रविवार, 19 मई 2024

लोकसभा चुनाव: पांचवे चरण में तीन केंद्रीय मंत्रियों व एक पूर्व मुख्यमंत्री की दांव पर साख


राहुल गांधी जैसे कई दिग्गजों के लिए होगा सियासी प्रतिष्ठा का चुनाव 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में आठ राज्यों एवं केंद्र शासित प्रदेशों की 49 लोकसभा सीटों के लिए कल सोमवार 20 मई को को मतदान होगा। इस दौर की चुनावी जंग में 82 महिलाओं समेत 695 उम्मीदवारों की सियासी किस्मत का फैसला करने के लिए 8 करोड़ 95 लाख 67 हजार 973 मतदाता वोटिंग करेंगे। इस चरण में तीन केंद्रीय मंत्री, एक पूर्व मुख्यमंत्री तथा करीब आधा दर्जन पूर्व मंत्रियों के अलावा कांग्रेस नेता राहुल गांधी जैसे केई दिग्गज नेताओं की प्रतिष्ठा भी दांव पर होगी। 
देश में लोकसभा की 543 सीटों के लिए चल रहे इस चुनावी समर के पहले चार चरणों में आधे से भी ज्यादा 380 सीटो पर चुनाव संपन्न हो चुका है, जिसमें 529 महिलाओं और एक थर्डजेंडर समेत 5875 उम्मीदवारों का सियासी भविष्य ईवीएम में कैद हो चुका है। जबकि इनके अलावा गुजरात की सूरत सीट से एक सांसद निर्विरोध घोषित हो चुका है। कल 20 मई सोमवार को 49 लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान के लिए शनिवार की शाम चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है। अब सोमवार को दो केंद्र शासित प्रदेशों तथा छह राज्यों की इन सीटों पर मतदान के दौरान 695 उम्मीदवारों की किस्मत के लिए मतदाता ईवीएम का बटन दबाएंगे। इस चरण में सबसे ज्यादा महाराष्ट्र की 13 सीटों के लिए 264 उम्मीदवार चुनाव मैदान में हैं। जबकि लोकसभा सीट के हिसाब से देखा जाए तो महाराष्ट्री की नासिक सीट पर सबसे ज्यादा 31 प्रत्याशी तथा लद्दाख सीट पर सबसे कम तीन प्रत्याशी अपनी किस्मत आजामा रहे हैं। इस चरण में ओडिसा की पांच लोकसभा सीटों के साथ उनके दायरे में आने वाली 35 विधानसभा सीटों के लिए भी मतदान होगा। 
इन पूर्व मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय मंत्रियों की दांव पर प्रतिष्ठा 
लोकसभा चुनाव के पांचवें चरण में यूपी की लखनऊ लोकसभा सीट पर देश के रक्षामंत्री राजनाथ सिंह तथा अमेठी सीट से केंद्रीय अल्पसंख्यक तथा महिला एवं बाल विकास मंत्री स्मृति ईरानी की प्रतिष्ठा दांव पर है। वहीं महाराष्ट्र की मुंबई नॉर्थ सीट से केंद्रीय वाणिज्य एवं उद्योग, कपड़ा मंत्री के अलावा राज्यसभा में सदन के नेता पीयूष गोयल पहली बार लोकसभा चुनाव में परीक्षा देंगे। वहीं इस चरण में जम्मू कश्मीर की बारामूला लोकसभा सीट से पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कांफ्रेंस के नेता उमर अब्दुला की साख भी दांव पर होगी। इनके अलावा पूर्व केंद्रीय मंत्रियों में ओडिशा की सुंदरगढ सीट से जुएल ओराम, बिहार की सारण सीट से राजीव प्रताप रूडी, यूपी की फतेहपुर सीट से निरंजन ज्योति तथा झांसी से कांग्रेस के प्रदीप जैन भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
इन दिग्गजों की साख की भी होगी परीक्षा 
पांचवे चरण में यूपी की रायबरेली लोकसभा सीट पर कांग्रेस के दिग्गज राहुल गांधी और योगी सरकार के मंत्री दिनेश प्रताप सिंह, ओडिशा की सुंदरगढ़ सीट पर पूर्व हॉकी खिलाड़ी एवं राज्यसभा सांसद दिलीप टिर्की, बिहार की हाजीपुर सीट पर लोजपा के चिराग पासवान, पश्चिम बंगाल की श्रीरामपुर सीट पर टीएमसी के कल्याण बनर्जी तथा मुंबई नॉर्थ सेंट्रल सीट पर आतंकी कसाब को फांसी दिलाने वाले अधिवक्ता उज्जवल निकम भी भाजपा के टिकट पर चुनाव मैदान में हैं। इनके अलावा विभिन्न दलों के सांसदों व पूर्व सांसदों जैसे दिग्गजों की भी सियासी पिच पर परीक्षा होगी। 
बसपा के सर्वाधिक प्रत्याशी 
लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण में 49 सीटों पर प्रमुख राजनैतिक दलों में सबसे ज्यादा 46 प्रत्याशी बसपा ने उतारे हैं। जबकि भाजपा के 40, कांग्रेस के 18, सपा के 10, शिवसेना(यूबीटी) के 8, तृणमूल कांग्रेस के 7, शिवसेना(शिंदे) के 6, बीजद और सीपीआई(एम) के 5-5, राजद, सीपीआई और एआईएमआईएम के 4-4 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। राकांपा(एसपी) के दो तथा जदयू व लोजपा का एक-एक प्रत्याशी इस चरण की चुनावी जंग में हैं। इस चरण अन्य दलों के दलों के अलावा 291 निर्दलीय भी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 49 सीटों पर किस दल का कब्जा पांचवे चरण में आठ राज्यों की जिन 49 सीटों पर 20 मई को मतदान होना है, उनमें साल 2019 के चुनाव में भाजपा ने 40 सीटों पर चुनाव लड़ा था और 32 सीटें जीती थी। शिवसेना ने सात, तृणमूल कांग्रेस ने चार तथा कांग्रेस, जदयू, लोजपा, बीजद और नेशनल कांफ्रेंस ने एक-एक सीट पर जीत दर्ज की थी। बाकी पांच सीटें अन्य प्रत्याशियों के खाते में गई थी। 
इन प्रमुख दलों ने दागियों पर खेला दांव 
लोकसभा चुनाव के पहले चार चरणों की तरह ही पांचवे चरण में भी राजनीतिक दलों ने दागियों पर दांव खेला है। इस चरण में 159 दागी चुनाव मैदान में हैं, जिसमें प्रमुख राजनीतिक दलों में सबसे ज्यादा 19 को भाजपा ने अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि कांग्रेस और बसपा के 8-8, सपा के पांच, तृणमूल कांग्रेस, शिवसेना(शिंदे), सीपीआई, सीपीआई(एम) और शिवसेना(यूबीटी) के 3-3, एआईएमआईएम के दो तथा राजद व जदयू के एक-एक प्रत्याशी के खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। हालांकि सबसे ज्यादा 58 निर्दलीय प्रत्याशी भी दागियों की फेहरिस्त में शामिल है। सबसे ज्यादा 93 आपराधिक मामले पश्चिम बंगाल की बराकपुर सीट से चुनाव लड़ भाजपा प्रत्याशी अर्जुन सिंह के खिलाफ दर्ज हैं। 
करोड़पतियों में भाजपा के सबसे ज्यादा प्रत्याशी 
लोकसभा चुनाव के पांचवे चरण में ज्यादातर सियासी दलों ने करोड़पतियों पर दांव खेला है। इस चरण में 227 करोड़पति प्रत्याशियों में सबसे जथ्यादा 36 प्रत्याशी भाजपा के हैं। बसपा के 46 में 20, कांग्रेस के 18 में 15, सपा के सभी 10, तृणमूल के सात में 6, शिवसेना(यूबीटी) के आठ में 7, शिवसेना(शिंदे) के सभी छह, राजद के सभी चार, राकांपा(एसपी), सीपीआई व एआईएमआईएम के चार में 2-2 प्रत्याशी धनकुबेर प्रत्याशियों की सूची में शामिल हैं। इनमें से सबसे ज्यादा अमीर प्रत्याशी यूपी की झांसी लोकसभा सीट के भाजपा के अनुराग शर्मा 212 करोड़ की संपत्ति के मालिक हैं। भाजपा के पीयूष गोयल अमीर प्रत्याशियों की सूची में तीसरे पायदान पर है। वहीं सबसे गरीब प्रत्याशी जम्मू कश्मीर की बारामूला सीट से निर्दलीय प्रत्याशी मोहम्मद सुल्तान गंवाई हैं, जिनके बाद बिहार की मुजफ्फरपुर सीट के निर्दलीय प्रत्याशी मुकेश कुमार ने अपनी संपत्ति 700 रुपये घोषित की है। 
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पांचवें चरण में कितनी सीट व प्रत्याशी एवं मतदाता 
राज्य            सीट  प्रत्याशी दागी करोड़पति मतदाता 
बिहार             5      80        15    27           95,11,186 
जम्मू कश्मीर 1      22          2      4            17,37,865 
झारखंड           3    54         18     21          58,34,618 
लद्दाख              1     3         00      2          1,84,808 
महाराष्ट्र        13   264       62     87         2,46,69,544 
ओडिशा            5    40        12    13         79,69,887 
उत्तर प्रदेश    14   144      29    53         2,71,36,363
 पश्चिम बंगाल 7    88      21    20          1,25,23,702
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कुल             49   695     159    227       8,95,67,973
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किस राज्य में कौन सीट पर होगा चुनाव 
बिहार: सीतामढ़ी, मधुबनी, मुजफ्फरपुर, सारण, हाजीपुर। 
जम्मू कश्मीर: बारामूला लोकसभा सीट 
झारखंड: चतरा, कोडरमा और हजारीबाग। 
लद्दाख: लद्दाख लोकसभा सीट 
महाराष्ट्र: धुले, डिंडौरी, नासिक, पालघर, कल्याण, थाने, मुंबई नॉर्थ, मुंबई नॉर्थ वेस्ट, मुंबई नॉर्थ इस्ट, मुंबई नॉर्थ सेंट्रल, मुंबई साउथ सेंट्रल और मुंबई साउथ। 
  ओडिशा: बरगढ़, सुंदरगढ़, बोलांगीर, कंधमाल, अस्का लोकसभा के साथ में 35 विधानसभा सीट। 
उत्तर प्रदेश: मोहनलालगंज, लखनऊ, राय बरेली, अमेठी, जालौन, झांसी, हमीरपुर, बांदा, फतेहपुर, कौशांबी, बाराबंकी, फैजाबाद, कैसरगंज, गोंडा। 
पश्चिम बंगाल: बनगांव, बैरकपुर, हावड़ा, उलुबेरिया, श्रीरामपुर, हुगली, आरामबाग। 
19May-2024

हॉट सीट लखनऊ: भाजपा के गढ़ में हैट्रिक बनाने उतरे राजनाथ सिंह

केंद्रीय मंत्री के खिलाफ समाजवादी पार्टी ने मौजूदा विधायक पर खेला दांव 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में यूपी की 80 सीटों में सबसे अहम लखनऊ लोकसभा सीट के लिए पांचवे चरण में 20 मई सोमवार को मतदान होगा। भाजपा का गढ़ बन चुकी लखनऊ लोकसभा सीट भाजपा के लिए बेहद सुरक्षित सीट मानी जाती है। हालांकि भाजपा प्रत्याशी के रुप में हैट्रिक बनाने के लिए एक बार फिर केंद्रीय रक्षा मंत्री राजनाथ सिंह को चुनौती देने के लिए इंडिया गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के रुप में समाजवादी पार्टी ने लखनऊ मध्य विधानसभा सीट के मौजूदा विधायक रविदास महरोत्रा को चुनावी जंग में उतारा है। वहीं बसपा ने जातीगत समीकरण की चुनावी रणनीति के तहतत मोहम्मद सरवर मलिक को अपना प्रत्याशी बनाया है। राजनीतिक विशेषज्ञों की माने तो यहां भाजपा के सामने सपा और बसपा अपने सियासी अस्तित्व के लिए चुनावी मैदान में हैं। फिर भी यहां प्रमुख रुप से भाजपा और इंडी गठबंधन के बीच चुनावी मुकाबला माना जा रहा है। उत्तर प्रदेश के हाईप्रोफाइल संसदीय क्षेत्रों में शुमार लखनऊ लोकसभा सीट नेहरु परिवार की विजया लक्ष्मी पंडित, श्योराजवती नेहरू व शीला कौल के अलावा हेमवती नंदन बहुगुणा और देश के प्रधानमंत्री रहे स्व. अटल बिहारी वाजपेयी जैसे दिग्गज नेताओं की कर्मभूमि रही है। नब्बे के दशक में भाजपा की गढ़ बन चुकी इस सीट पर ज्यादातर राजनीतिक दल जातीय समीकरण साधकर अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारते रहे हैं। हालांकि उत्तर प्रदेश की राजधानी के शहरी संसदीय क्षेत्र के रुप में पहचाने जाने वाली इस सीट पर पिछले दस सालों में सियासी समीकरण बदले हैं, लेकिन राजनीतिक दृष्टि से सभी राजनीतिक दल पहले की तरह ही इस बार भी अपनी नई चुनावी रणनीति के तहत चुनाव मैदान में है। 20 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में इस सीट पर प्रमुख दलों में भाजपा, सपा और बसपा के अलावा कुछ छोटे दलों समेत कुल दस उम्मीदवार अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें दो निर्दलीय प्रत्याशी भी शामिल हैं। 
लखनऊ लोकसभा सीट का सियासी सफर 
उत्तर प्रदेश की लखनऊ लोकसभा सीट शुरुआती दौर में नेहरु परिवार का गढ़ रही लोकसभा सीट को कांग्रेस और भाजपा जैसे दलों के देखने को मिले मुकाबलों में नब्बे के दशक में भाजपा ने भगवा में बदलकर अपना सियासी किला मजबूत किया है। इस सीट पर 1952 के पहले चुनाव में पंडित जवाहरलाल नेहरु की बहन विजया लक्ष्मी पंडित जीतकर लोकसभा पहुंची थी, लेकिन तीन साल बाद ही यहां 1955 के उपचुनाव में नेहरी की रिश्तेदाय श्योराजवती नेहरु ने जीत दर्ज की। करीब डेढ़ दशक के कांग्रेस के विजय रथ को यहां 1967 में निर्दलीय प्रत्याशी आनंद नारायण मुल्ला ने तोड़ा, लेकिन 1971 के चुनाव में नेहरु परिवार से आने वाली शीला कौल ने यहां जीत दर्ज कर कांग्रेस का परचम लहराया। आपातकाल में चली कांग्रेस विरोधी लहर में 1977 के चुनाव में जनता पार्टी के टिकट पर चुनाव लड़े हेमवती नंदन बहुगुणा ने जीत दर्ज की। इसके बाद फिर लगातार दो बार फिर कांग्रेस की शीला कौल ने लगातार दो जीत दर्ज की। जबकि 1989 के चुनाव में जनता दल की मांधाता सिंह ने चुनाव जीता। साल 1991 से 2004 तक इस सीट पर लगातार पांच बार अटल बिहारी वाजपेयी ने जीत दर्ज कर इसे भाजपा का गढ़ बना दिया। इसके बाद 2009 में यहां भाजपा के लालजी टंडन सांसद चुने गये, तो पिछले दो लगातार चुनाव जीतकर यूपी में मुख्यमंत्री रह चुके राजनाथ सिंह लोकसभा पहुंचे, तो तीसरी बार चुनाव मैदान में हैं।
युवा मतदाता होंगे निर्णायक 
लोकसभा सीट पर कुल 21.72 लाख मतदाताओं में 18 से 19 आयुवर्ग के 47,239 नए युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। जबकि 20 से 29 आयुवर्ग के 6,55,005 समेत 18-29 आयु वर्ग के मतदाता चुनाव में निर्णायक साबित हो सकते हैं। इस सीट पर 80 साल से अधिक आयु के 60238 मतदाता है, जिनमें से 228 मतदाताओं की संख्या शतायु यानि 100 साल से अधिक है। 
विस उपचुनाव में त्रिकोणीय मुकाबला 
लखनऊ लोकसभा सीट के साथ इसी इसके दायरे में आने वाले लखनऊ पूर्व विधानसभा सीट पर उपचुनाव के लिए भी 20 मई को ही मतदान होगा। यह सीट भाजपा के विधायक आशुतोष टंडन के निधन के कारण खाली हुई थी। यहां चुनाव मैदान में चार प्रत्याशी हैं, जिनमें भाजपा के ओमप्रकाश और इंडी गठबंधन के संयुक्त प्रत्याशी के रुप में कांग्रेस के टिकट पर मुकेश कुमार के अलावा बसपा के आलोक कुशवाह के बीच त्रिकोणीय मुकाबला है। जबकि विनोद वाल्मिकि निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस सीट पर कुल 4,64,510 मतदाता हैं। 
ऐसा है जातीय समीकरण 
लखनऊ लोकसभा सीट पर जहां भाजपा ने की वैश्य, कायस्थ और सिख समाज को साधने की रणनीति से चुनाव मैदान में है, तो वहीं समाजवादी पार्टी की कायस्थ और मुस्लिम वोट बैंक पर नजरें हैं। जबकि बसपा मुस्लिम, महिला और दलित समीकरण के आधार पर मुकाबले में आने का प्रयास कर रही है। एक अनुमान के अनुसार इस सीट पर 71 फीसदी हिंदू मतदाताओं में सर्वाधिक 28 फीसदी ओबीसी निर्णायक साबित हो सकते हैं। इसके बाद करीब 18 प्रतिशत राजपूत और ब्राह्मण, 18 फीसदी अनुसूचित जाति और 0.2 फीसदी अनुसूचित जनजाति के मतदाता हैं। बाकी पंजाबी, जैन, वैश्य, कायस्थ अैर अन्य जातियों के मतदाता भी मौजूद हैं। इस लोकसभा क्षेत्र में 26.36 प्रतिशत मुस्लिम आबादी में करीब 18 फीसदी मुस्लिम मतदाता पंजीकृत हैं। 
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लखनऊ सीट पर मतदाताओं का चक्रव्यूह 
कुल मतदाता-21,72,171 
पुरुष मतदाता-11,48,119
महिला मतदाता-10,23,960 
थर्डजेंडर-92 
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पांच विधानसभा सीटों मतदाताओं की स्थिति वार मतदाता
विधान सभा         पुरुष          महिला   थर्डजेंडर  कुल मतदाता 
लखनऊ पश्चिम-  2,50,268   2,20,527   33      4,70,828 
लखनऊ उत्तर-   2,61,150     2,29,524   23      4,90,697 
लखनऊ पूर्व-       2,42,937     2,21,558   15      4,64,510 
लखनऊ मध्य-   1,97,039      1,77,966    9      3,75,014 
लखनऊ कैंट-     1,96,725      1,74,385   12     3,71,122 
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कुल                 11,48,119    10,23,960    92      21,72,171 
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शनिवार, 18 मई 2024

हॉट सीट बारामूला: अपने ही गढ़ में चुनावी चक्रव्यूह के में फंसे उमर अब्दुल्ला

नेशनल कांफ्रेंस व पीपुल्स कांफ्रेस के मुकाबले को चुनौती देते पीडीपी व एआईपी के प्रत्याशी 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। जम्मू-कश्मीर में धारा 370 हटने के बाद नए परिसीमन के कारण बदले सामाजिक और राजनैतिक समीकरण के बीच केंद्र शासित प्रदेश की पांच सीटों पर हो रहे लोकसभा चुनाव में से एक नियंत्रण रेखा से सटी बारामूला लोकसभा सीट पर भी सभी की नजरें टिकीं है, जहां पांचवे चरण में 20 मई सोमवार को मतदान होगा। इस सीट पर राजग गठबंधन या भाजपा का कोई प्रत्याशी नहीं है, लेकिन विपक्षी इंडी गठबंधन में शामिल फारुख अब्दुल्ला की नेशनल कांफ्रेंस और और महबूबा मुफ्ती की पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के बीच आपसी स्पर्धा के बीच पीपुल्स कांफ्रेंस के सज्जाद गनी और एआईपी के इंजीनियर राशिद ने चुनावी जंग को दिलचस्प मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। यहां से इस बार नेशनल कांफ्रेंस के उपाध्यक्ष एवं जम्मू कश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री उमर अब्दुल्ला खुद चुनावी मैदान में है। राजनीतिज्ञों की माने तो इस सीट पर त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना है, लेकिन तिहाड़ जेल में बंद इंजीनियर रशीद के चुनावी जंग में आने से बने चक्रव्यूह में उमर अब्दुल्ला की राह मुश्किल नजर आ रही है। 
पाकिस्तान सीमा के नजदीक अलगाववाद और आतंक का गढ़ रही बारामूला लोकसभा सीट पर नए परिसीमन के बाद बदले समीकरणों के बीच चुनाव मैदान में उतरे राजनीतिक दलों के मुद्दे और सुर भी बदले हैं। भले ही ज्यादातर सियासी दलों के मुद्दों में धारा 370 की बहाली या आजादी अथवा स्वायत्तता या फिर स्वशासन हो, लेकिन जम्मू कश्मीर से धारा 370 हटने के बाद इतिहास बन चुके ऐसे मुद्दों के विपरीत बदले सामाजिक और राजनैतिक परिदृश्य के बीच यहां के लोगों के सामने शांति बहाली और विकास पहला सरोकार बनता नजर आ रहा है। इसलिए चुनावी जंग में उतरे सियासी दल भी अपनी चुनावी रणनीति बनाने को लेकर असमंजस में हैं। वहीं आतंकियों को फंडिग करने के आरोप में जेल में बंद इंजीनियर राशिद के बेटों अबरार रशीद (24) और असरार रशीद (20) के चुनाव प्रचार ने और नेशनल कांफ्रेंस और पीपुल्स कॉन्फ्रेंस के सामने चुनौती खड़ी कर दी है। इसका कारण यह भी है कि अवामी इत्तेहाद पार्टी के अध्यक्ष शेख अब्दुल रशीद उर्फ इंजीनियर रशीद लोन ने साल 2019 के चुनाव में निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में एक लाख से ज्यादा वोट लेकर तीसरा स्थान हासिल किया था। 
क्या है इस सीट का सियासी सफर 
जम्मू कश्मीर में 1967 में अस्तित्व में आई बारामूला लोकसभा सीट पर अभी हुए 15 लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा 10 बार जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस(नेकां) के प्रत्याशी जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं। पहले तीन चुनाव में यहां कांग्रेस ने जीत दर्ज की, तो उसके बाद नेशनल कांफ्रेस ने यहां 1977 से 1989 तक हुए चुनाव में पांच बार लगातार नेशनल कांफ्रेंस ने जीत दर्ज की, जिसमें तीन बार यहां से सैफुद्दीन सोज सांसद रहे। 1996 के चुनाव में फिर यहां गुलाम रसूल ने कांग्रेस को जीत दिलाकर वापसी की, जहां उस चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस चुनाव मैदान में नहीं थी। लेकिन उसके बाद फिर नेकां के सैफुद्दीन सोज ने कांग्रेस को ऐसा बेदखल किया कि अब तक कांग्रेस यहां जीत का स्वाद नहीं चख पाई। इसके बाद नेशनल कांफ्रेंस के प्रत्याशियो ने 2009 तक लगातार अपना परचम लहराया, लेकिन 2014 के चुनाव में यहां पहली बार पीडीपी के मुजफ्फर हुसैन बेग ने जीत दर्ज की, लेकिन साल 2019 के चुनाव में नेशनल कांफ्रेंस के मोहम्मद अकबर लोन ने चुनाव जीतकर साबित कर दिया कि यह नेशनल कांफ्रेंस का सियासी गढ़ है। शायद इसलिए नए परिसीमन से बदले राजनैतिक समीकरणों के बावूद श्रीनगर से तीन बार सांसद रहे नेकां के उपाध्यक्ष उमर अब्दुल्ला ने इस बार बारामुला लोकसभा सीट से चुनाव लड़ने का फैसला किया। 
ऐसे बदला लोकसभा क्षेत्र 
जम्मू कश्मीर में वर्ष 2022 में परिसीमन के बाद कुपवाड़ा, बारामूला, बांदीपोरा और बडग़ाम जिलों को मिलाकर बारामूला लोकसभा क्षेत्र का गठन किया गया, जिसमें अब 18 विधानसभा सीटें शामिल हो गई हैं। इसमें कुपवाड़ा जिले की करनाह, बेहगाम, कुपवाड़ा, लोलाब, हंदवाड़ा, और लंगेट, बारामूला जिले की सोपोर, रफियाबाद, उरी, बारामूला, गुलमर्ग, वागुरा-क्रीरी व पट्टन, बांदीपुरा जिले की सोनावरी, बांदीपुरा और गुरेज(सु) तथा बडगाम जिले की बडगाम व बीरवाह विधानसभा सीटें शामिल हैं। 
ये हैं प्रमुख प्रत्याशी 
जम्मू कश्मीर के उत्तरी भाग की मुस्लिम बाहुल्य बारामूला लोकसभा सीट पर पूर्व मुख्यमंत्री एवं नेशनल कांफ्रेंस के उमर अब्दुल्ला के अलावा जम्मू-कश्मीर पीपुल्स कॉन्फ्रेंस से सजाद गनी लोन, पीपुल्स डेमोक्रेटिक पार्टी (पीडीपी) के मीर मोहम्मद फैयाज और आवामी इतिहाद पार्टी (एआईपी) के जेल में बंद इंजीनियर राशिद यानी अब्दुल राशिद शेख चुनावी जंग में हैं। वहीं नेशनल यूथ पार्टी, राष्ट्रीय जनक्रांति पार्टी, नेशनल पीपुल्स फ्रंट, नेशनल पैंथर पार्टी और नेशनल लोकतांत्रिक पार्टी ने भी अपने प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे हैं। इनके अलावा इस सीट पर एक महिला समेत 14 निर्दलीय उम्मीदवारों ने भी ताल ठोकी है। इन प्रत्याशियों की किस्मत का फैसला करने के लिए यहां कुल 17,37,865 मतदाता वोटिंग करने के लिए पंजीकृत हैं। 
शिया सुन्नी निर्णायक मतदाता 
उत्तरी जम्मू कश्मीर की मुस्लिम बाहुल्य बारामूला लोकसभा सीट पर चुनावी इतिहास गवाह है कि यहां किसी भी राजनैतिक दलों का भविष्य शिया-सुन्नी मतदाता ही तय करते आए हैं। पहाड़ी और नियंत्रण रेखा से सटे क्षेत्रों में गुर्जर और पहाड़ी समुदाय तो और निचले इलाकों में शिया-सुन्नी मतदाताओं की संख्या ज्यादा है। 
इसी संसदीय क्षेत्र में पनपे अलगाववादी 
जम्मू कश्मीर के कट्टरपंथी सैयद अली शाह गिलानी, संसद हमले में शामिल आतंकी अफजल गुरू, जेकेएलएफ का मोहम्मद मकबूल बट, हिजबुल मुजाहिदीन व यूनाइटेड जिहाद काउंसिल का पहला कमांडर व चेयरमैन अहसान डार, हुर्रियत नेता बिलाल गनी लोन, नईम अहमद खान, प्रो अब्दुल गनी बट सरीखे कई नामी आतंकी और अलगाववादी बारामुला-कुपवाड़ा संसदीय क्षेत्र से ही संबंध रखते हैं। 
18May-2024

शुक्रवार, 17 मई 2024

हॉट सीट अमेठी: कांग्रेस के सामने सियासी गढ़ में वापसी करने की दरकार!

भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी के खिलाफ कांग्रेस ने सोनिया के प्रतिनिधि किशोरी लाल पर खेला दांव 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में रायबरेली की तरह ही अमेठी लोकसभा सीट भी नेहरु-गांधी परिवार का गढ़ रहा है, लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में पहली बार इस परिवार का कोई भी सदस्य चुनाव मैदान में नहीं है। इस सीट पर पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी ने कांग्रेस नेता राहुल गांधी मात देकर कांग्रेस का तिलिस्म तोड़ा था। शायद की बदलते सियासी समीकरण को भांपते हुए गांधी परिवार के राहुल गांधी ने अमेठी की रणभूमि को छोड़ केरल की वायनाड को अपना सियासी रण का मैदान बना लिया है। गांधी परिवार के राहुल गांधी वायनाड के साथ इस बार यूपी में अमेठी के बजाए रायबरेली में अपनी मां सोनिया गांधी की जगह चुनावी जंग में ताल ठोक रहे हैं और अमेठी सीट पर सोनिया गांधी के लोकसभा क्षेत्र के प्रतिनिधि किशोरीलाल शर्मा को भाजपा प्रत्याशी स्मृति ईरानी को चुनौती देने के लिए मैदान में उतारा है। इस बार भी अमेठी के लोकसभा चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला होने की संभावना है, लेकिन बसपा इस चुनावी जंग को त्रिकोणीय बनाने के प्रयास में जुटी है। 
यूपी के लोकसभा क्षेत्रों में अमेठी लोकसभा क्षेत्र भी कांग्रेस का गढ़ रहा है, जिसे नेहरू-गांधी परिवार की राजनैतिक कर्मभूमि के रुप में पहचाना गया है। देश के पहले प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरु के नाती संजय गांधी व राजीव गांधी के अलावा राजीव गांधी की पत्नी सोनिया गांधी और पुत्र राहुल गांधी ने चुनाव जीतकर लोकसभा में इस क्षेत्र का प्रतिनिधित्व किया है। राजनीतिज्ञों की माने तो अमेठी में कांग्रेस प्रत्याशी किशोरी लाल के चेहरे पर गांधी परिवार की ही प्रतिष्ठा दांव पर होगी, भले ही उनके परिवार का सदस्य चुनाव से बाहर हो। भाजपा ने एक बार फिर यहां से मौजूदा सांसद और केंद्रीय मंत्री स्मृति ईरानी को प्रत्याशी बनाकर जीत के सिलसिले आगे बढ़ाने का लक्ष्य तय किया है। पिछले दस साल में विकास और जनकल्याण की योजनाओं के जरिए बदली अमेठी की तस्वीर लेकर भाजपा इस चुनावी समर में जनता के बीच में है। वहीं इस लोकसभा क्षेत्र का 14 बार प्रतिनिधित्व कर चुकी कांग्रेस भी नई रणनीति के भाजपा को कड़ी चुनौती देने की तैयारी में हैं। भाजपा और कांग्रेस के बीच होने वाली प्रमुख चुनावी जंग के बीच बसपा ने भी यहां जातीय समीकरण साधते हुए नन्हे सिंह चौहान को अपना प्रत्याशी बनाया है। इस सीट पर कुल 13 प्रत्याशी चुनावी मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें पांच निर्दलीय प्रत्याशी भी शामिल हैं। 
अमेठी में मतदाताओं का चक्रव्यूह 
यूपी की अमेठी लोकसभा सीट पर 20 मई को चौथे चरण में होने वाले चुनाव में 13 प्रत्याशियों को 17,89,822 मतदाताओं के चक्रव्यूह भेदने की दरकार होगी। इसमें 9,38,533 पुरुष, 8,51,189 महिला और 100 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस सीट पर 2606 सर्विस मतदाता और 18-19 साल के 23789 नए युवा मतदाता शामिल हैं। ये युवा मतदाता पहली बार मतदान में हिस्सा लेंगे। इस लोकसभा सीट के दायरे में पांच विधानसभा सीटे शामिल हैं, जिनमें तिलोई में 3,46,609, जगदीशपुर(सु) में 3,80,543, गौरीगंज में 3,53,020, अमेठी में 3,48,144 और रायबरेली जिले की सलोन(सु) सीट पर 3,61,506 मतदाता वोटिंग के लिए पंजीकृत हैं। अमेठी लोकसभा सीट पर 1125 मतदान केंद्रों के 1923 बूथों पर वोटिंग कराई जाएगी। अमेठी लोकसभा में कुल मतदाताओं की संख्या 17,96,098 है। 
क्या है चुनावी इतिहास 
यूपी में रायबरेली की तरह ही अमेठी लोकसभा भी कांग्रेस, खासतौर से गांधी परिवार का सियासी गढ़ बन चुका था। साल 1967 में अस्तित्व में आई अमेठी लोकसभा सीट पर पहले दो चुनाव कांग्रेस के विद्याधर वाजपेयी पहले दो चुनाव जीते, लेकिन 1977 में यहां जनता पार्टी के रविन्द्र प्रताप सिंह ने जीत हासिल की। लेकिन इसके बाद 1980 के चुनाव में फिर कांग्रेस ने वापसी की और इंदिरा गांधी के छोटे बेटे संजय गांधी यहां से चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे, लेकिन उनका हवाई हादसे में निधन के बाद यहां 1981 में उप चुनाव में पहली बार उनके बड़े भाई राजीव गांधी ने सियासी पारी की शुरुआत की और पहली बार सांसद बने। राजीव गांधी इस सीट से लगातार चार बार निर्वाचित हुए और मां इंदिरागांधी की हत्या के बाद 1984 में प्रधानमंत्री बने। लेकिन 1991 को भी उनकी लिट्टे उग्रवादियों ने विस्फोट करके हत्या कर डाली, जिसके कारण इसी सीट पर फिर उप चुनाव हुए, जिसकें कांग्रेस के सतीश शर्मा जीते और उन्होंने 1996 का दूसरी बार भी चुनाव जीता। कांग्रेस के इस विजय रथ को 1998 के चुनाव में भाजपा के संजय सिंह ने जीत दर्ज करके रोका, लेकिन 1999 में राजनीति में कूदी सोनिया गांधी ने यहां चुनाव जीतकर फिर कांग्रेस की वापसी कराई। इसके बाद सोनिया गांधी ने अपना चुनावी क्षेत्र रायबरेली बनाया और यहां बेटे राहुल गांधी को चुनाव जीताकर सियासत में प्रवेश कराया। इसके बाद राहुल गांधी इस सीट से लगातार लगातार चार बार सांसद बने। लेकिन साल 2019 के चुनाव में इस सीट से भाजपा की स्मृति ईरानी ने राहुल गांधी को हराकर कांग्रेस का तिलिस्म तोड़कर 2014 में हार का बदला चुकता किया। इसके बाद राहुल गांधी ने अपना रणक्षेत्र बदल दिया। कांग्रेस ने इस बार सोनिया गांधी के संसदीय क्षेत्र में प्रतिनिधि और चुनाव प्रबंधन के प्रभारी रह चुके किशोरी लाल शर्मा को टिकट दिया गया है।
क्या है जातीय समीकरण 
अमेठी लोकसभा सीट के जातिगत समीकरणों पर गौर की जाए, तो यहां ओबीसी, दलित और मुस्लिम मतदाता अहम हैं। इस सीट पर सबसे अधिक 34 फीसदी ओबीसी वर्ग के मतदाता हैं। इसके बाद दलित मतदाताओं की संख्या करीब 26 फीसदी है। जबकि करीब 8 फीसदी ब्राह्मण, करीब 12 फीसदी राजपूत के अलावा यहां मुस्लिम 20 फीसदी करीब 3.5 लाख मतदाता हैं। जनसंख्या के लिहाज से अमेठी जिले की अनुमानित 23,42, 493 है। जबकि लोकसभा क्षेत्र अमेठी में शामिल रायबरेली जिले की सलोन विधानसभा क्षेत्र की जनसंख्या 6,03,970 है। इस प्रकार अमेठी लोकसभा की अनुमानित जनसंख्या 29,46,463 है। 2011 की जनगणना के आंकड़ों के मुताबिक अमेठी की 72.16 फीसदी जनसंख्या साक्षर है। इनमें पुरुष 83.85 फीसदी और महिलाओं की साक्षरता दर 60.64 फीसदी है। 
17May-2024

गुरुवार, 16 मई 2024

हॉट सीट रायबरेली: कांग्रेस के सियासी गढ़ को ढ़ाहने की तैयारी में भाजपा!

कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी की परिवार की सियासी विरासत बचाने को होगी अग्नि परीक्षा 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में उत्तर प्रदेश की हाई प्रोफाइल रायबरेली लोकसभा सीट पर 20 मई को होने चुनाव में भाजपा और कांग्रेस के बीच दिलचस्प मुकाबला होने के आसार हैं। गांधी परिवार के परंपरागत गढ़ की विरासत संजोए रखने के इरादे से इस बार यहां से नेहरु-गांधी पांचवी पीढ़ी के राहुल गांधी कांग्रेस ने प्रत्याशी के रुप में चुनाव लड़ रहे हैं। वहीं रायबरेली सीट पर कांग्रेस का सियासी किले में सेंध लगाने के लिए एक ठोस रणनीति के साथ भाजपा ने योगी सरकार में मंत्री दिनेश प्रताप सिंह पर एक बार फिर भरोसा जताया है, जिन्होंने पिछले चुनाव में कांग्रेस की सोनिया गांधी को कड़ी टक्कर दी थी और भाजपा के वोट बैंक में इजाफा किया था। पिछले तीन चुनाव से इस सीट पर लगातार बढ़ते वोट बैंक की वजह से भाजपा को इस बार यहां जीत की उम्मीद है, लेकिन कांग्रेस भी रायबरेली से पांच पीढ़ियों के रिश्तों की दुहाई देकर गांधी परिवार की सियासी विरासत को कायम रखने की दिशा में ठोस रणनीति के साथ चुनावी जंग में कदम रखा है। 
उत्तर प्रदेश की रायबरेली लोकसभा सीट कांग्रेस खासकर गांधी परिवार के लिए सबसे सुरक्षित सीटों में मानी जाती है, जो नेहरु-गांधी परिवार का सियासी गढ़ बना हुआ है। फिरोजगांधी, इंदिरा गांधी, अरुण नेहरु के बाद पिछले पांच चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची सोनियां गांधी इस बार चुनाव नहीं लड़ रही हैं, जो राजस्थान से राज्यसभा के लिए निर्वाचित हो चुकी है, लेकिन इस परंपरागत सीट खासतौर से मां सोनिया गांधी की सियासी विरासत को बरकरार रखने के लिए कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी इस सीट से लोकसभा चुनाव की जंग में ताल ठोक रहे हैं। उधर साल 2019 में यहां से सोनिया गांधी से पराजित होने वाले दिनेश प्रताप सिंह भाजपा के टिकट पर एक बार फिर कांग्रेस के खिलाफ पिछली हार का बदला चुकता करने के प्रयास में है। योगी सरकार में मंत्री रहते हुए वे रायबरेली में लगातार मतदाताओं के बीच में हैं, जिन्हें इस बार इस सीट पर जीत का पूरा भरोसा है। इस सीट पर भाजपा और कांग्रेस के अलावा बसपा के ठाकुर प्रसाद यादव समेत आठ प्रत्याशी चुनाव मैदान में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
ये रायबरेली सीट का चुनावी इतिहास 
रायबरेली लोकसभा सीट पर अब तक हुए 20 चुनावों में 17 चुनाव कांग्रेस प्रत्याशियों ने जीते हैं, जबकि भाजपा को दो तथा जनता दल को एक जीत नसीब हो चुकी है। आजदी के बाद पहले दो चुनाव में कांग्रेस के फिरोज गांधी ने जीते, जिनके निधन के बाद 1960 का उपचुनाव कांग्रेस प्रत्याशी आरपी सिंह के पक्ष में गया। इसके बाद 1962 का चुनाव कांग्रेस के बैजनाथ कुरील ने जीता। तत्कालीन प्रधानमंत्री स्व. इंदिरा गांधी ने 1967 व 1971 के दो चुनावों में लगातार जीत हासिल की, लेकिन आपातकाल में चली कांग्रेस विरोधी लहर में यहां से जनता पार्टी के राजनारायण के सामने इंदिरा गांधी को हार का सामना करना पड़ा। इसके बाद 1980 के चुनाव में इंदिरा गांधी ने फिर वापसी की, लेकिन उन्होंने दूसरी सीट से जीत की वजह से इस सीट को छोड़ दिया, जिसके उपचुनाव और फिर 1984 के चुनाव में कांग्रेस के अरुण नेहरु यहां से लोकसभा के लिए निर्वाचित हुए। इसके बाद अगले दो चुनाव में कांग्रेस की शीला कौल यहां से जीतकर लोकसभा पहुंची। 1996 और 1998 के चुनाव में यहां से भाजपा के अशोक सिंह ने चुनाव जीता। इसके बाद 1999 में कांग्रेस ने फिर वापसी करते सतीश शर्मा को सांसद बनवाया। कांग्रेस के विजय अभियान को जारी रखते हुए साल 2004 से यहां सोनिया गांधी ने इस विरासत को आगे बढ़ाया और एक उपचुनाव समेत लगातार पांच चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंची। 
लगातार बढ़ा भाजपा का वोट बैंक 
भाजपा को इस बार रायबरेली सीट से जीत का पूरा भरोसा है। इसकी वजह ये है कि इस सीट पर 2009 में सोनिया गांधी को 72.23 प्रतिशत मिले थे, तो भाजपा को 3.82 प्रतशत वोट मिला और यह अंतर 68.41 प्रतिशत का था। जबकि 2014 के चुनाव में सोनिया गांधी को घटकर 63.80 प्रतिशत वोट और भाजपा को 21.05 प्रतिशत वोट मिले यानी पांच साल में भाजपा का 17.23 प्रतिशत वोट बढ़ा। जबकि साल 2019 में निर्वाचित होने के बावजूद सोनिया गांधी को वोट प्रतिशत और घटकर 55.78 प्रतिशत रह गया और भाजपा का बढ़कर 38.35 प्रतिशत हो गया। यहां भी भाजपा के वोट शेयर में 17.3 प्रतिशत की बढ़ोतरी हुई और कांग्रेस व भाजपा की हारजीत का अंतर भी महज 17.43 फीसदी था। इसलिए भाजपा ने इस सीट पर अंतर को पाटने के लिए पहले से ऐसी रणनीति बनाई है, ताकि इस सीट पर जीत हासिल हो सके। 
सांसद चुनेंगे 17,84,314 मतदाता 
यूपी की रायबरेली लोकसभा सीटों पर आठ प्रत्याशियों के सामने 17,84,314 मतदाताओं का जंजाल है, जिसमें 9,31,427 पुरुष, 8,52,851 महिला और 36 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस लोकसभा सीट के दायरे में पांच विधानसभा क्षेत्र शामिल है, जिनमें बछरावां(सु) सीट पर 3,46,856,हरचंदपुर में 3,28,019, रायबरेली में 3,81,521, सरेनी में 378,547 और ऊंचाहार सीट पर 3,49,371 मतदाता हैं। लोकसभा के चुनाव में रायबरेली सीट पर 18-19 साल आयु के 28,197 नए युवा मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे, जिनमें 13,253 महिला वोटर शामिल हैं। रायबरेली लोकसभा सीट के लिए 20 मई को 1236 मतदान केंद्रों के 1867 बूथों पर मतदान किया जाएगा। 
जातीय समीकरण निर्णायक 
रायबरेली लोकसभा की करीब 34 लाख की आबादी में यदि जातीय और सामाजिक समीकरणों पर नजर डालें तो यहां 29 लाख से अधिक हिंदू और 4.13 लाख यानी 12.13 फ़ीसदी मुस्लिम आबादी है। हिंदुओं की आबादी में सबसे ज्यादा 34 प्रतिश दलित और करीब 26 फीसदी पासी हैं। इसके बाद 11 फीसदी ब्राह्मण, 12 फीसदी यादव, 6 फीसदी लोध, 5 फीसदी राजपूत, 4 फीसदी कुर्मी और बाकी अन्य जातियां हैं। 
कांग्रेस ने बनाई ठोस रणनीति 
यूपी की राय बरेली लोकसभा सीट को बचाए रखने के लिए कांग्रेस ने राय बरेली की जनता के नाम‘सेवा के सौ साल’ शीर्षक से एक खत लिखने के अलावा अपने चुनाव अभियान की शुरुआत की है। वहीं कांग्रेस ने यहां राहुल गांधी के पक्ष में चुनाव प्रचार में 103 साल यानी नेहरु-गांधी परिवार के बलिदान की गाथा वाली एक बुकलेट भी जारी की है। पार्टी ने खत और बुकलेट में कांग्रेस प्रत्याशी राहुल गांधी को गांधी-नेहरू परिवार का वारिश बताते हुए नेहरु-गांधी परिवार के बलिदान का हवाला दिया है और राय बरेली की जनता और गांधी परिवार के बीच पांच पीढ़ियों के रिश्ते होने की दुहाई दी गई है। इस बुकलेट में अंग्रेजी शासन काल तक के इतिहास का जिक्र किया गया है। वहीं कांग्रेस ने गांधी परिवार के यहां से प्रतिनिधित्व करने वाले पूर्वजों द्वारा किये गये विकास कार्यो और दुख सुख में एक साथ खड़े होने का भी बखान शामिल है। इस चुनाव के लिए राहुल गांधी को समर्थन करके रिकार्ड मतों से जिताने की अपील की गई है। 
16May-2024

बुधवार, 15 मई 2024

लद्दाख: भाजपा के सामने आसान नहीं जीत की हैट्रिक लगाना!

 
इंडी गठबंधन की फूट में कांग्रेस प्रत्याशी के सामने नेकां बागी प्रत्याशी ने ठोकी ताल 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद पहली बार लद्दाख लोकसभा सीट पर चुनाव बेहद दिलचस्प मोड़ पर जाता नजर आ रहा है, जहां पिछले एक दशक से भाजपा का कब्जा है। इस सीट पर विपक्षी गठबंधन की तरफ से कांग्रेस के प्रत्याशी को लेकर भाजपा के सामने बड़ी चुनौती थी, लेकिन कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ कारगिल जिले की कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ईकाई ने बगावत करके संयुक्त रुप से निर्दलीय प्रत्याशी को को समर्थन देकर कांग्रेस और भाजपा के बीच माने जा रहे मुकाबले को त्रिकोणीय मोड़ पर लाकर खड़ा कर दिया है। इसके बावजूद भाजपा के लिए इस सीट पर जीत की हैट्रिक बनाने की चुनौती कम नहीं है, क्योंकि यहां लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर चल रहे आंदोलन भाजपा के लिए सिरदर्द बन सकता है और इस मुद्दे को विपक्ष पूरी तरह से हवा दे रहा है। बहरहाल यहां त्रिकोणीय मुकाबला होने की संभावना से इंकार नहीं किया जा सकता और चुनावी ऊंट किस करवट बैठेगा, यह चुनाव के नतीजे के बाद ही सामने आएगा? 
देश के संसदीय इतिहास की दृष्टि से लद्दाख लोकसभा सीट इसलिए भी ज्यादा महत्व रखती है, कि इस लोकसभा सीट के दायरे में जहां लद्दाख में सबसे कम आबादी वाले कारगिल और लेह जिले नियंत्रण रेखा की जद में हैं। यह भी गौरतलब है कि लद्दाख ऐसा केंद्र शासित प्रदेश हैं, जहां अभी तक अपनी विधानसभा नहीं है यानि बिना विधानसभा सीटों के लद्दाख में जम्मू-कश्मीर में अनुच्छेद 370 हटने के बाद केंद्र शासित राज्य घोषित होने के बाद पहली बार लोकसभा चुनाव हो रहा है। इससे पहले साल 2019 तक हुए लोकसभा चुनाव में यह सीट जम्मू-कश्मीर राज्य की छह सीटों में शामिल थी। लेकिन उसके बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख को अलग करके केंद्र शासित राज्य घोषित होने से लद्दाख लोकसभा सीट के सियासी समीकरण बदलना भी स्वाभाविक है। जम्मू कश्मीर से अलग होकर केंद्र शासित बने लद्दाख को अलग राज्य का दर्जा देने की मांग को लेकर वहां के लोग आंदोलन करते आ रहे हैं, जिसे भाजपा के खिलाफ विपक्ष सियासी तौर पर भुनाने का प्रयास कर रहा है। इसी दृष्टि से जम्मू कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस और कांग्रेस ने संयुक्त रुप से इंडिया गठबंधन की ओर से कांग्रेस के प्रत्याशी त्सेरिंग नामग्याल को चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा ने यहां मौजूदा सांसद जामयांग सेरिंग नामग्याल का टिकट काटकर नए चेहरे के रुप में ताशी ग्यालसन पर दांव खेला है। जबकि इस सीट पर तीसरे प्रत्याशी के रुप में निर्दलीय मोहम्मद हनीफा जान चुनाव मैदान में है। 
विपक्ष में फूट की सियासत 
भाजपा को इस सीट पर तीसरी जीत हासिल करने का इसलिए भरोसा बढ़ गया है कि इंडिया गठबंधन में यहां कांग्रेस प्रत्याशी के खिलाफ बगावत ने मुश्किलें खड़ी कर दी है और खासकर कारगिल जिले की कांग्रेस और नेशनल कांफ्रेंस की ईकाई ने बगावत करके सयुंक्त रुप से इस्तीफे दे दिए और नेशनल कांफ्रेंस के बागी नेता मोहम्मद हनीफा को निर्दलीय प्रत्याशी के रुप में चुनावी जंग में उतारकर कांग्रेस प्रत्याशी को समर्थन करने से इंकार कर दिया है। यानी चुनाव में कारगिल एकजुट होकर लद्दाख की राजनीति पर हावी होने का प्रयास कर रहा है। दरअसल भाजपा और कांग्रेस प्रत्याशी लेह जिले के हैं, जबकि मो. हनीफा कारगिल जिले से है। इस चुनाव में कारगिल एकजुट होकर लद्दाख की राजनीति पर हावी होने का प्रयास कर रहा है। इसी कारण कांग्रेस और भाजपा दोनों को हीं यहां चुनाव प्रचार में पूरी ताकत झोंकनी पड़ रही है। लद्दाख में भाजपा-कांग्रेस में ही मुख्य मुकाबला माना जा रहा था, लेकिन कारगिल के सामाजिक व धार्मिक संगठनों ने सियासी स्थिति को भांपते हुए नेकां के बागी हाजी हनीफा जान को निर्दलीय मैदान में उतार कर चुनाव को दिलचस्प बना दिया है। 
ये है चुनावी इतिहास 
हिमालय पर्वत माला की प्राकृतिक की सुंदरता के कारण पर्यटन क्षेत्र के लिए प्रसिद्ध लद्दाख लोकसभा सीट साल 1967 में अस्तित्व मे आई थी। जम्मू-कश्मीर राज्य की इस सीट पर अभी तक 13 लोकसभा चुनाव में पहले पांच चुनावों में कांग्रेस के प्रत्याशी जीत हासिल कर लोकसभा पहुंचे हैं। जबकि 1989 के चुनाव में यहां निर्दलीय प्रत्याशी मोहम्मद हसन कमांडर ने कांग्रेस का रथ रोका, लेकिन 1996 के चुनाव में यहां एक बार फिर कांग्रेस ने छठी जीत हासिल की। इसके बाद इस सीट पर लगातार दो बार जम्मू-कश्मीर नेशनल कांफ्रेंस ने कब्जा किया। साल 2004 और 2009 के लोकसभा चुनाव में यहां एक बार फिर निर्दलीय प्रत्याशियों ने जनादेश हासिल करके लोकसभा में प्रवेश किया। जबकि पिछले दो चुनाव यानी 2014 चुनाव में यहां भाजपा के थुपस्तान छेवांग ने पहली बार भगवा लहराया, तो और 2019 के चुनाव में यहां भाजपा के नए युवा चेहरे के रुप में जामयांग सेरिंग नामग्याल ने शानदार जीत हासिल की और लोकसभा में अपने पहले ही भाषण में पूरे सदन को अपनी ओर आकर्षित करके सभी दलों को चौंकाया। लेकिन इस बार फिर से भाजपा ने नामग्याल का टिकट काटकर एक नये चेहरे के रुप में ताशी ग्यालसन को अपना प्रत्याशी बनाकर दांव खेला है। जबकि इस कांग्र्रेस ने इस सीट पर त्सेरिंग नामग्याल को अपना प्रत्याशी बनाया है। जबकि तीसरी प्रत्याशी मोहम्मद हनीफा यहां निर्दलीय रुप से अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
दो लाख से कम मतदाता 
लद्दाख लोकसभा सीट पर तीन प्रत्याशियों के सामने 1,82,571 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना है, जिसमें 91,703 पुरुष और 90,867 महिला मतदाता शामिल है। लद्दाख के कुल मतदाताओं में से कारगिल जिले में 95,929 तथा लेह जिले में 88,870 मतदाता शामिल हैं। 20 मई को होने वाले मतदान के लिए लद्दाख में 577 मतदान केंद्र बनाए गये हैं। साल 2019 के लोकसभा चुनाव में इस सीट पर 1,79,232 मतदाता थे। 
आंदोलन का क्या हो सकता है असर 
केंद्र शासित प्रदेश बनने के बाद जम्मू-कश्मीर और लद्दाख लोकसभा सीटों के नए परिसीमन से सियासी तस्वीर बदलने से इस बार लद्दाख के कुछ मुस्लिम और बौद्ध संगठन लेह और कारगिल लोकतांत्रिक गठबंधन के बैनर तले लद्दाख को राज्य का दर्जा देने और संविधान की छठी अनुसूची में शामिल करने को लेकर आंदोलन कर रहे हैं, जिसमें विधानसभा सीटो का निर्धारण करने की भी मांग शामिल है। केंद्र सरकार द्वारा आंदोलनकारियों की मांगों पर सहमति जताने के बावजूद कोई कदम न बढ़ाना भी भाजपा के लिए नुकसान दायक हो सकता है। 15May-2024

मंगलवार, 14 मई 2024

हॉट सीट हैदराबाद: दिलचस्प चुनावी जंग में ओवैसी का सियासी किला दरकाने में जुटी भाजपा

कांग्रेस और बीआरएस ने भी एआईएमआईएम की राह में बिछाए कांटे 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में तेलंगाना की हैदराबाद लोकसभा सीट इतनी महत्वपूर्ण है कि इस पर सबकी नजरे लगी है। जबकि दक्षिण भारत में अपनी पार्टी का विस्तार करने के लक्ष्य में भाजपा का हैदराबाद लोकसभा सीट पर विशेष फोकस है, जहां दो दशक से ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन यानी एआईएमआईएम यानी ओवैसी खानदान काबिज है। इस सीट पर लगातार चार जीत हासिल करने वाले एआईएमआईएम प्रमुख असदुदीन ओवैसी पांचवीं बार लोकसभा पहुंचने की तैयारी में है, लेकिन इस बार यहां भाजपा, कांग्रेस और बीआरस ने घेराबंदी करके उनके सामने कड़ी चुनौती पेश कर दी है। भाजपा इस सीट पर अब तक एक भी बार जीत का स्वाद नहीं चख सकी है, लेकिन इस बार भाजपा ने महिला प्रत्याशी के रुप में फायर ब्रांड एवं प्रसिद्ध नृत्यांगना माधवी लता को पर बड़ा दांव खेला है। वहीं विपक्षी गठबंधन में कांग्रेस ने अपना मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर ओवैसी के सामने कांटे बिखेर दिये हैं। जबकि तेलंगाना की तेलंगाना के प्रमुख दल बीआरएस ने भी यहां मजबूत प्रत्याशी उतारकर लोकसभा के चुनावी मुकाबले को चतुष्कोणीय समीकरण में धकेल दिया है। मसलन इस बार ओवैसी खानदान का सियासी गढ़ दरकता नजर आ रहा है, हालांकि यह तो चुनावी नतीजों से ही तय होगा कि यहां का सियासी ऊंट किस करवट बैठेगा? 
तेलंगाना के 17 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में से एक हैदराबाद सीट पर 13 मई सोमवार को चुनाव होगा, इस महत्वपूर्ण सीट के दायरे में सात विधानसभा क्षेत्र मलकपेट, कारवां, गोशामहल, चारमीनार, चंद्रयानगुट्टा, याकूतपुरा और बहादुरपुरा सहित सात विधानसभा क्षेत्र शामिल हैं। इनमें गोशामहल विधानसभा सीट पर ही भाजपा का विधायक है, जबकि बाकी छह सीटो पर एआईएमआईएम के निर्वाचित विधायक हैं। इसके बावजूद लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम के असदुद्दीन ओवैसी को चुनौती देने के लिए जहां भारतीय जनता पार्टी ने हैदराबाद में विरिंची अस्पताल की प्रमुख एवं भारतनाट्यम की प्रसिद्ध नृत्यांगना माधवी लता को चुनावी जंग में उतारा है, तो वहीं कांग्रेस पार्टी के मोहम्मद वलीउल्लाह समीर और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) के गद्दाम श्रीनिवास यादव भी ओवैसी को चौतरफा घेरते नजर आ रहे हैं। माना जा रहा है कि हैदराबाद सीट पर 60 प्रतिशत मुस्लिम मतदाता होने के बावजूद ओवैसी के सामने इस बार कड़ी चुनौती पेश आ रही है, इसका कारण भी साफ है कि तेलंगाना में एआईएमआईएम से दोस्ती का बखान करने वाली कांग्रेस ने मुस्लिम प्रत्याशी उतारकर मुस्लिम मतों में विभाजन के हालात पैदा कर दिये, जिसका लाभ सीधे भाजपा को मिलने की उम्मीद है। 
सांसद चुनेंगे 2,217,094 वोटर 
तेलंगाना की हैदराबाद लोकसभा सीट के लिए 13 मई को होने वाले चुनाव में एआईएमआई,भाजपा, कांग्रेस, बीआरएस, बसपा और अन्य दलों समेत कुल 30 प्रत्याशी चुनावी जंग में कूदे हुए हैं। इन प्रत्याशियों के सामने 2,217,094 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है, जिसमें 1,125,310 पुरुष, 1,091,587 महिला और 107 ट्रांसजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस सीट पर चुनाव आयोग ने 129 से अधिक दिव्यांगो ओर 85 वर्ष से अधिक आयु के मतदाताओं के वोटिंग उनके घर जाकर कराने की प्रक्रिया पूरी कर ली है। चुनाव आयोग के आंकड़ों के मुताबिक 2019 के लोकसभा चुनाव के दौरान हैदराबाद लोकसभा सीट पर 10,12,522 पुरुष और 9,45,277 महिला तथा 132 मतदाता समेत 19,57,931 मतदाता थे। 
इन दिग्गजों के बीच चुनावी जंग 
तेलंगाना की हैदराबाद सीट पर ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) के असदुद्दीन ओवैसी के खिलाफ भारतीय जनता पार्टी ने भारतनाट्यम की सुप्रसिद्ध नृत्यांगना कोम्पेला माधवी लता, कांग्रेस ने पार्टी के जिलाध्यक्ष मोहम्मद वलीउल्लाह समीर और भारत राष्ट्र समिति (बीआरएस) ने शिक्षाविद् गद्दाम श्रीनिवास यादव को अपना उम्मीदवार बनाया हैं। इस सीट पर एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी पिछले चार बार से लगातार सांसद हैं और उससे पहले छह बार उनके पिता सुलतान सलाउद्दीन ओवैसी का हैदराबाद सीट पर लगातार कब्जा रहा है, जिनके बाद यहां उनकी विरासत को बेटे ओवैसी संजोते आ रहे हैं। हालांकि इस सीट पर एआईएमईपी की नौहेरा शेख, बसपा के केएस कृष्णा समेत 30 प्रत्याशी चुनावी जंग में अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
हैदराबाद सीट का सियासी सफर 
साल 2019 के लोकसभा चुनाव में एआईएमआईएम नेता असदुद्दीन ओवैसी ने भाजपा के डॉ. भगवंत राव को 2,82,186 मतों के अंतर से हराकर लगातार चौथी बार लोकसभा में दस्तक दी थी। जबकि यहां सत्तारूढ रही बीआरएस के प्रत्याशी पुस्ते श्रीकांत तीसरे पायदान पर रहे। मौजूदा सांसद असदुद्दीन ओवैसी इस सीट से इससे पहले 2014, 2009 और 2004 का चुनाव भी जीत चुके हैं। इससे पहले उनके पिता सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी इस सीट पर 1984 से लगातार छह बार सांसद रहे हैं। यानी हैदराबाद सीट पिछले चार दशक औवेसी परिवार की पारंपरिक सीट के रुप में पहचानी जाने लगी। हैदराबाद लोकसभा सीट पहले 1952 से 1967 तक लगातार चार बार कांग्रेस के कब्जे में रही, जहां 1971 में तेलंगाना प्रजा समिति के केएस नारायण ने चुनाव जीतकर कांग्रेस को रोका था, लेकिन उसके बाद वे अगले दो चुनाव कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद 1984 में स्वतंत्र प्रत्याशी के रुप में सुल्तान सलाहुद्दीन ओवैसी ने जीत हासिल करके सबको चौंका दिया और फिर उन्होंने राजनीतिक दल ऑल इंडिया मजलिस-ए-इत्तेहादुल मुस्लिमीन (एआईएमआईएम) बनाकर यहां अपना सियासी किला बनाना शुरु कर दिया, जिनके बाद इस विरासत को उनके पुत्र असुदद्दीन ओवैसी अभी तक संभालते आ रहे हैं। 
ये जातीय समीकरण 
तेलंगाना में वैसे तो 85 फीसदी से ज्यादा हिंदू धर्म है, जिसमें सबसे ज्यादा ओबीसी वर्ग की जातियां निवास करनी हैं। जहां तक हैदराबाद लोकसभा सीट पर जातीय समीकरण का सवाल है उसमें हैदराबाद लोकसभा क्षेत्र में सबसे ज्यादा 65 प्रतिशत अल्पसंख्यकों में अकेले हैदराबाद शहर में 64.93 मुस्लिम, 2.75 प्रतिशत ईसाई, 0.29 प्रतिशत जैन, 0.25 प्रतिशत सिक्खत तथा 0.04 प्रतिशत बौद्ध धर्म की आबादी है। बाकी हिंदू धर्म की आबादी है, जिसमें सबसे ज्यादा ओबीसी के अलावा करीब 17 प्रतिशत एससी व एसटी भी शामिल है। 
13May-2024

रविवार, 12 मई 2024

लोकसभा चुनाव: चौथे चरण का चुनाव कल, फिल्म और खेल जगत के दिग्गजों ने भी ठोकी ताल


दो पूर्व मुख्यमंत्रियों व पांच केंद्रीय मंत्रियों की भी दांव पर सियासी साख 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। देश लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में दस राज्यों की 96 लोकसभा सीटों के लिए कल सोमवार को मतदान होगा। इन सीटों पर चुनावी जंग में 1717 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, जिनमें 170 महिलाएं शामिल हैं। इनमें जहां दो पूर्व मुख्यमंत्रियों के साथ ही पांच केंद्रीय मंत्रियों की प्रतिष्ठा दांव पर होगी, तो वहीं फिल्मी और खेल जगत के दिग्गज हस्तियों के साथ पूर्व मंत्रियों, सांसदों जैसे नेताओं की भी इस सियासी जंग में अग्नि परीक्षा होनी है। 
देश में लोकसभा की 543 सीटों के लिए हो रहे इस चुनावी समर के पहले तीन चरणों में आधे से भी ज्यादा 283 सीटो के लिए चुनाव हो चुका है और 4,158 उम्मीदवारों की सियासी किस्मत ईवीएम में कैद हो चुकी है। कल 13 मई सोमवार को 96 लोकसभा सीटों के लिए होने वाले मतदान के लिए शनिवार की शाम चुनाव प्रचार खत्म हो चुका है। अब इस चुनाव के लिए राजनीतिक दलों की मतदाताओं के बीच व्यक्तिगत संपर्क का सिलसिला चलता देखा जा रहा है और रूठों को मनाने की कौशिशे की जा रही है। इस चरण में चुनाव मैदान में उतरे 1717 प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 525 प्रत्याशी तेलंगाना की 17 सीटों पर है, जिनमें पांच सीटों पर 40 से भी ज्यादा प्रत्याशी चुनावी जंग में है। इनमें तेलंगाना की सिंकदराबाद सीट पर इस चरण के चुनाव में सबसे ज्यादा 45 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमाने उतरे हैं। इस चरण में सोमवार को आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों और 175 विधानसभा सीटों के लिए एक साथ मतदान होगा, तो वहीं ओडिशा की चार लोकसभा के साथ 28 विधानसभा सीटों के लिए भी वोटिंग की जाएगी। 
इन पूर्व मुख्यमंत्रियों व केंद्रीय मंत्रियों की दांव पर प्रतिष्ठा 
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में झारखंड की खूंटी सीट पर राज्य के पूर्व मुख्यमंत्री एवं केंद्रीय मंत्री अर्जुन मुंडा खूंटी तथा उत्तर प्रदेश की कन्नौज लोकसभा सीट से यूपी के पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव कन्नौज की प्रतिष्ठा दांव पर लगी है। इसके अलावा जिन केंद्रीय मंत्रियों की इस चुनाव में अग्नि परीक्षा होनी है, उनमें तेलंगाना की सिकंदराबाद सीट से केंद्रीय पर्यटन एवं संस्कृति मंत्री जी. किशन रेड्डी, बिहार की बेगुसराय से केंद्रीय ग्रामीण विकास मंत्री गिरीराज सिंह, उजियारपुर से गृह राज्यमंत्री नित्यानंद राय, झारखंड की खूंटी से केंद्रीय कृषि मंत्री अर्जुन मुंडा, यूपी की खीरी सीट से केंद्रीय गृह राज्यमंत्री अजय मिश्रा टेनी भी शामिल हैं। 
पूर्व मंत्रियों, अभिनेताओं व क्रिकेटरों की जंग 
चौथे चरण में 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में सांसदों, पूर्व मंत्रियों, फिल्म जगत की हस्तियों के साथ क्रिकेटरों ने भी सियासी दांव खेला है। ऐसे दिग्गजों में पश्चिम बंगाल की आसनसोल लोकसभा सीट पर भाजपा के पूर्व केंद्रीय मंत्री एसएस अहलूवालिया, तृणमूल कांग्रेस से फिल्म अभिनेता एवं पूर्व सांसद शत्रुघ्न सिन्हा, बहरामपुर सीट पर कांग्रेस के पूर्व केंद्रीय मंत्री और लोकसभा में कांग्रेस नेता अधीर रंजन चौधरी तथा तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में क्रिकेटर युसूफ पठान, वर्धमान-दुर्गापुर सीट पर तृणमूल कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में पूर्व सांसद एवं क्रिकेटर कीर्ति आजाद व भाजपा के सांसद दलीप घोष के आलवा पश्चिम बंगाल की ही कृष्णानगर सीट से संसद में पैसे लेकर सवाल पूछने के मामले में चर्चित रही अभिनेत्री एवं सांसद महुआ मोइत्रा के लिए भी यह चुनाव प्रतिष्ठा की जंग बनी हुई है। इसके अलावा पूर्व मंत्रियों में मध्य प्रदेश की रतलाम सीट से कांग्रेस प्रत्याशी के रूप में पूर्व केंद्रीय मंत्री कांतिसिंह भूरिया, तेलंगाना की महबूबाबाद सीट से कांग्रेस के पूर्व मंत्री बलराम नाइक, यूपी की इटावा सीट से भाजपा के पूर्व मंत्री रमाशंकर कठेरिया भी प्रतिष्ठा की लड़ाई लड़ रहे हैं।
किस दल के कितने प्रत्याशी 
लोकसभा चुनाव के तीसरे चरण में 10 राज्यों की 96 लोकसभा सीटों के लिए राजनैतिक दलों में भाजपा ने 70, बसपा ने 92, कांग्रेस ने 61, वाईएसआर कांग्रेस ने 25, तेदेपा व बीआरएस ने 17-17, सपा ने 19, तृणमूल कांग्रेस व सीपीआई(एम)ने 8-8, सीपीआई ने पांच, बीजद, राजद, शिवसेना(यूबीटी), राकांपा(शरद) और एआईएमआईएम ने 4-4 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। शिवसेना(शिंदे) के तीन, जन सेना पार्टी के दो, जेजेएम के पांच और जदयू का एक प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। हालांकि इस चरण में अपनी किस्मत आजमाने उतरे 1717 प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 809 प्रत्याशी निर्दलीय रुप से उतरे हैं।
दागी प्रत्याशियों पर दांव 
लोकसभा चुनाव के पहले तीन चरणों की तर्ज पर इस चौथे चरण में भी राजनीतिक दलों ने दागियों को अपना उम्ममीदवार बनाने से कोई परहेज नहीं किया। मसलन 13 मई को होने वाले लोकसभा चुनाव में कुल 360 आपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों में सबसे ज्यादा 40 भाजपा और 35 कांग्रेस पार्टी के हैं। जबकि बसपा के 11, वाईएसआर कांग्रेस के 12, सपा के 7, तेदेपा के नौ, बीआरएस के 10, तृणमूल कांग्रेस के 3, बीजद, राजद व शिवसेना(यूबीटी), शिवसेना(शिंदे), एआईएमआईएम तथा जन सेना पार्टी ने दो-दो दागी प्रत्याशियों को टिकट थमाया है। सीपीआईएम के भी आठ में पांच प्रत्याशी दागी प्रत्याशियों क सूची में शामिल हैं। जबकि जदयू व जेजेएम ने भी एक-एक इस श्रेणी के प्रत्याशियों पर दांव खेला है। सबसे ज्यादा आपराधिक मामले तेलंगाना की अदिलाबाद सीट से कांग्रेस प्रत्याशी अथराम सुगुना के खिलाफ लंबित हैं। इसके बाद इसी लोकसभा सीट से बीआरएस प्रत्याशी अथराम सक्कू के खिलाफ 47 मामले विचाराधीन हैं।
किसी दल को नहीं धनकुबेरों से परहेज 
लोकसभा चुनाव के इस चौथे चरण के चुनाव में दौर में करोड़पति प्रत्याशियों की भी कोई कमी नहीं है। मसलन कुल 476 धनकुबेरों में भी वैसे तो सबसे ज्यादा 122 निर्दलीय प्रत्याशी हैं, लेकिन राजनीतिक दलों मे सबसे ज्यादा 65 करोड़पतियों को भाजपा प्रत्याशी बनाया है। इसके बाद 56 करोड़पतियों प्रत्याशियों के साथ कांग्रेस दूसरे पायदान पर है। इनके अलावा बसपा के 27, वाईएसआर कांग्रेस के 24, तेदेपा व बीआरएस के 17-17, तृणमूल कांग्रेस के 7, बीजद, राजद व शिवसेना(यूबीटी) के सभी 4-4 प्रत्याशी धनकुबेरों की फेहरिस्त में शामिल हैं। एआईएमआईएम, जन सेना पार्टी और सीपीआईएम ने भी दो करोड़पतियों को चुनाव मैदान में उतारा है। इस चरण में 5705 करोड़ की संपत्ति के साथ सबसे अमीर प्रत्याशी आंध्र प्रदेश की गंटूर सीट से तेदेपा प्रत्याशी डा. चन्द्रशेखर पेम्मासनी और सबसे गरीब पांच सौ रुपये की संपत्ति के साथ महाराष्ट्र की बीड सीट के प्रबुद्ध रिपब्लिकन पार्टी के शेबेराव चोखबावीर तथा नंदूरबार सीट से निर्दलीय प्रत्याशी जलामसिंह पवार हैं। ------ चौथा चरण में कितनी सीट व प्रत्याशी 
   राज्य         सीट   प्रत्याशी   दागी     करोड़पति 
आंध्र प्रदेश     25       454      88       128 
बिहार            5         55        10      23 
जम्मू कश्मीर 1        24          4       8 
झारखंड         4        45         13      15 
मध्य प्रदेश   8         74         12      22 
महाराष्ट्र     11       298        73       80 
ओडिशा       4         37           7       17 
तेलंगाना     17     525        104     109 
उत्तर प्रदेश 13    130         36     53 
पश्चिम बंगाल 8   75         13       21 
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कुल           96    1717    360       476 
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किस राज्य में कौन सीट पर होगा चुनाव 
आंध्र प्रदेश:अरुकु, श्रीकाकुलम, विजयनगरम, विशाखापत्तनम, अनाकापल्ली, काकीनाडा, अमलापुरम, राजमुंदरी, नरसापुरम, एलुरु, मछलीपट्टनम, विजयवाड़ा, गुंटूर, नरसारावपेट, बापटला, ओंगोल, नंद्याल, कुरनूल, अनंतपुर, हिंदूपुर, कडप्पा, नेल्लोर, तिरूपति, राजमपेट, और चित्तूर। 
बिहार: दरभंगा, उजियारपुर, समस्तीपुर, बेगुसराय, मुंगेर। 
जम्मू कश्मीर: श्रीनगर लोकसभा सीट 
झारखंड : पलामू, लोहरदगा, खूंटी, सिंहभूम। 
मध्य प्रदेश: देवास,उज्जैन, मंदसौर,रतलाम, धार, इंदौर, खरगोन, और खंडवा। 
महाराष्ट्र: नंदुबार, जलगांव, रावर, जलना, औरंगाबाद, अहमदनगर, सिरडी, बीड़, मावल, पुणे और शिरुर। ओडिशा: कालाहांडी, नवरंगपुर, बरहमपुर और कोरापुट। 
तेलंगाना: आदिलाबाद, पेड्डापल्ले, करीमनगर, निजामाबाद, जाहिराबाद, मेडक, मलकाजगिरी, सिकंदराबाद, हैदराबाद, चेवेल्ला, महबूबनगर, नगरकुरनूल, नलगोंडा, भुवनगिरि, वारंगल, महबूबाबाद और खम्मम। 
उत्तर प्रदेश: कानपुर, खीरी, सीतापुर, शाहजहांपुर, उन्नाव, अकबरपुर, बहराइच, धौरहरा, इटावा, फर्रुखाबाद, हरदोई, कन्नौज और मिश्रिख। 
पश्चिम बंगाल: बहरामपुर, कृष्णानगर, राणाघाट, बर्धमान पुरबा, बर्धमान-दुर्गापुर, आसनसोल, बोलपुर, बीरभूम। 
12May-2024

झारखंड: लोकसभा चुनाव में ‘क्लीन स्वीप’ करने को तैयार राजग

भाजपा की चुनावी रणनीति सत्तारुढ़ विपक्षी दलों के लिए बनी चुनौती 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में झारखंड की 14 लोकसभा सीटों पर चार चरणों में होने वाले चुनाव के पहले दौर में 13 मई को चार सीटों पर मतदान कराया जाएगा। भाजपा ने इस बार राज्य में सभी लोकसभा सीटों पर जीत का लक्ष्य तय किया है। वहीं कांग्रेसनीत विपक्षी गठबंधन भी लोकसभा चुनाव में भाजपा को चुनौती देने के लिए अपना सियासी जाल बिछाया है। यहां राजग और विपक्षी गठबंधन के बीच ही मुख्य चुनावी मुकाबला होने के आसार है। राज्य में सत्तारूढ़ झामुमो-कांग्रेस-राजद के सामने भाजपा नीत राजग की चुनावी रणनीति को चुनौती देने को तैयार है। 
आदिवासी बाहुल्य 81 झारखंड लोकसभा की 14 सीटों पर ऐसे समय चुनाव हो रहे हैं, जहां सत्तारुढ़ दल झारखंड मुक्ति मोर्चा के प्रमुख और पूर्व मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन भष्ट्राचार के मामले में पिछले तीन महीने से ज्यादा समय से जेल में हैं। हालांकि लोकसभा चुनाव के लिहाज से झारखंड में राजग गठबंधन 12 सीटों के साथ सिरमौर है, जिसमें भाजपा का 11 और उसकी सहयोगी पार्टी आजसू का एक सीट पर कब्जा है। बाकी दो सीटों पर विपक्षी गठबंधन कांग्रेस और झामुमो काबिज है, लेकिन कांग्रेस की मौजूदा सांसद गीता कोडा पहले ही भाजपा का दामन थाम चुकी है। ऐसे में राज्य में सत्तारूढ़ कांग्रेसनीत गठबंधन के सामने इस बार लोकसभा चुनाव में राजग गठबंधन के सामने पहले से भी ज्यादा सियासी चुनौती होगी। यही नहीं झारखंड विधानसभा में भी राजग गठबंधन 27 विधायकों के साथ प्रमुख विपक्षी दल के रुप में मौजूद है, जिसके भाजपा के 25 सदस्य हैं। लोकसभा चुनाव में राजग गठबंधन सभी 14 सीटों पर अपने उम्मीदवर उतारे हैं, जिनमें से 13 सीटों पर भाजपा और एक सीट पर उसकी सहयोगी दल ऑल झारंखंड स्टूडेंट्स यूनियन(आजसू) का प्रत्याशी चुनाव मैदान में है। जबकि इंडिया गठबंधन से सात सीटों पर कांग्रेस, पाचं पर झामुमो और एक-एक राजद और सीपीआई(एमएल)एल के प्रत्याशी चुनाव मैदान में उतारे गये हैं। मसलन झारखंड में लोकसभा चुनाव की जंग राजग और इंडिया गठबंधन के बीच ही होगी। लेकिन इस बार लोकसभा चुनाव में भाजपानीत राजग झारखंड में क्लीन स्वीप करने की चुनावी रणनीति के साथ रणभूमि में पूरी ताकत झौंक रहा है। जबकि राजग के मिशन को तोड़ने के लक्ष्य से विपक्षी गठबंधन में अपनी मजबूत रणनीति से चुनावी वैतरणी को पार करने में सभी दांव पेंच लगाने में पीछे नहीं है। 
पहली चरण की चार सीटों का समीकरण
झारखंड में पहले दौर के चुनाव में चार लोकसभा सीटों खूंटी, लोहरदगा, सिंहभूम और पलामू में 13 मई को मतदान होना है, इनमें से तीन पर भाजपा और एक पर कांग्रेस काबिज है। लेकिन कांग्रेस की एक मात्र सांसद गीता कोडा लोकसभा चुनाव से पहले ही पाला बदलकर भाजपा में शामिल हो गई है। इस लिहाज से इन चारों लोकसभा सीटों पर बदले सियासी समीकरणों में इंडिया गठबंधन के सामने चुनौती होगी। खासबात है इंडिया गठबंधन ने खूंटी से अर्जुन मुंडा और लोहरदगा से भाजपा प्रत्याशी समीर उरांव के खिलाफ कांग्रेस के उन्हीं प्रत्याशियों को क्रमश: कालीचरण मुंडा और सुखदेव भगत को चुनाव मैदान में उतारा है, जो साल 2019 के चुनाव में भाजपा से हार गये थे। अब इनके सामने पिछले चुनाव की हार का बदला चुकता करने की चुनौती होगी। जबकि सिंहभूम से इस बार भाजपा से चुनाव मैदान में उतरी गीता कोडा के खिलाफ झामुमो ने जोबा माझी और पलामू से भाजपा के मौजूदा सांसद विष्णु दयाल राम के सामने राजद ने ममता भुईयां पर दांव खेला है।
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
झारखंड की 14 लोकसभा सीटों के लिए चार चरणों में होने वाले चुनाव के राज्य में 2,55,18,642 मतदातओं का चक्रव्यूह तैयार है। इसमें 1,29,97,325 पुरष, 1,25,20,910 महिला और 407 ट्रांसजेंडर शामिल हैं। इनमें 18-19 साल की आयु वाले 8,08,371 नए युवा मतदाता पहली बार अपना वोट डालेंगे। राज्य में 80-85 साल के 3,22,709 बुजुर्ग और 85 साल से अधिक आयु वाले 1,39,445 मतदाता भी वोटिंग करेंगे, जिनमें सैकड़ो की संख्या में शतायु भी हैं। राज्य में चार चरणों के चुनाव के लिए 29,521 मतदान केंद्र स्थापित किये जा रहे हैं। 
क्या है जातीय समीकरण 
झारखंड की सियासत में जातीय समीकरण अपना अलग ही महत्व रखता है। यहां सबसे ज्यादा 55 फीसदी आबादी ओबीसी है, जिसके बाद 28 फीसदी आदिवासी आबादी है, तो अनुसूचित जाति 16.33 फीसदी है। राज्य की आबादी में लगभग 50 प्रतिशत हिस्सेदारी इन्हीं दोनों की है। आदिवासी 27 प्रतिशत और कुर्मी 25 प्रतिशत हैं। 
इन चार सीटों पर महिलाएं निर्णायक 
राज्य की चार लोकसभा सीट ऐसी हैं, जहां पुरुषों से ज्यादा महिला मतदाता निर्णायक भूमिका में हैं। इनमें सिंहभूम सीट पर 14.33 लाख मतदाताओं में 7.28 लाख महिला और 7.05 लाख पुरुष मतदाता हैं। इसी प्रकार खूंटी लोकसभा सीट पर 664311 पुरुष के मुकाबले 667946 महिला मतदाता हैं। लोहरदगा सीट पर जहां महिला मतदाताओं की संख्या 719616 है, तो पुरुष मतदाता 707402 ही हैं। इसी प्रकार राजमहल लोकसभा सीट पर कुल 16,82,219 वोटरों में 8,40,995 पुरुषों के मुकाबले 8,41,217 महिला मतदाता पंजीकृत हैं। 
झारखंड में थीम आधारित बूथ 
लोकसभा चुनाव में झारखंड इतिहास चुनाव आयोग ने सभी बूथों को थीम आधारित मतदान केंद्र स्थापित करने की पहल की है, जो भारत के चुनावी इतिहास में पहली बार हो रहा है। राज्य के सभी 29,521 मतदान केंद्रों को मॉडल बूथ के रुप में बनाया गया है। अभी तक जिला स्तर पर कुछ चुनिंदा बूथों को माडल बूथ की थीम दी जाती रही है। मसलन सभी मतदान केंद्रों पर मतदाताओं को संबन्धित जिले के पर्यटन स्थलों की झलक नजर आएगी। जिला स्तर पर धार्मिक और जातीय मुद्दों से हटकर पहली बार झारखंड की वन संपदा एवं पर्यावरण संरक्षण, प्राकृतिक संसाधनों, वेशभूषा, कला संस्कृति, खेती और किसान, महिलाओं की जीवनशैली तथा युवा एवं प्रमुख खेल की थीम आधारित बूथों के रुप में मॉडल मतदान केंद्र बनाकर नया इतिहाहस रचने की तैयारी है। 
चार चरण में होगा मतदान 
पहला चरण(13 मई)- सिंहभूम, खूंटी, लोहरदगा और पलामू। 
दूसरा चरण (20 मई)- चतरा, कोडरमा और हजारीबाग। 
तीसरा चरण (25 मई)- गिरिडीह, धनबाद, रांची और जमशेदपुर। 
चौथा चरण(01 जून)- राजमहल, दुमका और गोड्डा। 
12May-2024

शनिवार, 11 मई 2024

दस साल सत्ता में रहे बीआरएस दो राष्ट्रीय दलों के बीच संघर्ष करने को मजबूर 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। दक्षिण भारत के राज्य तेलंगाना में पिछले कुछ माह से बदली सियासी परिस्थियों के बीच ऐसे समय लोकसभा चुनाव हो रहे हैं, जब आंध्र प्रदेश से अलग होते ही तेलंगाना में सत्तासीन हुई टीआरएस(अब बीआरएस) को दस साल बाद कांग्रेस के हाथो राज्य की सत्ता गंवानी पड़ी। पिछले लोकसभा चुनाव में सबसे ज्यादा सीट लेने वाली टीआरएस इस बार लोकसभा चुनाव में दो राष्ट्रीय दलों भाजपा और कांग्रेस बीच होती नजर आ रही चुनावी जंग में फंसती नजर आ रही है। जबकि तेलंगाना में कुछ माह पूर्व सत्ता में आई कांग्रेस को लोकसभा चुनाव में बेहतर प्रदर्शन करने का भरोसा है, लेकिन दूसरी ओर पिछले चुनाव में चार सीट जीतने वाली भाजपा के लिए कर्नाटक के बाद दक्षिण भारत में तेलंगाना में अपनी सियासी जमीन में लगातार विस्तार की संभावनाएं नजर आ रही है। दरअसल इस बार के. चन्द्रशेखर राव की बीआरएस को दोहरी चुनौती का सामना करना पड़ रहा है। इसलिए बीआरएस नई चुनावी रणनीति के साथ लोकसभा के त्रिकोणीय चुनावी मुकाबले में भाजपा और कांग्रेस को चुनौती देने के प्रयास में है। हालांकि इस बार तेलंगाना में ज्यादातर सीटों पर भाजपा और कांग्रेस के बीच ही आमने सामने की चुनावी जंग हो सकती है। 
आंध्र प्रदेश से दो जून 2014 को अलग हुए तेलंगाना में उस समय की तेलंगाना राष्ट्र समिति के प्रमुख के. चन्द्रशेखर राव ने ऐसा सिक्का जमाया कि वह लगातार सत्तारुढ़ पार्टी रही और कांग्रेस का वर्चस्व तेजी के साथ कम होता चला गया। लेकिन कांग्रेस के अलावा भाजपा भी तेलंगाना के लोकसभा और विधानसभा में तेलंगाना अपनी मौजूदगी दर्ज कराती रही है। अब पिछले साल के अंत में राज्य विधानसभा चुनाव में कांग्रेस के बहुमत के सामने बीआरएस को सत्ता से बेदखल होना पड़ा। तेलंगाना की राजनीति के परिवर्तन के साथ मानो बीआरएस पर सियासी संकट मंडराना शुरु हो गया। हालात यहां तक पहुंच गये कि लोकसभा चुनाव आते आते बीआरएस में इतनी तोड़फोड़ हुई कि दो तरफा संकट से घिरी केसीआर की भारत राष्ट्र समिति को इस चुनाव में भाजपा और कांग्रेस जैसी दो राष्ट्रीय दलों के बीच मुकाबले में बनाने के लिए संघर्ष करना पड़ रहा है। हालांकि तेलंगाना की सभी 17 लोकसभा सीटों पर बीआरएस ने अपने उम्मीदवर चुनाव मैदान में उतारे हैं, तो वहीं भाजपा और कांग्रेस भी सभी सीटों पर चुनावी जंग लड़कर अपनी ताकत झोंक रही है। तेलंगाना में इन दलों के अलवा एआईएमआईएम समेत विभिन्न दलों और निर्दलीय समेत 525 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं। तेलंगाना की 17 लोकसभा सीटों में तीन अनुसूचित जाति और दो अनुसूचित जनजाति प्रत्याशी के लिए आरक्षित हैं। 
ये है लोकसभा चुनाव का इतिहास 
तेलंगाना के अलग राज्य के रुप में अस्तित्व में आने के बाद यह दूसरा लोकसभा चुनाव है। दरअसल 2014 के लोकसभा चुनाव के बाद यह राज्य आंध्र प्रदेश से अलग हुआ था, इसलिए उस दौरान लोकसभा अविभाजित आंध्र प्रदेश की 42 लोकसभा सीटों पर चुनाव हुआ था, जिसमें राजग गठबंधन में तेदेपा को 16 और भाजपा को तीन सीटे मिली थी, जबकि टीआरएस के खाते में 11 लोकसभा सीटें आई थी। जबकि पिछले 2019 के चुनाव में तेलंगाना की 17 सीटों पर हुए चुनाव में टीआरएस ने नौ, भाजपा ने चार, कांग्रेस ने तीन और एआईएमआईएम ने एक सीट पर जीत हासिल की थी। 
आठ लाख युवा डालेंगे पहला वोट 
तेलंगाना की 17 लोकसभा सीट के लिए 13 मई को होने वाले चुनाव में मतदान करने के लिए 3,17,17,389 मतदाता पंजीकृत हैं। इनमें 1,58,71,493 पुरुष, 1,58,43,339 महिला और 2,557 ट्रांसजेंडर मतदाता हैं। तेलंगाना में 18-19 वर्ष आयु वर्ग के 8,11,640 नए युवा मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। राज्य के मतदाताओं में 80 वर्ष से अधिक आयु के 4,43,943 तथा 5,06,493 दिव्यांग मतदाता भी वोटिंग के लिए अधिकृत है। साल 2019 के लोकसभा के चुनाव में राज्य में 1,46,74,217 महिलाओं व 2089 थर्डजेंडर समेत 2,95,18,888 मतदाता था। इस प्रकार से पिछले पांच साल में तेलंगाना में करीब 22 लाख मतदाताओ का इजाफा देखा गया है। 
मल्काजगिरि सीट पर देश के सबसे ज्यादा मतदाता 
देश की 543 सीटों में तेलंगान की सात विधानसभाओं क्षेत्र से बनी मल्काजगिरि लोक सभा सीट पर मतदाताओं के आधार पर सबसे बड़ा संसदीय क्षेत्र हैं, जहां इस बार लोकसभा चुनाव के लिए 37,47,265 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है, इनमें 19,29,471 पुरुष, 18,17,259 महिलाएं और 535 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। तेलंगाना में जिन 17 लोकसभा सीटों के लिए चुनाव होगा, आदिलाबाद, पेद्दापल्ली, करीमनगर, निजामाबाद, मेडक, मल्काजगिरि, सिकंदराबाद, हैदराबाद, चेवेल्ला, महबूबनगर, नलगोंडा, नगरकुरनूल, भुवनगिरी, वारंगल, महबुबाबाद, खम्मम, जहीराबाद शामिल हैं। 
ये है जातीय समीकरण 
तेलंगाना राज्य की आबादी में हिंदू 85 फीसदी, 13 फीसदी मुस्लिम और 2 फीसदी ईसाई हैं। यहां सियासी जातीय समीकरण पर गौर की जाए, तो राज्य में ओबीसी 57 प्रतिशत और अनुसूचित जाति 15.4 प्रतिशत और अनुसूचित जनजाति 9.5 प्रतिशत है। वहीं राज्य में 18 फीसदी सवर्ण और करीब 10 फीसदी आदिवासी समुदाय भी राजनीति में अहम योगदान देते आ रहे हैं। जातियों के लिहाज हिंदू धर्म में कापू 14 से 15 फीसदी हैं, तो मडिगा 9 फीसदी है। सवर्णों में सबसे ज्यादा रेड्डी समुदाय के लोग हैं, तो कम आबादी के बावजूद वेलामा यानी राव जाति का भी सियासी तौर पर प्रभाव रहता है। दरअसल तेलंगाना के 33 जिलों में से 9 जिले संविधान के अनुच्छेद 244(1) के तहत शेड्यूल एरिया में आते हैं। 
इन सीटों पर दिग्गजों के बीच मुकाबला
तेलंगाना में हैदराबाद, सिकंदराबाद, निज़ामाबाद, करीमनगर और मल्काजगिरी लोकसभा सीटों पर राजनीति के दिग्गजों के बीच कड़ा मुकाबला माना जा रहा है। इनमें हैदराबाद सीट पर पांचवी बार चुनाव लड़ रहे सांसद और एआईएमआईएम प्रमुख असदुद्दीन ओवैसी जैसे दिग्गज को चुनौती देने के लिए भाजपा ने प्रसिद्ध शास्त्रीय नृत्यांगना और उद्यमी माधवी लता को चुनाव मैदान में उतारा है। जबकि हैदराबाद से सटी सीट से केंद्रीय मंत्री जी. किशन रेड्डी भाजपा प्रत्याशी के रुप में तीसरी बार चुनाव लड़ रहे हैं, जिनका मुकाबला कांग्रेस के दानम नागेन्द्र और बीआरएस के टी. पद्मा राव गौड से होगा। करीमनगर भाजपा ने मौजूदा सांसद बंदी संजय कुमार को प्रत्याशी बनाया है। 
इस कारण बढ़ा वोटिंग का समय 
तेलंगाना में भीषण गर्मी के प्रकोप के कारण हैदराबाद, करीमनगर, जहीराबाद, सिंकदराबाद, चेवेल्ला, नगरकर्नूल, भोंगिर, निजामाबाद ,मेडक, मल्काजगिरि, महबूबनगर और नलगौंडा सीट पर मतदान का समय सुबह सात बजे से पांच बजे के बजाए छह बजे तक किया है। इसके अलावा आदिलाबाद की पांच, पेद्दापल्ले की तीन, वारंगल की की छह, महबुबाद के तीन और खम्मन लोकसभा क्षेत्र की पांच विधान क्षेत्रों के मतदान के लिए भी यही राहत दी है। 
11May-2024

शुक्रवार, 10 मई 2024

दोनों दलों की घेराबंदी कर कांग्रेस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने में जुटी

ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। ओडिशा में सत्तारूढ़ दल बीजू जनता दल के तिलिस्म को तोड़ने के लिए राजनीतिक दलों में प्रतिस्पर्धा देखने को मिल रही है। ओडिशा की सियासत में दोस्ती करके कांग्रेस को पछाड़ने वाले बीजद व भाजपा में इस बार चुनावी गठबंधन परवान नहीं चढ़ सका है। इसलिए भाजपा ने लोकसभा और विधानसभा चुनावों में बीजद की दो तरफा घेराबंदी करके ऐसा सियासी चुनावी चक्रव्यूह रचा है, जिसका मकसद लोकसभा में अधिकांश सीटों पर जीत हासिल करने के साथ ही भाजपा विधानसभा चुनाव में भी बीजद को पटखनी देना है, लेकिन पिछले ढ़ाई दशक से सत्तारूढ़ बीजद का गढ़ बन चुके ओडिशा में किसी भी दल के लिए सियासी चुनौती देने की डगर आसान नहीं होगी? सियासी गलियारों में चर्चा है कि बीजद भी प्रतिद्वंद्वी दलों के खिलाफ नई चुनावी रणनीति के साथ अपने सियासी वर्चस्व को बरकरार रखने के लिए मजबूती के साथ चुनावी जंग के मैदान हैं। ओडिशा के इस चुनाव में भाजपा और बीजद के साथ सीधा मुकाबला होने के आसार है, लेकिन कांग्रेस भी दो हजार के दशक से पहले की सियासी जमीन पर वापसी करने के इरादे इस चुनावी जंग को त्रिकोणीय बनाने का भरकस प्रयास कर रही है। 
लोकसभा चुनाव के चौथे चरण में 13 मई को ओडिशा के पहले दौर के चुनाव में चार लोकसभा और 28 विधानसभा सीटों पर मतदान होगा। इस बार यहां लोकसभा चुनाव के लिए भाजपा व बीजद के बीच गठबंधन करके चुनाव मैदान में आने की कवायद चली, लेकिन ऐनवक्त पर शायद भाजपा के अनुसार सीटों पर बिगड़ी बात को लेकर इन दोनों का गठबंधन पटरी पर नहीं आ सका। इसी वजह से भाजपा ने ओडिशा में बीजद को दोहरी चुनौती देने की चुनावी रणनीति का ताना बाना बुना, जिसमें बीजद के कदावर सांसद भृतहरि महताब समेत केई दिग्गज नेताओं को भाजपा में शामिल कर लिया और लोकसभा के साथ विधानसभा चुनाव में भी बीजद के खिलाफ मोर्चा खोल दिया। जबकि इससे पहले 1998 से 2009 तक यानी चार बार लोकसभा चुनाव गठबंधन करके लड़े है, जिसका लाभ यहां से धीरे धीरे कांग्रेस का प्रभाव कम होता चला गया। इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस ने भी इस बार ओडिशा में चुनावी रण में अपने पुराने वर्चस्व को हासिल करने के इरादे से भाजपा और बीजद को चुनौती देने की आक्रमक रणनीति तैयार की है। मसलन ओडिशा में लोकसभा चुनाव में भाजपा और बीजद के सभी 21 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, तो वहीं कांग्रेस ने 20 प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है और एक सीट अपने सहयोगी दल झामुमो को दी है। हालांकि ओडिशा में सीपीआई, सीपीआईएम, एआईएफबी, बसपा व आप जैसे दलों ने भी सियासी जमीन तलाशने के लिए कुछ सीटों पर अपने प्रत्याशियों पर दांव खेला है। खास बात ये भी गौरतलब है कि भाजपा और बीजद के बीच गठबंधन टूटने के बाद ओडिशा राजनीतिक विरोध के बावजूद नवीन पटनायक की बीजद राजग का हिस्सा न होते हुए भी संसद के भीतर और बाहर राष्ट्रीय मुद्दों पर भाजपा के लिए संकट मोचक के रुप में नजर आई। यानी राष्ट्रीय मुद्दों पर हमेशा ही हर बार मोदी सरकार का समर्थन किया। अटल बिहारी बाजपेयी की केंद्र सरकार में बीजद प्रमुख नवीन पटनायक इस्पात व खान मंत्री रह चुके हैं। 
ये रहा चुनावी इतिहास 
ओडिशा राज्य की 21 लोकसभा सीटों के लिए बारहवीं लोकसभा के लिए 1998 में पहली बार भाजपा व बीजद ने मिलकर चुनाव लड़ा, जिसमें बीजद नौ व भाजपा सात सीटों पर जीतकर आया तो यहां से कांग्रेस का वर्चस्व कम होने लगा। इसके बाद दोनों दलों ने गठबंधन के साथ तीन और चुनाव लड़े और दोनों के सियासी जनाधार में सुधार आया, तो यह बीजद का गढ़ बन गया। साल 2014 में पहली बार दोनों दलों ने अलग चुनाव लड़ा, तो बीजद का सबसे ज्यादा 20 सीटे मिली और बाकी एक सीट भाजपा के खाते में गई। जबकि पिछले 2019 चुनाव में भाजपा ने आठ सीट जीतकर वापसी की और कांग्रेस को एक सीट पर संतोष करना पड़ा। इससे पहले ओडिशा के लोकसभा चुनावों में साल 1967,1977 और 1989 के चुनाव छोड़कर ज्यादातर चुनाव में कांग्रेस ही सिरमौर रही है, जिसे आखिरी बार 1996 के चुनाव में दहाई के अंक में सीटे मिली, लेकिन उसके इससे पहले चुनाव तक एक सीट पर आकर सिमट गई। फिलहाल ओडिशा में लोकसभा की 21 में बीजद 12, भाजपा आठ और कांग्रेस एक सीट पर काबिज है। जबकि विधानसभा की 147 सीटों में से बीजद के 112, भाजपा के 23 तथा कांग्रेस के नौ विधायक हैं। 
राज्य में 3,36,46,762 मतदाता 
राज्य में कुल वोटरों की संख्या 3,36,46,762 है, जिनमें 1,70,39,900 पुरुष, 1,66,03,401 महिला तथा 3]461 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। इस चुनाव में 18-19 आयु वर्ग के 7,99,334 युवा मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे। इनके अलावा ओडिशा में 5.20 लाख दिव्यांग, तीन लाख 85 साल से अधिक आयु के बुजर्गो के अलावा सौ साल से अधिक आयु के नौ हजार मतदाता भी मतदान करेंगे। 
ओडिशा में जातीय समीकरण 
 ओडिशा में 94 प्रतिशत आबादी हिंदू, जिसमें 40 प्रतिशत एससी और जनजातीय आबादी शामिल है। जबकि राज्य में 2 प्रतिशत आबादी मुस्लिम और 3 प्रतिशत आबादी ईसाई आबादी है। लेकिन यहां की सियासत पर 5 प्रतिशत ब्राह्मणों और पटनायकों यानी करण-कायस्थ का लंबे समय सिक्का जमा हुआ है और यहां की सत्ता में पिछ़ड़ों और एससी की हिस्सेदारी नाम मात्र ही कही जा सकती है। इसलिए ओडिशा में जाती या धर्म की सियासत के कोई मायने नहीं रखते। 
चार चरणों में होगा चुनाव 
पहला चरण (13 मई): कालाहांडी, नबरंगपुर, बेरहामपुर, कोरापुट लोकसभा के साथ 28 विधानसभा सीट। 
दूसरा चरण (20 मई): बरगढ़, सुंदरगढ़, बोलांगीर, कंधमाल, अस्का लोकसभा के साथ में 35 विधानसभा सीट। 
तीसरा चरण(25 मई): संबलपुर, क्योंझर, ढेंकनाल, पुरी, भुवनेश्वर, कटक लोस के साथ में 42 विधानसभा सीट। 
चौथा चरण (01 जून):मयूरभंज,बालासोर,भद्रक,जाजपुर, केंद्रपाड़ा, जगतसिंहपुर लोस व 42 विधानसभा सीट। 
10May-2024

गुरुवार, 9 मई 2024

कांग्रेस भी नई चुनावी रणनीति के साथ खोई सियासी जमीन तलाने में जुटी 
ओ.पी. पाल.नई दिल्ली। दक्षिण भारत की सियासत के साथ देश में सत्ता की हैट्रिक बनाने की रणनीति से चुनाव मैदान में उतरी भाजपा ने आंध्र प्रदेश में सत्तारुढ वाईएसआर कांग्रेस को चुनौती देने के लिए तेलुगू देशम पार्टी और जन सेना पार्टी के साथ गठबंधन किया है। प्रदेश के विभाजन के बाद आंध्र प्रदेश में लोकसभा और विधानसभा के लिए यह दूसरा चुनाव है। चूंकि साल 2019 के चुनाव में वाईएसआर ने राज्य की 22 लोकसभा और विधानसभा की 151 सीटें जीतकर सभी राजनैतिक गठबंधनों को आइना दिखा दिया था और राज्य में सरकार बना ली थी। इसलिए इस बार के लोकसभा और विधानसभा में भाजपा ने अपनी शून्यता खत्म करने के मकसद से राज्य के दलों के सहयोग से नए सिरे से जमीनी चुनावी रणनीति तैयार की है। वहीं पिछले लोकसभा चुनाव में भाजपा की तरह खाली हाथ लौटी कांग्रेस भी इंडिया गठबंधन के साथ नई चुनावी रणनीति से अपनी खोई हुई सियासी जमीन का आधर तलाशने में जुटी है। मसलन आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा और 175 विधानसभा सीटों के लिए चौथे चरण में 13 मई को एक साथ होने वाले चुनाव में राजग और इंडिया गठबंधन ने सत्तारूढ़ वाईएसआर कांग्रेस को चुनौती देने के इरादे से चुनावी जंग में कदम रखा है। 
आंध्र प्रदेश से तेलंगाना अलग होने के बाद बदले सियासी समीकरणों के बीच पहली बार हुए लोकसभा चुनाव-2019 में भाजपा और कांग्रेस दोनों दलों की सियासी रणनीति शून्य साबित हुई थी और वाईएसआर कांग्रेस ने अपना परचम लहराकर लोकसभा चुनाव में 25 में से 22 और विधानसभा की 175 में 151 सीटे जीतकर सबको चौंकाया था। उस समय भी राजग में तेदेपा व भाजपा ने मिलकर चुनाव लड़ा था, लेकिन तेदेपा को लोकसभा में तीन और विधानसभा में 23 सीटों पर संतोष करना पड़ा था। इसलिए मजबूरी में इस बार भी तेदेपा को राजग के साथ मिलकर चुनाव मैदान में उतरना पड़ रहा है। वहीं तेदेपा के अलावा भाजपा की दूसरी सहयोगी पार्टी जन सेना पार्टी के प्रमुख एवं टॉलीवुड के अभिनेता से राजनेता बने पवन कल्याण के लिए इस चुनावी समर में अपनी एक दशक पु़रानी जेएसपी को मजबूत बनाकर सियासी जमीन तैयार करने का बेहतर मौका साबित हो सकता है। 
क्या है सियासी दलों की रणनीति 
भाजपा दक्षिण भारत में अपनी सियासी ताकत बढ़ाने में जुटी है। इसलिए भाजपा ने आंध्र प्रदेश में सत्तारूढ़ दल वाईआरएस कांग्रेस के साथ गठबंधन करने का प्रयास किया था। लेकिन विभाजन के बाद पहली बार साल 2019 के चुनाव में 25 लोकसभा सीटों में से 22 सीटे जीतकर सिरमौर साबित हुई जगनमोहन रेड्डी की वाईएसआर कांग्रेस ने अकेले दम पर ही चुनाव लड़ने की रणनीति से सभी सीटों पर उम्मीदवार उतार दिये हैं। जबकि छह साल के अंतराल बाद आंध्र की तेलुगू देशम पार्टी के मुखिया चन्द्रबाबू नायडू ने भाजपा के साथ गठबंधन करके चुनाव मैदान में उतरने का फैसला किया, जिसमें अभिनेता रहे पवन कल्याण की जन सेना पार्टी भी उसकी सहयोगी बनी। इस गठबंधन के तहत आंध्र प्रदेश की 25 लोकसभा सीटों में तेदपा ने 17, भाजपा ने 6 और जेएसपी ने 2 सीटों पर अपने उम्मीदवारों को चुनावी जंग में उतारा है। तो दूसरी ओर वहीं इंडिया गठबंधन का नेतृत्व कर रही कांग्रेस पार्टी ने राज्य में वापसी करने के इरादे से चुनाव रणनीति बनाकर 23 सीटों पर अपने प्रत्याशी उतारे हैं, जबकि एक-एक सीट अपने सहयोगी दलों सीपीआई और सीपीआई(एम) को दी है। गौरतलब है कि 2014 में अविभाजित आंध्र प्रदेश में 42 लोकसभा और 294 विधानसभा सीटों के लिए चुनाव हुआ था, तो लोकसभा में सबसे ज्यादा 16 और विधानसभा में 126 तेदेपा-भाजपा ने हासिल की थी। वहीं उस दौरान 11 टीआरएस, दो कांग्रेस, और एक एआईएमआई को मिली थी और विधानसभा चुनाव में तेदेपा-भाजपा सबसे बड़े गठबंधन के रुप में उभरा था। इसके बाद दो जून 2014 को आंध्र प्रदेश के हिस्से से कटकर तेलंगाना पृथक राज्य के रुप में अस्तित्व में आया और तेलंगाना को लोकसभा की 17 और विधानसभा की 119 सीटें मिली। 
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
आंन्ध्र प्रदेश में 25 लोकसभा सीटों में से चार अनुसूचित जाति(एससी) और एक अनुसूचित जनजाति (एसटी) के लिए आरक्षित है। लोकसभा की 25 सीटों पर 454 प्रत्याशियों के सामने भेदने के लिए संख्या 4,09,37,352 मतदाओं का चक्रव्यूह बना है, जिसमें 2,00,84,276 पुरुष, 2,08,49,730 महिला और 3,346 थर्डजेंडर मतदाता शामिल हैं। वहीं 67,393 सर्विस मतदाता, 7763 प्रवासी, 5,17,140 दिव्यांग मतदातओं के अलावा 85 साल से अधिक आयु वाले 2,12,237 बुजर्ग मतदाता भी मतदान करने के लिए अधिकृत है। खास बात ये भी है कि आंध्र प्रदेश में 18-19 साल के 9,01,863 युवा मतदाता पहली बार वोटिंग करेंगे। 
मतदान केंद्रों की व्यवस्था 
आंध्र प्रदेश में 46,165 मतदान केंद्र बनाए गये हैं, जिनमें 179 महिला प्रबंधित मतदान दल, 63 मतदान केंद्र दिव्यांगजन द्वारा प्रबंधित, 50 मतदान केंद्र युवाओं द्वारा प्रबंधित और 555 मॉडल मतदान केंद्र बना शामिल हैं। एक मतदान केंद्र पर अधिकतम 1500 मतदाता वोटिंग करेंगे। मतदान के दौरान वरिष्ठ नागरिकों और विशेष रूप से विकलांग मतदाताओं के लिए विशेष व्यवस्था की जाएगी, ताकि वे आसानी से अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकें। चुनाव आयोग के अनुसार मतदान के दौरान सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए स्थानीय पुलिस बल के पूरक के लिए आंध्र प्रदेश को केंद्रीय सशस्त्र पुलिस बल (सीएपीएफ) की 100 कंपनियां आवंटित की गई हैं।
इन लोकसभा सीटो पर होगा मतदान 
आंध्र प्रदेश में चौथे चरण में जिन सभी 25 लोकसभा निर्वाचन क्षेत्रों में चुनाव होगा, उनमें अरुकु, श्रीकाकुलम, विजयनगरम, विशाखापत्तनम, अनाकापल्ली, काकीनाडा, अमलापुरम, राजमुंदरी, नरसापुरम, एलुरु, मछलीपट्टनम, विजयवाड़ा, गुंटूर, नरसारावपेट, बापटला, ओंगोल, नंद्याल, कुरनूल, अनंतपुर, हिंदूपुर, कडप्पा, नेल्लोर, तिरूपति, राजमपेट, और चित्तूर सीट शामिल हैं। 
जातीय समीकरण हावी 
उत्तर प्रदेश और बिहार की तरह आंध्र प्रदेश की सियासत जाति के इर्द-गिर्द सिमटी हुई है. सूबे में तीन जातियों का वर्चस्व माना जाता है आर्य और द्रविड़ की मिश्रित जाति निवास करती है, जिसमें हिंदू 90.89 प्रतिशत, मुस्लिम 7.30 प्रतिशत और ईसाई 1.38 प्रतिशत हैं। हिंदुओं में अनुसूचित जाति की आबादी 17 प्रतिशत है। पिछड़ा वर्ग में 143 जातियां शामिल हैं, जिनकी संख्या लगभग 37 प्रतिशत है। इसके अतिरिक्त कापू और विभिन्न अन्य पिछड़ा वर्ग (ओबीसी) की आबादी लगभग 15 प्रतिशत है। राज्य में 88.5 फीसदी जनसंख्या तेलगू भाषा का इस्तेमाल करता है। हालांकि आंध्र प्रदेश की राजनीति में तीन बड़ी जातियों कम्मा, कापू और रेड्डी का प्रभाव रहता है, जहां राजनीति में कम्मा एवं कापू एक-दूसरे के विरोधी रहे हैं। राज्य की 25 प्रतिशत आबादी वाली कम्मा और 15 प्रतिशत आबादी वाली कापू जातियों के वोटरों का जमीनी स्तर पर अगर तालमेल हो गया तो 10 प्रतिशत आबादी वाली रेड्डी के लिए यह चुनाव आसान नहीं होगा।
09May-2024

मंगलवार, 7 मई 2024

हॉट सीट विदिशा: साढ़े तीन दशक का सूखा खत्म करना कांग्रेस के लिए नहीं आसान

भाजपा के शिवराज को चुनौती देने उतरे पुराने कांग्रेस दिग्गज प्रताप भानु शर्मा 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की विदिशा लोकसभा सीट पर तीसरे चरण में मंगलवार सात मई को मतदान हो रहा है। विदिशा ऐसे महत्वपूर्ण संसदीय क्षेत्रों में शामिल है, जो खासतौर से भाजपा के लिए किसी प्रयोगशाला से कम भी नहीं है। मसलन इस सीट से भाजपा या उसके अनुसांगिक राजनीतिक दलों के जो भी यहां चुनाव मैदान में उतरे, उनमें अधिकांश प्रत्याशी यहां से जीत हासिल करके लोकसभा पहुंचे है। ऐसे दिग्गजों में पूर्व प्रधानमंत्री स्व. अटल बिहारी वाजपेयी और पूर्व विदेश मंत्री स्व. सुषमा स्वराज के अलावा मध्य प्रदेश के चार बार मुख्यमंत्री रहे खुद शिवराज सिंह चौहान भी शामिल हैं, जिन्हें भाजपा ने एक बार फिर इस सीट से चुनावी मैदान में उतारा है। भाजपा का गढ़ बन चुकी इस सीट पर कांग्रेस केवल दो बार जीत का स्वाद चख पाई है। इस बार कांग्रेस ने साढ़े तीन दशक के सूखे को खत्म करने के इरादे से इस सीट से दो बार सांसद रहे प्रताप भानु शर्मा को ही चुनावी जंग में उतार कर बड़ा दांव खेला है। हालांकि कांग्रेस के दावों के बावजूद कांग्रेस के लिए इस चुनौतीपूर्ण चुनावी जंग में भाजपा का अभेद किला भेदना कोई आसान राह नजर नहीं आती। बहरहाल यहां भाजपा और कांग्रेस के बीच ही सीधा मुकाबला माना जा रहा है। 
मध्य प्रदेश की इस खास विदिशा लोकसभा सीट पर भाजपा प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान ने अपने डेढ़ दशक से ज्यादा के अपने मुख्यमंत्री काल में उपलब्धियों को लेकर हर वर्ग के मतदाताओं को आकर्षित करने में जुटे हैं और एक लाडली बहना तथा मोदी की गारंटी के विशवास के साथ चुनाव जीतने की तैयारी में है। दूसरी ओर पांच बार सांसद और छह बार विधायक रह चुके भाजपा प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान को 33 साल बाद 77 वर्षीय प्रताप भानु शर्मा भाजपा शासनकाल और केंद्र सरकार की नाकामी गिनाने के साथ कांग्रेस की गारंटी के सहारे अपनी सियासी वैतरणी को पार लगाने की जुगत में हैं। इस सीट पर भाजपा इस बार जीत के अंतर का रिकार्ड बनाने की चुनावी रणनीति के साथ चुनाव मैदान में हैं। भाजपा और कांग्रेस की इस रणभूमि में इंडिया गठबंधन से बगावत करके समाजवादी पार्टी की सीमा वर्मा और बसपा के किशनलाल लड़िया समेत कुल 13 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। 
विदिशा सीट का इतिहास 
मध्य प्रदेश की अस्तित्व में आई विदिशा लोकसभा सीट पर अब तक हुए 16 लोकसभा चुनाव में कांग्रेस केवल दो बार ही जीत सकी है, जबकि 14 बार यहां आरएसएस विचारधारा के राजनीतिक दलों भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी और भारतीय जनता पार्टी जीत दर्ज की है । पहला चुनाव 1967 में भारतीय जनसंघ के पंडित शिव शर्मा जीतकर लोकसभा पहुंचे थे। जबकि 1971 के चुनाव में सुविख्यात पत्रकार रामनाथ गोयनका ने जीत दर्ज कर जनसंघ का कब्जा बरकरार रखा। जबकि 1977 में जनता पार्टी के राघव ने चुनाव जीता, लेकिन उसके बाद 1980 और 1984 के चुनाव में कांग्रेस के प्रताप भानु शर्मा ने लगातार जीत हासिल की, लेकिन 1989 के चुनाव में भाजपा प्रत्याशी के रुप में राघव जी ने कांग्रेस पर पलटवार करके दूसरी बार चुनाव जीता और उसके बाद अब तक यहां भाजपा के सामने कांग्रेस लगतार परास्त होती आ रही है। 1991 के चुनाव में यहां से भाजपा प्रत्याशी के रुप में अटल बिहारी वाजपेयी रिकार्ड मतों से जीते, लेकिन लखनऊ लोकसभा सीट से भी निर्वाचित हुए वाजपेयी ने यह सीट छोड़ दी, जहां इसी साल हुए उपचुनाव में पहली बार शिवराज सिंह चौहान ने जीत हासिल की और इस सीट से लगातार पांच बार चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचते रहे। साल 2005 में भाजपा ने उन्हें मध्य प्रदेश का मुख्यमंत्री बना दिया, तो उनके इस्तीफे के बाद यहां 2006 में उप चुनाव हुआ, जिसमें भाजपा के रामपाल सिंह ने भगवा लहराया। इसके बाद इस सीट से भाजपा ने 2009 के चुनाव में सुषमा स्वराज को प्रत्याशी बनाया, जो लगातार दो बार जीतकर लोकसभा पहुंची और केंद्र में मोदी सरकार में विदेश मंत्री भी बनी। पिछला चुनाव यहां से भाजपा के रमाकांत भार्गव ने जीता था, जिनके स्थान पर केंद्र की सियासत में लाने के लिए एक बार फिर शिवराज सिंह चौहान को भाजपा ने प्रत्याशी बनाया है।
ऐसा है कुछ जातीय समीकरण 
इस सीट पर कुल मतदाता 19,38,383 है, जिनमें 10,04,254 पुरुष और 9,34,046 महिला मतदाता शामिल है। चार जिलों की आठ विधानसभा क्षेत्रों से घिरी इस लोकसभा सीट पर 81.39 प्रतिशत ग्रामीण और 18.61 प्रतिशत शहरी आबादी की है। इस सीट के जातीय समीकरण में करी 38 प्रतिशत ओबीसी, 19 प्रतिशत अनुसूचित जाति, 10 प्रतिशत अनुसूचित जनजाति, 7 प्रतिशत मुस्लिम आबादी के अलावा बाकी सामान्य जातियों की आबादी है। इसके अलावा कुशवाह, दांगी, जैन मतदाता भी चुनावों में अहम भूमिका निभाते रहे हैं। 
आठ विधानसभा में सात पर भाजपा काबिज 
विदिशा लोकसभा सीट 4 जिलों रायसेन, विदिशा सीहोर और देवास की 8 विधानसभा सभा क्षेत्रों से बनी है, जिसमें विदिशा जिले की विदिशा व बासौदा, रायसेन जिले की भोजपुर सांची(सु) व सिलवानी, सिहोर जिले की बुधनी व इच्छावर तथा देवास जिले की खाटेगांव विधानसभा क्षेत्र शामिल है। इन आठ विधानसभा सीटों पर भाजपा काबिज है, जबकि एक सीट पर कांग्रेस का विधायक है। विदिशा लोकसभा की बुधनी विधानसभा सीट से ही शिवराज सिंह चौहान खुद 6 बार विधायक भी रह चुके हैं। 
भाजपा व कांग्रेस का सियासी सफर 
इस सीट से भाजपा प्रत्याशी शिवराज सिंह चौहान किसी परिचय से मोहताज नहीं है, जो एबीवीपी से राजनीति की शुरुआत करते हुए भाजपा के संगठन में विभिन्न महत्वपूर्ण पदों पर रहे और मध्य प्रदेश में चार बार मुख्यमंत्री पद की शपथ लेकर शासन भी किया, जहां महिलाओं के लिए लागू योजनाओं के कारण मामा होने का खिताब भी पा चुके हैं। पांच बार सांसद रहे शिवराज चौहान शिक्षा दीक्षा के साथ पूरा जीवन मध्य प्रदेश को ही समर्पित रहा है। आरएसएस के स्वयंसेवक शिवराज चौहान आपातकाल के दौरान वे भोपाल जेल में भी बंद रहे। विदिशा सीट पर कांग्रेस को लगातार दो बार जीत दिलाने वाले इकलौते दिग्गज प्रताप भानु शर्मा मैकेनिकल इंजीनियर, उद्योगपति और शिक्षाविद् होने के साथ कांग्रेस के वरिष्ठ नेता हैं। इस सीट पर वह कई बार चुनाव लड़े लेकिन कई बार हार का सामना करना पड़ा। शर्मा मध्य प्रदेश कांग्रेस, जिला लघु उद्योग संगठन और जिला चैंबर ऑफ कॉमर्स एंड इंडस्ट्री के अध्यक्ष भी रहे हैं। अब 33 साल बाद एक बार फिर चुनाव मैदान में हैं। 
07May-2024