गुरुवार, 30 दिसंबर 2021

करोड़पतियों से सरोबार है हरियाणा मंत्रिमंडल!

उच्च शिक्षित मंत्रियों का है सरकार में वर्चस्व 
ओ.पी. पाल. नई दिल्ली। 
 दो दिन पहले मंगलवार को ही हरियाणा सरकार के मंत्रिमंडल में भाजपा के डा. कमल गुप्ता और जजपा के देवेन्द्र सिंह बबली को शामिल किया गया है। अब मुख्यमंत्री मनोहरलाल समेत हरियाणा मंत्रिमंडल के सदस्यों की संख्या बढ़कर 14 हो गई है। मंत्रिमंडल के विस्तार के बाद हरियाणा मंत्रिमंडल के सदस्यों की घोषित वित्तीय, आपराधिक, शिक्षा, लिंग और अन्य विवरण को लेकर एडीआर के विश्लेषण किया है। इस रिपोर्ट के तथ्यों के आधार पर जो तथ्य सामने आए हैं उसमें एक दिलचस्प पहलू ये है कि देश में शायद हरियाणा मंत्रिमंडल ही ऐसा है जिसमें कोई आपराधिक दाग नहीं है। इन तथ्यों में यह भी है कि मंत्रिमंडल के सभी सदस्य करोड़पतियों की फेहरिस्त में शामिल हैं। हरियाणा सरकार के मंत्रिमंडल विस्तार के बाद मुख्यमंत्री मनोहर लाल की टीम में 14 सदस्य शामिल हो गये हैँ, जिनमें दस भाजपा, तीन जजपा व एक निर्दलीय मंत्री हैं। एक महिला समेत मनोहर लाल के मंत्रिमंडल की टीम का हरेक सदस्य करोड़पति है, जिनकी औसत संपत्ति 17.73 करोड़ रुपये की दर्ज की गई है। यह खुलासा हरियाणा मंत्रिमंडल के एक दिन पहले हुए विस्तार के बाद मंत्रियों द्वारा घोषित शपथ पत्रों का अध्ययन करने के बाद गैर सरकार संस्था एडीआर ने विश्लेशण के बाद एक रिपोर्ट में किया है। हरियाणा के नवनिर्वाचित विधायकों में करोड़पति विधायकों की संख्या 84 यानि 93 फीसदी है। इस रिपोर्ट के अनुसार मंत्रिमंडल के सदस्यों में भिवानी जिले की लोहारू विधानसभा से निर्वाचित जय प्रकाश दलाल सबसे ज्यादा 76.75 करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ टॉप पर हैं, जबकि सबसे कम 1.17 करोड़ रुपये की संपत्ति वाले मंत्रियों में अंबाला कैंट से निर्वाचित विधायक अनिल विज हैं। इनके अलावा उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला 74 करोड़ की संपत्ति के साथ दूसरे पायदान पर है। जबकि हरियाणा के मुख्यमंत्री सवा करोड़ रुपये की संपत्ति के साथ मंत्रिमंडल के करोड़पतियों में 11वें स्थान पर हैं। मंत्रिमंडल के सदस्यों द्वारा घोषित वित्तीय विवरण के अनुसार मुख्यमंत्री मनोहर लाल को छोड़कर सभी 13 मंत्रियों ने देनदारी भी घोषित की है, जिसमें सबसे ज्यादा छह करोड़ की देनदारी जेपी दलाल के ऊपर है। जबकि दुष्यंत चौटाला ने 5 करोड़ रुपये की देनदारी की जानकारी दी है। इसके अलावा बाकी मंत्रियों ने एक लाख से 62 लाख रुपये तक की देनदारी घोषित की है। मौजादा विधानसभा में दाखिल हुए करोड़पति विधायकों में भाजपा के 40 विधायकों में से 37, कांग्रेस के 31 में 29 और जननायक जनता पार्टी के 10, इनेलो व हरियाणा लोकहित पार्टी का एक-एक के अलावा निर्दलीय सात में से छह विधायक इस फेहरिस्त में शामिल हैं। 
साफ सुथरा मंत्रिमंडल 
देश की केंद्र या किसी भी राज्य सरकार का मंत्रिमंडल ऐसा नहीं है जिसमें आपराधिकि छवि वाला सदस्य न हो। लेकिन हरियाणा सरकार के मुख्यमंत्री समेत सभी 14 मंत्रिमंडल के सदस्यों में किसी के खिलाफ आपराधिक दाग नहीं है। रिपोर्ट के अनुसार हालांकि वर्ष 2019 में हरियाणा की 90 सदस्यीय विधानसभा चुनाव में नवनिर्वाचत विधायकों में 12 विधायक ऐसे सामने आए थे, जिनके खिलाफ आपराधिक मामले लंबित हैं। ऐसे विधायकों में सबसे ज्यादा कांग्रेस के चार, भाजपा के दो, जजपा, इनेलो व एचएलपी का एक-एक विधायक शामिल रहा। जबकि इनके अलावा तीन निर्दलीय विधायकों पर भी अपराधिक दाग सामने आया था। हालांकि इस चुनावी जंग में 117 अपराधिक पृष्ठभूमि वाले प्रत्याशियों ने अपनी किस्मत आजमाई थी। निर्वाचित एक दर्जन दागियों में सात ऐसे दागी विधानसभा में हैं जिनके खिलाफ हत्या जैसे संगीन गंभीर मामले लंबित है। 
पूर्णत: शिक्षित मंत्रि परिषद 
हरियाणा विधानसभा में 90 विधायकों में से 62 विधायक उच्च शिक्षा धारक हैं, जिनमें 27 स्नातक, 19 प्रोफेशनल स्नातक, 14 स्नातकोत्तर और दो डॉक्टर शामिल हैं। इनके अलावा 14 इंटरमिडिएट, 10 हाईस्कूल पास, 2 आठवीं पास और एक पांचवी पास विधायक निर्वाचित हुए हैं। जब एक विधायक ऐसा है, जो अनपढ़ है। जबकि मनोहर लाल मंत्रिमंडल में 11 यानि 79 फीसदी मंत्रियों की शैक्षिक योग्यता स्नातक या उससे ज्यादा है। उप मुख्यमंत्री दुष्यंत चौटाला, मूलचंद शर्मा व डा. कमल गुप्ता पोस्ट ग्रेज्युएट तथा मुख्यमंत्री समेत आठ ग्रेज्युएट तथा बाकी तीन यानि 21 फीसदी मंत्री ही ऐसे हैं जिनकी शैक्षिक योग्यता इंटरमिडिएट है। 
दस फीसदी महिला निर्वाचित 
हरियाणा विधानसभा में इस बार महिला विधायकों की संख्या में कमी आई है यानि 90 विधायकों में केवल नौ महिलाओं ने ही जीत हासिल की है। जबकि वर्ष 2014 के चुनाव में 13 महिलाएं निर्वाचित होकर विधानसभा में दाखिल हुई थी। इस बार चुनाव में 104 महिलाओं ने अपनी किस्मत आजमाई थी। जबकि विधानसभा में 27-27 युवा एवं बुजुर्ग विधायक दाखिल हुए है, जबकि 36 विधायकों की संख्या 50 से 60 आयुवर्ग के हैं। इसमें 31 से 50 आयु वर्ग के 27 और 60 से 80 आयु वर्ग के विधायक विधानसभा में अपने अनुभव को साझा करेंगे। 
30Dec-2021

सोमवार, 27 दिसंबर 2021

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति में सामाजिक प्रेरणास्रोत बने संगीतकार सतीश वत्स

अध्यात्म की धारा से संस्कृति को कर रहे समृद्ध 
-ओ.पी. पाल 
हरियाणवी संस्कृति को अपनी विविध कलाओं के जरिए संजोने में लगे कलाकारों में सतीश वत्स एक ऐसा नाम है, जो आध्यात्मिक संगीत की कला से हरियाणवी संस्कृति के परोधा के रूप में अपनी अलग ही पहचान बना चुके हैं। यही नहीं उन्होंने प्रशासनिक क्षमता को भी अपनी ईमानदारी और कर्तव्य निष्ठा के साथ निभाकर एक मिसाल कायम की है। इसी प्रशासनिक क्षमता और कला के हुनर ने उन्हें सात समुंदर पार तक ऐसी पहचान दी, जिसमें संयुक्त राष्ट्र का अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार लेने वाले वे हरियाणा के अकेले कलाकार हैं। हरियाणा संस्कृति को अपनी संगीत कला के माध्यम भजनों का प्रसार व प्रचार करने में जुटे सतीश वत्स ने संगीत कला को पूरे विश्व में गुंजायमान करने वाले उस्ताद अमीर खां व उमराव सिंह निर्दोश जैसे अनेक ऐसे हरियाणवी संगीतकारों को भी तलाशकर वृत्त चित्र तैयार करके उन्हें समाज के सामने परिचित कराया है, जिनके बारे में आमजनो को उनकी हरियाणवी होने की जानकारी तक नहीं थी। संगीत कला और एक कुशल प्रशासन की ईमानदारी और कर्तव्यनिष्ठा के साथ सामाजिक सेवा करने वाले कलाकार एवं आकाशवाणी केंद्र रोहतक के निदेशक सतीश वत्स ने हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई खास बातचीत में कई ऐसे पहलुओं को उजागर किया है, जो समाज को प्ररेणा भी देते हैं। 
नैतिक मूल्यों की जरुरत 
प्रदेश के आकाशवाणी केंद्र रोहतक के निदेशक सतीश वत्स एक प्रशासनिक अधिकारी होने के साथ संगीत कला के हुनर से परिपूर्ण कलाकार है, जो हरियाणवी संस्कृति को पुनर्जीवित करने में जुटे हुए हैं। मूल रूप से करनाल जिले के कुंजपुरा गांव के परिवार से ताल्लुक रखने वाले सतीश वत्स का जन्म एक जुलाई 1962 को महाराष्ट्र के नासिक शहर में हुआ, जहां उनके पिता आर्मी में सिक्योरिटी प्रेस में तैनात रहे। उन्होंने बीए कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, एमए महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय रोहतक तथा एमफिल दिल्ली विश्वविद्यालय से की है। वत्स ने बताया कि वह दस साल के थे तो जींद में रामलीला के मंच पर वे श्रीराम का अभिनय करते थे और आठवीं कक्षा में उनकी कला को उनके अध्यापक बलबीर सैनी ने पहचाना तथा रोहतक रेडियो को चिठ्ठी लिखकर मुझे छोटा सा रेडियो सिंगर बनने का मौका मिला। इसी प्रकार फिल्मी सितारों की शाम कार्यक्रम में जींद में उन्होंने किसी बड़े मंच पर पहला हास्य गीत गाते हुए सबको आकर्षित किया। संगीत की कला को बेहतर बनाने के लिए वह गुडगांव में शास्त्री संगीत के अध्यापक के पास भी गये। उनके संगीत की कला को हौंसला मिला और वह अध्यात्मिक भजनों और गजलों के जरिए हरियाणवी संस्कृति को नई दिशा देने में जुट गये। 
विदेशों में बिखेरा रंग 
सतीश वत्स का मानना है कि नई पीढ़ी को नैतिक मूल्यों की आवश्यकता है, जिसके लिए भजनों का प्रसार प्रचार बेहद जरुरी है। अध्यात्मिक विचारधारा में विश्वास रखने वाले सतीश वत्स का कहना है कि भगवान श्रीराम की तुलसीकृत रामायण एक ग्रंथ नहीं, बल्कि सभी धर्मो का प्रमाण है। वे अतीत में कतई विश्वास नहीं करते और वर्तमान में यकीन रखने वाले सतीश जी ने यूरोपीय कई देशों में भी अपनी संगीत कला के रंग बिखेरे हैं, जिन्हें ऑडिशन बोर्ड दिल्ली ने भी ए-श्रेणी के संगीतकार की मान्यता दी है। भारतीय फिल्म और टेलीविजन संस्थान पुणे से भी सतीश चन्द्र वत्स को मूलभूत दूरदर्शन निर्माण तथा तकनीकी प्रचालन पाठ्यक्रम के कार्य निष्पादन का प्रमाण पत्र मिला। वहीं उन्हें वर्ष 1995 में संयुक्त राष्ट्र से अंतर्राष्ट्रीय पुरस्कार के रूप में वर्ल्ड फूड डे अवार्ड से सम्मानित किया जा चुका है। 
कला के प्रति जागरूकता 
प्रसार भारतीय में प्रशासनिक सेवा में रहते हुए भी सतीश वत्स ने समाज सेवा और हरियाणवी संस्कृति को सर्वोपरि रखा। उन्होंने भारतीय शास्त्री संगीत के पुरोधा तानसेन पर कार्य करने के मकसद से मध्य प्रदेश में उनके गांव बेहट तक गये, जहां उनका खंडहर महल है। तानसेन पर वृत्तचित्र तैयार करके उन्होंने आमजन को सदभावना का वह संदेश दिया, जहां तानसेन की इच्छा अनुसार मोहम्मद गौस के मकबरे के समीप तानसेन की समाधि बनी हुई है। उन्होंने पोप गायक दिलेर मेहंदी जैसे कई कलाकारों पर वृत्तचित्र तैयार करके प्रसारित कराए हैं। उन्होंने संगीत के क्षेत्र में हरियाणा के ऐसे कलाकारों व संगीतकारों को भी तलाशकर उन पर कार्यक्रम तैयार किये हैं, जिनके बारे में लागों को उनका हरियाणवी होने की जानकारी तक नहीं थी। संगीत के उस्ताद अमीर खान रोहतक के कलानौर के थे, जिनके पुत्र शबाज खान टीवी सीरियल टीपू सुल्सान में हैदर अली की भूमिका निभाई है। इसी प्रकार हरिओम शरण द्वारा गाये गये ‘तेरा राम जी करेगा बेडा पार’….गीत के लेखक उमराव सिंह निर्दोश के नाम से भी समाज को परिचित कराया जो सांपला के रहने वाले थे। उमराव ने अनेक भक्ति गीत लिखे हैं, जिसके बारे में साहित्यकार मधुकांत ने काम करके उन्हें गुमनामी से बाहर किया। सतीश वत्स ऐसे गुमनाम हरियाणवी पुराधाओं पर काम करने और करने वालों को सौभाग्य मानते हैं। उनका कहना है कि ऐसे कलाकारों के नाम से उनके गृह स्थलों पर उनकी तर्ज पर कार्यक्रम कराने की परंपरा शुरू होनी चाहिए। 
हिसार दूरदर्शन केंद्र को दी नई दिशा 
संघ लोकसेवा आयोग से 1988 बैच से दिल्ली दूरर्शन में हरियाणा कार्यक्रम के लिए चयनित सतीश वत्स ने एक कुशल प्रशासनिक अधिकारी के रूप में अपनी अहम भूमिका निभाई। उनकी पहली नियुक्त रोहतक रेडियो स्टेशन में हुई। दिल्ली दूरदर्शन केंद्र से जब उन्हें 1 नवंबर 2002 से शुरू हुए दूरदर्शन केंद्र हिसार में मार्च 2015 में निदेशक के रूप में नियुक्ति मिली तो वहां देखा गया कि इस केंद्र से पिछले 13 साल तक कार्यक्रमों का प्रसारण दैनिक आधार पर नहीं किया गया। उन्होंने इस केंद्र को क्षेत्रीय चैनल के रूप में विस्तार देने के प्रयास शुरु किये और केंद्र सरकार से बिना कोई बजट मांगे एक नवंबर 2015 दूरदर्शन केंद्र हिसार को प्रदेश का पूर्ण क्षेत्रीय चैनल के रूप में अपग्रेड किया गया, जो उनकी बड़ी उपलब्धि थी। अब यह केंद्र सोमवार से शनिवार को दोपहर 3.00 बजे से शाम 7.00 बजे तक और रविवार को शाम 6.30 से 7.00 बजे तक प्रसारित करता आ रहा है। 
कोरोनाकाल में बने मिसाल 
हरियाणा के संगीतकार सतीश वत्स अपनी कला के जरिए समाज को नई दिशा देने में जुटे हुए हैं। प्रसार भारती के अधिकारी ने सामाजिक जागरूकता के लिए जिस तरह से अपनी परवाह किये बिना अहम भूमिका निभाई, वह एक मिसाल बनी। जनता कर्फ्यू से लेकर लॉकडाउन के बावजूद हिसार दूरदर्शन केंद्र के निदेशक सतीश वत्स ने बिना स्टाफ और बिना किसी सरकारी सहयोग के निरंतर गतिशीलता बनाए रखी। अपने बलबूते पर लॉकडाउन के विभिन्न चरणों में बरतने वाली सावधानियां, सरकारी नीतियां, आत्मनिर्भर अभियान, कोरोना योद्धाओं की दूरदर्शन के माध्यम से हौंसला अफजाई की और समय समय पर केंद्र एवं राज्य सरकार द्वारा पारित किये गये विभिन्न आदेशों, सुझावों और क्रियाओं को केंद्र में रखते हुए दूरदर्शन हिसार हेतु अनेक जनजागरण कार्यक्रम न कवेल तैयार किये, बल्कि उन्हें समय मांग के अनुसार बारंबार प्रसारित भी किया। इस दौरान दूरदर्शन पर प्रसारित करने के लिए हरियाणा के गृहमंत्री अनिल विज का साक्षात्कार खुद के वाहन से अंबाला जाकर लिया। यही नहीं अनेक प्रतिष्ठित राजनीतिज्ञों, विश्वविद्यालयों के कुलपितयों, कई जिलों के प्रशासनिक अधिकारियों, खिलाड़ियों और योग जैसे विशेषज्ञों के साक्षात्कार अपने बल पर लेकर उनका समाज की जागरूकता और आशा के नवदीप दिखाने के लिए किया। मसलन दूरदर्शन केंद्र हिसार के कोरोना महामारी जैसे संकट में सर्वाधिक कार्यक्रम पूरे भारतवर्ष में दूरदर्शन केंद्र हिसार से प्रसारित किये गये। खास बात ये भी है कि ये सभी कार्यक्रम उन्होंने अपने आवास के एक कमरे को स्टूडियों के रूप में सीमित संसाधनों एवं कैमरे सहित विभिन्न आवश्यक उपकरण जुटाकर विधिवत तैयार किये। उनका यह संघर्ष जारी रहा, जबकि वे खुद कोरोना संक्रमित होकर रोहतक के एक अस्पताल में भर्ती रहे।
27Dec-2021

मंडे स्पेशल: कोरोना के नए वैरिएंट ओमिकॉन से दहशत में प्रदेश!

थोडी भी लापरवाहीं हर किसी के लिए पड़ सकती है महंगी 
ओ.पी. पाल. रोहतक। कोरोना की तीसरी लहर की चर्चाएं जोरों पर हैं। ओमिक्रॉन के रूप में कोरोना महामारी का नया वैरिएंट तेजी से पांव पसार रहा है। इससे निपटने के लिए प्रदेश सरकार चौकस दिखती है और रात्रि कफर्यू समेत कइ उपयों का ऐलान कर दिया है। बाजार भी सुनवान होने लगे हैं और आम आदमी का कोरोना का भय भी स्पष्ट दिखाई देने लगा है। लेकिन धरातल पर अभी भी वो व्यवस्थाएं नजर नहीं आती, जिनकी कमी दूसरी लहर के दौरान खली थी। हालांकि सरकार ने अनेक आक्सीजन प्लांट शुरू कर दिये हैं, लेकिन सरकार ढांचागत अस्पतालों की परिस्थितियों में बदलाव दिखाई नहीं दे रहा है। दूसरी लहर के दौरान पानीपत व हिसार में बनाए गये अस्थाई अस्पताल अफसरों की कार्यप्रणाली को दर्शाते हैं यानी पानीपत में तो कोरोना मरीजों के लिए बनाए गये अस्पताल का पूरा टैंट ही गायब हो चुका है। जबकि हिसार में टैंट तो है ल किन सुविधाओं का कुछ अता-पता नहीं है। राजकीय अस्पतालों में आक्सीजन व दवाईयां तो हैं लेकिन कर्मचारियों का रवैया देखकर डर लगता है कि कहीं तीसरी लहर में हालात वैसे डरावने न हो जाएं जैसे दूसरी लहर क दौरान थे।
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विश्वभर में दहशत फैला रहे कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन ने भारत के कई राज्यों के साथ हरियाणा में चार मरीजों के साथ दस्तक भी दे दी है। प्रदेश सरकार ने ओमिक्रॉन से निपटने के लिए सभी जिला प्रशासन को निर्देश देते हुए कई उपायों का ऐलान कर दिया है। रात्रि कफर्यू के अलावा सार्वजनिक स्थानों पर ऐसे आमजनों का आवागमन प्रतिबंधित कर दिया है, जिन्होंने कोरोना रोधी वैक्सीन नहीं ली है। यही नहीं किसी सरकारी या गैर सरकारी संस्थानों, व्यवसायिक संस्थानों और किसी भी वाहन में वैक्सीन की डोज लिए के बिना सफर तक करने से वंचित रहना पड़ सकता है। देखने में आ रहा है कि लोगों में ओमिक्रोन का भय तो है, लेकिन वे बचाव के उपायों या सरकार के महामारी बचाव के लिए जारी हिदायतों को नजरअंदाज करते दिख रहे हैं। प्रदेश सरकार ओमिक्रॉन से निपटने के लिए टीकाकरण अभियान को तेज कर दिया है, लेकिन प्रशासन की लगतार अपील के बावजूद भी आमजन सतर्कता बरतते नजर नहीं आ रहे हैं। ओमिक्रॉन को लेकर सरकार को उम्मीद है कि तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए पहले ही प्रदेशभर में स्वास्थ्य विभाग द्वारा त्वरित तौर पर सक्रिय करने को लेकर की गई तैयारियों से ऐसे समय में विभिन्न कमियों को दूर करना मुश्किल नहीं होगा। जिला प्रशासन व स्वास्थ्य विभाग सभी अस्पतालों में व्यवस्था का जायजा लेकर उन्हें दुरस्त करने में जुटे हुए हैं। 
नए साल से बढ़ेगी मुसीबतें 
प्रदेश में कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन से निपटने के लिए रात्रि कर्फ्यू लागू करने के अलावा एक जनवरी यानि नए साल से दूसरी लहर से भी ज्यादा सख्त उपायों का ऐलान किया है। मसलन नए साल से रिक्शा, कार, बस, ट्रेन या अन्य किसी वाहन में वहीं सफर कर सकेगा, जिसने कोरोना रोधी वैक्सीन की डोज लगवा रखी होगी। इसी प्रकार की पाबंदी, सरकारी व निजी कार्यालयों, अस्पतालों, होटलों, रेंस्तरों, रेस्टोरेंट या अन्य किसी भी सार्वजनिक जगहों पर प्रवेश करने के लिए अनिवार्य की गई है। नए साल से शिक्षण संस्थानों में प्रवेश के लिए भी 18 साल से ज्यादा उम्र वाले विद्यार्थियों को वैक्सीन की डोज लिए बिना प्रवेश पर प्रतिबंध रहेगा। 
तैयारी के बावजूद बड़ी चुनौती 
प्रदेश में भले ही सरकार के निर्देश पर कोरोना के नए वैरिएंट से निपटने की तैयारी की जा रही है, लेकिन प्रदेश हर जिले में स्वास्थ्य विभागों में लैब टेक्नीशियनों और अन्य तकनीकी पदों की हजारों की संख्या में कमी बड़ी चुनौती बन सकती है। हालांकि तीसरी लहर से निपटने के लिए पूर्व में की गई तैयारियों के तहत सरकारी डॉक्टरों को वेंटिलेटर ऑपरेट करने, स्टाफ नर्सों को ऑक्सीजन कंसट्रेटर ऑपरेट करने और स्टाफ को लगातार संक्रमण कंट्रोल करने का प्रशिक्षण देने के लिए बड़े पैमाने पर अभियान चलाया गया। निजी डिप्लोमाधारियों को भी सरकार इस प्रकार का प्रशिक्षण देने का दावा कर रही है। 
ऑक्सीजन की कमी नहीं 
हरियाणा सरकार के कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की आहट देखते ही जारी हुए आदेश के बाद राज्य में सभी 90 ऑक्सीजन प्लांटों को संचालित कर दिया गया है। प्रदेशभर के अस्पतालों में भी आक्सीजन और दवाईयों की कोई कमी नहीं है, लेकिन सरकारी अस्पतलों के कर्मचारियों के दूसरी लहर के दौरान देखे गये रवैये और निजी अस्पतालों के मनमानी वसूली को लेकर आम लोगों में ओमिक्रॉन वैरिएंट का भय बना हुआ है। हालांकि सरकार का दावा है कि कोरोना के नए वैरिएंट ओमिक्रॉन की जांच के लिए जीनोम सिक्वेंस की आवश्यकता को पूरा करने के लिए रोहतक के महर्षि दयानंद विश्वविद्यालय में भेंट की गई एक मशीन का संचालन भी शुरू हो गया है और इस मशीन के मार्फत जीनोम सिक्वेंसिंग का काम शुरू हो गया है। मसलन अब जीनोम सिक्वेंस के लिए कोरोना जांच के नमूने दिल्ली भेजने की जरुरत नहीं पड़ेगी। सरकार ने तीसरी लहर की संभावना को देखते हुए पहले ही प्रदेशभर में स्वास्थ्य विभाग को पूरी तरह से त्वरित तौर पर सक्रिय करने के लिए विभिन्न कमियों को दूर किया जा रहा है। 
अस्थाई अस्पतालों के उखड़े तंबू 
प्रदेश सरकार ने कोरोना की दूसरी लहर के दौरान मची तबाही के मद्देनजर जहां ऑक्सीजन प्लांटों को दुरस्त कराया था, वहीं पानीपत में रिफायनरी के निकट ही प्रदेश में सबसे बड़े कोरोना केयर सेंटर के रूप में 504 बेड वाला अस्थाई अस्पताल इसलिए बनाया था, कि तीसरी लहर आने पर मरीजों के लिए व्यवस्था दुरस्त रह सके, लेकिन ओमिक्रॉन के प्रदेश में दस्तक के बाद देखा गया कि जहां यह अस्पताल बनाया गया था, वहां पूरा अस्पताल समतल मैदान बना हुआ है। इसी प्रकार दूसरा अस्थाई अस्पताल हिसार जिला मुख्यालय में बनाया गया था, जिसका ढांचा तो है, लेकिन उसमें की गई सुविधाएं गायब हैं। हालांकि स्वास्थ्य विभाग ओमिक्रॉन वैरिएंट को देखते हुए इस अस्पताल को फिर से बहाल करने का प्रयास कर रहा है। 
पानीपत में प्रशासन सतर्क 
प्रदेश सरकार के आदेश के बाद पानीपत जिला प्रशासन कोरोना के नए वैरिएंट के प्रति सतर्क होकर तैयारियों में जुटा हुआ है। जिल में स्वास्थ्य विभाग ने प्रशासन के साथ मिलकर ऑक्सीजन प्लांट, सरकारी अस्पताल में 47 वेंटिलेटर, 687 ऑक्सीजन बेड, 569 नॉन ऑक्सीजन बेड, 150 आईसीयू बेड की व्यवस्था पूरी कर ली है। सभी सरकारी डॉक्टरों को वेंटिलेटर ऑपरेट करने के लिए प्रशिक्षण भी दिया जा रहा है। स्टाफ नर्सों को ऑक्सीजन कंसट्रेटर ऑपरेट की भी ट्रेनिंग दी जा रही है। स्टाफ को लगातार संक्रमण कंट्रोल करने का भी प्रशिक्षण दिया जा रहा है। वहीं 75 ऑक्सीजन कंसट्रेटर मशीने संचालन में हैं और 28 बेड का आइसोलेशन वार्ड भी तैयार है, 60 का बनना है। 10 एपिड्यूरल इन्फ्यूजन पंप (दवा को सही मात्रा में पहुंचाने का एक सिस्टम), 10 मल्टी पैरामीटर(ब्लड प्रेशर, धड़कन, आक्सीजन लेवल बताने वाला सिस्टम), 30 नेजल प्रान, 16 नेबुलाइजर हैं। 
बेहद खतरनाक है ओमिक्रॉन 
विशेषज्ञों का कहना है कि ओमिक्रॉन ओमिक्रॉन कितना खतरनाक इसकी जानकारी स्वास्थ्य ऐजेंसियों को होना आवश्यक है। इससे पहले कोरोना वायरस का नया रूप डेल्टा आया, इसमें 13 म्यूटेशन थे, जिसने सीधे फेफड़ों पर असर किया। अब ओमिक्रॉन में 50 म्यूटेशन हैं। इसलिए ये तेजी से फैलेगा। ओमिक्रॉन वैरिएंट में 50 म्यूटेशन हैं, जिसकी वजह यह तेजी से फैलेगा। इस वैंरिएंट को लेकर वैज्ञानिक इस बात का अध्ययन करने में जुटे है कि इससे संक्रमित होने वलों को कितना नुकसान होगा और इसके बचाव के लिए कौन सी दवाई असरदार होगी? इस संबन्ध में पीजीआई में कोवैक्सीन ट्रायल के इन्वेस्टीगेटर और कम्यूनिटी मेडीसन डिपार्टमेंट के प्रोफेसर डॉ. रमेश वर्मा का कहना है कि इससे घबराने की जरुरत नहीं है, जिसने कोरोनारोधी वैक्सीन की डोज ले ली है, उसके लिए इस वैरिएंट का खतरा बेहद कम है। यदि ऐसा व्यक्ति इससे संक्रमित हो भी जाता है तो उसके लिए अस्पताल में भर्ती होने की स्थिति नहीं आएगी। लेकिन बच्चों के लिए यह ज्यादा खतरनाक साबित हो सकता है, जो ज्यादा चिंता पैदा करता है। हालांकि बच्चों को ज्यादा नुकसान नहीं होगा। 
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आयुर्वेद में ये इलाज 
ओमिक्रॉन वायरस से बचने के लिए हर व्यक्ति को शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाने के लगातार प्रयास करना चाहिए। विटामिन-सी के रूप में आंवला, गिलोय खाने के अलावा एक चम्मच का चौथा हिस्सा हल्दी सबसे लाभकारी होगी। संक्रमित और स्वस्थ्य व्यक्ति दोनों ही इसे कर सकते हैं। फेफड़ों को बचाने के लिए बनस्पा का चूर्ण लें, खांसी हो तो मुलहैटी या शीतोप्लादी लें। च्यवनप्राश का सेवन करें, ये एंटी ऑक्सीडेट होता है। सबसे महत्वपूर्ण गर्म पानी की भाप जरूर लें। योग और व्यायाम को दिनचर्या में शामिल करें। डॉ. संजय जाखड़, आयुर्वेद विशेषज्ञ 27Dec-2021

सोमवार, 20 दिसंबर 2021

साक्षात्कार. साहित्य दर्पण नहीं, दीपक की रोशनी है: अशोक बत्रा

हिंदी व्याकरण पर पुस्तकें लिखकर पाया सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान 
-ओ.पी. पाल 

व्यक्तिगत परिचय 

नाम:डॉ अशोक बत्रा 
जन्म: 2 अक्टूबर 1956 
जन्म स्थल: सोनीपत 
शिक्षा: एम.ए.(हिंदी) हिंदू कॉलेज सोनीपत, एम.फिल (कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय), पीएचडी(रोहतक विश्वविद्यालय) 
संप्रत्ति: पूर्व प्राचार्य, श्री लालनाथ हिंदू कॉलेज रोहतक। 
रियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के आदित्य अल्हड़ हास्य सम्मान से सम्मानित किये गये प्रख्यात लेखक एवं कवि डा. अशोक बत्रा ने हिंदी साहित्य के क्षेत्र में अपनी लेखनी के जरिए साहित्य का प्रसार करते हुए अब तक हजारों निबंध, आलेख, सैकड़ो लघु कथाएं, सैकड़ो कविताएं लिखकर हजारों लाखो पाठकों और कवि सम्मेलनों के मंच से अपनी कविताओं श्रोताओं के दिलों में तो अपनी खास जगह बना चुके हैं। वहीं हिंदी साहित्य के क्षेत्र में वे ऐसे साहित्यकारों की फेहरिस्त में शामिल हैं, जिन्होंने हिंदी व्याकरण पर पुस्तकें लिखकर सर्वश्रेष्ठ लेखक का सम्मान प्राप्त किया हैं। वे एनसीईआरटी द्वारा हिंदी व्याकरण लेखन के लिए गठित लेखक मंडल के भी सदस्य हैं, जिनकी हिंदी व्याकरण एवं रचना पुस्तकें पाठ्यक्रमों में शामिल हैं। मसलन हिंदी और साहित्य का प्रसार करके उन्होंने श्रेष्ठ साहित्य के लेख और प्रसारण को कहीं अधिक महत्व दिया है। हरियाणा के प्रसिद्ध साहित्यकार एवं कवि डॉ. अशोक बत्रा ने हरिभूमि संवाददाता से हुई खास बातचीत में अपने हिंदी साहित्य क्षेत्र के सफर के अनुछुए पहुलओं को बेबाक साझा किया। 
प्रदेश के सोनीपत निवासी प्रसिद्ध कवि, लेखक एवं प्रसिद्ध भाषाविद् डा. अशोक बत्रा का मानना है कि हिंदी साहित्य की अलग अलग सभी विधाएं समाज को दिशा देने का काम करती हैं। वे साहित्य को दर्पण नहीं, बल्कि दीपक मानते है। उनका कहना है कि सच्चा साहित्यकार तुलसी, सूर और दिनकर जैसे हैं जो अंधेरे को अंधेरा कहकर संतुष्ट नहीं होते, बल्कि दीये की रोशनी बनकर अंधेर को छांटते हुए नई राह तलाशते हैं और प्रेरणा और गति के संदेश देते हैं। उनका प्रयास यही रहता है कि हिंदी की श्रेष्ठ कविताएं देश की युवा पीढ़ी के हृदय में कैसे रचे बसें, श्रेष्ठ कहानियों को पढ़ने का शौंक कैसे जगे, भारत के श्रेष्ठतम साहित्य का जन जन के हृदय तक प्रसार कैसे हो, इसके लिए उन्होंने पिछले करीब दो दशक के दौरान दिनकर काव्य पाठ ,रामायण महाभारत प्रश्नोत्तरी, श्रीराम काव्य पाठ प्रतियोगिता, विवेकानंद प्रश्नोत्तरी, काव्य अंताक्षरी, 1857 के स्वतंत्रता संग्राम पर राष्ट्रीय स्पर्धा, कहानी एवं कविता प्रश्नोत्तरी के अलावा अपने साहित्यक प्रतियोगितांए आयोजित करवाई हैं। हिंदी समीक्षा पर उनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी हैं और काव्य मंचों पर 500 से अधिक के कवि सम्मेलनों में काव्य पाठ किया है। साहित्य लेखन की प्रेरणा उनमें विद्यार्थी अवस्था से ही जगी हुई है, जो निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में हमेशा अव्वल ही रहे हैं। अनेक अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिताएं जीतकर डा. अशोक बत्रा ने हिंदी साहित्य को गति देते हुए समाज को नई दिशा देने का काम किया है। 
डा. अशोक बत्रा ने राजकीय कालेज महेन्द्रगढ़ में सेवा कार्य करने के अलावा 33 वर्ष तक हिंदू कॉलेज सोनीपत में अध्यापन का कार्य किया और ढ़ाई साल हिंदू कॉलेज रोहतक में प्राचार्य के रूप में सेवाएं दी हैं। साहित्य लेखन की प्रेरणा उनमें विद्यार्थी अवस्था से ही जगी है और वे निबंध लेखन प्रतियोगिताओं में हमेशा अव्वल ही रहे हैं। अनेक अखिल भारतीय निबंध प्रतियोगिताएं जीतकर डा. अशोक बत्रा ने हिंदी साहित्य को गति देते हुए समाज को नई दिशा देने का काम किया है। पिछले चार दशक से वे प्रतिष्ठित शैक्षणिक प्रकाशक लक्ष्मी पब्लिकेशंस के लिए निरंतर लेखन कार्य करते आ रहे हैं। उन्होंने एनसीईआरटी तथा अन्य प्रतिष्ठित शैक्षणिक संस्थाओं द्वारा आयोजित हिंदी भाषा सम्मेलनों में शताधिक बार व्याकरण विशेषज्ञ के रूप में वक्तव्य प्रसारण भी किया। कविता के क्षेत्र में 500 से अधिक कवि सम्मेलनों में काव्यपाठ कर श्रोताओं को अपनी ओर आकर्षित किया। टीवी सीरियल 'वाह वाह क्या बात है' में दो बार काव्य-प्रस्तुति कर चुके डा. अशोक बत्रा ने कहा कि जहां तक उनकी निजी काव्य-प्रेरणा है, तै जहां जहां पीडा, असंतोष या अन्याय देखते हैं, लेखनी की तलवार उठा लेते हैं और जहां करूणा और प्रेम सद्भाव देखते हैं वहां लेखनी को निर्झर बना लेते हैं। जहां होठों की मुस्कान बनने और चेहरों की लाली बनने के लिए हास्य के ताब खोदने लगता हूं, जिसमें मुझे चेहरे नहाकर मुस्करा दे। 
प्रकाशित पुस्तकें 
डा. अशोक बत्रा की व्याकरण पर आधारित पुस्तकों में नवयुग हिंदी व्याकरण, आधुनिक हिंदी व्याकरण और तीन भागों में विशेष हिंदी व्याकरण पुस्तकें विद्यार्थियों का ज्ञानवर्धन कर रही हैं। देशभर में कक्षा छह से बारहवीं कक्षा तक उनकी हिंदी व्याकरण एवं रचना की करीब 50 पुस्तकें पाठ्यक्रम में शामिल हैं। उनकी अन्य पुस्तकों में आधुनिक हिंदी मीडिया लेखन(संचार की विधाएं) एवं हिंदी रचना, सन सत्तावन, तेजपुंज विवेकानंद, प्रेरणापुंज विवेकानंद, रामचंद्र शुक्ल के दो निबंध, रामचंद्र शुक्ल के निबंध(व्यक्तित्व एवं कृतित्व) भी प्रचलन में हैं। वहीं उन्होंने अपनी धर्मपत्नी संतोष बत्रा के साथ सुरभि हिंदी पाठ्यक्रम पुस्तक, सुरभि हिंदी पाठ्यक्रम पुस्तक(प्रवेशिका), जवाहर नवोदय विद्यालय(इंग्लिश मीडियम) व सरल हिंदी व्याकरण तथा रचना भी लिखी हैं। इसके अलावा उनकी संपादित पुस्तकें भी पाठकों के बीच हैं, जिनमें कुछ शिक्षक कवि (2 भाग), हिंदी की सर्वश्रेष्ठ 25 कहानियाँ भी सुर्खियों में हैं। उन्होंने कुबेरनाथ राय के ललित निबंध पर शोध कार्य भी किया। राष्ट्रीय कवि संगम नामक संस्था का राष्ट्रीय महामंत्री एवं भाषा-संस्कार नामक संस्था का अध्यक्ष डा. अशोक बत्रा हिंदी साहित्य में किसी पहचान के मोहताज नहीं है। उनके निर्देशन अनेक शोधार्थियों ने एम फिल, अनुवाद तथा पी.एच.डी. की है। 
पुरस्कार व सम्मान 
एनसीईआरटी के लेखक, शिक्षाविद् एवं भाषाविद् डा. अशोक बत्रा को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2019 के लिए दो लाख रुपये के आदित्य अल्हड़ हास्य सम्मान से नवाजा है। फेडरेशन ऑफ एजुकेशनल पब्लिशर्स इन इंडिया (एफईपीआई) द्वारा उन्हें उत्कृष्ट व्याकरण लेखन के लिए वर्ष 2005 का विशिष्ट लेखक सम्मान दिया गया है। संस्कार भारती और सांस्कृतिक विभाग पंचकूला द्वारा कला विभूति सम्मान, हिंदी साहित्य संगम द्वारा हिंदी साहित्यश्री सम्मान, पंडित महेन्द्र प्रता स्मृति काव्य पुरस्कार (देहरादून) के अलावा उन्हें गंभीर साहित्य से अधिक हास्य कविताओं के लिए असंख्य ख्याति और पुरस्कार मिले और अनेक संस्थाओं द्वारा सम्मानित किया जाता रहा है। 
नए कीर्तिमान की राह पर 
राष्ट्रीय कवि संगम का राष्ट्रीय महामंत्री होने के नाते डा. अशोक आगामी एक मार्च 2022 महाशिवरात्रि को श्रीलंका से चलकर देश के 252 स्थानों को छूते हुए 40 प्रमुख श्रीराम विचरण स्थलों पर विराट कवि सम्मेलन करते हुए 10 अप्रैल 2022 को रामनवमी पर अयोध्या पहुंचेंगे, जहां भारत की सभी 22 भाषाओं और हंदि की सभी बोलियों के 600 कवि दिन रात काव्य पाठ करते हुए 130 घंटे लंबे काव्यपाठ का विश्व कीर्तिमान बनाएंगे। वह इस प्रतियोगिता की योजना के सूत्रधारों में से एक हैं, जिसे वे एक सौभाग्य मानते हुए अपने जीवन की सार्थकता करार देते हैं। 
संपर्क:847,सेक्टर14,सोनीपत(हरियाणा)-131001,ईमेल-ashokbatra.ashok@gmail.com,
मोबाइल-+918168115258 
20Dec-2021

मंडे स्पेशल: शीत लहर के बावजूद हरियाणा के रैन बसेरों में बेसहरा लोगों का टोटा!

कड़ाके की ठंड में दानियों के इंतजार में सड़कों पर सोने के मजबूर हैं लोग 
प्रदेश में रैन बसेरों में सभी मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराने में जुटी संस्थाएं 
ओ.पी. पाल.रोहतक। लगातार हो रही बर्फबारी के चलते पूरा उत्तरी भारत शीत लहर की चपेट में है। कड़ाके की ठंड के कारण हरियाणा में भी पिछले पांच दिनों से हाड़ फोड़ सर्दी कहर बरपा रही है। इसके चलते लोग अपने घरों में दुबकने को मजबूर हैं। बाजार सुनसान हैं और सड़कों पर इक्का दुक्का वाहन ही नजर आ रहे हैं। सबसे बेहाल वे लोग हैं जिनके पास अपना आसियाना नहीं है। प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं ने हर जिला मुख्यालय और शहरों में रैन बसेरों को इंतजाम किया है। लेकिन इसके बावजूद लोग सड़को के किनारे फुटपाथों पर सोने को मजबूर हैं। एक तरफ तो प्रशासन का कहना है कि लोग रैन बसेरों में नहीं आ रहे हैं। दूसरी ओर आमजन को रैन बसरों की जानकारी ही नहीं है। प्रदेश के कई शहरों में रैन बसेरों में बहुत ही बेहतर व्यवस्थाएं की गई हैं, लेकिन आमजन के न पहुंचने के कारण ये व्यवस्थाएं बेकार साबित हो रही हैँ। यही कारण है कि लोग सड़कों पर सोते व ठंड से कहराते दिखाई दे रहे हैं। सड़को पर सो रहे लोग रैन बसेरों की जानकारी न हो ने की बात कहते हैं, वहीं दूसरी तरफ सामाजिक संस्थाओं का कहना है कि लोग रैन बसेरों में आना नहीं चाहते और कड़ाके की ठंड में भी सड़कों पर दानी लोगों के आने का इंतजार करते रहते हैं ताकि वे आए और उन्हें कुछ दे जाएं। इसलिए लोग रैन बसेरों में नहीं आ रहे हैं। 
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प्रदेश के मुख्यमंत्री मनोहर लाल ने सर्दी बढ़ने और शीत लहर की संभावना के मद्देनजर 30 नवंबर को ही सभी जिला प्रशासन को निर्देश दिये थे कि शहरों में जरूरत के मुताबिक रैन बसेरों का निर्माण करना सुनिश्चित किया जाए और कोई व्यक्ति खुले आसामन के नीचे सोता मिले तो उन्हें रैन बसेरा में पहुंचाने की व्यवस्था की जाए। हालांकि प्रदेश के सभी शहरी क्षेत्रों में पहले से ही लाखों की लागत से अनेक स्थायी रैन बसेरा बने हुए हैं, जिनमें गद्दे, रजाई और खान पान जैसी सुविधाएं मुहैया कराने के इंतजाम भी किये गये हैं। वहीं बढ़ती सर्दी व ठंड में अस्थायी रैन बसेरा बनाने और उनका संचालन कर रहे प्रशासन, नगर निगम और रेडक्रास सोसाइटी, हरियाणा रोडवेज, सामाजिक संस्थाएं व धार्मिक संस्थाएं लोगों को ठंड से बचाने की तैयारियों में जुटी हुई हैं। प्रदेशभर के शहरों में हरिभूमि संवाददाताओं ने रात्रि के समय शहरों का भ्रमण करके कड़ाके की इस ठंड में रैन बसेरों के अलावा जो हालात देखे, उसमें कई शहरों में रैन बसेरों में तमाम सुविधाओं के बावजूद आमजनों के पहुंचने का टोटा दिख रहा है जबकि रात्रि के समय सड़को के किनारे सोते लोग ज्यादा नजर आ रहे हैं। मसलन प्रदेश के ज्यादातर शहरों में बनाए गये रैन बसेरों में बेसहारा लोगों और रात्रि विश्राम के लिए मुसाफिरों के आने का इंतजार किया जा रहा है।
रैन बसेरों का निरीक्षण करने में जुटे अधिकारी 
प्रदेश के जिलों व शहरों में बनाए गये रैन बसेरों में की गई व्यवस्था का जायजा लेने के लिए प्रशासनिक अधिकारी, नगर निगम, नगर परिषद, जिला रेडक्रास सोसाइटी के पदाधिकारी लगातार निरीक्षण कर रहे हैं। कई रैन बसेरा में सुविधाओं को मुहैया कराने की व्यवस्था कराने की कार्यवाही कर रहे हैं। कई शहरों में तो निरीक्षण के दौरान रैन बसेरा में ताला जड़ा हुआ मिला, तो किसी जगह सफाई व्यवस्था चरमाई मिली। कई शहरों में निरीक्षण के दौरान यह भी पाया गया कि नगर परिषद ने सर्दी का समय नजदीक आने पर कुछ महीने पहले उसकी सफाई तो करवाई, लेकिन रैन बसेरे में अभी तक कोई कर्मचारी नियुक्त नहीं किया गया है। ऐसे में अधिकारी संबन्धित कर्मचारियों को चेतावनी तक भी दी जा रही है, ताकि रैन बसेरा में लोगों को मूलभूत सुविधाएं मुहैया कराई जा सके। इसी कारण शहर में रात्रि के समय लोग दुकानों के नीचे बने छज्जे तथा फुटपाथ का सहारा लेने को मजबूर हैं। 
रेलवे स्टेशनों व बस स्टैंड पर रैन बसेरा 
प्रदेश के हरेक शहरों में रेलवे स्टेशनों व बस स्टैंड और इनके आसपास रैन बसेरों का इंतजाम है, जिनमें ज्यादातर वे मुसाफिर रात्रि को ठंड से बचने के लिए विश्राम करते हैं, जिन्हें आगे का सफर करना होता है। दूसरी ओर इन रैन बसेरों में सुविधाओं के अभाव में बेसहारा लोग आने से कतरा रहे हैं और वे सड़कों पर सोने को मजबूर है, जिसमें उनका स्वार्थ भी है, क्योंकि ऐसी सर्द रातों में सामाजिक संस्थाएं और दानी लोग गरीबों को कंबल, गर्म वस्त्र और अन्य मदद के लिए सक्रीय हो जाते हैं। रेलवे स्टेशनों में ओवर ब्रिज या प्लेटफार्म पर भी रात्रि में लोग सो रहे हैं, जहां सक्रीय सामाजिक संस्थाएं कंबल और गर्म कपड़ो को वितरण करने में जुटी हैं वहीं खाद्य सामग्री की सुविधा भी दी जा रही है। 
रैन बसेरा बनेंगी रोडवेज बसें 
प्रदेश के कई शहरों में यह भी देखा गया है कि हरियाणा रोड़वेज बस स्टैंड पर रैन बसेरा के रूप में पोर्टा कैबिन संचालित किये जा रहे हैं। रोहतक समेत कई जिलों में हरियाणा रोड़वेज परिवहन ने लोगों को ठंड से बचाने की इस मुहिम में यह भी फैसला किया है कि यदि आवश्यकता पड़ी तो स्टैंड पर खराब खड़ी रोडवेज बसों का इस्तेमाल भी रैन बसेरा के रूप में किया जाएगा। हालांकि कई शहरों में यह भी देखा गया है कि बस स्टैंड या सड़क पर खड़ी बसों में भी ठंड से बचने के लिए लोग सो रहे हैं। 
जागरूकता का अभाव 
प्रदेश में सभी जिला प्रशासन विभिन्न संस्थाओं के सहयोग से लोगों को इस कड़ाके की ठंड से राहत देने के प्रयास में जुटा है, लेकिन प्रशासन और सामाजिक संस्थाओं का मानना है कि संचालित किये जा रहे रैन बसेरों में आश्रय लेने वालों की कमी के पीछे जागरूकता का अभाव भी हो सकता है। इसके पीछे यह कारण भी सामने आया है कि रैन बसेरों की दूरी को लेकर भी लोग ठंड के कारण आसपास धर्मशालाओं या कुछ लोगों द्वारा मामूली दाम पर चारपाई व बिस्तर मुहैया कराने वालों के यहां रात गुजारना पसंद करते हैं। 
20Dec-2021

मंडे स्पेशल: कर्ज के दलदल में फंसे हरियाणा के लाखों किसान

45 लाख धरतीपुत्रों पर 79 हजार करोड की देनदारी 
हर साल 2.5 लाख हो रहे हैं बैंक डिफाल्टर, आढ़ती का कर्जा इससे अलग 
ओ.पी. पाल.रोहतक। सरकार ने अन्नदाता के उत्थान के लिए दर्जनों योजनाएं शुरू कीं, लाखों जतन किए गए, हर संभव प्रयास हुआ। इसके बावजूद किसानों का कर्ज कम होना तो दूर लगातार बढ़ता जा रहा है। किसानों के लिए सरकार की बीज, खाद, कृषि यंत्रों, पशुधन, मत्स्यपालन, बागवानी और वैकल्पिक फसलों व सिंचाई के लिए अनुदान, सब्सिडी और फसल बीमा योजना जैसी कोशिशें ऊंट के मुंह में जीरा साबित हो रही हैं। हालात ये हैं कि प्रदेश के 44,95,805 किसानों पर 78,311.43 हजार करोड़ से भी ज्यादा का कर्ज का बोझ है। धरतीपुत्र कर्ज के दलदल में ऐसा फंसा है कि निकलने की कोई राह नजर नहीं आ रही। कर्ज का ये आंकडा केवल बैंकों का है। आढ़तियों की भारी भरकम देनदारी का तो कोई हिसाब किताब ही नहीं है। कर्ज में करहा रहे धरतीपुत्रों की हालत ये हो गई है कि हर साल 2.5 लाख किसान बैंक डिफाल्टर हो रहे हैं। प्रदेश में अब तक डिफाल्टर हो चुके किसानों की तादात 88 फीसदी से भी ज्यादा हो गई है। प्राइवेट बैंक तो पहले से ही किसानों से मुंह मोड़ चुके हैं, अगर यूं ही चलता रहा तो सरकारी संस्थान भी इन्हें कर्ज देने से इनकार कर देंगे।
प्रदेश में किसानों की आय को दो गुना करने की ऐसी सभी कोशिशों के बावजूद पांच साल पहले किसानों पर यह कर्ज करीब 56,336 करोड़ कर्ज था। इनमें करीब 8.75 लाख किसान ऐसे हैं, जिन्होंने कॉमर्शियल बैंक, भूमि विकास बैंक, सहकारी समितियों से भी कर्ज ले रखा है। हालात यहां तक हैं कि प्रदेश के करीब 75 फीसदी किसानों की जमीन बैंकों और सहकारी समितयों के पास गिरवी रखी हुई है। जहां तक सहकारी क्षेत्र का किसानों पर कर्ज का सवाल है, उसमें सहकारी बैंकों और समितियों से साल 2014 में 7.38 लाख किसानों ने 3681.26 करोड़ का कर्ज लिया था, जिसका ब्याज की राशि 2894.49 करोड हो गई। ऐसे में सभी किसानों का ओवरड्यू कर्ज बढ़कर 6575.75 करोड़ हो गया, जिसका समय से न चुकाने के कारण साल 2017 तक इन किसानों पर कर्ज बढ़ते हुए 8659 करोड़ हो गया था। ये सभी 7.38 लाख किसान ओवरड्यू कर्ज की राशि 6575.75 करोड़ होने पर डिफाल्टर हो गये। नियम के अनुसार यदि एक किसान समय पर लोन की किस्त जमा नहीं करवा पाता है तो उसे 14 फीसदी ब्याज के साथ पैसा चुकाना पड़ता है और इस तरह लोन की राशि बढ़ती चली जाती है। सहकारी बैंकों का 5 एकड़ तक जमीन वाले किसानों पर अभी भी 3909.73 करोड़ रुपये का कर्ज बकाया है। 
इस जिले 95 फीसदी कर्जदार 
फतेहाबाद जिला और जनसंख्या दोनों ही दृष्टि से भले ही बहुत ही छोटा जिला हो, लेकिन यहां के 95 फीसदी से ज्यादा किसानों ने बैंकों से कर्जा लिया हुआ है। इनमें से कई किसान तो ऐसे हैं जिन्होंने सरकारी समिति बैंकों से भी कर्ज लिया हुआ है। यानी इन किसानों ने दो दो जगहों से कर्जा लिया हुआ है, लेकिन सहकारी समिति बैंक के साथ लैंड मॉर्गेज बैंक के 70 फीसदी से ज्यादा किसान डिफाल्टर घोषित हो चुके हैं। दरअसल एक आंकड़े के अनुसार इस जिले के 97 हजार से ज्यादा किसान कर्ज तले दबे हुए हैं। इनमें से 82 हजार किसानों ने राष्ट्रीय एकीकृत बैंकों से एक से दस लाख रुपये कीमत तक के किसान कार्ड बनवाए हुए हैं। वहीं 25हजार किसान केंद्रीय सहकारी समिति सोसायटी व लैंड मॉर्गेज बैंक के कर्जदार हैं। वहीं अनेक किसानों ने दोनो जगहों से ही कर्ज ले रखा है। 
किसानों पर चौतरफा मार 
हरियाणा का किसान जहां पहले से ही कर्ज में दबा हुआ है, वहीं अब एनजीटी ने उनके दस साल पुराने ट्रैक्टर बंद करने के आदेश देकर उनकी मुसीबतों को बढ़ा दिया है। ऐसे में सवाल है कि कर्ज के बोझ तले दबा किसान नया ट्रैक्टर कैसे खरीदेगा। हालांकि इसके लिए सरकार भी मदद करने को अपनी लागू योजनाओं का लाभ देगी, लेकिन इसका बोझ सीधे किसानों की आर्थिक व्यवस्था को कमजोर करेगा। यही नहीं इस साल कुदरत के कहर ने भी किसानों मेहनत पर जमकर पानी फेरा है यानी इस साल भारी बारिश और ओले से किसानों की फसल बर्बाद हो गई। दूसरे के पेट भरने वाले अन्नदाता अपना पेट काटकर चौतरफा मुसीबतों का ही सामना करने को मजबूर है। 
ब्याज माफी बेमानी 
प्रदेश सरकार ने 1 सितंबर 2019 से शुरू की अपनी एक खास एकमुश्त निपटान योजना के जरिए किसानों के पास कर्ज के रूप में दबा अपना करोड़ों रुपये निकलवा भी लिया है। भले ही इसमें सरकार को ब्याज राशि का खासा नुकसान हुआ है। मगर इस योजना के तहत सरकार ने ब्याज माफी का ये लाभ किसानों को देते हुए तीनों सहकारी बैंकों की कुल 149.856 करोड़ की मूल राशि जरूर रिकवर कर ली है। यह योजना 31 जनवरी को समाप्त हो चुकी है। इस पांच महीने की योजना के दौरान प्रदेश के 4,18,212 किसानों 1439.97 करोड़ का ब्याज माफी किया जा चुका है। 
अपमान भी सहने को मजबूर 
प्रदेश के किसानों की बिगड़ती आर्थिक स्थिति में उन्हें अपमान भी सहने को मजबूर होना पड़ रहा है। मसलन इसी साल जहां यूपी सरकार ने किसानों के कर्ज माफी का ऐलान किया तो वहीं हरियाणा में सहकारी बैंकों से फसली ऋण लेने वाले लाखों किसान कर्ज न चुकाने के कारण डिफॉल्टर होने के कगार पर आ गये है, जिन पर बकाया कर्ज के साथ किसानों की फोटो अखबारों में प्रकाशित कराई जा रही है, वहीं वैंक शाखाओं में ऐसे डिफाल्टर होने वाले किसानों के पोस्टर लगाए जा रहे हैं। 
सरकार का किसानों की मदद का दावा 
हरियाणा की मनोहरलाल सरकार ने किसानों के लिए सरकारी खजाना खोलते हुए 42 लाख किसानों को करीब 11 हजार करोड़ रुपये का लाभ देने का दावा किया है। किसानों को यह लाभ प्रधानमंत्री सम्मान निधि योजना, फसल बीमा योजना, भावांतर भरपाई योजना या फिर प्राकृतिक आपदा से खराब होने वाली फसल का मुआवजा देने के रूप दिया गया। ऐसी आधा दर्जन से अधिक योजनाओं में राज्य के 42 लाख किसानों को अब तक 10,673 करोड़ रुपये की सहायता देने का दावा किया गया है। 
इन योजनाओं का मिला लाभ 
राज्य सरकार के दावे पर गौर करें तो 42 लाख किसानों को अब तक 10,673 करोड़ की मदद में सरकार ने 19.42 लाख किसानों को प्रधानमंत्री किसान सम्मान निधि के तहत 2595 करोड़ रुपये की मदद दी है। जबकि प्रधानमंत्री फसल बीमा योजना के तहत राज्य के 18.15 लाख किसानों को 3961 करोड़ रुपये का मुआवजा दिया गया। इसी प्रकार प्राकृतिक आपदा से फसल खराब होने की स्थिति में सरकार ने 2765 करोड़ रुपये का मुआवजा प्रभावित किसानों को देने का दावा किया है। सरकार ने भावांतर भरपाई योजना के तहत 4184 किसानों को 10.12 करोड़ रुपये की राहत राशि प्रदान की है। जबकि एकमुश्त निपटान योजना के तहत सहकारी ऋणों के कर्जदार 4.10 लाख किसानों को 1315 करोड़ रुपये की राहत दी गई। इसी प्रकार सरचार्ज माफी योजना में शामिल 1,12,300 किसानों को 24 करोड़ रुपये का लाभ मिला है। जबकि भूमिगत पाइप लाइन स्कीम के तहत 1957 किसानों को 8.34 करोड़ रुपये की राहत प्रदान की गई है। 
06Dec-2021

साक्षात्कार: सात समंदर पार बिखरे हैं कवि मनजीत के हास्य के रंग

हिंदी साहित्य के बहुआयामी प्रतिभाग के धनी हैं कवि 
-ओ.पी. पाल
व्यक्तिगत परिचय
नाम: मनजीत सिंह 
जन्म तिथि: 26 जुलाई 1957
जन्म स्थान: नारनौल(हरियाणा) 
शिक्षा: एमए (अंग्रेजी), पत्रकारिता एवं जनसंचार में स्नातक, जनसम्पर्क एवं विज्ञापन में डिप्लोमा। सम्प्रति: सेवानिवृत्त उप जिला शिक्षा अधिकारी ,हरियाणा सरकार। पूर्व प्राचार्य, राजकीय वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय, भूपानी, फरीदाबाद (हरियाणा) 
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हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा आदित्य अल्हड़ हास्य सम्मान से नवाजे गये प्रख्यात हास्य कवि सरदार मनजीत सिंह हिंदी साहित्य के ऐसे बहुआयामी प्रतिभाग के धनी है, जिन्होंने देश में ही नहीं, बल्कि विदेशों में अपनी हास्य व्यंग्यात्मक शैली की पहचान बनाई है। मसलन आवाम को हंसाने के लिए उनकी कविताओं में व्यंग्य व रस का समावेश तो है, वहीं उन्होंने सामयिक राष्ट्रीय समस्याओं को भी अपनी व्यंग्य शैली का हिस्सा बनाया है। गुम हुए जीवन मूल्यों को तलाशकर व्यंग्य का रूप देकर उनकी वाणी से आवाम के लिए अपनी हंसी को रोक पाना आसान नहीं है। ऐसे ही हास्य व्यंग्य के जरिए हिंदी साहित्य की मशाल जलाते आ रहे मनजीत सिंह ने हरिभूमि संवाददाता से हुई बातचीत में अपने अनुभवों को विस्तार से साझा किया। हरियाणा के महेन्द्रगढ़ जिले के मुख्यालय नारनौल में सरदार हरनाम सिंह के परिवार में जन्में मनजीत सिंह अपने काव्य के रंग देश के अलावा अन्य 48 देशों में भी बिखेर चुके हैं। आज के आधुनिक युग में युवा पीढ़ी को संदेश में भी उन्होंने व्यंग्यत्मक शैली का भाव दर्शाया। इंटरनेट और सोशल मीडिया के युग में कम उम्र में ही बढ़ती बीमारियों से किताबे ही ही निजात दिला सकती है। उनका कहना है कि समय बदलता है तो सामाजिक परिवेश में भी परिवर्तन संभव है, लेकिन किताबे ही वापस लौटकर आएंगी। हास्य कवि के रूप में बुलंदियां छू रहे मनजीत सिंह ने कहा कि जब वह कक्षा 11 में थे, तो स्कूल के विदाई समारोह में उन्होंने अपनी पहली कविता लिखी, जिसके बाद उनका यह सिलसिला चलता रहा और लोग उनकी हास्य व व्यंग के रूप में लिखी या सुनाई गई कविताएं पसंद करते रहे। उन्होंने आतंकवाद और अन्य राष्ट्रीय समस्याओं पर भी कविताएं लिखी। उनकी मातृभाषा पंजाबी है, लेकिन उन्होंने एमए अंग्रेजी भाषा में की और लिखने के लिए हिंदी भाषा को अपनाया। प्रसिद्ध हास्य कवि सरदार मनजीत सिंह ने 18 साल तक प्रवक्ता और फिर प्राचार्य पद पर अध्यापन का कार्य किया। यही नहीं उनके पास हरियाणा सरकार में उप जिला शिक्षा अधिकारी के रूप में भी 13 वर्ष 3 माह का प्रशासनिक अनुभव है। उन्होंने इस दौरान सरकारी सेवा में मिली किसी भी प्रोन्नति को स्वीकार नहीं किया। अब सेवानिवृत्ति के बाद वे अपने साहित्यक क्षेत्र को विस्तार देने में जुटे हुए हैं। साहित्य क्षेत्र में समाज समाज को दिशा देने वाले मनजीत सिंह ने काव्य संग्रह के साथ उन्होंने व्यंग्य लेख और व्यंग्य कविताओं से परिपूर्ण किताबे भी लिखी हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
साहित्यकार एवं कवि मनजीत सिंह ने अपनी लिखी 8 पुस्तकों में भी हास्य का रंग बिखेरा है। इनमें सात पुस्तकें प्रकाशित हो चुकी है और आठवीं पुस्तक फिफ्टी-फिफ्टी जल्द ही पाठकों के बीच आने की संभावना है। उनकी प्रमुख प्रकाशित पुस्तकों में शाकाहारी मक्खियां(1993), मेरी शवयात्राएँ(1999), रॉन्ग नम्बर (2003),मॉडर्न पंचतंत्र (2004), बच के रहना (2012),उफ़! ये कम उम्र आंटियां(2014) और नेता जी का पेट(2017) सुर्खियों में हैं। सरदार मनजीत सिंह के काव्य पाठ करने का विस्तार क्षेत्र हैं, जो दूरदर्शन के विभिन्न केंद्रों, सब टीवी, ज़ीटीवी, महुआ टीवी जैसे चैनलों पर भी काव्य पाठ करके लोगों के दिल में जगह बनाए हुए हैं। यही नहीं लाल किला एवं देश के सभी प्रतिष्ठित कवि सम्मेलन में उन्हें काव्य पाठ के लिए आमंत्रित किया जाता है। उनकी कविताएं देश की विभिन्न राष्ट्रीय पत्र और पत्रिकाओं में निरंतर प्रकाशित होती आ रही हैं। 
पुरस्कार एवं सम्मान 
देश विदेश में अपनी पहचान बनाने वाले हरियाणा के प्रसिद्ध हास्य कवि सरदार मनजीत सिंह को उनकी समाज में साहित्य साधना को देखते हुए हरियाणा साहित्य अकादमी ने उन्हें दो लाख रुपये के वर्ष 2017 के आदित्य-अल्हड़ सम्मान से नवाजा है। पिछले माह नवंबर में उन्हें प्यारेलाल भवन दिल्ली में आयोजित एक समारोह में काका हाथरसी ट्रस्ट ने वर्ष 2019 के लिए एक लाख रुपये के ‘काका हाथरसी हास्य रत्न सम्मान’ से सम्मानित किया। इसके लिए उन्हें सम्मान पत्र, एक लाख रुपये की राशि का चेक, शॉल और स्मृति चिह्न भेंट किया गया। इससे पूर्व वर्ष 2009 भारतीय कॉन्सुलेट जनरल न्यूयॉर्क द्वारा सम्मान दिया गया। जबकि उन्हें वर्ष 2015 में भारतीय कॉन्सुलेट जनरल वैंकूवर,कैनाडा, वर्ष 2018 में भारतीय कॉन्सुलेट जनरल दुबई, यू.ए.ई., वर्ष 2010 में अखिल विश्व हिन्दी समिति न्यूयॉर्क, हिंदी साहित्य सभा टोरोंटो में कैनेडियन हिन्दू कल्चरल सोसाइटी ऑफ कैम्ब्रिज एंड गुएल्फ और अखिल विश्व हिंदी समिति टोरोंटो, कैनाडा द्वारा सम्मानित किया जा चुका है। इससे पहले वर्ष 2004 में इंडिया क्लब मस्कट, ओमान द्वारा सम्मान हासिल करने वाले मनजीत सिंह को वर्ष 2005 में युवा अट्टहास, लखनऊ सम्मान मिला, तो वहीं जूनियर चैंबर्स, सिलीगुड़ी बागडोगरा में विनोद वरिधर सम्मान और राष्ट्रीय आत्मा स्मारक समिति कानपुर द्वारा पं-गंगा सेवा-विंध्यवासिनी पुरस्कार से नवाजा जा चुका है। साहित्यिक योगदान के लिए उन्हें लायंस क्लब दिल्ली तथा यूथ फार डवलपमेंट, नई दिल्ली विभिन्न कवि सम्मेलनों और समरोह में वे अनेक सम्मान से पुरस्कृत किये जा चुके हैं। 
विदेशों में भी छोड़ी छाप 
देश के प्रसिद्ध हास्य कवि सरदार मनजीत सिंह के काव्य पाठ इतने गुदगुदाने और हंसाने वाले हैं कि उन्हें विदेशों के कार्यक्रमों में भी आमंत्रित किया जाता है। इसके लिए कई दर्जन साहित्यक एवं सांस्कृति विदेश यात्राएं कर चुके हैं। मसलन वे सबसे ज्यादा 2003 से 2018 तक काव्य पाठ हेतु संयुक्त अरब अमीरात के दुबई की यात्राएं कर चुके मनजीत सिंह ने कुवैत में भी काव्य पाठ करके वहां के लोगों के दिलों में जगह बनाई हैं। कुवैत में भी अमेरिका की एक दर्जन यात्राएं करके उन्होंने विभिन्न शहरों में आयोजित विचार गोष्ठियों और काव्य गोष्ठियों में भागीदारी की है। कैनाडा की चार साहित्यक यात्राओं में उन्होंने विभिन्न शहरों में काव्य पाठ किया। थाईलैंड की तीन काव्य यात्राओं के अलावा मस्कट ओमान में दो बार काव्य पाठ किया। जबकि इंडोनेशिया की यात्राओं में उन्होंने जकार्ता और पूर्वकर्ता में आयोजित साहित्यक आयोजनों में हिस्सा लिया। 
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संपर्क: 1179, सेक्टर 28, फरीदाबाद-121008, मोबाइल 9810372543, ईमेल : kavimanjit@yahoo.com 
06Dec-2021

सोमवार, 29 नवंबर 2021

चौपाल:वेशभूषा, भाषा, बोली ही हरियाणवी संस्कृति की पहचान

-ओ.पी. पाल 
हरियाणा के कलाकार अपनी विविध्या कलाओं के जरिए इस आधुनिक युग और पाश्चत्य संस्कृति की चकाचौंध में लुप्त होती हरियाणवी संस्कृति को जीवंत करने में जुटे हुए हैं। ऐसे ही कलाकारों में शुमार सोनीपत के भजन गायक कलाकार मास्टर श्रीभगवान दीक्षत हैं, जो चाहे वॉलीवुड या हरियाणवी फिल्मों, नाटक मंचन के अलावा संगीत हो या धार्मिक संगीत अथवा फिर स्टेज शो ही क्यों न हो,उन सभी मंचो से हरियाणवी संस्कृति को सर्वोच्च प्राथमिकता के साथ बढ़ावा दे रहे हैं। धार्मिक आयोजनों में भजनो और किस्सों में हरियाणवी संस्कृति और सभ्यता को संजोने में लगे श्रीभगवान दीक्षित का अपनी मातृभूमि, भाषाशैली और संस्कृति से लगाव ही है कि वे अपने सूबे के रीतिरिवाज, वेशभूषा, बोली और सभ्यता को अपनी कला के हुनर से प्रदर्शित करते आ रहे हैं। हरियाणा के गीतों, रागणियों और सांगियों जैसे पुरोधाओं की विरासत को आगे बढ़ाने में जुटे कलाकार श्रीभगवान ने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए अपनी कला के विभिन्न आयामों को सहजता के साथ साझा किया। प्रदेश के सोनीपत जिले में खरखौदा क्षेत्र के गांव सोहटी में दस दिसंबर 1969 को एक साधारण किसान जयनारायण के घर में जन्मे श्रीभगवान दीक्षित को अपने दादा द्वारा गुणगुनाने और रामलीलाओं में स्टेज पर जाने की लालसा बचपन से ही थी। उन्होंने बताया कि सोनीपत के एसएम हिंदू कालेज में शिक्षण के दौरान उन्होंने इसी कला में अपनी किस्मत आजमाने के लिए अपने एक साथी के साथ कमरा लेकर रहना शुरू किया। 1991 में जब रामलीला में मौका मिला तो उसे सर्वश्रेष्ठ कलाकार के रूप में आंका गया। इसके बाद उनकी कला में विभिन्न आयाम आए, जिन्हें उन्हें बखूबी निभाया। वर्ष 1994 में एमए करने के बाद उन्होंने हिंदू कालेज में अध्यापक के रूप में कार्य शुरू किया, जहां उन्होंने बच्चों को भी कला के गुर सिखाने शुरू कर दिये। उन्होंने मुंबई में भी वॉलीवुड फिल्मों में भी अपनी किस्मत आजमायी। जबकि हरियाणवी फिल्मों व मंचीय नाटकों में उन्होंने अभिनय करके लोकनृत्य तक की कला को प्रस्तुत किया है। खासबात ये है कि उनकी हरियाणवी संस्कृति से जुड़ी वेशभूषा किसी भी मंच पर आकर्षक का केंद्र रहती है। धीरे धीरे उनकी कला का हुनर रंग में आता रहा और वर्ष 2003 में प्रसिद्ध संगीतकार एवं निर्देशक सतीश रंगीला ने स्कूल में उनकी कला को पहचाना और तभी से वह धार्मिक मौकों पर अपने ग्रुप के साथ गीत व भजनों के साथ लोकनृत्य और अभिनय करते आ रहे हैं, जिसके लिए उन्होंने नेपाल और दुबई जैसे दूसरे देशों में भी हरियाणवी संस्कृति को ही सर्वोपरि रखा है। आधुनिक युग में हरियाणा संस्कृति को पुनर्जीवित करने के मकसद से ही वे पिछले दो दशक से अपने स्टेज शो में हरियाणवी वेशभूषा, भाषा और संस्कृति को आगे रखते हैं, जिसके लिए आज की युवा पीढ़ी को भी अपनी संस्कृति को आगे बढ़ाने की जरुरत है। पाश्चत्य संस्कृति का परित्याग और अपनी संस्कृति से जुड़ने से ही हर किसी जिंदगी आगे बढ़ सकती है और अपनी संस्कृति और सभ्यता को पुनर्जिवित किया जा सकता है। श्रीभगवान बताते हैं कि बचपन में गांव में रामलीला देखकर मन करता था खुद भी रामलीला में हिस्सा लेना का। सपना पूरा हुआ 90 के दशक में कॉलेज समय में। रात के समय रामलीला करने के लिए गांव से आने-जाने में दिक्कत थी, इसीलिए शहर में एक कमरा किराए पर लिया। रामलीला का मंचन दे-तीन दिन ही किया था कि इसी दौरान मंडल कमीशन के आरक्षण के फैसले के चलते आंदोलन शुरू हो गया और हिंसा भड़क गई थी। रामलीला पूरी नहीं हो पाई। हालांकि इसे बैंगन सीनियर रहे कुमार विशु के सानिध्य में अंदर से कलाकार बाहर निकल तथा यूथ फेस्टिवेल के जरिये स्टेज का डर भी निकला। भार माधवन के साध भी किया काम.लकिन निराशा ही हाथ लगो, लेकिन कोशिशे जारी रही। श्रीभगवान ने बताया कि उन्होंने कलाकार मनफूल सिंह डांगी को गुरु बना लिया और चमनलाल मास्कर से संगीत को शिक्षा ली। वर्ष 1996 में वे बिना तनख्वाह के हुही लेकर मुंबई चले गए थे। उस समय मुंबई में काफी संघर्ष किया। एक फिल्म में आर माधवन के साथ काम भी किया, लेकिन वो फिल्म आज तक रिलीज नहीं हुई। इस तरह से कई संघर्ष और परिजनों द्वारा शादी के दबाव के चलते उन्हें वापस आना पड़ा। दो भजनों ने दी दिशा अदरक कलाकार को स्टनमो ने बरकरार रखाका चौधरी, नसीब रुडा, मनफूल सिंह डागी. सुरंट संध. रणवीर बड़वासनिया के साथ उन्होंने स्टेज को जारी रखे। 2003 में गायक सतीश रंगीला की सलाह पर बसंत पंचमी के दिन ये भजन गर उस दिन के बाद से अब तक हरियाणाची संस्कृति को लेकर भजन गाते हैं। लमीचंद मांगेराम की रागनियों के गरिव परियामवी का प्रसार करते है। 29Nov-2021

सोमवार, 22 नवंबर 2021

मंडे स्पेशल: पहचान को महरूम प्रदेश के हजारों रणबांकुरे!

देश का दिया सर्वत्र, फिर भी नहीं मिल पाया सम्मान परिजन लड़ रहे हैं अपनों को पहचान दिलाने की जंग 
ओ.पी. पाल.रोहतक। 
आजादी के 74 साल बाद भी प्रदेश के हजारों रणबांकुरे जिन्होंने मातृभूमि के लिए अपने प्राणों की आहुति दे दी, पहचान को मोहताज हैं। इन वीरों का नाम सरकारी दस्तावेजों में तो दर्ज है, लेकिन न तो उन्हें कभी पहचान मिली और न ही कोई सम्मान। इनके वंशज अपनो को साढ़े सात दशकों से शहीद का दर्जा और धूल फांक रही सरकारी फाइलों से निकालकर मुक्कमल सम्मान दिलाने की जदोजहद कर रहे हैं। कई वीर शहीद तो ऐसे भी हैं जिन्होंने देश को अपना सर्वत्र अर्पित कर दिया, लेकिन उनके परिजनों को इसकी जानकारी तक नहीं है। वे अब तक उसे गुमशुदा ही मान रहे हैं। ऐसे वीरों की सबसे ज्यादा तादाद हिसार जिले में हैं। प्रदेशभर में ऐसे अब तक 287 वीर शहीदों का रिकार्ड मिल चुका है, जिनकी शहादत को मकसद तो मिला, लेकिन उन्हें पहचान नहीं मिल पाई। प्रदेश में अनेक योद्धा ऐसे भी थे, जिन्होंने आजादी के लिए घर परिवार छोड़ दिया और आज तक लौटकर वापस नहीं आए। इनके अलावा ऐसे करीब 450 रणबांकुरे भी रिकार्ड में पाए गये, जिनकी जानकारी से उनके परिजन अनजान हैं। आजादी की जंग में बलिदान देने वाले दिवानों की हालात यह है जब दादरी के स्वतंत्रता सेनानी स्वर्गीय राम सिंह फौगाट के रिकार्ड को खोजा गया तो उनके बेटे श्रीभगवान फौगाट ने राष्ट्रीय अभिलेखागार में धूल फांक रही फाइलों से अब तक करीब 287 गुमनाम शहीदों के नाम खोज डाले हैं, जिनमें से सबसे ज्यादा 37 शहीद हिसार, सिरसा, फतेहाबाद व भिवानी जिला(पुराने हिसार जिले) के हैं। इसके बावजूद इन गुमनाम वीरों को अब तक पहचान नहीं दिलाई जा सकी। एक स्वतंत्रता सेनानी ने अपने पिता के साथ समूचे सूबे के ऐसे शहीद वीरों को स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा और सम्मान दिलाने की मुहिम चलाकर अब तक 287 ऐसे गुमनाम शहीदों को ढूंढ लिया है, लेकिन सरकार की आजादी के दिवानों को एक तरह से भुला सी रही है। 
आजाद हिंद फौज में थे 2,715 हरियाणवी योद्धा 
रिकार्ड के अनुसार द्वितीय विश्वयुद्ध में अंग्रेजों से लोहा लेने वाली नेताजी सुभाष चंद्र बोस की आजाद हिन्द फौज में हरियाणा के करीब 2,715 सैनिक शामिल थे, जिनमें 398 अफसर और 2317 जवान थे। इनमें तत्कालीन रोहतक जिले (रोहतक, सोनीपत तथा झज्जर) से सर्वाधिक 149 अफसर तथा 724 सैनिकों समेत 873 योद्धा शामिल थो। जबकि उस समय के गुड़गाँव जिले (गुड़गाँव, फरीदाबाद, पलवल, मेवात, रेवाड़ी, महेन्द्रगढ़) के 106 अफसर तथा 580 जवानों समेत 686 सैनिक इस मुक्ति सेना का हिस्सा रहे। इन वीरों ने ‘मित्र राष्ट्रों’ की सेनाओं से जमकर लोहा लिया। जनवरी 1944 में आजाद हिन्द फौज की सुभाष ब्रिगेड को जनरल शाहनवाज खां के नेतृतव में अंग्रेजों से सशस्त्र युद्ध करने का अवसर प्राप्त हुआ। इस बिग्रेड की दूसरी बटालियन (कुल 3 बटालियन) का नेतृत्व झज्जर जिले में जन्मे ले. कर्नल रणसिंह ने किया। इस ब्रिगेड की प्रथम बटालियन में भी हरियाणा से मेजर सूरजमल ने कलादान घाटी से अंग्रेजों को खदेड़ा। इस बटालियन ने मोदोक पर अधिकार कर लिया। 
पुरखों के बलिदान से अनजान परिजन 
देश की आजादी की जंग में आजाद हिंद फौज में हरियाणा के शहीद हुए रणबांकुरों में 450 सैनिक तो ऐसे हैं, जिन्होंने देश की खातिर अपने आपको बलिदान कर दिया, लेकिन अभी तक उनके अपने परिजनों को इसका इलम तक नहीं। आजादी की जंग में फरीदाबाद क्षेत्र के शहीद सैनिकों के पुरखों को पता नहीं है कि उनके परिवार के किसी बुजुर्ग ने अंग्रेजों से विद्रोह करने वाले नेताजी की आजाद हिंद फौज में भर्ती होकर शाहदत दी है। ऐसे सैनिकों के मिले रिकार्ड को अब सरकारी रिकार्ड में शामिल कराने की कवायद हो रही है। 
पुराने हिसार जिले के सर्वाधिक सैनिक 
प्रदेश के पुराने हिसार जिले जिसमें हिसार, सिरसा, फतेहाबाद भी शामिल था के 37 वीर शहदों के नाम जिला प्रशासन को सौंपे गये हैं। इनमें जेवरा गांव के रिसाल सिंह, राजली के हरके राम, देशराज व मुंशी सिंह, नियाना के भगवान सिंह और उजाला राम, हांसी में खानपुर के अमर सिंह, ठसका के छोटूराम, फ्रांसी के ज्ञानी राम, बांडाहेड़ी के भलेराम, जुगलान के रामजी लाल, काबरेल के बहादुर सिंह, कालीरावण के हरफूल सिंह, नहला के दीवान सिंह, मिर्जापुर के छोटूराम, हरि सिंह, भैणी बादशाहपुर के सुरजा राम, मोडाखेड़ा के हरेराम और पेटवाड़ के निहाल सिंह शामिल हैं। इसके साथ ही जिला फतेहाबाद के गुमनाम स्वतंत्रता सेनानियों में जाखल क्षेत्र के चांदपुरा के नारायण सिंह, भट्टू क्षेत्र के मंदोरी के सुरजा राम, फतेहाबाद के खबरा कलां के रामजी लाल, समैन के दयाराम, चंद्रावल के अमी लाल शामिल हैं। सिरसा जिले में रामपुरा के लक्ष्मी चंद, रूपावास के मोजीराम, अली मोहम्मद के मोना राम, उमेदपुरा के सोहन लाल, भुरतवाला के बलबीर सिंह के नाम सामने आए। जबकि भिवानी जिले में तालु गांव के छोटूराम, कैरू के जयराम व जय सिंह, बहल के सुरजा राम, मतानी के एडी राम, बड़वा के काना राम, बढ़ेसरा के हरफूल और फुलपुरा गांव निवासी निहाल सिंह शामिल हैं। 
इसलिए इस जांबाज को नहीं दिया सम्मान 
हिसार जिले के जेवरा गांव निवासी रिसाल सिंह 21 फरवरी, 1941 में सेना में भर्ती हुए और वे हांगकांग सिंगापुर रॉयल आर्टिलरी में तैनात रहे। 15 फरवरी 1942 में दुश्मनों ने उनको बंदी बना लिया और 11 अगस्त, 1944 को प्रिजनर ऑफ वार के तौर पर शहीद हो गए। जब इनके परिजनों ने स्वतंत्रता सेनानी आश्रितों के लाभ के लिए आवेदन किया तो केंद्रीय गृह मंत्रालय ने 9 फरवरी, 1982 को जवाब दिया कि इनके पिता व पत्नी को 27 जुलाई, 1957 तक 16 रुपये मासिक पेंशन दी गई थी, लेकिन इनका आईएनए का सदस्य होने का कोई रिकार्ड नहीं मिला है और कोई लाभ नहीं दिया। ऐसे ही राजली गांव के हरके राम की विधवा फूलपति ने 14 सितंबर 1972 में पेंशन के लिए आवेदन किया था, लेकिन उनके पति का 25 साल पुराना रिकार्ड बताते हुए उसे नष्ट कर दिया गया और जो रिकार्ड मिला उसके अनुसार हरके राम आईएनए के सदस्य नहीं थे। यही हालात आजाद हिंद फौज के सिपाही रहे राजली गांव निवासी देशराज व मुंशी सिंह का है जिनके परिवार को भी खाक छानने के बाद निराशा ही हाथ लगी। 
रोहतक के सामने आए 58 वीर 
आजाद हिंद फौज के गुमनाम सिपाहियों को पहचान दिलाने के मकसद से श्रीभगवान फौगाट ने पुराने रोहतक जिले(रोहतक, सोनीपत व झज्जर) के 25 रणबांकुरों के नाम व गांव की सूची जिला प्रशासन को सौंपी है। इस सूची में गांव सैमाण के कालूराम व मुंशीराम, कटेसरा के मातूराम व मांगेराम, कहानौर के मोहम्मद यासिन, बैंसी के अब्दुल रजाक व मोहम्मद इलियास, सुनारिया के नानकराम, रामस्वरुप व रामपत, बहुअकबरपुर के सुल्तान सिंह, चन्दगी राम व गोकल राम, पिलाना के कंवल सिंह, सुडाना के शीशराम, चांदी के लाल खान, रिटौली के जुम्मा खान, भाली के घुपल राम, निंदाना के रामस्वरूप, मकड़ौली के गोरधन, डिगल के बदलु राम, हरफूल व बले राम, दुबलधन के वलवनत, खाचरोली के भगवान सिंह, कुनजिया के श्रीगोपाल,मदिना के हर नारायण, डाबोधाकला के हरदवारी, खानपुर खोजता हशराम,सापला के मीरसिंह, सापला के मौ. अली, ढाकला के प्यारेलाल, मानडौढी के रंधवीर, भुरास के रामकुमार,रेवाड़ी खेड़ा के स्वरुप, खरमान के राम सिहं तथा खेर वहादरगढ के रतन सिंह के अलावा झज्जर जिले के झाड़ली गांव के श्रीचंद, छारा के गोधाराम व कांशी राम के साथ सोनीपत के गांव नूना माजना के छतर सिंह, जांटी के मक्खन सिंह और खेड़ी खुमार के प्रेम सिंह शामिल है। हालांकि पुराने रोहतक के करीब 100 वीर शहीदों का रिकार्ड मिला है। 
अब तक इन्हें मिली पहचान
द्वितीय विश्व युद्ध के दौरान आजाद हिंद फौज में शामिल भिवानी के केहरपुरा गांव निवासी वेदप्रकाश के पिता नेतराम तो घर आ गये थे और उन्हें स्वतंत्रता सैनानी का दर्जा व पेंशन मिल गई, लेकिन उनके बड़े भाई जगनराम को रिकार्ड के अभाव में आज तक कोई पहचान नहीं मिल पाई। पहचान दिलाने की जंग में जगनराम का रिकार्ड भी राष्ट्रीय अभिलेखागार से मिल गया, जो आजादी की जंग में शहीद हो गये थे। 
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शहीदों को पहचान दिलाना उनका कर्तव्य: फौगाट 
प्रदेश के आजदी के दीवानों को पहचान दिलाने के मकसद से पिछले एक दशक से मुहिम में जुटे रेवाड़ी निवासी श्रीभगवान फौगाट का कहना है कि उसने अपने पिता को ही नहीं, बल्कि प्रदेशभर के ऐसे तमाम गुमनाम शहीदों को पहचान व सम्मान दिलाने की मुहिम चला रखी है। उनका मानना है कि वे ऐसे वीर शहीदों के परिजनों को भी खोज रहे हैं जिनके नाम उन्होंने राष्ट्रीय अभिलेखागार के रिकार्ड से एकत्र किये हैं, ताकि वे अपने ऐसे पूर्वजों को जान सके जिन्होंने देश की आजादी के लिए जंग के दौरान अपना सर्वत्र न्यौछावर कर दिया। उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय अभिलेखागार आजाद हिद फौज पाये जाने पर राज्य व जिला प्रशासन द्वारा परिवारों तक यह रिकार्ड इतिहास गौरवगाथा स्वतंत्रता दर्जा पहुचाने के लिए बार बार फिर से भी आगामी कार्यवाही पुनः किया जाता है, लेकिन सालों से अभी तक कार्यवाही को आगे न बढ़ाना शहीदों को दरकिनार करने जैसा है। जबकि शहीदों के नाम सामने लाने के बाद उनके आश्रितों के लिए ढूंढना भी उनके लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। इसके बावजूद वे ऐसे गुमनाम शहीदों को उनको स्वतंत्रता सेनानी का दर्जा दिलवाने का भी प्रयास करते रहेंगे। 
22Nov-2021

फिल्म: हरियाणवी संस्कृति संस्कार और सामाजिक मूल्यों का संदेश देती फिल्म ‘दिल हो गया लापता’

नवोदित कलाकारों ने अपने अभिनय से दिखाया अपनी कला का हुनर 
-ओ.पी. पाल 
हरियाणवी संस्कृति, संस्कार और समाज के मौलिक मूल्यों को लेकर एक सकारात्मक संदेश देती हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में ज्यादातर नवोदित युवा कलाकारों ने अभिनय करके यह साबित कर दिया है कि अभिनय सीखा नहीं जा सकता और इसके लिए आत्मविश्वास और जज्बा होना चाहिए। फिल्म निर्देशक और निर्माता जगबीर राठी ने ही इस फिल्म की जो पटकथा लिखी है। इस नई हरियाणवी फिल्म में निर्माता ने ‘बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओं’ की थीम को भी बल देते हुए नारी शिक्षा, सुरक्षा और सम्मान पर फोकस किया है, जो अभिनय क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि हास्य कवि और लेखक के रूप में हरियाणवी संस्कृति को बढ़ावा देते आ रहे हैं। महर्षि दयानन्द विश्वविद्यालय रोहतक में निदेशक युवा कल्याण के पद पर कार्यरत जगबीर राठी ने इस फिल्म की कथा, पटकथा और संवाद के जरिए खासकर युवा पीढ़ी को दिये गये संदेश के बारे में हरिभूमि संवाददाता से बातचीत में फिल्म की पृष्ठभूमि को स्पष्ट किया है। फिल्म निर्माता जगबीर राठी के अनुसार इस फिल्म की विशेषता यह है कि इसमें अभियन करने वाले तमाम कलाकार हरियाणवी ग्रामीण पृष्ठभूमि में जन्मे और पले बढ़े हैं। रोहतक में ही बनाई गई इस फिल्म में कलाकार, सहायक कलाकार, संगीतकार, गायक, पार्श्व गायक समेत 95 प्रतिशत रोहतक के ही हैं। इससे ज्यादा दिलचस्प बात ये है कि युवा पीढ़ी को पौराणिक सामाजिक मान्यताओं को स्वच्छ परिवेश प्रस्तुत करने के लिए 60 प्रतिशत कलाकारों ने पहली बार सराहनीय अभिनय करके यह संदेश दिया है, कि अभिनय को सीखा नहीं जाता, बल्कि आत्मविश्वास ही कला को उजागर करता है। राठी का कहना है कि इस पूरी फिल्म की मूल आत्मा हरियाणवी जनजीवन और उससे जुड़े परिवेश को जीवंत करती है, जिसमें मूल मर्म नारी सम्मान से जुड़ा हुआ है। पाश्चत्य संस्कृति से इतर हरियाणवी संस्कृति और संस्कारों में नारी के प्रति सम्मान के साथ बेटी बचाओ और बेटी पढ़ाओ का संदेश देती इस फिल्म की कहानी में कालेजों में दैनिक कार्याकलापों और घटनाओं का फिल्मांकन करके कलाकारों ने संवेदनशीलता के साथ मनोरंजक प्रस्तुतियां देकर जो संदेश दिया गया है, उसके कारण इस नई फिल्म को चौतरफा सराहना मिल रही है। दरअसल इस फिल्म की कहानी तीन ऐसे युवा छात्रों के ईर्द गिर्द घूम रही है, जिन्हें दाखिले के बावजूद कालेज के हॉस्टल में जगह नहीं मिलती और उन्हें पीजी में रहने के लिए मजबूर होना पड़ता है। इत्तफाक से उसी कालेज में पढ़ने वाली एक छात्रा पीजी के पास ही एक मकान में रहती है। तीनो छात्रों को उसी लड़की से प्यार हो जाता है। इसी फिल्म में दूसरा पक्ष यह भी है कि उसी छात्रा से कालेज के गुंडई करने वाला छात्र जबरन प्यार करके शादी रचाना चाहता है। मसलन इस फिल्म में हरियाणवी संस्कृति के साथ कालेज में नई पीढ़ी के युवाओं के माहौल भाषा, बोली जैसे पहलुओं का समावेश भी किया गया है। 
अभिनेता की भूमिका पर खरे उतरे प्रभप्रीत 
नई हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ के मुख्य अभिनेता प्रभप्रीत सिंह ने पहली बार किसी फिल्म के पर्दे पर आए हैं, जिन्हें किसी फिल्म में काम करने का मौका मिलने पर बेहद खुशी हो रही है। प्रभप्रीत का कहना है कि बॉलीवुड फिल्मे देखते हुए उन्हें भी बचपन से अभिनय में गहरी दिलचस्पी थी और स्कूली समय में मंचन भी किया। आईएमएसएआर एमडीयू से एमबीए करने के दौरान भी उन्होंने मंचन किया, लेकिन किसी फिल्म में और वह भी हीरो की भूमिका में काम करने का मौका मिलना उसके लिए आत्मविश्वास को बढ़ाने वाला अनुभव रहा और कई अनुभवी कलाकारों का साथ मिलने से इस क्षेत्र में बहुत कुछ सीखने को भी मिला है। इसकी उसने कल्पना भी नहीं की थी कि वह एक अभिनेता की भूमिका में अभिनय करने का मौका मिलेगा। उन्होंने बताया कि जब फिल्म निर्माता जगबीर राठी ने उन्हें ओडिसन के लिए बुलाया तो उसके अभिनय को उन्होंने मुख्य अभिनेता के रूप में परखा और फिल्म में अभिनय को मिल रही सराहना से उसे विश्वास भी नहीं हो रहा है कि पहली बार फिल्म में अभिनय के लिए वह कसौटी पर खरा उतरा। हालांकि वह इस दौरान घबराया हुआ भी था, लेकिन फिल्म निर्देशक के हौंसले और उनकी माता के प्रोत्साहन ने उसमें जज्बा पैदा किया कि उसने फिल्मी डायलॉग के साथ अपने अभिनय को अंजाम दिया। इससे पहले वह फिल्म उद्योग से जुड़े कई लोगों से भी संपर्क कर चुका था, लेकिन इस फिल्म में अभिनय करना वास्वत में उसके लिए एक सपने का सच होने जैसा था। इस फिल्म में काम करने का अनुभव उसके लिए भविष्य की राह प्रशस्त करेगा ऐसा उसका विश्वास भी है। आईसीसीआई बैंक में कार्यरत प्रभप्रीत सिंह ने इस फिल्म में विक्रमजीत सिंह गिल की भूमिका निभाई है। 
स्कूली छात्रा बनी अभिनेत्री 
रोहतक के डीएलएफ कालोनी निवासी कक्षा 12वीं की छात्रा कुमारी सांची गुप्ता ने हरियाणवी संस्कृति पर आई नई फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में मुख्य अभिनेत्री का अभिनय करके कला के क्षेत्र को निश्चित रूप से चौंकाया है। इस फिल्म की हीरोइन पम्मी के रूप में अपने अभिनय की सफलता को लेकर सांची गुप्ता बेहद उत्साहित है और अभिनय को अपनी पढ़ाई के साथ भविष्य में कैरियर के रूप में अपनाने का सपना संजोए हुए है। इसके लिए उसके पिता अमित गुप्ता और माता नेहा गुप्ता पूरा प्रोत्साहित कर रहे हैं। उसने बताया कि उसका छोटे भाई प्रणव ने भी उसके अभिनय को देखकर इस क्षेत्र में दिलचस्पी दिखाई है। स्थानीय मॉडल स्कूल में पढ़ रही सांची एक मेधवी छात्रा का सम्मान भी हासिल कर चुकी है। रोहतक में 4 अगस्त 2004 को जन्मी सांची गुप्ता का कहना है कि फिल्म में एक अनुभवी अभिनेत्री की तरह अभिनय की प्रशंसा होने के बाद उसमें आत्मविश्वास का संचार हुआ है और वह एक बेहतर अनुभव के साथ फिल्म उद्योग में कलाकार की भूमिका को और ज्यादा मजबूत करना चाहती है। फिल्म निर्देशक ने इस फिल्म के लिए जब ऑडिशन लिया तो उसे मुख्य अभिनेत्री के अभिनय के लिए चुना गया। सांची का कहना है कि बचपन से उसे डांसिंग का शोंक है। हालांकि उसने स्कूली कार्यक्रमों में नाटकों के मंचन में भी हिस्सा लिया है। इस फिल्म में अभिनय के बाद अब उसका बॉलीवुड फिल्मों में अभिनय करने का सपना है। हांलकि हरियाणवी फिल्म में उसकी भूमिका को जिस प्रकार से सराहा जा रहा है और उसे उम्मीद है कि वह फिल्म उद्योग में अपनी अभिनय की कला को और ज्यादा मजबूत करके अपने सपने को पूरा करेगी। इसके लिए उसके अभिभावक भी संभावनाओं को तलाश रहे हैं। 
नेता से बने अभिनेता 
फिल्मों या अन्य क्षेत्रों से राजनीति में आते तो बहुत देखे हैं, लेकिन राजनीति से फिल्मों में अभिनय करना रोहतक निवासी कपिल सहगल के लिए किसी सपने को पूरा करने से कम नहीं है। हरियाणवी संस्कृति को लेकर जगबीर राठी की नई फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में कालेज हॉस्टल के मुख्य वार्डन की भूमिका में काम करने वाले कपिल सहगल ने बताया कि उन्होंने फिल्मों में अभिनय का सपना साल 2018 में उस समय संजोया था, जब उन्होंने हरियाणवी वेब सीरिज ‘केम्प’ बनवास में एक शिक्षिका के पति के रूप में अभिनय किया था। वह एक साधारण परिवार से आते हैं जिनका स्वभाव बचपन से ही चंचल है। स्कूली पढ़ाई पूरी करने के बाद वे राजनीति में आए और भाजपा में मंडल से प्रदेश स्तर पर कई पदों पर रहे और , लेकिन उनका सपना कुछ अलग करने का था, जिसका मौका उन्हें इस फिल्म में फिल्म निर्माता जगबीर राठी ने दिया। उन्होंने बताया कि इस फिल्म में उनकी भूमिका वास्तविक वार्डन जैसी रही, जो फिल्म देखने वालों को काफी पसंद आ रही है। सहगल ने बताया कि इस फिल्म में अलग अलग भाषा क्षेत्रों से आने वाले तीनों छात्र उससे अपनी भाषा में हास्टल में कमरा मांग रहे हैं और वह उन्हें उन्हीं की भाषा व बोलचाल में जवाब देकर पीजी दिलावाने में मदद करते हैं। इसमें उनके अभिनय के लिए उसके परिजनों का प्रोत्साहन और उनके अनुभवी साथियों को भी श्रेय है। उनका कहना है कि वह फिल्म उद्योग में एक कलाकार के रूप में भविष्य में भी अभिनय के लिए तैयार हैं, क्योंकि इस फिल्म ने उन्हें जो एक कलाकार के रूप में अनुभव दिया और कुछ सीखने को मिला, उसे वह एक अनुभवी कलाकार के रूप में सार्थक करना चाहते हैं। 
13Nov-2021

साक्षात्कार: भारतीय संस्कृति को जीवंत करने में साहित्य की अहम भूमिका: डा. विनोद बब्बर

साहित्य साधना से किया हरियाणा को गौरवान्वित ओ.पी. पाल
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व्यक्तिगत परिचय 
नाम: डा. विनोद बब्बर 
जन्म: 1 जुलाई 1950 
जन्म स्थान: जुंडला, जिला करनाल (हरियाणा) 
 पता: ए-2/9ए, हस्तसाल रोड, उत्तम नगर, नई दिल्ली। शिक्षा: बीए, एमए, बी.एड. पीएचडी।
संप्रत्ति: पूर्व प्रधानाचार्य एवं आचार्य विनोबा भावे के सद्प्रयासों से गठित नागरी लिपि परिषद के मंत्री।
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हिंद और हिंदी की सेवा में अपना संपूर्ण जीवन समर्पित वरिष्ठ साहित्यकार डा. विनोद बब्बर की मातृभाषा भले ही हिंदी नहीं है, लेकिन भारतीय भाषाओं के प्रबल समर्थन करते हुए उन्होंने अपना पूरा साहित्य हिंदी में ही लिखा है। उनका हिंदी प्रेम ही है कि वे पिछले दो दशक से भी ज्यादा समय से पूवोत्तर की लिपि रहित बोलियों को देवनागरी लिपि से जोड़ने के अभियान में सक्रीय हैं। हिंदी और देवनागरी लिपि के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने देश के सभी राज्यों के सुदूर क्षेत्रों के अलावा विदेशों की यात्राएं करके साहित्य और संस्कृति को सर्वोपरि रखा है। भारतीय संस्कृति के उदात्त गुणो से देश की युवा पीढ़ी को जोड़ने के लिए प्रयासरत विनोद बब्बर की भारतीय संस्कृति ज्ञान परीक्षा के प्रसार में महत्वपूर्ण भूमिका है। राष्ट्र को अपना परिवार मानने वाले विनोद बब्बर साहित्यकार ही नहीं, बल्कि एक ऐसे व्यक्तित्व के धनी हैं जो एक संत की तर्ज पर साधनहीन छात्रों के अभिभावक के रूप में उन्हें हिंदी और राष्ट्र का पाठ पढा रहे हैं। इसी साहित्यक सफर पर उन्होंने हरिभूमि से हुई खास बातचीत में कई ऐसे पहुलुओं को साझा किया, जिनसे साबित होता है कि वे एक सन्यासी के जीवन में भारतीय भाषाओं को किस प्रकार से हिंदी के साथ समायोजित कर रहे हैं। 
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हरियाणा के करनाल जिले के जुंडला गांव में जन्मे सुप्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर को प्रदेश से बाहर रहकर अपनी साहित्य साधना से हरियाणा को गौरवान्वित करने के लिए हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2018 के हरियाणा गौरव सम्मान से नवाजा गया है। देश और मातृभाषा हिंदी को प्रोत्साहन देते आ रहे डा. विनोद बब्बर का कहना है कि आज के आधुनिक युग में इंटरनेट और सोशल मीडिया के बढ़ते इस्तेमाल से साहित्य निश्चित रूप से प्रभावित हुआ है। आज की युवा पीढ़ी पुस्तक पढ़ने के बजाए सोशल मीडिया पर सक्रीय है। पुस्तकें और ग्रंथों का अध्ययन करने से ही देश की संस्कृति, भाषा और सभ्यता को जीवंत रखा जा सकता है। इसलिए खासकर युवाओं को पुस्तकों को पढ़ने में ज्यादा रुचित लेनी चाहिए। उनका मानना है कि आज हम किसी अतिथि का स्वागत करने के लिए फूलों का गुच्छा भेंट करते हैं। इससे बेहतर ये होगा कि हम स्वागत के लिए पुस्तक भेंट करें। इस संदर्भ में विद्वानों का यह कथन कटुसत्य है कि पुस्तकालय एक अच्छा मित्र होता है, जिसमें पुस्तक ही एक सच्ची मित्र होती है और एक पुस्तक सौ मित्रों के बराबर है। व्यंग्यकार, निबंधकार, कहानीकार, उपन्यास व कविता जैसी विधाओं में समाज सेवा करने के साथ पत्रकारिता के क्षेत्र में अपनी पहचान बनाने वाले डा. विनोद बब्बर ने कहा कि सत्तर के दशक में उनका परिवार हरियाणा से दिल्ली आ गया, जहां से उनकी शिक्षा दीक्षा गुडगांव में हुई और वे चंदामामा जैसी पुस्तकों को पढ़ते थे। बचपन में उनकी अनपढ़ माता उन्हें कहानी सुनाती थी और उन्हें अधूरी छोड़कर पूरी करने का काम उन पर छोड़ देती थी। ऐसे ही साहित्य के प्रति बढ़ती रुचि उस समय परवान चढ़ी, जब उनके बड़े भाई ने किताबों की लाइब्रेरी खोली और वह बंद हो गई और सैकड़ो साहित्यक पुस्तके कमरे में बरसात के दिनों में गलने लगी, लेकिन उन्होनें उन्हें सूखाकर सभी किताबों को पढ़ा और साहित्य की विभिन्न विधाओं में लिखना शुरू किया। उन्होंने कहा कि हिंदी के प्रचार प्रसार के लिए उन्होंने 18 देशों की साहित्यिक सांस्कृतिक यात्राएं करके वहां का अध्ययन करके पुस्तकें लिखीं। जिसमें उन्होंने लन्दन, पेरिस, स्विट्जरलैंड, ऑस्ट्रिया, वेनिस, रोम, वेटिकन सिटी, पीसा, मिलान जैसी यूरोपीय पहचानों का वर्णन भी किया है। डा. बब्बर राष्ट्रीय चैनल डी.डी.-1 सहित विभिन्न टी.वी चैनलों एवं आकाशवाणी पर प्रस्तुति, देश के विभिन्न भागों में काव्य पाठ, स्कूल वकालेजों में भारतीय संस्कृति पर व्याख्यान, डीडी-4 के व्यास चैनल तथा यूजीसी की कार्यशालाओं में वक्ता के रुप में सहभागिता, विभिन्न पत्र-पत्रिकाओं में तीन हजार से अधिक लेख एवं रचनाएं प्रकाशित, मुंबई, हैदराबाद सहित अनेक ,राष्ट्रीय समाचार पत्रों में नियमित कालम भी लिख रहे हैं। वह नागरी लिपि परिषद के मुखपत्र ‘नागरी संगम’ का प्रबंध संपादक और राष्ट्रीय किंकर पत्रिका भी चला रहे हैं। 
प्रकाशित पुस्तकें 
प्रसिद्ध साहित्यकार डा. विनोद बब्बर ने हिंदी साहित्य में विभिन्न विधाओं में राष्ट्र एवं हिंदी को सर्वोपरि रखते हुए तीन दर्जन से ज्यादा पुस्तके लिखी हैं। उनकी आठ पुस्तकें विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुदित है। कुछ किताबों का विभिन्न भारतीय भाषाओं में अनुवाद भी हुआ। उनकी कृतियों में चाहे व्यंग्य, कथा, कहानी, कविता, निबंध या अन्य कोई भी विधा रही हो, सभी में राष्ट्र एकता और हिंदी को प्रोत्साहित करने वाला अभियान प्रमुखता से शामिल रहा है। उनकी पुस्तकों में ज्येष्ठ में बसंत और जूतों का संसैक्स(व्यंग्य-संग्रह), पीर पराई और फटा कोट (कहानी-संग्रह), प्रताप महान और खरी खोटी (कविता-संग्रह), चेतना के स्वर और लक्ष्मणरेखा (निबंध संग्रह), मांगे सबकी खैर (कथा-संग्रह), इब्सन के देश में, इन्द्रप्रस्थ से रोम तक और फिर-फिर भारत (यात्रा-वृतांत) के अलावा कन्या भ्रूण-हत्या विरोधी अभियान को लेकर लिखी र्ग अजन्मी चीख जैसी पुस्तकें सुर्खियों में रही हैं। उन्होंने हिंदी के प्रचार-प्रसार से संबंधित आलेख संग्रह के रूप में भाषा और संस्कृति पुस्तक से एक राष्ट्र और हिंदी के प्रेम को बेहतर तरीके दर्शाते हुए समाज को सीख देने का प्रयास किया है। इसके अलावा उनकी प्रतिनिधि कहानियां भी हैं। फटा कोट गुजराती भाषा में भी अनुदित/प्रकाशित, जिसमें कुछ अंश कन्नड़ में प्रकाशित हैं। वहीं मांगे सबकी खैर पुस्तक गुजराती भाषा में अनुदित है। विनोद बब्बर के साहित्य पर चार लघुशोध प्रबंध और देश के विभिन्न विश्वविद्यालयों में पांच शोध कार्य हो चुके हैं तो कुछ जारी हैं। 
पुरस्कार व सम्मान 
हिंदी के प्रखर समर्थक डा. विनोद बब्बर को हरियाणा साहित्य अकादमी ने वर्ष 2018 के लिए दो लाख रुपये के हरियाणा गौरव सम्मान देकर उनकी साहित्य साधना को पुरस्कृत किया। इससे पहले बब्बर को देश व विदेश में हिंदी व भारतीय संस्कृति के प्रचार के लिए हिंदी साहित्य में उत्कृष्ट कार्य व सेवा के लिए सैकड़ो पुरस्कार व सम्मान मिल चुके हैं। हिंदी के प्रचार हेतु 16 देशों की साहित्यिक-सांस्कृतिक यात्राएं, सम्मान, कन्या भ्रूण हत्या के विरूद्ध जनजागरण के लिए ’बेटी बचाओ आंदोलन’ विशेष सम्मान, डॉ. विजेन्द्र स्नातक सम्मान, तुलसी सम्मान, स्वामी ज्ञान अर्पितम् सम्मान, गणेश शंकर विद्यार्थी पत्रकारिता सम्मान, बाबू गुलाबराय हिन्दीसेवी सम्मान, नार्वे, कनाडा में अन्तर्राष्ट्रीय सम्मान, अहिंदी भाषी हिन्दी लेखक संघ द्वारा शिखर सम्मान के अलावा विद्यावाचस्पति, साहित्यमहोपाध्याय, विद्यासागर सहित 250 से अधिक सम्मान मिले हैं। 
22Nov-2021

मंगलवार, 16 नवंबर 2021

चौपाल: हरियाणवी संस्कृति की पैरोकार अर्चना सुहासिनी

लोकगीतों के साथ फॉक डांसिंग ने दिलाई प्रसिद्धि 
-ओ.पी. पाल 
रियाणा की प्रसिद्ध फोक डांसर अर्चना सुहासिनी एक ऐसी बहु प्रतिभा वाली कलाकार हैं, जिनमें शायद ही कोई कला ही बाकी रह गई होगी अन्यथा उनकी सर्वसंपन्न कला का हुनर सार्वजनिक है। मसलन हरियाणवी अभिनेत्री, लेखक, कवयित्री, शिक्षाविद, रेडियो व टीवी एंकर, वीडियो व फोटोग्राफी, चित्रकारी जैसी कलाओं से इतर जूडो कराटे और खेती बाड़ी जैसे तमाम कार्यो में निपुण अर्चना सुहासिनी में खासकर हरियाणवी संस्कृति और संस्कार कूट-कूटकर भरे हुए हैं, जिसे वह अपनी कला के हुनर से बढ़ावा देने में निरंतर जुटी हुई हैं। जैसा कि सुहासिनी का अर्थ सुंदर हंसने वाली यानि कलाकार अर्चना पर ‘मुस्कुराकर, दर्द भूलकर, रिश्तों में बंद थी दुनिया सारी, हर पग को रोशन करने वाली, वो शक्ति है एक नारी’ वाला मुहावरा सटीक बैठता है। अभिनय के रूप में बॉलीवुड तक सफर करने वाली अर्चना सुहासिनी एक ऐसा नाम है, जिसने समाज की बेड़ियों की जकड़न के बीच संघर्षशील जीवन को कलाओं की बुलंदियों का चोला पहनाकर देश व समाज को ही नहीं, बल्कि अपने सूबे हरियाणा को भी गौरवान्वित किया है। हरियाणवी संस्कृति को बचाने के लिए फॉक कला और संस्कृति विशेष योगदान के लिए राजकीय कन्या वरिष्ठ माध्यमिक विद्यालय सात रोड हिसार की हिंदी प्राध्यापिका अर्चना सुहासिनी को प्रदेश सरकार ‘हरियाणा गौरव’ अवार्ड से भी नवाज चुकी है। अर्चना सुहासिनी ने अपने संघर्षशील जीवन से लेकर कलाकार के रुप में बिंदास जीवन तक के अनुभवों को हरिभूमि संवाददाता के साथ हुई विस्तृत बातचीत के दौरान साझा किया। 
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प्रदेश के हिसार शहर के गूजरान पड़ाव में 30 नवंबर 1972 को बहुत ही रूढ़िवादी परिवार में जन्मी अर्चना सुहासिनी का जीवन बेहद संघर्षशील रहा। इसके बावजूद उसने अपनी बहु प्रतिभा रूपी कला से वह किसी परिचय की मोहताज नहीं है। सुहासिनी ने अपने जीवन संघर्ष के बारे में बताया कि जब उसने पढ़ाई शुरू की तो उसके गुर्जर समाज के साथ गांव वालो ने विरोध किया और उनके पिता विनोद कुमार पर दबाव डाला, कि बेटी को पढ़ाकर क्या करेंगे। अच्छा होगा चूल्हा-चौका कराकर शादी करा देना। कहीं ऊंच-नीच हो गई तो समाज में बदनामी हो जाएगी। लेकिन एक विद्यालय में लाइब्रेरी में कार्यरत उसके पिता ने इसकी परवाह किये बिना बेटी को शिक्षित करने जिद पकड़ ली। परिवार के इसी सहयोग का नतीजा आज सामने है कि वह उस अपने क्षेत्र की गुर्जर समाज की पहली शिक्षित बेटी ही नहीं बनी, बल्कि उसने समाज व प्रदेश का जिस तरह से मान बढ़ाया है उसे देखकर आज वही लोग इस बेटी की तारीफ ही नहीं बल्कि सम्मान करते नहीं थकते, जो उसकी पढ़ाई और स्कूल जाने का विरोध करते थे। अपने कांटेभरे सफर को लेकर सुहासिनी का कहना है कि समाज व प्रदेश में उसकी एक दबंग महिला के रूप में भी पहचान है। गलत करो मत और गलत सहो मत जैसे संस्कार भी परिवार से ही मिले, जो किसी भी नारी को आत्मनिर्भर बनाने में बड़ा काम करते है। उन्होंने एक किस्से का जिक्र करते हुए बताया कि जब वह 11वीं कक्षा में थी और स्कूल से घर आते समय किसी लड़के ने उस पर फब्तियां कसी, जिसके बाद वह घर आकर खूब रोई, लेकिन पिता ने उसे आत्मरक्षा का पाठ पढ़ाकर उसमें आत्मरक्षा के लिए दबंगई का जज्बा जगा दिया। उन्होंने बताया कि वह गणित से बहुत डरती थी और स्कूल में कभी प्रार्थना नहीं की और न ही मंच पर जाने की हिम्मत हुई। इसके बावजूद बचपन में ब्याह शादी जैसे घरेलू कार्यक्रमो में गीत सुनते-सुनते उसमें हरियाणवी संस्कृति और लोक गीतों के प्रति रूझान बढ़ने लगा। एक मोड ऐसा आया जब इंटरमिडिएट करते ही परिवार वालों पर शादी करने का दबाव भी बना, लेकिन वह आगे कॉलेज में उच्च शिक्षा ग्रहण करना चाहती थी। कालेज के लिए गांव, समाज व परिवार के अन्य लोगों ने यहां तक कहा कि अब वह छोरो के साथ कालेज में पढ़ेगी? यहां भी उसके लिए पिता की जिद्द ने संजीवनी का काम किया और किसी परवाह किये बना पिता ने उसे कालेज में दाखिला दिलाया और वह बीए करने में सफल रही। 

गृहस्थी में आते ही बदली जिंदगी 

उन्होंने बताया कि बीए पास होते ही परिवारवालों ने उसकी शादी हांसी के गांव ढाणीपाल में कर दी, लेकिन सौभाग्य से उसकी ससुराल वालों ने भी उसकी कला को समझा और भरपूर साथ दिया। खास बात ये भी है कि ससुराल वालों के सहयोग की बदौलत वह हिंदी व राजनीति शास्त्र में डबल एमए, एमफिल के अलावा ग्राम विकास में स्नातकोत्तर डिप्लोमा और फॉक डांसिंग का डिप्लोमा तक करने में कामयाब रही। उसके लिए साल 1999 इतना लकी रहा, जब उसे पात्र शिक्षिका की नौकरी मिली और पहली बार कृष्णलीला में डांस करने का मौका मिला। इसी साल रेडियो पर भी मौका मिला। यही वो मोड था, जहां से उनका लोक साहित्य के रुझान को विस्तार मिला तथा सांग, डांस, हरियाणवी रामलीला, कृष्ण नाटय लीला कर मंचन की शुरूआत हुई। फिर उसने पीछे मुड़कर नहीं देखा और 2002 में वह टीवी में आई। उसकी इन विभिन्न विधाओं की कला को बुलंदियों तक पहुंचाने में पिता विनोद के अलावा ससुरालियों और पति जसबीर सिंह बटार व बेटे शुभम का प्रोत्साहन लगातार मिल रहा है। 

नारी शक्ति को किया मजबूत 

लोक कलाकार एवं अभिनेत्री अर्चना सुहासिनी ने आर्चीज दमोडा सांस्कृतिक डांस ग्रुप बनाकर उसमें हरियाणवी संस्कृति की समझ रखने वाली 80 साल तक की बुजुर्ग ग्रामीण महिलाओं को जोड़ा है। खास बात ये है कि इस दल की महिलाओं को जन्म से लेकर मृत्यु तक के लोकगीतों की प्रस्तुति, लोकगीतों और लोकनृत्यों के साथ हरियाणवी हस्तशिल्प कला, भीति चित्रों मांडने, सांझी, फुलझड़ी इत्यादि में भी महारत हासिल है। प्रसिद्ध महिला कलाकार अर्चना सुहासिनी इस आधुनिक युग में कोरियोग्राफी के बढ़ते चलन से लुप्त होते फोक नृत्य को बढ़ावा देने में जुटी हैं, जो एक शिक्षिका की जिम्मेदारी निभाते हुए वह अपने विद्यालय की छात्राओं को फोक डांस और अन्य संस्कृति आधारित कलाओं में निपुण कर रही है। वहीं छात्राओं के परिवारों की महिलाएं भी इस लोकगीतो व लोकनृत्य में हिस्सेदार बनकर दिलचस्पी दिखा रही हैं। अर्चना सुहासिनी देशभर में हरियाणवी लोक कला और संस्कृति में शामिल पारंपरिक वेषभूषा, बोल चाल, भाषा, पहनावा, खानपान और रीतिरिवाजों को पुनर्जीवित करने के लिए ऐसी अलग जगा रही है, जिसकी गूंज विदेशो तक भी सुनाई देती है। 

बागड़ क्षेत्र की संस्कृति की भूमिका 

सुहासिनी का कहना है कि हरियाणवी संस्कृति को समृद्ध करने में बागड़ क्षेत्र की संस्कृति के महत्वपूर्ण योगदान है, जिसमें खासकर बागड़ी चित्ताणा कला के बिना हरियाणवी लोक कला अधूरी है। हरियाणवी संस्कृति की धरोहर के रूप इस कला को संरक्षित करने के लिए वह दल की महिला कलाकारों के साथ बागड़ क्षेत्र में जन्म से लेकर मृत्युपर्यन्त लोक कला के बागड़ी चित्ताणा को बढ़ावा देने में जुटी हैं। मसलन उन्होंने अपनी लोक कला में जन्म, छठी, ब्याह और मृत्यु तक के रीतिरिवाजों के गीतों को समाहित किया है। ग्रुप द्वारा दीपावली, धनतेरस, अहोई अष्टमी, घणघोर, गूगा नवमी, घरबत, बेहमाता और ब्याह आदि के चित्ताणा भी घर की दीवारों बनाकर महिलाएं इस संस्कृति को संजो रही हैं। इसमें बागड़ क्षेत्र में गाए जाने वाले लोकगीत और भजन एवं लोक नृत्य पर वह कार्याशालएं भी कर रही हैं, जिसमें घरेलू बर्तनों, कुठला, कोठी, ठाठिया आदि पर चित्ताणा बनाए जाते हैं।

बॉलीवुड और हरियाणवी फिल्मों में अभिनय 

बहु प्रतिभाशाली कलाकार सुहासिनी ने बालीवुड अभिनेता गुलशन ग्रोवर के साथ ‘नंगे पांव’ तथा अभिनेता राजकुमार के साथ ‘तुर्रम खां’ समेत कई फिल्म में अभिनय से बड़ी पहचान बनाई। हरियाणवी फिल्मों में भी अर्चना के अभिनय की कोई थाह नहीं। हाल ही में हरियाणा दिवस पर रिलीज हुई हरियाणवी फिल्म ‘दिल हो गया लापता’ में मुख्य अभिनेत्री पम्मी की बुआ की भूमिका में सुहासिनी का अभिनय हरियाणवी संस्कृति का परिचायक साबित हुआ। उन्होंने कई लघु फिल्मों में भी अभिनय किया है। सुहासिनी अपनी बहु प्रतिभाशाली कला की प्रसिद्धि के लिए विभिन्न पत्रिकाओं व उपन्यास आदि की कवर गर्ल के रूप में भी सामने आई हैं। हरियाणा सरकार द्वारा जुलाई 2019 में हरियाणा गौरव अवार्ड के अलावा उन्हें टीम शिक्षा दीक्षा अवार्ड का सम्मान भी दिया जा चुका है, जो इससे पहले प्रदेश में शिक्षकों के आंदोलन में भी सक्रीय होकर नेतृत्व करती रही हैं। सामाजिक गतिविधियों में बढ़चढ़ कर भागीदारी करके सुहासिनी समाज मे व्याप्त कुरीतियां मृत्युभोज प्रतिबन्ध,दहेज पर रोक के लिए भी जागरूकता का काम कर रही हैं। 

टीवी व रेडियो कलाकार 

अर्चना सुहासिनी बहु प्रतिभा कलाकार ही नहीं, बल्कि लोकगीतों पर कार्य करते हुए उन्होंने 17 साल तक आल इंडिया रेडियो पर जीवंत कार्यक्रम पेश किये हैं और डीडी न्यूज चैनल पर एंकरिंग भी की है। वहीं टीवी चैनल एवन तहलका और एंडी हरियाणा पर लोकगीतों और लोकनृत्यों की प्रस्तुतियां देने के अलावा धार्मिक अवसरों पर गीत, भजन और लोकनृत्य जैसी प्रस्तुतियां देकर सुहासिनी की सैकड़ो वीडियों यूट्यूब पर सार्वजनिक हैं। वह हरियाणा के अलावा राष्ट्रीय राजधानी दिल्ली, उत्तर प्रदेश और राजस्थान में सैकड़ो सांस्कृतिक प्रस्तुतियां दे चुकी हैं। उनके नेतृत्व वाला सांस्कृतिक ग्रुप अंतराष्ट्रीय गीता जयंती, कला साधक संगम, हरियाणवी फिल्म फेस्टिवल, मैराथन, राहगीरी, पिंकाथन पानीपत, फ्री स्टाइल कुश्ती प्रतियोगिता आदि समारोह में अपनी प्रस्तुतियों के माध्यम से हरियाणवी संस्कृति को प्रोत्साहित करने में जुटा हुआ है। 

 15Nov-2021

मंडे स्पेशल: दस्तावेजों में कैद हो रही है लाल डोरा मुक्त संपत्तियां

हरियाणा में स्वामित्व योजना में संपत्तियों की रजिस्ट्रियों का दौर जारी 
ओ.पी. पाल.रोहतक। लाल डोरा मुक्ति और स्वामित्व योजना ने भूमि विवाद निपटारे और स्वमियों को मालिकाना हक देने में बडी भूमिका अदा की है। इसी से उत्साहित सरकार अब लाल डोरे से बाहर रजिस्ट्रियां करने की तैयारी कर रही है। केवल ग्रामीण ही नहीं शहरी क्षेत्रों में नागरिकों को इस योजना का खासा लाभ हुआ है। सबसे ज्यादा फायदा उन्हें हुआ है, जो किन्हीं कारणों से बाहर से आकर बसे थे और सरकार ने उन्हें लाल डोर के तहत प्लाट या मकान आलट किए थे। अब इस योजना से वे इसके मालिक बन पाए है। लाल डोरे के तहत प्रदेशभर के गांवों में 8 लाख से ज्यादा प्रोपर्टी कार्ड भी बनाए गए। आबादी वाले ऐसे 6350 गांवों में शुरू हुई इस योजना के तहत रजिस्ट्रियां की गई। अब तक 2409 ऐसे गांवों का चयन किया गया है, जिसमें लाल डोरे के बाहर मकान बनें है।
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हरियाणा सरकार ने ग्रामीण क्षेत्र में विकास करने के लिए ई-भूमि पोर्टल से लेकर ‘स्वामित्व योजना’ तक कई बदलाव किए हैं और जिनका लाभ आम आदमी को दिया जा रहा है। इन्हीं योजना में स्वामित्व योजना के तहत प्रदेश में लाल डोरे के बाहर की जमीन और मकानों को पहचान देने के लिए गांवों को लाल डोरा मुक्त योजना शुरू की गई है। जिसके तहत लाल डोरे के भीतर ग्रामीणों को मालिकाना हक देने के लिए भू-संपत्ति की रजिस्ट्रियों को कराने का काम तेजी से चल रहा है। सरकार की 'स्वामित्व योजना' शुरू करने से गांव की सम्पत्ति को विषेश पहचान मिलने के साथ ही भूमि मालिकों को मालिकाना हक देकर रजिस्ट्रियां की जा रही है। इस फायदा ये होगा कि सभी प्रापर्टी के दस्तावेज बनने से उसके आधार पर प्रापर्टी की खरीद-फरोख्त हो सकेगी। वहीं गांवों में जमीन के लिए होने वाले झगड़ों और सम्बन्धित विवादों पर भी अंकुश लगाना सरकार का मकसद है। इस योजना के माध्यम से मालिकाना हक मिलने पर किसी को भी प्रापर्टी पर आसानी से बैंक से ऋण मिल सकेगा। दरअसल प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी द्वारा डिजिटल को बढ़ावा देने के लिए पंचायत दिवस पर 24 अप्रैल 2020 में स्वामित्व योजना की घोषणा की थी। हालांकि हरियाणा सरकार ने इससे पहले गणतंत्र दिवस यानी 26 जनवरी 2020 को ही ‘लाल डोरा मुक्त गांव’ योजना की शुरुआत कर दी थी। स्वामित्व योजना को भी हरियाणा सरकार ने सबसे पहले शुरू किया और प्रदेश में तीन लाख से ज्यादा लोगों को इस योजना के लाभ मिलने की संभावना पर काम शुरू किया। खास बात यह भी है कि हरियाणा के अलावा ऐसा कोई ऐसा दूसरा राज्य नहीं है जिसने शहरी क्षेत्र के गांवों के लोगों को मालिकाना हक देने की योजना बनाई हो। फिलहाल प्रदेश में लाल डोरे के भीतर ग्रामीणों को मालिकाना हक देने के लिए भू-संपत्ति की रजिस्ट्रियों का काम तेजी से चल रहा है। 
पौने दो लाख संपत्तियों को मिला मालिक 
प्रदेश में लाल डोरे के दायरे में चिन्हित 6350 गांव में आठ अलग-अलग फेज में 2409 गांवों का सर्वे हो चुका है और 8.18 लाख प्रॉपर्टी कार्ड बनाए गए हैं। इन गांवों में से 2045 गांवों में 1,74,770 से प्रॉपर्टी को रजिस्टर्ड भी किया जा चुका है। अब तक इन गांवों में से 1511 गांव की अभिलेख बन गए हैं और इनके अलावा आबादी वाली 72 हजार से ज्यादा प्रापर्टी डीड बांटी जा चुकी हैं यानि उन्हें संपत्ति की खरीदफरोख्त करने के अधिकार मिल गये हैं। लेकिन इसके जमीन का मालिक ई-भूमि पोर्टल के माध्यम से अपनी जमीन को बेच सकता है। इस योजना के माध्यम से लोगों की संपत्ति का डिजिटल ब्यौरा रखा जाएगा। स्वामित्व योजना के अंतर्गत राजस्व विभाग द्वारा गांव की जमीन की आबादी का रिकॉर्ड रखना शुरू कर दिया है। दूसरी ओर राज्य सरकार ने लाल डोरे के दायरे में आए गांव का सर्वे कराकर हजारों करोड़ की संपत्ति को कानूनी अमला पहनाने की इस पहल में पिछले सात साल में सर्वे के बाद शहरी क्षेत्र की परिधि में भी सैकड़ो गांव ऐसे चिन्हित किये गये, जो लाल डोरे के दायरे में आते हैं। इसलिए सरकार ने शहरी लोगों को भी इस योजना का लाभ देने की योजना को लागू किया। 
दो अलग अलग कानून बनेंगे 
हरियाणा सरकार को स्वामित्व योजना शहरों में लागू करने के लिए संशोधित कानून बनाना होगा और इसके लिए मसौदा कमेटी का गठन भी कर दिया गया है। इस योजना को लागू करने के लिए सरकार शहरी स्थानीय निकाय विभाग और पंचायत विभाग के लिए दो अलग-अलग संशोधित कानून लेकर आएगी। इस संशोधित कानून के लिए गठित ड्राफ्टिंग कमेटी का नेतृत्व वित्तायुक्त एवं राजस्व व आपदा प्रबंधन विभाग के अतिरिक्त मुख्य सचिव संजीव कौशल को सौंपी जा चुकी है। 
यूपी सीमा पर सीमाबंदी 
प्रदेश में स्वामित्व योजना के तहत लाल डोरा मुक्त संपत्ति को सीमा विवाद से मुक्त करना भी सरकार के लिए बड़ी चुनौती होगी। हालांकि सर्वे ऑफ इंडिया ने सर्वे करके उत्तर प्रदेश और दिल्ली से लगी हरियाणा की सीमा के क्षेत्र का स्ट्रिप मैप भी तैयार कर लिया है, ताकि सीमा विवाद निपटाया जा सके। इन राज्यों की सीमा विवाद से जुड़े जिलों पानीपत सोनीपत पलवल फरीदाबाद और करनाल की लाल डोरे में दायरे में आ रही संपत्ति को पिल्लरों से कवर किया जा रहा है। 
क्या है लाल डोरा 
देश में अंग्रेजी हकूमत के दौरान लाल डोरे की व्यवस्था की गई थी। 1908 में बनाई गई इस व्यवस्था के तहत राजस्व रिकार्ड रखने के लिए खेतीबाड़ी की जमीन के साथ स्थित गांव की आबादी को अलग-अलग दिखाने के मकसद से नक्शे पर आबादी के बाहर लाल लाइन खींच दी जाती थी। लाल डोरे के अंदर लोग कब्जे के मालिक होते हैं। लाल लाइन की वजह से इसके तहत आने वाली जमीन या क्षेत्र लाल डोरा कहलाने लगा। 
लाल डोरा से लाभ व समस्या 
लाल डोरा के तहत आने वाली जमीनों को बिल्डिंग बाई-लॉ, निर्माण-कार्य से जुड़े नियमों और नगरपालिका कानून के तहत आने वाले नियम-कायदों से छूट होती है। इसलिए यहां रहने वाले बिना नक्शाा पास कराने के झंझट में पड़े अपनी जरूरत और सुविधा के अनुसार घर बनाते थे। जबकि ऐसी जमीन के कागज़ नहीं होते, इसलिए लाल डोरे के अंदर जमीन या घर पर जिसका कब्ज़ा वही उसका मालिक होता है, जबकि लाल डोरे से बाहर की जमीन के अलग अलग नंबर होते हैं और वह किसी न किसी के नाम रजिस्टर्ड भी होती है। रजिस्ट्री न होने से इस इलाके की जमीन खरीदने से लोग हिचकते रहे हैं, इसके अलावा इस पर लोन भी नहीं लिया जा सकता है। 
क्या है स्वामित्व योजना 
स्वामित्व योजना के अंतर्गत आने वाले सभी ग्राम समाज के काम ऑनलाइन किया जा रहा है। इस वजह से भूमाफिया और फर्जीवाड़ा और भूमि की लूट जैसी घटनाएं बंद हो जाने की उम्मीद है। वहीं ग्रामीण लोग अपनी संपत्ति का पूरा ब्यौरा ऑनलाइन देख सकेंगे। इस योजना के तहत गांव की सभी संपत्ति की मैपिंग की जा रही है, जिसमें उसकी जमीन से संबंधित ई-पोर्टल उन्हें इसका सर्टिफिकेट भी देगा। सरकार को उम्मीद है कि यह पोर्टल ग्राम पंचायत के विकास के लिए और विकसित करने के लिए केंद्र सरकार की काफी मदद करेगा। 
करनाल सबसे आगे 
करनाल जिले में अभी तक 242 गांव लाल डोरा मुक्त हो चुके हैं, जिसके तहत 30 हजार रजिस्ट्रियां हो चुकी हैं। जिले में 22 गांवों के दावे एवं आपत्तियां लंबित अभी हैं। 387 गांवों में ड्रोन मैपिंग का कार्य पूरा हो चुका है। जिले के 389 गांवों में से 242 गांवों के फाइनल नक्शे प्राप्त हो चुके हैं। सर्वे ऑफ इंडिया से अंतिम नक्शा आने के बाद प्रॉपर्टी आईडी व रजिस्टरी बनाने का कार्य जारी है। 
15Nov-2021

बुधवार, 10 नवंबर 2021

साक्षात्कार: शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता

चन्द्रकान्ता के साहित्य में फलक पर कश्मीर की त्रासदी का वर्णन 
-ओ.पी. पाल. 
व्यक्तिगत परिचय नाम: चन्द्रकान्ता 
जन्म: 3 सितम्बर 1938 
जन्म स्थान: श्रीनगर, कश्मीर 
शिक्षा: बी.ए., एम.ए., बी.एड., हिन्दी प्रभाकर, 
संप्रत्ति: बी.एड. में जम्मू-कश्मीर यूनिवर्सिटी में प्रथम और एम.ए.(हिन्दी) में बिड़ला आर्टस कॉलेज में द्वितीय स्थान प्राप्त किया।
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हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। चन्द्रकान्ता के हिंदी साहित्य के विशिष्ट लेखन कश्मीर की पृष्ठभूमि पर है, जिसे उन्होंने हिन्दी साहित्य के विशाल फलक पर कश्मीर की लोक संस्कृति और प्रशासनिक व्यवस्था के अंतर्विरोधों से उपजी लोकयातना के साथ बेहद संवेदनात्मक घनत्व से उकेरा है। कश्मीर पर उनके तीन महत्वपूर्ण उपन्यास लिखने के बावजूद इनका लेखन समय के ज्वलंत प्रश्नों एवं वृहत्तर मानवीय सरोकारों से जुड़ा है। कशमीर की सामाजिक एवं सौहार्द पूर्ण संस्कृति का वर्णन करते हुए उन्होंने ‘ऐलान गली जिन्दा है' समेत तीन उपन्यास लिखे हैं, जिनमें सांप्रदायिक उन्माद के कारण एक वर्ग का निष्कासन, आतंक से जर्जरवादी का त्रासद वर्णन उनके 'कथा सतीसर' उपन्यास में शामिल है। अपने साहित्यिक सफर के बारे में उन्होंने हरिभूमि संवाददाता से बातचीत करते हुए कश्मीर में मानवीय प्रसंगों एवं समकालीन ज्वलंत समस्याओं के साथ राष्ट्रीय गौरव, हिंसा का प्रतिरोध, सर्वधर्म समभाव आदि पर अपनी मुख्य चिंता प्रकट की है। सुप्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को जम्मू-कश्मीर से धारा 370 खत्म होने के बाद कश्मीर घाटी के हालातों में सुधार की संभावना है। उनका मानना है कि यह भी उम्मीद बढ़ी है कि जिस वर्ग का जबरन निष्कासन हुआ था वे अनुकूल समझेंगे तो जरुर अपनी जन्म भूमि में वापसी करेंगे। हालांकि अभी समय लगेगा। उनकी कृति कथा सतीसर में तो कशमीरियत की त्रासदी या विवेक-शून्यता का साहित्य प्रतिरोध मात्र नहीं है, बल्कि दुनियाभर में चल रही उन सभी त्रासदियों और यातनाओं का प्रतिरोध साफतौर से झलकता है। चन्द्रकान्ता का कहना है कि उनकी कृतियाँ सामयिक व्यवस्था के विदूपों एवं स्त्री विमर्श की जटिलताओं की तहें खोलती हैं। उन्होंने अपने लेखन में हिंदी साहित्य के जरिए मनुष्य के स्वप्नों, स्मृतियों और उम्मीदों को जिन्दा रखने का प्रयास किया है। उनका मानना है कि शोषण के सृजनात्मक विरोध में ही रचनाशीलता की सार्थकता है। चन्द्रकान्ता ने अपनी साहित्यिक जीवन के सफर के बारे में कहा कि जब वह 1965 में परिवार के साथ हैदराबाद गयी, तो वहीं से उन्होंने स्वतंत्र लेखन करने का निर्णय लिया और उनकी पहली कहानी साल 1967 में साहित्यिक पत्रिका 'कल्पना' में 'खून के रेशे' शीर्षक से प्रकाशित हुई। इसी साल अक्तूबर में इलाहाबाद से प्रकाशित 'नई कहानियाँ पत्रिका में 'कैक्टस' कहानी प्रकाशित हुई। इसके बाद उनकी लेखनी लगातार चली और उन्होंने कहानी, उपन्यास, कविता, संस्मरण, आलेख, यात्रा वर्णन आदि के लेखन ने उन्हें हिंदी साहित्य में जगह दी। उन्होने बताया कि उन्होंने ने देश-विदेश में अनेक गोष्ठियों, सेमिनारों में हिंदी साहित्य की चमक बिखेरी। अमेरिका में सैन्फ्रांसिसको में स्वतंत्रता की 50वीं जयंती के उपलक्ष्य में उन्होंने गदर मेमोरियल हॉल हुए समारोह में काव्य पाठ किया। वहीं कैलिफोर्निया के मिलपीटस शहर, फ्रीमांट शहर और सैनहोजे जैसे शहरों में अंतर्राष्ट्रीय मंच पर कथा पाठ एवं काव्य पाठ करने का उन्हें गौरव हासिल है। उनके उपन्यास कथा सतीसर और समग्र साहित्य पर करीब पचास छात्र-छात्राओं ने ने शोध कार्य किया। वहीं विभिन्न विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों में उनकी अनक कई कृतियां व कहानियों को सम्मिलित किया गया है। 
पुस्तक प्रकाशन 
साहित्यकार चन्द्रकान्ता के लिखित 14 कहानी संग्रह में सलाखों के पीछे (दो संस्करण), ग़लत लोगों के बीच(दो संस्करण),पोशनूल की वापसी, दहलीज़ पर न्याय(दो संस्करण), ओ सोनकिसरी! (दो संस्करण), कोठे पर कागा, सूरज के उगने तक, काली बर्फ(दो संस्करण), कथा नगर, बदलते हालात में,अब्बू ने कहा था, रात में सागर और अलकटराज देखा? शामिल हैं। जबकि नौ कथा संकलन में चर्चित कहानियाँ, प्रेम कहानियाँ, आंचलिक कहानियाँ, कथा संग्रह (वितस्ता दा जहर), यादगारी कहानियाँ, दस प्रतिनिधि कहानियाँ, चयनित कहानियाँ, चुनी हुई कहानियाँ, लोकप्रिय कहानियाँ नामक पुस्तके प्रकाशित हुई हैं। उनके सात उपन्यासों में अन्तिम साक्ष्य और अर्थान्तर (द्वितीय संस्करण), बाकी सब खैरियत है (द्वितीय संस्करण),ऐलान गली जिन्दा है, अपने-अपने कोणार्क, यहां वितस्ता बहती है और कथा सतीसर प्रमुख रही। उनकी अन्य कृतियों में यहीं कहीं आसपास (कविता संग्रह),हाशिये की इबारतें (आलकथामक संस्मरण), मेरे भोजपत्र (संस्मरण एवं आलेख), प्रश्नों के दायरे में (साक्षात्कार) और चार खंडों में कथा समग्र का प्रकाशन भी हो चुका है। 
पुरस्कार व सम्मान 
प्रसिद्ध महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता को हरियाणा साहित्य अकादमी द्वारा वर्ष 2019 के लिए महाकवि सूरदास आजीवन साहित्य साधना सम्मान से नवाजने से पहले वर्ष 2013 का बाबू बालमुकुंद गुप्त पुरस्कार से भी सम्मानित किया जा चुका है। वहीं अकादमी ने उनकी अपने-अपने कोणार्क, अब्बू ने कहा था और हाशिए की इबारत पुस्तकों को भी पुरस्कृत किया है। वहीं जम्मू-कश्मीर कल्चरल अकादमी द्वारा उन्हें अर्थान्तर, ऐलान गली जिन्दा है, ओ सोनकिसरी तथा कथा सतीसर कृतियों को बेस्ट बुक्स एवार्ड दिया जा चुका है। केंद्रीय मानव संसाधन मंत्रालय द्वारा भी उनकी वाकी सब खैरियत है, पोशनूल की वापसी और बदलते हालात में नामक पुस्तकों को पुरस्कृत किया गया है। दिल्ली अकादमी ने उनकी कृति कथा सतीसर को पुरस्कृत करने के अलावा उन्हें हिन्दी अकादमी के साहित्यकार सम्मान से सम्मानित कर चुकी है। इसके अलावा के.के.बिड़ला फाउंडेशन, दिल्ली उनकी कृति कथा सतीसर का व्यास सम्मान से पुरस्कृत कर चुका है। हरियाणा की ही नहीं, बल्कि देश की वरिष्ठ महिला साहित्यकार चन्द्रकान्ता ने गद्य, पद्य, कहानी, उपन्यास आदि कई विधाओं में समग्र लेखन के जरिए हिन्दी साहित्य क्षेत्र में योगदान और उत्कृष्ट कार्य से समाज को दिशा देने का प्रयास किया है। साहित्य के क्षेत्र में उत्कृष्ट लेखनी की धनी चन्द्रकान्ता को चन्द्रावती शुक्ल सम्मान, कल्पतरु सम्मान, कल्पना चावला सम्मान, ऋचा लेखिका रत्न, वाग्मणि सम्मान, राष्ट्रभाषा गौरव सम्मान, सौहार्द सम्मान, रत्नीदेवी वाग्देवी पुरस्कार, महात्मा गांधी साहित्य सम्मान और ऑल इण्डिया कश्मीरी समाज द्वारा कम्यूनिटी आइकॉन एवार्ड से भी नवाजा गया है। इसके अलावा राष्ट्र की प्रथम महिला श्रीमती विमला शर्मा द्वारा सम्मानित, अखिल भारतीय साहित्य परिषद, गुड़गाँव, हरियाणा प्रादेशिक हिन्दी साहित्य सम्मेलन, गुड़गाँव, जयपुर लिटरेरी फेस्टिवल में 'ए स्ट्रीट इन श्रीनगर', डीएससी साउथ एशियन लिटरेरी पुरस्कार में शार्ट लिस्टेड व सम्मानित होने का गौरव भी उन्हें हासिल है। 
08Nov-2021