शनिवार, 30 मार्च 2024

राजस्थान: भाजपा के सामने क्लीन स्वीप कर हैट्रिक बनाने का मौका

एक दशक के सियासी सूखे की आस में जुटी कांग्रेस
पहले चरण में 12 सीटों पर मतदान करेंगे ढाई करोड़ मतदाता 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में राजस्थान की सभी 25 सीटों पर क्लीन स्वीप करने के मिशन से चुनाव मैदान में है, तो कांग्रेस सामने पिछले दो चुनाव के सूखे को खत्म करके खाता खोलने की चुनौती है। राजस्थान में पहले चरण में लोकसभा की 12 सीटों पर 19 अप्रैल और दूसरे चरण में बाकी 13 सीटों के लिए 26 अप्रैल को मतदान होगा। पिछले एक दशक से बदले राजनीतिक परिदृश्य के बावजूद इस बार राज्य में लोकसभा चुनाव में चुनावी संग्राम भाजपा और कांग्रेस के बीच ही माना जा रहा है। राज्य में पिछले लोकसभा चुनाव के मुकाबले इस बार 43 लाख से ज्यादा मतदाताओं की बढ़ोतरी हुई है, तो दोनों ही दलों को मतदाता प्रतिशत बढ़ने की भी उम्मीद है। 
राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर दो चरणों में हो रहे लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा और कांग्रेस ने लगभग सभी उम्मीदवारों का ऐलान कर दिया है। भाजपा ने 24 सीटों पर उतारे उम्मीदवारों में 10 मौजूदा सांसदों के टिकट काटकर नए चेहरो पर दांव खेला है। लोकसभा अध्यक्ष और तीन केंद्रीय मंत्रियों समेत दस सांसदों को ही भाजपा ने चुनाव मैदान में उतारा, जबकि तीन सांसद राजस्थान विधानसभा चुनाव में विधायक निर्वाचित हो गये। मसलन राजस्थान में इस बार भाजपा 14 नए चेहरों के साथ चुनावी जंग में है। जबकि पिछली बार राजग के साथ चुनाव जीतने वाले आरएलपी नेता ने इस बार इंडिया गठबंधन से चुनाव लडने का फैसला किया है, जहां भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आई कदावर नेता एवं पूर्व सांसद ज्योति मिर्धा को नए चेहरे के रुप में जगह दी है। राजस्थान की भीलवाड़ा लोकसभा सीट पर अभी पेंच फंसा होने के कारण इस बात का इंतजार है कि यहां पिछले दो बार के सांसद सुभाष बहेड़िया को तीसरा मौका मिलेगा या फिर कोई नया चेहरा होगा? यह असंमजस अभी तक बना हुआ है। चूंकि भाजपा का राजस्थान में हैट्रिक बनाने की रणनीति के साथ चुनावी मैदान में है। दूसरी ओर कांग्रेस ने अपने 22 उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं जबकि एक-एक सीट इंडिया गठबंधन में शामिल आरएलपी, सीपीआई(एम) तथा भारत आदिवासी पार्टी के लिए छोड़ी है। राजस्थान में प्रमुख दलों में भाजपा और बसपा अपने दम पर चुनाव मैदान में है। जबकि इंडिया गठबंधन से कांग्रेस, भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी), राष्ट्रीय लोकतांत्रिक पार्टी(हनुमान बेनीवाल) तथा भारत आदिवासी पार्टी (मोहन लाल रोत) चुनावी जंग में हैं। 
इस बार बढ़े 43 लाख वोटर 
राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों पर इस बार 5,29,68,476 मतदाता हैं, जिनमें 2,74,75,971 पुरुष, 2,53,51,276 महिला, 616 थर्ड जेंडर एवं 1,41,229 सर्विस तथा 15,70,490 दिव्यांाग मतदाता शामिल हैं। वहीं बुजुर्ग मतदाताओं की संख्या भी बढ़ी है। खासबात है कि 18-19 साल के 15,54,604 नए मतदाताओं को भी पहली बार मतदान करने का मौका मिलेगा। राजस्थान में 100 साल से ज्या6दा उम्र के करीब 20,496 मतदाता पंजीकृत हैं। पिछले लोकसभा चुनाव के दौरान 4.89 करोड़ के मुकाबले 5.32 करोड़ मतदाताओं का चक्रव्यूह होगा। मसलन करीब 43 लाख वोटरों की संख्या में इजाफा हुआ है। 
58 हजार वोटर घर से करेंगे मतदान 
राजस्थान निर्वाचन आयोग के मुताबिक इस बार लोकसभा चुनाव 58 हजार से अधिक दिव्यांग व बुजुर्ग मतदाताओं ने घर से ही मतदान करने के लिए पंजीकरण कराया है, जिसमें 35,542 पहले चरण और बाकी दूसरे चरण में मतदान करेंगे। 
पहले चरण में ढाई करोड़ मतदाता 
राजस्थान की 12 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को होने वाले पहले चरण के चुनाव में 2,54,29,610 मतदाता सांसदों के भाग्य का फैसला करेंगे। इनमें 1,32,89,538 पुरुष, 1,20,25,699 महिला और 304 थर्डजेंडर के अलावा 2,51,250 दिव्यांग मतदाता शामिल हैं। पहले चरण के चुनाव में लोकसभा के लिए 18-19 वर्ष उम्र के 7,98,520 नए मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे। वहीं 1,14,069 सर्विस वोटर भी मतदाता सूची में शामिल हैं। इस पहले चरण में सबसे ज्यादा 22,87,350 मतदाता जयपुर लोकसभा सीट और सबसे कम 18,99,304 दौसा लोकसभा सीट पर हैं। 100 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं में सबसे अधिक संख्या 1,802 झुंझुनू लोकसभा क्षेत्र में है। जबकि 13 ऐसे बुजुर्ग मतदाता भी है, जिनकी उम्र 120 वर्ष से अधिक है। 
मदान केंद्रों की संख्या बढ़ी 
राजस्थान में इस बार लोकसभा चुनाव के लिए कुल 53,126 मतदान केन्द्र बनाएं गये हैं, जिनमें से पहले चरण में 12 लोकसभा सीटों का चुनाव 24,370 मतदान केन्द्रों पर होगा, जिसमें 23,651 मतदान केन्द्र और 719 सहायक मतदान केन्द्र होंगे। जबकि दूसरे चरण में 13 लोकसभा सीटों के चुनाव के लिए 28,105 मतदान केन्द्र और 651 सहायक मतदान केन्द्रों समेत कुल 28,756 मतदान केन्द्रों पर वोटिंग कराई जाएगी। इस प्रकार साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 51,965 मतदान केंद्र थे, जिनमें इस बार 1161 मतदान केंद्र बढ़ाए गये हैं। जबकि इस बार राजस्थाेन की कुल 25 सीटों पर कुल 5,32,09,789 मतदाता वोटिंग कर सकेंगे। इनमें 18 से 19 साल के नए 15 लाख से ज्या दा पहली बार मतदान में भागीदारी करेंगे। 
भाजपा का लगाता बढ़ा वोट प्रतिशत 
राजस्थान में 2014 लोकसभा चुनाव में भाजपा ने सभी 25 सीटों पर बादशाह कायम की थी, जिसमें भाजपा को 2009 के लोकसभा में मिले 36.57 प्रतिशत वोट के 54.94 प्रतिशत वोट मिले। जबकि साल 2019 के आम चुनाव भाजपा को 24 सीटों पर 58 प्रतिशत वोट हासिल हुआ। इस बार भाजपा को 60 फिसदी से ज्यादा वोट हासिल करने की उम्मीद है। जबकि कांग्रेस को जहां 2009 में 47.19 प्रतिशत वोट हासिल हुए थे, तो वहीं 2014 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस का वोट प्रतिशत घटकर 30.36 प्रतिशत पर रह गया। जबकि 2019 के चुनाव में 34.24 प्रतिशत वोट हासिल होने के बावजूद कांग्रेस राज्य में एक भी सीट नहीं जीत पाई थी। 
इन दिग्गजों की प्रतिष्ठा दांव पर 
राजस्थान की 25 लोकसभा सीटों में से पहले चरण में 12 लोकसभा सीटों पर 19 अप्रैल को होने वाले चुनाव में बीकानेर लोकसभा सीट से भाजपा प्रत्याशी के रूप में केंद्रीय मंत्री अर्जुन राम मेघवाल तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे हैं। वहीं अलवर लोकसभा सीट से भाजपा ने केंद्रीय मंत्री भूपेंद्र यादव को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि दूसरे चरण मे जोधपुर लोकसभा से तीसरी बार चुनाव मैदान में उतरे केंद्रीय मंत्री गजेन्द्र सिंह शेखावत तथा कोटा सीट से लोकसभा अध्यक्ष ओम बिरला की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। वहीं सीकर लोकसभा सीट से भाजपा की ने एक बार फिर सुमेधानंद सरस्वती पर भरोसा जताया तो पिछली बार गठबंधन दल वाली नागौर लोकसभा सीट पर भाजपा ने कांग्रेस छोड़कर आई ज्योति मिर्धा को अपना प्रत्याशी बनाया है। 
  30Mar-2024

शुक्रवार, 29 मार्च 2024

तमिलनाडु: भाजपा के लिए आसान नहीं द्रविड सियासत के चक्रव्यूह को भेदना

डीएमके व एडीएमके के चुनावी संग्राम में तीसरी ताकत के रुप में राजग की तैयारी
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपा ने 400 पार सीटों का लक्ष्य तय किया है, जिसमें भाजपा ने दक्षिणी राज्यों खासकर द्रविड सियासत के प्रभाव वाले तमिलनाडु अलग रणनीति तैयार की है, क्योंकि पिछले दो लोकसकभा चुनाव में भाजपा का विजय रथ तमिलनाडु में ही आकर रुकता नजर आया है। एडीएमके से रिश्ते टूटने के बाद अब भाजपा को हालांकि पीएमके का साथ मिला है, जिसका दर्जन भर सीटों पर अच्छा प्रभाव है। लेकिन भाजपा की तमिलनाडु में चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की इस रणनीति के बावजूद द्रविड़ सियासत के इस समुद्र को पार करना एक बड़ी चुनौती साबित होगी? 
तमिलनाडु राजनीति के इतिहास पर नजर डाली जाए, तो इस लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु की राजनीति में इस समय द्रविड़ दलों यानी द्रविड़ मुन्नेत्र कड़गम (डीएमके) और ऑल इंडिया अन्ना द्रविड़ मुनेत्र कड़गम (एडीएमके) को अक्सर एक राजनीतिक महाशक्ति के रूप में देखा जाता है। ये दोनों प्रमुख दल ही पिछले दशकों से राज्य पर शासन करते आ रहे हैं। इसलिए भी यहां अभी तक भाजपा की दाल नहीं गल पाई। इसके पीछे का कारण साफ है कि भाजपा की राजनीतिक विचारधारा हिंदुत्व है, लेकिन तमिलनाडु में हिंदुत्व नहीं, बल्कि द्रविड राजनीति का बोलबाला है। द्रविड संस्कृति में यहां की मूल भाषा के सामने हिंदी भाषा का भी बड़ा विरोध भी बड़ी वजह है। शायद यही कारण रहा कि डीएमके के नेताओं द्वारा पिछले दिनों सनातन यानी हिंदू धर्म विरोधी टिप्पणियों को हवा दी गई। हालांकि ऐसे बयानों ने विपक्षी गठबंधन इंडिया का संकट भी बढ़ा है, लेकिन अतीत में ब्राह्मण राजनीति के वर्चस्व को पछाड़कर द्रविड़ आंदोलन से बदली द्रविड़ वर्चस्व के ईर्दगिर्द घूमती सियासत के दबदबे को कायम रखने के मकसद से डीएमके और एडीएमके अपनी सियासी जमीन को मजबूत बनाने में जुटे हैं, जिन्हें इंडिया गठबंधन में तमिलनाडु की राजनीति के हिसाब से तव्व्जो दी जा रही है। ऐसे सियासत के बुने जाल को भाजपा का चक्रव्यूह तोड़ पाएगा, इसकी संभावनाएं बहुत ही कम हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव की घोषणा से पहले पीएम मोदी के तमिलनाडु में हुए ताबड़तोड़ दौरों में की गई विकास एवं अन्य घोषणाओं का कितना प्रभाव होगा यह अभी भविष्य के गर्भ में है। 
इतने मतदाता करेंगे फैसला 
तमिलनाडु में लोकसभा की सात आरक्षित सीटों समेत सभी 39 सीटों पर 19 अप्रैल को होने वाले चुनाव में 6,18,90,348 मतदाताओं का जाल है, जिसमें 3,14,85,724 महिला मतदाता, 3,03,96,330 पुरुष मतदाता के अलावा 8,294 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। जबकि प्रदेश में दिव्यांग मतदाताओं की संख्या 4,48,138 है। इन मतदाताओं में 3,310 एनआरअई मतदाता भी पंजीकृत हैं।इस बार 18 और 19 आयु वर्ग के 9.18 लाख मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। जबकि 20 से 29 आयु वर्ग के 1.08 करोड़ मतदाता हैं। राज्य में सबसे अधिक 1.37 करोड़ मतदाताओं की संख्या 40 से 49 आयु वर्ग के बीच है। जबकि तमिलनाडु में बुजुर्ग यानी 80 वर्ष से अधिक उम्र के मतदाताओं की संख्या भी 12.5 लाख से अधिक है। जबकि साल 2023 में राज्य में मतदाताओं की संख्या 6,20,41,179 थी, जिसकी तुलना में लोकसभा चुनाव में दो लाख से अधिक मतदाताओं में कमी दर्ज की गई है, हालांकि ट्रांसजेंडर 8,027 से बढ़कर 8,294 हो गये है। दरअसल गत जनवरी में मतदाता सूची के अंतिम प्रकाश में से 13.61 लाख नए मतदाता जोड़े गये हैं, लेकिन वहीं 6.02 लाख मतदाताओं के नाम हटाए गये हैं। 
क्या है दलगत गणित 
तमिलनाडु में साल 2019 के लोकसभा चुनाव में 39 में से डीएमके सर्वाधिक 24 सीटें जीत आगे रहा, जबकि कांग्रेस को आठ, सीपीआई को दो, एडीएमके, वीसीके, सीपीएम तथा आईयूएमएल को एक-एक सीट मिली थी। जबकि इससे पहले 2014 के लोकसभा चुनाव में एडीएमके ने 37 तथा भाजपा व पीएमके ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी।
भाजपा-पीएमके 30 सीटों पर करेगी संघर्ष 
भाजपा ने तमिलनाडु में 20 सीटों पर अपने उम्मीदवार चुनाव मैदान में उतारे हैं, जबकि उसकी साझीदार डॉ. एस. रामदास अंबुमणि की पार्टी पीएमके ने दस सीटों पर अपने उम्मीदवार उतारे हैं। इस चुनाव में डीएमके और एडीएमके के अलावा अन्य क्षेत्रीय दल भी चुनाव मैदान में हैं। राजग राज्य में द्रविड संस्कृति वाली सियासत के इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने की रणनीति के साथ चुनाव मैदान में है। 
ये सामाजिक परिदृश्य 
तमिलनाडु की जनसंख्या 7.21 करोड़ से ज्यादा है, जहां ओबीसी 80 प्रतिशत और ब्राह्मण करीब चार प्रतिशत हैं। तमिलनाडु घरेलू पैनल सर्वेक्षण के प्री-बेसलाइन सर्वेक्षण 2018-19 के अनुसार राज्य में पिछड़ा वर्ग (बीसी) 45.5 प्रतिशत और सबसे पिछड़ा वर्ग (एमबीसी) राज्य की आबादी का 23.6 प्रतिशत है। भाजपा ने उसी संतुलन के साथ उम्मीदवारों को चुनावी मैदान में भी उतारकर बड़ा दांव खेला है। 
पीएमके इसलिए होगी खास 
डॉ. एस. रामदास अंबुमणि के दल पीएमके का उत्तरी तमिलनाडु के 6 जिलों में खासा असर है। अति पिछड़े वण्णियार समुदाय में पीएमके की पैठ है। राज्य की करीब 6 प्रतिशत वोटों पर पीएमके की पकड़ मजबूत है। राज्य की 11 लोकसभा सीटों सलेम, धर्मपुरी, विल्लुपुरम, कुडलोर, थिरुवन्नमलाई, वेल्लोर, आरणी, कल्लाकुरिचि, पेरांबलुर, नमक्कण और चिदंबरम पर पीएमके का असर है। पिछले 2019 के लोकसभा चुनाव में पीएमके राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन के साथ थी और उसे 5.3 प्रतिशत वोट मिले। जबकि भाजपा को पिछले लोकसभा चुनाव में तमिलनाडु में 3.6 प्रतिशत वोट मिले थे। 
इन सात सीटों पर भाजपा की नजरें 
तमिमलनाडु में अपने विजय रथ की राह बनाती भाजपा की प्रमुख रुप से कन्याकुमारी और रामनाथपुरम के इर्द-गिर्द सात लोकसभा सीटों पर नजरें लगी हैं, जहां तमिलनाडु के भाजपा प्रदेशाध्यक्ष अन्नामलाई ने पदयात्रा करके भाजपा का जनाधार मजबूत करने में जुटे हैं। इससे पहले 2019 के चुनाव में भी एआईएडीएमके ने भाजपा इनमें से ही 6 सीटें दी थी, जहां इस बार भाजपा को अपनी जीत की उम्मीद हैं। 
ये हैं प्रमुख दल 
तमिलनाडु की राजनीति में डीएमके और एडीएमके जैसे प्रमुख दलों के अलावा डा. रामदास अंबुमणी की पीएमके, के. कृष्णा सामी की पुथिया तमिलागम, जीके वासन की तमिल मनीला कांग्रेस(मूपनार), भाकपा, सीपीआईएम, वीसीके, आईयूएमएल, वाइको की एमडीएमके, एसी शनमुगम की पीएनके जैसे दल चुनावी जंग में रहे हैं। 
29Mar-2024

रविवार, 24 मार्च 2024

जम्मू-कश्मीर: बदले सियासी समीकरण में होगा लोकसभा चुनाव

राजनैतिक दलों के सामने होगी नई चुनौतियां 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद पहली बार लोकसभा का चुनाव बदले नक्शे और नए सियासी माहौल के बीच होने के कारण अपने आप में अगल की मायने रखता है, जहां दुनियाभर की नजरें लगी होगी। धारा 370 हटने के बाद जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों के नए परिसीमन से बदले राजनीतिक समीकरणों के बीच इस चुनावी महासंग्राम में सभी राजनीतिक दलों के सामने नई चुनौतियां होंगी। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने से पहले छह लोकसभा सीट होती थी, लेकिन जम्मू-कश्मीर से अलग किये गये लद्दाख के बाद पांच लोकसभा सीट रह गई हैं। मसलन जम्मू-कश्मीर के नक्शे और सियासी तस्वीर बदलने के बाद यह पहला लोकसभा चुनाव अपना अलग इतिहास बनाने की राह पर है। पांच अगस्त को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 हटाने के बाद भौगोलिक, सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य में भी बदलाव किया गया है। इन पांच सालों में हालांकि राज्य के मतदाता विधानसभा के चुनाव में मतदान करने का भी इंतजार करते आ रहे हैं। इस बदले परिदृश्य में लोकसभा और विधानसभा सीटों के नए परिसीमन ने भी भोगौलिक और राजनैतिक नक्शे का बदला है। इस बदले परिदृश्य और माहौल में राज्य में बदले सियासी समीकरणों के बीच सभी राजनैतिक दल और मतदाता पहली बार लोकसभा चुनाव के संग्राम का हिस्सा बनेंगे। 
नए परिसीमन में क्या बदला 
जम्मू-कश्मीर में राजनीतिक दृष्टि से हुए नए परिसीमन में इस बार जम्मू और कश्मीर संभाग में दो-दो लोकसभा सीटें बनाई गई हैं, जबकि इन दोनों संभागों से काटकर राजोरी-अनंतनाग को नई लोकसभा सीट बना दिया गया है। इस प्रकार सियासी दलों के सामने इस बदले राजनीतिक समीकरण के बीच नई रणनीति के साथ चुनावी रणनीति की चुनौती होगी। विशेषज्ञों के मुताबिक जम्मू व कश्मीर के हिस्सों से बनाई गई नई सीट पर सबकी नजरें होंगी। 
बदले माहौल में होगा चुनाव 
पिछले चुनावों में आतंकवादी और पत्थरबाज हावी थे। अलगाववादी हड़ताल के कैलेंडर जारी करते थे। चुनाव बहिष्कार की कॉल के साथ मतदान करने से रोका जाता था। अब यह स्थितियां बदल गई हैं। पत्थरबाजी बंद हो गई है। अलगाववादियों व आतंकियों पर भी अंकुश है।
फिलहाल ये हैं सांसद 
जम्मू-कश्मीर की पांच सीटों पर 2019 के लोकसभा चुनाव में तीन सीटों पर जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस पर कब्जा किया था, जबकि भाजपा के हिस्से में दो सीटें आई। मसलन बारामूला लोकसभा सीट से मोहम्मद अकबर लोन, श्रीनगर से फारूक अब्दुल्ला, अनंतनाग-राजौर से हसनैन मसूदी सांसद हैं। जबकि उधमपुर से भाजपा के डा. जितेन्द्र सिंह और जम्मू लोकसभा सीट से जुगल किशोर शर्मा ने जीत हासिल की थी। 
प्रमुख राजनैतिक दल 
राज्य की पांच लोकसभा सीटों पर प्रमुख रुप से भाजपा, कांग्रेस, जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस, जम्मू-कश्मीर पीडीपी प्रमुख रुप से सियासी मैदान में रहे हैं, लेकिन इस बार कांग्रेस के दिग्गज रहे एवं जम्मू-कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री गुलामनबी आजाद भी चुनाव मैंदान में अपनी नवगठित डेमोक्रटिव प्रोग्रेसिव आजाद पार्टी के साथ चुनाव मैदान में होंगे। 
क्या है जातीय समीकरण 
जम्मू-कश्मीर मुस्लिम बाहुल्य राज्य है, जहां मुस्लिम 68.31 प्रतिशत हैं। इसके अलावा हिंदू 28.44 प्रतिशत, सिख 1.87 प्रतिशत, ईसाई 0.28 प्रतिशत है। इसमें जहां तक जातीय समीकरण का सवाल है, उसमें सबसे ज्यादा सामान्य जाति 75 प्रतिशत है। जबकि अनुसूचित जाति 7.38 प्रतिशत, अनुसूचित जनजाति 11.91 प्रतिशत और सबसे कम ओबीसी सात प्रतिशत है। 
करीब 87 लाख मतदाताओं का चक्रव्यूह 
जम्मू-कश्मीर की पांच लोकसभा सीटों के लिए इस बार 86.93 लाख मतदाता वोटिंग करेंगे, जिसमें 44.35 लाख पुरुष और 42.58 लाख महिला मतदाता शामिल हैं। इस बार केंद्र शासित प्रदेश में करीब 2.31 लाख नए मतदाता पहली बार चुनाव प्रक्रिया का हिस्सा बनने जा रहे हैं। 
एक दशक से नहीं हुए विधानसभा चुनाव 
जम्मू-कश्मीर में वर्ष 2014 के बाद अभी तक विधानसभा चुनाव नहीं हुए और राज्यपाल शासन की सरकार में धारा 370 हटने के बाद केंद्र सरकार राज्य के विकसित राज्य बनाने का दावा कर रही है। उस समय भाजपा ने पीडीपी के साथ गठबंधन में सरकार बनाई थी, लेकिन भाजपा ने समर्थन वापस लेकर सरकार गिरा दी थी और वहां राष्ट्रपति शासन लागू हो गया था और इसी दौरान जम्मू-कश्मीर से अनुछेद 370 हटाकर उसके केंद्र शासित राज्य घोषित करके उपराज्यपाल की तैनाती की गई। 
लद्दाख में भाजपा को हैट्रिक का मौका 
जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद लद्दाख को अलग करके केंद्र शासित राज्य घोषित कर दिया गया था, जहां एक मात्र लोकसभा सीट पर 2014 और 2019 में भाजपा जीत हासिल करती आ रही है। इस बार लेह और कारगिल वाले लद्दाख सीट पर भाजपा के लिए हैट्रिक बनाने की चुनौती होगी। लद्दाख ऐसा केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां अभी तक अपनी विधानसभा नहीं है यानि बिना विधानसभा सीटों के लद्दाख भी लोकसभा चुनाव में अलग महत्व में रहेगा। इससे पहले हुए चुनावों में लद्दाख में छह बार कांग्रेस, दो बार नेशनल कांफ्रेंस और तीन बार निर्दलीय प्रत्याशी जीत दर्ज कर चुके हैं। साल 1989 के चुनाव में इस सीट पहली बार निर्दलीय प्रत्याशी मो. हसन कमांडर ने कांग्रेस की सियासत को अवरोधित किया और 2004 व 2009 में भी निर्दलीय सांसद चुना गया। 24Mar-2024


सोमवार, 18 मार्च 2024

लोकसभा चुनाव: हरियाणा में पांच साल में बढ़े 23 लाख से ज्यादा मतदाता

प्रदेश की दस सीटों पर 25 मई को वोटिंग करेंगे 1,98,23,168 मतदाता 

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली: देश में लोकसभा चुनाव का बिगुल बजते पूरे देश में आदर्श आचार संहित लग गई है। चुनाव आयोग ने लोकसभा चुनाव को सात चरणों में कराने का ऐलान किया है। चुनाव के घोषित कार्यक्रम के अनुसार हरियाणा की सभी दस लोकसभा सीटों पर 25 मई को मतदान कराया जाएगा, जिसमें प्रदेश भर के 1,98,23,168 मतदाता हिस्सेदारी करेंगे। पिछले लोकसभा चुनाव की तुलना में हरियाणा में इस बार 23 लाख से भी ज्यादा मतदाता वोटिंग करेंगे। यहां विज्ञान भवन में आयोजित एक प्रेस कांफ्रेंस में नवनियुक्त चुनाव आयुक्तों ज्ञानेश कुमार व सुखबीर सिंह संधू के साथ मुख्य चुनाव आयुक्त राजीव कुमार लोकसभा चुनावों का ऐलान करते हुए कहा कि पिछले चुनाव की तरह इस बार भी लोकसभा की 543 सीटों के लिए सात चरणों में मतदान कराया जाएगा। इस बार देशभर में जहां में 10.5 लाख मतदान केंद्रों पर 97 करोड़ मतदाता वोटिंग करेंगे, तो वहीं छठें चरण में 25 मई को हरियाणा की सभी दस लोकसभा सीटों पर मतदान कराया जाएगा। आयोग ने पूर्व सीएम मनोहर लाल के इस्तीफे के बाद रिक्त हुई करनाल विधानसभा सीट पर भी उपचुनाव कराने का ऐलान किया है। 

हरियाणा में पहली बार 3.64 लाख नए मतदाता 

हरियाणा के निवार्चन अधिकारी अनुराग अग्रवाल के मुताबिक प्रदेश में 25 मई को लोकसभा की दस सीटों पर होने वाले मतदान में इस बार 1 करोड़ 98 लाख 23 हजार 168 मतदाता हिस्सा लेंगे, जिनमें 18 से 19 आयु वर्ग के 3,63,491 नए मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। इन नए मतदाताओं में 2,43,133 पुरुष और 1,20,339 महिला मतदाता शामिल हैं। पिछले लोकसभा चुनाव 2019 और 2024 के बीच हरियाणा की मतदाता सूची में 23 लाख से अधिक नए मतदाताओं के नाम जोड़े गये हैं। इन मतदातओं के नाम गत 22 जनवरी 2024 को मतदाता सूची के अंतिम प्रकाशन में शामिल किया गया है। नाम जोड़े गये हैं। यानी पिछले पांच साल में हरियाणा में 1,89,17,901 मतदाता थे। उसके हिसाब से इस दौरान 9,05,267 मतदातओं की संख्या बढ़ी है। 

दस हजार से ज्यादा की उम्र का शतक पार 

 हरियाणा के निवार्चन अधिकारी के मुताबिक सूबे में 10 हजार से अधिक मतदाताओं की उम्र 100 से 120 साल के बीच है। हरियाणा में 100 से 109 आयु वर्ग मतदाताओं की संख्या 10,759 है। जबकि 120 से अधिक आयु वर्ग के मतदाताओं की संख्या 41 है, जिनमें 8 मतदाता गुरुग्राम में हैं। 

17Mar-2024

साक्षात्कार: साहित्य एवं संस्कृति के संवर्धन में जुटे श्याम वशिष्ठ

दूरदर्शन पर समाचार वाचक और आकाशवाणी उदघोषक के रूप में बनाई पहचान 

नाम: श्याम वशिष्ठ 

जन्मतिथि: 24 फरवरी 1970 

जन्म स्थान: भिवानी (हरियाणा) 

शिक्षा: एम. कॉम, बी.एड, यूजीसी नैट उत्तीर्ण, पीएच.डी.(शोधार्थी)। 

सम्प्रति: एसोसिएट प्रोफेसर(वाणिज्य), अध्यक्ष,सांस्कृतिक प्रकोष्ठ,बनवारी लाल जिन्दल कॉलेज, तोशाम(भिवानी)। 

संपर्क: प्रो.श्याम वशिष्ठ सुपुत्र श्री फतेह चन्द वशिष्ठ वशिष्ठ भवन फूलचन्द गली,लोहड़ बाज़ार, भिवानी(हरियाणा) मो./व्हाट्सएप: 9996420600, ई मेल- shyamvashishtha@gmail.com 

BY-ओ.पी. पाल 

साहित्य एवं लोक कला के क्षेत्र में हरियाणवी संस्कृति, लोक कला को नया आयाम देने वाले सुविख्यात शिक्षाविद् एवं साहित्यकार श्याम वशिष्ठ ने कवि एवं शायर के साथ ही एक अभिनेता, निर्देशक, गायक, रेड़ियो उद्घोषक एवं मंच संचालक के रूप में राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रियता हासिल की है। वह समाज को सकारात्मक ऊर्जा देने की दिशा में विभिन्न विधाओं में हरियाणवी लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। दूरदर्शन के समाचार वाचक और आकाशवाणी उदघोषक की भूमिका निभाने वाले श्याम वशिष्ठ आकाशवाणी के नाटक प्रभाग में बी हाई श्रेणी के अनुमोदित कलाकार हैं, जिन्होंने रंगमंच पर भी नाटकों में अभिनय, निर्देशन और लेखन भी किया। हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान साहित्यकार एवं कलाकार श्याम वशिष्ठ ने कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें यह साबित होता है कि उनके साहित्य एवं कला के सफर में की गई साधना देश और समाज को समर्पित है। 

रियाणा में छोटी काशी के नाम से पहचाने जाने वाले भिवानी शहर में 24 फरवरी 1970 को फतेहचंद वशिष्ठ एवं श्रीमती राजदुलारी वशिष्ठ के घर में 24 फरवरी 1970 को जन्मे श्याम वशिष्ठ के पिता भी एक एक कलाकार रहे हैं, जो पुरानी एवं प्रसिद्ध रामलीला में अभिनय और नाटकों के रंगकर्मी रहे। मसलन श्याम वशिष्ठ को संस्कार, आध्यात्म और संगीत का वातावरण विरासत में मिले। जाहिर सी बात है कि बचपन से ही उन्हें संगीत, नाटक, काव्यपाठ में अभिरूचि होना स्वाभाविक था। भिवानी जिले में तोशाम स्थित बनवारी लाल जिन्दल कॉलेज में 1997 से एसोसिएट प्रोफेसर (वाणिज्य) पद पर कार्यरत श्याम वशिष्ठ ने अपनी पहली मंचीय प्रस्तुति दूसरी कक्षा में पढ़ते हुए 'यह कदम्ब का पेड़ अगर माँ होता यमुना तीरे' शिक्षा निकेतन भिवानी के मंच पर दी थी। पाँचवी कक्षा तक आते आते भजन, समूहगान, काव्यपाठ एवं संस्कृत श्लोकोच्चारण की अनेक प्रस्तुतियाँ देने लगे। उस समय में दो बार अलग अलग समारोहों में तत्कालीन शिक्षामंत्री हरियाणा हीरानन्द आर्य एवं श्रीमती शांति राठी ने सम्मानित किया। प्राथमिक स्तर पर गुरू सत्यनारायण हरित ने मार्गदर्शन दिया। साहित्य में अभिरूचि प्रत्यक्ष रूप में नहीं हुई बल्कि रंगमंच के माध्यम से हुई। बकौल श्याम वशिष्ठ स्कूली शिक्षा के दौरान रंगमंच गुरू कुंजबिहारी शर्मा के आशीर्वाद के कारण कठपुतली, मुर्दा बोला आदि नाटक करते करते साहित्यिक पुस्तकें पढ़ने का भी अवसर मिला। दसवीं कक्षा की परीक्षाओं के बाद नेकीराम शर्मा ज़िला पुस्कालय का कार्ड बनवाकर मुंशी प्रेम चंद से लेकर रामधारी सिंह दिनकर, हरिवंश राय बच्चन से लेकर नज़ीर अकबराबादी व अन्य बड़े रचनाकारों की रचनाएं पढ़ी और काव्यपाठ में अनेक बार ज़िला स्तर से राज्य स्तर तक प्रथम पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने बताया कि 11वीं कक्षा में उन्होंने पहली रचना ‘एक रुपया’ लिखी, जिसके व्याकरणीय एवं साहित्यिक नियमों का ज्ञान प्रसिद्ध साहित्यकार एवं शिक्षक रमाकांत दीक्षित के मार्गदर्शन में मिला। जब वह रचना अखबार में प्रकाशित हुई। उन्हें युवा महोत्सवों में बिना तैयारी के ही ग़ज़ल गायन, डिबेट और कविता पाठ करने पर भी पुरस्कार मिले हैं। पद्मश्री महाबीर गुड्डू से भी एक बार मोनो एक्टिंग में यूनिवर्सिटी यूथ फेस्टिवल में आमना सामना हुआ और सौभाग्य से उन्हें प्रथम पुरस्कार मिला। घर पर साहित्य, संगीत, नाटक का वातावरण होने के बावजूद माता-पिता ने कभी कभी पढ़ाई की चिंता को लेकर सांस्कृतिक गतिविधियों में एक साल तक हिस्सा तक नहीं लेने दिया, लेकिन वह छुप छुप के भाग लेकर पुरस्कार जीतते रहे। हालांकि पढ़ाई में भी वह हमेशा अव्वल ही रहे। उनके लेखन का फोकस गजल विधा में रहा, लेकिन उन्होंने गीत, कविताएँ, लघुकथा एवं नाटक भी लिखे हैं। संत कबीर दास,साहिर लुधियानवी, दुष्यन्त कुमार दिल के अधिकतम नज़दीक रचनाकार हैं, जिन्हें वह अपना आदर्श भी मानते हैं। अब उनका रचना संसार समाज और देश के लिए समर्पित है। उनके संगीत के गुरू जी डॉ तरसेम लाल शर्मा कहा करते हैं कि ग़ज़ल का वो शेर ही दिल में उतरता है, जो निजी न हो कर सबका दर्द और अनुभव लिए हुए होता है। 

ऐसे बनी साहित्य व लोक कलाकार की पहचान 

भिवानी के मेघदूत थिएटर ग्रुप से 1987 से सक्रीय रुप से जुड़े श्याम वशिष्ठ ने कामतानाथ प्रसाद की कहानी 'संक्रमण' पर आधारित हास्य-व्यंग्य नाटक ' बाबूजी ठीक कहते थे' में बतौर मुख्य अभिनेता 55 शो भी किये। नवम्बर 2014 में इसी नाटक के मंचन के लिए सिडनी, ऑस्ट्रेलिया से आमन्त्रित किया गया। जबकि सितम्बर 2017 में दुबई अंतर्राष्ट्रीय रंगमंच फेस्टिवल में भागीदारी की। दूरदर्शन की दो टेलीफ़िल्मों 'आत्मबोध' एवं 'अर्धसत्य' में अभिनय के अलावा उन्होंने अनेकों नाटकों के लिए गीत लेखन एवम संगीत संयोजन भी किया। एनएसडी ,दिल्ली की रंगमंच की कार्यशाला सहित रंगमंच की अनेक कार्यशालाओं का भी उन्हें अनुभव ह। अखिल भारतीय साहित्य परिषद के आजीवन सदस्य होने के साथ उन्होंने 300 से अधिक कवि सम्मेलनों व मुशायरों में भागीदारी भागीदारी भी की है। विशेष रुप से न्यू इण्डिया डेवलपमेंट फाउंडेशन एवं पीएमओ के संयुक्त तत्वावधान में प्रधानमंत्री आवास पर 29 अप्रैल 2022 को आयोजित 'सद्भावना' कार्यक्रम का संचालन पर उन्हें पीएम नरेन्द्र मोदी की प्रशंसा भी मिली। जिन्हें अक्तूबर 2022 में प्रधानमंत्री की दो पुस्तकों Modi@20 तथा Heart Felt: The Legacy of Faith के विमोचन के लिए भी श्याम वशिष्ठ को वाराणसी बुलाया गया। इस कार्यक्रम में यूपी के सीएम योगी आदित्यनाथ मुख्य अतिथि थे। 

दिलचस्प घटना 

साहित्यकार श्याम वशिष्ठ ने अपने साहित्य, संगीत, रंगमंच के अनुभव के दिलचस्प पहलुओं का जिक्र करे कहा कि एक बार तो यूनिवर्सिटी में नाटक करते हुए पोस्टर नाटक किया था, जिसमें वह पोस्टर ही नहीं ले जा सके। वैश्य कॉलेज,भिवानी में नाटक, साहित्यिक कार्यक्रमों की तैयारी रात रात भर जाग कर करते थे। रिहर्सल करते हुए एक बार लाइट चली गई, सड़क पर ही रिहर्सल करते हुए रात को एक बजे सभी को पुलिस उठा कर ले गई थी। प्राचार्य बी एन त्रिखा जी ने थाने में आकर उन्हें छुड़वाया था। उन्होंने बताया कि अपने काव्यगुरू कैलाशचंद्र 'शाहीं' साहब के पास जब अपनी लिखी हुई तथाकथित 150 ग़ज़लें लेकर गये तो उन्होंने उनसे पूछे बिना ही डायरी जलती सिगड़ी पर रखकर जला दी और कहा अब तुम कोरे कागज़ हो तुम पर लिखना और तुम्हें समझाना आसान होगा। हालांकि मन बहुत बहुत दुखा, किंतु जल्द समझ में आ गया कि वह सही थे। उनका लेखन शुरुआती दौर में ईश्क़ और व्यक्तिगत भावों से प्रेरित रहा, लेकिन सामाजिक चिन्तन, दशा और दिशा ने उनकी सृजनयात्रा को व्यक्तिगत से समष्टिगत बना दिया। 

  साहित्य की दयनीय स्थिति चिंताजनक 

आधुनिक युग में साहित्य और लोक संस्कृति की बनती जा रही दयनीय स्थिति को चिंताजनक बताते हुए श्याम वशिष्ठ ने कहा कि साहित्य के पटल पर साहित्कारों, लेखकों और चिंतकों को ऐसा सामूहिक प्रयास करना होगा, जिसमे साहित्य में आ रही गिरावट और लुप्त होती लोक कलाओं को पुनर्जीवित किया जा सके, जिसमें साहित्य अकादमियों व परिषदों को नई पहल करनी होगी। भौतिकवादी होने के साथ धनअर्जन की दौड़ में कम होते साहित्य के पाठकों के समक्ष आज डिजिटल या सोशल मीडिया पर परोसी जा रही सामग्री ने खासकर युवा पीढ़ी को नकारात्मक रुप से प्रभावित किया है। जबकि इस देश में 70 प्रतिशत युवाओं की जनसंख्या पर भारत का भविष्य टिका हुआ है। यही नहीं समाज के लिए भी घातक साबित हो रही लेखकों व साहित्यकारों या लोक कलाकारों में जल्द से जल्द लोकप्रिय होने की ललक ने गुरु-शिष्य की परंपरा और गुणवत्तापूर्ण संस्कृति को रसातल में पहुंचा दिया। जहां तक युवा वर्ग को साहित्य या लोक कला या संस्कृति के प्रति प्रेरित करने का सवाल है उसके लिए हमारे साहित्यकारों, लेखकों और कलाकारों के साथ सरकार को भी सर्वजन के लिए सृजन करने की दिशा में काम करनो की आवश्यकता है। युवाओं में मानसिक प्रदूषण और नकारात्मक प्रभाव को खत्म करने के लिए हमारे लेखकों और संगीतकारों को बहुत कुछ करना होगा। वहीं सरकार को सोशल मीडिया के लिए भी विनियमन तैयार करके लुप्त होती लोक कलाओं को धरोहर बनाने की पहल करनी होगी, जिसमें सामूहिक प्रयास से हमारी संस्कृति संवर्धन किया जा सकता है। 

  प्रकाशित पुस्तकें 

सुविख्यात शिक्षाविद, अभिनेता, निर्देशक, शायर, गायक एवं उद्घोषक की प्रकाशित पुस्तकों में प्रमुख रुप से काव्य एवम ग़ज़ल संग्रह में मेरे हिस्से का आसमान, मुखौटे, मैं अपना प्यार क्यूँ रोकूँ, समय की ताल पर शामिल हैं। आधुनिक ग़ज़ल के सामाजिक सरोकार पर उनका प्रकाशित शोधपत्र भी चर्चाओं में रहा है। इसके अलावा प्रतिष्ठित एवं ख्यातिप्राप्त शोधग्रंथों में अलग अलग विषयों पर 10 अंतर्राष्ट्रीय एवं राष्ट्रीय शोधपत्रों का प्रकाश भी उनकी उपलब्धियों का हिस्सा है। यहीं नहीं राष्ट्रीय साहित्य अकादमी, हरियाणा साहित्य अकादमी, हरियाणा उर्दू अकादमी की पत्रिकाओं में भी उनकी काव्य रचनाएँ, आलेख, लघुकथा, समीक्षा आदि प्रकाशित हुई हैं।

पुरस्कार एवं सम्मान 

प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कलाकार श्याम वशिष्ठ को पं.माधव प्रसाद मिश्र साहित्य सम्मान के अलावा रंग-रत्न सम्मान, भारतेन्दु पुरस्कार, साहित्य सेवा सम्मान, साहित्य साधक पुरस्कार, कला साधक पुरस्कार, राज्यकवि उदयभानु हंस काव्य पुरस्कार, शुक्ल काव्य सम्मान, सर्वपल्ली डॉ राधाकृष्णन शिक्षक,सम्मान, साहित्य कौस्तुभ सम्मान, अब्र सीमाबी स्मृति सम्मान, हाली पानीपती सम्मान, रघुवीर अनाम स्मृति साहित्य सम्मान, भिवानी गौरव सम्मान, साहित्य सम्मान, राज्य स्तरीय राजेश चेतन काव्य पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। इसके अलावा उन्हें .ज़िला स्तर भिवानी के प्रशासनिक उच्चाधिकारियों द्वारा केई बार 'शिक्षा एवँ साहित्य' में योगदान के लिए पुरस्कृत किया जा चुका है। वहीं 1994 में महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय के सर्वश्रेष्ठ ग़ज़ल गायक का सम्मान तथा 1989 से 1994 तक लगातार एमडीयू रोहतक के सर्वश्रेष्ठ अभिनेता होने का सम्मान भी मिल चुका है। 18Mar-2024

सोमवार, 11 मार्च 2024

चौपाल: लोक संगीत में आवाज का जादू बिखेरते डा. कैलाश चन्द्र वर्मा

संगीत कला के हुनर से बने सुगम संगीत में ए ग्रेड तथा हरियाणवी लोक संगीत में टॉप ग्रेड के कलाकार व्यक्तिगत परिचय 

नाम: कैलाश चन्द्र वर्मा 

जन्मतिथि: 29 जुलाई, 1955 

जन्म स्थान: रोहतक(हरियाणा) 

शिक्षा: एम.ए. (संगीत-गायन), एम.ए. (राजनीति विज्ञान) बीएड. 

संप्रत्ति: सेवानिवृत्त निदेशक, ऑल इंडिया रेडियो रोहतक, संगीतकार 

संपर्क: एच.नं. 203, सेक्टर 14, शहरी संपदा. रोहतक-124,001 

-- BY-ओ.पी. पाल 

--रियाणा की लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन में जुटे कलाकारों में डा. कैलाश चन्द्र वर्मा ऐसे संगीतकार के रुप में राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हैं, जिन्होंने समाज के समक्ष सभ्यता, रीति रिवाज, संस्कार, तीज त्योहार की परंपरागत संस्कृति को अपने गीतों व संगीत के माध्यम से नया आयाम दिया है। एक संगीतकार के रुप में उन्होंने गीतों, गजलों, भजनों को शास्त्रीय और लोक संगीत में अपनी आवाज का ऐसा जादू बिखेरा है कि उन्हें सुगम संगीत में ‘ए’ ग्रेड और हरियाणवी लोक संगीत में ‘टॉप ग्रेड’ कलाकार की मान्यता मिल चुकी है। प्रसार भारती में आकाशवाणी केंद्र रोहतक के निदेशक पद से सेवानिवृत्त कैलाश चन्द्र वर्मा ने एक मुलाकात के दौरान अपने संगीत कला के सफर को साझा करते हुए कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें अपनी समृद्ध संस्कृति को नए स्वरुप में पिरोकर समाज को सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकती है। 

रियाणवी संस्कृति के जीवन में विवाह, भात, विदाई और तीज त्योहरों जैसे हर संस्कारों को लोकगीतों के माध्यम से नया आयाम देने वाले सुविख्यात संगीतकार कैलाश चन्द्र वर्मा का जन्म 29 जुलाई, 1955 को रोहतक शहर में रामेश्वर दयाल और श्रीमती धनकौर देवी के घर में हुआ। उनके परिवार में उनके पिता को हारमोनियम के साथ संगीत का शौंक था। शायद इसलिए भी कैलाश वर्मा को बचपन में महज चार साल की उम्र में ही फिल्मी गानों में रुचि पैदा हुई। उनकी प्राथमिक शिक्षा रोहतक के गौड ब्राह्मण स्कूल में हुई, जहां शिक्षक उनसे गाने सुनते थे और उनका पुरस्कार के रुप में कुछ न कुछ देकर उत्साह बढ़ाते रहे। जब वह पांचवी कक्षा में थे तो उन्हें स्कूल की प्रार्थना कराने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसी विद्यालय में जब वे छठी कक्षा में थे, तो वहां संगीत शिक्षक पं. श्रीकृष्ण शर्मा ने उन्हें बहुत कुछ सिखाना शुरु कर दिया और कक्षा छह के छात्र होने के बावजूद उन्हें स्कूल में हाई स्कूल की प्रार्थना तक कराने का मौका दिया गया और उन्हें देशभक्ति के गीत प्रतियोगिताओं में लेकर जाने लगे। गीत संगीत में उन्हें हाई स्कूल से पुरस्कार मिलना शुरु हो गये थे। दसवीं पास करने के बाद गौड ब्राह्मण कालेज के प्राचार्य जीआर स्वामी ने भी उन्हें संगीत के क्षेत्र में हमेशा प्रोत्साहन दिया। अंतर इंटर कालेज प्रतियोगिताओं में उन्होंने अपनी कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि वे हमेशा प्रथम पुरस्कार से नवाजे जाते रहे। मसलन उच्च शिक्षा में बीए करने तक उन्होंने करीब एक सौ पच्चीच पुरस्कार हासिल कर लिये थे। उन्हें यूथ फेस्टिवल में गजल, कव्वाली और संगीत का भी मौका मिला। बीए की शिक्षा के बाद उन्होंने आकाशवाणी केंद्र रोहतक में ओडिशन दिया, जहां चयनित होने पर पहली बार गजल गाने का मौका मिला। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से राजनीति विज्ञान और संगीत गायन में डबल एमए किया। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी, तो जुलाई 1984 में वे चयनित हो गये और उनकी नियुक्ति आकाशवाणी केंद्र रोहतक में कार्यक्रम अधिकारी के पद पर हो गई। उनकी यह सेवाएं केंद्र सरकार के अंतर्गत शुरु हुई, जिसके कारण वह मथुरा, कुरुक्षेत्र, शिमला, नई दिल्ली और नई दिल्ली में नेशनल चैनल व महानिदेशालय में विभिन्न पदों पर रहे। साल 2013 में वे प्रोन्नति के साथ एक बार फिर वे रोहतक आकशवाणी केंद्र में निदेशक के पद पर आ गये और इसी पद से वे जुलाई 2015 में सेवानिवृत्त हुए। इससे पहले वे कुरुक्षेत्र के बाद रोहतक आकाशवाणी में सहायक केंद्र निदेशक के रुप में भी सेवाएं दे चुके हैं। सरकारी सेवा के दौरान कैलाश वर्मा ने शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और लोक संगीत की प्लानिंग प्रोडक्शन करते हुए खासतौर से हरियाणवी संस्कृति और लोक कला एवं संगीत संवर्धन पर ज्यादा फोकस किया। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में समय समय पर अन्य आकाशवाणी केंद्रों के कलाकारो का आदान प्रदान की दिशा में अनेक संगीत समारोह आयोजित कराए और स्वयं के ग्रेड प्राप्त किये। संगीत के क्षेत्र में अखिल भारतीय ग्रेड-II के संगीतकार के रूप मान्यता प्राप्त कैलाश वर्मा ने सुगम और लोक संगीत के अलावा शास्त्रीय संगीत के भी कई दर्जन संगीत कार्यक्रम ऑल इंडिया रेडियो पर भी आयोजित कराए हैं। उन्हें खुद को भी दूसरे केंद्रों पर भी हरियाणवी संगीत प्रस्तुत करने के मौके मिले। साल 1984 से अब तक संगीत के क्षेत्र में निर्णायक की भूमिका निभाते आ रहे कैलाश वर्मा ने लोक गीतों की रचनाओं को भी नया आयाम दिया, जिन्हंक समूह गान के रुप में जगह मिली। 

रागनी व सांग को दिया नया आयाम 

आकाशवाणी में करीब डेढ़ दशक तक कार्यक्रम कार्यकारी (हरियाणवी संगीत), एडीपी (संगीत) और डीपी (संगीत) के रूप में सेवा के दौरान उन्होंने हरियाणवी संगीत में विशेष कार्य किये। उन्होंने खासतौर से हरियाणवी रागनी को नया आयाम देकर सांग विधा को जीवंत करने में अहम भूमिका निभाई। साल 1990 में आकाशवाणी केंद्र रोहतक में हरियाणा की सांग विधाओं को नया आयाम देने के मकसद से उन्होंने पुराने सांगियों के शिष्यों की मंडलियों को आकाशवाणी में आमंत्रित करके डेढ़ डेढ़ घंटे की अवधि के लिए उनके सांगों की रिकार्डिंग कराने की शुरुआत की और सांग की विभिन्न शैलियों व अलीवक्श जैसी विधाओं की प्रस्तुति दी। रागनियों के नए आयाम से यह बात सामने आई कि सांग के भाव व अर्थ को प्रभावित किये बिना उसमें थोड़ा परिवर्तन करके मधुरता के साथ भी सांग की प्रस्तुतियां हो सकती हैं। 

बॉलीवुड तक संस्कृति की छाप 

कैलाश चन्द्र वर्मा का संगीत के क्षेत्र में हरियाणा के लोक गीतों और संस्कृति को जीवंत करने पर ज्यादा फोकस रहा है, क्योंकि उनके घर में संस्कृति के माहौल में उन्हें भी लोक गीतों में बचपन में ही अभिरुचि होने लगी थी। उन्होंने हरियाणवी फिल्मों-छोरा चौबीसी का, लठ गाड दिया और दामन की फटकार के अलावा कई लघु फिल्मों में भी संगीत देकर एक संगीत निर्देशक के रुप में अहम भूमिका निभाई है। हरियाणवी फिल्म ‘छन्नो’ में उन्होंने वॉलीवुड गायकों आशा भोसले, सुरेश वाडेकर, अनुराधा पौडवाल तथा दिलराज कौर जैसे संगीतकारों से हरियाणवी में गायकी कराई है। 

पुरस्कार व सम्मान 

प्रसिद्ध संगीतकार कैलाश वर्मा की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है, जिन्होंने हरियाणवी संगीत में विशेष कार्य करते हुए अनेक पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने आकाशवाणी केंद्रों से अनेकों संगीत रुपक प्रस्तुत किये, जिनमें से तीजों के रंग-झूलों के संग, बहु कडे से आवैगी तथा गऊ की पुकार जैसे तीन संगीत रुपक के लिए उन्हें अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। संगीत प्रस्तुतियों के लिए उन्हें आकाशवाणी वार्षिक में तीन मेरिट पुरस्कार मिले। उत्तर क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर मिले पुरस्कारों के अलावा उन्हें संगीत के क्षेत्र में एमडीयू रोहतक से श्री कला रत्न सम्मान, आकाशवाणी महानिदेशालय से पंडित की उपाधि, तान तरंग संगीत कला नई दिल्ली के संगीत रत्नाकर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। वहीं उस्ताद अमीर खां साहब संस्कृति संगीत समान के अलावा उन्हें सैकड़ो की संख्या में पुरस्कारों व सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। 

युवा पीढ़ी को प्रेरित करना जरुरी 

इस आधुनिक युग में लोक कला व संस्कृति के सामने चुनौतियों को लेकर कैलाश वर्मा का कहना कि इस इंटरनेट युग में अपनी संस्कृति से दूर होकर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ती युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करना बेहद जरुरी है। समाज के बिगड़ते ताने बाने में सुधार के लिए लोक संस्कृति और परंपरागत लोक कला व संगीत को स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है, इसके लिए सरकार को परंपरागत शिक्षकों के लिए प्राथमिकता के साथ पहल करनी होगी। वहीं अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की दिशा में लोक कलाकारों, गीतकारों और अन्य विधाओं के कलाकारों को सकारात्मक रुप से आगे आने की जरुरत है। 

11Mar-2024


सोमवार, 4 मार्च 2024

साक्षात्कार: साहित्य के बिना समाजिक समरसता संभवन नहीं: अशोक जाखड़

देश की सेवा के साथ साहित्य सृजन करने में जुटे ‘निस्वार्थी’ 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: अशोक कुमार जाखड़ ‘निस्वार्थी’ 
जन्म तिथि: 01 जनवरी 1958 
जन्म स्थान: ग्राम ढाणा जिला झज्जर 
शिक्षा: इंटरमिडिएट इलाहाबाद बोर्ड यूपी 
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त एएसआई सीआईएसएफ, स्वतंत्र
 लेखन 
संपर्क:  ग्राण ढाणा डाकघर साल्हावास जिला झज्जर (हरियाणा ), मोबा.-8307906781/ 9306116563
By-ओ.पी. पाल 
साहित्य के क्षेत्र में हरियाणवी संस्कृति, सभ्यता तथा भाषा को सर्वोपरि रखते हुए साहित्यकारों व लेखकों ने अपनी अलग अलग विधाओं में प्रोत्साहित करने में महत्वपूर्ण योगदान दिया है। साहित्यकार एवं कवि अशोक जाखड भी ऐसे लेखकों में शामिल हैं, जिन्होंने देश की सुरक्षा के प्रहरी की भूमिका निभाने के साथ ही जुनूनी साहित्य साधना की है। साहित्य के क्षेत्र में श्रीमदभागवद् गीता में विद्यमान शब्दो के अर्थो को हरियाणवी एवं हिंदी के सरल शब्दों में बदलकर श्रीमदभागवद् भजनावली नामक एक आध्यात्मिक कृति की रचना करके चर्चा में आए जाखड़ ने दीनबंधु सर छोटूराम के पूरे जीवन दर्शन के खड़ी बोली शब्दों को भी हिंदी एवं हरियाणवी शब्दों में पदबद्ध करके अहम भूमिका निभाई है। देश के सुरक्षाबल सीआईएसएफ में ढाई दशक की सेवा और उसके साथ साहित्यिक सफर को लेकर अशोक जाखड़ ‘निस्वार्थी’ ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में कई ऐसे अनछुए पहलुओं को उजागर किया, जिसमें वे मानते हैं कि साहित्य के बिना सामाजिक समरसता की कल्पना करना बेमाने है। 
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देश की सुरक्षा के प्रहरी की भूमिका निभा चुके हरियाणा के साहित्यकार अशोक कुमार जाखड का जन्म 01 जनवरी 1958 को झज्जर जिले के गांव ढाणा में कुडेराम जाखड व श्रीमती बसंती देवी के घर में हुआ। उनके पिता साल 1950 के गांव में मैट्रिक पास थे और उन समेत सभी चार भाई सेना व अर्द्धसैनिक बल में सेवारत रहे हैं। अशोक जाखड का बेटा भी बीएसएफ में अधिकारी है। परिवार में कोई साहित्यिक माहौल नहीं रहा, लेकिन सभी भाईयों को रागनी सुनने का शौंक रहा है। अशोक को भी कविता व दोहे बचपन से ही भाते थे। उन्होंने बताया कि स्कूली शिक्षा के दौरान पाठ्यक्रम में संत कबीर और रहीम के दोहे के साथ क्रांतिकारियों की कविताएं और सांग भजन पढ़ने के साथ रेडियो कार्यक्रमों में पं. लखमीचंद, पं. मांगेराम, शहीद कवि जाट मेहर के भजन व रागनियों का शौंक पैदा हुआ। वहीं दूसरी ओर वह बुजुर्गों की चर्चा में रहे ब्रह्मवेता कवि पं. मेहर सिंह साल्हावास झज्जर के नाम से वह बहुत प्रभावित रहे हैं। इसलिए उनका बचपन से ही कवि बनने का सपना था। जब वह नौवीं कक्षा के छात्र थे, तो उन्होंने पांच कविता सतसंग कीर्तन के भजन लिखे और दो भजन एक साधु के आश्रम में सुना दिए। इस पर एक गायक ने उन्हें दूसरे की कविता बताकर फटकार दिया। दसवीं में फेल होने पर उन्होंने सन 1974-75 में पढ़ाई छोड़ कर 05 साल तक पशु चराए और खेती का काम किया। अप्रैल 1980 में उनकी शादी हुई और एक दिसम्बर को वह सीआईएसएफ में भर्ती होकर पीटीसी मधुबन करनाल हरियाणा में प्रशिक्षण के लिए चले गये, जहां उन्होंने एक भजन लिखा और दो चार साथियों को सुनाया। प्रशिक्षण के बाद वह हल्दिया मिदनापुर (पं बंगाल) चले गये, तो रागनी कभी कभी बैरक में गा लेते थे। छुट्टियों पर घर आने पर हरियाणा में कम्पीटीशन का जोर को देखते हुए वह कैसिड खरीदते और उन्हें टेप रिकार्ड में सुनते थे। नौकरी में समय मिलते ही वह अपने आपको साहित्य में जोड़ लेते थे। शायद इसी जुनून में उन्हें 20 साल की उम्र में महाकवियों की करीब 300 कविताएं और हरियाणवी भजन कंठस्थ याद हो गई, क्योंकि इनके काव्य मे पौराणिक, सामाजिक, ऐतिहासिक, परिवारिक, हरिभक्ति और देश भक्ति का मार्ग दर्शन ने उन्हें काव्य शौक और अभ्यास में रचा बसा दिया। हालांकि उनके लेखन का फोकस ईश्वर भक्ति, देशभक्ति, शहीद ,क्रांतिकारी, महापुरुषों, समाजिक बुराई, गौसेवा,नारी दर्शन,पर्यावरण, हिंदी और हरियाणवी भाषा, हरियाणवी सभ्यता और संस्कृति आदि विषयो पर ही ज्यादा रहा है। जाखड़ ने बतया कि जब उनकी पोस्टिंग झारखंड के बोकारो में हुई तो वहां यूपी, राजस्थान, पंजाब, हरियाणा वाले रागनी प्रेमी बहुत मिले। इसलिए साथियों के कहने से उन्होंने एक श्रृंगार रस की रागनी बनाई, जो सभी को बेहद पसंद आई। बकौल जाखड 1986 में उन्होंने किसी तरह प्राईवेट से मैट्रिक और 1992 में इंटरमिडिएट पास की। नौकरी के दौरान ही रायबरेली(यूपी) के ऊंचाहार में होने वाले कवि सम्मेलनों ने तो उनके अंदर एक क्रांति पैदा कर दी। खासबात ये है कि 31 दिसंबर 2017 को सीआईएसएफ से सेवानिवृत्वेत हुए अशोक जाखड़, निस्वार्थी राष्ट्रीय समूह ढाणा झज्जर हरियाणा, निस्वार्थी देश भक्ति समूह ढाणा झज्जर हरियाणा, निस्वार्थी हिंदी काव्य समूह ढाणा झज्जर हरियाणा तथा निस्वार्थी हरियाणवी समूह ढाणा झज्जर हरियाणा के माध्यम से निरंतर साहित्य की निशुल्क और निष्वार्थ भाव से सेवा करने में जुटे हुए हैं। 
यहां से मिली मंजिल 
साहित्य में कविता के जुनून में अशोक जाखड़ को हरिहर प्रसाद द्विवेदी का प्रोत्साहन मिला और साल 2003 से दार्शनिक संत सतगुरु श्री संतोष पुरी महाराज की कृपा हुई। यूपी में होने वाले कवि सम्मेलन भी वह जाने लगे, जिसकी खबर अगले दिन अखबार में आती थी, तो उन्होंने भी कवि सम्मेलन में जाने की पेशकश की, लेकिन उन्होंने यह कहकर मना कर दिया कि यहां हरियाणवी रागनी नहीं, बल्कि शुद्ध हिंदी की कविता सुनानी पड़ती है। इस पर उन्होंने संकल्प लिया कि वह हिंदी की कविता बनाकर लिखेंगे। साहित्य के प्रति इस जुनून ने उन्हें ऐसा उकसाया कि हमारा देश, दहेज, कश्मीर पर कविता लिखी, जिन्हें हरिहर प्रसाद रिसाल ने भी पढा और उन्हें सराहा। इसके बाद उन्हें पहली बार यूपी के प्रतापगढ में 29 अप्रैल 1992 को आयोजित कवि सम्मेलन मे आमंत्रित किया और उनके काव्यपाठ को सराहा गया, जिसके बाद उनकी कविताएं लिखने और सुनाने की रफ्तार बढ़ती चली गई। इस प्रकार उन्होंने गुजरात 26 जनवरी 2001 के भूकंप आपदा पर एक कविता कृति लिखी। 
आधुनिक युग में सामाजिक परिवेश प्रभावित 
आज के आधुनिक युग में साहित्य के सामने चुनौतियों के बारे में जाखड़ मानते हैं कि साहित्य के नए लेखक बढे है, लेकिन पाठकों की रुची बेहद कम हो रही है, यहां तक कि विश्वविख्यात धार्मिक साहित्य श्रीमद्भगवद्गीता, महाभारत और रामायण जैसे ज्ञान वर्धक व मार्गदर्शक साहित्य से रुचि कम होने से समाजिक परिवेश भी प्रभावित हो रहा है। खासतौर से युवा वर्ग का सोशल मीडिया और इंटरनेट के प्रभाव में आने से संस्कृति, सभ्यता, मानवता, मात पिता की सेवा और अनुशासन से दूर होना एक सभ्य समाज के लिए घातक और चिंताजनक है। ऐसे में युवाओं को संतों ,महापुरुषो ,महान कवियो और कलमकारों को अच्छे साहित्य सृजन करने की जरुरत है। वहीं स्कूल, कालेज और शिक्षा संस्थाओं माता पिताओं द्वारा उनके जीवन के शुरुआत से ही साहित्य के प्रति प्रेरित करने की आवश्यकता है, जिसमें सरकार की उपाय करने की अनिवार्यता भी शामिल होना चाहिए। इसका दूसरा पहलु यह भी है कि आज के इंटरनेट व सोशल मिडिया युग ने साहित्य के प्रसार प्रसार को आसान कर दिया और आम साहित्यकार को प्रतिभा के मुताबिक राह मिली है, जिसमें पुस्तक प्रकाशन की जटिलता बहुत कम हो गई है। इसलिए सोशल मिडिया साहित्य का मित्र है, वरदान है। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार अशोक कुमार जाखड़ की प्रकाशित 11 पुस्तकों में प्रमुख रुप से खंड काव्य योग दर्पण, धारा 370(जम्मू-कश्मीर), शहीद भगत सिंह, सर छोटु राम एवं अष्टावक्र गीता, भजन संग्रह काव्य त्रिवेणी के अलवा भारत के परम वीर चक्र विजेता, श्रीमदभागवत भजनावली, निस्वार्थी पद गीता, निस्वार्थी गौमाता दर्शन और निस्वार्थी उद्योग पर्व शामिल हैं। जबकि दस पुस्तकें प्रकाशन के लिए तैयार हैं, जिनमें एकल काव्य लघु कृतियां, गुजरात आपदा विरह इतिहास, पराधीन भारत स्वाधीन भारत, कारगिल विजय अभियान नामक पुस्तकें भी लिखी गई हैं। वहीं उनकी एकल संपादन सांझा संकलन के रुप में 06 और 25 साझा सकलनों में उनकी कविताओं का प्रकाशत हुआ है।
पुरस्कार व सम्मान 
देश के प्रहरी रहे साहित्यकार अशोक जाखड़ को राष्ट्रीय एवं अंतर्राष्ट्रीय साहित्यिक संस्थाओं ने साहित्य क्षेत्र में योगदान के लिए अनेक सम्मान दिये हैं। इसमें हरियाणा गौरव सम्मान, काव्य सौरभ सम्मान, श्रीकृष्ण सरल सम्मान, परमवीर सृजन सम्मान, शब्द शिल्पीभूषण सम्मान, समाज पथ-प्रदर्शक सम्मान, पंडित श्री दत्त शर्मा स्मृति सम्मान, चंद्र मति स्मृति साहित्य रत्न सम्मान, क्रान्तिधरा मेरठ साहित्य रत्न सम्मान शामिल है। इसके अलावा उन्हें साहित्यिक एवं सांस्कृतिक कला संगम अकादमी परियावां प्रतापगढ़ द्वारा विद्या वाचस्पति मानद उपाधि से भी सम्मानित किया जा चुका है। 
04Mar-2024