सोमवार, 11 मार्च 2024

चौपाल: लोक संगीत में आवाज का जादू बिखेरते डा. कैलाश चन्द्र वर्मा

संगीत कला के हुनर से बने सुगम संगीत में ए ग्रेड तथा हरियाणवी लोक संगीत में टॉप ग्रेड के कलाकार व्यक्तिगत परिचय 

नाम: कैलाश चन्द्र वर्मा 

जन्मतिथि: 29 जुलाई, 1955 

जन्म स्थान: रोहतक(हरियाणा) 

शिक्षा: एम.ए. (संगीत-गायन), एम.ए. (राजनीति विज्ञान) बीएड. 

संप्रत्ति: सेवानिवृत्त निदेशक, ऑल इंडिया रेडियो रोहतक, संगीतकार 

संपर्क: एच.नं. 203, सेक्टर 14, शहरी संपदा. रोहतक-124,001 

-- BY-ओ.पी. पाल 

--रियाणा की लोक कला एवं संस्कृति के संवर्धन में जुटे कलाकारों में डा. कैलाश चन्द्र वर्मा ऐसे संगीतकार के रुप में राष्ट्रीय स्तर पर लोकप्रिय हैं, जिन्होंने समाज के समक्ष सभ्यता, रीति रिवाज, संस्कार, तीज त्योहार की परंपरागत संस्कृति को अपने गीतों व संगीत के माध्यम से नया आयाम दिया है। एक संगीतकार के रुप में उन्होंने गीतों, गजलों, भजनों को शास्त्रीय और लोक संगीत में अपनी आवाज का ऐसा जादू बिखेरा है कि उन्हें सुगम संगीत में ‘ए’ ग्रेड और हरियाणवी लोक संगीत में ‘टॉप ग्रेड’ कलाकार की मान्यता मिल चुकी है। प्रसार भारती में आकाशवाणी केंद्र रोहतक के निदेशक पद से सेवानिवृत्त कैलाश चन्द्र वर्मा ने एक मुलाकात के दौरान अपने संगीत कला के सफर को साझा करते हुए कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जिसमें अपनी समृद्ध संस्कृति को नए स्वरुप में पिरोकर समाज को सकारात्मक ऊर्जा दी जा सकती है। 

रियाणवी संस्कृति के जीवन में विवाह, भात, विदाई और तीज त्योहरों जैसे हर संस्कारों को लोकगीतों के माध्यम से नया आयाम देने वाले सुविख्यात संगीतकार कैलाश चन्द्र वर्मा का जन्म 29 जुलाई, 1955 को रोहतक शहर में रामेश्वर दयाल और श्रीमती धनकौर देवी के घर में हुआ। उनके परिवार में उनके पिता को हारमोनियम के साथ संगीत का शौंक था। शायद इसलिए भी कैलाश वर्मा को बचपन में महज चार साल की उम्र में ही फिल्मी गानों में रुचि पैदा हुई। उनकी प्राथमिक शिक्षा रोहतक के गौड ब्राह्मण स्कूल में हुई, जहां शिक्षक उनसे गाने सुनते थे और उनका पुरस्कार के रुप में कुछ न कुछ देकर उत्साह बढ़ाते रहे। जब वह पांचवी कक्षा में थे तो उन्हें स्कूल की प्रार्थना कराने की जिम्मेदारी सौंप दी गई। इसी विद्यालय में जब वे छठी कक्षा में थे, तो वहां संगीत शिक्षक पं. श्रीकृष्ण शर्मा ने उन्हें बहुत कुछ सिखाना शुरु कर दिया और कक्षा छह के छात्र होने के बावजूद उन्हें स्कूल में हाई स्कूल की प्रार्थना तक कराने का मौका दिया गया और उन्हें देशभक्ति के गीत प्रतियोगिताओं में लेकर जाने लगे। गीत संगीत में उन्हें हाई स्कूल से पुरस्कार मिलना शुरु हो गये थे। दसवीं पास करने के बाद गौड ब्राह्मण कालेज के प्राचार्य जीआर स्वामी ने भी उन्हें संगीत के क्षेत्र में हमेशा प्रोत्साहन दिया। अंतर इंटर कालेज प्रतियोगिताओं में उन्होंने अपनी कला का ऐसा प्रदर्शन किया कि वे हमेशा प्रथम पुरस्कार से नवाजे जाते रहे। मसलन उच्च शिक्षा में बीए करने तक उन्होंने करीब एक सौ पच्चीच पुरस्कार हासिल कर लिये थे। उन्हें यूथ फेस्टिवल में गजल, कव्वाली और संगीत का भी मौका मिला। बीए की शिक्षा के बाद उन्होंने आकाशवाणी केंद्र रोहतक में ओडिशन दिया, जहां चयनित होने पर पहली बार गजल गाने का मौका मिला। उन्होंने महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक से राजनीति विज्ञान और संगीत गायन में डबल एमए किया। उन्होंने यूपीएससी की परीक्षा दी, तो जुलाई 1984 में वे चयनित हो गये और उनकी नियुक्ति आकाशवाणी केंद्र रोहतक में कार्यक्रम अधिकारी के पद पर हो गई। उनकी यह सेवाएं केंद्र सरकार के अंतर्गत शुरु हुई, जिसके कारण वह मथुरा, कुरुक्षेत्र, शिमला, नई दिल्ली और नई दिल्ली में नेशनल चैनल व महानिदेशालय में विभिन्न पदों पर रहे। साल 2013 में वे प्रोन्नति के साथ एक बार फिर वे रोहतक आकशवाणी केंद्र में निदेशक के पद पर आ गये और इसी पद से वे जुलाई 2015 में सेवानिवृत्त हुए। इससे पहले वे कुरुक्षेत्र के बाद रोहतक आकाशवाणी में सहायक केंद्र निदेशक के रुप में भी सेवाएं दे चुके हैं। सरकारी सेवा के दौरान कैलाश वर्मा ने शास्त्रीय संगीत, सुगम संगीत और लोक संगीत की प्लानिंग प्रोडक्शन करते हुए खासतौर से हरियाणवी संस्कृति और लोक कला एवं संगीत संवर्धन पर ज्यादा फोकस किया। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में समय समय पर अन्य आकाशवाणी केंद्रों के कलाकारो का आदान प्रदान की दिशा में अनेक संगीत समारोह आयोजित कराए और स्वयं के ग्रेड प्राप्त किये। संगीत के क्षेत्र में अखिल भारतीय ग्रेड-II के संगीतकार के रूप मान्यता प्राप्त कैलाश वर्मा ने सुगम और लोक संगीत के अलावा शास्त्रीय संगीत के भी कई दर्जन संगीत कार्यक्रम ऑल इंडिया रेडियो पर भी आयोजित कराए हैं। उन्हें खुद को भी दूसरे केंद्रों पर भी हरियाणवी संगीत प्रस्तुत करने के मौके मिले। साल 1984 से अब तक संगीत के क्षेत्र में निर्णायक की भूमिका निभाते आ रहे कैलाश वर्मा ने लोक गीतों की रचनाओं को भी नया आयाम दिया, जिन्हंक समूह गान के रुप में जगह मिली। 

रागनी व सांग को दिया नया आयाम 

आकाशवाणी में करीब डेढ़ दशक तक कार्यक्रम कार्यकारी (हरियाणवी संगीत), एडीपी (संगीत) और डीपी (संगीत) के रूप में सेवा के दौरान उन्होंने हरियाणवी संगीत में विशेष कार्य किये। उन्होंने खासतौर से हरियाणवी रागनी को नया आयाम देकर सांग विधा को जीवंत करने में अहम भूमिका निभाई। साल 1990 में आकाशवाणी केंद्र रोहतक में हरियाणा की सांग विधाओं को नया आयाम देने के मकसद से उन्होंने पुराने सांगियों के शिष्यों की मंडलियों को आकाशवाणी में आमंत्रित करके डेढ़ डेढ़ घंटे की अवधि के लिए उनके सांगों की रिकार्डिंग कराने की शुरुआत की और सांग की विभिन्न शैलियों व अलीवक्श जैसी विधाओं की प्रस्तुति दी। रागनियों के नए आयाम से यह बात सामने आई कि सांग के भाव व अर्थ को प्रभावित किये बिना उसमें थोड़ा परिवर्तन करके मधुरता के साथ भी सांग की प्रस्तुतियां हो सकती हैं। 

बॉलीवुड तक संस्कृति की छाप 

कैलाश चन्द्र वर्मा का संगीत के क्षेत्र में हरियाणा के लोक गीतों और संस्कृति को जीवंत करने पर ज्यादा फोकस रहा है, क्योंकि उनके घर में संस्कृति के माहौल में उन्हें भी लोक गीतों में बचपन में ही अभिरुचि होने लगी थी। उन्होंने हरियाणवी फिल्मों-छोरा चौबीसी का, लठ गाड दिया और दामन की फटकार के अलावा कई लघु फिल्मों में भी संगीत देकर एक संगीत निर्देशक के रुप में अहम भूमिका निभाई है। हरियाणवी फिल्म ‘छन्नो’ में उन्होंने वॉलीवुड गायकों आशा भोसले, सुरेश वाडेकर, अनुराधा पौडवाल तथा दिलराज कौर जैसे संगीतकारों से हरियाणवी में गायकी कराई है। 

पुरस्कार व सम्मान 

प्रसिद्ध संगीतकार कैलाश वर्मा की लोकप्रियता किसी से छिपी नहीं है, जिन्होंने हरियाणवी संगीत में विशेष कार्य करते हुए अनेक पुरस्कार हासिल किये। उन्होंने आकाशवाणी केंद्रों से अनेकों संगीत रुपक प्रस्तुत किये, जिनमें से तीजों के रंग-झूलों के संग, बहु कडे से आवैगी तथा गऊ की पुकार जैसे तीन संगीत रुपक के लिए उन्हें अखिल भारतीय संगीत प्रतियोगिता में राष्ट्रीय पुरस्कार मिले हैं। संगीत प्रस्तुतियों के लिए उन्हें आकाशवाणी वार्षिक में तीन मेरिट पुरस्कार मिले। उत्तर क्षेत्रीय व राष्ट्रीय स्तर पर मिले पुरस्कारों के अलावा उन्हें संगीत के क्षेत्र में एमडीयू रोहतक से श्री कला रत्न सम्मान, आकाशवाणी महानिदेशालय से पंडित की उपाधि, तान तरंग संगीत कला नई दिल्ली के संगीत रत्नाकर सम्मान से भी नवाजा जा चुका है। वहीं उस्ताद अमीर खां साहब संस्कृति संगीत समान के अलावा उन्हें सैकड़ो की संख्या में पुरस्कारों व सम्मान से अलंकृत किया जा चुका है। 

युवा पीढ़ी को प्रेरित करना जरुरी 

इस आधुनिक युग में लोक कला व संस्कृति के सामने चुनौतियों को लेकर कैलाश वर्मा का कहना कि इस इंटरनेट युग में अपनी संस्कृति से दूर होकर पाश्चात्य संस्कृति की तरफ बढ़ती युवा पीढ़ी को अपनी संस्कृति के प्रति प्रेरित करना बेहद जरुरी है। समाज के बिगड़ते ताने बाने में सुधार के लिए लोक संस्कृति और परंपरागत लोक कला व संगीत को स्कूल से विश्वविद्यालय स्तर तक पाठ्यक्रम में शामिल करना आवश्यक है, इसके लिए सरकार को परंपरागत शिक्षकों के लिए प्राथमिकता के साथ पहल करनी होगी। वहीं अपनी सामाजिक एवं सांस्कृतिक धरोहर को संजोने की दिशा में लोक कलाकारों, गीतकारों और अन्य विधाओं के कलाकारों को सकारात्मक रुप से आगे आने की जरुरत है। 

11Mar-2024


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