सोमवार, 14 मार्च 2016

पूरे होते नहीं दिखते जीएसटी के मंसूबे!

आधार और रियल एस्टेट पारित होने पर उत्साहित सरकार
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।  
राज्यसभा में विपक्ष की रार के बीच भले ही सरकार ने आधार बिल पर पारित करा लिया हो, लेकिन बजट सत्र के पहले चरण में बाकी तीन दिनों मेें ऐसी उम्मीदों की राह तलाश रही केंद्र सरकार के जीएसटी विधेयक को पारित करा ले, ऐसी सभी संभावनाएं क्षीण होती नजर आ रही है। मसलन मोदी सरकार के एक अप्रैल से देश में जीएसटी लागू करने के मंसूबों पर पूरी तरह पानी फिरता नजर आ रहा है। हालांकि सरकार के लिए मौजूदा सत्र आधार और रियल एस्टेट बिल पारित होने से बड़ी उपलब्धियों से कम नहीं है।
दरअसल एक दिन पहले वित्तमंत्री अरुण जेटली ने अंतर्राष्ट्रीय मुद्राकोष संबन्धी एक सम्मेलन में संसद में पिछले सप्ताह राज्यसभा में रियल एस्टेट तथा आधार बिल पारित होने पर जीएसटी को पारित कराने की उम्मीद जताई है, लेकिन माना जा रहा है कि सरकार की इस उम्मीद की राह बजट सत्र के 25 अप्रैल से 13 मई तक चलने वाले बजट अगले चरण में रास्ता दे सकती है। वैसे भी यह तो सरकार भी मान रही है कि इस चरण के बाकी तीन दिनों में आम बजट और उससे जुड़ी अनुदान मांगों पर चर्चा और उसे पूरा कराना जरूरी है। सूत्रों की माने तो जीएसटी पर इन अंतिम तीन दिनों में सरकार ध्यान केंद्रित करने के बजाए खान और खनिज (विकास एवं विनियमन)-1957 अधिनियम और सिख गुरुद्वारा अधिनियम-1925 में संशोधन को आगे बढ़ाने का प्रयास कर सकती है, जिसमें संशोधन करके कैबिनेट ने पिछले सप्ताह ही मंजूरी दी है।
दो मोर्चो पर सफल रही सरकार
मोदी सरकार के लिए बजट सत्र में भले ही जीएसटी सिरे न चढ़ा हो, लेकिन दो अन्य मोर्चो पर वह विपक्षी दलों के नरम रवैये के चलते अरसे से अटके पड़े रियल एस्टेट (विनियामक और विकास) विधेयक पारित कराने में सफल रही। इससे सीधे घर के सपने देखने वाले खासकर मध्यम वर्गो के दिलों में सरकार ने अपनी जगह बना ली है। वहीं मोदी सरकार की इस सत्र के दौरान सरकारी सब्सिडी के लिए आधार बिल को धन संबन्धी विधेयक के रूप में राज्यसभा को पारित करना भी किसी उपलब्धि से कम नहीं माना जा रहा है। जबकि धन संबन्धी विधेयक के रूप में इसके पारित होने से विपक्ष कतई खुश नहीं है।
रियल एस्टेट में होगी हितों की सुरक्षा
संसद में पारित रियल एस्टेट (विनियम व विकास) विधेयक में रियल एस्टेट नियामक प्राधिकरण के गठन के प्रावधान ने मकान या दुकान खरीदने वालों के हितों की सुरक्षा को तय कर दिया है। यानि विधेयक के प्रावधान न सिर्फ खरीददारों के हितों की सुरक्षा तय करेगा, बल्कि डेवलपरों और बिल्डरों के भी हित में होगा। भले ही बिल्डरों की मनमानी पर लगाम लगाना और उनके खिलाफ सजा व जुर्माने की बात कही गई हो। विधेयक में सबसे महत्वपूर्ण है कि उपभोक्ताओं का 70 प्रतिशत धन बिल्डिरों के बैंक में सुरक्षित होगा। यदि बिल्डर ऐसे प्रॉजेक्ट्स को कस्टमर को बेचते हैं, जो रजिस्टर्ड नहीं हैं तो उनके प्रॉजेक्ट पर जुर्माना लगना तय है। तो जाहिर है कि इसमें खरीदारों के हितों की सुरक्षा कानून के दायरे में होगी। सबसे फायदे का सौदा है कि रियल एस्टेट एजेंट तक विनियामक प्राधिकरण में पंजीकृत होने से धोखाधड़ी की संभावना नहीं होगी। इससे भी बढ़कर यदि प्रोजेक्ट में उस समय तक कोई बदलाव नहीं हो सकेगा, जब तक खरीददार की अनुमति न हो। यही नहीं राज्य स्तर पर भी रियल एस्टेट विनियामक प्राधिकरण का गठन होगा,जहां खरीददार की शिकायतों का निपटारा राज्य स्तर पर हो सकेगा।
सोमवार को संसद में
बजट सत्र के पहले चरण के अंतिम सप्ताह में सरकार ने सोमवार को भारी भरकम काम कार्यसूची में शामिल किया है। लोकसभा में जहां राज्यसभा में पारित हुए रियल एस्टेट और मानक ब्यूरो विधेयक में संशोधनों को पारित कराने का लक्ष्य रखा है, वहीं लेखानुदान संबन्धी विनियोग विधेयकों को शामिल किया है। इसके अलावा विभिन्न विभागों की रिपोर्ट भी सदन में रखी जाएंगी। जबकि राज्यसभा में विधायी कार्यो की सूची में सूचना प्रदाता संरक्षण विधेयक के अलावा विनियोग (रेल) लेखानुदान विधेयक को पारित कराने का इरादा है। उच्च सदन में अन्य जरूरी कामकाज को निपटाने के विभिन्न कार्य शामिल किये गये हैं।
आधार विधेयक पर बरकार है विपक्ष की रार
राज्यसभा का सत्र 2 दिन बढ़ाने की उठी मांग
हरिभूमि ब्यूरो. नई दिल्ली।
लोकसभा में आधार बिल को मनी बिल के तौर पर पास करवाने से विपक्ष नाखुश है। विपक्ष ने मांग की है कि इस बिल पर बहस कराने के लिए राज्यसभा का मौजूदा सत्र दो दिन बढ़ाया जाए।
बजट सत्र का पहला चरण 16 मार्च को समाप्त हो रहा है। सरकार द्वारा आधार विधेयक को धनसंबन्धी विधेयक के रूप में पारित कराकर राज्यसभा को कमजोर करने का आरोप लगाया है, जिससे नाखुश विपक्ष इस पर सदन में बहस करना चाहता है। लिहाजा विपक्ष इस विधेयक पर चर्चा के लिए सत्र को बढ़ाने की मांग पर अड़ा हुआ है।
क्या है मामला
दरअसल अगर कोई विधेयक धनसंबंधी विधेयक के रूप में लोकसभा द्वारा पारित किया जाता है, तो संसद का उच्च सदन अथवा राज्यसभा उस पर केवल चर्चा कर सकती है, उसमें संशोधन नहीं कर सकती। इसके अलावा राज्यसभा को धनसंबंधी बिल पर चर्चा भी तुरंत करनी पड़ती है, क्योंकि यदि राज्यसभा में पेश किए जाने के 14 दिन के भीतर चर्चा नहीं होती है, तो उसे ‘पारित मान’ लिया जाता है। विपक्ष का तर्क है कि राज्यसभा में अल्पमत में होने के कारण सरकार ने उच्च सदन को कमजोर बनान की नाकाम कोशशि की है, ताकि वह ऐसे बिलों को पारित करा सके। आधार बिल 2016 के अंतर्गत यूनीक आइडेंटिफिकेशन नंबर (एकमात्र पहचान क्रमांक) प्रोग्राम अथवा आधार को कानूनी मान्यता दी जाएगी, और फिर सब्सिडी तथा अन्य लाभ सीधे बांटने के लिए उसी का इस्तेमाल किया जाएगा।
क्या है मनी बिल
संसदीय नियमों के अनुसार कोई बिल धन विधेयक तब कहा जाता है जब वह संविधान के अनुच्छेद 110(1) में निहित 6 मामलों से जुड़ा हो। ये टैक्स लगाने, हटाने उसे रेगुलेट करने या फिर भारतीय राजकोष से जुड़े होते हैं। कोई बिल मनी बिल है या नहीं इसे लेकर लोकसभा के स्पीकर का फैसला आखिरी होता है। मनी बिल सिर्फ लोकसभा में ही पेश किया जा सकता है राज्यसभा में नहीं। लोकसभा में पास होने के बाद यह राज्यसभा भेजा जाता है। इसके साथ मनी बिल होने को लेकर स्पीकर का सर्टिफिकेट भी होता है।राज्यसभा इसमें ना तो संशोधन कर सकती है ना ही नामंजूर कर सकती है। राज्यसभा को सिर्फ सुझाव देने का अधिकार होता है और इसे 14 दिनों के भीतर लोकसभा वापस करना होता है। हालांकि ये लोकसभा पर है कि वह राज्यसभा के सुझाव मानती है या नहीं।
14Mar-2016

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