रविवार, 6 मार्च 2016

राग दरबार: कुछ तो सबक लो युवराज

युवराज को सीख कीदरकार
देश की राजनीतिक में अजब-गजब खेल ने जनता को सांसत में डाला हुआ है। कांग्रेस को सत्ताविहिन होना पच नहीं रहा है और इसी कारण इस पार्टी का शुरू से ही मोदी सरकार पर हमला होता आ रहा है, तो संसद में देश व जनहित के कामों में रोड़ा डालना कांग्रेस की नीयती में शुमार होती नजर आ रही है। कांग्रेस के युवराज तो संसद और संसद से बाहर सीधे पीएम मोदी को निशाना बनाने में कोई चूक नहीं करना चाहते, लेकिन उसमें गरिमा व मार्यादा भी अहम होना चाहिए, लेकिन इस आक्रमक राजनीति में कांग्रेस युवराज बड़ो या वरिष्ठों के सम्मान की भी परवाह करना गंवारा नहीं समझते। शायद यही अहसास उन्हें कराने के इरादे से संसद में राष्ट्रपति के अभिभाषण पर धन्यवाद प्रस्ताव पर हुई चर्चा के जवाब में प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी को सांस्कारिक ज्ञान देना पड़ा। इसका कारण भी साफ है उससे एक दिन पहले ही तो कांग्रेस युवराज सदन में ऐसे गरजे जैसे देश में सबकुछ देन कांग्रेस की ही है और राजग सरकार का कोई योगदान नहीं है? राजनीतिक गलियारों में यही सवाल उठ रहे हैं कि जिस तरह से युवराज सीधे पीएम से सवाल कर रहे थे उससे पहले युवराज को अपने या अपनी पार्टी के गिरेबान में भी झांक लेना चाहिए कि देश में सबसे ज्यादा राज करने के बाद देश व समाज को क्या दिया। खैर किसी पर निशाना साधना तो पीएम मोदी से सीखना चाहिए और इससे युवराज को भी सबक ले लेना चाहिए। चर्चा के जवाब में जिस तरह से प्रधानमंत्री मोदी ने विपक्ष को विश्वास में लेने की शालीनता दिखाते हुए युवराज को भी बिना नाम लिये उम्र बढ़ने पर समझ न बढ़ने के जुमले के जरिए मोदी ने कांग्रेस युवराज को आर्डिनेंस फाड़ने की याद दिलाते हुए यही नसीहत दी, देश, समाज और अपने से बड़ो का सम्मान कैसे किया जाना चाहिए, जो युवराज के लिए निश्चित रूप से सबक लेने से कम नहीं था। पीएम के संसद में इस बयान को विपक्षी दल भी शायद इसीलिए पूरी तरह से सराहना करते नजर आए। सोशल मीडिया पर तो कांग्रेस युवराज राहुल को किसी पर निशाना साधने की शालीनता की सीख लेने के लिए शब्दों के चयन की दलील तक देने की टिप्पणी तक की गई। राजनीति गलियारों में यही चर्चा हो रही है कि कांग्रेस युवराज को आरोप-प्रत्यारोपों में मर्यादाओं की सीख ले ही लेनी चाहिए, जो उनके राजनीतिक सफर का सहारा बन सकती है।
सिद्धांत की राजनीतिक
देश गरमाती सियासत में जेएनयू प्रकरण सड़क से संसद तक की सुर्खियों से अभी दूर नहीं हो पायी है, जिसमें छात्र संघ के नेता कन्हैया कुमार जेल की कोठरी से छह महीने की सशर्त अंतरिम जमानत पर खुली हवा में भी आ चुके हैं। दरअसल देशद्रोह के मामले को लेकर तेज होती सियासत में राजनीतिक दल एक नहीं कई धड़ों में बंटे हुए हैं तो बदजुबानी की परंपरा को हवा मिलना भी स्वाभाविक है। ऐसे में सवाल उठता है सिद्धांत की राजनीति का जो हर दल दुहाई देने में पीछे नहीं है। शायद केंद्र सरकार का नेतृत्व कर रही भाजपा ने ऐसे सिद्धांत मेें बाजी मारते हुए अन्य दलों के मुकाबले एक मिसाल ही कायम की है। मसलन देशद्रोह का आरोप झेल रहे जेएनयू के छात्र नेता कन्हैया कुमार की जीभ काटकर लाने वाले को पांच लाख रुपए का इनाम देने का ऐलान करने वाले भारतीय जनता युवा मोर्चा (भाजयुमो) के बदायूं जिलाध्यक्ष कुलदीप वार्ष्णेय के खिलाफ भाजपा हाईकमान ने तत्काल कार्रवाही का कड़ा फैसला लिया और वार्ष्णेय को सीधे छह साल के लिए पार्टी से बाहर का रास्ता दिखा दिया। यही नहीं भाजपा हाईकमान ने विवादास्पद बयान देने वाले पार्टी नेताओं की जुबान पर ताला जड़ते हुए एक कड़ा संदेश भी दे दिया है।
कुछ यूं पेश हुआ पेपरलैस बजट
मोदी सरकार ने बजट-2016-17 कई मायनों में बाकी बजटों की तुलना में क्या वास्तव में यादगार बनाकर पहली बार नई परंपरा शुरू की है या मीडिया में बजट की कवरेज को तुलनात्मक विश्लेषण के तिलिस्म को तोड़ने का प्रयास किया गया, कारण बजट की हार्डकॉपी के सभी संस्करण सांसदों को दिये गये। ऐसे ही उठते स्वाभाविक सवालों के तर्को में राजग सरकार ने इस नई पंरंपरा के जरिए पर्यावरण सुधार की दिशा में आगे बढ़ने को लेकर दूरगामी कदम उठाने का इशारा किया है। भले ही बहस चलती रहे। ऐसा पहली बार हुआ जब संसद में बजट पेश होने के कुछ देर बाद उसकी हार्डकॉपी मीडिया को न देकर उसे पीआईबी की वेबसाइट पर ई-फॉर्मेट में अपलोड कर दिया गया। इसके लिए हालांकि सरकार की ओर से बजट कवर करने वाले तमाम मीडिया संस्थानों के पत्रकारों को भी मोबाइल पर संदेश दे दिए गए थे कि इस बार बजट की हाईकॉपी नहीं दी जाएगी। अगर बजट की पूरी जानकारी लेनी है तो पीआईबी की वेबसाइट पर ई-कॉपी की मदद लें। बजट को पेपरलैस बनाने के पीछे केंद्र की मंशा इसकी हार्डकॉपी पर खर्च होने वाले कागजों की बेतहाशा बबार्दी पर रोक लगाना था। जो भी हो, पेपरलैस हो ही गया बजट।
06Mar-2016

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