सोमवार, 15 जून 2015

भू-बिल में संशोधनों से इसलिए खफा किसान!

भाकियू ने जेपीसी को आपत्ति के साथ भेजे सुझाव
ओ.पी. पाल.
नई दिल्ली।
मोदी सरकार द्वारा यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण विधेयक में किये जा रहे संशोधनों को किसान स्वीकार करने को तैयार नहीं है, जिसे भारतीय किसान यूनियन ने अंगे्रजी हुकूमत के कानून को फिर से पुनर्जीवित करके किसानों की बर्बादी का परवाना करार दिया है। भाकियू ने नए विधेयक की जांच कर रही संयुक्त संसदीय समिति को इसमें संशोधनों पर आपत्ति जताते हुए कई ऐसे महत्वपूर्ण सुझाव दिये हैं जो किसानों के हित में हैं।

       भाकियू अध्यक्ष नरेश टिकैत और राष्ट्रीय महासचिव राकेश टिकैत व चौधरी युद्धवीर सिंह ने कहा कि देश के किसानोें में मोदी सरकार के नए भूमि अधिग्रहण विधेयक में किये गये संशोधनों को लेकर इसलिए नाराजगी है कि इसके लागू होने से अंग्रेजी हुकूमत वाले भूमि अधिग्रहण कानून की तरह ही उनकी जमीन को अनुचित और अन्यायपूर्ण तरीके से जबरन छीना जाता रहेगा और एक दशक से ज्यादा समय तक लड़ाई के बाद पिछली सरकार मेें मिले किसानों के हकों को फिर से अंग्रेजी कानून की तरह छीन लिया जाएगा। संसदीय संयुक्त समिति को भेजे गये सुझावों में भाकियू ने ऐसे सुझाव दिये हैं जिनके जरिए समुचित मुआवजा और पारदर्शिता के अधिकारों को किसानों के हित में लागू किया जा सकेगा और किसी किसान की जमीन जबरन नहीं छीनी जा सकेगी। सुझावों में भाकियू ने यूपीए-2 सरकार के अधिसूचित भू-बिल के प्रावधानों से मौजूदा सरकार द्वारा किये गये संशोधनों से तुलना करते हुए ऐसे पहलुओं पर विचार करने का अनुरोध किया है जिसमें किसानों के साथ खाद्य सुरक्षा के हितो की भी रक्षा की जा सकती है। गौरतलब है कि संसद के बजट सत्र के दौरान विपक्ष के दबाव में मोदी सरकार द्वारा भूमि अधिग्रहण विधेयक-2015 को संसद की संयुक्त समिति को सौंप दिया था, जिसकी अभी तक दो बैठकें हो चुकी है और इन बैठकों में समिति में शामिल ज्यादातर विपक्षी दलों के सांसदों ने तीसरा अध्यादेश लाने पर केंद्र सरकार की आलोचना करते हुए संसद का अपमान करने का आरोप तक लगा दिया है। चौतरफा यूपीए सरकार के भूमि अधिग्रहण बिल-2013 में किये जा रहे संशोधनों पर आपत्ति जताते हुए भाकियू ने दावा किया है कि किसानों के खफा होने का कारण यही है कि मोदी सरकार फिर से अंग्रेजी हुकुमत 1894 के भूमि अधिग्रहण अधिनियम जैसे प्रावधानों को फिर से किसानों को थौंपने का प्रयास कर रही है। भाकियू का दावा है कि यूपीए सरकार ने किसी तरह किसानों के लंबे संघर्ष के बाद किसानों के हित में भूमि अधिग्रहण बिल लाकर अंग्रेजी कानून को खत्म किया था।
नहीं मंजूर कागजी संशोधन
भाकियू ने कहा कि मोदी सरकार ने भू-विधेयक में जो संशोधन किये हैं वह पूरी तरह से कागजी हैं, जिन्हें देश का किसान किसी भी कीमत पर स्वीकार करने को तैयार नहीं है। किसानों का हितैषी बताते वाली राजग सरकार इस कानून के जरिए भूमि अधिग्रहण विधेयक-2013 के कानून के मूल उद्देश्यों को खारिज करती दिख रही है, जिसमें खेती की जमीन का हस्तांतरण, खाद्य सुरक्षा की अनदेखी, लोगों की जीविका, जबरदस्ती भूमि अधिग्रहण पर रोक, अधिग्रहित भूमि को किसानों को वापसी आदि जैसे मुद्दे पूरी तरह से गायब या खत्म होते दिख रहे हैं। यह सरकार भी जानती है कि जमीनें पीढ़ी दर पीढ़ी आजीविका मुहैय्या कराती हैं, जबकि मुआवजा किसानों को कभी भी वैकल्पिक आजीविका नही दे सकता। भारत में कृषि योग्य जमीनें व किसान नहीं बचेंगें तो देश की खाद्य संप्रभुता समाप्त हो जायेगी और देश खाद्य के मामले आॅस्ट्रेलिया और अमेरिका जैसे देशों पर निर्भर होना पड़ेगा। वहीं जमीन से जुड़े हुए भूमिहीन किसान और खेत मजदूर तथा ग्रामीण, दस्तकार ,छोटे व्यापारी देश के नक़्शे से ही गायब हो जायेंगे।
15June-2015

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