कैग की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
यूपीए शासनकाल में जमकर हुआ नियमों का उल्लंघन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपीए
शासनकाल में 176 करोड़ रुपये के चर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कारण जहां
मनमोहन सरकार चौतरफा कटघरे में खड़ी नजर आई तो वहीं दूसरी ओर देश की शीर्ष
छह निजी दूरसंचार कंपनियां भी सभी नियमों को ताक पर रखकर सरकारी खजाने को
ऐसे कुतरती रही, कि तीन साल के भीतर सरकार को करीब 45 हजार करोड़ रुपये की
चपत लगाकर बड़ा मुनाफा कमाने में सफल रही।
यह खुलासा इसी माह
संपन्न हुए बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिनों में संसद में पेश हुई कैग
की रिपोर्ट में सामने आया। मसलन सरकार को 45 हजार करोड़ का चूना लगाने वाली
इन छह शीर्ष निजी दूरसंचार कंपनियों में रिलायंस कम्यूनिकेशन,
एयरटेल,वोडाफोन, आइडिया, टाटा और एयरसैल के नाम शामिल है, जिन्होंने मिलकर
वर्ष वर्ष 2006-07 से 2009-10 के दौरान टेलीकॉम के नियमों को जमकर उल्लंघन
करते हुए बड़ा मुनाफा कमाया। कैग के अनुसार इन कंपनियों ने डिस्ट्रीब्यूटर,
डीलर व एजेंटों को दिए गए कमीशन की राशि को हटाकर ‘जीआर’ यानि ग्रॉस
रेवेन्यू और ‘एजीआर’ यानि एनुअल ग्रॉस रेवेन्यू को कम करके दर्शाया, जबकि
नियमानुसार केंद्र सरकार को दिए जाने वाले कर में डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर व
एजेंटों को दिये जाने वाले कमीशन को भी जीआर और एजीआर में शामिल करना जरूरी
था। मसलन यह सरकार के साथ राजस्व साझेदारी में आवश्यक ही नहीं, बल्कि
अनिवार्य भी है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि जीआर और एजीआर में कंपनी
द्वारा किसी भी प्रकार का राजस्व छुपाना या कम दर्शाना टेलीकॉम लाइसेंस के
खिलाफ ही नहीं, बल्कि नियमों का खुला उल्लंघन भी है, लेकिन खुलासे में यह
बात सामने आई कि कंपनियों ने ऐसा माना कि डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर और एजेंटों
को भुगतान किया गया कमीशन मार्केटिंग एक्सपेंसेस का ही हिस्सा हो। कैग
रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को 5672.65 करोड़ रुपए की चपत लगाते हुए कंपनियों
ने इसे रियायत राशि पर गैरकानूनी ढंग से सेव किया है। इसमें लाइसेंस फीस का
487.09 करोड़ एवं ‘एसयूसी’ यानि स्पैक्ट्रम यूस्ड क्रेडिट का 203.38 करोड़
रुपए का भी कम भुगतान हुआ है। इसके अलावा कंपनियों द्वारा जनता को समय-समय
पर ‘फ्री टॉक टाइम’ जैसी योजनाओं का लाभ दिया गया, लेकिन बदले में सरकार को
इसकी कोई रकम अदा ही नहीं की गई। ऐसी योजनाओं को जीआर व एजीआर में शामिल न
करके सरकार के समक्ष झूठे आंकड़े पेश किए गए। इन्हीं तरीकों से कंपनियों ने
पोस्टपेड ग्राहको को दी गई रियायत, रोमिंग सेवाओं में छूट, अवसंरचना की
भागीदारी, फोरेक्स लाभ, निजी सेवा प्रदाताओं द्वारा ब्याज से आय के साथ-साथ
निवेश की बिक्री जैसे विभिन्न स्तरों पर टैक्स से बचने के लिए भी गड़बड़झाले
करने में ये कंपनियां पीछे नहीं रही।