गुरुवार, 10 मार्च 2016

महिला आरक्षण: टूट सकता है दो दशक पुराना मिथक!

मोदी सरकार के पास मुद्दे का पटाक्षेप करने का मौका
महिला आरक्षण के गंभीर नजर आई संसद
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर संसद के दोनों सदनों मेें जिस प्रकार पक्ष एवं विपक्ष संसद में लंबित महिला आरक्षण विधेयक को पारित कराने की एक सुर में वकालत करते दिखे और विपक्ष ने महिला आरक्षण विधेयक को मौजूदा सत्र के एजेंडे में शामिल करने की मांग भी उठाई। मसलन इस मुद्दे पर यदि सहमति बनती है तो करीब दो दशकों से संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 प्रतिशत आरक्षण का कांटा निकालने का श्रेय मोदी सरकार को मिल सकता है।
लोकसभा और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण का प्रावधान करने वाले महिला आरक्षण विधेयक को संसद में अंजाम तक पहुंचाने के लिए ही शायद लोकसभा अध्यक्ष सुमित्रा महाजन ने दिल्ली में राष्ट्रीय महिला जनप्रतिनिधि सम्मेलन में नीवं रखी, जिसमें स्वयं राष्ट्रपति प्रणब मुखर्जी भी वकालत करते नजर आए। मंगलवार को अंतर्राष्ट्रीय महिला दिवस पर इस मुद्दे पर शायद पहली बार संसद जिस प्रकार एकजुट नजर आई, उससे लगता है कि 19 साल पुराने इस मुद्दे का पटाक्षेप होने की संभावनाएं प्रबल हैं। वामदल के सीताराम येचुरी आदि विपक्षी दलों के नेताओं ने तो उच्च सदन में यहां तक मांग कर डाली, सरकार को मौजूदा संसद सत्र के एजेंडे में संशोधन करके महिला आरक्षण विधेयक को शामिल करना चाहिए और महिलाओं के हक पर संसद की मुहर लगवाने के लिए प्राथमिकता देनी चाहिए। पिछले सप्ताह ही लोकसभा में विधि मंत्री डीवी सदानंद गौड़ा और राज्यसभा में महिला एवं बाल विकास मंत्री मेनका गांधी ने एक सवाल के जवाब में संसद और विधानसभाओं में महिलाओं को 33 फीसदी आरक्षण मुहैया कराने के प्रयास की बात कही थी, लेकिन इसके लिए संसद में संविधान संशोधन विधेयक लाने से पूर्व इस मुद्दे पर सभी राजनीतिक दलों के बीच आम सहमति बनाना जरूरी होगा। मंगलवार को संसद में गूंजे महिलाओं के हक के मुद्दे पर उभरे एक स्वर ने सरकार की आमसहमति के पक्ष को भी मजबूत किया है और लगता है कि सबकुछ ठीक-ठाक चला तो इस सत्र में मोदी सरकार करीब दो दशक पुराने मुद्दे को सुलझाकर अंजाम तक ले जा सकती है। गौरतलब है कि पूर्ववर्ती संप्रग सरकार द्वारा लाया गया विधेयक 15वीं लोकसभा का कार्यकाल समाप्त होते निष्प्रभावी हो गया था।
क्या है कानूनी पेंच
संसद में अप्रासंगिक विधेयक को नई लोकसभा के अस्तित्व में आने के बाद संविधान संशोधन विधेयक लाना होगा, जबकि राज्यसभा में पेश किए जाने वाले विधेयक हमेशा लंबित माने जाते हैं। कानून मंत्रालय के अनुसार संविधान (108वां संशेधन) विधेयक के रूप में महिला आरक्षण विधेयक गत छह मई 2008 को राज्यसभा में पेश हुआ था और नौ मार्च 2010 को राज्यसभा में इसे पारित कर दिया गया था, लेकिन 15वीं लोकसभा में यह पारित नहीं हो सका यानि 15वीं लोकसभा के भंग होने पर यह विधेयक समाप्त हो गया। दरअसल भारत के संविधान के अनुच्छेद 243 (टी) में संशोधन के माध्यम से मोदी सरकार शहरी स्थानीय निकायों में महिलाओं का प्रतिनिधित्व 33 प्रतिशत से बढ़ा कर 50 प्रतिशत करने पर विचार कर रही है।
संसदीय समिति ने दी थी सिफारिश
महिला आरक्षण विधेयक पहली बार एच.डी.देवगौड़ा की सरकार ने वर्ष 1996 में संसद में पेश किया था। इसके बाद संविधान (108वां संशोधन) विधेयक-2008 को कांग्रेस, भारतीय जनता पार्टी और वामदलों ने समर्थन दिया, लेकिन यूपीए सरकार को बाहर से समर्थन देने के बावजूद समाजवादी पार्टी, राष्ट्रीय जनता दल और जद-यू ने इसका जमकर विरोध किया। पिछले 19 साल से महिला आरक्षण विधेयक के लंबित होने का कारण यह भी है कि इसे पारित कराने लिए सदन में उपस्थित और मतदान करने वाले सदस्यों का दो-तिहाई बहुमत जरूरी है। यह संख्या सदन के सदस्यों की कुल संख्या का कम से कम 50 प्रतिशत भी होनी चाहिए। इससे पहले दिसंबर 2009 में कांग्रेस सांसद जयंती नटराजन की अध्यक्षता वाली विधि एवं न्याय संबन्धी संसदीय स्थायी समिति ने भी महिला आरक्षण विधेयक को फौरन पारित कराने की सिफारिश की थी, लेकिन समिति में शामिल सपा के शैलेंन्द्र कुमार और वीरेन्द्र भाटिया ने महिलाओं के 33 फीसदी आरक्षण में 20 फीसदी ओबीसी और अल्पसंख्यक का कोटा निर्धारित करने का मुद्दा उठाकर रोड़ा अटकाया था।
09Mar-2016


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