बुधवार, 10 जून 2015

भूमि अधिग्रहण अध्यादेश: रणनीतिक फार्मूले की राह पर सरकार!

जेपीसी में भूमि अध्यादेश पर उठे सवालों से बढ़ी मुश्किलें
ओ.पी. पाल
. नई दिल्ली।
भूमि अधिग्रहण विधेयक की जांच पड़ताल कर रही संयुक्त संसदीय समिति में विपक्षी दलों के सदस्यों के कड़े तेवरों ने केंद्र सरकार की मुश्किलें बढ़ा दी हैं। इन मुश्किलों से बाहर आने के लिए अब मोदी सरकार इस मुद्दे पर रणनीतिक फार्मूले की राह पकड़ती नजर आ रही है। ऐसे संकेत हैं कि सरकार विधेयक के प्रावधानों को लेकर किसान संगठनों और कांग्रेस से कुछ मुद्दों पर आम सहमति बनाने का प्रयास करेगी।
मोदी सरकार देश के विकास संबन्धी कुछ महत्वपूर्ण परियोजनाओं में रोड़ा बन रही भूमि अधिग्रहण की समस्या से निपटने के लिए हर संभव संसद के मानसून सत्र में भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद में पारित कराना चाहती है। सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण पर चार जून को लागू किये गये तीसरे और अंतिम भूमि अधिग्रहण अध्यादेश की आगामी तीन अगस्त को खत्म होने वाली मियाद को देखते हुए ऐसे रणनीतिक फार्मूले पर काम करेगी। सूत्रों के अनुसार केंद्र सरकार ने तमाम किसान संगठनों से विधेयक के प्रावधानों पर सीधे संवाद करने के लिए कुछ केंद्रीय मंत्रियों की फौज तैयार कर ली है। यह मंत्री समूह भूमि विधेयक का विरोध कर रहे विपक्षी दलों की अगुवाई कर रही कांग्रेस पार्टी से भी बातचीत करेगी और सुझाव लेकर देश और किसानों के हित में आने वाले सुझावों को विधेयक के प्रावधानों में शामिल करेगी। सरकार की ओर से सूत्रों से मिले संकेतों की माने तो सरकार ने इस विधेयक की जांच के लिए बनी संयुक्त संसदीय समिति में शामिल कांग्रेस के सदस्यों के विरोध और समिति का बहिष्कार करने की सुगबुगहाट को गंभीरता से लिया है। मसलन सरकार अब इस विधेयक में अपने संशोधनों में आपसी सहमति बनाकर संशोधन करने का संकेत देती दिखाई दे रही है। इस मुद्दे पर जेपीसी में कांग्रेस सदस्यों के बहिष्कार के संकेत को देखते हुए अपनी रणनीतिक भाषा में सरकार कह रही है कि भूमि विधेयक पर जेपीसी के सुझावों का सरकार सम्मान करेगी।

वापस हो सकते हैं ये संशोधन
राज्यसभा में अल्पमत में होने के कारण दो प्रयासों के बावजूद लटकते आ रहे भूमि अधिग्रहण विधेयक को संसद के आगामी मानसून सत्र में अंजाम तक पहुंचाने की रणनीति पर उतरी सरकार के सूत्रों से संकेत मिल रहे हैं कि मानसून सत्र में जेपीसी की रिपोर्ट आने से पहले ही सरकार इस मुद्दे पर विपक्ष के साथ बने गतिरोध और इसके कारण गले की फांस से भूमि अधिग्रण विधेयक को आम सहमति के साथ बाहर निकालना चाहती है। सूत्रों के अनुसार खासकर राज्यसभा में भूमि अधिग्रहण विधेयक को पारित कराने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी भी विभिन्न दलों के सहयोग की बात कर रहे हैं। ऐसे में संकेत मिल रहे हैं कि विपक्षी दलों के साथ सहमति बनाने की दिशा में रणनीतिक फार्मूले में इस विधेयक में कुछ और संशोधन लाने की तैयारी है। ऐसे संशोधनों में सरकार भूमि अधिग्रहण के लिए किसानों की सहमति के प्रावधान को वापस ले सकती है, भले ही 70-80 फीसदी से घटाकर 50-60 फीसदी पर सहमति बनाई जाए। वहीं भूमि अधिग्रहण की निगरानी और किसानों के हितों में सांसदों-विधायकों की समितियां बनाने का प्रस्ताव शाामिल किये जाने के भी संकेत हैं। इसी प्रकार नगरीय निकायों की सीमाओं का दायरा बढ़ाते हुए शहरी इलाकों से सटे किसानों की अधिग्रहित भूमि पर ज्यादा मुआवजा देने का प्रावधान शामिल किया जा सकता है। सरकार का प्रयास है कि किसी तरह भूमि अधिग्रहण विधेयक पारित कराकर इस चुनौती से निपटा जाए।
भूमि बिल के विरोध के कारण
देश के विकास के एजेंडे को पूरा करने हेतु जिस प्रकार भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013 में संशोधन करने का फैसला मोदी सरकार के गले की फांस बना हुआ है। मुख्य रूप से कांग्रेस समेत मोदी सरकार के संशोधनों का विरोध इसलिए भी हो रहा है कि यूपीए सरकार के विधेयक में व्यवस्था थी कि यदि किसी अधिग्रहित भूमि पर पांच तक परियोजना शुरू नहीं होती तो उस जमीन को किसान वापस लेने का हकदार होगा, जिसे मोदी सरकार ने खत्म करते इसमें यह प्रावधान जोड़ दिया है कि यदि मामला अदालत में हैै तो मुकदमेबाजी के वक्त को 5 साल की मियाद में नहीं जोड़ा जाएगा। इसी प्रकार नए विधेयक में मुआवजे की परिभाषा बदलने, कानून तोड़ने वाले अधिकारियों की जवाबदेही में ढील देने के अलावा सरकार और निजी कंपनियों के साझा प्रोजेक्ट में 80 फीसदी जमीन मालिकों की सहमति जैसे प्रावधानों में व्यापक बदलाव किये हैं, जिनका विपक्ष जबरदस्त विरोध करता आ रहा है।
10June-2015

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