गुरुवार, 31 मार्च 2016

दूरसंचार कंपनियों ने लगाई 45 हजार करोड़ की चपत!


कैग की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
यूपीए शासनकाल में जमकर हुआ नियमों का उल्लंघन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपीए शासनकाल में 176 करोड़ रुपये के चर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कारण जहां मनमोहन सरकार चौतरफा कटघरे में खड़ी नजर आई तो वहीं दूसरी ओर देश की शीर्ष छह निजी दूरसंचार कंपनियां भी सभी नियमों को ताक पर रखकर सरकारी खजाने को ऐसे कुतरती रही, कि तीन साल के भीतर सरकार को करीब 45 हजार करोड़ रुपये की चपत लगाकर बड़ा मुनाफा कमाने में सफल रही।
यह खुलासा इसी माह संपन्न हुए बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिनों में संसद में पेश हुई कैग की रिपोर्ट में सामने आया। मसलन सरकार को 45 हजार करोड़ का चूना लगाने वाली इन छह शीर्ष निजी दूरसंचार कंपनियों में रिलायंस कम्यूनिकेशन, एयरटेल,वोडाफोन, आइडिया, टाटा और एयरसैल के नाम शामिल है, जिन्होंने मिलकर वर्ष वर्ष 2006-07 से 2009-10 के दौरान टेलीकॉम के नियमों को जमकर उल्लंघन करते हुए बड़ा मुनाफा कमाया। कैग के अनुसार इन कंपनियों ने डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर व एजेंटों को दिए गए कमीशन की राशि को हटाकर ‘जीआर’ यानि ग्रॉस रेवेन्यू और ‘एजीआर’ यानि एनुअल ग्रॉस रेवेन्यू को कम करके दर्शाया, जबकि नियमानुसार केंद्र सरकार को दिए जाने वाले कर में डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर व एजेंटों को दिये जाने वाले कमीशन को भी जीआर और एजीआर में शामिल करना जरूरी था। मसलन यह सरकार के साथ राजस्व साझेदारी में आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि जीआर और एजीआर में कंपनी द्वारा किसी भी प्रकार का राजस्व छुपाना या कम दर्शाना टेलीकॉम लाइसेंस के खिलाफ ही नहीं, बल्कि नियमों का खुला उल्लंघन भी है, लेकिन खुलासे में यह बात सामने आई कि कंपनियों ने ऐसा माना कि डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर और एजेंटों को भुगतान किया गया कमीशन मार्केटिंग एक्सपेंसेस का ही हिस्सा हो। कैग रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को 5672.65 करोड़ रुपए की चपत लगाते हुए कंपनियों ने इसे रियायत राशि पर गैरकानूनी ढंग से सेव किया है। इसमें लाइसेंस फीस का 487.09 करोड़ एवं ‘एसयूसी’ यानि स्पैक्ट्रम यूस्ड क्रेडिट का 203.38 करोड़ रुपए का भी कम भुगतान हुआ है। इसके अलावा कंपनियों द्वारा जनता को समय-समय पर ‘फ्री टॉक टाइम’ जैसी योजनाओं का लाभ दिया गया, लेकिन बदले में सरकार को इसकी कोई रकम अदा ही नहीं की गई। ऐसी योजनाओं को जीआर व एजीआर में शामिल न करके सरकार के समक्ष झूठे आंकड़े पेश किए गए। इन्हीं तरीकों से कंपनियों ने पोस्टपेड ग्राहको को दी गई रियायत, रोमिंग सेवाओं में छूट, अवसंरचना की भागीदारी, फोरेक्स लाभ, निजी सेवा प्रदाताओं द्वारा ब्याज से आय के साथ-साथ निवेश की बिक्री जैसे विभिन्न स्तरों पर टैक्स से बचने के लिए भी गड़बड़झाले करने में ये कंपनियां पीछे नहीं रही।

सड़क हादसों में मददगार को तंग नहीं करेगी पुलिस

सुप्रीम कोर्ट ने सुनाया ऐतिहासिक फैसला
केंद्र सरकार के जारी दिशानिर्देशों को दी मंजूरी 
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में अब सड़क दुर्घटना में जख्मी लोगों को मदद करने और अस्पताल पहुंचाने वाले लोगों को अब पुलिस या अन्य कोई भी अधिकारी जांच के नाम पर परेशान या कानूनी प्रक्रिया का हिस्सा नहीं बना सकेगा। सुप्रीम कोर्ट ने बुधवार को केंद्र सरकार के जारी दिशानिर्देशों पर मुहर लगाते हुए ऐसा एक महत्वपूर्ण आदेश जारी किया है।
सुप्रीम कोर्ट में बुधवार को न्यायाधीश वी गोपाला गौड़ा और न्यायाधीश अरूण मिश्रा की पीठ ने अपने ऐतिहासिक फैसले में केंद्र सरकार से कहा कि वह मुसीबत के समय दूसरों की मदद करने वाले नेक लोगों को कोई अधिकारी प्रताड़ित न कर सके इसका प्रचार कराए, ताकि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने के डर को दूर किया जा सके। मसलन सुप्रीम कोर्ट के आदेश के अनुसार अब सड़क दुर्घटना में घायलों की मदद करने वाले नेक लोगों को अब पुलिस न तो तंग करेगी और न ही उन्हें कानूनी झंझटों से दो-चार होना पड़ेगा। गौरतलब है कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा पूर्व न्यायाधीश के एस. राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों के आधार पर केंद्र सरकार ने पिछले साल सितंबर में ही इस दिशा में दिशानिर्देश जारी कर एक अधिसूचना जारी की थी। समिति की सिफारिश में कहा गया था कि सड़क दुर्घटनाओं के पीड़ितों की जिंदगी बचाने वाले लोगों को पुलिस या अन्य अधिकारियों द्वारा प्रताड़ित किए जाने से डरने की जरूरत नहीं है। इस समिति में सड़क परिवहन मंत्रालय के पूर्व सचिव एस सुंदर और पूर्व प्रमुख वैज्ञानिक निशी मित्तल भी शामिल थीं।
ये थी कोर्ट समिति की सिफारिशें
सुप्रीम कोर्ट की पूर्व न्यायाधीश केएस राधाकृष्णन की अध्यक्षता वाली गठित तीन सदस्यीय समिति की सिफारिशों में राज्य सड़क सुरक्षा परिषदें गठित करने, अंधियारे स्थानों की पहचान का प्रोटोकॉल विकसित करने, उन्हें हटाने और उठाए जाने वाले कदमों के प्रभाव की निगरानी आदि करना शामिल था। यही नहीं समिति ने शराब पीकर या तेज गति में वाहन चलाने, लाल बत्ती पार करने और हेल्मेट या सीट बेल्ट के नियम तोड़ने के खिलाफ कड़ी कार्रवाई का भी सुझाव दिया था। गौरतलब है कि विधि आयोग ने अपनी रिपोर्ट में यह माना है कि सड़क दुर्घटना में मौत की सबसे बड़ी वजह उचित तथा समय पर इलाज न मिलना है। रिपोर्ट में यह भी कहा गया है कि यदि दुर्घटना के एक घंटे के भीतर इलाज मिले तो मौत का आंकड़ा कम हो सकता है।

बुधवार, 30 मार्च 2016

राष्ट्रपति शासन बढ़ा सकता है केंद्र की मुश्किलें!

राज्यसभा में पास कराना आसान नहीं: विशेषज्ञ
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तराखंड में केंद्र सरकार द्वारा राष्ट्रपति शासन लागू कराने की जल्दबाजी उसके लिए मुश्किलों का सबब बन सकती है, जिसे राज्यसभा में पारित कराना सरकार के लिए आसान काम नहीं है। संविधान विशेषज्ञों की माने तो राज्य में केवल राष्ट्रपति शासन लागू हुआ है और विधानसभा और कांग्रेस के बागी विधायक केवल निलंबित हैं, इसलिए राज्य में बहुमत जुटाने वाले राजनीतिक दलों के सामने सरकार बनाने का विकल्प खुला है।
केंद्र सरकार को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू करने की जल्दबाजी को नैनीताल हाई कोर्ट के ताजा फैसले ने झटका दिया है। उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू कराने वाले केंद्र सरकार के फैसले पर संविधान विशेषज्ञों का मानना है कि राष्ट्रपति की राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने वाले फैसले में विधानसभा केवल निलंबित की गई है, वहीं उत्तराखंड के स्पीकर ने कांग्रेस के बागी नौ विधायकों को दल-बदल कानून के तहत निलंबित किया है तो राज्य में भाजपा या कांग्रेस के पास बहुमत जुटाने के साथ सरकार गठन करने का विकल्प खुला है। जहां तक राष्ट्रपति शासन को संसद की मंजूरी लेने का सवाल है उसके बारे में संविधान विशेषज्ञ एवं राज्यसभा के पूर्व महासचिव डा. योगेन्द्र नारायण का कहना है कि किसी भी राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू होने की स्वीकृति छह सप्ताह के भीतर संसद से लेनी होती है। चूंकि बजट सत्र का दूसरे चरण 25 अप्रैल से शुरू हो रहा है और इस दौरान इस प्रस्ताव को सरकार पारित कराने का प्रयास करेगी। उनका कहना है कि लोकसभा में सरकार को इस प्रस्ताव को पारित कराना आसान है, लेकिन राज्यसभा में सरकार के पास पर्याप्त संख्या बल न होना उसके लिए मुश्किलें खड़ी कर सकता है और ऐसे में सरकार को उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव को वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ेगा। इसी प्रकार लोकसभा के पूर्व महासचिव एंव संविधान विशेषज्ञ पीडीटी आचारी का भी यही तर्क है कि सरकार यदि उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन की अनुमति के प्रस्ताव को दोनों सदनों में पारित न करा पाई तो इस प्रस्ताव को वापस लेकर फिर से राज्य में सरकार का गठन कराना होगा। आचारी का मानना है कि ऐसा शायद पहली बार होगा कि राज्यसभा में राष्ट्रपति शासन की सिफारिश वाला प्रस्ताव अटक सकता है। ऐसे में एक ही रास्ता बचता है कि इस मुश्किल से बचने के लिए केंद्र सरकार के पास एक ही रास्ता बचता है कि वह उत्तराखंड में सरकार बना बहुमत साबित कराए।

मंगलवार, 29 मार्च 2016

जल को कानूनी दायरे में लाएगी सरकार!

कानूनी मसौदा तैयार करने में जुटा जल संसाधन मंत्रालय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार ने जल संकट से जूझते भारत में ताजा और शुद्ध पेयजल के समुचित इस्तेमाल के लिए जल्द ही जल कानून लाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए सरकार एक मसौदा तैयार करने में जुट गई है। मसलन इससे पहले दम तोड़ चुकी यूपीए की मनमोहन सरकार की कानून लाने की कवायद को अब अमलीजामा पहनाने के प्रयास शुरू हो गये हैं।
नई दिल्ली में आगामी चार अप्रैल से शुरू होने जा रहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के चौथे भारतीय जल सप्ताह समारोह में लोगों को ताजा और शुद्ध पेयजल के इस्तेमाल को सीमित करने पर फोकस करते हुए अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के बीच मंथन होने की उम्मीद है। इससे पहले केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षा मंत्री सुश्री उमा भारती ने मंत्रालय में सचिव शशि शेखर के साथ खासकर भू-जल दोहन रोकने के एक सवाल के जवाब में कहा है कि मंत्रालय में विशेषकर ताजा जल के इस्तेमाल को सीमित करने पर एक मसौदे पर काम चल रहा है, जिसका मकसद देश में जल कानून को लागू करना है। उमा भारती का तर्क है कि जल संरक्षण और उपयोग के सामान्य सिद्धांतों को लेकर एक ऐसा व्यापक पंहुच वाला राष्ट्रीय कानूनी ढांचा बनाने की जरूरत है, जो हर राज्य को जल संचालन का आवश्यक विधायी आधार प्रदान करें। कानूनी पहल से ही देश के पैमाने पर एकीकृत और सुसंगत संस्थागत जल नीति को लागू करने में मदद मिल सकेगी। उमा भारती का कहना है कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भूमिगत जल या संरक्षित वर्षा जल पर जोर दे रहे हैं। यही कारण है कि सरकार के बजट में आजादी में पहली बार भूजल के स्तर को सुधारने की दिशा में छह हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो पिछले साल केवल 60 करोड़ रुपये था। उमा भारती ने हालांकि कहा कि भारतीय संविधान के तहत पानी का मामला राज्य सरकारों के अधीन आता है, लेकिन राज्यों की सहमति हासिल करने के बाद ही केंद्र सरकार मसौदे को कानूनी दर्जा देने के लिए आगे बढ़ेगी। सरकार इजरायल जैसे देशों की तर्ज पर देश के किसानों से सिंचाई के लिए मशीनों से साफ किए गए पानी के इस्तेमाल करने पर भी बल दे रही है। मौजूदा कानून भूमि के मालिकों को अपनी भूमि से जितना चाहे जल निकालने का अधिकार देते हैं। जल निकालने की सीमा के लिए कोई कानून नहीं हैं, जबकि इसकी जरूरत महसूस की जा रही है।
क्या है देश में जल की स्थिति
केंद्रीय जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार विश्व की आबादी का 18 फीसदी से ज्यादा आबादी होते हुए भी भारत में विश्व के नवीकरणीय जल संसाधन का महज 4 फीसदी ही है। यही नहीं जल के असमान वितरण के कारण उपयोग योग्य जल की मात्रा और भी ज्यादा सीमित नजर आती है। वहीं बढ़ती आबादी और तेजी से विकसित हो रहे राष्ट्र की बढ़ती जरूरतों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के असर के कारण उपयोग योग्य जल की उपलब्धता पर दबाव और बढ़ जाने का अन्देशा बना हुआ है।

उत्तराखंड के बाद मणिपुर में बढ़ी कांग्रेस की मुश्किलें

राज्य की कांग्रेस सरकार में विद्रोह की सुगबुगाहट शुरू
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लगने के बाद मणिपुर में भी कांग्रेस सरकार के सामने राजनीतिक संकट की सुगबुगाहट शुरू हो गई है, जहां कांग्रेस के 25 असंतुष्ट विधायक मुख्य मंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ आवाज बुलंद करते नजर आ रहे हैं। इसी प्रकार हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह भी ऐसी स्थिति के लिए हलकान नजर आए, जिन्होंने कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करके राजनीतिक स्थिति पर चर्चा की।
दरअसल भाजपा की ओर से बार-बार देश को कांग्रेसमुक्त बनाने के लिए आ रहे बयानों के बाद पहले अरुणाचल प्रदेश और फिर उत्तराखंड में राजनीतिक संकट के चलते कांग्रेस को संकट के दौर से गुजरना पड़ रहा है। एक दिन पहले ही उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद केंद्र सरकार और कांग्रेस के बीच जंग और तेज हो गई है। लेकिन दूसरी ओर कांग्रेस की मणिपुर के राजनीतिक संकट को लेकर चिंताओं के बीच मुश्किलें बढ़ती नजर आ रही है। हालांकि कांग्रेस हाईकमान उत्तराखंड से सबक लेते हुए अब मणिपुर के प्रति सतर्कता बरत रही है। इसका कारण साफ है कि उत्तराखंड के बाद अब मणिपुर में राजनीतिक संकट गहरा सकता है, क्योंकि 60 सदस्यीय मणिपुर विधानसभा में 47 में से कांग्रेस के 25 असंतुष्ट विधायक मुख्यमंत्री ओकराम इबोबी सिंह के खिलाफ मोर्चा खोलकर भाजपा में शामिल होने तक की धमकी दे रहे हैं। इन बागी विधायकों ने राज्य के कुछ मंत्रियों को हटाए जाने को लेकर विरोध जताते हुए मांग की है कि मुख्यमंत्री बागी विधायकों को भी मंत्रिमंडल में शामिल करके विस्तार करें। इस प्रकरण पर कांग्रेस हाईकमान ने इबोबी सिंह को दिल्ली बुलाया था और बागियों के साथ समझौता करने के संकेत दिये गये हैं, लेकिन अरुणाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कांग्रेस के हुए राजनीतिक पतन के मद्देनजर कांग्रेस हाईकमान मणिपुर में ऐसे विवाद से निपटना चाहती है। हालांकि मणिपुर के प्रभारी महासचिव वी नारायणसामी का मणिपुर में मुद्दों को सुलझाने का दावा किया जा रहा है। गौरतलब है कि 2014 के आम चुनाव के दौरान नरेंद्र मोदी ने कांग्रेस मुक्त भारत की बात की थी, जिसकी शुरूआत हो चुकी है। ऐसे में कांग्रेस का हलकान होना स्वाभाविक है।
हिमाचल प्रदेश भी हलकान
उत्तराखंड में कांग्रेस के नौ विधायकों की बगावत के बाद बीती रात ही राष्ट्रपति शासन लागू हो गया है, तो ऐसी ही स्थिति से दो-चार होने से पहले तथाकथित भ्रष्टाचार के चक्रव्यूह में फंसे हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने आज सोमवार को नई दिल्ली आकर सीधे कांग्रेस अध्यक्ष सोनिया गांधी से मुलाकात करके राज्य के राजनीतिक हालातों पर चर्चा की, जो पहले ही आरोप लगा चुके हैं कि केंद्र सरकार उनकी सरकार गिराने के प्रयास में है। गौरतलब है कि हिमाचल प्रदेश के मुख्यमंत्री वीरभद्र सिंह ने भाजपा और उसके नेतृत्व वाली केंद्र सरकार पर आरोप लगाया था कि वह राज्यों की कांग्रेस सरकार गिराने का प्रयास कर रही है। उन्होंने एक दिन पहले एक जनसभा के दौरान यह आरोप लगाते हुए कहा कि केंद्र सरकार की नजरें हिमाचल सरकार गिराने पर टिकी हुई है। इसके लिए केंद्र सरकार विभिन्न जांच एजैंसियों का सहारा ले रही है। हिमाचल विधानसभा की 68 सीटों में 36 सीटों के साथ कांग्रेस सत्ताा में है, जबकि भाजपा के 26 और छह निर्दलीय विधायक हैं। मसलन उत्तराखंड दोहराने की संभावनाओं से इंकार नहीं किया जा सकता।

सोमवार, 28 मार्च 2016

उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू


विधानसभा निलंबित: सरकार बनाने का विकल्प खुला
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
उत्तराखंड में पिछले सप्ताह से जारी सियासी घमासान के कारण पल पल बदल रहे सियासी समीकरणों के बीच रविवार को राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू कर दिया गया है, वहीं उत्तराखंड विधानसभा को भंग नहीं, बल्कि निलंबित किया गया है। मसलन मसलन यदि कोई पार्टी सरकार बनाने के लिए बहुमत जुटाती है तो राज्यपाल राज्य में दोबारा सरकार बनाने के प्रस्ताव पर विचार कर सकते हैं।
उत्तराखंड में पिछले सप्ताह से जारी सियासी घमासान खत्म होने का नाम नहीं ले रहा है, जिसमें रविवार को उस समय नया मोड़ आ गया, जब केंद्र सरकार की राष्ट्रपति शासन के लिए की गई सिफारिश को राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी ने संविधान के अनुच्छेद 356 के तहत हस्ताक्षर करके मंजूर कर लिया। वहीं उत्तराखंड विधानसभा को भंग करने के बजाए निलंबित कर दिया है। दरअसल उत्तराखंड में राजनीतिक संकट के बीच ही विधानसभा स्पीकर द्वारा कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को अयोग्य करार देने के बाद केंद्र सरकार ने शनिवार देर रात कैबिनेट की बैठक बुलाकर राज्य में राष्ट्रपति शासन के प्रस्ताव पारित कर उसे मंजूरी देकर राष्ट्रपति को भेज दिया था, जिसे रविवार को राष्ट्रपति ने मंजूर कर लिया, लेकिन राष्ट्रपति ने विधानसभा भंग नहीं की, लेकिन निलंबित कर दिया है। जबकि सोमवार विधानसभा में कांग्रेस के मुख्यमंत्री हरीश रावत के विश्वास मत परीक्षण करना था, कि उससे पहले ही राज्य में राष्ट्रपति शासन लागू करने का फैसला सामने आ गया।
राज्यपाल के पाले में गेंद
उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन लागू होने के बाद बने संवैधानिक हालातों पर आगे का फैसला अब राज्यपाल केके पॉल को करना है। ऐसे मौजूदा हालात में राज्य में तीन विकल्पों की संभावनाएं नजर आ रही हैं, जिन्हें राज्यपाल अपने संवैधानिक अधिकारों का इस्तेमाल करके अमलीजामा पहना सकते हैं। 
पहली संभावना-चूंकि विधानसभा निलंबित की गई है, इसलिए राज्यपाल केके पॉल दूसरी बड़ी पार्टी यानी भाजपा को बहुमत साबित करने के लिए सरकार बनाने का न्यौता देकर मौका दे सकते हैं। 
दूसरी संभावना-विधानसभा को भंग करके अगले चुनाव का रास्ता भी साफ किया जा सकता है। 
तीसरी संभावना-उत्तराखंड विधानसभा का कार्यकाल पूरा होने तक यानी अगले साल भर तक उत्तराखंड में राष्ट्रपति शासन रखा जाए और उसके बाद अगले चुनाव पर फैसला लिया जाए।
बागियों पर फैसले से बिगड़ा गणित
उत्तराखंड विधानसभा अध्यक्ष गोविंद सिंह कुंजवाल ने कांग्रेस के नौ बागी विधायकों को दल-बदल विरोधी कानून के तहत अयोग्य करार घोषित कर दिया। कांग्रेस के इन नौ विधायकों को अयोग्य ठहराने के फैसले से 70 सदस्यीय विधानसभा में सदस्यों की प्रभावी संख्या 61 रह जाती है। ऐसे में सत्तापक्ष यानि हरीश रावत के पास विधानसभाध्यक्ष समेत 27 कांग्रेस विधायक होंगे, जबकि भाजपा के पास में भी 27 विधायक हैं, ऐसे में भाजपा या कांग्रेस को दो-दो बसपा और निर्दलीय तथा उक्रांद के एक विधायक का समर्थन मिलता है तो उनकी संख्या 32 तक पहुंच सकती है। भाजपा और कांग्रेस दोनों ही इन पांचों विधायकों के समर्थन का दावा कर रहे हैं,लेकिन इसके लिए राज्यपाल के समक्ष सूची पेश करके परेड कराने की प्रक्रिया ही तय कर सकेगी कि किसके पास बहुमत है या नहीं।
सुप्रीम कोर्ट जा सकते हैं बागी विधायक
उत्तराखंड में विधानसभा स्पीकर के बागी हुए कांग्रेस के नौ विधायकों को अयोग्य करार दिये जाने पर भले ही उनके वकील ने रविवार को स्पीकर के समझ अपना पक्ष रखा हो, लेकिन इस फैसले पर बागी विधायकों ने कहा कि वे अपने निलंबन के खिलाफ सु्प्रीम कोर्ट में याचिका दायर करेंगे। विधायकों का कहना है कि उन्होंने अपनी पार्टी के खिलाफ कभी कोई काम नहीं किया है। वे सिर्फ मुख्यमंत्री हरीश रावत का विरोध कर रहे हैं।

रविवार, 27 मार्च 2016

राग दरबार:- फॉर्च्यून से 'मौंगेबो' खुश हुआ

अरंविद केजरीवाल का अहंकार
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर मैगजीन फॉर्च्यून हर साल दुनिया भर के नेताओं की लोकप्रियता के आधार पर नेताओं की क्रमवार सूची जारी करती है, इस बार ताजा सूची में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरंविद केजरीवाल का भी 50 महान लीडर्स में नाम है और इस सूची से पीएम मोदी का नाम नदारत है तो केजरीवाल की दोगुना हुई खुशियों का कोई ठिकाना नहीं है। दरअसल केजरीवाल ऐसे मामलों में ज्यादा उत्साहित नजर आते हैं जब मोदी के मुकाबले वह अपने सियासी कद को बढ़ता देखते हैं। मसलन एक फिल्म के उस डॉयलॉग की याद ताजा होना लाजिमी है जिसमें अमरीशपुरी कहते नजर आते हैं कि मोंगेबो खुश हुआ...। यही हाल सुर्खियों में बने रहने की ललक पाले आप नेता अरविंद केजरीवाल का है जो हमेशा अपनी तुलना पीएम मोदी से किये बिना रह नहीं सकता, जिसने लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी से बनारस में चुनावी मुकाबला करने का प्रयास किया। राजनीतिक गलियारों में अरविंद केजरीवाल की छवि भले ही किसी रूप में उतरी हो, लेकिन हाल ही में फॉर्च्यून की दुनियाभर के 50 महान नेताओं की लिस्ट में आने से केजरीवाल बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं, दूसरे मोदी ने उनके इस उत्साह को ट्विीटर पर फालो करके सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। केजरीवाल शायद इस उत्साह में यह भूल गये कि पिछले साल दुनियाभर के महान नेताओं की सूची में पीएम मोदी पांचवे स्थान पर थे और उनका स्थान 42वां हैं, फिर भी आॅड-ईवन फार्मूले ने उसे कम से कम इसमें सूचीबद्ध तो कर ही दिया, भले ही सियासी गलियारे में चर्चाएं कुछ भी होती रहें।
विपक्षी दलों की गुगली
जम्मू-कश्मीर में जैसे-जैसे पीडीपी और भाजपा के बीच सरकार बनाने के लिए बात आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे कांग्रेस, वामपंथी दलों और आम आदमी पार्टी के नेता खुश हो रहे हैं। दरअसल अफजल गुरू और राष्टÑवाद के मुद्दे पर भाजपा अपने विरोधी दलों पर भारी पड़ती रही है। जेएनयू के मुद्दे ने तो ऐसा रंग पकड़ा था कि भाजपा ने हर उस पार्टी और नेता को देशभक्ती का पाठ पढ़ाने में देर नहीं की जो कन्हैया कुमार और उमर खालिद की तरफदारी कर रहा था। लेकिन अब भाजपा से विरोधी पार्टियां पूछने लगी हैं कि जिस पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बना रहे हो, उसकी अफजल गुरू और भारत माता के बारे में क्या राय है? जाहिर है भाजपा के पास इसका कोई तर्कसंगत जवाब नहीं होगा। हर कोई जानता है कि पीडीपी अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ थी और उसको बेकसूर मानती है। ऐसे में कांग्रेस और दूसरे कई दल जो भाजपा के खिलाफ हैं अब जानना चाहते हैं कि पीडीपी के साथ सरकार का गठन भाजपा के लिए राष्ट्रवाद है या राष्ट्र विरोध। देखते हैं आने वाले दिनों में भाजपा के प्रवक्ता विपक्षी दलों के सवालों की गुगली को कैसे झेलते हैं।

शनिवार, 26 मार्च 2016

जल संकट :भारत को रास अाई इजराइल की तकनीक

भारत में बाढ़ और सूखे की स्थिति से निपटने तैयारी
4 अप्रैल से अंतर्राष्ट्रीय 'भारत जल सप्ताह' में होगा मंथन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
दुनिया में पानी को लेकर बन रही भयावह स्थिति से निपटने के लिए हरेक देश जल संरक्षण की दिशा में तकनीक का सहारा लेने का प्रयास कर रहा है। खासकर भारत में बाढ़ और सूखे की स्थिति से निपटने के लिए सरकार की कई परियोजनाएं पटरी पर है, लेकिन भारत को जल संरक्षण की दिशा में इजराइल की तकनीक ज्यादा रास आ रही है, जिसके सहारे देश में बाढ़ और सूखे से निपटने की तैयारी हो रही है।
दरअसल यहां नई दिल्ली में आगामी चार से आठ अप्रैल तक अंतर्राष्टÑीय स्तर पर ‘वाटर फॉर आल-स्ट्रीविंग टोगेदर’ यानि 'सबको—पानी एक साथ प्रयास' थीम पर आयोजित चौथे भारत जल सप्ताह में देश विदेश के करीब 1500 प्रतिनिधि शिरकत करेंगे,। इस आयोजन में इजराइल साझीदार देश के रूप में शामिल है। जबकि गुजरात, कर्नाटक, महाराष्ट्र, राजस्थान और तेलंगाना राज्यों की साझेदारी भी महत्वपूर्ण रहेगी। केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती का कहना है कि सरकार का प्रयास है कि सबको पानी मिले और किसानों की सिंचाई के लिए पानी पर्याप्त मात्रा में मुहैया हो, इसके लिए इजराइल की तकनीक से सबक लेना जरूरी होगा, जहां गंदे पानी को साफ करके उसे खेती की सिंचाई में इस्तेमाल किया जाता है। उमा भारती ने कहा कि इस समारोह का उद्घाटन चार अप्रैल को केंद्रीय वित्त मंत्री अरुण जेटल और समापन आठ अप्रैल को राष्टÑपति प्रणब मुखर्जी करेंगे। उमा भारती ने सरकार के प्रयासों की जानकारी देते हुए कहा कि देश में जल संरक्षण और पानी दोहन को लेकर नदियों और अन्य जल संबन्धी निकायों के प्रति संवेदना के साथ लोगों में जागरूता के जरिए परिवर्तन लाने का प्रयास किया जा रहा है। जल संबन्धी प्रौद्योगिकियों, नवीनतम विकास और समाधान कृषि और सिंचाई, जल आपूर्ति और ऊर्जा उत्पादन क्षमता में सुधार के लिए इस आयोजन में देश-विदेश के प्रतिनिधियों के साथ विचार-विमर्श करने का यही मकसद होगा। इस आयोजन में अफ्रीकी देशों समेत करीब दो दर्जन देशों के प्रतिनिधि भी हिस्सा लेंगे।
वाटर एक्सपो
इस समारोह के तहत प्रगति मैदान में कृषि और सिंचाई क्षेत्र में सतत विकास के लिए जल प्रबंधन के उपलब्ध उपायों और हालिया विकास, ग्रामीण और शहरी क्षेत्रों में पेयजल आपूर्ति, औद्योगिक जल के उपयोग और विभिन्न तकनीकी को दर्शातो हुए प्रदर्शनी का भी आयोजन होगा। इस प्रदर्शनी से प्रदर्शकों को विभिन्न देशों के जल संसाधन क्षेत्र से जुड़े पेशेवरों तक व उत्पाद और सेवाएँ पहुँचाने के लिए एक प्रकार से नेटवर्किंग के अवसर उपलब्ध होंगे।

बुधवार, 23 मार्च 2016

राज्यसभा में निर्मूल साबित हुआ उलटफेर!

छह राज्यों की 13 सीटों के नतीजे
एक सीट के घाटे में भाजपा, कांग्रेस व जदयू को बढ़त
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
राज्यसभा में अगले माह छह राज्यों की रिक्त होने वाली 13 के लिये चुनाव प्रक्रिया पूरी होने पर जो तस्वीर उभरकर आई है, उसमें जिस तरह के उलटफेर होने की उम्मीदें की जा रही थी, वे पूरी तरह से निर्मूल साबित हुई। इसके विपरीत उच्च सदन की फिलहाल जो दलीय स्थिति सामने आई है, उसमें भाजपा को हिमाचल की एक सीट गंवानी पड़ी, तो वहीं वामदलों के तालमेल से केरल में जनतादल-यू ने अपना कुनबा बढ़ा लिया है। हालांकि भविष्य में उच्च सदन की रिक्त होने वाली सीटों पर सत्तापक्ष का पलटा भारी होना तय माना जा रहा है।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने अगले महीने उच्च सदन में छह राज्यों की खाली होने वाली 13 सीटों के लिए मतदान प्रक्रिया की औपचारिकताएं पूरी कराई, जिसमें असम की दो सीटों पर हुए चुनाव में एक सीट पर भाजपा की उम्मीदें टिकी हुई थी, लेकिन कांग्रेस ने प्रत्याशियों के चेहरे बदलकर उन्हें अपने कब्जे से निकलने नहीं दिया। मसलन असम से अब पंकज बोरा व नाजिन फारूख के स्थान पर कांगे्रस के रिपुन बोरा और राने नाराह नजर आएंगी, जिन्होंने उद्यमी महाबीर प्रसाद जैन को शून्य पर दौड़ से बाहर कर दिया। इसके अलावा अन्य सीटों पर सभी उम्मीदवार निर्विरोध चुनकर राज्यसभा में दाखिल होने वाले हैं। सोमवार को त्रिपुरा की सत्ताधारी पार्टी माकर्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी की झरना दास वैद्य ने भी कांग्रेस के ज्योतिर्मय नाथ को हराकर एक बार फिर राज्यसभा में वापसी कर ली है। जबकि दो अप्रैल को अपना कार्यकाल पूरा कर रही भाजपा की बिमला कश्यप के स्थान पर पहले ही कांग्रेस के आनंद शर्मा ने हिमाचल प्रदेश की सीट निर्विरोध हासिल करके उच्च सदन में वापसी कर ली है। केरल की तीन सीटों में कांग्रेस के एके एंटोनी के अलावा वामदलों की दो सीटों में एक सीपीएम के के. सोमप्रकाश तथा दूसरी जद-यू के एमपी वीरेन्द्र कुमार निर्विरोध राज्यसभा में दाखिल हुए। नागालैंड की खेकिहो झिमोनी के निधन से रिक्त सीट पर एनपीएफ के केजी केन्यी भी निर्विरोध चुने गये।
पंजाब से तीन नए चेहरे
उच्च सदन में आगामी नौ अप्रैल को रिक्त होने वाली पांच सीटों में कांग्रेस व शिरोमणि अकाली दल की दो-दो तथा भाजपा की एक सीट बरकरार रही। इसके लिए चुनाव प्रक्रिया में कुछ बदला है तो कांग्रेस और भाजपा ने चेहरे बदले हैं। मसलन भाजपा ने रिटायर हो रहे अविनाश खन्ना के बजाय श्वेता मलिक, तो कांग्रेस ने पूर्व मंत्री अश्विनी कुमार और मनोहर सिंह गिल के स्थान पर प्रताप सिंह बाजवा तथा प्रताप सिंह दूलो को राज्यसभा में निर्विरोध राज्यसभा में दाखिल किया है। जबकि शिरोमणि अकाली दल के सुखदेव ढींढसा और नरेश गुजराल की फिर से राज्यसभा में वापसी कराई है।

मंगलवार, 22 मार्च 2016

सवा साल में नहीं मिला एक भी गायब विदेशी नागरिक!

भारत में अवैध तरीके से छिपें 30 हजार विदेशी
पाकिस्तानी व श्रीलंकाई नागरिकों ने बढ़ाई चिंता
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में वीजा के जरिए आए तीस हजार से भी ज्यादा विदेशी नागरिक देश में कहीं न कहीं अवैध ठिकाना बनाकर रह रहे हैं, जिन्हें सरकार की खुफिया और अन्य एजेंसियां तलाशने में दिन-रात एक कर रही हैं, लेकिन अभी भी देश में 42 देशों के ऐसे करीब 28 हजार से भी ज्यादा विदेशी नागरिक अवैध तरीके से भारत के विभिन्न राज्यों में डटे हुए हैं।
गृह मंत्रालय ने इस बात को स्वीकारा है कि बांग्लादेशियों के नागरिकों के अवैध प्रवास पर तो दोनों देशों के बीच सीमा-समझौते के बाद अंकुश लगा है, लेकिन इस समेत 42 देशों से वीजा के जरिए भारत आए तीस हजार से ज्यादा लोग समयावधि समाप्त होने के बावजूद वापस अपने वतन नहीं गये हैं। दिलचस्प पहलू यह है कि पिछले करीब पन्द्रह माह पहले ऐसे विदेशी नागरिकों के जो आंकड़े सरकार के पास थे, उनमें से एक भी विदेशी नागरिक का कोई सुराग नहीं लग सका है, लेकिन ऐसे नागरिकों के राज्यवार आंकड़े एकत्र करके उनके खिलाफ कार्रवाही करने की प्रक्रिया जारी है। इनमें करीब साढ़े चार हजार नागरिक तो पाकिस्तानी बताए जा रहे हैं, जिसके बाद करीब 3900 नागरिक श्रीलंका और फिर खाड़ी देशों के नागरिक भारतीय जमीन पर जमे हुए हैं। सूत्रों के अनुसार करीब दो हजार विदेशी नागरिक तो ऐसे हैं जिनके देशों की पहचान भी नहीं हो पायी है। दरअसल यह मुद्दा हाल में संपन्न हुए बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन भी संसद में उठा था, तो सरकार ने उम्मीद जताई थी कि ऐसे विदेशी नागरिकों का पता लगाने के लिए स्थानीय अभिसूचना ईकाईयों को सख्त दिशानिर्देश जारी कर दिये गये हैं, जो अपने-अपने राज्यों में कार्यवाही कर रहे हैं। गृह मंत्रालय के सूत्रों की माने तो भारत में अवैध रूप से प्रवास कर रहे विदेशी नागरिकों का मौजूदा यह आंकड़ा हालांकि इससे भी कहीं ज्यादा हो सकता है, लेकिन वीजा नियमों का उल्लंघन करके भारत में कहीं न कहीं चोरी-छिपे रह रहे 42 देशों के 28 से ज्यादा की पुष्टि की जा चुकी है।

सोमवार, 21 मार्च 2016

पहली बार ईवीएम में होगा ‘टोटलराइज’ बटन


पांच राज्यों के विधानसभा चुनाव पर सतर्क चुनाव आयोग
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
अगले महीने से देश के पांच राज्यों में होने वाले विधानसभा चुनावों में नई व्यवस्था के जरिए निष्पक्ष और स्वतंत्र बनाने की तैयारी में जुटे केंद्रीय चुनाव आयोग पूरी तरह से सतर्क है। पहली बार मतगणना के लिए ईवीएम में ‘टोटलराइज’ बटन का इस्तेमाल करके मतगणना में गड़बड़ी के उठते आ रहे सवालों की गुंजाईश को खत्म करने की पहल की जा रही है।
केंद्रीय चुनाव आयोग ने चुनाव सुधार की दिशा में बिहार के बाद अप्रैल-मई में होने वाले पश्चिम बंगाल, असम, केरल, तमिलनाडु और पुडुचेरी में होने वाले विधानसभा चुनाव नई व्यवस्था के तहत कराने का फैसला किया है। दरअसल मतगणना के दौरान परिणाम आने के बाद कई बार गड़बड़ी होने की आशंका को लेकर पुनर्मतगणना की मांग होती देखी गई है। चुनाव आयोग ने ऐसी आशंका को दूर करने के लिए ईवीएम में ‘टोटलराइज’ बजट लगाने का फैसला किया है। इस फैसले को अंजाम देने से पहले चुनाव आयोग ने सभी राजनीतिक दलों के साथ विचार विमर्श करके उनके सामने इलेक्ट्रिन वोटिंग मशीन में मतों की गणना के लिए 'टोटलाइजर' बटन का इस्तेमाल भी करके दिखाया। इस बैठक के दौरान आयोग ने सभी राजनीतिक दलों से चुनाव मैदान में खड़े हो रहे उनके प्रत्याशियों के आय के स्रोत को सार्वजनिक करने तथा जमानत राशि को बढाने जैसे मुद्दे पर विचार विमर्श करके चुनाव सुधार की दिशा में सहयोग की भी अपेक्षा की। गौरतलब है कि बिहार में विधानसभा चुनावों के दौरान लगे आरोपों प्रत्यारोपों को ध्यान में रखते हुए राजनीतिक पार्टी के प्रतिनिधियों से चुनावी रैलियों में भाषण बाजी के दौरान मानकों को बनाने पर भी बल दिया। चुनाव आयोग ने पार्टी के प्रतिनिधियों के सामने आए विभिन्न महत्वपूर्ण सुझावों को भी अमल में लाने पर विचार विमर्श करने का भरोसा दिया।
क्या होगा फायदा
चुनाव आयोग की ईवीएम में टोटेलाइजर के उपयोग का लाभ यह होगा, कि किन्हीं विशेष मतदान केंद्रों में मतदान के रूख का खुलासा नहीं होगा, क्योंकि टोटेलाइजर के माध्यम से प्रदर्शित किए गए परिणाम मतदान केंद्रों के समूह में दिए गए मतों का ही परिणाम होंगे। चुनाव आयोग के साथ बैठक के दौरान सभी 6 राष्ट्रीय दलों और 29 राज्य दलों ने ‘टोटेलाइजर’ बटन के कामकाज का प्रदर्शन पर संतोष जताया।

रविवार, 20 मार्च 2016

राग दरबार:- कन्हैया को रास नहीं केजरीवाल राह?

केजरी की  छवि पर काले बादल
दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल हर उस शख्स को पसंद करते हैं जो प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और भाजपा से अदावत रखता हो। इस मामले में अपने सभी सिद्धांतों, नैतिकता को ताक पर रखते हुए आम आदमी पार्टी के मुखिया भ्रष्टाचार से लेकर राष्ट्रद्रोह तक से आंखे बंद कर लेते हैं। अपने आपको खुद ही ईमानदारी, देशभक्ति और न जाने किस-किस खिताब देकर दुनिया की सुर्खियां बटोरने की चाह समेटे केजरीवाल ठीक उसी तरह मोदी और भाजपा को कोसने में कमी नहीं छोड़ते, जैसे कांग्रेस युवराज की मर्यादाहीन भाषा सार्वजनिक हुइै है। अन्ना हजारे के साथ दिल्ली के ऐतिहासिक रामलीला मैदान में भारत माता की जय, वंदेमातरम के नारे लगाने वाले केजरीवाल अब देशद्रोह की भाषा बोलने वालों के साथ सुर मिला रहे हैँ, लेकिन जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार के मुरीद हुए केजरीवाल को उस समय मुहं की खानी पड़ी, जब कन्हैया को उनकी राह शायद कतई रास नहीं आई। मसलन जब जेएनयू के हालिया मामले में केजरीवाल पूरी तरह से कन्हैया कुमार के रंग में रंगे नजर आये और उन्होंने टविट्र पर जेएनयू अध्यक्ष के जेल से बाहर आने के बाद दिये गये भाषण की खूब तारीफ तो की ही, वहीं केजरीवाल ने कन्हैया कुमार को मिलने का न्यौता भी दे दिया। केजरी की चर्चित छवि पर छाते नजर आ रहे काले बादलों का ही शायद यह नतीजा सामने आया कि मुख्यमंत्री जी आंखे तब खुली, जब कन्हैया कुमार तय मुलाकात के बावजूद दिल्ली सचिवालय नहीं पहुंचे और केजरीवाल उनकी राह ही ताकते रह गये। फिर क्या था अपनी परंपरागत शैली में झल्लाए केजरीवाल ने गुस्से में कन्हैया से मुलाकात रद्द करने का आदेश सुना दिया। फिलहाल मुख्यमंत्री पूरी तरह से कन्हैया से खफा हैं। इससे पहले भी केजरी के ऐसे हाईटेक नाटकों का पटाक्षेप सार्वजनिक होता रहा है। यानि बिहार चुनाव में जीत के बाद जब वे नीतीश कुमार के शपथ ग्रहण समारोह में पटना पहुंचे थे तो उन्होंने मंच पर लालू यादव से गले मिलने से देर नहीं लगाई।

देशभर के टोल प्लाजाओं बदलेगी की सूरत!


प्रशिक्षित टोलकर्मी अनिवार्य ड्रेस कोड में रहेंगे तैनात
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़कों के निर्माण के साथ वाहनों की आवाजाही आसान बनाने की दिशा में टोल प्लाजाओं पर टोल संग्रह प्रणाली को इलेक्ट्रॉनिक करने की योजना को गति दी है। वहीं सरकार के एक नये फैसले से अब देश के हर टोल पर कर्मचारी एक जैसी ड्रेस में नजर आएंगे और उनके व्यवहार के लहजे भी बदले नजर आएंगे। मसलन सरकार ने एक जैसे  ड्रेस कोड के टोलकर्मियों को शिष्टाचार और अनुशासन के दायरे में लाने की योजना को लागू कर दिया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार हाल ही में जारी एनएचआईए के एक दिशा निर्देश में कहा गया है कि देश के टोल प्लाजाओं पर आम लोगों के साथ कर्मचारियों द्वारा किये जाने वाले अभद्रव्यवहार की शिकायतों में इजाफा होने के कारण ऐसा निर्णय लिया गया है। राष्ट्रीय राजमार्गो और अन्य प्रमुख मार्गो पर आमजन की आवाजाही को सरल और सुलभ बनाने के पहले ही सरकार ने 300 इलेक्ट्रॉनिक टोल संग्रह प्रणाली को लागू करना शुरू कर दिया है। ऐसी योजनाओं में खासकर राष्ट्रीय राजमार्गो पर बने टोल प्लाजा को सीसीटीवी निगरानी प्रणाली, स्वचालित यातायात काउंटर एवं वर्गीकृत (एटीसीसी) प्रणालियां और ई-टेंडरिंग जैसी अत्याधुनिक सुविधाओं से लैस करने की प्रक्रिया जारी है। अब नये दिशानिर्देशों में पूरे देश में टोलकर्मियों के लिए एक जैसी यूनिफार्म अनिवार्य करने के साथ उन्हें शिष्टाचार और अनुशासन का पाठ पढ़ाकर कम से कम एक सप्ताह का प्रशिक्षण को जरूरी कर दिया गया है। एनएचआई ने देश भर के परियोजना निदेशकों को आदेशों का अनुपालन सुनिश्चित कर प्राधिकरण मुख्यालय रिपोर्ट भेजने के भी आदेश दिये हैं। इसके अलावा वे-इन मोशन ब्रिज (डब्ल्यूआईएम), स्वचालित वाहन काउंटर एवं वगीर्कारक (एवीसीसी) प्रणाली भी लागू करने योजनाओं पर काम चल रहा है। सरकार ने ताजा निर्देशों में टोल कर्मियों की मानकता के अलावा टोल स्लिप व टोल फी के बोर्ड के प्रारूप निर्धारित किए गए हैं, जिसमें यह भी तय किया गया है कि टोल कर्मचारियों को क्या करना है और क्या नहीं। इन सभी नियमों को मार्च महीने के भीतर पूरे देश के सभी टोल नाकों पर लागू करना होगा।
ऐसी होगी टोलकर्मियों की ड्रेस 
एनएचएआई के दिशानिर्देशों के मुताबिक टोल प्लाजाकर्मियों का ड्रेस कोड भी तय कर दिया है, जिसके अनुसर टोल संग्रह कर्मचारियों को नेवी-ब्लू रंग की शर्ट और ट्राउजर के साथ सिर पर स्पोर्ट कैप पहनना अनिवार्य होगा। इस कैप पर और सिक्योरिटी बैल्ट के बक्कल पर संबंधित कंपनी का मोनो का प्रकाशन होना चाहिए। यही नहीं कर्मचारियों को गले में अपनी पहचान वाली आईडी पहनने के साथ सेफ्टी जैकेट और काले रंग के जूते पहनने की भी बाध्यता की गई है।

शुक्रवार, 18 मार्च 2016

संसद में अरसे बाद दिखा सरकार व विपक्ष का तालमेल

विपक्ष के मुद्दों पर भारी पड़ी मोदी सरकार!
राज्यसभा में भी पास कराए कई महत्वपूर्ण विधेयक
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
संसद के बजट सत्र के पहले चरण में मोदी सरकार भले ही जीएसटी पर आगे न बढ़ पायी हो, लेकिन रियल एस्टेट और आधार विधेयक जैसे कई महत्वपूर्ण विधेयकों पर संसद की मुहर लगवाने में सफल रही है। हालांकि सरकार की विपक्ष से सहयोग की अपेक्षा और राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी के अभिभाषण में संसद को सुचारू रूप से चलाने की दलील ने भी सरकार को संसद में काम करने की राह को आसान बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
उपलब्धियों में रहा आधार और रियल एस्टेट को कानूनी दर्जा
संसद के बजट सत्र के पहले चरण संपन्न होने से पहले मोदी सरकार ने अंतिम क्षणों में राज्यसभा में आम बजट को पारित कराया और लोकसभा में आधार विधेयक पर चर्चा कराने की औपचारिकता पूरी कराकर उसे कानूनी आधार देने की उपलब्धि हासिल की। इसके अलावा संसद में सरकार के लिए रियल एस्टेट विधेयक भी प्राथमिकता में था, जिसे विपक्ष ने समर्थन देकर सरकार की राह आसान बनाई। दरअसल राजग सरकार के लिए राज्यसभा में विधायी कार्यो और सरकारी कामकाज को निपटाने की ज्यादा चुनौती थी,जिसमें शुरूआती दौर में तो देशद्रोह और अन्य मुद्दों पर सरकार और विपक्ष आमने-सामने नजर आया, लेकिन विरोध के बावजूद भी विपक्ष ने विधेयकों को पारित कराने के लिए सरकार के साथ सहयोग की नीति अपनाई। इसी कारण ज्यादा गतिरोध और विवाद में फंसे जीएसटी विधेयक को सरकार ने इस दौरान संसद में पेश करने का कोई प्रयास नहीं किया। माना जा रहा है कि मोदी सरकार अपने कार्यकाल में पहली बार संसद में कामकाज निपटाने में कुछ हद तक कसौटी पर खरी उतरी है, भले ही उसकी पृष्ठभूमि में कोई भी कारण हों। ज्यादा से ज्यादा काम निपटाने के लिए संसद के दोनों सत्रों में अंतिम दिन देर रात्रि तक बैठक चलाकर पक्ष-विपक्ष ने जनता को सकारात्मक संदेश भी दिया है।
कितने कदम चली सरकार
सरकार के सामने बजट सत्र के पहले चरण में ज्यादा से ज्यादा कामकाज का बोझ था। इसमें सरकार के सामने दोनों सदनों में लंबित पड़े विधेयकों के अलावा कुछ महत्वपूर्ण नये बिल पेश करने और प्राथमिकता वाले विधेयकों को संसद की मुहर लगवाने की चुनौती थी। इसमें खासकर राज्यसभा में बिलों को अंजाम तक पहुंचाने की सरकार के सामने चुनौती थी, जिसमें सरकार ने जहां आधार विधेयक को मनी बिल का रूप देकर उसे कानूनी दर्जा दिया, तो वहीं कांग्रेस के समर्थन से रियल एस्टेट विधेयक की चुनौती से भी पार पा लिया। इसके अलावा राज्यसभा में आम बजट, रेल बजट और इनसे संबन्धित विनियोग विधेयकों के अलावा सरकार ने निर्वाचन कानून (संशोधन) विधेयक, हाईकोट और सुप्रीम कोर्ट जज (वेतन तथा सेवा शर्तें) संशोधन विधेयक, राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक, भारतीय मानक ब्यूरो विधेयक, विमान से ढुलाई (संशोधन) विधेयक, सिख गुरुद्वारा अधिनियम संशोधन विधेयक भी पारित कराये। जबकि लोकसभा में अंतिम दिन खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)-1957 अधिनियम पारित कराने से पहले संविधान (अनुसूचित जाति) आदेश (संशोधन) विधेयक, उद्योग (विकास तथा नियमन) संशोधन विधेयक, वित्त विधेयक और राज्यसभा में पारित हुए विधेयक पारित कराए। जबकि लोकसभा में पारित शत्रुसंपत्ति विधेयक को राज्यसभा में आम सहमति से प्रवर समिति को सौंपा गया है।
सिरे नहीं चढ़ा ये काम
संसद में सरकार जैव-प्रौद्योगिकी के लिए क्षेत्रीय केन्द्र विधेयक-2016,चुनाव कानून (संशोधन) विधेयक, लोकसभा में लंबित विधेयकों में लोकपाल तथा लोकायुक्त और अन्य संबद्ध कानून (संशोधन) विधेयक, राज्यसभा में लंबित संविधान (122वां संशोधन) विधेयक, उद्योग (विकास तथा नियमन) संशोधन विधेयक, व्हीसिल ब्लोअर सुरक्षा (संशोधन) विधेयक, तथा अपहरण विरोधी विधेयक समेत कई विधायी कार्यो को सूचीबद्ध करने के बावजूद आगे नहीं बढ़ा सकी है, जिन्हें 25 अप्रैेल से शुरू होने वाले बजट सत्र के दूसरे चरण में लाया जाएगा।

गुरुवार, 17 मार्च 2016

संसंद में आधार को मिला "कानूनी आधार"

रास में संशोधनों को खारिज कर लोस में आधार विधेयक दोबारा पास  
राज्यसभा में चर्चा के दौरान जमकर हुई चिकचिक!
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
लोकसभा में पारित होकर राज्यसभा में पेश किये गये आधार विधेयक पर चर्चा के बाद कांग्रेस सहित विपक्ष की ओर से पांच संशोधन पेश किए गए, जिसे उच्च सदन ने स्वीकार करके लोकसभा को वापस भेज दिया। इसके कुछ ही देर बाद सरकार इस विधेयक को लोकसभा में वापस लेकर आई और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उच्च सदन में विपक्ष के दबाव में एक से लेकर पांच तक के संशोधनों को घातक बताते हुए उन्हें अस्वीकार करने का निचले सदन से आग्रह किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। 
 लोकसभा में पारित होकर राज्यसभा में पेश किये गये राज्यसभा में आधार विधेयक पर चर्चा के बाद लाये गये संशोधन मंजूर कर लिये गये हैं, जिसके कारण राज्यसभा में आधार विधेयक पर हुई चिकचिक के साथ हुई जोरदार बहस हुई, जिसके बाद विपक्षी दलों की ओर से कई संशोधन पेश किये गये। मत विभाजन की मांग पर संशोधनों पर सरकार को पराजय का सामना करना पड़ा। मसलन कांग्रेस सदस्य जयराम रमेश द्वारा लाये गये संशोधनों के पक्ष में ज्यादा वोट पड़े यानि संशोधनों के पक्ष में 74 और विरोध में 64 वोट पड़े। इन संशोधनों को पारित कर उच्च सदन ने आधार को वापस लोकसभा को लौटा दिया। राज्यसभा में पारित हुए संशोधनों को कुछ ही देर बाद लोकसभा में वापस लेकर आई और वित्त मंत्री अरुण जेटली ने उच्च सदन में विपक्ष के दबाव में एक से लेकर पांच तक के संशोधनों को घातक बताते हुए उन्हें अस्वीकार करने का निचले सदन से आग्रह किया जिसे सदन ने ध्वनिमत से मंजूरी दे दी। इन संशोधन में आधार को स्वीकार करने की बाध्यता को भी हटा दिया गया था। कांग्रेस ने कहा कि वह इस मुद्दे पर कोर्ट जा सकती है।
पात्र लोगों तक पहुंच सकेगी सरकारी सब्सिडी: केंद्र
इससे पहले बुधवार को केंद्रीय वित्तमंत्री अरुण जेटली ने राज्यसभा में राज्यसभा में आधार (वित्तीय और अन्य सब्सिडी, लाभ और सेवाओं का लक्षित वितरण) विधेयक-2016 पेश किया, तो विपक्षी दलों खासकर सपा नेता नरेश अग्रवाल ने व्यवस्था का प्रश्न और माकपा नेता सीताराम येचुरी मामले के अदालत में विचाराधीन होने के कारण कानून बनाने पर सवाल खड़े किए। हालांकि वित्तमंत्री ने विपक्ष की आशंकाओं को दूर किया। वहीं कहा कि यह मनी बिल के तौर पर इसलिए पेश किया गया है, क्योंकि यूआईडीए के तहत यह सिर्फ व्यक्ति की पहचान तक सीमित नहीं है, बल्कि सरकार इसके आधार पर देश के खजाने से निकलने वाले सब्सिडी के पैसे को सही तरीके से खर्च कर पाएगी और सब्सिडी का फायदा सही लोगों तक पहुंच पाएगा। अरुण जेटली ने यह भी कहा कि लोकसभा अध्यक्ष इस बिल के मनी बिल होने को लेकर संतुष्ट हैं और इसे चुनौती नहीं दी जा सकती। जेटली ने कहा कि आधार नंबर का विचार यूपीए के दौर में आया, जो एक अच्छा विचार है हालांकि तब हमारे दल के कई लोगों ने भी इस पर ऐतराज जताए थे, लेकिन जब नए विचार आते हैं तो उनका विरोध भी होता ही है।

आचार समिति के हवाले किया "स्टिंग ऑपरेशन"

सांसदों की मांग पर लोकसभा अध्यक्ष का फैसला
हरिभूमि ब्यूरो.
नई दिल्ली।
तृणमूल कांग्रेस के कुछ सदस्यों के कथित रुप से रिश्वत लेने सबंधित स्टिंग वीडियो का मामला जांच के लिए संसद की आचारसमिति को भेज दिया गया है।
शून्यकाल शुरू होने के पहले लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने सदन को इसकी जानकारी देते हुए बताया के स्टिंग वीडियों की
प्रमाणिकता की जांच के लिए इसे आचार समिति को भेजने का फैसला लिया गया। समिति की रिपोर्ट की प्रतीक्षा की जा रही है। स्टिंग वीडियो का मामला कल सदन में जोर शोर से उठाया गया था। भारतीय जनता पार्टी ,माकर्सवादी कम्युनिस्ट पार्टी और कांग्रेस के सदस्यों ने इसकी निष्पक्ष जांच की मांग की। गौरतलब है कि स्टिंग वीडियो में तृणमूल कांग्रेस के कुछ सदस्यों को कथित तौर पर रिश्वत लेते हुए दिखाए जाने पर संसद के दोंनो सदनों में खासा हंगामा हुआ था। माकपा के मोहम्मद सलीम ने कल यह मसला उठाते हुए कहा था कि यह एक बेहद शर्मनाक घटना है जिसकी पूरी जांच होनी चाहिए। भाजपा के एसएस अहलूवालिया और कांग्रेस के अधीर रंजन चौधरी ने भी इसकी जांच की मांग की थी। इस पर जवाबी हमला करते हुए तृणमूल के सौगत राय ने लोकसभा अध्यक्ष से यह जानना चाहा था कि किसी नियम के तहत इन सदस्यों को इस मसले पर बोलने की इजाजत दी जा रही है। उन्होंने कहा कि पश्चिम बंगाल में विधान सभा चुनावों को देखते हुए उनकी पार्टी के खिलाफ यह राजनीतिक साजिश की गई है।

देश द्रोह की धारा को हटाने की तैयारी में सरकार

सर्वदलीय बैठक में राय के बाद होगा अंतिम निर्णय नई दिल्ली
देश में देशद्रोह को लेकर चली आ रही सियासत के बीच केंद्र सरकार ने विपक्षी दलों की मांग पर देशद्रोह की धाराओं में संशोधन करने के लिए नरम रूख अपनाना शुरू कर दिया है। इसके लिए सरकार ने सर्वदलीय बैठक बुलाकर आम सहमति बनने की स्थिति में अपना अंतिम निर्णय लेगी।
राज्यसभा में यह बात केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ सिंह ने विपक्षी दलों द्वारा भारतीय दंड संहिता की देश द्रोह से संबंधित धारा 124 (ए)को हटाने की मांग के मद्देनजर कही। राजनाथ सिंह ने सदन में धारा 124(ए) को हटाने से जुडेÞ कुछ सवालों का जवाब देते हुए कहा कि विधि आयोग भारतीय दंड संहिता की कई धाराओं की समीक्षा कर रहा है और सरकार को इसकी रिपोर्ट का इंतजार है। कहा कि विधि आयोग भी इस मामले की समीक्षा कर रहा है और इसकी रिपोर्ट आने के बाद सरकार सभी राजनीतिक दलों से भी बातचीत की जाएगी। सिंह ने सदन में कहा कि विधि आयोग की रिपोर्ट मिलने के बाद सरकार सभी राजनीतिक दलों से भी इस बारे में राय लेगी। हालांकि राजनाथ सिंह ने कहा कि यह मामला न्यायालय में विचाराधीन है इसलिए इस पर टिप्पणी करना उचित नहीं है। जबकि सांप्रदायिक भावना भडकाने को भी देश द्रोह से जुडी धारा के दायरे में लाने के सवाल पर राजनाथ सिंह ने सदस्यों को आश्वस्त किया कि इस तरह के मामलों में सरकार की ओर से कडी कार्रवाई की जायेगी। उन्होंने राज्य सरकारों से भी अपील की कि वे सांप्रदायिक भावना भडकानें वालों के खिलाफ कोई नरमी न बरतें तथा सख्त कार्रवाई करें।

राज्यसभा: पास हुआ सिख गुरुद्वारा संशोधन बिल

तीन मिनट में पारित हुआ सिख गुरुद्वारा कानून
 नई दिल्ली

संसद के बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिन बुधवार को सरकार द्वारा राज्यसभा में पेश किये गये सिख गुरूद्वारा (संशोधन) विधेयक बिना चर्चा के सर्वसम्मति से महज तीन मिनट में ही पारित कर दिया गया। इस विधेयक में गुरूद्वारा प्रबंधन बोर्ड एवं समिति के सदस्यों के निर्वाचन में सहजधारी सिखों को मिले अधिकारों को समाप्त करने का प्रावधान है।
बुधवार को दोपहर बाद गृह मंत्री राजनाथ सिंह ने इस विधेयक को पारित करने के लिए उच्च सदन में प्रस्ताव पेश किया, जिसे सदन ने सर्वसम्मति से स्वीकार कर लिया। केश कटा चुके सिखों को सहजधारी सिख कहते हैं। विधेयक के पारित होने के बाद शिरोमणि अकाली दल के सदस्यों ने सदस्यों को धन्यवाद दिया।
क्या है बिल के प्रावधान 
सिख गुरूद्वारा (संशोधन) विधेयक के कारण एवं उद्देश्यों अनुसार केन्द्र सरकार ने पंजाब पुनर्गठन कानून-1966 के तहत आठ अक्टूबर 2003 को एक अधिसूचना जारी कर सहजधारी सिखों को इन बोर्डो एवं समिति के सदस्यों के निर्वाचन के लिए मिले अधिकारों को हटा दिया था। बाद में पंजाब एवं हरियाणा उच्च न्यायालय ने 20 दिसंबर 2011 के अपने एक आदेश में केन्द्र सरकार की इस अधिसूचना को निरस्त कर दिया था। मौजूदा विधेयक के तहत सहजधारी सिखों के इस अधिकार को हटाने का प्रावधान है जो आठ अक्तूबर 2003 से प्रभावी होगा।

बुधवार, 16 मार्च 2016

आखिर पटरी आई मप्र की बरगी बांध परियोजना!


केंद्र सरकार ने चार हजार करोड़ की दी मंजूरी
नहर की निर्माण बाधाएं जल्द दूर करेगी सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
मध्य प्रदेश की महत्वकांक्षी बरगी बांध परियोजना के अटके कामकाज के लिए आखिर केंद्र सरकार ने हरी झंडी देते हुए चार हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी है। यूपीए शासनकाल से हो रही उपेक्षा को अपेक्षा में बदलने के लिए स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने राज्य के कई जिलों में पीने और सिंचाई के पानी की समस्या को दूर करने पर जोर दिया है।
दरअसल सतना के भाजपा सांसद गणेश सिंह मध्य प्रदेश की महत्वकांक्षी बरगी बांध परियोजना के दायीं तट नहर निर्माण को पूरा करके सतना ही नहीं, जबलपुर और अन्य आसपास के जिलों में पीने और सिंचाई के पानी की समस्या को दूर करने का मामला केंद्र सरकार के समक्ष लगातार उठाते रहे हैं, जिनके प्रयास को स्वयं प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी और केंद्रीय जल संसाधन मंत्री सुश्री उमा भारती ने पटरी पर लाकर खड़ा कर दिया है। मसलन इस बांध परियोजना के दायीं तट की नहर का निर्माण के लिए चार हजार करोड़ रुपये की मंजूरी दे दी गई है। चार हजार करोड़ रुपये की इस परियोजना की मंजूरी दिलाने का सेहरा सांसद गणेश सिंह के सिर बंध गया है,जिनके जारी प्रयास के बाद राजग सरकार ने इस परियोजना पर पुनर्विचार कर इसे महत्वपूर्ण परियोजना माना और केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा सरंक्षण मंत्री सुश्री उमा भारती ने राज्य के जल संसाधन विभाग से नये सिरे से आए प्रस्ताव का अवलोकन कर बरगी बांध परियोजना को राष्ट्रीय परियोजना में शामिल करने का फैसला करते हुए गंभीरता से पूरा करने का फैसला किया।
क्यों महत्वपूर्ण है परियोजना
मध्य प्रदेश के बरगी बांध के दायीं तट नहर बनाने का मुद्दे पर मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से भी पैरवी करते हुए केन्द्रीय जलसंसाधन विकास मंत्रालय में फायदे गिनाते हुए दबाव बनाया, क्योंकि इस परियोजना के तहत बरगी बांध की दायीं तट नहर बनने से किसान और ग्रामीण लोगों को जल स्रोत के रूप में फायदा होना तय है। मसलन इस नहर के बनने राज्य में महाकौशल, विंध्य क्षेत्र में उत्पन्न होने वाली सूखे की स्थिति से किसानों को राहत मिलेगी यानि जबलपुर से लगे कटनी, विजराघवगढ़, कैमोर, रीवा, सतना जिले की लाखो एकड़ जमीन को सिंचाई के लिए पानी मुहैया हो सकेगा और वहीं कम से कम एक करोड़ लोगों को शुद्ध पीने का पर्याप्त पानी भी मिलता रहेगा।

घर का सपना देखने वालों की राह आसान-बिल्डरों पर कसेगी लगाम

रियल एस्टेट बिल पर संसद की मुहर
राष्ट्रपति की मंजूरी के बाद लागू होगा कानून
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली
संसद ने रियल एस्टेट विधेयक पर मुहर लगाते ही घर का सपना देखने वालों की राह आसान बना दी है। अब राष्ट्रपति की मुहर लगते ही देशभर में बिल्डरों पर कानूनी शिकंजा कस जाएगा और उनकी मनमानी पर पूरी तरह से रोक लग जाएगी।
राज्यसभा में पारित होने के बाद रियल एस्टेट यानि भू-संपदा (विनियमन और विकास) विधेयक मंगलवार को लोकसभा में पेश किया गया और चर्चा के बाद इसे सर्वसम्मिति से पारित कर दिया गया है। अब केवल राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी की मंजूरी मिलना बाकी है, जिसके बाद विधेयक के प्रावधानों के तहत सरकार एक विनियामक प्राधिकरण का गठन करेगी, जिसमें जिसमें बिल्डर को किसी भी परियोजना की शुरुआत से पहले उसमें पंजीकरण कराना होगा और उसकी जमीन खरीदने से लेकर अन्य सभी मंजूरी संबंधित दस्तावेज आदि का ब्योरा जमा करना होगा। यह जानकारी उपभोक्ताओं के लिए सार्वजनिक होगी और वे अपनी पसंद की परियोजना चुन सकते हैं। सरकार की इस विधेयक को अंजाम तक पहुंचाने में कांग्रेस के सर्मथन से यह राह आसान हुई है, जो पिछले कई सालों से संसद में लंबित पड़ा हुआ था।

मंगलवार, 15 मार्च 2016

चार धाम के लिए बनेगा एक हजार किमी नया हाईवे !

ताकि फिर न झेलनी पड़े केदारनाथ जैसी आपदा!
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश में सड़कों का जाल बिछाकर बुनियादी ढांचे को मजबूत करने में जुटी केंद्र सरकार ने चारधाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं को भी ऐसे नये राष्ट्रीय राजमार्ग का तोहफा देने की योजना तैयार कर ली है, ताकि भविष्य में केदारनाथ जैसी प्राकृतिक आपदा को झेलना न पड़े। इस 12 हजार करोड़ रुपये की अनुमानित लागत वाली सड़क परियोजना में एक हजार किमी लंबा नया राष्ट्रीय मार्ग बनाया जाएगा।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के सूत्रों ने बताया कि देश के दुर्गम और पहाड़ी क्षेत्रों में आवागमन के संसाधनों को बढ़ावा देने के लिए सरकार योजनाओं का खाका तैयार करने में जुटी हुई है। सोमवार को ही केंद्रीय मंत्री नितिन गड़करी ने एक ऐसी सड़क परियोजना का ऐलान कर दिया है, जिससे निश्चित रूप से चार धाम की यात्रा करने वाले श्रद्धालुओं के अलावा स्थानीय लोगों के सफर की राह भी बेहद आसान हो जाएगी। मसलन मंत्रालय ने देहरादून से केदारनाथ, बद्रीनाथ, गंगोत्री और यमनोत्री तक एक हजार किमी लंबे नए राष्ट्रीय राजमार्ग का निर्माण करने की योजना को अंतिम रूप दे दिया है। इस परियोजना की लागत 12 हजार करोड़ रुपये आने का अनुमान है, जिसमें 600 करोड़ रुपये के काम की निविदा प्रक्रिया भी शुरू कर दी गई है। केंद्र सरकार की इस परियोजना के बारे में पूछे जाने पर केंद्रीय मंत्री नितिन गडकरी ने साफ किया है कि चार धाम यात्रा करने वालों श्रद्धालुओं के आवागमन की समस्या का स्थायी समाधान करने की दिशा में सरकार ने इन सभी तीर्थ स्थलों को आपस में नये राष्ट्रीय राजमार्ग जोड़ा जाएगा। सरकार ने इस परियोजना को पूरा करने के लिए तीन साल का लक्ष्य तय किया है।

ट्रक चालक उठाएंगे एसी केबिन का लुत्फ

सडक हादसों पर लगाम लगाने का प्रयास
नई दिल्ली
। अब ट्रक चालक अपना काम सुविधाजनक ढंग से कर सकेंगे क्योंकि सरकार ट्रकों में वातानुकूलित कैबिन की व्यवस्था करना चाहती है।
मंत्रालय के अनुसार इससे जहां ट्रक चालकों को गर्मी के मौसम में भीषण तापमान से निजात मिलेगी, वहीं दुर्घटनाओं को कम करने में भी मदद मिलेगी। सड़क परिवहन और राजमार्ग मंत्री नितिन जयराम गडकरी ने राज्यसभा में सड़क दुर्घटनाओं को रोकने के उपायों के सवालों के जवाब में बताया कि सरकार ट्रकों में वातानुकूलित कैबिन की व्यवस्था करना चाहती है जो अनिवार्य होगी। उन्होंने ट्रकों के चलते होने वाली दुर्घटनाओं के संबंध में कहा कि ट्रक चालकों को 12-12 घंटे तक लगातार काम करना पड़ता है और ट्रक कैबिन में तापमान कई बार 47 डिग्री तक पहुंच जाता है। उन्होंने कहा कि ट्रकों में वातानुकूलित कैबिन होने से चालकों को राहत मिलेगी। मंत्री ने कहा कि सरकार का प्रयास है कि सड़क दुर्घटनाओं में मौत के आंकड़ों में 50 प्रतिशत की कमी लायी जाए। इससे जहां ट्रक चालकों को गर्मी के मौसम में भीषण तापमान से निजात मिलेगी, वहीं दुर्घटनाओं को कम करने में भी मदद मिलेगी। 

सोमवार, 14 मार्च 2016

पूरे होते नहीं दिखते जीएसटी के मंसूबे!

आधार और रियल एस्टेट पारित होने पर उत्साहित सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
राज्यसभा में विपक्ष की रार के बीच भले ही सरकार ने आधार बिल पर पारित करा लिया हो, लेकिन बजट सत्र के पहले चरण में बाकी तीन दिनों मेें ऐसी उम्मीदों की राह तलाश रही केंद्र सरकार के जीएसटी विधेयक को पारित करा ले, ऐसी सभी संभावनाएं क्षीण होती नजर आ रही है। मसलन मोदी सरकार के एक अप्रैल से देश में जीएसटी लागू करने के मंसूबों पर पूरी तरह पानी फिरता नजर आ रहा है। हालांकि सरकार के लिए मौजूदा सत्र आधार और रियल एस्टेट बिल पारित होने से बड़ी उपलब्धियों से कम नहीं है।
दरअसल एक दिन पहले वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष संबन्धी एक सम्मेलन में संसद में पिछले सप्ताह राज्यसभा में रियल एस्टेट तथा आधार बिल पारित होने पर जीएसटी को पारित कराने की उम्मीद जताई है, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार की इस उम्मीद की राह बजट सत्र के 25 अप्रैल से 13 मई तक चलने वाले बजट अगले चरण में रास्ता दे सकती है। वैसे भी यह तो सरकार भी मान रही है कि इस चरण के बाकी तीन दिनों में आम बजट और उससे जुड़ी अनुदान मांगों पर चर्चा और उसे पूरा कराना जरूरी है। सूत्रों की माने तो जीएसटी पर इन अंतिम तीन दिनों में सरकार ध्यान केंद्रित करने के बजाए खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)-1957 अधिनियम और सिख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 में संशोधन को आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकती है, जिसमें संशोधन करके कैबिनेट ने पिछले सप्ताह ही मंजूरी दी है।
दो मोर्चो पर सफल रही सरकार
मोदी सरकार के लिए बजट सत्र में भले ही जीएसटी सिरे न चढ़ा हो, लेकिन दो अन्य मोर्चो पर वह विपक्षी दलों के नरम रवैये के चलते अरसे से अटके पड़े रियल एस्टेट (विनियामक और विकास) विधेयक पारित कराने में सफल रही। इससे सीधे घर के सपने देखने वाले खासकर मध्यम वर्गो के दिलों में सरकार ने अपनी जगह बना ली है। वहीं मोदी सरकार की इस सत्र के दौरान सरकारी सब्सिडी के लिए आधार बिल को धन संबन्धी विधेयक के रूप में राज्यसभा को पारित करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जा रहा है। जबकि धन संबन्धी विधेयक के रूप में इसके पारित होने से विपक्ष कतई खुश नहीं है।
रियल एस्टेट में होगी हितों की सुरक्षा
संसद में पारित रियल एस्टेट (विनियम व विकास) विधेयक में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के गठन के प्रावधान ने मकान या दुकान खरीदने वालों के हितों की सुरक्षा को तय कर दिया है। यानि विधेयक के प्रावधान न सिर्फ खरीददारों के हितों की सुरक्षा तय करेगा, बल्कि डेवलपरों और बिल्डरों के भी हित में होगा। भले ही बिल्डरों की मनमानी पर लगाम लगाना और उनके खिलाफ सजा व जुर्माने की बात कही गई हो। विधेयक में सबसे महत्वपूर्ण है कि उपभोक्ताओं का 70 प्रतिशत धन बिल्डिरों के बैंक में सुरक्षित होगा। यदि बिल्डर ऐसे प्रॉजेक्ट्स को कस्टमर को बेचते हैं, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं तो उनके प्रॉजेक्ट पर जुर्माना लगना तय है। तो जाहिर है कि इसमें खरीदारों के हितों की सुरक्षा कानून के दायरे में होगी। सबसे फायदे का सौदा है कि रियल एस्टेट एजेंट तक विनियामक प्राधिकरण में पंजीकृत होने से धोखाधड़ी की संभावना नहीं होगी। इससे भी बढ़कर यदि प्रोजेक्ट में उस समय तक कोई बदलाव नहीं हो सकेगा, जब तक खरीददार की अनुमति न हो। यही नहीं राज्य स्तर पर भी रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण का गठन होगा,जहां खरीददार की शिकायतों का निपटारा राज्य स्तर पर हो सकेगा।
सोमवार को संसद में
बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम सप्ताह में सरकार ने सोमवार को भारी भरकम काम कार्यसूची में शामिल किया है। लोकसभा में जहां राज्यसभा में पारित हुए रियल एस्टेट और मानक ब्यूरो विधेयक में संशोधनों को पारित कराने का लक्ष्य रखा है, वहीं लेखानुदान संबन्धी विनियोग विधेयकों को शामिल किया है। इसके अलावा विभिन्न विभागों की रिपोर्ट भी सदन में रखी जाएंगी। जबकि राज्यसभा में विधायी कार्यो की सूची में सूचना प्रदाता संरक्षण विधेयक के अलावा विनियोग (रेल) लेखानुदान विधेयक को पारित कराने का इरादा है। उच्च सदन में अन्य जरूरी कामकाज को निपटाने के विभिन्न कार्य शामिल किये गये हैं।

आधार विधेयक पर बरकार है विपक्ष की रार

राज्यसभा का सत्र 2 दिन बढ़ाने की उठी मांग
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
लोकसभा में आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पास करवाने से विपक्ष नाखुश है। विपक्ष ने मांग की है कि इस बिल पर बहस कराने के लिए राज्यसभा का मौजूदा सत्र दो दिन बढ़ाया जाए।
बजट सत्र का पहला चरण 16 मार्च को समाप्त हो रहा है। सरकार द्वारा आधार विधेयक को धनसंबन्धी विधेयक के रूप में पारित कराकर राज्यसभा को कमजोर करने का आरोप लगाया है, जिससे नाखुश विपक्ष इस पर सदन में बहस करना चाहता है। लिहाजा विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा के लिए सत्र को बढ़ाने की मांग पर अड़ा हुआ है।
क्या है मामला
दरअसल अगर कोई विधेयक धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया जाता है, तो संसद का उच्च सदन अथवा राज्यसभा उस पर केवल चर्चा कर सकती है, उसमें संशोधन नहीं कर सकती। इसके अलावा राज्यसभा को धनसंबंधी बिल पर चर्चा भी तुरंत करनी पड़ती है, क्योंकि यदि राज्यसभा में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा नहीं होती है, तो उसे ‘पारित मान’ लिया जाता है। विपक्ष का तर्क है कि राज्यसभा में अल्पमत में होने के कारण सरकार ने उच्च सदन को कमजोर बनान की नाकाम कोशशि की है, ताकि वह ऐसे बिलों को पारित करा सके। आधार बिल 2016 के अंतर्गत यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (एकमात्र पहचान क्रमांक) प्रोग्राम अथवा आधार को कानूनी मान्यता दी जाएगी, और फिर सब्सिडी तथा अन्य लाभ सीधे बांटने के लिए उसी का इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है मनी बिल
संसदीय नियमों के अनुसार कोई बिल धन विधेयक तब कहा जाता है जब वह संविधान के अनुच्छेद 110(1) में निहित 6 मामलों से जुड़ा हो। ये टैक्स लगाने, हटाने उसे रेगुलेट करने या फिर भारतीय राजकोष से जुड़े होते हैं। कोई बिल मनी बिल है या नहीं इसे लेकर लोकसभा के स्पीकर का फैसला आखिरी होता है। मनी बिल सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पास होने के बाद यह राज्यसभा भेजा जाता है। इसके साथ मनी बिल होने को लेकर स्पीकर का सर्टिफिकेट भी होता है।राज्यसभा इसमें ना तो संशोधन कर सकती है ना ही नामंजूर कर सकती है। राज्यसभा को सिर्फ सुझाव देने का अधिकार होता है और इसे 14 दिनों के भीतर लोकसभा वापस करना होता है। हालांकि ये लोकसभा पर है कि वह राज्यसभा के सुझाव मानती है या नहीं।
14Mar-2016

देश में होगा 50 हजार किमी जलमार्ग का विकास


 तैयार हो रहा है 70 हजार करोड़ की परियोयजनाओं का खाका
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
देश में सड़क और रेल मार्ग के अलावा परिवहन क्षेत्र में जलमार्ग को विकसित करने में जुटी केंद्र सरकार ने देश में समुद्र तथा नदियों में 50 हजार किलोमीटर जलमार्ग का विकास करने का फैसला किया है। संसद में जलमार्ग बिल पारित होते ही सरकार ने पहले चरण में 70 हजार करोड़ रुपये की परियोजना का खाका तैयार करके वित्त पोषण हेतु तौर तरीकों पर विचार करना शुरू कर दिया है।
संसद में  राष्ट्रीय जलमार्ग विधेयक पारित होते ही सरकार का देश में 111 नदियों को राष्ट्रीय जलमार्ग में तब्दील करने की योजना के तहत परिवहन के लिये समुद्री तट तथा नदी जलमार्ग के विकास का रास्ता साफ हो गया है। देश में अभी तक केवल पांच जलमर्गों को ही राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया जा सका है। केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग और पोत परिवहन मंत्री गडकरी ने कहा कि जलमार्ग विकसित करने की योजना के तहत 14 राज्यों में समुद्री तट के साथ 7500 किलोमीटर तटरेखा है। इसमें 14,500 किलोमीटर की संभावना वाले नौवहनीय जलमार्ग हैं। इसके अलावा देश में 116 नदियां हैं, जो 35 हजार किलोमीटर नवैवहन मार्ग उपलब्ध कराते हैं। मसलन देश के पास 50 हजार किलोमीटर जलमार्ग हैं, देश की 111 नदियों को जलमार्ग में बदलने वाले इस विधेयक को संसद से मंजूरी मिलते ही भारत की तस्वीर बदलने का रास्ता मिल गया है।
पर्यावरण संरक्षण में मिलेगी मदद
सरकार पर्यावरण अनुकूल परिवहन के साधन के रूप में इनके विकास के लिये आक्रमक तरीके से काम करने को लेकर प्रतिबद्ध है। इससे देश में लाजिस्टिक्स लागत जो फिलहाल 18 प्रतिशत है, उसमें कमी आएगी। गडकरी का कहना है कि सरकार वित्त पोषण के लिये अनूठे तरीके पर गौर कर रहे हैं, क्योंकि हमें इन नदियों को परिवहन योग्य बनाने के लिये 70 हजार करोड़ रुपये की जरूरत होगी। इसके लिए बजटीय समर्थन के अलावा बहुपक्षीय कोष, र्सावजनिक-निजी भागीदारी तथा बाजार उधारी के विकल्पों को तलाशा जाएगा। आईडब्ल्यूटी के पर्यावरण लाभ को देखते हुए राष्ट्रीय स्वच्छ उर्च्च्जा कोष :एनसीईएफ: तथा केंद्रीय सड़क कोष :सीआरएफ: की भी जरूरत होगी।
ये है बजटीय प्रावधान
गडकरी ने कहा कि हालांकि सरकार के पास कोष की कमी नहीं होगी। इस साल बजट में 800 करोड़ रुपये जलमार्गों के विकास के लिये दिये गये हैं, जबकि हम 800 करोड़ रच्च्पये कर मुक्त बांड के जरिये जुटा सकते हैं। चालू वित्त वर्ष में हमारे बंदरगाहों का लाभ 6,000 करोड़ रुपये के करीब होगा। इसमें आगे धीरे-धीरे वृद्धि होगी। इसके अलावा उनके पास 8,000 करोड़ रुपये की मियादी जमा है। एक बैंक डालर में बहुत कम ब्याज दर 2.0 प्रतिशत पर 50 हजार करोड़ रुपेय का कर्ज उपलब्ध कराने को तैयार है। सरकार को उम्मीद है कि इन सभी उपायों के जरिए भारत के जलमार्गों के विकास में पर्याप्त कोष जुटा लिया जाएगा। उन्होंने कहा कि जल परिवहन को बढ़ावा देकर 18 प्रतिशत लाजिस्टिक लागत में उल्लेखनीय कमी लाएंगे। चीन में यह लागत जहां 8 से 10 से प्रतिशत है वहीं यूरोपीय देशों में में 10 से 12 प्रतिशत है।
14Mar-2016

रविवार, 13 मार्च 2016

राग दरबार: बहुत हुआ कन्हैया राग

बोल कामरेड जय कन्हैया लाल की
कहते हैं कि जवान तवायफ जब मुजरे की महफिल में ठुमकती है तो सजिंदों की बगल में पानदान लेकर बैठने वाली बूढ़ी खाला की कमर खुद ब खुद लचकने लगती है। ऐसा ही हाल शायद आजकल की राजनीति में इन दिनों मुरझाए कामरेडो में नजर आ रहा है। मसलन जेएनयू में कन्हैया के ठुमके देख इन कामरेडों भी जवानी अंगड़ायी लेने को बेताब है। संसद के सत्र के शुरूआती दौर में कामरेडों की सक्रियता में वोटबैंक राजनीति में देश के लिए कुर्बानी करने देने का दावा करते आ रहे कांग्रेसियों ने भी ऐसा दम दिखाया जैसे जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया में भारतीय वामपंथ का भविष्य दिखाई दे रहा हो। कुछ वामपंथी तो मोदी सरकार के केंद्र में शपथ लेते ही यह बात कहते नजर आए थे कि इस बार एक विचारधारा की पूर्ण बहुमत सरकार बनी है, जिसका मुकाबला मध्यमार्गी कॉग्रेस नहीं, वामपंथी विचारधारा ही कर सकती है। जेएनयू प्रकरण में नारेबाजी को वह भले ही बहाना मान रहे हो, लेकिन उनकी सोच सारा संघर्ष वैचारिक ही नजर आ रहा है। ऐसी टिप्पणियां सोशलमीडिया पर खुलकर अपनी करवटे बदल रही हैं। वामपंथी और समाजवादी गलेबाजी में अव्वल और शब्दजाल बुनने में माहिर कुछ सियासीदान की हां में हां भले ही मिला रहे हों, लेकिन फिलहाल तो ना हाथी ना घोड़ा और ना पालकी, बोल कामरेड जय कन्हैया लाल की। राजनीतिक गलियारों में हो रही चर्चा पर गौर करें, तो संसदीय राजनीति की पौध छात्र राजनीति में ही तैयार होती है, यह राजनीतिक पाठ है और मौजूदा समय में भी सत्ता और विरोध दोनों खेमों में तमाम नेता छात्र राजनीति की देन हैं। ऐसे में यदि कन्हैया सक्रिय राजनीति में आता है तो कोई अचरज की बात नहीं, लेकिन सवाल उसके देशभक्ति को नकारने का है, भले ही उसके भाषण पर ताली बजाने की बात कुछ खास मायने न रखे। मसलन कोई कन्हैया को नायक बनाने में मगन है तो कोई खलनायक बनाने पर तुला है। ऐसे में देशभक्ति और देशद्रोह की परिभाषा में अंतर करने वाले ऐसे समय यही कहने को मजबूर हैं कि बहुत हो चुका कन्हैया राग..अब और नही?
राहुल का यूपी मंथन
कांग्रेस के भीतर उत्तर प्रदेश को लेकर मंथन चल रहा है। सूबे में अगले साल विधानसभा चुनाव है। राहुल गांधी का फोकस इस बात पर है कि कांग्रेस यहां जीत का परचम फहराये। अब ये बात दीगर है कि कांग्रेस के ही तमाम अनुभवी नेता इस सच्चाई से वाकिफ हैं कि सपा, बसपा और भाजपा के मौजूद रहते कुछ हाथ लगना लगभग असंभव है। अब कांग्रेस उपाध्यक्ष को कौन समझाये। राहुल अपनी धुन में लगे हुए हैं। किसी ने उनको सलाह दी तो उन्होंने प्रशांत किशोर को चर्चा के लिए बुला लिया। दोनों के बीच कई दौर की चर्चा हुई। लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी के सिपसालार रहे प्रशांत बिहार विधानसभा चुनाव में नीतीश कुमार के सेनापति थे। खैर, प्रशांत किशोर ने भी राहुल गांधी को वही जवाब दिया जो सोनिया और राहुल से लेकर कांग्रेस का हर नेता जानता है। जवाब था, कांग्रेस यूपी में नहीं जीत पायेगी। राहुल ने पूछा क्यों? अब प्रशांत किशोर ने अपने सिर से बला टालते हुए कहा कि आपकी पार्टी के पास यूपी में चेहरा नहीं है, अगर प्रियंका गांधी प्रचार की कमान संभाले तो बात बने। चर्चा है कि प्रशांत ने एक सलाह और दी, उन्होंने कहा कि दिल्ली की पूर्व मुख्यमंत्री शीला दीक्षित को यूपी में सीएम कैंडिडेट बनाइये हो सकता है कुछ बात बन जाये। प्रशांत किशोर तो अपना सुझाव देकर निकल लिये पर मुश्किल शीला के सिर आन पड़ी हैं। बताया जा रहा है कि शीला दीक्षित यूपी जाने के मूड में नहीं है। उनको पता है कि यूपी हाथ नहीं आने वाली।

अंग्रेजी हकूमत के पुलों का होगा कायाकल्प!

देशभर के पुलों को दुरस्त रखने की कवायद
तीन सौ करोड़ से बनेगा डेढ़ लाख पुलों का डाटाबेस 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र सरकार की देशभर में राष्ट्रीय राजमार्ग और अन्य सड़क मार्गो के सुरक्षित और आसान सफर की रμतार बढ़ाने के लिए नई-नई परियोजना तैयार कर रही है। ऐसी परियोजनाओं के तहत सरकार ने देश में जर्जर हालत में पहुंच चुके अंगे्रजी हकूमत के करीब डेढ़ लाख पुलों का कायाकल्प करने का फैसला किया है।
केंद्रीय सड़क परिवहन एवं राजमार्ग मंत्रालय के अनुसार सरकार ने देश में ऐसे करीब डेढ़ लाख पुलों की स्थिति पर नजर रखने के लिए उनका विश्व में अपनी तरह का सबसे बड़ा विस्तृत डाटाबेस तैयार करने का काम तेजी से शुरू कर दिया है। इस कार्य को मंत्रालय के तहत इंडियन ब्रिज मैनेजमेंट सिस्टम यानि आईबीएमएस इस काम को अंजाम देने के लिए देशभर के पुलों की पूरी जानकारी एकत्रित करने में जुटा हुआ है। सरकार को अनुमान है कि डाटाबेस तैयार करने की परियोजना पर 300 करोड़ रुपये खर्च होने का अनुमान है। इस परियोजना के तहत अभी तक छह माह में राष्ट्रीय राजमार्गों पर मौजूद 100 पुलों समेत 50 हजार छोटे व बड़े पुलों का डाटा तैयार किया जा चुका है। यह डाटाबेस तैयार हो जाने पर पुलों की स्थिति पर पैनी नजरे रखी जा सकेगी तथा उनकी मरम्मत तथा देखरेख करके उनके कायाकल्प करने में आसानी होगी। इस काम को पूरा करने के लिए मंत्रालय ने 18 पैकेज तैयार किए हैं। आईबीएमएस ने मंत्रालय को भरोसा दिया है कि वह देशभर में डेढ़ लाख पुलों के डाटाबेस तैयार करने वाली इस परियोजना को अगले छह माह में पूरा कर लेगी। इस परियोजना के पूरा होने के बाद केंद्र सरकार राष्ट्रीय राजमार्गों पर कमजोर और अपनी मियाद पूरी कर चुके जर्जर पुलों की रैंकिंग तैयार करेगी, जिसमें प्राथमिकता के आधार पर मरम्मत आदि कार्य को अंजाम देकर उनकी कायाकल्प करने का काम शुरू किया जाएगा।

शुक्रवार, 11 मार्च 2016

दुनिया के नक्शे पर आया दिल्ली-जयपुर हाइवे!

शुरू हुआ देश का पहला हाईवे एडवाइजरी सिस्टम
दुर्घटना व जाम के पल-पल की मिलेगी जानकारी  
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
देश की सड़कों पर दुर्घटनाओं पर लगाम लगाने की कवायद में जुटी केंद्र सरकार ने दिल्ली-जयपुर  राष्ट्रीय राजमार्ग के सफर को आसान और सुरक्षित बनाने की तकनीकी तकनीकी पहल की है। सरकार ने दिल्ली से जयपुर तक के सफर को पायलट परियोजना के रूप में हाईवे एडवाइजरी सिस्टम के दायरे में लाकर उसे दुनिया के नक्शे पर खड़ा कर दिया है। मसलन इस सिस्टम के तहत दिल्ली से जयपुर तक के सफर पर तीसरी आंख की नजर रहेगी और इस  राष्ट्रीय मार्ग पर दुर्घटना और यातायात जाम की पल-पल में जानकारी आकाशवाणी के जरिए दिल्ली से जयपुर तक हर किसी को मिलती रहेगी।
केंद्र सरकार की देश में  राष्ट्रीय राजमार्गो के सुरक्षित डिजाइन के साथ चल रही परियोजनाओं के साथ सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं और उसमें होने वाली मौतों की संख्या को आधे से ज्यादा कम करने का लक्ष्य है, ताकि राष्ट्रीय राजमार्गो की यात्रा एक सुखद और सुरक्षित अनुभव, तेज और बाधा मुक्त बनाया जा सके। इसी दिशा में गुरुवार को केंद्रीय सड़क परिवहन और राजमार्ग एवं नौवहन मंत्री नितिन गडकरी ने एक पायलट परियोजना के रूप में यहां दिल्ली-जयपुर राष्ट्रीय राजमार्ग-8 पर एक फ्री-टू-एयर जानकारी वितरण प्रणाली के रूप में राजमार्ग परामर्श प्रणाली यानि एचएएस की शुरूआत कर दी है। इस प्रणाली के तहत दिल्ली से जयपुर तक 240 किमी तक जगह-जगह कैमरे लगाए गये हैं और इस प्रणाली के जरिए दुर्घटना या जाम अथवा अन्य किसी घटना की जानकारी मोबाइल एप्लीकेशन, टेलीफोन और सेंसर के उपयोग के जरिए एचएएस नियंत्रण केंद्र को भेजा जाएगा। इस प्रणाली में आकशवाणी दिल्ली, जयपुर और अजमेर तथा एफएम गोल्ड चैनल हर आधे घंटे के अंतर से सूचना और अलर्ट के रूप में इस हाइवे की स्थिति का प्रसारण करेगा। इस परियोजना को तीन चरणों में क्रियान्वित करने की योजना है, जिसके के दौरान इस प्रणाली द्वारा राजमार्ग के पूरे हिस्से को कवर करने, अतिरिक्त वास्तविक यातायात समय की जानकारी इकट्ठा करने के लिए सेंसर स्थापित करने की उम्मीद है। जबकि तीसरे चरण में एचएएस सेवाएं केवल डिजिटल प्रसारण मोड में होंगी और इनकी निगरानी तीसरे पक्ष के आॅडिट से किया जाएगा।

अब हो पूरे सकेंगे घर के सपने!


राज्यसभा में पारित हुआ रियल एस्टेट बिल
अब नहीं चेलगी बिल्डरों की मनमानी
हरिभूमि ब्यूरो
. नई दिल्ली।
बहुप्रतीक्षित रियल एस्टेट यानि भू-संपादा (विनियमन तथा विकास) विधेयक को राज्यसभा में सर्वसम्मिति से पारित कर दिया गया है। इसके कानूनी प्रावधानों से बिल्डरों की मनमानी पर रोक लगना तय है और लोगों के संजाए हुए घर के सपने भी पूरे हो सकेंगे।
राज्यसभा में गुरुवार को दो बजे केंद्रीय शहरी विकास मंत्री एम. वेंकैया नायडू ने रियल एस्टेट बिल को पेश कर दिया और सदन को आम जनता को राहत देने और बिल्डरों की मनमानी रोकने जैसे फायदे भी गिनाए। विधेयक पर चर्चा के बाद इसे उच्च सदन ने सर्वसम्मिति से पारित कर दिया। गौरतलब है कि केंद्र सरकार की प्राथमिकता में शामिल रहे रियल एस्टेट बिल को प्रमुख विपक्षी दल कांग्रेस भी पक्ष था, जिसे पारित कराने का उसकी यूपीए सरकार ने भी प्रयास किया था, लेकिन आम सहमति न बनने पर वह अटका हुआ था। राज्यसभा की प्रवर समिति की सिफारिशों के आधार पर इस बिल में किये गये बदलाव करके मोदी सरकार की केंद्रीय कैबिनेट ने इसे मंजूरी दी थी, जिसका मकसद पिछले शीतकालीन सत्र में इसे पारित कराना था, लेकिन कांग्रेस और अन्य दलों के हंगामे के कारण इसे आगे नहीं बढ़ाया जा सका था। अब इस विधेयक को पारित कराने के लिए कांग्रेस ने खुद सरकार पर दबाव बनाने का प्रयास किया और बिना कोई मौका गंवाए बिना सरकार ने गुरुवार को इसे राज्यसभा में पेश किया और चर्चा के बाद इस विधेयक पर सदन की सर्वसम्मिति से मुहर लगवा ली। सरकार को उम्मीद है कि रियल एस्टेट बिल के प्रावधान लागू होने से बिल्डरों की मनमानी और रियल एस्टेट सौदों की धोखाधड़ी पर लगाम लगाई जा सकेगी।
विधेयक में क्या हैं प्रावधान
विनियामक करेगा निगरानी:- विधेयक के अनुसार हर राज्य में रियल एस्टेट रेग्युलर नियुक्त होंगे, जो सभी प्रोजेक्ट की मॉनीटरिंग करेंगे और उपभोक्ता उनसे सीधे शिकायत कर सकते हैं। जिनकी सुनवाई रेग्युलेटर द्वारा की जाएगी।
ग्राहकों को मिलेगी पूरी जानकारी:- इस विधेयक से रियल एस्टेट सेक्टर में पारदर्शिता बढ़ेगी यानि प्रोजेक्ट लॉन्च होते ही बिल्डर्स को प्रोजेक्ट से संबंधित पूरी जानकारी अपनी वेबसाइट पर देनी होगी। इसमें प्रोजेक्ट के अप्रूवल्स के साथ ही प्रोजेक्ट के बारे में रोजाना अपडेट करना होगा।
दूसरे प्रोजेक्ट में नहीं लगा सकेंगे पैसा:- विधेयक में प्रावधान है कि खरीदार से वसूले गए पैसे को 15 दिनों के भीतर बैंक में जमा करना होगा। इस पैसे को एस्क्रो अमाउंट के रूप में रखा जाना है, जो कंस्ट्रक्शन कॉस्ट की 70 फीसदी राशि होगी और इसका उपयोग सिर्फ उसी प्रोजेक्ट के लिए होगा। शेष 30 फीसदी राशि का इस्तेमाल बिल्डर्स कहीं और कर सकता है।
तीन साल तक की सजा:- पजेशन देरी से होने या कंस्ट्रक्शन में दोषी पाए जाने पर डेवलपर को ब्याज और जुमार्ना देना होगा। यदि कोई डेवलपर बायर्स के साथ धोखाधड़ी का दोषी पाया जाता है, तो उसे तीन साल और प्रॉपर्टी डीलर या बायर को दोषी पाए जाने पर उसे एक साल की सजा हो सकती है।
कॉरपेट एरिया पर होगी बिक्री:- नए रियल एस्टेट बिल के अनुसार डेवलपर को प्रोजेक्ट की बिक्री सुपर एरिया पर नहीं कॉरपेट एरिया पर करनी होगी। डेवलपर को प्रोजेक्ट का पजेशन देने के तीन महीने के अंदर रेजिडेंशियल वेलफेयर एसोसिएशन को हैंड ओवर करना होगा।
वर्ग मीटर पर बने प्रोजेक्ट होंगे शामिल:- नए बिल में प्रोजेक्ट एरिया एक हजार वर्ग मीटर से कम कर 500 वर्ग मीटर कर दिया गया है। यानि आठ फ्लैट का प्रोजेक्ट भी इस बिल के दायरे में आएगा। इस तरह छोटे डेवपलर भी रेग्युलेटर की निगरानी में रहेंगे।