सोमवार, 24 अप्रैल 2023

साक्षात्कार: साहित्य में सकारात्मक दृष्टिकोण की अहम भूमिका: डा. प्रद्दुम्न भल्ला

साहित्यिक रचनाओं में सामाजिक सरोकार के साथ किया आध्यात्मिक रस का समावेश
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. प्रद्युम्न भल्ला ‘पूर्ण’ 
जन्मतिथि: 20 अक्टूबर 1967 
जन्म स्थान: कैथल 
शिक्षा: एमए(अंग्रेजी, हिंदी, शिक्षा, जन संचार, नैदानिक मनोविज्ञान), एमएड, पीएचडी(हिंदी)। 
संप्रत्ति:हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में राजपत्रित अधिकारी।
संपर्क: 508, सेक्टर-20, अर्बन एस्टेट, कैथल(हरियाणा) मोबा. 9812091069
ई-मेल : pradumanbhalla67@gmail.com
 
 --BY—ओ.पी. पाल 
साहित्य जगत में हिंदी के संवर्धन के लिए साहित्यकार, कवि एवं लेखक अपनी विभिन्न विधाओं में साहित्य साधना के माध्यम से समाज को नई दिशा देने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही प्रसिद्ध साहित्यकारों में शुमार हरियाणा के डा. प्रद्युम्न भल्ला ‘पूर्ण’ ने सामाजिक सरोकार से जुड़े विषयों पर फोकस करते हुए अपनी लेखनी चलाई और सकारात्मक दृष्टिकोण अपनाते हुए अपने साहित्यिक रचना संचार को विस्तार दिया है। डा. भल्ला ने शायद निरंकारी मिशन से मिले ब्रह्मज्ञान की वजह से अपनी साहित्यिक रचनाओं में आध्यात्मिक रस का समावेश किया,जो उनकी दोहा विधा में साफतौर से नजर आता है। हरियाणा सरकार के शिक्षा विभाग में एक राजपत्रित अधिकारी पद पर सेवा दे रहे प्रसिद्ध साहित्यकार एवं लेखक डा. प्रद्युम्न भल्ला ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर की गाथा में कई अनुछुए पहलुओं को उजागर किया। 
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रियाणा के साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला का जन्म 20 अक्टूबर 1967 को कृष्ण कुमार के परिवार में हुआ। उनका कहना है कि उनके परिवार में दूर-दूर तक साहित्य से किसी का कोई नाता नहीं रहा। हां! उनकी दादी धार्मिक प्रवृत्ति की अवश्य थी और मेरा नाम भी प्रद्युम्न उन्हीं का पौराणिक संदर्भों से दिया गया नाम है। यदा-कदा जब वह कुछ लिखने का प्रयास करते थे, तो वह नहीं जानते थे कि उस समय उनका यह लेखन कविता या या कहानी होती थी? कुछ भी हो, लेकिन वह उसे देखकर उनके भीतर ऊर्जा पैदा करने की कोशिश करती थी। उनकी मेरी पहली रचना ‘सौदा’ 1984 में कैथल से निकलने वाले एक दैनिक अखबार ‘हरियाणा लीडर’ में प्रकाशित हुई थी। इससे उनका आत्मविश्वास बढ़ा, जिसके लिए उन्हों अपने परिचितों और मिलने-जुलने वालों से सराहना मिली। हिंदी, अंग्रेजी और पंजाबी भाषा के ज्ञाता डा. प्रद्युम्न भल्ला कहते हैं कि उनका विधिवत साहित्यिक सफर 1986 से आरंभ हुआ, जब वह भगवान प्रियभाषी, सुरेश जांगिड़ उदय, पृथ्वीराज अरोडा, यश खन्ना नीर आदि के संपर्क में आए और उन्होंने अपना लेखन लघुकथा से प्रारंभ किया। साल 1987 में उन पर लघुकथा का जुनून कुछ इस कदर हावी था कि उन्होंने उस समय एक लघुकथा-संग्रह ‘सारांश’ संपादित किया। इस संग्रह में 100 लघु कथाकार, छः लेखकों की परिचर्चा में भागीदारी एवं दो आलेख शामिल थे। उन्हें प्रसन्नता है कि यह कृति उनके लिए मील का पत्थर साबित हुई। उनका मानना है कि सकारात्मक सोच के साथ यदि आप लेखन के प्रति समर्पित हैं और ईमानदार हैं, तो आपको आगे बढ़ने से कोई नहीं रोक सकता, भले ही इसमें कुछ वक्त लगे। हरियाणा पंजाबी साहित्य अकादमी, हरियाणा साहित्य अकादमी, भाषा विभाग पंजाब, हिमाचल एवं देश की कई संस्थाओं से सम्मान मिलना इसी बात का प्रतीक है। उनकी साहित्यिक रचनाओं का फोकस सदैव मानवीय मूल्यों और सकारात्मक सोच के प्रति रहा है, जिसमें उन्होंने भूख, सास-बहू, बच्चे, नैनीताल, ताजमहल, जंगल, परदेस, मजदूर, धूप, भ्रष्टाचार, पर्यावरण, दफ्तर, सांत्वना, समाज, वक्त, मेहनत, हंसी आदि 34 विषयों पर दोहों की रचना भी की। उन्होंने समाजिक परिवेश में जो कुछ भी देखा, उसे शिद्दत के साथ महसूस करके अपने लेखन से समाज को एक सकारात्मक संदेश देने का प्रयास किया है। निरंकारी मिशन से जुड़े हुए होने के कारण उन्होंने गुरुभक्ति व अध्यात्म शीर्षकों को लेकर प्रभु प्रेम पर अत्यधिक दोहे लिखे हैं। यानी उन्होंने इन दोहों द्वारा सांसारिक प्रेम से आध्यात्मिक प्रेम तक की यात्रा भी तय की है। उनकी यह साहित्यिक यात्रा पिछले करीब साढ़े तीन दशक से अनवरत जारी है और उनके लेख साहित्यिक पत्रिकाओं एवं समाचार पत्रों में समय-समय पर प्रकाशित हो रहे हैं। वहीं वे आकाशवाणी और दूरदर्शन में अतिथि लेखक के रुप में भी शामिल हुए और साहित्यिक क्षेत्र में उन्होंने एक प्रसिद्ध एंकर, मंच-कवि और प्रेरक वक्ता की पहचान बनाई है। 
आधुनिक युग में पाठकों में कमी 
डा. भल्ला का कहना है कि वर्तमान युग में साहित्य की स्थिति यद्यपि अच्छी नहीं है, लेकिन फिर भी पुस्तक-प्रकाशन और साहित्य-लेखन में कमी नहीं आई है। यह अलग बात है कि इंटरनेट युग होने के कारण साहित्य के पाठक कम हुए हैं और व्यक्ति पुस्तकों से दूर होता जा रहा है। मगर इसके बावजूद साहित्य-लेखन और प्रकाशन निर्बाध गति से जारी है। यह भी नहीं कह सकते कि युवा पीढ़ी की साहित्य में रुचि नहीं है। हां! उनकी अभिरुचि के मायने अवश्य बदले हैं। जिस साहित्य को हम मानते आए अथवा मान रहे हैं, युवा पीढ़ी उसके दूसरी तरफ चलकर इसे रूमानी और भागदौड़ की जिंदगी से सुकून पाने के जरिए के रूप में देखती है, लेकिन इसे स्वीकार नहीं कर पाती। यह एक बड़ी त्रासदी पूर्ण स्थिति है। दरअसल आज की युवा पीढ़ी सफलता का शॉर्टकट तलाश करती है और तकनीकी युग में शायद बहुत सी चीजें उन्हें उपलब्ध भी हैं, जो साहित्यकारों के गले नहीं उतरती। वे मानते हैं कि युवा पीढ़ी को प्रेरित करने के लिए साहित्य अकादमियों की एक बहुत बड़ी भूमिका हो सकती है और उनके लिए कार्यक्रम आयोजित करते हुए प्रौढ़ साहित्यकारों को भी प्रमुखता के साथ शामिल किया जाना चाहिए, क्योंकि प्रौढ़ साहित्यकारों के पास अनुभव और शब्द भंडार का खजाना है। 
पुस्तक प्रकाशन 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला की अब तक बाल साहित्य, दोहा, नाटक विधा के अतिरिक्त अंग्रेजी साहित्य समेत 19 पुस्तकों का प्रकाशन हुआ है, जिसमें चार कहानी संग्रह-रिसते-रिश्ते, एक महाभारत और, तल्ख़ियां, साहब का कुत्ता, पांच काव्य संग्रह में एहसासों की आंच, मैं फिर लौटूंगा, बड़ी होती लड़की, ताजा हवाओं के लिए,जग ढूंढता है जिसको जैसी पुस्तकें सुर्खियों में हैं। इसके अलावा तीन लघुकथा संग्रह-सारांश, मेरी पैंसठ लघुकथाएं, लघुदंश, दो बाल साहित्य-खुश्बू और सलोना बचपन, एक नाटक- मानव का मुकदमा, एक दोहा संग्रह-उमड़ा सागर प्रेम का और अंग्रेजी पुस्तक ड्युएलिटीज इन लाइफ भी उनकी कृतियों में शामिल है। उन्होंने प्रौढ़-शिक्षा का महत्व महात्मा गांधी का व्यक्तित्व पर दो अन्य पुस्तकें भी लिखी हैं, जबकि उन्होंने दो पुस्तकों का अंग्र्र्रेजी में अनुवाद भी किया है। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा साहित्यकार डा. प्रद्युम्न भल्ला को साल 2021 के लिए ढ़ाई लाख रुपये के ‘बाबू बालमुकुंद गुप्त साहित्य सम्मान’ से अलंकृत किया जा रहा है। इससे पहले अकादमी उनकी कहानी साहब का कुत्ता को तृतीय पुरस्कार दे चुका है। हिंदी साहित्य प्रेरक संस्था के डा. हरिशचंद मिड्ढा स्मृति साहित्य सम्मान के अलावा जिला, राज्य व राष्ट्रीय स्तर पर डा. भल्ला को विभिन्न सरकारी, गैर सरकारी और साहित्यिक संस्थाओं द्वारा अब तक दो सौ से ज्यादा पुरस्कार एवं सम्मान से नवाजा जा चुका है। कई बड़े कार्यक्रमों में मंच का संचालन भी कर चुके हैं। उन्होंने बताया कि पिछले दिनों हरियाणा साहित्य अकादमी की तरफ से उसकी एक कहानी को तृतीय पुरस्कार के लिए चयन करते हुए सम्मानित किया था। प्रदेशभर में 90 कहानियों में यह तीसरे नंबर पर आई थी। उनकी नाटक पुस्तक आदमी दा मुकदमा को भी हरियाणा पंजाब साहित्य अकादमी द्वारा पुरस्कृत किया जा चुका है। 
  24Apr-2023

बुधवार, 19 अप्रैल 2023

हैदराबाद के सौंदर्य को नया आयाम देगा तेलंगाना का नया सचिवालय

तीस अप्रैल को हुसैन सागर के तट पर नए भवन का होगा उद्घाटन 
ओ.पी. पाल 
हैदराबाद से लौटकर। तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद में विश्व में सबसे ऊंची 125 फुट की डा. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा का रिकार्ड दर्ज करने के बाद ऐतिहासिक वास्तुकला के साथ बनाया गया तेलंगाना का नया सचिवालय इस ऐतिहासिक एवं खूबसूरत शहर की खूबसूरती को नया आयाम देने का तैयार है। हैदराबाद में इस नए सचिवालय 30 अप्रैल को होने वाले उद्घाटन के लिए तैयार है। खुद मुख्यमंत्री केसीआर कई बार नए सचिवालय के निर्माण का निरीक्षण कर चुके हैं। आंध्र प्रदेश से अलग होकर अस्तित्व में आने के बाद तेलंगाना की राजधानी हैदराबाद को ऐतिहासिक एवं खूबसूरती के रुप में विकसित हो रहा है। इसी खूबसूरती को नए आयाम देने के लिए हैदराबाद में हुसैन सागर के तट पर तेलंगाना का नया सचिवालय बनकर तैयार हो चुका है, जिसका उद्घाटन 30 अप्रैल को राज्य के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव करेंगे। इंडो-सरसेनिक शैली में 616 करोड़ रुपये की लागत से तैयार यह नया सचिवालय भवन देखने में इंद्रभवन की तरह नजर आ रहा है, जिसमें गंगा जमुनी तहजीब दिखती है। मसलन सचिवालय भवन के भीतर मंदिर, मस्जिद और चर्च के लिए अलग-अलग जोन तैयार कराए गये हैं। वहीं 26.98 एकड़ क्षेत्रफल में फैले सचिवालय में ऐतिहासिक चार मीनार और गोलकुंडा किले के साथ-साथ एक अद्वितीय वास्तुशिल्प भी आकर्षण का केंद्र होगा। सचिवालय के बगल में विश्व की सबसे ऊंची 125 फीट वाली संविधान निर्माता डा. भीमराव अंबेडकर की प्रतिमा, भवन के उत्तर की ओर एनटीआर गार्डन तथा सचिवालय के ठीक सामने लुंबिनी पार्क देश-विदेश के पर्यटकों को आकर्षित कर रहा है। सबसे खासबात यह भी है कि हुसैन सागर के पानी में इस सचिवालय का प्रतिबिम्ब साफ नजर आता है। यह कहने में भी कोई अतिश्योक्ति नहीं होगी कि आइकॉनिक स्ट्रक्चर का हब के रुप में विकसित होते हुसैन सागर का तट हैदराबाद की खूबसूरती में चार चांद लगा रहा है। राज्य सरकार ने यह संरचना हैदराबाद में तेलंगाना की ऐतिहासिक और सांस्कृतिक विरासत के प्रतिबिंब के रूप में पूरी की है। सचिवालय भवन को 150 वर्षों तक चलने के लिए डिजाइन किया गया है। 
कैसा है सचिवालय 
तेलंगाना के नए सचिवालय का निर्माण नीलकंठेश्वर मंदिर, वनपर्थी पैलेस और सारंगपुर हनुमान मंदिर से प्रेरणा लेकर बनाया गया है। इस भवन पर कुल 34 गुंबद लगाए गये हैं। पूर्व और पश्चिम की ओर भवन के केंद्र में दो बड़े गुंबद हैं, जिन पर राष्ट्रीय चिन्ह स्थापित हैं। यही नहीं नए सचिवालय में तिरुपति की मूर्तियां भी लगाई जा रही हैं। इसके अलावा सचिवालय में गणपति, सुब्रह्मण्यस्वामी, अभयंजनयस्वामी, सिम्हा, नंदी और शिवलिंग की पत्थर की मूर्तियां भी लगाई जाएंगी। इन देवी-देवताओं की मूर्तियों को तमिलनाडु के कांची क्षेत्र की काली चट्टानों का इस्तेमाल करके बनाया जा रहा है। सचिवालय भवन को चेन्नई स्थित आर्किटेक्ट्स पोन्नी कॉन्सेसाओ और ऑस्कर कॉन्सेसाओ द्वारा सचिवालय भवन को 150 वर्षों तक चलने के लिए डिजाइन किया गया है, जो भवन की गुंबदों के साथ इंडो-इस्लामिक वास्तुशिल्प के मिश्रित संरचना से इंडो-सरसेनिक शैली में प्रतीत होता है। सचिवालय भवन में आगंतुकों के लिए सहायक भवनों, पुलिस कर्मियों, अग्निशमन विभाग, क्रेच, उपयोगिता भवन जैसे निर्माण को भी किया गया है। इसके अलावा लैंडस्केपिंग, पत्थर के फुटपाथ के साथ हार्डस्केप और लॉन, देशी पेड़, फव्वारे, वीवीआईपी, कर्मचारियों और अन्य लोगों के लिए पार्किंग के लिए पर्याप्त जगह की योजना के तहत निर्माण किया गया है। 
अंबेडकर की प्रतिमा का नया किर्तिमान 
तेलंगाना सरकार ने नए सचिवालय के साथ स्थापित की गई डा. भीमराव अंबेडकर की 125 फीट ऊंची प्रतिमा का अनावरण पिछले सप्ताह 14 अप्रैल को राज्य के मुख्यमंत्री के. चन्द्रशेखर राव और डा. अंबेडकर के पोते प्रकाश अंबेडकर ने किया है। 474 टन वजन की कांस्य की इस प्रतिमा की स्थापना और 26258 वर्ग फीट क्षेत्रफल वाले इस परिसर के सौंदर्यकरण जैसे विकास पर 146.50 करोड़ खर्च किए गए हैं। इसी परिसर में बुद्ध प्रतिमा और शहीद स्मारक का भी निर्माण किया गया है। खासबात है कि डा. अंबेडकर की इस प्रतिमा ने ऊंचाई के हिसाब से नया कीर्तिमान बनाया है।
19Apr-2023

सोमवार, 17 अप्रैल 2023

चौपाल: हरियाणवी फिल्मो से लेकर वॉलीवुड तक गीतकार कृष्ण भारद्वाज का डंका

गीतकार के साथ विभिन्न शैली और विधाओं में गीत लेखन में हुए लोकप्रिय 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: कृष्ण भारद्वाज 
जन्मतिथि: 28 अगस्त 1967 
जन्म स्थान: ग्राम पाई, जिलाकैथल (हरियाणा), वर्तमान-भिवानी (हरियाणा) 
शिक्षा: स्नातक(बीए)
संप्रत्ति: सेवानिवृत्त जूनियर वारंट आफिसर(भारतीय वायु सेना), फिल्म अभिनेता एवं लोक कलाकार। 
पिता का नाम: श्री राम स्वरुप शास्त्री वेदाचार्य (मुख्याध्यापक वैश्य स्कूल भिवानी) 
माता का नाम: श्रीमती सावित्री देवी (घरेलू महिला) 
संपर्क: भिवानी(हरियाणा), मोबा.98331 69727 

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BY--ओ.पी. पाल 
रियाणा की लोक कला एवं संस्कृति देशभर में ही नहीं, बल्कि विदेशों तक लोकप्रिय हो रही है और इसका श्रेय सूबे के लोक कलाकारों, लेखकों, गीतकारों और लोक गायको की अपनी कला के बेहतर प्रदर्शन को जाता है। ऐसे ही हरियाणा के गीतकार एवं गीत लेखक कृष्ण भारद्वाज ने हरियाणवी फिल्मों से लेकर बॉलीवुड फिल्मो और लोकप्रिय धारावाहिक सीरियलों के लिए गीत लिखकर संगीत के क्षेत्र में अहम भूमिका निभाई है। उनके गायन और गीत लेखन की यह भी विशेषता रही कि वे आंचलिक शब्दों का इस्तेमाल और उन्हें नए ढंग से प्रस्तुत करने का प्रयास करते रहे। अपनी विभिन्न शैली में गीतों के लेखक और गायक के रुप में भारतीय वायु सेना की सेवा के दौरान भी अपनी एक अलग पहचान बनाई। उन्होंने फिल्मी, सांस्कृतिक, सामाजिक के अलावा धार्मिक गीत लेखन में भी लोकप्रियता हासिल की है। हरियाणवी संस्कृति को प्रोत्साहन देते आ रहे फिल्मी क्षेत्र में ‘भाई जी’ के नाम से प्रचलित रहे कलाकार कृष्ण भारद्वाज ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में भारतीय वायु सेना में वारंट आफिसर से लेकर गीत संगीत तक के सफर के अनुभवों को साझा किया। 
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रियाणा की छोटी काशी के रुप में पहचाने जाने वाले भिवानी के गीत लेखक एवं गायक कृष्ण भारद्वाज का जन्म 28 अगस्त 1967 को कैथल जिले के ग्राम पाई के मूल निवासी वेदाचार्य राम स्वरुप शास्त्री के परिवार में हुआ। उनके पिता पिता राम स्वरुप शास्त्री वेदाचार्य वैश्य स्कूल भिवानी में अध्यापक थे, जो स्कूल में पढ़ाने जाने से पहले सुबह सुबह सीता राम केसरी संस्कृत विद्यालय भिवानी में बच्चों को वेद इत्यादि की शिक्षा देते थे। हरियाणा में वेदाचार्य एक मात्र ऐसे व्यक्तित्व थे, जिन्हें दो दशकों तक हरियाणा में ‘रामस्वरूप शास्त्री हरियाणा’ के नाम से अग्रणी ज्योतिषाचार्य के रूप लोकप्रिय रहे। कृष्ण भारद्वाज ने बताया कि पिता स्कॉलर और माता अनपढ़ होने के बावजूद दोनों शब्दों का ज्ञान और लोकगीत और उत्सवों के गीत में महारथ थे। परिवार में हम सभी छह भाई और एक बहनों में देवकृपा से कमोबेश कलाकारी शायद घर में संगीतमय पूजा के चलन से भरी हुई थी। घर के ऐसे माहौल में माँ की कला और पिता के ज्ञान के संगम से उन्हें बचपन से गायन का शौक रहा। इसका नतीजा ये था कि जब उन्हें कक्षा चार में पहली बार स्कूल में भजन प्रस्तुत करने का मौका मिला तो उन्हें प्रथम पुरस्कार ने आगे जाने का हौंसला दिया। इस प्रकार गायन कला के प्रति बढ़ते रुझान के साथ वह सांस्कृतिक कार्यक्रमों में भाग लेने लगे। स्कूल में कक्षा छह से ग्याहरवी तक लगातार भिवानी के वैश्य स्कूल में प्रार्थना गायन करने सौभाग्य तो मिला, वहीं स्कूल की सांस्कृतिक टीम में निरंतर और चार साल समूहगान और समूह नृत्य की स्टेट विनर टीम का हिस्सा रहा। इसके बाद वैश्य कॉलेज और अन्तर विश्वविद्यालय प्रतियोगिताओं में बेहतर कला को सराहा गया। गायन के साथ एकल कविता पाठ और गायन में भी उन्हें अनेक पुरस्कार मिले। जहां तक उनके गीत व कविता लेखन का सवाल है, उन्होंने कक्षा दसवीं के दौरान पहली बार कविता लिखी, जिसकी प्रस्तुति नेहरू युवा केंद्र के राष्ट्रीय कार्यक्रम में दी और उसके बाद उनके गीत लेखन ने पीछे मुड़कर नहीं देखा। 
यहां से मिली मंजिल 
मुंबई में 1998 से 2003 के दौरान वायु सेना में रही तैनाती के दौरान ही वर्ष 2000 में रवि किशन और पूजा डडवाल द्वारा अभिनीत एक हिंदी फिल्म ‘सिन्दूर की सौगंध’ और ‘होश’ में एक गाना लिखने का मौक़ा मिला और फिर टी-सीरीज ने अपने कुछ धार्मिक एलबम्स लिखवाये। इसी दौरान एक लघु फिल्म ‘बर्फ़ का दर्द’ और शक्ति, ओ डार्लिंग ये है इंडिया, सितारों का सफ़र धारावाहिकों के गाने लिखने का भी मौका मिला। इसके साथ बढ़ते आत्मविश्वास के साथ उनकी गीत संगीत के क्षेत्र में पहचान बढ़ने लगी। लेकिन 2003 में उनका स्थानांतरण बीदर(कर्नाटक) हो गया। इस पर उनकी यादों में मुम्बई बस चुकी थी, तो वर्ष 2006 में वायुसेना से स्वेच्छा से सेवानिवृति लेकर अपने बचपन के शौंक गीत लेखन को व्यवसाय बनाने की ठान ली। 
हर शैली में गीत लेखन के महारथी 
गीतकार कृष्ण भारद्वाज ने बताया कि वर्ष 2007 में उन्होंने फिर मुम्बई का रुख़ कर लिया और जाते ही उन्हे सागर पिक्चर्स के बैनर तले ज़ी टीवी के धारावाहिक ‘अल्लादीन’ व ‘पृथ्वी राज चौहान’ धारावाहिक के कुछ गीत लिखने का अवसर मिला। मोती सागर जी उनके गीत लेखन से प्रभावित हुए और इसके बाद उन्होने अपने प्रोडक्शन के हर धारावाहिक के गीत लेखन का कार्य उन्हें दे दिया और इस दौरान उन्होंने धारावाहिक जयश्री कृष्णा, मीरा, भगवान स्वामी नारायण, शकुंतला, साईं बाबा और महावीर हनुमान के लिये गीत लिखे। जब उन्हें लगा कि उनकी छवि एक धार्मिक गीतकार की बनती जा रही है, तो उन्होंने यहां से कार्य छोड़कर हेमामालिनी जी के प्रोडक्शन के धारावाहिक ‘माटी की बन्नो’ और संजय दत्त और राज कुंद्रा के ट्रायल धारावाहिक ‘सुपर फ़ाईट लीग’ और धारावाहिक ‘जमाई राजा’ के भी कुछ गीत लिखे। इसके बाद फिर एक बार धारावाहिक शक्ति-2 व द्वारिकाधीश-2 में भी गीत लिखे। इस दौरान ही कुछ माध्यम बजट की हिंदी फ़िल्मों में भी गाने लिखे जिनमेंफ़िल्म ‘मानसून’, ‘मुरारी द मैड जैंटलमैन’, ‘माय फादर इक़बाल’ ‘लव ट्रैनिंग’ 21शुभ मुहूर्त’ ‘हिल व्यू विला’ कपिल शर्मा की फिल्म ‘फिरंगी’ में भी एक आईटम सोंग प्रचलित हुआ। कुछ आने वाली हिंदी फ़िल्में ‘लफ़ंगे’, ‘ग्राम परेशान पुर’, ‘मिस्टर एमबीए’ व चरित्रपथ जैसी फिल्मों में गीत लिख रहे हैं। 
हरियाणवी फिल्मों को दिये गीत 
गीतकार एवं गीत लेखकर कृष्णा भारद्वाज ने हरियाणवी फ़िल्म ‘पीहर की चुनरी’, ‘चित्त चोरणी’ ‘रुक्के पड़गे’ तथा सतरंगी (नेशनल अवार्ड 2016) के भी गीत लिखकर हरियाणवी लोककला व संस्कृति को सर्वोपरि रखा। राजस्थानी फिल्क गुलाबी नगर में भी योगदान करने वाले कृष्ण भारद्वाज के यू ट्यूब पर हिंदी और हरियाणवी के तकरीबन 75सोंग और भजन रिलीज़ हुए हैं, जिनमें दलेर मेहँदी और सपना चौधरी का बावली तरेड़, चाँद(संभावना सेठ व अविनाश द्विवेदी) प्रियांशु चौधरी का जाट और काला दुपट्टा तथा गगन कोकचा का चाँद और सोनपरी प्रमुख हैं। फिल्म निर्देशक अरविन्द स्वामी की हरियाणवी फ़िल्म ‘युद्दवीर’ के लिए भी लिख रहे हैं और कुछ हरियाणवी वेब सीरीज में कृष्णा भारद्वाज गीतों का लेखन करने में जुटे हैं। 
वायु सेना में लगा विराम 
प्रसिद्ध गीतकार व लेखक कृष्ण भारद्वाज का 1986 में वायु सेना में चयन हो गया, जिनके लेखन पर बेलगाँव (कर्नाटक) में चले प्रशिक्षण के कारण विराम लगा, लेकिन काम के समय भी उन्हें गुनगुनाने का शौंक तो था। वायु सेना में एक रात जब वह गुनगुना रहे थे, तो तेज आवाज पर अनुशासन प्रभारी वहां पहुंचे और सुबह रिपोर्ट करने को कहा तो वह सजा पाने के भय से रातभर सो नहीं पाए। लेकिन हुआ इसके विपरीत और अगले दिन प्रभारी ने उन्हें पूरी टुकड़ी के सामने कुछ सुनाने को कहा और उन्होंने डरते हुए सुनाया, जिस पर खूब वाहवाही मिली और उनके प्रभारी ने उन्हें सांस्कृतिक कार्यक्रम के हेड के पास अपना नाम लिखवाने को कहा। मसलन वायु सेना की सेवा में उन्हें उनकी कला को परखने का बेहतर मौका ही नहीं मिला, बल्कि वायुसेना के कार्यक्रमों में स्वरचित गीत और कविताओं को इतना सम्मान मिला कि साल 1995 में वायुसेना सुब्रोतो पार्क में तैनाती के दौरान इंटर डिपार्टमेंट प्रतियोगिताओं में उन्हें प्रथम पुरुस्कार दिया गया और उनकी कला का संज्ञान सेना के सभी बड़े अधिकारियों को हो गया। सेना के कमांडर की संस्तुति पर ही उन्हें मुंबई में मनचाही तैनाती मिली, जहां वह संगीत क्षेत्र में कैरियर बनाने को उत्सुक थे। जहां से उन्हें फिल्मों और धारावाहिकों में गीत लिखने का मौका मिला वह फिल्मी गीतकार के रुप में पहचाने जाने लगा। 
लोक कला व संगीत से दूर बच्चे 
लोक संगीत के संगीत के मूलरूप श्रोताओं में आ रही कमी को स्वीकारते हुए कृष्ण भारद्वाज आज की पीढ़ी को कुछ नया और बदला प्रारूप भाने लगा और उन में विदेश जाने की सोच के साथ पाश्चत्य संस्कृति घर कर रही है और अपनी लोक कला और संगीत से दूर होते जा रहे हैं। अगर आधुनिक पीढ़ी की उदासीनता निरंतर बनी रही, तो हमारी लोक कला विलुप्त होने के कगार पर पहुँच जायेगी। युवाओं का रुझान इस ओर लाने के लिए हमें आधुनिक तौर तरीकों का सहारा लेना पड़ेगा और लोक कला को आधुनिक तरीके से प्रस्तुत करना पड़ेगा। लोकगीतों में ये बदलाव देखने को मिला है और इसीलिए लोकगीतों का चलन कुछ बदले रूप में बढ़ा है और लोगों ने इनको नए रूप में प्रस्तुत करना शुरू किया है और विशेषतौर पर हरियाणा के पिछले दिनों में मशहूर हुए कुछ गीत लोकगीत ही हैं, जिनमें थोडा मॉडर्न तड़का लगाया गया है और नए ढंग से पेश किया गया है, जिसको हमारे विदेशों में रहने वाले बच्चे और लोग पसंद भी करते हैं, जहां हरियाणवी गीत भी आज बदले रूप में सुने जा रहे हैं। यदि हमें साहित्य और लोक कला को ज़िंदा रखना है, तो हमें बच्चों की रूचि इसमें बढ़ानी पड़ेगी और वो इसे रोचक बना कर ही किया जा सकता है। 
17Apr-2023

सोमवार, 10 अप्रैल 2023

साक्षात्कार: सामाजिक सरोकार में साहित्य की अहम भूमिका: डा. ज्योति

सामाजिक विसंगतियों के प्रति समाज को सजग करने की मुहिम 
व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डॉ. ज्योति लठवाल 
जन्मतिथि: 4 सितंबर 1988 
जन्म स्थान: जालंधर(पंजाब) 
शिक्षा: बीए एवं एमए(हिंदी), नेट व जेआरएफ(प्रथम श्रेणी), पीएचडी। 
संप्रत्ति: सहायक प्रोफेसर(हिंदी विभाग) हिंदू कन्या महाविद्यालय सोनीपत। 
संपर्क: जीवन बिहार, देवड रोड, गली नंबर-4 सोनीपत (हरियाणा)। मोबा- 9466014274 
BY--ओ.पी. पाल
हिंदी साहित्य के सृजन के लिए हरियाणा के साहित्यकार एवं लेखक विभिन्न विधाओं में संस्कृति के प्रति समाज को नई दिशा देने में जुटे हैं। इसी मकसद से युवा लेखकों में शामिल डॉ. ज्योति लठवाल ने सामाजिक विसंगतियों को उजागर करके समाज को आईना दिखाने की मुहिम के साथ अपनी रचना संसार को आगे बढ़ाया है। सामाजिक सरोकार से जुड़े मुद्दों में खासतौर से दहेज प्रथा जैसी बुराई के प्रति समाज को सकारात्मक विचारधारा का पाठ पढ़ाने के लिए डा. ज्योति ने पुस्तक का सृजन करने का बीड़ा उठाया है। इस आधुनिक युग में भी अपनी सभ्यता, नैतिक मूल्यों और संस्कृति से दूर होते समाज को अपनी सामाजिक परंपराओं और कर्तव्यों के प्रति जागरुक करने के लिए साहित्यिक लेखकों की अहम भूमिका हो सकती है। ऐसा मानने वाली युवा लेखक और सहायक प्रोफेसर डा. ज्योति लठवाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान अपने साहित्यिक सफर और सामाजिक अनुभवों को साझा करते हुए कई अनछुए पहलुओं को भी उजागर किया है। 
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रियाणा के सोनीपत जिले में गोहाना तहसील के गांव सीरसाढ की मूल निवासी डा. ज्योति लठवाल का जन्म 4 सितंबर 1988 को पंजाब में जालंधर के आर्मी हॉस्पिटल हुआ। सेना से सेवानिवृत्त उनके पिता दिलावर सिंह लठवाल उस समय जालंधर में कार्यरत थे। उन्होंने बताया कि जब वह तीन साल की थी तो उनका परिवार अपने मूल गांव सीरसाढ लौट आया। गांव में सरकारी विद्यालय में कभी कक्षा लगती थी और कभी नहीं। इसलिए पिता ने उसका दाखिला गोहाना के एक निजी विद्यालय में करवा दिया, जहां रोजाना गांव से ही आना जाना हुआ करता था। पिता उसकी और छोटी बहन अंतिम की शिक्षा को लेकर बेहद संवेदनशील रहे। इसलिए जब वह दस साल की रही होगी, तो वे पिता के साथ आर्मी क्वार्टर में रहने के लिए दिल्ली चले गए। इसका मकसद हम दोनों बहनों को अच्छी शिक्षा दिलाना था। उसी वर्ष हमारे घर में हम दोनों बहनों से छोटे मेरे भाई मोहित का जन्म हुआ। मेरे पिता की सेना से सेवानिवृत्ति के बाद हम रहने के लिए सोनीपत आ गए, जहां तीनो भाई बहनों ने शिक्षा ग्रहण की। सोनीपत में उन्होंने जीवीएम कन्या महाविद्यालय में स्नातकोत्तर (हिंदी ) में दाखिला लिया, तो एक बार जब कक्षा में शिक्षक द्वारा यह पूछा गया कि आने वाले समय में हिंदी में पीएचडी कौन-कौन करना चाहेगा, तब कक्षा में उनके अलावा किसी ने भी अपना हाथ ऊपर नहीं उठाया। इसके लिए उन्होंने खूब मन लगाकर पढ़ाई की। स्नातकोत्तर के अंतिम सेमेस्टर में उन्होंने नेट जेआरएफ की परीक्षा भी प्रथम श्रेणी में पास की। पीएचडी के लिए उनका दाखिला महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक के हिंदी विभाग में हो गया और वह रोहतक में अपनी बुआ के घर रहने लगी, जहां करीब 6 महीने में उसके लिए नया माहौल था। इसलिए वह कक्षा के बाद अपना ज्यादा समय एमडीयू के पुस्तकालय में ही व्यतीत करने लगी। पुस्तकालय में उसे पढ़ने के लिए पुस्तकों ने अपनी तरफ आकर्षित किया। पठन पाठन के लिहाज से बिल्कुल उसके अनुकूल ऐसा माहौल मिला कि इसी दौरान उनके मन में कुछ लिखने के लिए अभिरुचि पैदा हुई। वहीं उसका पीएचडी में शोध-छात्रा के रूप में चयन भी हो गया और लगभग 3 वर्ष में उन्होंने अपना शोध-कार्य पूरा करने के साथ साहित्यिक क्षेत्र में अपनी दो पुस्तकों का सृजन तक कर डाला। उनका कहना है कि हरियाणा साहित्य अकादमी के पुरस्कार ने उन्हें अपना जीवन साहित्य को समर्थन करने के लिए प्रेरित किया है। इस मुकाम तक पहुंचाने में मेरे परिवार विशेषकर पिता का सहयोग रहा है। 
सामाजिक मुद्दो पर लेखन का फोकस 
डा. ज्योति ने बताया कि उनके साहित्य में उनके लेखन का मुख्य फोकस समाज की विसंगतियों को लेकर रहा, जिसे उसने बहुत करीब से देखा और दहेज प्रथा जैसी सामाजिक घटनाओं ने खुद की रचनात्मकता को भी प्रभावित किया है। समाज के कुछ सभ्य चेहरों के पीछे छिपे दूसरे चेहरो के कारण दहेज प्रथा जैसी समस्या समाज को अंदर से खोखला कर रही है। उनका मानना है कि बेटियों के साथ-साथ अगर बेटों को भी अच्छे संस्कार दिए जाएं, तो समाज में एक अच्छा परिवर्तन देखने को मिल सकता है। उनकी तीसरी पुस्तक सामाजिक सरोकार से जुड़ी दहेज प्रथा जैसी बुराई को लेकर ही सृजित की जा रही है, ताकि समाज को सकारात्मक विचाराधारा के साथ जाग्रत किया जा सके। इससे पहले उन्होंने बाजारवाद ने कैसे समाज को अपनी तरफ आकर्षित किया और किस प्रकार से आज की युवा पीढ़ी के अंदर नैतिक मूल्यों का विघटन हो रहा है जैसे मुद्दो पर दो पुस्तकों का सृजन किया। 
युवाओं में गंभीरता आवश्यक 
इस आधुनिक युग में हिंदी साहित्य की विधाओं कविता, कहानी, उपन्यास में शैलीगत और शिल्पगत खूब बदलाव हुआ है। सोशल मीडिया पर रोजाना नए लेखक पैदा होने से साहित्य के स्तर का क्षरण हुआ है। मसलन पहले लेखक कम और पाठक ज्यादा होते थे, लेकिन आज के इस युग में एक दम उलट नजर आ रहा है, जिससे लेखन पर गहन चिंतन विमर्श भी कम होना चिंता का विषय है। आज की युवा पीढ़ी अपने संस्कारों को खोती जा रही है। इसलिए युवा पीढ़ी में एक ठहराव, गंभीरता और गहराई की आवश्यकता है। कंप्यूटर और इंटरनेट के इस जमाने में भी उन्हें अपनी सांस्कृतिक जड़ों से जुड़े रहना बेहद जरूरी है। आज की युवा पीढ़ी पुस्तक खरीद कर पड़ने की बजाय अपने मोबाइल में ही मनोरंजन के पलों को तलाशती रहती है। अगर यह सोशल मीडिया थोड़ी जिम्मेदारी लेकर साहित्य को मनोरंजन का जरिया बनाए तो यह बहुत ही लाभकारी होगा। 
पुस्तक प्रकाशन 
युवा लेखक एवं साहित्यकार डॉ. ज्योति लठवाल ने तीन पुस्तकों का सृजन किया है। इनमें हिंदी कहानी और बाजारवाद तथा हिंदी कहानी का दशवा दशक: मूल्य विघटन की समस्याएं शामिल हैं। इसके अलावा उनके दस शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं तथा 17 शोधपत्र राष्ट्रीय पत्रिकाओं में प्रकाशित हो चुके हैं। यही नहीं उनके पांच शोध पत्र 05 शोध पत्र अंतर्राष्ट्रीय संगोष्ठीयों तथा 12 शोध पत्र राष्ट्रीय संगोष्ठीयों में प्रस्तुत किए गये हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हरियाणा साहित्य अकादमी की ओर से युवा साहित्यकार डा. ज्योति को वर्ष 2017 के लिए स्वामी विवेकानंद स्वर्ण जयंती युवा लेखक सम्मान से नवाजा है। मुख्यमंत्री मनोहरलाल ने उन्हें 50 हजार रुपये का यह पुरस्कार प्रदान किया। इसके अलावा उन्हें सारथी जनसेवा ट्रस्ट, सोनीपत ने साल 2022 के बेस्ट वूमेन ऑफ द ईयर से सम्मानित किया है। इसके अलावा वर्ष 2022 में महिला काव्य मंच सोनीपत ने भी इस युवा लेखक को सम्मानित किया गया। 
10Apr-2023

मंडे स्पेशल: हरियाणा में हर रोज लापता हो रहे हैं 30 से ज्यादा लोग

अब अपनो से बिछड़े बच्चों के परिवार में मुस्कान लाएगी पुलिस हरियाणा पुलिस ने शुरू किया ऑपरेशन 'मुस्कान' 
 ओ.पी. पाल.रोहतक। हरियाणा में पिछले पंद्रह महीने में 13,518 लोग लापता हुए हैं, जिनमें बच्चों और महिलाओं की संख्या ज्यादा है।पिछले दो साल के आंकड़े गवाही दे रहे हैं कि प्रदेश में ऐसे लापता बच्चों या व्यस्कों की संख्या में लगतार इजाफा हो रहा है। अब हरियाणा पुलिस ने मानव तस्करी या अन्य किन्हीं कारणों से अपनो से बिछड़े बच्चों और व्यस्कों को तलाशने के लिए ऑपरेशन मुस्कान शुरू किया है। इस अभियान में भीख मांगने, घरेलू नौकर या बाल श्रमिक के रुप में अन्य जोखिम कार्यो में लगे बच्चों के अलवा सड़को, रेलवे स्टेशनों या बस अड्डो पर लावारिशों की तरह जीवन बसर करने वालों को तलाश जा रहा है। इसके लिए पुलिस और महिला एवं बाल विकास विभाग अन्य संबन्धित संस्थ्ज्ञाओं के साथ संयुक्त रुप से औद्योगिक संस्थानों, ईंट भट्टो, होटलो और ढाबों तथा अन्य व्यापारिक संस्थानों तक पहुंचकर ऐसे बच्चों को मुक्त कराकर उनके पुनर्वास या उनके परिजनों से मिलाने का काम करेगी। 
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हरियाणा पुलिस ने प्रदेश में एक अप्रैल से 30 अप्रैल तक बेसहारा व गुमशुदा बच्चों को तलाशकर उनके परिवार से मिलाने के लिए ऑपरेशन ‘मुस्कान’ अभियान की शुरु किया है। इसका मकसद चाही-अनचाही परिस्थितियों में अपनों से बिछुड़ जाने वाले बच्चों को तलाशकर उनके परिवारों से मिलाना है। इस अभियान चलाने के लिए राज्य अपराध शाखा के प्रमुख एवं अतिरिक्त पुलिस महानिदेशक ओ पी सिंह ने तलाशे जाने वाले हरेक बच्चें का फोटोग्राफ एवं अन्य जानकारी राष्ट्रीय पोर्टल ट्रैक दि मिसिंग चाइल्ड और खोया-पाया पर भी साझा करने के निर्देश दिए हैं। इस अभियान में लापता बच्चों व भीख मांगने वाले बच्चों की तलाश कर राज्य अपराध शाखा एवं बाल कल्याण विभाग के अधिकारियों को भी शामिल किया गया है। वहीं ऑपरेशन मुस्कान अभियान के दौरान बंधुआ मजदूरी के बारे में सूचना एकत्रित करके संबंधित उपमंडल मजिस्ट्रेट से उनको छुड़वाने की भी कार्रवाई होगी। यानी सभी पुलिस टीम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्यों का सहयोग लेकर काम करेंगी। वहीं संदिग्ध स्थानों पर छापामारी करके अनैतिक देह व्यापार के धंधे में संलिप्त महिलाओं व अन्य पर कानूनी कार्रवाही भी करने के निर्देश हैं। यानी सभी पुलिस टीम चाइल्ड वेलफेयर कमेटी के सदस्यों का सहयोग लेकर काम करेंगी। 
हर माह 900 से ज्यादा लोग लापता 
हरियाणा पुलिस में दर्ज लापता लोगों के आंकड़ों पर गौर की जाए तो पिछले 15 महीने में 13,518 लोग लापता हो चुके हैं। पुलिस का दावा है कि साल 2022 में अभियान चलाकर 3379 लापता महिला और 6340 पुरुष वयस्कों को तलाश गया है, जिनमें लापता नाबालिगो में 1144 लड़के और 1426 लड़कियां भी बरामद करके उनके परिजनों को सौंपने की कार्यवाही हुई है। इस दौरान 41 बंधुआ मजदूरों को भी मुक्त कराया गया है। पुलिस रिपोर्ट की माने तो राज्य अपराध शाखा की मानव तस्करी पर शिकंजा कसने के लिए काम कर रही 22 एंटी-ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट्स (एएचटीयू) ने भी लापता 316 पुरुष वयस्कों और 373 महिलाओं को तलाशा है तो एएचटीयू ने इस दौरान लापता हुए 313 नाबालिग लड़कों और 227 लड़कियों का भी खोज की। इससे पहले साल 2022 के दौरान 294 महिला समेत 933 भिखारियों और 1300 पुरुष और 72 महिला समेत 1372 बंधुआ मजदूरों मुक्त कराया है। जबकि साल 2021 में 10868 लापता हुए बच्चों व व्यस्को को तलाशकर उनके परिजनों से मिलाया है, जिनमें 7029 महिलाएं शामिल रही। जबकि 3839 पुरुष तलाशे गये। 
ऐसे भी लापता होते हैं बच्चें 
दरअसल इसी साल फरवरी में हरियाणा के महेंद्रगढ़ जिले के के भोजावास स्कूल के प्लस टू नॉन मेडिकल में पढ़ने वाले तीन दोस्त भोजावास गांव के दीपांशु, मोदी गांव के रोहित और गोमली गांव के सुधीर एक साथ लापता हो गए। एक स्कूल से एक साथ तीन बच्चों का लापता होना जहां परिजनों की मुस्कान गायब होना लाजिमी था, वहीं पुलिस के लिए भी यह एक पहेली थी। इन बच्चों को परिजन और पुलिस तलाश में जुटी ही थी कि तो गायब होने से पहले बच्चों द्वारा घर में छोड़े गये पत्र मिल गये, जिनमें लिखा गया कि खोजने की कोशिश मत करो, कोई पूछे तो बताना कि मामा के पास पढ़ने गया हुआ है। 
मानव तस्करी पर भी शिकंजा 
हरियाणा राज्य अपराध शाखा के अंतर्गत प्रदेश में फिलहाल 22 एंटी ह्यूमन ट्रैफिकिंग यूनिट कार्य कर रही हैं, जिनकी संख्या 30 करने की तैयारी है। ऑपरेशन मुस्कान अभियान में इन टीमों को मानव तस्करी के मद्देनजर आवश्यक कार्यवाही करने के निर्देश दिये गये हैं। यही नहीं सभी यूनिट इंचार्ज अन्य राज्यों के आश्रमों में रह रहे हरियाणा के गुमशुदा बच्चे, महिला व व्यक्तियों का डाटा भी तैयार करेंगे। 
रोहतक रेंज में 2196 घर आई मुस्कान 
हरियाणा में रोहतक रेंज रोहतक, भिवानी, चरखी दादरी तथा झज्जर की पुलिस पिछले करीब एक साल 2022 के दौरान गुमशुदा 2196 व्यक्तियों की तलाश करके उन्हें उनके परिजनों तक पहुंचाया है। इन चार जिलों में 2449 लोगों के लापता थे, जिनमें से पुलिस द्वारा तलाशे गये 2196 लोगों में 1149 महिलाएं व 644 पुरुष थे। इस दौरान गुमशुदा चल रहे 644 पुरुष, 1149 महिला तथा 269 लड़कियां व 134 लड़कों समेत कुल 403 बच्चों को तलाशकर उनके परिजनों को सौंपा गया है। अभी गुमशुदगी में दर्ज 253 व्यक्तियों को तलाशने के लिए पुलिस का हर स्तर पर प्रयास जारी है। 
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वर्जन
मिशन स्माइल बनेगा वरदान:आर्य 
पूरे प्रदेश के जिलों में ऑपरेशन मुस्कान की कमान डीएसपी रैंक के पुलिस अधिकारियों को नोडल अधिकारी के रुप में सौंपी गई है। रोहतक रेंज के चारों जिलों में रोहतक, झज्जर, भिवानी तथा चरखी दादरी में भी नोडल अधिकारी के निर्देशन में थाना स्तर पर गठित की गई अलग-अलग टीमों ने गुमशुदा बच्चों की तलाश का काम शुरू कर दिया है। इन टीमों में महिला पुलिसकर्मी भी शामिल की गई हैं। अभियान के दौरान पूरे प्रदेश में अधिकारियों द्वारा शेल्टर होम, चिल्ड्रन होम, रेलवे स्टेशन, बस स्टैंड व धार्मिक स्थानों के आसपास ऐसे गुमशुदा बच्चों की तलाश की जाएगी। जिन बच्चों के माता-पिता का पता नहीं है या भीख मांगते हैं। ऐसे बच्चों के संबंध में सूचना प्राप्त कर नियमानुसार कार्रवाई की जाएगी। उन्हें उम्मीद है कि पुलिस का यह अभियान लापता बच्चों के कारण उनके परिजनों की खोई हुई मुस्कान वापस लाने के लिए वरदान साबित होगा। बच्चों व अन्य गुमशुदा व्यक्तियों को सकुशल बरामद करने वाले पुलिस जवानों को जिला व रेंज स्तर पर नकद इनाम व प्रशंसा पत्र देकर सम्मानित किया जाएगा। 
 -राकेश कुमार आर्य, पुलिस महानिरीक्षक रोहतक रेंज।
10Apr-2023

सोमवार, 3 अप्रैल 2023

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति की अलख जगाते रागनी गायक गुलाब सिंह खण्डवाल

सामाजिक सरोकार के मुद्दो पर लिखे गीतो ने दी लोक कलाकार की पहचान 
-व्यक्तिगत परिचय- 
नाम: गुलाब सिंह खण्डवाल 
जन्मतिथि: 20 मार्च 1961 
जन्म स्थान: भलौठ, जिला रोहतक(हरियाणा) 
माता: श्रीमती भरपाई देवी 
पिता: श्री धर्मचन्द 
गुरुजी: श्री सत्यनारायण वशिष्ठ 
शिक्षा: मैट्रिक 
संप्रत्ति:पूर्व कलाकार, लोक संपर्क विभाग एवं पूर्व सांस्कृतिक संयोजक खेल एवं युवा कार्यक्रम विभाग हरियाणा। 
विशेष: लोक गायन मे आकाशवाणी द्वारा ए+ ग्रेड गायक की मान्यता। 
संपर्क: विशाल नगर, रोहतक(हरियाणा), मोबा.-9896585794/9996591618 
BY-ओ.पी. पाल 
रियाणवी लोक कला एवं संस्कृति की वैश्विक स्तर पर पहचान दिलाने के लिए हरियाणा के लोक कलाकार व गायक अपनी विभिन्न शैलियों के प्रदर्शन की बदौलत आगे बढ़ रहे हैं। ऐसे ही लोक कलाकार गुलाब सिंह खण्डवाल अपने गीत लेखन और रागनी गायन शैली से प्रदेश की संस्कृति के संवर्धन करने में जुटे हुए हैं। समाज को अपनी परंपरागत सभ्यता, रीति रिवाज और संस्कृति के प्रति प्रेरित करने के मकसद से इस लोक कलाकार ने भी राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर अपनी लोकप्रियता हासिल की है। देशभक्ति, अध्यात्मिक, सामाजिक और सांस्कृतिक आधार पर अपनी कला के प्रदर्शन की बदौलत ही उन्होंने ‘ए प्लस’ गायक कलाकार की मान्यता हासिल करके हरियाणा के आकाशवाणी केंद्रों पर ही नहीं, बल्कि मध्य प्रदेश व उत्तर प्रदेश जैसे कई राज्यों के आकाशवाणी केंद्र पर अपनी रागनी शैली की प्रतिभा को प्रदर्शित किया है। लोक संपर्क विभाग हरियाणा रोहतक में लोक कलाकार एवं तीन खेल व युवा कार्यक्रम विभाग में युवा सांस्कृतिक संयोजक पद से सेवानिवृत्त गुलाब सिंह खण्डवाल ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत के दौरान लोक कला के क्षेत्र में अपनी रागनी गायन शैली को लेकर अनुभवों का साझा किया। 
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प्रदेश के रोहतक जिले के भालौठ गांव में धर्मचन्द के परिवार में 20 मार्च 1961 को जन्मे गुलाब सिंह खण्डवाल को लोक गायकी एक प्रकार से परिवार से विरासत में मिली है। उनके दादा चंदगीराम आल्हा गाते थे। उस समय गांव में कोई सुविधाएं तो नहीं थी, लेकिन दादा के साथ उनके माता पिता यानी परिवार एक कीर्ततन पार्टी में आध्यात्मिक आयोजन में गाया करते थे। बचपन में वह भी उनके साथ जाने लगा और गायन के प्रति उनका भी रुझान बढ़ने लगा। गुलाब सिंह ने बताया कि जब वह कक्षा चार व पांच में थे तो गांव के स्कूलों में हर शनिवार को बाल सभा होती थी, जिसमें दो चार लाइन लिखकर वह भी सुनाने लगे। इस प्रकार गायकी में रुचि बढ़ती गई। स्कूल में शिक्षकों को उनकी आवाज और गाने का अंदाज इतना पसंद आने लगा, कि वे स्कूल में मंच पर उसके गाने के लिए बुलाने लगे, तो इससे गायन के लिए उनका आत्मविश्वास बढ़ना स्वाभाविक था। आज राष्ट्रीय स्तर पर एक लोक कलाकार के रुप में पहचाने जा रहे गुलाब सिंह खण्डवाल ने बताया कि वह भले ही मैट्रिक तक की शिक्षा हासिल कर पाए हों, लेकिन उन्होंने अपनी गायन शैली को परिपक्व बनाने के लिए गांव के ही सत्यनारायण वशिष्ठ को अपना गुरु बनाया, जो उस समय आकाशवाणी के कलाकार थे। गुरु वशिष्ठ के सानिध्य में उन्होंने गीत लिखने और गायन की तकनीकियां और तौर तरीके सीखकर अपने आपको आगे बढ़ाया और आज वे एक लोक कलाकार के रुप में पहचाने जा रहे हैं। आकाशवाणी केंद्र रोहतक से सन 1977 से लोक गायक स्वर परीक्षा में उत्तीर्ण व 1975 से दिल्ली आकाशवाणी व दूरदर्शन(कृषि दर्शन) में प्रस्तुति देने वाले गुलाब सिंह को आकाशवाणी केंद्र रोहतक से ए+ श्रेणी के कलाकार के रुप में मान्यता मिली, जिस पर उन्हें अपनी लोक गायन शैली की साधना से संतुष्टि मिली। उन्होंने अपने गुरु सत्यनारायण वशिष्ठ के साथ दूरदर्शन और आकाशवाणी पर इससे पहले भी अपनी गायन शैली का प्रदर्शन किया। धीरे धीरे रुकावट और बाधाओं की परवाह किये बिना संगीत के क्षेत्र में भी गाना शुरू कर दिया। उन्होंने हरियाणवी फिल्म खानदानी सरपंच, कुणबा, चाप सिंह आदि में गायक व अभिनय की भूमिका भी निभाई है। 
सीमा पर सैनिकों का बढ़ाया हौंसला 
लोक संपर्क विभाग हरियाणा में लोक कलाकार के अलावा खेल एवं युवा कार्यक्रम हरियाणा में करीब तीन दशक तक सांस्कृतिक संयोजक पद से सेवानिवृत्त गुलाब सिंह खण्डवाल की लोक गायकी का फोकस जनता से जुड़े मुद्दो, किसानों, संस्कृति, सभ्यता, रीति रिवाज, सामाजिक समस्याओं और सामाजिक सरोकार से जुडे विभिन्न मुद्दो पर तो रहा ही है। वहीं उन्होंने देशभक्ति, अध्यात्म, जनकल्याण, साक्षरता अभियान जैसी सरकारी अभियानों को लेकर भी अपने गीतों के जरिए जनता को जागरुक करने का प्रयास किया है। सरकार के साक्षारता अभियान में उन्होंने 1991 के दौरान प्रदेशभर में एक जत्थे के साथ काम किया है। उन्होंने सांग और संगीत में भी रागनियां प्रस्तुत की हैं। उन्होंने बताया कि भारतीय सेना के सीमाओं पर तैनात जवानों के लिए हरियाणवी रागनियां व गीतों को सुनने के लिए उन्हें लगातार बुलाया जाता रहा है, जिसमें कई बार लेह लद्धाख में देशभक्ति पर आधारित रागनियों का गायन करके जवानों के हौंसले बढ़ाने का प्रयास किया है। इसके अलावा उन्होंने भारतीय सेना में फौजी भाईयों के लिए असम, बीनागुडी, बाडमेर, जैसलमेर, झांसी, जबलपुर आदि क्षेत्रों में निशुल्क सेवा रागनी शैली का प्रदर्शन किया है। 
हरियाणवी लोक संस्कृति का डंका 
एक लोक गायक के रुप में हरियाणवी संस्कृति की अलख जगाने में गुलाब सिंह खण्डवाल ने जहां लाहौर (पाकिस्तान) और काठमांडू (नेपाल) में अपनी रागनी शैली का प्रदर्शन किया। उन्होंने हिमाचल प्रदेश, पंजाब, गुजरात, राजस्थान, छत्तीसगढ़, मध्य प्रदेश, उत्तर प्रदेश, आंध्र प्रदेश आदि राज्यों में आकाशवाणी और विभिन्न सांस्कृतिक मंचों पर रागनी गायन शैली से हरियाणवी लोक संस्कृति का डंका बजाया है। खण्डवाल की प्रसिद्ध रागनियों में सुपने में सुसराड डिगरम्या बांध कै साफा खाकी, याद अंगूरी आगी, या साडी किसकी जयमल कडे तै मंगाई, रावण रावण होरी आदि सुर्खियों में हैं और अब तक यूट्यृब पर भी उनकी 200 से ज्यादा रागनियां रिकार्ड हो चुकी हैं। 
संस्कृति से जुड़ने का संदेश 
प्रसिद्ध लोक कलाकार व गायक गुलाब सिंह खण्डवाल ने आज के आधुनिक युग में लोक संस्कृति और पंरपराओं को जीवंत रखने की चुनौती को लेकर कहा कि समय के साथ सब कुछ बदलना एक स्वाभविक घटना है, लेकिन अपनी संस्कृति की जड़ो को कभी नहीं भूलना चाहिए। आज के लोक कलाकार शॉर्टकट रुप से लोकप्रियता हासिल करने के फेर में अपनी परंपराओं संस्कृति से दूर होकर पाश्चत्य संस्कृति की जद में जा रहे हैं, जो भारतीय संस्कृति और लोककलाओं की परंपराओं के लिए खतरे से कम नहीं है। इसलिए नए कलाकारों को इस बाजारीकरण के बढ़ते प्रभाव के बावजूद अपनी कला को चमकाने के लिए साधना करना जरुरी है, जिससे उन्हें लोकप्रिता और सम्मान भी मिलेगा और सामाज को नई दिशा देने के मकसद को भी पूरा कर सकते हैं। 
सम्मान व पुरस्कार 
हरियाणा के लोक गायक गुलाब सिंह खण्डवाल ने रागनी गायन शैली से लोक संस्कृति के संवर्धन और प्रोत्साहन के लिए जो योगदान दिया है, उसके लिए उन्हें हरियाणा सरकार ने साल 2012 में राज्य पुरस्कार(फौजी जाट मेहर सिंह) सम्मान से नवाजा था। वहीं हरियाणा इंस्टीट्यृट ऑफ फाइन आर्ट (हिफा) करनाल लोक संस्कृति के क्षेत्र में हरियाणा लब्ध प्रतिष्ठित देदी प्यमान नक्षत्र को उनकी विशिष्ठ उपलब्धियों एवं श्लाघनीय योगदान हेतु खण्डवाल को कर्मभूमि सम्मान से अलंकृत किया है। वहीं हरियाणा कला परिषद में कृति कला केंद्र द्वारा उन्हें हरियाणा हेरिटेज अवार्ड से सम्मानित किया है। हाल ही में उन्हें रास कला मंच की ओर से सुपवा के वीसी गजेन्द्र सिंह चौहान ने सूर्य कवि पं. लखमी चंद रास रंग सम्मान से नवाजा है। हरियाणा के मुख्यमंत्री, राज्यपालों के अलावा उन्हें देश के विभिन्न राज्यों में विभिन्न साहित्यिक एवं लोक कला संस्कृति संस्थाएं सैकड़ो पुरस्कार देकर सम्मानित कर चुकी हैं। 
03Apr-2023

मंडे स्पेशल: सरकार का छोटे व्यापारियों 'सुरक्षा चक्र'

आग, बाढ़ से हुए नुकसान की होगी भरपाई 
मुआवजा भी मिलेगा और पक्के बूथ भी बनाकर देगी सरकार 
ओ.पी. पाल.रोहतक। राज्य सरकार ने प्रदेशभर के छोटे व्यापारियों पर सुरक्षा चक्र बांध दिया है। मुख्यमंत्री व्यापारी क्षतिपूर्ति बीमा योजना का दायरा बढ़ाकर छोटे व्यापारियों को भी शामिल कर लिया गया है। सरकार इस फैसले के तहत छोटे कारोबारियों को भी उनके सामान की बाढ़, आग, चक्रवर्ती तूफान इत्यादि आपदा के कारण होने वाले नुकसान की भरपाई करेगी। अभी तक इस योजना में केवल डेढ़ करोड़ रुपये से अधिक सालाना टर्नओवर वाले व्यापारी ही शामिल थे। इस योजना में किए गए संशोधन में छोटे व्यापारियों को नुकसान का मुआवजा तो देगी ही, वहीं उनके माल को अपदाओं से बचाने के लिए उनके लिए पक्के बूथों का निर्माण करने में भी मदद करेगी। इस योजना का लाभ उन्हीं छोटे व्यापारियों को मिलेगा, जिन्होंने 31 मार्च या पंजीकरण की तिथि को राज्य या केंद्रीय क्षेत्राधिकार में जीएसटी अधिनियम के तहत अपना पंजीकरण कराया है। इसके लिए सरकार ने पहले ही 20 लाख रुपये तक के वार्षिक कारोबार करने वाले व्यापारियों का जीएसटी पंजीकरण भी निशुल्क करने का ऐलान किया था। इस योजना के पीछे सरकार का मकसद प्रदेश के व्यापारियों को आर्थिक रुप से सशक्त और आत्मनिर्भर बनाना है। 
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हरियाणा में सरकार द्वारा नए वित्तीय वर्ष की शुरूआत में पहले से चल रही मुख्यमंत्री व्यापारी क्षतिपूर्ति बीमा योजना में प्रदेश के छोटे व्यापारियों को शामिल करते हुए उन्हें भी आर्थिक सुरक्षा देना शुरू कर दिया है। हालांकि मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने इस योजना के तहत छोटे व्यापारियों को भी सामान्य बीमा दर पर आग, बाढ़ आदि से हुए नुकसान की भरपाई करने का ऐलान पिछले 30 सितंबर को ही कर दिया था, जिसे एक अप्रैल 2023 से लागू कर दिया गया है। इस योजना विस्तार के तहत अब बीस लाख से डेढ़ करोड़ रुपये के वार्षिक टर्न ओवर तक व्यापार करने वाले व्यापारियों को इस योजना का लाभ दिया जाएगा। मसलन इस योजना में अब पंजीकृत छोटे व्यापारियों को महज 100 रुपये प्रति वर्ष के शुल्क के आधार पर आग, बाढ़ आदि आपदा में उनके माल के नुकसान की भरपाई के लिए पांच लाख रुपये तक का मुआवजा दिया जाएगा, जो अभी तक इससे अधिक 1.5 करोड़ रुपये तक के वार्षिक कारोबार करने वाले व्यापारियों को दिया जा रहा था। सरकार के इस फैसले से अब नए वित्त वर्ष 2023-24 नए विस्तार से साथ शुरू की गई इस योजना में छोटे और बड़े व्यापारियों को आर्थिक सुरक्षा की गारंटी दी गई है। इस योजना में पंजीकरण कराने वाले शून्य से 1.5 करोड़ रुपये तक का वार्षिक कारोबार करने वाले व्यपारियों को किसी भी प्रकार की आपदा में सामान के नुकसान होने पर उसकी भरपाई के लिए पांच से 20 लाख रुपये तक का मुआवजा दिये जाने का प्रावधान किया गया है। हरियाणा में सरकार की इस योजना के विस्तार से करीब 4 लाख से अधिक व्यापारियों को लाभ मिलेगा। 
निशुल्क मिलेगा जीएसटी पंजीकरण 
राज्य सरकार की इस योजना में छोटे व्यापारियों को भी लाभान्वित करने के लिए यह घोषणा भी की है, कि प्रदेश में 20 लाख रुपये तक का व्यापार करने वाले व्यापारियों को जीएसटी पंजीकरण के लिए सीए प्रमाणपत्र राज्य सरकार के एंपेनल्ड चार्टर्ड अकाउंटेंट से निशुल्क प्रदान किया जाएगा और इस खर्च को स्वयं राज्य सरकार वहन करेगी। छोटे व्यापारियों के लिए दुर्घटना में मृत्यु या स्थायी दिव्यांगता के लिए मुख्यमंत्री व्यापारी सामूहिक निजी दुर्घटना बीमा योजना का लाभ भी दिया जाएगा। हरियाणा मुख्यमंत्री व्यापारी सामूहिक निजी दुर्घटना बीमा योजना हरियाणा सरकार की व्यापारियों के लिए एक महत्वपूर्ण योजना है। 
सस्ती दरो पर मिलेगा बूथ 
मुख्यमंत्री व्यापारी क्षतिपूर्ति बीमा योजना के लाभ के अलावा राज्य सरकार ने व्यापारियों के माल की आग या बाढ़ जैसी आपदाओं से बचाने की दिशा में उन्हें शहरी क्षेत्रों में रियायती दरों पर बूथ उपलब्ध कराने का भी फैसला किया है। इसके तहत हरियाणा शहरी विकास प्राधिकरण द्वारा छोटे व्यापारियों को भी बाजार दर में 25 फीसदी की छूट प्रदान की जाएगी। मौजूदा बाजार दर के हिसाब से बूथ की कीमत लगभग 17 लाख रुपए तक आंकी गई है, लेकिन छूट के बाद इसकी कीमत लगभग 13 लाख रुपए रह जाएगी। वहीं सरकार की घोषणा के मुताबिक छोटे व्यापारियों की सुविधा के लिए उन्हें 180 दिनों के लिए बैंक से 75 प्रतशत ऋण सुविधा भी दी जाएगी। यदि व्यापारी 180 दिनों के भीतर पूरी ऋण राशि का भुगतान चुकता करता है, तो उसे पूरे ब्याज से छूट दे दी जाएगी। इस प्रकार हरियाणा व्यापारी क्षतिपूर्ति बीमा योजना का लाभ मिलने से राज्य के व्यापारियों को सुरक्षा मिलेगी। यह भी स्पष्ट किया गया है कि इस कल्याणकारी योजना का लाभ केवल व्यापारियों को ही दिया जाएगा। यानी कब्जा धारियों को इस योजना पर किसी भी तरह की छूट नहीं मिलेगी। 
पंजीकरण कराने पर ही मिलेगा लाभ: सीएम 
 मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने पिछले महीने मुख्यमंत्री व्यापारी क्षतिपूर्ति बीमा योजना के दायरे को बढ़ाकर छोटे व्यापारियों को भी इसका लाभ देने के फैसले को अंतिम रुप देने के लिए हरियाणा व्यापारी कल्याण बोर्ड के चेयरमैन बाल किशन और सदस्यों के अलावा प्रदेश के प्रमुख व्यापारियों के साथ एक बैठक में विभिन्न पहलुओं पर चर्चा की थी। इसके बाद एक अप्रैल से छोटे व्यापारियों को शामिल करने फैसला किया। इस योजना को विस्तार देते हुए सरकार ने व्यपारियों की सहमति से यह भी स्पष्ट किया था, कि योजना के तहत आग लगने, दुर्घटना, प्राकृतिक आपदा आदि के कारण माल के नुकसान के लिए मुआवजा देने का लाभ उन्हीं व्यापारियों को मिलेगा, जो 31 मार्च या पंजीकरण की नियत तिथि को राज्य या केंद्रीय क्षेत्राधिकार में जीएसटी अधिनियम-2017 के तहत अपना पंजीकरण कराएगा। इस योजना के लिए वार्षिक शुल्क का निर्धारण भी किया गया है। 
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क्षतिपूर्ति योजना में मिलेगा 5 से 20 लाख तक मुआवजा 
वार्षिक टर्नओवर                 मुआवजा         वार्षिक शुल्क 
0 से 20 लाख रुपये            05 लाख रुपये     100 रुपये 
20 से 50 लाख रुपये           10 लाख रुपये    500 रुपये 
50 लाख से 01 करोड़ रुपये 15 लाख रुपये    1000 रुपये 
01 से 1.5 करोड़ रुपये       20 लाख रुपये     2500 रुपये 
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आवश्यक दस्तावेज सरकार की इस योजना का लाभ लेने के लिए छोटे या बड़े व्यापारियों के लिए हरियाणा का मूल निवासी होना अनिवार्य है। इसके लिए योजना के लिए पंजीकरण कराने वाले व्यापारियों को आधार कार्ड, परिवार पहचान पत्र, राशन कार्ड, आय प्रमाण पत्र, पैन कार्ड, व्यापार रजिस्ट्रेशन नंबर, पासपोर्ट साइज फोटो और मोबाइल नंबर के अलावा ईमेल आईडी भी देना जरुरी किया गया है। हरियाणा सरकार का आबकारी एवं कराधान विभाग इस योजना का नोडल विभाग बनाया गया है। योजना का लाभ केवल जीएसटी में पंजीकृत व्यापारियों को ही दिया जायेगा। 
03Apr-2023