ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
छत्तीसगढ़
और ओड़िशा के बीच महानदी के जल बंटवारे को लेकर चले आ रहे विवाद को निपटाने के लिए
पिछले करीब एक साल से केंद्र सरकार के सभी प्रयास विफल रहे। खासकर ओडिशा की शुरू
से ही केंद्र सरकार से इस विवाद के लिए ट्रिब्यूनल बनाने की जिद के सामने अभी तक
गठित विशेषज्ञ समितयां भी किस नतीजे पर नहीं पहुंच सकी हैं।
केंद्रीय
जल संसाधन मंत्रालय ने महानदी के जल बंटवारे को लेकर चले आ रहे इस विवाद में
छत्तीसगढ़ और ओडिशा के बीच तकरार को खत्म करने के लिए गत 19 जनवरी को तत्कालीन केंद्रीय
राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण के महानिदेशक एसएम मसूद की अध्यक्षता में विशेषज्ञों की
एक 12 सदस्यीय विचार-विमर्श यानि समझौता समिति का गठन किया था। हाल ही में इस
समिति ने मंत्रालय को अपनी रिपोर्ट सौंप दी है, जिसमें समिति ने बिना किसी नतीजे
पर पहुंचने के कारण गिनाए हैं और इसमें राज्यों की असहयोग नीति को भी जिम्मेदार
ठहराया है। इस संबन्ध में समिति के चेयरमैन रहे केंद्रीय जल आयोग के सदस्य(डब्ल्यूपी
एंड पी) एसएम मसूद ने बताया कि इस समित में महानदी से जुड़े पांच राज्यों पांच राज्यों
ओडिशा, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, महाराष्ट्र और झारखंड के दावों के आधार पर महानदी
के मौजूदा जल बंटवारा समझौतों और इन नदियों के जल की उपलब्धता एवं उपयोग के संबंध
में पांचों राज्यों के दावों पर विचार किया। इसके लिए समित की दो बै़ठकें 28 फरवरी
और 22 मई को हुई, लेकिन ओड़िशा सरकार के प्रतिनिधि दोनों बैठकों में शामिल नहीं
हुए, जबकि पहली बैठक में छत्तीसगढ़ के अधिकारी शामिल हुए और अपना तर्क पेश किया।
इसके बाद समिति ने अपनी रिपोर्ट मंत्रालय को सौंप दी है।
ट्रिब्यूनल बनाने पर अड़ा ओडिशा
समिति के
चेयरमैन मसूद की माने तो महानदी विवाद पर ओड़िशा का शुरू से ही अड़ियल रवैया रहा
है, जो आरंभ से ही केंद्र सरकार के प्रयासों के बीच लगातार महानदी विवाद के लिए
ट्रिब्यूनल का गठन करने की मांग करता आ रहा है। इसके लिए ओड़िशा सरकार ने
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को भी पत्र लिखा हुआ है। यही नहीं सुप्रीम कोर्ट में
भी ओड़िशा सरकार ने ट्रिब्यूनल गठित करने के लिए सरकार को आदेश जारी करने की मांग
कर रखी है। सूत्रों के अनुसार समिति की
मंत्रालय में पहुंची रिपोर्ट के तत्काल बाद ओडिशा सरकार के मुख्य सचिव आदित्य
प्रसाद पाधी ने जल संसाधन मंत्रालय में सचिव डा. अमरजीत सिंह को पत्र लिखकर जल्द
से जल्द ट्रिब्यूनल बनाने के लिए कार्यवाही शुरू करने का अनुरोध किया है। वहीं इस
पत्र में पाधी ने छत्तीसगढ़ सरकार द्वारा कलमा बैराज को बंद करके पानी रोकने और
बरसात के बाद खोलने के मामले को इंगित करते हुए छत्तीसगढ़ सरकार की इन गतिविधियों को
रोकने के लिए आदेशित करने की भी मांग की है। चूंकि समिति किसी नतीजे पर नहीं
पहुंची जिसका ओड़िशा सरकार ने बहिष्कार किया है तो इस कमेटी के ओचित्य को समाप्त
माना जाए।
केंद्रीय
जल संसाधन मंत्रालय के सूत्रों की माने तो अब मंत्रालय के पास महानदी विवाद पर
ट्रिब्यूनल के गठन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने के अलावा कोई विकल्प नहीं है और
मंत्रालय इस प्रक्रिया के लिए समितियों के जरिए विवादित मुद्दों पर विशेषज्ञों की जांच
और विचार करने की आवश्यक औपचारिकताएं भी पूरी कर चुका है। इस समिति की रिपोर्ट के
बाद ऐसी संभावनाएं बढ़ गई हैं कि मंत्रालय अब ट्रिब्यूनल के रास्ते को अपनाने के
लिए कानूनी मशवरा लेना शुरू करेगी। वैसे भी देश में कई राज्यों के बीच चल रहे ऐसे नदी
जल विवादों का हल निकालने की दिशा में केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती
द्वारा संसद के बजट सत्र के दौरान 14 मार्च को पेश किया गया अंतर्राज्यीय नदी जल विवाद
(संशोधन) विधेयक लोक सभा में लंबित है। इस विधेयक के पारित होते ही अंतर्राज्यीय जल
विवाद निपटारों के लिए अलग अलग अधिकरणों की जगह एक स्थायी अधिकरण की व्यवस्था का
रास्ता साफ हो जाएगा।
15July-2017
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