सोमवार, 31 जुलाई 2017

संसद का मानसून सत्र: में आज भी हंगामे के आसार


विपक्ष पर दबाव के बावजूद भारी पड़ रही है सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के मानसून सत्र के पिछले दो सप्ताह में विभिन्न मुद्दों को लेकर सरकार को घेरने के लिए विपक्ष के हंगामे के आसार अभी खत्म नहीं हुए हैं। दोनों सदनों में हंगामा कर दबाव बनाने के बावजूद सरकार विपक्ष के सामने झुकी नहीं है और पिछले सप्ताह राज्यसभा में भी चार विधेयक पारित कराने में कामयाब रही। इसके बावजूद कल सोमवार से होने वाली संसद की कार्यवाही के दौरान विपक्ष के हंगामे के आसार बने हुए हैं। 
संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेरने की रणनीति में विपक्ष की लामबंदी कमजोर नजर आई, जिसके कारण किसी भी मुद्दे पर सरकार लगातार बनते दबाव के बावजूद झुकने को तैयार नहीं हुई। यहां तक कि लोकसभा में गौरक्षा के मुद्दे पर हंगामा करते कांग्रेस के छह सांसदों के निलंबन को भी पिछले पूरे सप्ताह हंगामे के बीच विपक्ष की मांग बेअसर साबित हुई। अब राज्यसभा में विपक्षी दलों की अगुवाई करने वाली कांग्रेस गुजरात में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को लेकर सत्तापक्ष के प्रति आक्रमक तो है, लेकिन चुनाव आयोग से गुहार लगाने के बावजूद उसे राहत मिलने की संभावनाएं कम है, जिसके विरोध में कांग्रेस केवल संसद के दोनों सदनों में सोमवार को फिर हंगामा करके सरकार पर निशना साधने के अलावा कुछ करने की स्थिति में नजर नहीं आती। जबकि संसद के मानसून सत्र में सरकार को घेरने के लिए विपक्षी दल पहले दिन से ही किसानो, बाढ़ की स्थिति, दलितों, इराक में फंसे भारतीयों और पाक-चीन जैसे मुद्दो पर सरकार को घेरने के लिए हंगामा करते आ रहे हैं। हालांकि इन मुद्दों पर दोनों सदनों में अल्पकालिक चर्चाएं कराकर सरकार विपक्ष को वास्तविकता बताते हुए जवाब दे चुकी है। राज्यसभा में पिछले सप्ताह शुक्रवार की कार्यवाही गुजरात में कांग्रेस विधायकों के इस्तीफे को लेकर हंगामे की भेंट चढ गई। इस मुद्दे को लेकर तीसरे सप्ताह की सोमवार को संसद में शुरू होने वाली कार्यवाही के दौरान दोनों सदनों में फिर गरमाहट की सुगबुगहाट है। 
हंगामे के बावजूद हुआ काम
संसद के मानसून सत्र की पहले दो सप्ताह की कार्यवाही में हालांकि विपक्ष के विभिन्न मुद्दों को लेकर हंगामा होता रहा, लेकिन राज्यसभा की अपेक्षा इसके बावजूद लोकसभा में कामकाज भी होता रहा है। लोकसभा में लंबित और नए विधेयकों में सरकार इस दौरान आठ विधेयक पारित करा चुकी है, जबकि राज्यसभा में पहले सप्ताह एक भी विधेयक आगे नहीं बढ़ पाया, लेकिन पिछले सप्ताह चार महत्वपूर्ण विधेयक पारित किये गये। पिछले सप्ताह राज्यसभा में सांख्यिकी संग्रहण (संशोधन)विधेयक, राष्ट्रीय प्रोद्यौगिक, विज्ञान शिक्षा और अनुसंधान संस्था (संशोधन)विधेयक, फुटवियर डिजाइन और विकास संस्थान विधेयक के अलावा नवाधिकरण (समुद्री दावा निपटान)विधेयक पारित कराने के अलावा वास्तुविद (संशोधन)विधेयक को वापस भी लिया गया है। हालांकि पहले दिन से राज्यसभा की कार्यसूची में शामिल नये मोटर  वाहन विधेयक को विपक्ष की आपत्ति के कारण पेश नहीं किया गया है, जिसमें सरकार और विपक्ष की सहमति नहीं बन सकी है। इस विधेयक को विपक्ष प्रवर समिति में भेजने की मांग कर रहा है।

देश में 43.53 लाख बाल श्रमिकों की पहचान



सख्ती के साथ लागू किया गया प्रतिबंधित कानून
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में बाल श्रम पर पूर्णतया प्रतिबंध लगाने वाले कानून को सख्ती से लागू करने के बावजूद देश में 43.53 लाख बाल श्रमिकों की पहचान की गई है। हालांकि सरकार ने बालश्रम के उन्मूलन और उनके पुनर्वास के लिए कई योजनाओं को पटरी पर उतारने का दावा किया है।
केंद्रीय श्रम और रोजगार मंत्रालय के अनुसार पिछले साल बाल श्रम (प्रतिषेध एवं विनियमन) अधिनियम में संशोधन करके इसे देशभर में सख्ती के साथ लागू किया गया है। इस संशोधित कानून में 14 वर्ष से कम आयु के बच्चों के साथ ही जोखिमभरे कारोबार और प्रक्रियाओं में 14 से 18 साल तक के किशोरों के नियोजन अथवा कार्य करने पर पूरी तरह प्रतिबंध लगाया गया है। मंत्रालय के अनुसार सरकार ने राष्ट्रीय बाल श्रम परियोजना लागू करके उसकी समीक्षा की और इस परियोजना के तहत ऐसे श्रमिकों के पुनर्वास के लिए विशेष प्रशिक्षण केंद्रों का शिक्षा के अधिकार अधिनियम के तहत संबन्ध स्थापित किया गया। इसके साथ ही मंत्रालय ने स्वीकार किया है कि एक राष्ट्रीय सर्वेक्षण के जरिए बाल श्रमिकों की पहचान कराई गई, तो देशभर में 5 से 14 साल तक की आयु वर्ग के बाल श्रमिकों की संख्या 43.53 लाख है। हालांकि सरकार ने दावा किया कि वर्ष 2001 की जनगणना के आधार पर 57.79 लाख से घटकर 2011 की जनगणना के आधार पर बालश्रमिकों की संख्या में कमी आई है। मंत्रालय के अनुसार सरकार बाल श्रम के उन्मूलन हेतु बहु आयामी रणनीति के तहत सामाजिक और आर्थिक विकास की अन्य स्कीमों के साथ बाल श्रमिकों को कामकाज से अलग करके सांविधिक और विधायी उपाय कर रही है, जिसमें उनके पुनर्वास औश्र उनकी सार्वभौमिक प्राथमिक शिक्षा भी इस रणनीति में शामिल है। इस अधिनियम में संशोधन के बाद सरकार ने पिछले माह नियमों में भी संशोधन किये हैं जिनमें जिला स्तर पर जिलाधिकारियों की अध्यक्षता में जिला नोडल अधिकारी और कार्यबल के गठन का प्रावधान किया गया है, ताकि जिला स्तर पर निगरानी करके इस आयु के बच्चों को मुक्त कराकर उनके पुनर्वास और उनकी शिक्षा के प्रति जागरूता बढ़ाई जा सके।