शुक्रवार, 3 मई 2024

हॉट सीट बारामती: पवार खानदान की जंग में फंसा लोकसभा चुनाव!

परिवार विवाद में ननंद और भाभी के बीच सीधा मुकाबला 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर इस बार सबकी नजरें टिकी हैं, जहां शरद पवार की पार्टी ही नहीं, बल्कि परिवार भी दो फाड़ में बंटा हुआ है। इस कारण इस सीट पर लोकसभा चुनाव कम, चाचा शरद पवार और भतीजे अजीत पवार के बीच सियासी युद्ध का मैदान ज्यादा नजर आ रहा है। राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का असली सिंबल ‘घड़ी’ शरद पवार के भतीजे अजीत पवार के पास है, जबकि इस पार्टी के संस्थापक रहे शरद पवार की राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी का सिंबल ‘तुरहा’भी मतदाताओं के बीच एक पहेली बनता नजर आ रहा है। अजीत पवार ने महायुति गठबंधन में अपनी पत्नी सुनेत्रा पवार को राकांपा प्रत्याशी बनाया है, तो विभाजित राकांपा(सपा) के प्रत्याशी के रुप में शरद पवार की बेटी सुप्रिया सुले चुनाव मैदान में है। मसलन इस सीट पर ननंद और भाभी के बीच एक दूसरे खिलाफ चुनावी जंग लड़ने को मजबूर हैं। 
लोकसभा चुनाव में महाराष्ट्र की बारामती लोकसभा सीट पर एक ही राजनीतिक दल ‘राष्ट्रवादी कांग्रेस पार्टी’ के दो धड़ो के बीच चुनावी मुकाबला राजनीतिकि गलियारों में चर्चा का विषय बना हुआ है। जिस पार्टी को शरद पवार खड़ा करके राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा दिलया, उसे उसके भतीजे अजीत पवार ने झटक लिया और शरद पवार गुट को विभाजित राकांपा के नए चुनाव चिन्ह पर चुनाव मैदान में आना पड़ा है। अजीत पवार गुट को शामिल भाजपा और शिंदे गुट की शिवसेना समेत महायुति और शरद पवार गुट को अघाडी गठबंधन का सहारा है। इस सीट पर बसपा की प्रियदर्शनी कोकरे और हिंदुस्तान जनता पार्टी की सविता कदले समेत कुल 38 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं, लेकिन एक ही परिवार की ननंद सुप्रिया सुले और भाभी सुनेत्रा पवार के बीच चुनावी मुकाबला होता नजर आ रहा है। बहरहाल इस सीट का चुनाव राकांपा के दोनों गुटो के प्रमुखों चाचा शरद पवार और भतीजे अजीत पवार की प्रतिष्ठा का सवाल बना हुआ है। 
चुनाव चिन्ह के भ्रम में उलझे मतदाता 
महाराष्ट्र की हाई प्रोफाइल लोकसभ सीट बनी बारामती आमने सामने एक ही परिवार के एक दल राकांपा के दो गुटों के बीच इस चुनावी दंगल में मतदाता भी असमंजस की स्थिति में है। शरद पवार गुट इसलिए भी पशोपेश में है कि चुनाव आयोग द्वारा उनकी पार्टी राकांपा को जो चुनाव चिन्ह 'मैन ब्लोइंग तुरहा' यानी तुतारी उन्हें आवंटित किया है। उससे मामूली अंतर से मिलता हुआ चुनाव चिन्ह इस सीट पर सियासी ताल ठोक रहे निर्दलीय प्रत्याशी सोहेल यूनुस शाह शेख को भी 'तुरही' चुनाव चिन्ह आवंटित किया गया है। इसलिए बारामती सीट के मतदाताओं में ईवीएम मशीन पर इन दोनों चुनाव चिन्हों में अंतर करना असान नहीं होगा और भ्रम की स्थिति पैदा होने से भी इंकार नहीं किया जा सकता। 
क्या है चुनावी इतिहास 
महाराष्ट्र की इस चर्चित सीट के लोकसभा चुनाव के इतिहास पर नजर डाली जाए तो पुणे जिले की इस सीट पिछले साढ़े तीन दशक से राकांपा यानी शरद पवार के परिवार के कब्जे में है। पिछले तीन बार से पवार की बेटी सुप्रिया सुले यहां से सांसद हैं। पवार परिवार के प्रभुत्व में रही इस सीट पर खुद शरद पवार 6 बार जीतकर लोकसभा पहुंचे हैं, जिसमें पहली बार 1984 में भारतीय कांग्रेस (सोशलिस्ट) के टिकट से जीते, तो 1991 का उप चुनाव कांग्रेस के टिकट पर जीता। बाद में चार बार अपनी राकांपा से सांसद बने। यही नहीं बागी हुए उनके भतीजे अजीत पवार एक बार सांसद रहे हैं। 
दांव पर लगी महायुति व अघाड़ी गठबंधन की प्रतिष्ठा 
पुणे जिले की बारामती लोकसभा सीट पर पिछले चुनाव की तुलना में 2,11,771 वोटरों की संख्या बढ़ने के बाद इस बार 23,26,487 मतदाताओं के चक्रव्यूह बना हुआ है, जिसे भेदने के लिए महाराष्ट्र में सबसे ज्यादा 38 प्रत्याशी चुनाव मैदान में हैं, जिनमें बसपा, बसपा(अंबेडकर) जैसे एक दर्जन दलों के अलावा 26 निर्दलीय प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे हैं। इस लोकसभा के दायरे में छह विधानसभाओं बारामती, दौंड, इंदापुर, पुरंदर, मावल और खडकवासला आती हैं, जिनमें से दो भाजपा, दो राकांपा(अजीत) तथा दो कांग्रेस के खाते में हैं। दिलचस्प पहलू ये है कि इस सीट पर महायुति गठबंधन ने राकांपा और महाराष्ट्र अघाडी गठबंधन राकांपा(सपा) के लिए यह सीट छोड़ी है। इसलिए महायुति गठबंधन में शामिल शिवसेना(शिंदे) और भाजपा के साथ ही अघाडी गठबंधन से शिवसेना(यूबीटी) और कांग्रेस यहां चुनाव से बाहर रहकर अपने गठबंधन प्रत्याशियों के लिए सियासी प्रतिष्ठा को दांव पर लगा रखा है। 
निर्णायक भूमिका में जातीय समीकरण 
बारामती लोकसभा क्षेत्र के जातिगत समीकरण पर नजर डाली जाए, तो लोकसभा क्षेत्र में 7.15 फीसदी मुस्लिम, 12.5 प्रतिशत अनुसूचित जाति और 3.7 फीसदी अनुसूचित जनजाति के अलावा बौद्ध 3.61, ईसाई 1.43, जैन 1.36 तथा 0.29 फीसदी सिख आबादी है। हालांकि यहां मराठी मतदाताओं का ज्यादा दबदबा है, जिसमें 72 हजार पवार, 70 हजार धनगर, 65 हजार शिंदे, 30 हजार गायकवाड, 25 हजार चव्हाण और 80 हजार ब्राह्मण मतदाता निर्णायक साबित होते रहे हैं। 
03May-2024

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