कानूनी मसौदा तैयार करने में जुटा जल संसाधन मंत्रालय
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली।
केंद्र
सरकार ने जल संकट से जूझते भारत में ताजा और शुद्ध पेयजल के समुचित
इस्तेमाल के लिए जल्द ही जल कानून लाने की तैयारी शुरू कर दी है, जिसके लिए
सरकार एक मसौदा तैयार करने में जुट गई है। मसलन इससे पहले दम तोड़ चुकी
यूपीए की मनमोहन सरकार की कानून लाने की कवायद को अब अमलीजामा पहनाने के
प्रयास शुरू हो गये हैं।
नई दिल्ली में आगामी चार अप्रैल से शुरू
होने जा रहे अंतर्राष्ट्रीय स्तर के चौथे भारतीय जल सप्ताह समारोह में
लोगों को ताजा और शुद्ध पेयजल के इस्तेमाल को सीमित करने पर फोकस करते हुए
अंतर्राष्ट्रीय प्रतिनिधियों के बीच मंथन होने की उम्मीद है। इससे पहले
केंद्रीय जल संसाधन, नदी विकास एवं गंगा संरक्षा मंत्री सुश्री उमा भारती
ने मंत्रालय में सचिव शशि शेखर के साथ खासकर भू-जल दोहन रोकने के एक सवाल
के जवाब में कहा है कि मंत्रालय में विशेषकर ताजा जल के इस्तेमाल को सीमित
करने पर एक मसौदे पर काम चल रहा है, जिसका मकसद देश में जल कानून को लागू
करना है। उमा भारती का तर्क है कि जल संरक्षण और उपयोग के सामान्य
सिद्धांतों को लेकर एक ऐसा व्यापक पंहुच वाला राष्ट्रीय कानूनी ढांचा बनाने
की जरूरत है, जो हर राज्य को जल संचालन का आवश्यक विधायी आधार प्रदान
करें। कानूनी पहल से ही देश के पैमाने पर एकीकृत और सुसंगत संस्थागत जल
नीति को लागू करने में मदद मिल सकेगी। उमा भारती का कहना है कि
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वयं भूमिगत जल या संरक्षित वर्षा जल पर जोर
दे रहे हैं। यही कारण है कि सरकार के बजट में आजादी में पहली बार भूजल के
स्तर को सुधारने की दिशा में छह हजार करोड़ रुपये का आवंटन किया गया है, जो
पिछले साल केवल 60 करोड़ रुपये था। उमा भारती ने हालांकि कहा कि भारतीय
संविधान के तहत पानी का मामला राज्य सरकारों के अधीन आता है, लेकिन राज्यों
की सहमति हासिल करने के बाद ही केंद्र सरकार मसौदे को कानूनी दर्जा देने
के लिए आगे बढ़ेगी। सरकार इजरायल जैसे देशों की तर्ज पर देश के किसानों से
सिंचाई के लिए मशीनों से साफ किए गए पानी के इस्तेमाल करने पर भी बल दे रही
है। मौजूदा कानून भूमि के मालिकों को अपनी भूमि से जितना चाहे जल निकालने
का अधिकार देते हैं। जल निकालने की सीमा के लिए कोई कानून नहीं हैं, जबकि
इसकी जरूरत महसूस की जा रही है।
क्या है देश में जल की स्थिति
केंद्रीय
जल संसाधन मंत्रालय के अनुसार विश्व की आबादी का 18 फीसदी से ज्यादा आबादी
होते हुए भी भारत में विश्व के नवीकरणीय जल संसाधन का महज 4 फीसदी ही है।
यही नहीं जल के असमान वितरण के कारण उपयोग योग्य जल की मात्रा और भी ज्यादा
सीमित नजर आती है। वहीं बढ़ती आबादी और तेजी से विकसित हो रहे राष्ट्र की
बढ़ती जरूरतों के साथ-साथ जलवायु परिवर्तन के असर के कारण उपयोग योग्य जल की
उपलब्धता पर दबाव और बढ़ जाने का अन्देशा बना हुआ है।
यूपीए ने शुरू की थी कवायद
यूपीए-2
सरकार ने भी वर्ष 2012 भू-जल दोहन पर सख्त कानून बनाने की वकालत की थी।
वैश्विक आबादी और जल उपयोग योग्य पेयजल के आधार पर देश में बिगड़ती स्थिति
पर पहले भारत जल सप्ताह के दौरान स्वयं तत्कालीन प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह
ने कहा था कि अपने स्वामित्व वाली भूमि से जितना चाहे भू-जल निकालने की छूट
को नियंत्रित करने के लिए सख्त कानून बनाया जाएगा, लेकिन यूपीए सरकार इस
दिशा में आगे नहीं बढ़ सकी थी। गौरतलब है कि देश में जहां भूजल का स्तर तेजी
से घटता जा रहा है, वहीं भूजल में μलोराइड, आर्सेनिक और अन्य रासायनों की
मात्रा बढ़ने से जहरीले होते पानी को शुद्ध जल में तब्दील करने की बड़ी
चुनौती बनी हुई है।
29Mar-2016
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