रविवार, 5 मई 2024

हॉट सीट राजगढ़: कांटे के मुकाबले पर टिकी भाजपा व कांग्रेस की प्रतिष्ठा!

 राजघराने की विरासत सेजने उतरे पूर्व मुख्यमंत्री दिग्गी राजा की अग्नि परीक्षा
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। लोकसभा चुनाव में मध्य प्रदेश की वीआईपी सीटों में शामिल राजगढ़ लोकसभा सीट पर तीसरे चरण में सात मई को मतदान होगा। भाजपा व कांग्रेस से ज्यादा राजपरिवारों के वर्चस्व में रही इस बार इस सीट का चुनाव हाई प्रोफाइल होता दिख रहा है कि यहां राज परिवार के गढ़ के अस्तित्व को बचाने के लिए कांग्रेस के दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह 33 साल बाद एक बार फिर से चुनावी जंग में उतरे हैं। जबकि भाजपा ने इस सीट से दो बार के सांसद रोडमल नागर पर फिर भरोसा जताते हुए चुनाव मैदान में उतारा है। दरअसल दिग्गी राजा के चुनावी जंग में कूदने के कारण लोकसभा चुनाव का गणित दिलचस्प हो गया है, जहां भाजपा और कांग्रेस के बीच कांटे का चुनावी मुकाबला होता नजर आ रहा है। 
मध्य प्रदेश की 29 लोकसभा सीटों में चंबल और मध्य भारत अंचल में राजगढ़ लोकसभा सीट का चुनाव बेहद अहम माना जा रहा है, जिस पर सबकी नजरे टिकी हुई हैं। पिछले एक दशक से इस सीट पर भाजपा का कब्जा है, जहां भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर अपनी जीत की तिगड़ी बनाने के इरादे से भाजपा की चुनावी रणनीति के तहत चुनावी जंग लड़ रहे हैं। शायद यही कारण है कि कांग्रेस ने पूर्व मुख्यमंत्री और राज्यसभा सांसद दिग्विजय सिंह को भाजपा के खिलाफ चुनाव मैदान में उतारा है। खासबात ये भी है कि इस सीट पर पिछले दस साल में भाजपा ने मजबूती के साथ ऐसा अपना दबदबा बनाया कि भाजपा प्रत्याशी को 2014 के मुकाबले 2019 के चुनाव में तीन लाख से भी ज्यादा वोट मिले थे। इस बार भाजपा प्रत्याशी का लक्ष्य रिकार्ड मतों के अंतर से चुनाव जीतना है। दिग्गी राजा के नाम से चर्चाओं में रहने वाले कांग्रेस दिग्गज नेता दिग्विजय सिंह इस सीट को जीतने के लिए अपने भाई लक्ष्मण सिंह जो भाजपा से सांसद रह चुके हैं को भी मनाने में जुटे हैं, वहीं वे जातिगत समीकरण साधते हुए कुछ प्रत्याशियों को भी अपने साथ जोड़ने की रणनीति से चुनाव प्रचार में जुटे हैं। राजनैतिक जानकारों की माने तो इस बार भाजपा के सामने लोकसभा चुनाव में कांटे का मुकाबला हो सकता है। वहीं बसपा प्रत्याशी डा. राजेन्द्र सूर्यवंशी भी चुनाव में ताल ठोककर इस मुकाबले को त्रिकोणीय बनाने का प्रयास कर रहे हैं। इस सीट पर भाजपा, कांग्रेस व बसपा समेत कुल 15 प्रत्याशी अपनी किस्मत आजमा रहे है, जिनमें आम आदमी पार्टी की प्रत्याशी और भाजपा की पूर्व विधायक ममता मीणा भी भाजपा को सबक सिखाने के लिए सियासी जंग में है। 
विधासभा चुनाव के बाद बढ़ 32,289 मतदाता 
राजगढ़ लोकसभा सीट पर इस बार 18,69,937 मतदाताओं का चक्रव्यूह बना हुआ है, जिसमें 9,60,505 पुरुष, 9,09,409 महिला और 23 थर्डजेंडर मतदाता शामिल है। वहीं 15,219 दिव्यांग मतदाता भी इस सीट पर पंजीकृत हैं। इस लोकसभा के दायरे में आने वाली आठ विधानसभाओं राजगढ़, ब्यावरा, नरसिंहगढ़, खिलचीपुर, सारंगपुर, सुसनेर, चांचौड़ा व राघौगढ़ में पिछले दिनों हुए विधानसभा चुनाव के मुकाबले 32,289 मतदाताओं का इजाफा हुआ है। इस सीट पर 81.39 फीसदी जग्रामीण और 18.61 फीसदी मतदाता शहरी क्षेत्र में प्रभावी हैं। 
क्या है जातीय समीकरण 
राजगढ़ लोकसभा सीट पर सबसे ज्यादा दांगी, सोधिया, तंवर, ब्राह्मण, यादव, मीणा समुदाय के वोटरों निर्णायक साबित हो रहे हैं। कांग्रेस और भाजपा दोनों ही जातिगत आधार पर अपनी चुनावी रणनीति की गोटियां फेंक रहे हैं। एक आंकड़े के अनुसार इस सीट पर सबसे ज्यादा 56 फिसदी ओबीसी वर्ग के मतदाता है, जबकि अनुसूचित जाति के 18 फीसदी, मुस्लिम 6 फीसदी और बाकी अन्य समुदाय के मतदाता हैं। सभी जातीयों के मतदाताओं का वोट अलग अलग पार्टियों में विभाजित होना तय है। मसलन जो दल ऐसे मतदाताओं को साधने में सफल हो जाएगा, वहीं इस सीट पर सिकंदर कहलाएगा। 
अजीबो गरीब है चुनावी इतिहास 
मध्य प्रदेश की राजगढ़ लोकसभा ऐसी सीट रही, जहां पहले दो चुनाव में दो सांसद चुने जाने की परंपरा थी यानि इस सीट की पहचान शाजापुर के साथ होती थी। मसलन एक सामान्य वर्ग और दूसरा आरक्षित वर्ग का सांसद चुना जाता था और यहां से इन दो चुनाव में चार सांसद कांग्रेस के चुने गये। इस परांपरा के खत्म होने के बाद 1962 में राजगढ़ लोकसभा सीट से आजाद उम्मीदवार ने जीत दर्ज की। लेकिन फिर 1967 व 71 के चुनाव में राजगढ़ जिले को तीन लोकसभा क्षेत्रों शाजापुर, भोपाल व गुना में बांट दिया गया। इन दोनों चुनावों में राजगढ़ से भारतीय जनसंघ के प्रत्याशी चुनाव जीतकर लोकसभा पहुंचे। सही मायने में 1977 में राजगढ़ लोकसभा अपने अस्तित्व में आई तो इस सीट से जनता पार्टी ने 1977 व 1980 के दोनों चुनाव में लगातार जीत हासिल की। जहां 1980 में कांग्रेस प्रत्याशी के रुप में दिग्विजय सिंह ने लोकसभा चुनाव इस सीट पर चुनाव जीता, तो वहीं 1991 के चुनाव में भाजपा के प्यारेलाल खंडेलवाल जीतकर लोकसभा पहुंचे। इसके बाद राघोगढ़ के राजपरिवार ने राजगढ़ लोकसभा सीट पर ऐसे पैर जमाए कि 23 साल तक यहां इसी परिवार के सदस्यों के कब्जें में रही। जिसमें 1991 में दूसरी बार कांग्रेस नेता दिग्विजय सिंह और उसके बाद उनके भाई लक्ष्मण सिंह ने चार बार कांग्रेस और एक बार 2004 में भाजपा के टिकट पर चुनाव जीता। जबकि साल 2009 का चुनाव फिर कांग्रेस के नारायण सिंह आमलाबे सांसद चुने गये। इसके बाद पिछले दस साल से इस सीट पर भाजपा के रोडमल नागर काबिज हैं, जो तिगड़ी बनाने के लिए चुनाव मैदान में हैं। 
ये हैं कांग्रेस व भाजपा प्रत्याशी 
मध्य प्रदेश के राजगढ़ जिले के राघोगढ़ में सामंती परिवार में जन्मे दिग्विजय सिंह फिलहाल मध्यप्रदेश से राज्यसभा सांसद हैं। वे कांग्रेस के राष्ट्रीय महासचिव भी रहे। उनका राजनीतिक सफर 1971 में राघोगढ़ नगरपालिका अध्यक्ष बनने से शुरु हुआ था और इसी विधानसभा से 1977 और 1980 में विधायक चुने गये तथा राज्य की अर्जुन सिंह सरकार में मंत्री बने। इसके बाद वे 1984 से 1992 तक लोकसभा सांसद रहे। 1993 से 1998 तक वे मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री रहे। एक बार फिर वे राजगढ़ से लोकसभा चुनाव के मैदान में हैं। राजगढ़ लोकसभा से भाजपा प्रत्याशी रोडमल नागर पिछले दो चुनाव जीत चुके हैं। इस सीट पर तीसरी बार चुनाव मैदान में रोडमल नागर केंद्रीय कृषि मंत्रालय की सलाहकार समिति और ओबीसी कल्याण समिति तथा संसदीय समिति रक्षा के भी सदस्य रह चुके हैं। 
  05May-2024

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