये का निवेश आकर्षित किया जा चुका है।
आर्थिक सेहत सुधरी
संचार मंत्रालय के अनुसार डाकघरों की आर्थिक स्थिति में सुधार लाने के लिए सरकार द्वारा उठाए गये कदमों के तहत स्पीड पोस्ट के जरिए वर्ष 2014-15 में 1470 करोड़ रुपये का राजस्व अर्जित किया गया है। जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में यह राशि 1369 करोड़ रुपये थी। गौरतलब है कि आठ राज्यों में की गई विस्तृत पड़ताल के आधार पर कैग की गत 8 मई 2015 को संसद में पेश की गई रिपोर्ट में यह बात सामने आई थी कि स्पीड पोस्ट सेवा की गुणवत्ता निजी कुरियर की सेवाओं के मुकाबले काफी अच्छी है। वहीं पार्सल से अर्जित राजस्व की वृद्धि दर वर्ष 2013-14 में घटकर 2 फीसदी नकारात्मक रह गई थी, जबकि वर्ष 2014-15 के दौरान इसमें 37 फीसदी का जोरदार इजाफा हुआ। मंत्रालय का दावा है कि डिलीवरी पर नकदी संग्रह वर्ष 2014-15 में पांच गुना बढ़कर 500 करोड़ रुपये के स्तर पर पहुंच गया, जबकि इससे पिछले वित्त वर्ष में यह राशि 100 करोड़ रुपये ही थी। सरकार की पहल और उठाए गये सकारात्म कदमों के कारण डाक विभाग की आर्थिक स्थिति में भी सुधार हो रहा है जो आने वाले दिनों में डाक विभाग अपनी महत्ता पेश करने में सफल हो सकेगा।
04June-2015

बुधवार, 3 जून 2015

जलमार्ग के साथ देश में विकसित होंगे 1100 द्वीप


पर्यटन क्षेत्र मे 300 प्रकाश स्तंभ बनाना भी लक्ष्य
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
देश में विकास के एजेंडे के लक्ष्य पर जहां सड़क व रेल यातायात की ढांचागत सुविधाओं का विकास करना प्राथमिकता पर है, वहीं मोदी सरकार का अंतर्देशीय जलमार्ग को विकसित करके सामाजिक और आर्थिक ढांचे को सशक्त बनाना है। सरकार का मानना है कि भूमि अधिग्रहण विधेयक इस विकास के एजेंडे की रीढ़ है जिसके जरिए देश के विकास और रोजगार सृजन की राह बेहद आसान हो सकेगी।
केंद्र सरकार ने  राष्ट्रीय जलमार्ग कानून के जरिए देश में 101 नदियों को जलमार्ग में बदलने की योजना का खाका तैयार किया है, ताकि सड़क व रेल यातायात के साथ जल संबन्धी ढांचागत सुविधाओं का विकास भी किया जा सके और देश को सामाजिक व आर्थिक रूप से विकास के एजेंडे की दहलीज पर लाया जा सके। इस संबन्ध में केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने जलमार्ग को विकसित करने के लिए देश की 101 नदियों को चिन्हित किया है। केंद्र सरकार का देश की 101 नदियों को जलमार्ग में बदलने के संबन्ध में राष्टÑीय जलमार्ग विधेयक संसद में लंबित है, जिसके आगामी मानसून सत्र में पारित होने की संभावना है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी ने देश के विभिन्न क्षेत्रों में पर्यटन की संभावनाओं का पूर्ण रूप से दोहन करने पर भी ध्यान दिया है। यही कारण है कि सरकार 101 नदियों को जलमार्ग में तब्दील करके जलमार्गों के विकास के लिए अगले दो-तीन साल के लक्ष्य में 50 हजार करोड़ रुपये की परियोजना का खाका तैयार कर चुकी है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की दिलचस्पी को ध्यान में रखते हुए उनके मंत्रालय ने जलमार्ग के विकास के संबन्ध में तैयार किये गये कैबिनेट नोट में 300 लाइट हाउस तथा 1100 द्वीप विकसित करने के प्रस्ताव को शामिल किया है। गडकरी के अनुसार सरकार की इस मेगा योजना से देश में जल संबंधी ढांचागत सुविधा और भी ज्यादा मजबूत होगी। मंत्रालय के अनुसार 101 नदी जलमार्ग में से 16 नदियों के बारे में विस्तृत परियोजना रिपोर्ट इस महीने पूरी कर ली जाएंगी, जबकि अन्य 40 नदियों के बारे में रिपोर्ट दिसंबर 2015 तक तैयार होने की संभावना है।
भूमि कानून से मिलेगी मजबूत राह
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्री नितिन गडकरी का मानना है कि एक साल के कार्यकाल में हालांकि सरकार ने विकास की परियोजनाओं खासकर सड़क परियोजनाओं को अभी तक के इतिहास में सर्वाधिक तेजी प्रदान की है, लेकिन यदि शुरूआती दौर में भूमि अधिग्रहण विधेयक को मंजूरी मिल जाती तो देश की तस्वीर कुछ और ही होती। उन्होंने कहा कि देश में करीब 30 करोड़ की आबादी गरीबी के दायरे में है। और भूमि अधिग्रहण में संशोधन लागू होने से जहां किसानों को सामाजिक व आर्थिक रूप से लाभ होगा, वहीं देश के विकास को तो पंख लगने ही हैं, वहीं गरीब लोगों के लिए रोजगार सृजन की राह भी तेजी से आगे बढ़ेगी। मसलन इस कानून के लागू न होने के कारण सड़क, रेल और जल संबन्धी परियोजनाओं को जिस तेज गति से विकसित करने का लक्ष्य था उसे गति नहीं मिल पा रही है।
बांग्लादेश से भी उम्मीदें
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी की आगामी बांग्लादेश यात्रा को भी राष्ट्रीय जलमार्ग के विकास की दृष्टि से महत्वपूर्ण माना जा रहा है, जिसमें उम्मीद है कि जलमार्ग के जरिये वस्तुओं के परिवहन पर दोनों देशों के बीच कई महत्वपूर्ण समझौते होंगे। गडकरी के अनुसार सरकार इन जलमार्गों का विकास में तेजी लाने के लिए सार्वजनिक-निजी भागीदारी (पीपीपी) मॉडल की योजना बना रही है, इसके लिए बोलीदाताओं ने पांच सड़क परियोजनाओं में उत्साह दिखाया है। इसमें लार्सन एंड टूब्रो की बोली शामिल है जिसने लागत से 20 प्रतिशत कम बोली लगायी है।
03June-2015