एसोचैम-पीडब्ल्यूसी
की रिपोर्ट में हुआ खुलासा
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार
द्वारा देश में बिजली संकट से निपटने की दिशा में चलाई जा रही विभिन्न विद्युत परियोजनाओं
में 13,363 मेगावाट की जल विद्युत परियोजनाएं अधर में लटकी हुई हैं। इन लंबित परियोजनाओं
के कारण इनकी लागत भी 50 हजार करोड़ रुपये से ज्यादा बढ़ गई है। हालांकि सरकार लंबित
जल विद्युत परियोजनाओं को आगे बढ़ाने के लिए पन बिजली नीति लाने की तैयारी कर रही है।
यह खुलासा
देश के प्रमुख कारोबारी संगठन एसोचैम और प्राइज वाटर हाऊस कूपर्स (पीडब्ल्यूसी) की
जारी ताजा एक संयुक्त अध्ययन रिपोर्ट में किया गया है। अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक देश
में गत दिसम्बर 2016 तक करीब 13,363 मैगावाट की जलविद्युत परियोजनाएं सरकार के ठंडे
बस्ते में हैं, इसकारण इन परियोजनाओं की लागत भी 52,697 करोड़ रुपए बढ़ गई है। रिपोर्ट
में कहा गया है कि देश में जल विद्युत की अपार संभावनाओं के बावजूद अब तक केवल 30 फीसदी
क्षमता का ही दोहन किया गया है। देश में ऊर्जा सुरक्षा के लिए जल विद्युत उत्पादन को
बढ़ावा देने वाली इस अध्ययन रिपोर्ट के अनुसार केंद्र सरकार की करीब एक चौथाई यानी
24 प्रतिशत जल विद्युत परियोजनाओं में स्थानीय एवं कानून व्यवस्था से जुड़े मुद्दों
तथा 21 प्रतिशत में भू-गर्भीय, जलविज्ञान और जमीन की बनावट के कारण देरी हो रही है।
अध्ययन के अनुसार राज्यों की इन परियोजनाओं में 35 प्रतिशत ठेके संबंधी विवादों तथा
निजी क्षेत्र की 35 प्रतिशत परियोजनाएं भू-गर्भीय तथा जमीन की बनावट से जुड़े मुद्दों
के कारण लटकी हुई हैं।
जल विद्युत आयोग बनाने का सुझाव
संगठन की अध्ययन
रिपोर्ट में केंद्र सरकार को महत्वपूर्ण सुझाव भी दिये गये हैं, जिनमें ऐसी परियोजनाओं
से जुड़े विभिन्न पक्षों में समन्वय कायम करने की दिशा में ‘जलविद्युत आयोग’ के गठन
की संभावना पर विचार करने की सलाह भी दी गई है। वहीं परियोजनाओं को आगे बढ़ाने की दिशा
में समर्पित पारेषण गलियारा बनाने तथा परियोजना के आसपास सामाजिक-आर्थिक चिंताओं को
दूर करने का भी सुझाव दिया गया है। वहीं लंबित परियोजनाओं के लिए भूमि अधिग्रहण की
कठिनाइयों को दूर करने हेतु सार्वजनिक एवं निजी क्षेत्र की भागीदारी यानि पीपीपी माडल
अपनाए जाने और इस दिशा में एक अलग से कोष बनाने की सिफारिश की गई है। अध्ययन रिपोर्ट
में इसके अलावा परियोजनाओं का विकास करने वालों से सामाजिक एवं पर्यावरण संबंधी संसाधनों
के वित्तीय मूल्य का आकलन करने का भी जिक्र किया गया है।
जल्द आ सकती है पन बिजली नीति
पिछले महीने
केंद्रीय विद्युत मंत्री पीयूष गोयल ने भी हालांकि कुछ जल विद्युत परियोजनाओं का जिक्र
किया था, जिसमें राज्यों के असहयोग के कारण इनके लटके रहने का कारण बताते हुए उन्होंने
एक पन बिजली नीति जारी करने की बात कही थी। मंत्रालय के अनुसार इस नीति के लिए मंत्रालय
में तैयार पन बिजली नीति के मसौदे को समीक्षा के लिए वित्त मंत्रालय भेजा जा चुका है,
जिसे जल्द ही केंद्रीय कैबिनेट के समक्ष मंजूरी के लिए प्रस्तुत किया जा सकता है। मंत्रालय
के अनुसार इस नीति के तहत सरकार देश में 11,639 मेगावाट क्षमता की 40 अटकी पन बिजली
परियोजनाओं को 16,709 करोड़ रुपए का वित्तीय सहयोग मुहैया कराएगा। मंत्रालय का मानना
है कि पन बिजली नीति को मंजूरी मिलले के बाद देश में बड़ी और छोटी पन बिजली परियोजनाओं
के बीच भेद समाप्त हो जाएगा।
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