शुक्रवार, 31 मई 2024

हॉटसीट मिर्जापुर: जातीय समीकरण के जंजाल में उलझी अनुप्रिया की हैट्रिक!

सपा, बसपा व अपना दल के दूसरे गुट ने की राजग प्रत्याशी की घेराबंदी 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव की अंतिम दौर की जंग में उत्तर प्रदेश की मिर्जापुर लोकसभा सीट एक दल का गढ़ नहीं मानी गई है, जहां एक जून को मतदान कराया जाएगा। इस सीट पर भाजपानीत राजग गठबंधन की ओर से अपना दल(सोनेलाल) की प्रत्याशी एवं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल जीत की हैट्रिक लगाने के इरादे से चुनावी जंग में है। वहीं अनुप्रिया की हैट्रिक रोकने के लिए उसके खिलाफ विपक्षी दलों ने जिस प्रकार से जातीगत समीकरण के आधार पर सियासी चक्रव्यूह रचा है, वह केंद्रीय मंत्री के लिए बड़ी चुनौती साबित हो सकता है। दरअसल इंडिया गठबंधन की ओर से सपा ने पहले से घोषित प्रत्याशी को ऐनवक्त पर बदलकर पटेल के खिलाफ भदोही के मौजूदा भाजपा सांसद रमेशचंद बिंद अपना प्रत्याशी बनाकर चुनावी मैदान में उतारा है। जबकि बसपा ने ब्राह्मण, दलित और मुस्लिम वोटबैंक साधते हुए ब्राह्मण प्रत्याशी के रुप में मनीष त्रिपाठी को चुनाव मैदान में उतारकर इस चुनावी मुकाबले को त्रिकोणीय मुकाबले में ले जाने की कोशिश की है, तो अपना दल के दूसरे गुट ने भी अनुप्रिया की घेराबंदी करने के मकसद से अपना प्रत्याशी चुनावी मैदान में उतारा है। माना जा रहा है कि इस सीट पर जातीय समीकरण हावी होने के कारण राजग की संयुक्त प्रत्याशी अनुप्रिया पटेल के लिए इस बार चुनावी राह कांटोभरी हो सकती है? 
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की मिर्जापुर लोकसभा सीट के दायरे में आने वाली पांचों विधानसभा सीटों राजग के विधायक काबिज है, जिसमें मिर्जापुर, चुनार और मरिहान पर भाजपा, मझवान पर निषाद पार्टी और छानबे (सु) विधानसभा सीट पर अपना दल (एस) का विधायक काबिज है। इस सीट पर पिछले दो चुनाव जीतकर सांसद बनी अनुप्रिया पटेल की इस बार जातीगत समीकरण के आधार इंडी गठबंधन में शामिल सपा के अलावा बसपा ने अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारा है। यही नहीं केंद्रीय मंत्री अनुप्रिया पटेल की घेराबंदी करने वालों में अपना दल के दूसरे कमेरावादी गुट के प्रत्याशी दौलत सिंह भी शामिल है। वहीं जातीय आधारित राजनीति करने वाले छोटे दलो के प्रत्याशी भी किसी भी प्रमुख दलों की हारजीत को प्रभावित करने में सक्षम बताए जा रहे हैं। गौरतलब है कि मिर्जापुर वहीं लोकसभा सीट है जहां से दो बार दस्यु फूलन देवी और एक बार ददुआ के भाई बाल कुमार पटेल ने चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचकर सभी राजनीतिक दलों को चौंकाया था। यह सीट इसलिए भी चर्चा रही है कि यहां से 2004 में बसपा को जीत दिलाने वाले सांसद नरेन्द्र कुशवाह को घूसकांड में अपनी सदस्यता गंवानी पड़ी थी। खास बात ये भी है कि 1984 में उमाकांत मिश्रा के बाद मिर्जापुर लोकसभा सीट से स्थानीय सांसद नहीं मिला है यानी पिछले करीब चार दशकों से यहां बाहरी प्रत्याशी ही चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंच रहे हैं। 
ऐसा रहा सीट का चुनावी इतिहास 
उत्तर प्रदेश के पूर्वांचल की मिर्जापुर लोकसभा सीट के दायरे में आने वाली पांच विधानसभा सीटों में चार सीटों पर राजग के विधायक काबिज है, जबकि एक सीट पर निषाद पार्टी का कब्जा है। अभी तक 17 लोकसभा के लिए हुए 20 चुनावों में कांग्रेस ने सात, सपा ने चार, भाजपा, अपना दल व बसपा ने दो-दो के अलावा भारतीय जनसंघ, जनता पार्टी व जनता दल ने एक-एक जीत दर्ज की है। पहले तीन चुनाव में यहां कांग्रेस के सांसद निर्वाचित हुए। साल 1967 के चुनाव में यहां भारतीय जनसंघ ने चुनाव जीता, लेकिन 1971 में फिर कांग्रेस के अजीज इमाम ने जीत दर्ज की। इंदिरा सरकार की विरोधी लहर में 1977 के चुनाव में यहां जनता पार्टी के फकीर आलम अंसारी जीतकर लोकसभा पहुंचे, लेकिन उसके बाद फिर अजीज इमाम और फिर उपचुनाव व आम चुनाव जीतकर उमाकांत मिश्रा ने यह सीट कांग्रेस की झोली में डाली। साल 1989 के चुनाव में जनता दल के यूसुफ बेग ने कांग्रेस के विजय रथ को ऐसा रोका कि उसके बाद यहां कांग्रेस को आज तक जीत नसीब नहीं हुई। साल 1991 के चुनाव में वीरेन्द्र सिंह ने चुनाव जीतकर पहली बार भाजपा को जीत दिलाई। इसके बाद साल 1996 के चुनाव में समाजवादी पार्टी ने दस्यु फूलन देवी को प्रत्याशी बनाकर पहली जीत दर्ज की, लेकिन 1998 के चुनाव में भाजपा के वीरेन्द्र सिंह ने फूलन देवी को हराकर भाजपा के खाते में दूसरी जीत दर्ज की, लेकिन अगले ही चुनाव में फिर से यहां सपा की फूलन देवी जीत हासिल कर दूसरी बार लोकसभा पहुंची, लेकिन जुलाई 2001 में नई दिल्ली स्थित उनके सरकारी आवास पर कुछ लोगों ने उसकी हत्या कर दी और साल 2002 में इस सीट पर उपचुनाव में सपा के रामरति सिंह ने जीत दर्ज की। साल 2004 में इस सीट पर नरेन्द्र कुशवाह ने जीत दर्ज कर बसपा का खाता खोला और 2009 में भी रमेश दूबे ने जीत दर्ज कर यह सीट बसपा की झोली डाली। साल 2014 के चुनाव में यहां अपना दल की अनुप्रिया पटेल राजगगठबंधन में चुनाव जीती, जिसके बाद दो गुटों में बंटे इस दल के बावजूद अनुप्रिया पटेल ने साल 2019 का चुनाव भी 2.32 लाख के अंतर से जीती और अब तीसरी बार चुनाव मैदान में है। 
मतदाताओं का चक्रव्यूह 
यूपी की मिर्जापुर लोकसभा सीट पर दस प्रत्याशियों के सामने कुल 19,06,327 मतदाता हैं, जिसमें 9,99,442 पुरुष, 9,06,816महिला और 69 थर्डजेंडर मतदाता है। वहीं इस सीट पर 18-19 आयु वर्ग के 27,353 मतदाता पहली बार मतदान करेंगे। जबकि यहां 15,168 दिव्यांग तथा 16,227 मतदाता 85 साल व उससे अधिक उम्र के बुजुर्ग मतदाता हैं। एक जून को इस सीट पर स्थापित किये गये 1352 मतदान केंद्रों के 2143 बूथों पर चुनाव होगा। 
ये है जातीय समीकरण 
मिर्जापुर लोकसभा सीट जब 2009 के चुनाव से भदोही से अलग हुई तो इसे कुर्मी बाहुल्य लोकसभा सीट के रुप में देखा जाता है। इसी लिए हर राजनीतिक दल यहां जातीय समीकरण के आधार अपने प्रत्याशियों को चुनाव मैदान में उतारता है। जहां तक इस सीट के जातीय समीकरण का सवाल है उसमें 1.50 लाख ब्राह्मण, 1.50 लाख बिंद (केवट), 1.50 लाख वैश्य, 90 हजार क्षत्रिय, 1.25 लाख कोल, 3. 50 लाख पटेल के अलावा ओबीसी व दलित करीब 3-3 लाख, एक लाख 50 हजार मौर्य कुशवाहा 1.50 व मुस्लिम 1.50 लाख और करीब एक लाख यादव मतदाता हैं। 
31May-2024

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