गुरुवार, 31 मार्च 2016

दूरसंचार कंपनियों ने लगाई 45 हजार करोड़ की चपत!


कैग की रिपोर्ट में हुआ बड़ा खुलासा
यूपीए शासनकाल में जमकर हुआ नियमों का उल्लंघन
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
यूपीए शासनकाल में 176 करोड़ रुपये के चर्चित 2जी स्पेक्ट्रम घोटाले के कारण जहां मनमोहन सरकार चौतरफा कटघरे में खड़ी नजर आई तो वहीं दूसरी ओर देश की शीर्ष छह निजी दूरसंचार कंपनियां भी सभी नियमों को ताक पर रखकर सरकारी खजाने को ऐसे कुतरती रही, कि तीन साल के भीतर सरकार को करीब 45 हजार करोड़ रुपये की चपत लगाकर बड़ा मुनाफा कमाने में सफल रही।
यह खुलासा इसी माह संपन्न हुए बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम दिनों में संसद में पेश हुई कैग की रिपोर्ट में सामने आया। मसलन सरकार को 45 हजार करोड़ का चूना लगाने वाली इन छह शीर्ष निजी दूरसंचार कंपनियों में रिलायंस कम्यूनिकेशन, एयरटेल,वोडाफोन, आइडिया, टाटा और एयरसैल के नाम शामिल है, जिन्होंने मिलकर वर्ष वर्ष 2006-07 से 2009-10 के दौरान टेलीकॉम के नियमों को जमकर उल्लंघन करते हुए बड़ा मुनाफा कमाया। कैग के अनुसार इन कंपनियों ने डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर व एजेंटों को दिए गए कमीशन की राशि को हटाकर ‘जीआर’ यानि ग्रॉस रेवेन्यू और ‘एजीआर’ यानि एनुअल ग्रॉस रेवेन्यू को कम करके दर्शाया, जबकि नियमानुसार केंद्र सरकार को दिए जाने वाले कर में डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर व एजेंटों को दिये जाने वाले कमीशन को भी जीआर और एजीआर में शामिल करना जरूरी था। मसलन यह सरकार के साथ राजस्व साझेदारी में आवश्यक ही नहीं, बल्कि अनिवार्य भी है। कैग रिपोर्ट में कहा गया है कि जीआर और एजीआर में कंपनी द्वारा किसी भी प्रकार का राजस्व छुपाना या कम दर्शाना टेलीकॉम लाइसेंस के खिलाफ ही नहीं, बल्कि नियमों का खुला उल्लंघन भी है, लेकिन खुलासे में यह बात सामने आई कि कंपनियों ने ऐसा माना कि डिस्ट्रीब्यूटर, डीलर और एजेंटों को भुगतान किया गया कमीशन मार्केटिंग एक्सपेंसेस का ही हिस्सा हो। कैग रिपोर्ट के मुताबिक सरकार को 5672.65 करोड़ रुपए की चपत लगाते हुए कंपनियों ने इसे रियायत राशि पर गैरकानूनी ढंग से सेव किया है। इसमें लाइसेंस फीस का 487.09 करोड़ एवं ‘एसयूसी’ यानि स्पैक्ट्रम यूस्ड क्रेडिट का 203.38 करोड़ रुपए का भी कम भुगतान हुआ है। इसके अलावा कंपनियों द्वारा जनता को समय-समय पर ‘फ्री टॉक टाइम’ जैसी योजनाओं का लाभ दिया गया, लेकिन बदले में सरकार को इसकी कोई रकम अदा ही नहीं की गई। ऐसी योजनाओं को जीआर व एजीआर में शामिल न करके सरकार के समक्ष झूठे आंकड़े पेश किए गए। इन्हीं तरीकों से कंपनियों ने पोस्टपेड ग्राहको को दी गई रियायत, रोमिंग सेवाओं में छूट, अवसंरचना की भागीदारी, फोरेक्स लाभ, निजी सेवा प्रदाताओं द्वारा ब्याज से आय के साथ-साथ निवेश की बिक्री जैसे विभिन्न स्तरों पर टैक्स से बचने के लिए भी गड़बड़झाले करने में ये कंपनियां पीछे नहीं रही।
रिलायंस ने बटोरा ज्यादा स्पेक्ट्रम
रियायंस कम्यूनिकेशन इंफ्रास्ट्रक्चर लिमिटेड (आरसीआइएल) ने अपनी सहायक कंपनी आरसीएल यूनिफाइड एक्सेस सर्विस के साथ मिलकर जमकर कमाई की और अपनी कुल राशि का सरकार को सही-सही भुगतान नहीं किया। मसलन इन दोनों कंपनी ने साझेदारी कर सरकार को चूना लगाया। रिलायंस का यह गडबड़झाला अन्य पांच कंपनियों की कर चोरी में अव्वल साबित हुआ। मसलन आरसीएल व आरसीआइएल द्वारा सरकार के समक्ष जीआर और एजीआर में 4424.12 करोड़ रुपए कम करके पेश किये।
खातों में भी गड़बड़झाला 
इन सभी छह कंपनियों के अकाउंट में मोटी गड़बडी करने का कैग रिपोर्ट में खुलासा हुआ है, जबकि सरकार ने इन्हीं कंपनियों की मदद के लिए उन्हें बेलआउट पैकेज तक मुहैया कराने में कोई कोताही नहीं बरती। यही नहीं सरकार की तरफ से संचार बाजार की सुस्ती की परवाह किये बिना भारतीय दूरसंचार क्षेत्र के विकास के लिए नीतियों में बदलाव करके स्पेक्ट्रम लाइसेंसधारियों को विशेष छूट तक दे डाली। कंपनियों के खातों की जांच में कैग ने पाया कि वर्ष 2006 से 2010 के दौरान कर संबंधित व्यवस्थाओं के अधीन जो तथ्य सामने आए हैं उसके अनुसार करीब 12 हजार करोड़ रुपए से ज्यादा की कर चोरी होने का अनुमान है। कैग ने अपनी रिपोर्ट में केंद्र सरकार से सिफारिश की है कि यदि वह उचित कार्रवाई अमल में लाये, तो इन कंपनियों को 30 हजार करोड़ रुपए के भुगतान की भरपाई केवल जुर्मान के रूप में की जा सकती है।
31Mar-2016


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