रविवार, 27 मार्च 2016

राग दरबार:- फॉर्च्यून से 'मौंगेबो' खुश हुआ

अरंविद केजरीवाल का अहंकार
अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर मशहूर मैगजीन फॉर्च्यून हर साल दुनिया भर के नेताओं की लोकप्रियता के आधार पर नेताओं की क्रमवार सूची जारी करती है, इस बार ताजा सूची में दिल्ली के मुख्यमंत्री अरंविद केजरीवाल का भी 50 महान लीडर्स में नाम है और इस सूची से पीएम मोदी का नाम नदारत है तो केजरीवाल की दोगुना हुई खुशियों का कोई ठिकाना नहीं है। दरअसल केजरीवाल ऐसे मामलों में ज्यादा उत्साहित नजर आते हैं जब मोदी के मुकाबले वह अपने सियासी कद को बढ़ता देखते हैं। मसलन एक फिल्म के उस डॉयलॉग की याद ताजा होना लाजिमी है जिसमें अमरीशपुरी कहते नजर आते हैं कि मोंगेबो खुश हुआ...। यही हाल सुर्खियों में बने रहने की ललक पाले आप नेता अरविंद केजरीवाल का है जो हमेशा अपनी तुलना पीएम मोदी से किये बिना रह नहीं सकता, जिसने लोकसभा चुनाव में भी नरेन्द्र मोदी से बनारस में चुनावी मुकाबला करने का प्रयास किया। राजनीतिक गलियारों में अरविंद केजरीवाल की छवि भले ही किसी रूप में उतरी हो, लेकिन हाल ही में फॉर्च्यून की दुनियाभर के 50 महान नेताओं की लिस्ट में आने से केजरीवाल बेहद उत्साहित नजर आ रहे हैं, दूसरे मोदी ने उनके इस उत्साह को ट्विीटर पर फालो करके सातवें आसमान पर पहुंचा दिया। केजरीवाल शायद इस उत्साह में यह भूल गये कि पिछले साल दुनियाभर के महान नेताओं की सूची में पीएम मोदी पांचवे स्थान पर थे और उनका स्थान 42वां हैं, फिर भी आॅड-ईवन फार्मूले ने उसे कम से कम इसमें सूचीबद्ध तो कर ही दिया, भले ही सियासी गलियारे में चर्चाएं कुछ भी होती रहें।
विपक्षी दलों की गुगली
जम्मू-कश्मीर में जैसे-जैसे पीडीपी और भाजपा के बीच सरकार बनाने के लिए बात आगे बढ़ रही है वैसे-वैसे कांग्रेस, वामपंथी दलों और आम आदमी पार्टी के नेता खुश हो रहे हैं। दरअसल अफजल गुरू और राष्टÑवाद के मुद्दे पर भाजपा अपने विरोधी दलों पर भारी पड़ती रही है। जेएनयू के मुद्दे ने तो ऐसा रंग पकड़ा था कि भाजपा ने हर उस पार्टी और नेता को देशभक्ती का पाठ पढ़ाने में देर नहीं की जो कन्हैया कुमार और उमर खालिद की तरफदारी कर रहा था। लेकिन अब भाजपा से विरोधी पार्टियां पूछने लगी हैं कि जिस पीडीपी के साथ मिलकर सरकार बना रहे हो, उसकी अफजल गुरू और भारत माता के बारे में क्या राय है? जाहिर है भाजपा के पास इसका कोई तर्कसंगत जवाब नहीं होगा। हर कोई जानता है कि पीडीपी अफजल गुरू की फांसी के खिलाफ थी और उसको बेकसूर मानती है। ऐसे में कांग्रेस और दूसरे कई दल जो भाजपा के खिलाफ हैं अब जानना चाहते हैं कि पीडीपी के साथ सरकार का गठन भाजपा के लिए राष्ट्रवाद है या राष्ट्र विरोध। देखते हैं आने वाले दिनों में भाजपा के प्रवक्ता विपक्षी दलों के सवालों की गुगली को कैसे झेलते हैं।
नेताजी की हो.. ली
सियासी बिरादरी में यूं तो छपास और टीवी पर दिखने का रोग नया नही है। किंतु, कुछ नेताओं को तो ये इस कदर है कि मत पूछिए। अब हाल ही का वाकया है। होली के मौके पर अपने पार्टी के नेताओं में सबसे पहले टीवी पर दिखने की चाह में एक नेताजी ने पूरा इंतजाम कर डाला। अपने कुछ समर्थकों को टोली के साथ अलसुबह ही ढ़ोल बाजे समेत अपने आवास पर हाजिर होने को कह रखा था। मीडिया वालों को भी पहले ही बता दिया गया था कि, नेताजी 9 बजे होली खेलने और बधाई देने के लिए उपलब्ध रहेंगे। नतीजतन कई अखबारों व चैनलों के पत्रकार, कैमरामैन और फोटोग्राफर नेताजी के घर तय वक्त पर पहुंच गए। किंतु, समर्थक ढोÞलबाजे के साथ पहुंचे ही नही थे। नेताजी ने के सहायकों ने उन समर्थकों को फोन किया तो पता चला कि ढ़ोल वाले को लेकर पहुंच रहे। डेढ़ घंटे के बात समर्थक पहुंचे तो नेताजी का ताव में आ गए, क्योंकि आधे से ज्यादा टीवी वाले उनके प्रतिद्वंदी के घर का रूख कर गए थे। खैर किसी तरह फिर उन्हें बुलाया गया तब जाकर नेताजी ने होली शुरु की। इतना ही नही। फूटेज अच्छी और बिकाऊ हो इसका ख्याल रखते हुए ढ़ोल भी जमकर बजाया। किंतु, अफसोस बड़े नेताओं ने उनके हिस्से की कवरेज लेकर किये कराये पर पानी फेर दिया।
तो बाबू फंस गए भवन में...
राजधानी दिल्ली का शास्त्री भवन एक ऐसी इमारत है जो वर्षों से कई महत्वपूर्ण सरकारी महकमों का आसियाना होने की वजह से चर्चाओं के केंद्र में रहती है। लेकिन बीते दिनों होली से ठीक एक दिन पहले यहां एक बड़ा ही अजीबोगरीब नजारा देखने को मिला। जिसमें एक ओर भवन के गेट के बाहर जेएनयू छात्रों की ओर से जोरदार प्रदर्शन चल रहा था तो दूसरी ओर इमारत के भीतर कई अधिकारी यानि बाबू बाहर निकलने को बैचेन नजर आ रहे थे। लेकिन चाह कर भी कोई बाहर नहीं निकल पा रहा था। क्योंकि प्रदर्शन की वजह से भवन से बाहर निकलने वाले सारे गेट बंद कर दिए गए थे। कुछ अधिकारी तो भवन के कोरिडोर में बैठे हुए तो कुछ इस कदर टहलते हुए भी नजर आए कि कब यह प्रदर्शन खत्म होगा और वो अपनी-अपनी बैठकों के लिए बाहर निकल पाएंगे। इसे देखकर तो यही कहेंगे कि प्रदर्शन के चक्कर में बाबू फंस गए भवन में।
-हरिभूमि ब्यूरो
27Mar-2016

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